बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा की ज्ञान से निकला धर्म और दर्शन है. इसके प्रवर्तक शाक्यमुनि महात्मा बुद्ध (गौतम बुद्ध) है. उनका जीवन काल 563 ईसा पूर्व से 483 ईसा पूर्व माना जाता हैं.
समकालीन स्रोतों से ज्ञात होता है कि जब महामाया गर्भावस्था में अपने पिता के घर जा रही थीं. लुम्बिनी नामक गांव के पास बीच रास्ते में ही उन्हें प्रसव पीड़ा हुई. इसी स्थान पर उनहोंने सिद्धार्थ को जन्म दिया. बाद में सम्राट अशोक ने बुद्ध के इस जन्म स्थान पर रुम्मिनदेई स्तम्भलेख बनवाया, जिस पर आज भी शब्द पढ़े जा सकते हैं. इसपर ‘हिद बुधे जाते‘ लिखा है. इसका अर्थ होता है – ‘यहाँ बुद्ध जन्मे थे‘.
गौतम बुद्ध से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ (Important Facts about Gautam Buddha in Hindi)
- जन्म तिथि- वैशाख पूर्णिमा, 563 ईसा पूर्व
- जन्म स्थान- कपिलवस्तु, लुम्बिनी ग्राम (नेपाल में स्थित)
- माता-पिता – महारानी महामाया देवी व शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन
- मौसी – प्रजापति गौतमी
- कुल- शाक्य
- पत्नी – यशोधरा (अन्य नाम – बिम्बा, गोपा, भडकाच्छ्ना)
- पुत्र- राहुल
- बचपन का नाम- सिद्धार्थ (अन्य नाम – तथागत, भगवान् बुद्ध, एशिया का ज्योति पुंज (Light of Asia)
गौतम बुद्ध का बौद्ध धर्म की तरफ गमन (How Gautam Buddha moved for Enlightenment)
सिद्धार्थ के जन्म के सात दिनों बाद ही उनके माता की मौत हो गई थी. इसके बाद उनका लालन-पालन उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया था. बाद में राजा शुद्धोधन ने गौतमी से विवाह कर लिया था.
सिद्धार्थ जब कपिलावस्तु की सैर के लिए निकले तो उन्होंने चार दृश्यों को देखा:
(i) बूढ़ा व्यक्ति
(ii) एक बिमार व्यक्ति
(iii) शव
(iv) एक संयासी
इस दृश्य ने सिद्धार्थ को व्यथित कर दिया था. तत्पश्चात, 29 वर्ष की अवस्था में सांसारिक दुःखों से विचलित होकर गौतम बुद्ध ने सत्य की खोज में गृह त्याग कर दिया. आधी रात के अंधकार में सोती हुई पत्नी और पुत्र को छोड़कर सिद्धार्थ के इस कदम को बौद्ध इतिहास में महाभिनिष्क्रमण कहा गया हैं.
गृह-त्याग के पश्चात गौतम बुद्ध ने कई स्थानों का भ्रमण किया. सबसे पहले वे अनोमा नदी के तट पर पहुंचे, जहां मुंडन पश्चात काषाय वस्त्र धारण कर भिक्खु बन गए.
वैशाली के समीप बसे सन्यासी आलारकलाम से सिद्धार्थ मिले थे. तत्पश्चात वे उरुवेला (बोधगया) चले गए, जहाँ उन्हें कौण्डिन्य आदि पांच साधक मिले.
35 वर्ष कीआयु में वैशाख पूर्णिमा की रात पुनपुन नदी के तट पर स्थित एक पीपल (वट) वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को सच्चे ज्ञान का बोध हुआ. इसके बाद वे तथागत कहलाए.
ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् गौतम बुद्ध सारनाथ (ऋषि पत्तनम व मृग दाव) पहुंचें, जहां उन्होंने पांच सन्यासियों को अपना उपदेश दिया. इस शिक्षा को चार आर्य सत्य कहा गया है. इस घटना को धम्म-चक्र-प्रवर्तन कहा गया हैं. तपस्सु व काल्लिक बुद्ध के पहले दो अनुयायी है.
भगवान् बुद्ध ने अपने जीवन में सबसे अधिक उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए. बौद्ध संघ का स्थापना सारनाथ में हुआ था. लेकिन प्रचार केंद्र मगध को बनाया.
बुद्ध के समकालीन शासकों में प्रसेनजित, उदयन व बिम्बिसार बौद्ध धर्म के प्रमुख अनुयायी थे.
गौतम बुद्ध ने अपना आखिरी समय हिरण्यवती नदी के तट पर स्थित कुशीनारा में व्यतीत किया. यहीं पर 483 ईसा पूर्व में उनकी मृत्यु हो गई. इस घटना को महापरिनिर्वाण कहा जाता है. दरअसल, जब महात्मा बुद्ध लगभग 80 वर्ष के थे, तब वे पावा शहर आए थे. वहां उन्हें पेचिश नाम की बीमारी हो गई. इसके बावजूद, वह अपने धम्म दान के कार्य में लगे रहे. गोरखपुर के कुशीनगर स्थान पर पहुंचते ही उनकी तबीयत बिगड़ गई और उन्होंने 483 ई. में वैशाख पूर्णिमा के दिन निर्वाण प्राप्त किया.
कुशीनारा के परिव्राजक सुभच्छ को गौतम बुद्ध ने अपना आखिरी उपदेश दिया था. बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित कर स्तूपों की स्थापना की गई थी.
बौद्ध धर्म ग्रंथ व साहित्य (Religious Books and Literatures of Buddhism in Hindi)
प्राचीन बौद्ध ग्रन्थ पाली भाषा में लिखे हैं. अधिकांश विद्वान् मानते है कि गौतम बुद्ध भी इसी भाषा में उपदेश देते थे.
त्रिपिटक ग्रंथों को बौद्ध धर्म का मौलिक या आधारभूत पुस्तक माना जाता है. हालाँकि, बाद में कई बौद्ध ग्रन्थ लिखे गए है. त्रिपिटक ग्रंथों का एक समूह है. इसके तीन भाग है- सुतपिटक, विनयपिटक और अभिधम्मपिटक.
