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जीएम फूड्स : वरदान या अभिशाप?

    जीएम फूड्स (Genetically Modified Foods) वे खाद्य पदार्थ है जो आनुवंशिक रूप से संशोधित होते हैं. ये उन जीवों से प्राप्त होते है जिनका डीएनए (D.N.A. – Deoxyribonucleic Acid) कृत्रिम रूप से संसोधित किया गया हो. प्राकृतिक रूप से इनकी जीन या डीएनए ऐसा नहीं होता है. एक जीव के जीन को अन्य जीव के जीन में डालना आनुवंशिक संसोधन का एक उदाहरण है. ऐसा करते वक्त, किसी जीन के ख़ास हिस्से को ही हस्तांतरित किया जाता है, वह हिस्सा किसी ख़ास गुण का होता है. इस तरह एक का गुण, दूसरे जीव में हस्तांतरित कर दिया जाता है.

    इस प्रौद्योगिकी को अक्सर “आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी” या “जीन प्रौद्योगिकी” कहा जाता है. कभी-कभी “पुनः संयोजक डीएनए प्रौद्योगिकी” या “जेनेटिक इंजीनियरिंग” भी कहा जाता है. वर्तमान में उपलब्ध जीएम फूड्स ज्यादातर पौधों के उत्पाद है. लेकिन भविष्य में जीएम फूड्स सूक्ष्मजीवों या जीएम जानवरों से प्राप्त खाद्य पदार्थों को बाजार में पेश किए जाने की संभावना है.

    अधिकांश मौजूदा जीएम फूड्स को पौधों की बिमारियों से प्रतिरोधकता बढ़ाकर, उत्पादन बढ़ाने के लिए किया गया है. जीएम फूड्स बेहतर पैदावार से खाद्य पदार्थों का कीमत काफी कम कर सकता है. भविष्य में जीएम फूड्स का उद्देश्य, भोजन की पौष्टिकता, ऊर्जा क्षमता व उत्पादकता में सुधार हो सकता है.

    यह एक नवीन प्राद्यौगिकी है, इसलिए बाजार में जीएम फूड्स उतारने से पहले, इसकी एलर्जिक क्षमता व अन्य गुणवत्ताओं को अच्छे से जांच लेना चाहिए. इसके लिए एएफएओ व डब्ल्यूएचओ द्वारा दिशानिर्देश जारी किए गए है.

    क्या है जीन (What is Gene in Hindi)

    जीन ही वह पदार्थ है जिससे किसी सजीव का गुण और खासियत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चला जाता है. हम सभी जानते है कि सजीव का निर्माण मूलतः कोशिकाओं से होता हैं. इन्हीं कोशिकाओं से जीव के अन्य अंगों का निर्माण होता है. जीन ही वह पदार्थ है जो एक पीढ़ी से दूसरे में जाकर इनके जीवों के गुणों व निर्माण प्रक्रिया को नियंत्रित व समान बनाए रखता हैं.

    कई सालों बाद पर्यावरण व अन्य वजहों से जीन में बदलाव आते है. लेकिन, जीन के मॉडिफिकेशन के दौरान, इसमें प्रयोग के सफल होने के बाद ही बदलाव आ जाता हैं. इस तरह हम किसी सजीव के गुणों में जीन मॉडिफिकेशन द्वारा तुरंत बदलाव ला सकते हैं.

    पौधों के आनुवंशिक संशोधन में पौधे के जीनोम में डीएनए का एक ख़ास हिस्सा जोड़कर, इसे नई या अलग विशेषताएं देना शामिल है. इसमें पौधे के बढ़ने के तरीके को बदलना, या इसे किसी विशेष बीमारी के लिए प्रतिरोधी बनाना शामिल हो सकता है. नया डीएनए जीएम प्लांट के जीनोम का हिस्सा बन जाता है. ये गुण इन पौधों द्वारा उत्पादित बीज में भी शामिल होते हैं.

    जीएम फूड्स और संकर बीजों में अंतर (Difference between GM Foods and Crossbred seeds in Hindi)

    जहाँ संकर बीज एक ही प्रजाति के दो किस्मों के पौधों में क्रॉसब्रीड करवाकर प्राप्त किए जाते हैं, वहीं जीएम फूड्स के बीज दो विभिन्न प्रजतियों के जीनों के विशेष गुणों के संयोजन से प्राप्त होते है. दोनों, ही बीज विज्ञान की आधुनिक खोजें है. लेकिन, जीएम फूड्स को अधिक कारगर कहकर प्रचारित किया जाता है.

