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फिल्म इंडस्ट्री का इतिहास: मूक से लेकर OTT तक

    फिल्म इंडस्ट्री से आज हम सभी वाकिफ है. किसी समय यह सिर्फ सिनेमा घरों में भारी भरकम मशीनों के साथ प्रदर्शित किए जाते थे. फिर यह डीवीडी, सीडी और अब डिजिटल रूप में विस्तृत हो गया है. आज का फिल्म इंडस्ट्री कई रूपों में हमें मनोरंजन, जानकारी और समाचार प्रदान करता है. टेलीविज़न और डिजिटल प्लेटफार्म के वीडियो भी फिल्म इंडस्ट्री के विकास का एक हिस्सा है.

    आज दुनिया भर में कई तरह के फ़िल्में, वीडियो और विजुअल-ऑडियो कंटेंट से हम वाकिफ है. इंटरनेट ने मोबाईल के जरिए इसे सभी के हाथों में पहुंचा दिया है. लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के विकास का कहानी कई उतार-चढ़ाव और करवटों से भरा हुआ है. तो आइए हम जानते है फिल्म इंडस्ट्री का आविष्कार, शुरुआत और विकास से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य…

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    कैसे हुआ फिल्म इंडस्ट्री का आगाज

    फिल्म इंडस्ट्री का शुरुआत 16वीं सदी में उस वक्त माना जा सकता है जब विभिन्न करतबों में तरह-तरह के चित्रों को दिखाकर मनोरंजन किया जाने लगा. आधुनिक फिल्म इंडस्ट्री का आगाज 1870 के समय माना जाता है. इस वक्त चलते चित्रों को दिखाने के लिए कई तरह के प्रयोग हो रहे थे. आख़िरकार इसमें पहली बड़ी सफलता 1882 में एटियेन-जूल्स मारे ( Étienne-Jules Marey) के हाथ लगी, जब इन्होने क्रोनोफोटोग्राफ़िक बंदूक (Chronophotographic Gun) का आविष्कार किया.

    मारे एक फ्रेंच वैज्ञानिक थे. इनकी मशीन प्रति सेकंड 12 छवियों को शूट कर सकता था. धातु शटर का उपयोग करके उसी क्रोनोमैटोग्राफिक प्लेट पर चलती छवियों को कैप्चर करने वाला यह पहला आविष्कार था. इस तरह फ़्रांस में सिनेमा का आगाज हुआ.

    एडिसन और ल्युमिर बंधुओं का योगदान

    आधुनिक फिल्म इंडस्ट्री में ल्युमिर बंधुओं और एडिसन ने वास्तविक रूप दिया. 1895 ई. में ल्यूमिर बन्धुओं ने एडीसन के सिनेमैटोग्राफ्री पर आधारित एक यन्त्र की सहायता से चित्रों को चलते हुए प्रदर्शित की. इस तरह आधुनिक सिनेमा का आविष्कार हुआ. हालाँकि यह सिर्फ दृश्यों को दिखाता था. इसमें कोई आवाज नहीं होती थी. यह मूक फिल्मों का आगाज का दौर था. अगले तीन दशक तक मूक फ़िल्में बनती और प्रदर्शित होती रही.

    आगे, 1902 में जॉर्ज मेलिस ने एक अद्भुत फ़िल्म ‘ए ट्रिप टू मून’ बनाई. यह फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास की पहली साइंस-फ़िक्शन फ़िल्म थी. इसे सिनेमैटिक स्पेशल इफ़ेक्ट के क्षेत्र में मील का पत्थर माना जाता है. इसके बाद फ़िल्में पुरे दुनिया में लोकप्रिय होने लगी और कई देशों में यह बनाया जाने लगा.

    दुनिया की सबसे पहली फिल्म (The First Film of World)

    दुनिया के पहले फिल्म के बार में कई अलग-अलग दावे है. लेकिन अधिकांश लोग मानते है कि दुनिया की सबसे पहली फिल्म 1895 में फ्रांस के ल्यूमियर (लुमीर ) ब्रदर्स ने बनाई थी. इस फिल्म का नाम “द अराइवल ऑफ अ ट्रेन इन ल्योन” था . यह एक 50-सेकंड की फिल्म थी, जिसमें एक ट्रेन एक स्टेशन पर आती है और लोग उस ट्रेन से उतरते हैं. यह सिनेमैटोग्राफ़िक मोशन पिक्चर्स फिल्म की एक बड़ी सफलता थी. इसे दुनिया की पहली फिल्म माना जाता है.

    22 मार्च 1895 को पेरिस में राष्ट्रीय उद्योग विकास सोसायटी के लगभग 200 सदस्यों के सामने लुमिर बंधुओं की एकल फिल्म “लुमिर फैक्ट्री से निकलते कर्मचारी (Workers Leaving the Lumière Factory) की स्क्रीनिंग संभवतः फिल्म की पहली प्रस्तुति थी. 28 दिसंबर 1895 ईस्वी को लगभग 40 लोगों के सामने पहली व्यावसायिक सार्वजनिक स्क्रीनिंग को पारंपरिक रूप से सिनेमा का जन्म माना जाता है. हालाँकि, लुमिर बंधू इस फिल्मों के व्यवसाय करने में उतने सफल नहीं हुई, फिर भी पहली कमाई करने के लिए उन्हें फिल्म इंडस्ट्री का आगाज करने वाला कहा जाता है. इसलिए लुमिर बंधुओं को “सिनेमा का पिता” कहा जाता है.