इन ग्रंथो में विवेकपूर्ण मार्ग दर्शन, सलाह, स्पष्टीकरण, प्रेरणा आदि बातें उपलब्ध हैं. पिटक का अर्थ पिटारा या बक्सा/ टोकरी होता है. त्रिपिटक को अंग्रेजी भाषा में पाली सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है. इसका अंग्रेजी अनुवाद 40 खंडों में हैं.
1. सुतपिटक (Sutapitaka in Hindi)
सुत्त पिटक में महात्मा बुद्ध की जीवन यात्राओं का विस्तृत वर्णन है. इसमें उनके समकालीन सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक तथा भूगोलिक स्थिति की जानकारी मिलती हैं
• इसमें बुद्ध और उनके करीबी सहयोगियों से संबंधित लगभग 10 हजार सूत्र वर्णित हैं.
• यह बुद्ध की मृत्यु के बाद आयोजित प्रथम बौद्ध परिषद, से संबंधित है.
सुत्त पिटक को निम्नलिखित पाँच निकायों (भागों) में विभाजित किया गया है:-
- अंगुत्तर निकाय में दो हजार से अधिक संक्षिप्त कथनों का संग्रह हैं. इसी में भारत के 16 महाजनपदो का उल्लेख है.
- दीघ निकाय में बुद्ध के लम्बे उपदेशो का संग्रह है. इस ग्रंथ पर बुद्धघोष ने सुमंगलवासिनी व सामन्तपासादिका नामक टीका भी लिखा है.
- खुद्दक निकाय में 15 किताबें शामिल हैं, जिनमें बेर गाथा, धमपद तथा जातक कहानियों की पुस्तकें भी हैं. आजकल धम्मपद को बोद्धी गीता भी भी कहा जाने लगा है.
- मज्झिम निकाय में छोटे उपदेशो का संग्रह है.
- संयुक्त निकाय में बुद्ध की संक्षिप्त घोषणाओं का संग्रह किया गया है. धर्मंचक्रप्रवर्तन सुत्त इसी का अंग है.
2. विनयपिटक (Vinaya Pitaka in Hindi)
इस ग्रंथ से पहली दो बौद्ध संगीतिओं के बारे में ऐतिहासिक जानकारी हासिल होती है. इस बौद्ध ग्रन्थ में संघ के अंतर्गतअनुशासन की पुस्तक के रूप में जाना जाता है. इसमें संघ के भिक्षुओं और भिक्षुणियों के संघ व गृहस्थ बौद्धों के जीवन सम्बंधी आचार-विचार और नियम संगृहित हैं. इसे तीन पुस्तकों अर्थात् सुत्ताविभंग, खन्दक और परिवार में बांटा गया है.
3. अभिधम्मपिटक (Abhidhamma Pitaka in Hindi)
इस ग्रन्थ में बौद्ध धर्म के दर्शन और सिद्धांत शामिल हैं. यह सात पुस्तकों अर्थात् धम्मासंघिनी, धातुकथा, कथावत्थु,पट्ठना, पुग्गलापन्नातु, विभंग और यमक से मिलकर बनता है, यानी यह सात हिस्सों में बंटा हुआ है.
धम्मपद (Dhamma Poems in Hindi)
इसमें में बोधियों के लिए धार्मिक तथा सदाचार नियमों का व्याख्यान किया गया है. इस के 26 अध्याय है, जिनमें 423 गाथाएं दर्ज है.
जातक कथा (Jatak Tale Stories in Hindi)
इसमें कविताओं के रूप में पूर्व बुद्ध के पूर्वजन्म की कल्पना की गई है व कहानियों के माध्यम से शिक्षा देने का प्रयास किया गया है. इसमें कुल 547 कथाएं है, जिनमें व्यक्तित्व विकास के लिए जरुरी अच्छे गुणों का वर्णन है.
मिलिंदपन्ह्यो (Milindapanhyo in Hindi)
यह ग्रन्थ बौद्ध भिक्षु नागसेन और भारत के इन्डो-यूनानी राजा मिनान्डर के बीच बातचीत पर आधारित है. पाली भाषा में लिखी, इस पुस्तक के रचयिता नागसेन हैं. बौद्ध धर्म से जुडी यह किताब तर्क पर आधारित है.
दीपवंश (Deepavansh in Hindi)
मुख्य रूप से इसमें सिंहलद्वीप (श्रीलंका) का इतिहास वर्णित है. इस तरह यह श्रीलंका का सबसे पुराना ऐतिहासिक सूचना स्रोत भी है. इसे मुल रूप से पालि साहित्य के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक माना जाता है.
महावंश (Mahavansh in Hindi)
इसका शाब्दिक अर्थ महान इतिहास है. यह सबसे महत्वपूर्ण पाली महाकाव्य है. दीपवंश की तरह ही इसका मूल मंतव्य ऐतिहासिक है. इसमें भी श्रीलंका के राजाओं का वर्णन है. यह पुस्तक सबसे प्राचीन समय के ऐतिहासिक सूचना स्रोतों में से एक है.
बुद्धचरित (Buddhacharit in Hindi)
यह संस्कृत भाषा में अश्वघोष के द्वारा लिखा गया है. इसे सबसे हाल का ग्रन्थ माना जाता है. इस ग्रन्थ में मुख्य रूप से बुद्ध के जीवन व उसके विविध पहलुओ को को दर्शाया गया है.
भगवान बुद्ध और उनका धम्म (Lord Buddha and His Dhamma in Hindi)
“भगवान बुद्ध और उनका धम्म” नाम से प्रसिद्ध पुस्तक की रचना बोधिसत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा इस ग्रन्थ में डॉ॰ अम्बेडककी गई. इसमें उनहोंने महात्मा बुद्ध के विचारों की व्याख्या की है. यह तथागत बुद्ध के जीवन और बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों पर प्रकाश डालता है. यह पुस्तक डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा रचित अंतिम रचना है. यह ग्रंथ भारत के नवयानी बौद्ध अनुयायिओं का मुख्य धर्मग्रंथ है और उनके द्वारा एक पवित्र ग्रन्थ के रूप में उपयोग किया जाता है. आजकल विश्व, मुख्यतः बौद्ध जगत में यह ग्रंथ अत्यन्त लोकप्रिय है.