    जीएम फूड्स के बीजों का उत्पादन (Production of GM Foods in Hindi)

    जेनेटिक मॉडिफिकेशन तकनीक में किसी जीव के जीनोम में डीएनए डालना शामिल है. जीएम फूड्स के नए पौधे बनाने के लिए नए डीएनए को ग्राही पौधे में ट्रांसफर किया जाता है. आमतौर पर, कोशिकाओं को तब टिशू कल्चर में उगाया जाता है, जहां वे पौधों में विकसित होती हैं. इन पौधों द्वारा उत्पादित बीजों में नए डीएनए के गुण विरासत में मिल जाते हैं.

    इसके एक विधि में छोटे धातु कणों की सतह को संबंधित डीएनए टुकड़े के साथ कोट करना, और कणों को पौधों की कोशिकाओं में बमबारी करना शामिल है. एक अन्य तरीका एक जीवाणु या वायरस का उपयोग करना है.

    ऐसे कई वायरस और बैक्टीरिया हैं जो अपने डीएनए को अपने जीवन चक्र के सामान्य हिस्से के रूप में मेजबान कोशिका में स्थानांतरित करते हैं. इस तरह के अक्सर उपयोग में लाए जाने वाले जीवाणु को एग्रोबैक्टीरियम टूमफैसिएन्स कहा जाता है. इसमें जरुरी जीन को जीवाणु में स्थानांतरित किया जाता है. फिर, जीवाणु कोशिकाओं के नए डीएनए को पादप कोशिकाओं के जीनोम में स्थानांतरित कर दिया जाता है.

    सफलतापूर्वक डीएनए ग्रहण करने वाले पादपों से जीएम फूड्स के पौधे प्राप्त कर लिए जाते है. फिर इनसे बीज प्राप्त कर व्यावसायिक वितरण किया जाता हैं. इससे पहले इन बीजों का गहन जांच भी जरुरी है.

    जीएम फूड्स का इतिहास (History of GM Foods in Hindi)

    प्राकृतिक तौर पर मानवीय हस्तक्षेप के कारण और जीवों में जीन परिवर्तन आज से 10 हजार साल पहले शुरू हो गया था, जब मानव ने जीवों को पालना और खेती शुरू किया. इस वक्त तक सिर्फ एक ही प्रजाति के विभिन्न किस्मों में मानव के अनजाने में ब्रीडिंग से थोड़े परिवर्तित जीन वाले पौधे या जीवों का उत्पत्ति हो जाता था.

    आधुनिक युग में, जीएम फूड्स की संभावना जीन के खोज के बाद संभव हो सकी. जीन संसोधन पर 1970 के दशम में काफी काम हुआ. 1988 में अमेरिका ने संसोधित जीन वाले एन्जाइम्स का खाद्य उत्पादन में उपयोग की अनुमति दे दी गई.

    खाद्य इस्तेमाल के लिए मंजूरी प्राप्त पहली जीएम फूड्स फ़्लैवर सेवर टमाटर है. अमेरिका ने इसके व्यावसायिक उत्पादन और उपभोग की अनुमति साल 1994 में दी थी.यह कैलगीन द्वारा विकसित था. इसे पकने में देरी करने वाले एंटीसेन्स जीन शामिल करके बनाया गया था. इसलिए यह देरी से पकता था और लम्बे वक्त तक सुरक्षित रहता था. हालाँकि, अमेरिका से पहले ही चीन ने 1993 में वायरस-प्रतिरोधी जीएम तम्बाकू के व्यावसायिक उत्पादन की मंजूरी दे दी थी.

    अमरीका ने साल 1995 में बीटी ( Bacillus thuringiensis (Bt) आलू को मंजूरी दी. यह कीटनाशक के गुणवाला पौधा था. इसी साल अमेरिका ने कई जीएम फूड्स को मंजूरी दी. इनमें नए तेल संरचना वाला कैनोला, बीटी मक्का/मकई, हर्बिसाइड ब्रोमोक्सिनिल प्रतिरोधी कपास, बीटी कपास, ग्लाइफोसेट-सहिष्णु सोयाबीन, वायरस-प्रतिरोधी स्क्वैश, और देरी से पकने वाला टमाटर का किस्म शामिल है.