भगवान् बुद्ध व बौद्ध धर्म की शिक्षाएं एवं सिद्धांत (Buddha’s Teachings; Buddhism, its Education and Theories)
पालि भाषा के त्रिपिटक के अन्तर्गत विनयपिटक, सुत्तपिटक व अभिधम्मपिटक को मूल बौद्ध देसना (शिक्षा व सिद्धांत) माना जाता है.सुत्तपिटक को प्रारम्भिक बौद्ध धर्म का एनसाइक्लोपीडिया कहा जाता है. इसी में बुद्ध के प्रवचनों का संकलन है. आर्यसत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदि के द्वारा बुद्ध की शिक्षाएँ समझी जा सकतीं हैं. गौतम बुद्ध ने आमजन की भाषा पाली में ही शिक्षाएं दी है.
चार आर्य सत्य (Four Noble Truths in Hindi)
तथागत बुद्ध ने चार आर्य सत्य बताये हैं-
- दुःख (Sorrow in Hindi)
संसार में सर्वत्र दुःख है. जीवन दुःखों व कष्टों से भरा है. संसार को दुःखमय देखकर ही बुद्ध ने कहा था- “सब्बम् दुःखम्”. इस दुनिया में दुःख है. जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीज़ों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है. - दुःख कारण (Sorrow Cause in Hindi)
दुःख समुदाय अर्थात दुःख उत्पन्न होने के कई कारण हैं. सभी कारणों का मूल अविद्या व तृष्णा (चाहत) है. दुःखों के कारणों को “प्रतीत्य समुत्पाद” कहा गया है. इसे “हेतु परम्परा” भी कहा जाता है.
प्रतीत्य समुत्पाद बौद्ध दर्शन का मूल तत्व है. अन्य सिद्धान्त इसी में समाहित हैं. बौद्ध दर्शन का क्षण-भंगवाद भी प्रतीत्य समुत्पाद से उत्पन्न सिद्धान्त है.
- दुःख निरोध (Sorrow Confinement in Hindi)
दुःख-निरोध के आठ साधन बताये गये हैं, जिन्हें ‘अष्टांगिक मार्ग’ कहा गया है. तृष्णा से मुक्ति पाई जा सकती है. - दुःख निरोध का मार्ग (Way to Sorrow Cessation in Hindi)
तृष्णा से मुक्ति अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीने से पाई जा सकती है.
अष्टांगिक मार्ग (Noble Eightfold Path in Hindi)
बौद्ध धर्म के अनुसार दुःख निरोध पाने का रास्ता आष्टांगिक मार्ग है. तथागत के अनुसार, चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए. दुःख को हरने वाले तथा तृष्णा का नाश करने वाले आष्टांगिक मार्ग को मज्झिम प्रतिपदा अर्थात माध्यम मार्ग भी कहते है.
- सम्यक् दृष्टि- वस्तुओं के यथार्थ स्वरूप को जानना ही सम्यक् दृष्टि है.
- सम्यक् संकल्प- आसक्ति, द्वेष तथा हिंसा से मुक्त विचार रखना ही सम्यक् संकल्प है.
- सम्यक् वाक्- सदा सत्य तथा मृदु वाणी का प्रयोग करना ही सम्यक् वाक् है.
- सम्यक् कर्मान्त- इसका आशय अच्छे कर्मों में संलग्न होने तथा बुरे कर्मों के परित्याग से है.
- सम्यक् आजीव- विशुद्ध रूप से सदाचरण से जीवन-यापन करना ही सम्यक् आजीव है.
- सम्यक् व्यायाम- अकुशल धर्मों का त्याग तथा कुशल धर्मों का अनुसरण ही सम्यक् व्यायाम है.
- सम्यक् स्मृति- इसका आशय वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप के संबंध में सदैव जागरूक रहना है.
- सम्यक् समाधि – चित्त की समुचित एकाग्रता ही सम्यक् समाधि है.
आष्टांगिक मार्ग की प्राप्ति के प्रयास को तीन हिस्सों में वर्गीकृत किया जाता है : प्रज्ञा, शील और समाधि. आष्टांगिक मार्ग को बौद्ध भिक्खुओं का कल्याण मित्र कहा गया है.
पंचशील (Panchshila in Hindi)
भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को दस शीलों का पालन करने की शिक्षा दी है. इसे बौद्ध मार्गियों के जीवन का आधार बनाया गया है.
- अहिंसा – हिंसा न करना,
- अस्तेय – चोरी न करना,
- अपरिग्रह – व्यभिचार से परहेज,
- सत्य – झूठ न बोलना,
- सभी नशा से विरत,
- नृत्य गान का त्याग,
- श्रृंगार-प्रसाधनों का त्याग,
- समय पर भोजन करना,
- कोमल शय्या का व्यवहार नहीं करना एवं
- कामिनी कांचन का त्याग
प्रथम पांच शीलों को पंचशील कहा गया है. जिसे बाद में छान्दोग्य उपनिषद में भी स्थान दिया गया है.
बुद्धिज़्म का उद्देश्य (Aim of Buddhism in Hindi)
बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य के जवीन पर परम लक्ष्य है- निर्वाण प्राप्ति. निर्वाण का अर्थ है दीपक का बुझ जाना अर्थात जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना. तथागत के अनुसार, यह निर्वाण इसी जन्म से प्राप्त हो सकता है, किन्तु महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही संभव है.
बुद्ध के अनुसार, जिस प्रकार दुःख समुदाय का कारण जन्म है. उसी तरह जन्म का कारण अज्ञानता का चक्र है. इस अज्ञान रूपी चक्र को ‘प्रतीत्य समुत्पाद’ कहा जाता है.
प्रतीत्य समुत्पाद ही बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी सम्पूर्ण शिक्षाओं का आधार स्तम्भ है. प्रतीत्य समुत्पाद का शाब्दिक अर्थ है- प्रतीत्य (किसी वस्तु के होने पर) समुत्पाद (किसी अन्य वस्तु की उपत्ति).