    जीएम फूड्स में पौष्टिकता बढ़ाने का शुरुआत साल 2000 में गोल्डन राइस के से शुरू हुआ. 2010 तक, 29 देशों ने व्यावसायिक रूप से जीएम फूड्स की फसलें लगाई थीं. साथ ही, 31 देशों ने ऐसे फसलों के आयात को अनुमति दी.

    2015 में एक्वाएडवांटेज सालमन पहला जलीय जानवर था, जिसे जीएम फूड्स के रूप में उपयोग की मंजूरी मिली. यह मंजूरी साल 2015 में मिली. इसमें साल के सभी सीजन में उपलब्धता के हिसाब से आनुवंशिक संसोधन किया गया था.

    जीएम फूड्स व फसलों की स्थिति (GM Foods and Crops Conditions in Hindi)

    3 अक्टूबर 2022 को एक और बड़े देश, केन्या, ने जीएम उत्पादों से प्रतिबन्ध हटा लिया. ये प्रतिबन्ध 8 नवम्बर 2012 से लागू थे. इसके कुछ दिनों बाद ही, भारत ने भी जीएम सरसों को मंजूरी दे दी. इससे पहले भारत में सिर्फ आनुवंशिक रूप से संसोधित बीटी कपास को ही मान्यता था. लेकिन, भारत का बीटी कपास के उत्पादन का परिणाम नकारात्मक रहा है.

    हालाँकि, दुनिया के कई देशों में जीएम फूड्स को मान्यता प्राप्त हैं. कई देशों में इसका अवैध रूप से भी कारोबार होता है. लेकिन, इससे होने वाले नुकसान के कारण अधिकांश देशों ने इसे मान्यता नहीं दी है. जिन देशों ने थोड़ी-बहुत मान्यता दी भी है, वहां इस तरह के खाद्यों का उत्पादन काफी कम होता हैं.

    यूएसए, कनाडा, ब्राज़ील, अर्जेंटीना व भारत दुनिया के वे 5 देश हैं, जहाँ जीएम फूड्स से सम्बंधित 90 फीसदी फसलों का उत्पादन होता है. जीएम फूड्स के समर्थक इसे भुखमरी का समाधान बताते हैं. हालाँकि, यह एक दुष्प्रचार है कि सिर्फ जीएम बीजों से ही ऊपज बढ़ाई जा सकती है. वहीं, इसके विरोधी इसे पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह बताते हैं.

    बीटी कपास और भारत (BT Cotton and India in Hindi)

    2002 में बीटी कपास, पहला जीएम फसल था, जिसे उपजाने की मान्यता भारत सरकार ने दी थी. यह न तो कीटप्रतिरोधी और न ही अधिक उपज देने वाला साबित हुआ. महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पंजाब में इसकी खेती की गई. इस साल 55 हजार हेक्टेयर जमीन पर इसकी खेती भारत में की गई थी.

    इसे उपजाने से इन राज्यों के किसानों को भारी नुकसान हुआ. अकेले आंध्र प्रदेश में ही 79 प्रतिशत फसल का नुकसान हुआ. आगे, इन राज्यों में, बीटी कपास उपजाने वाले किसानों से सबसे अधिक आत्महत्याएं की. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 1600 भेड़ों की मौत बीटी कॉटन के पत्ते खाने से हो गई.

    साल 2010 में केंद्र ने एक बार फिर से बीटी बैंगन उत्पादन को मंजूरी दी थी. लेकिन, 9 राज्यों के भारी विरोध के कारण यह फैसला 2010 में वापस ले लिया गया. आपको बता दे कि कई लोग जीएम फूड्स को कैंसर बढ़ने का कारण मानते है.

    भारत का जीएम फूड्स पर ताजा रवैया (Current mindset of India on GM Foods in Hindi)

    एक दशक से अधिक बीत जाने के बाद भारत एक बार फिर से आनुवंशिक रूप से संसोधित खाद्य पदार्थों (जीएम फूड्स) को अनुमति देने का प्रयास तेज कर दिया है. ऐसा इस प्राद्यौगिकी में हुए क्रमिक सुधारों के वजह से भी किया जा रहा है.

    इन्हीं प्रयासों के तहत, 18 नवम्बर 2022 को केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत एफएसएसआई ने जीएम फूड्स पर मसौदा (ड्राफ्ट) नियम जारी किए और सुझाव मांगे थे. इसे खाद्य सुरक्षा और मानक (आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थ) विधेयक, 2022 (Food Safety and Standards (Genetically Modified Foods) Regulations, 2022) से जारी किया गया. इससे एक साल पहले भी ऐसा किया गया था. नए ड्राफ्ट में आयात शर्तो को सरलीकृत किया गया है.

    मसौदे में जीएम खाद्य के निर्माताओं और आयातकों को पूर्व अनुमोदन के लिए एफएसएसएआई को आवेदन करना होगा. मसौदा नियमों में कहा गया है कि जीएम खाद्य उत्पादन के लिए भोजन या स्रोत सामग्री के रूप में उपयोग किए जाने वाले आनुवंशिक संसोधित पदार्थ (Genetically Modified Organisms – GMO या जीएमओ) के मामले में, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) से और पर्यावरणीय जोखिम मूल्यांकन के लिए राष्ट्रीय सक्षम प्राधिकारी से मंजूरी की भी आवश्यकता होगी.

    इसमें किसी भी अनुवांशिक रूप से संसोधित खाद्य पदार्थ के बिक्री पूर्व एफएसएसआई से अनुमति लेने की अनिवार्यता रखी गई. साथ ही उन खाद्य पदार्थों के पैकिंग पर, जिसमें आनुवंशिक संसोधित पदार्थ (Genetically Modified Organisms – GMO या जीएमओ) का कुल मात्रा एक फीसदी से अधिक हो, के ऊपर “आनुवंशिक संसोधित पदार्थ (Genetically Modified Organisms)” लिखे जाने की अनिवार्यता रखी गई. साथ ही, ऐसे खाद्य के डीएनए में कोई बदलाव करके नहीं बनाया गया हो, ये भी सुनिश्चित करने की कोशिश की गई है.

    सरकार के इस कदम को जीएम फूड्स के बिक्री को अनुमति देने का प्रयास माना गया और सरकार की आलोचना की गई. कुछ संगठनों ने इसे सरकार द्वारा अन्य हितधारकों के पक्ष के तुलना में व्यापारियों के हितों को तरजीह देने वाला भी बताया.

    इसकी ये कहकर भी आलोचना की गई कि लेबलिंग जैसे समाधान खाद्य उपभोग की भारतीय परिस्तिथियों के लिए उपयुक्त नहीं हैं. हमारा अधिकांश भोजन पैक या लेबल नहीं किया जाता है और अधिकांश लोगों को लेबल पढ़ने और समझने की जागरूकता भी नहीं है.

    2022 के बाद से केंद्र सरकार ने जीएम फूड्स पर कोई अन्य कदम नहीं उठाया है. हालाँकि, इस बीच आम जनता से सुझाव मांगे जाने की तारीख 15 जनवरी से बढ़ाकर 20 जनवरी 2023 कर दी गई है.

    जीएम फूड्स के फायदे (Advantages of GM Foods in Hindi)

    जहाँ जीएम फूड्स के कई फायदे गिनाए जाते है. वहीं जीएम फूड्स के कई नुकसान भी है. इसके समर्थन में गिनाए गए फायदे है-

    • फार्मा क्षेत्र: जीएम पौधों ने जटिल दवाओं का निर्माण आसान कर कई दवा व टीकाओं को सस्ता कर दिया है.
    • जीएम प्रौद्योगिकी आधारित इंसुलिन, टीकों, वृद्धि हार्मोन और अन्य दवाओं के बड़े पैमाने पर उत्पादन ने जीवन रक्षक द्वाव तक मानव का पहुँच सुलभ बना दिया है. उदाहरण के लिए: मानव में हेपेटाइटिस बी वायरस का टीका जीएम खमीर के एंटीजन से तैयार किया गया है.
    • जीएम फूड्स के फसल खुद व अन्य चुनिंदा फसलों को सुरक्षित रखते हुए अन्य खरपतवारों को मार देते है.
    • जिस तेज गति से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, उस गति से जीन का परिवर्तन संभव नहीं है. जीएम फूड्स ने इस समस्या का समाधान कर दिया है.
    • जीएम फूड्स के फसलों में, बाढ़, सूखा, व लवणता सहने के गुण डाले जा सकते है. साथी ही, जीएम फूड्स क्रॉप किट-पतंगों से सुरक्षित होते है.
    • ये लम्बे समय तक सुरक्षित रखे जा सकते है. देखने में ये आकर्षक व अत्यधिक स्वादिष्ट हो सकते है. साथ ही, जीएम फूड्स सालभर तैयार कर उपलब्ध करवाएं जा सकते है.
    • जेट्रोफा जैसे जैव-ईंधन पौधों के में जीएम तकनीक का प्रयोग कर अधिक मात्रा में तेल प्राप्त किया जा सकता है. भारत ‘जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति’ पर जोर दे रहा है, जिसका उद्देश्य 2025-26 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल का मिश्रण करना है. इस योजना में जीएम तकनीक आधारित जेट्रोफा काफी सहायक हो सकता हैं.