मतलब, संसार की सभी वस्तुएं कार्य और कारण पर निर्भर करती हैं. संसार में व्याप्त हर प्रकार के दुःख का सामूहिक नाम “जरामरण” है.
जरामरण के चक्र (जीवन चक्र) में बारह क्रम हैं. इसे द्वादश निदान कहा जाता है. ये है –
- जरामरण (शरीर धारण करना),
- भव (शरीर धारण करने की इच्छा),
- उपादान (सांसारिक विषयों में लिपटे रहने की इच्छा),
- तृष्णा,
- वेदना,
- स्पर्श,
- षडायतन (पाँच इंद्रियां तथा मन),
- नामरूप,
- विज्ञान (चैतन्य),
- संस्कार व अविद्या.
प्रतीत्य समुत्पाद में इन कारणों के निदान की व्याख्या की गई है. प्रतीत्य समुत्पाद में ही अन्य सिद्धांत जैसे-क्षण-भंगवाद तथा नैरात्मवाद आदि समाहित है.
आधुनिक व अनात्मवादी धर्म (Modern and Anatist religion in Hindi)
बौद्ध धर्म मूलतः अनीश्वरवादी हैं . अर्थात बुद्ध ने ईश्वर के स्थान पर मानव प्रतिष्ठा पर बल दिया हैं. इसी प्रकार बौद्ध धर्म अनात्मवादी है. इसमें आत्मा की परिकल्पना नहीं की गई है. बौद्ध भिक्खुओं के अनुसार, वे पुनर्जन्म में भी विशवास नहीं करते है. अनात्मकवाद को नैरात्मवाद भी कहा जाता है.
महात्मा बुद्ध के अनुसार मानव स्वयं अपने भाग्य का निवारण करने वाला होता है. ईश्वर व आत्मा जैसी कोई चीज नहीं होता है. बौद्ध धर्म की सारी शिक्षा का सारांश ‘चार्य आर्य सत्य’ में मिलता है.
कुछ आधुनिक विद्वानों के अनुसार, बौद्ध धर्म का विनाश कर हिन्दू धर्म की स्थापना की गई. इसलिए हिन्दू व बौद्ध धर्म में विरोधाभास देखने को मिलता है. ईश्वर व आत्मा की परिकल्पना न होने के कारण ही बौद्ध धर्म को आधुनिक व विज्ञान के करीब माना जाता है.
गणतंत्र पर आधारित संघ (Sangha based on Republic)
बौद्ध संघ का दरवाजा प्रत्येक के लिए खुला था. वह स्त्रियों के अधिकारों का हिमायती था. संघ में प्रविष्टि को उपसम्पदा कहा जा था. बौद्ध संघ में चोर, हत्यारों, ऋणी व्यक्तियों, राजा के सेवक, दास तथा रोगी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित था.
संघ की सभा में प्रस्ताव (नत्ति) का पाठ होता था. इसे अनुसावन कहा जाता है. गणतंत्र प्रणाली पर आधारित संघ की सभा की वैध कार्यवाही के लिए न्यूनतम संख्या कोरम 20 थी.
बौद्ध संघ में प्रवेश के नियम (Rules for admission to the Buddhist Sangha in Hindi)
(1) प्रवेश के लिए अपने माता-पिता की अनुमति जरुरी थी.
(2) उसकी आयु 15 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए.
(3) उसे कुष्ठ, तपेदिक और कोई अन्य संक्रामक रोग नहीं होना चाहिए.
(4) सभी लोगों को जाति के भेद के बिना संघ में प्रवेश करने की अनुमति थी, लेकिन दासों और अपराधियों को आम तौर पर इसमें जगह नहीं दी जाती थी.
जब कोई व्यक्ति इन शर्तों को पूरा करता था और संघ में शामिल होने की खुद की सहमति देता था तो उसे अपने बाल मुंडवाकर और पीले कपड़े पहनना होता था. उसके बाद उसे संघ के अध्यक्ष के सामने पेश किया जाता था. वहां उससे निम्न पंक्तियों को अपने इक्षा से स्वीकारने और बोलने को कहा जाता था:
बुद्धम शरणम् गच्छामि (मैं बुद्ध की शरण लेता हुँ)
धम्मं शरणम् गच्छामि (मैं धर्म की शरण लेता हुँ)
संगम शरणम् गच्छामि (मैं संघ की शरण लेता हुँ)
साथ ही उन्हें यह घोषित करना पड़ता था कि उन्हें बुद्ध द्वारा निर्धारित दस आज्ञाओं में उसे पूर्ण विश्वास है. इस क्रिया के बाद व्यक्ति को भिक्खु जीवन के योग्य माना जाता था. उक्त तीन पंक्तियों को त्रिशरण कहा जाता है. बुद्ध, धम्म व संघ बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं.
इसके बाद भिक्खु को लगातार दस वर्षों तक एक अनुभवी भिक्खु की देखरेख में प्रशिक्षण लेता था. फिर वास्तव में बौद्ध भिक्षु संघ के सदस्य बन जाता था. प्रत्येक भिक्षु से अपेक्षा की जाती थी कि वह संघ के नियमों का पालन करे और सदाचारी जीवन व्यतीत करे.
बौद्ध धर्म कैसे अपनाया जाता है (How to become a Buddhist in Hindi)
भारत में बौद्ध धर्म ग्रहण करने के लिए त्रिशरण व पंचशील के पालन का प्रतिज्ञा लेना होता है. दरअसल, बौद्ध (Buddhist) बनने के लिए आज भी पुरानी पद्धति ही अपनाई जाती है. लेकिन, आधुनिक समय में , बुद्धिस्ट बनने के लिए डॉ बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा हिन्दू धर्म न मानने के लिए लिखी गई 22 प्रतिज्ञाएं भी लेनी होती है. बौद्ध धर्म ग्रहण करने वाले बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (Buddhist Society of India) से प्रमाण-पत्र भी प्राप्त कर सकता है.
भारत में बौद्ध धर्म से जुड़ी 22 प्रतिज्ञाएं (22 vows of Buddhism in Hindi)
- मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.
- मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.
- मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.
- मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ.
- मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ.
- मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूंगा.
- मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा.
- मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा.
- मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ.
- मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा.
- मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करूँगा.
- मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा.
- मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालु रहूंगा तथा उनकी रक्षा करूँगा.
- मैं चोरी नहीं करूँगा.
- मैं झूठ नहीं बोलूँगा.
- मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा.
- मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा.
- मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और अपने दैनिक जीवन में दयालु रहने का अभ्यास करूँगा.
- मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ.
- मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है.
- मुझे विश्वास है कि मैं (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा) फिर से जन्म ले रहा हूँ.
- मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा.
भगवान बुद्ध (Bhaudh Dharma) के प्रमुख प्रचारक (Buddhist Publicist in Hindi)
- अँगुलिमाल,
- मिलिंद (यूनानी सम्राट),
- सम्राट अशोक,
- ह्वेन त्सांग,
- फा श्येन,
- ई जिंग,
- हे चो आदि.
भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्य थे (Chief disciple of Lord Buddha in Hindi)
- आनंद,
- अनिरुद्ध,
- महाकश्यप,
- रानी खेमा (महिला),
- महाप्रजापति (महिला),
- भद्रिका,
- भृगु,
- किम्बाल,
- देवदत्त व
- उपाली आदि.
बुद्ध के जीवन से संबंधित बौद्ध धर्म के प्रतीक (Symbols of Buddhism in Hindi)
- घटना चिन्ह/प्रतीक
- जन्म – कमल व सांड
- गृहत्याग – घोड़ा
- ज्ञान – पीपल(बोधि वृक्ष)
- निर्वाण – पद चिन्ह
- मृत्यु – स्तूप
बौद्ध धर्म का विस्तार व शाखाओं का निर्माण (Expansion of Buddhism and its Branches)
गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गया. सम्राट अशोक ने इसे पुरे एशिया व अपने मित्र राज्यों में फैला दिया. इस तरह यह मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में भी फैल गया.
ईसाई व इस्लाम धर्म के बाद बौद्ध धर्मावलम्बियों की आबादी सबसे अधिक है. इस तरह इसे विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म माना जाता है.
हीनयान, थेरवाद, महायान और वज्रयान बौद्ध धर्म में प्रमुख शाखाएं हैं. दुनिया के 200 से अधिक देशों में बौद्ध अनुयायी हैं. इनकी आबादी करीब 2.5 अरब (दुनिया की आबादी का 29%) हैं.
भगवान बुद्ध के समय बौद्ध धर्म में किसी भी प्रकार का कोई विभाजन, यानी पंथ या सम्प्रदाय नहीं था. किंतु, द्वितीय बौद्ध संगति में भिक्षुओं में मतभेद के चलते इसके दो भाग हो गए. एक को हिनयान और दूसरे को महायान कहा गया. महायान सम्प्रदाय का उदय आन्ध्र प्रदेश में हुआ माना जाता है.
महायान का शाब्दिक अर्थ बड़ी गाड़ी या नौका और हिनयान शब्द का मतलब छोटी गाड़ी या नौका (थेरवाद) होता हैं. महायान के अंतर्गत बौद्ध धर्म की एक तीसरी शाखा, बज्र यान भी था.
झेन, ताओ, शिंतो आदि अनेकों बौद्ध सम्प्रदाय भी उक्त दो सम्प्रदाय के अंतर्गत ही माने जाते हैं.
आधुनिक भारत में नागपुर के दीक्षाभूमि में बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर द्वारा बौद्ध धर्म का पुनुरुत्थान हुआ. उनके द्वारा एक नए शाखा नवयान का प्रवर्तन हुआ. यह महायान, वज्रयान, थेरवाद से भिन्न सिद्धांत है, जिसका प्रभाव मुख्य रूप से महाराष्ट्र राज्य व आसपास के इलाकों में है.
भगवान् बुद्ध की 2500वीं जयंती सन 1956 ईस्वी को पूर्ण हुई थी. इसलिए साल विजयादशमी को बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने बौद्ध धम्म अपनाया था. बौद्ध भविष्यवाणी के अनुसार, तथागत गौतम बुद्ध के जन्म के 2500 साल बाद जम्बूद्वीप में एक उपासक होगा, जो बौद्ध धर्म का पुनुरुत्थान करेगा.
बिहार व बंगाल के पाल शासकों ने बौद्ध धर्म के प्रसार में व्यापक योगदान दिया. नालन्दा तथा विक्रमशिला विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा के प्रधान केन्द्र थे. इसके साथ ही, अशोक, मिनाण्डर, कनिष्क तथा हर्षवर्द्धन आदि शासकों ने बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया.
चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, लाओस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 13 देशों में बौद्ध धर्म ‘प्रमुख धर्म’ है. इसके अलावा, भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी करोड़ों बौद्ध अनुयायी हैं.
कम्बोडिया, भूटान, थाईलैण्ड, म्यानमार और श्रीलंका “अधिकृत” रूप से ‘बौद्ध देश’ है. इन देशों के संविधानों में बौद्ध धर्म को ‘राजधर्म’ या ‘राष्ट्रधर्म’ का दर्जा प्राप्त है.
बौद्ध संगीतियां (महासभाएं) (Buddhist General Assemblies and Meetings)
1.प्रथम-
स्थान-राजगृह (सप्तपर्णी गुफा)
समय-483 ई.पू.
अध्यक्ष-महाकस्सप
शासनकाल-अजातशत्रु (हर्यक वंश)
उद्देश्य-बुद्ध के उपदेशों को दो पिटकों विनय पिटक तथा सुत्त पिटक में संकलित किया गया।
2.द्वितीय-
स्थान-वैशाली
समय-383 ई0पू0
अध्यक्ष-साबकमीर (सर्वकामनी)
शासनकाल-कालाशोक (शिशुनाग वंश)
उद्देश्य-अनुशासन को लेकर मतभेद के समाधान के लिए बौद्ध धर्म स्थाविर एवं महासंघिक दो भागों में बंट गया.
3.तृतीय-
स्थान-पाटलिपुत्र
समय- 251 ई0पू0
अध्यक्ष-मोग्गलिपुत्ततिस्स
शासनकाल-अशोक (मौर्यवंश)
उद्देश्य-संघ भेद के विरूद्ध कठोर नियमों का प्रतिपादन करके बौद्ध धर्म को स्थायित्व प्रदान करने का प्रयत्न किया गया. धर्म ग्रन्थों का अंतिम रूप से सम्पादन किया गया तथा तीसरा पिटक अभिधम्मपिटक जोड़ा गया.
4.चतुर्थ-
स्थान-कश्मीर के कुण्डलवन
समय-लगभग ईसा की प्रथम शताब्दी
अध्यक्ष-वसुमित्र एवं अश्वघोष उपाध्यक्ष
शासनकाल-कनिष्क कुषाण वंश
उद्देश्य-बौद्ध धर्म का दो सम्प्रदायों हीनयान तथा महायान में विभाजन.
आधुनिक भारत के बोधिसत्व (Bodhisatva of Modern India in Hindi)
डॉ भीमराव अंबेडकर को बोधिसत्व की उपाधि मिली हुई है. भारत में गौतम बुद्ध (शाक्य वंशी) के बाद बोधिसत्व की उपाधि पाने वाले डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर भारत के संविधान निर्माता व ऐतिहासिक व्यक्तित्व है. उन्हें 1954 ई. में नेपाल के काठमांडू में “जगटिक बौद्ध परिषद” में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा “बोधिसत्व” की उपाधि से सम्मानित किया गया था.
बौद्ध धर्म में, बोधिसत्व (संस्कृत: बोधिसत्त्व; पालि: बोधिसत्त) सत्त्व के लिए प्रबुद्ध (शिक्षा दिये हुये) को कहते हैं. पारम्परिक रूप से महान दया से प्रेरित, बोधिचित्त जनित, सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिए सहज इच्छा से बुद्धत्व प्राप्त करने वाले व्यक्ति को बोधिसत्व माना जाता है.
भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित करने का श्रेय भी डॉ भीमराव आंबेडकर को दिया जाता हैं.
बौद्ध धर्म के त्यौहार (Festvals of Buddhism in Hindi)
बौद्धों के लिए महीने के 4 दिन (अमावस्या, पूर्णिमा और दो चतुर्थी दिवस) उपवास के दिन होते थे. इस उपवास को उपोसथ (श्रीलंका में ‘रोया’) के नाम से जाना जाता है.
बौद्ध धर्म में विजयादशमी भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है. कलिंग युद्ध के समाप्ति के 10 वें दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया था. इसलिए बौद्ध अनुयायी इसे ‘अशोक विजयादशमी’ के रूप में मनाते है.
बौद्धों का सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है. इसे ‘बुद्ध पूर्णिमा’ या बौद्ध धर्म का त्रिविधपानी पर्व के नाम से भी जाना जाता है. इसी दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान (बोधिसत्व) का प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई.
बौद्ध धर्म में धम्म यात्राओं को विशेष महत्व दिया जाता है.
बौद्ध धर्म से जुड़े महत्वपूर्ण स्थल (Important Places related to Buddhism in Hindi)
महात्मा बुद्ध से जुड़े आठ स्थान लुम्बिनी(नेपाल), बोधगया (गया, बिहार), सारनाथ (उत्तर प्रदेश), कुशीनगर(उत्तर प्रदेश), श्रावस्ती (उत्तर प्रदेश), संकास्य, राजगृह (बिहार) तथा वैशाली (बिहार) को बौद्ध ग्रंथों में ‘अष्टमहास्थान’ कहा गया है.
बोरोबुदूर का बौद्ध स्तूप जो विश्व का सबसे विशाल तथा अपने प्रकार का एक मात्र स्तूप का निर्माण शैलेन्द्र राजाओं ने मध्य जावा, इण्डोनेशिया में करवाया है. बौद्ध स्थलों के जीर्णोद्धार का श्रेय मौर्य वंश के सम्राट अशोक को दिया जाता है.
बौद्ध विहार (Lifestyle of Buddhist Viharas in Hindi)
बुद्ध ने भिक्षुओं और भिक्खुनियों के रहने के लिए अनेक विहारों का निर्माण किया गया था. इनमें जेतवन, अमरवन और मृगवन के विहार विशेष रूप से प्रसिद्ध थे. ऐसे प्रत्येक विहार में भिक्षुओं के रहने के लिए कमरे, भोजनालय, स्नानघर, गोदाम, रसोई, कुएँ आदि के प्रबंध थे. ये विहार धीरे-धीरे धार्मिक प्रचार और शिक्षा के प्रसिद्ध केंद्र बन गए और उन्होंने भारतीय लोगों की बहुत सेवा की.
डॉ. आर. सी. मजूमदार लिखते हैं, “भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा योगदान इसके मठ थे, जिनमें शिक्षा प्राप्त करने के लिए शिक्षक और छात्र दूर-दूर से आते थे और बौद्ध भिक्षुओं की विद्वता और उच्च चरित्र से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते थे.” भारत में जो खंडहर मिले हैं, उनसे पता चलता है कि ये निश्चित रूप से अपने समय के शिक्षा के महान और गौरवशाली केंद्र होंगे. इसके अलावा ये मठ बौद्धों और उनके अनुयायियों के दानशीलता का अनूठा प्रमाण हैं.
बौद्ध विहारों के अलावा भी बौद्ध धर्म से जुड़े अनेक गुफाएं व संरचनाएं पुरे भारत वर्ष में फैले हुए पाए गए है. इससे ये भी पता चलता है कि बौद्ध धर्म पुरे देश में फैला हुआ था व अपने समय में भारतियों का मूल धर्म था.
उपरोक्त वर्णित तथ्यों से ज्ञात होता है कि बौद्ध धर्म की विशेषताएं आधुनिक विज्ञान के निकट है.
बौद्ध धर्म से जुड़े महत्वपूर्ण स्थल (Important and Tourist Places related to the Buddhism)
- लुम्बिनी(नेपाल): यह गौतम बुद्ध का जन्मस्थान है.