    जीएम फूड्स से नुकसान (Disadvantages of GM Foods in Hindi)

    • कुछ जीएम फूड्स पौष्टिकताविहीन पाए गए है. शायद ऐसा अधिक उपज के कारण मृदा से पर्याप्त पोषण न मिलने से हुआ.
    • इससे स्थानीय व प्राकृतिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा उत्पन्न हो गया है. यह पर्यावरण व जैव-विविधता के दृष्टिकोण से नकारात्मक है.
    • जीएम फूड्स के सेवन से एलर्जिक बीमारी होना सामान्य है.
    • कई प्रकार के जीव मानव उपज से जीवित रहते हैं. जीएम फूड्स से इनपर खतरा आने पर इनके विलुप्त होने का संकट बना रहेगा.
    • इस तरह के फसलों पर कीटनाशकों का प्रभाव कम होता है.
    • कई बार अनजाने में इन पौधों से गैर-लक्षित जीन हस्तांतरण हो जाता है.
    • जीएम फूड्स के अधिक सेवन से टॉक्सिटी बढ़ती है. एक रिसर्च के अनुसार, मोटापा, टॉक्सिटी व कैंसर आपस में सम्बंधित हैं.
    • इनके पौधों के उपज से प्राप्त बीज से इसका दोबारा उत्पादन नहीं हो सकता है.

    जीएम फूड्स के भारत में नियामकीय निकाय (Indian Regulatory Autorities of GM Foods in Hindi)

    भारत में, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों और उत्पादों (जैसे जीएम फूड्स) से संबंधित सभी गतिविधियों का विनियमन पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा नियंत्रित किया जाता है.

    एमओईएफसीसी के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) जीएम से संबंधित उत्पादों के आयात, निर्यात, परिवहन, निर्माण, उपयोग या बिक्री सहित सभी गतिविधियों की समीक्षा, निगरानी और अनुमोदन के लिए अधिकृत है.

    जीएम फूड्स (जीएम खाद्य पदार्थ), भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के विनियमों के अधीन हैं.

    चलते-चलते (Conclusion for GM Foods in Hindi)

    • चीन में बीटी कपास 1997 से उगाई जा रही है. इसके उत्पादन में वहां 28 फीसदी की गिरवाट आई है.
    • ऐसे कई उदाहरण है, जो जीएम फूड्स व उत्पाद को संदेह के घेरे में ला देते है. इसलिए फिलहाल इसका उत्पादन नियंत्रित तौर पर ही सिर्फ प्रयोग और अनुसन्धान के लिए हो, तो हम भविष्य में कोई सुरक्षित समाधान ढूंढ भी सकते है. तबतक, अन्य उपलब्ध उपायों से फसल उत्पादन बढ़ाया जा सकता हैं.
    • जीएम फसल का प्रचार-प्रसार मुख्यतः बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कर रही है. साल 2002 में ऐसी ही एक अमेरिकी कंपनी, मोनसेंटों, ने जीएम फूड्स के पक्ष में माहौल बनाने के लिए फर्जी तथ्य प्रस्तुत किए थे. इसलिए, फायदा के लिए काम कर रही इन कंपनियों पर भरोसा न कर सरकार को इस दिशा में खुद आगे बढ़ना चाहिए.
    • भारत जैसे देशों में खाद्य लोगों की थाली तक पहुँचने में 6 करोड़ टन बर्बाद हो चुका होता है. इस बर्बादी को रोककर खाद्य पदार्थों को सस्ता व लोगों तक इसके पहुँच को आसान किया जा सकता है. जीएम फूड्स तकनीक अपनाने से पहले इस दिशा में ठोस पहल की जरूरत हैं.

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