बोधगया (गया, बिहार)
35 वर्ष की अवस्था में करीब 500 ईस्वी पूर्व इसी स्थान पर फल्गु नदी के तट पर पीपल के वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किए थे. ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध को बोधि कहा गया व इस वृक्ष को बोधि वृक्ष व स्थान बोधगया. श्रीलंका से लाकर लगाया गया इस वृक्ष की छठी पीढ़ी आज भी बोधगया में देखा जा सकता है. बुद्ध के बोध से जुड़ा एक रोचक प्रसंग भी है.
कहा जाता है कि बुद्ध के तपस्थल के समीप स्थित एक गांव में सुजाता नाम की महिला रहती थी. उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. इस मन्नत के पुरा होने पर वह उस पीपल के पेड़ को खीर अर्पित करने गई, जिससे उसने पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए मन्नत मांगी थी. गौतम बुद्ध यही पर ध्यानमग्न थे. सुजाता ने बुद्ध को ही वृक्ष देवता समझ लिया व बड़े ही आदरपूर्वक खीर ग्रहण करने को कहा व कहा “जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो”. बुद्ध मना न कर सके.
तत्पश्चात वे फल्गु नदी में स्नान करने गए व तबतक सुजाता को इंतज़ार करने को कहा. उसी रात को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुई. उन्हें सच्चा बोध हुआ.
दरअसल, 49 दिन के उपवास, कठोर तप और हठयोग के कारण बुद्ध शक्तिहीन हो गए थे. उन्हें खीर से जीवन के प्रति संतुलित नजरिया मिला. तभी तो उन्होंने मध्यम मार्ग चुना यानी जीवनमयी संगीत के लिए वीणा के तारों को इतना भी न कसो कि वे टूट जाएं और इतना भी ढीला न छोड़ो कि उनसे कोई स्वर न निकले.
इसके बाद बुद्ध 4 सप्ताह तक उसी बोधिवृक्ष के नीचे साधना में लीन रहकर धर्म के स्वरूप का चिंतन करते रहे. फिर वे धम्म दान करने निकल पड़े.
सुजाता कौन थी (Who was Sujata in Hindi)?
सुजाता बोधगया के पास सेनानी गांव के ग्राम प्रधान अनाथपिण्डिका की पुत्रवधू थी. सुजाता ने मनौती मांग रखी थी कि पुत्र होने पर वह गांव के वृक्ष देवता को खीर चढ़ाएगी. पुत्र प्राप्ति के बाद उसने अपनी दासी पूर्णा को उस पीपल वृक्ष और उसके आसपास सफाई के लिए भेजा जिसके नीचे बुद्ध ध्यान मुद्रा में बैठे थे.
सारनाथ (उत्तर प्रदेश)
यहाँ सम्राट अशोक के चतुर्मुख सिंहस्तम्भ, जिसका ऊपरी भाग को भारत का राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में अपनाया गया है, पाया गया हैं. इसके अलावा यहाँ से चौखंडी स्तूप, धर्मराजिका स्तूप, मूलगंध कुटी विहार, धमेख स्तूप (धर्मचक्र स्तूप) व अन्य कलाकृतियाँ तथा प्रतिमाएँ पाए गए है. हर्ष के शासन-काल में भारत आए चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने सारनाथ को अत्यंत खुशहाल बताया है.
इस क्षेत्र का सर्वप्रथम उत्खनन कर्नल कैकेंजी ने 1815 ई. में करवाया. लेकिन उनको कोई महत्त्वपूर्ण सफलता नहीं मिली। इसके 20 वर्ष पश्चात् 1835-36 में कनिंघम ने सारनाथ का विस्तृत उत्खनन करवाया था.
कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)
गौतम बुद्ध ने अपना आखिरी अपना आखिरी उपदेश यही दिया था. यही पर उनहोंने “महापरिनिर्वण” प्राप्त किया. इस बाद कुशीनगर के रामाभार में ही उनका अंतिम संस्कार “मुकुंत बंधन” किया गया. यहाँ मल्लों ने उनके अस्थि पर बड़ा स्तूप बनाया था. बाद में महान सम्राट अशोक ने इसे पुनर्निर्मित किया था. चीनी यात्रियों, फाहियान और ह्यून त्सांग ने भी अपने यात्रा-वर्णन में “कुशीरारा” का उल्लेख किया है.
श्रावस्ती (उत्तर प्रदेश)
कहा जाता है कि इस स्थान पर 27 सालों तक भगवान बुद्ध रहे थे और उन्हें यहां का बरसात का मौसम बहुत पसंद था. यह प्राचीन कोसला साम्राज्य की राजधानी रहा है.
इस नगर में ‘जेतवन’ नाम का एक उद्यान था, जिसे वहाँ के जेत नामक राजकुमार ने बनाया था. गौतम बुद्ध के प्रिय शिष्य अनाथपिण्डिक सेठ ने इसे ख़रीद कर बौद्ध संघ को दान कर दिया था.
संकास्य, राजगृह (बिहार)
बुद्ध यहाँ कई वर्षों तक ठहरे थे व कई महत्वपूर्ण उपदेश दिये थे. यहीं पर आयोजित प्रथम बौद्ध संगीति में बुद्ध के उपदेशों को पहली बार आधिकारिक तौर पर लिपिबद्ध किया गया था.
वैशाली (बिहार)
प्राचीन नगर ‘वैशाली’, (पालि में ‘वैसाली’), के भग्नावशेष वर्तमान बसाढ़ नामक स्थान के निकट स्थित हैं. इसके पास ही ‘बखरा’ गांव बसा हुआ है. यह लिच्छवी गणराज्य की राजधानी थी. गणतंत्र पर आधारित इस राज्य का संसद सदन यानि संस्थागार यही था. गौतम बुद्ध यहाँ आये थे व वृजियों की न्यायप्रियता बहुत सराहना की थी.
बौद्ध धर्म के मठ जो आज भी सक्रिय है (Active Buddhist Viharas and Temples active these days)
तवांग मठ, अरुणाचल प्रदेश
हिमालय की खूबसूरत वादियों के बीच अरुणाचल प्रदेश में स्थित तवांग बौद्ध मठ इस धर्म के लोगों के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र है. यहां विश्व भर बौद्ध भिक्षु एकत्र होते हैं. समुद्र तल से साढ़े तीन हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित तवांग मठ विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध मठ कहलाता है. यह मठ गल्डेन नमगी लात्से के नाम से प्रसिद्ध है.
रुमेटेक मठ, सिक्कम
भारत के उत्तर-पूव के राज्यों में से एक सिक्कम को सैकड़ों बौद्ध मठों के लिए जाना जाता है. सिक्कम की राजधानी गंगटोक में रुमेटेक मठ स्थित है. यहां तिब्बती नववर्ष से ठीक पहले नकाबपोश नृत्य समारोह का आयोजन किया जाता है.
थिक्से मठ, लद्दाख
सिंधु घाटी में स्थित थिक्से मठ में भगवान बुद्ध की 49 फीट बड़ी विशालकाय प्रतिमा आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. यहां महात्मा बुद्ध का एक प्रमुख संग्रहालय स्थित है, जिसमें प्राचीन अवशेष व कला को संरक्षित किया गया है.
हेमिस मठ, लेह
हेमिस मठ, लेह के दक्षिण-पूर्व दिशा में शहर से 45 किमी दूर स्थित है. इसका निर्माण 1630 ई. में सबसे पहले स्टेग्संग रास्पा नंवाग ग्यात्सो ने करवाया था. उसके बाद 1972 में राजा सेंज नामपार ग्वालवा ने मठ का पुर्ननिर्माण करवाया और यहां एक धार्मिक विद्यालय भी बनवाया. इस विद्यालय में बौत्र भिक्षुओं को तंत्र विद्या सिखाई जाती है.
माइंडरोलिंग मठ, देहरादून
हिमालय की तलहटी में स्थित यह मठ मनोचिकित्सा और शिक्षण केंद्र होने के लिए विश्व भर में जाना जाता है. इस मठ को भगवान बुद्ध की 107 फीट ऊंची प्रतिमा और इसकी वास्तु शिल्प भव्यता के लिए जाना जाता है.
त्सुग्लाग्खांग मठ, धर्मशाला
हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थित त्सुग्लाग्खांग पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है. पोताला पैलेस के रूप में जाना जाने वाला धर्मशाला का यह वही स्थान है जहां परम पावन बौद्ध गुरु दलाई लामा अपने निर्वासन के समय रहे थे. यहां नामग्याल मठ है.
बौद्ध धर्म से जुड़े महत्पूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न: भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:1. स्थाविरवादी महायान बौद्ध धर्म से संबद्ध हैं. 2. लोकोत्तरवादी संप्रदाय बौद्ध धर्म के महासंघिक संप्रदाय की एक शाखा थी. 3. महासंधिकों द्वारा बुद्ध के देवत्वारोपण ने महायान बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया.उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
हीनयान सम्प्रदाय के समर्थक बौद्ध धर्म में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का विरोधी थे. इसलिए इन्हें श्रावकयान भी कहा जाता है. स्थविरवादी (थेरवादी), सर्वास्तित्त्ववादी, वैभाषिक, सौतांत्रिक व समित्य आई उपसम्प्रदाय का सम्बन्ध हीनयान शाखा से है. थेरवादी संभवतः बौद्ध धर्म का सबसे प्राचीन शाखा है और प्राचीन पाली भाषा की बौद्ध शिक्षाओं को संरक्षित रखने में इस समुदाय का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है.महायान शाखा से सम्बंधित माध्यमिक या शून्यवाद के प्रणेता बौद्ध भिक्खु नागार्जुन है. इनकी रचना माध्यमिककारिता है. इस सिद्धांत को सापेक्षवाद भी कहा है. नागार्जुन ने प्रतीत्यसमुत्पाद को ही शून्यता कहा है.विज्ञानवाद (योगाचार) महायान शाखा की दूसरी उपसम्प्रदाय है. इसके संस्थापक मैत्रेयनाथ को माना जाता है. इनके शिष्य असंग (चौथी-पांचवी सदी) का लिखा सूत्रालंकार इस उपसम्प्रदाय का प्राचीनतम ग्रंथ है. लंकावतार सूत्र भी इसी से संबंधित है. पांचवी सदी में इसी उपसम्प्रदाय के दिग्नाम ने बौद्ध तर्कशास्त्र का विकास किया और आलम्ब परीक्षा, न्याय प्रवेश्य, प्रमाण समुच्चय व प्रज्ञापारभिता पिण्डार्थ की रचना की.
प्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:1. बोधिसत्व, बौद्ध मत के हीनयान संप्रदाय की केंद्रीय संकल्पना है. 2. बोधिसत्व अपने प्रबोध के मार्ग पर बढ़ता हुआ करुणामय है. 3. बोधिसत्व समस्त सचेतन प्राणियों को उनके प्रबोध के मार्ग पर चलने में सहायता करने के लिये स्वयं की निर्वाण प्राप्ति विलंबित करता है.उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
बोधिसत्व बौद्ध धर्म के महायान शाखा का केंद्रीय संकल्पना है. इसलिए कथन 1 सही नहीं है. करुणा/अनुकंपा, दूसरों के कष्टों का एक अनुभवजन्य साझाकरण, बोधिसत्व की सबसे बड़ी विशेषता है. अतः कथन 2 सही है. यह माना जाता है कि बोधिसत्व ने दूसरों की खुशी के लिए कार्य करने हेतु दृढ़ संकल्प व्यक्त करने वाली चार प्रतिज्ञाएं की है; "हालांकि असंख्य संवेदनशील प्राणी हैं, मैं उन्हें बचाने की प्रतिज्ञा करता हूं; हालांकि अटूट जुनून हैं, मैं उन्हें गुरु बनाने की कसम खाता हूं; हालांकि असीम शिक्षाएं हैं, मैं उनका अध्ययन करने की कसम खाता हूं; हालांकि बुद्ध-सत्य अनंत है, मैं इसे प्राप्त करने की कसम खाता हूं." अतः कथन 3 सही है.