    ल्यूमियर ब्रदर्स ने इसके बाद कई और फिल्में बनाईं, जिनमें “द वॉकर” (1895), “द लैंडिंग ऑफ ए प्लेन” (1895) और “द फेयरी लैंड” (1896) शामिल हैं. इन फिल्मों ने सिनेमा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ये फ़िल्में ही दुनिया की आरम्भिक फ़िल्में मानी जाती है.

    पहली सफल मूक फिल्म (First Successful Silent Film)

    दुनिया की पहली सफल मूक फिल्म “द ग्रेट ट्रेन रॉबरी” थी, जिसे 1903 में आर्थर मेब्री ने निर्देशित किया था. यह एक अमेरिकी मूक फिल्म है, जो एडिसन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के लिए एडविन एस. पोर्टर द्वारा निर्मित की गई थी. यह पश्चिमी देशों की पृष्ठभूमि पर निर्मित जो एक ट्रेन को लूटने वाले एक गिरोह के बारे में थी. यह फिल्म इंडस्ट्री की एक बड़ी व्यावसायिक सफलता थी और इसे दुनिया का पहला सफल सफल आधुनिक मूक फिल्म माना जाता है.

    “द ग्रेट ट्रेन रॉबरी” काफी अच्छी तरह से बनाई गई एक मनोरंजक फिल्म थी. इसमें अच्छी कहानी, शानदार एक्शन सीक्वेंस और यादगार पात्र थे. दूसरे, यह एक बड़ी अवधि की (12 मिनट लम्बी) फिल्म थी. समय के हिसाब से यह बहुत लंबी थी. तीसरे, इसका प्रचार बहुत से किया गया. बड़े पैमाने पर प्रचार होने के कारण पश्चिमी जगत के लगभग सभी लोगों को इसके बारे में पता था.

    इस तरह, “द ग्रेट ट्रेन रॉबरी” ने मूक फिल्म उद्योग को लोकप्रिय बनाने में मदद की. इसने लोगों को फिल्मों के बारे में जानने में मदद की और लोग इसे देखने के लिए शुल्क अदा करने को तैयार हुए. इस तरह, इस फिल्म ने कई अन्य मूक फिल्मों को बनाने के लिए प्रोत्साहित किया और यह सफल मूक फिल्म युग की शुरुआत का प्रतीक बना.

    दुनिया की पहली कार्टून फिल्म (First Cartoon Film of the World)

    दुनिया की पहली कार्टून फिल्म “फैंटसिस्टिक कैट” थी, जिसे 1908 में जॉर्जेस मेलियस द्वारा बनाया गया था. यह एक 3 मिनट की शॉर्ट मूवी है, जो एक ब्लैक एंड वाइट (कला और सफ़ेद रंगों का मिश्रण) कार्टून है, जिसमें एक जादुई बिल्ली के कारनामों को दिखाया गया है. फिल्म को फ्रांस में बनाई गई थी और इसे पहली बार पेरिस में प्रदर्शित किया गया था. एनीमेशन के दिशा में यह फिल्म एक बड़ी सफलता थी. आगे चलकर इसने कार्टून फिल्मों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

    जब फिल्म इंडस्टी को मिली आवाज (When the film industry got a voice)

    साल 1927 में फिल्म इंडस्ट्री में एक बड़ा आविष्कार हुआ. इस साल वार्नर ब्रदर्स ने आंशिक रूप से सवाक् फिल्म ‘जाज सिंगर’ बनाया. फिर, 1928 में पहली पूर्ण सवाक् फिल्म ‘लाइट्‌स ऑफ न्यूयॉर्क’ का बनाया गया. इसके बाद भी सिनेमा के कई छोटे-छोटे प्रयोग, तकनीकी परिवर्तन और नए आयाम जुड़ते गए. इसी के कारण आज के सिनेमा के दृश्य व ध्वनि की गुणवत्ता में काफी स्पष्टता आई है.

    1927 में ही एबल गैन्स ने छ: घंटे की बायोपिक ‘नेपोलियन’ बना डाला. यह फिल्म करीब एक दशक बाद आज भी उपलब्ध है. केबिन ब्राउनलॉ ने इसका मरम्मत कर 330 मिनट का एक संस्करण तैयार किया है. एबल की इस फ़िल्म को मूक युग की एक महान फ़िल्म का दर्जा हासिल है.

    सिनेमा के सवाक होते ही फ़्रांस सहित पुरे दुनिया में फ़िल्मों की बाढ़ आ गई. कुछ ही साल बाद 1930 में रेने क्लायर ने ‘अंडर द रूफ़्स ऑफ़ पेरिस’ नाम की एक म्युजिकल फ़िल्म बनाई. इसी काल में ‘यथार्थवाद’ का विस्फ़ोट हुआ, जिसके प्रणेता वीगो, ज्याँ रेनुआँ और जुलीएन डुविवियर थे.

    बोलती फिल्म से फिल्म इंडस्ट्री का उफान (Boom of film industry by talking films)

    बोलती फिल्मों के आगमन ने फिल्म इंडस्ट्री में क्रन्तिकारी बदलाव लाए. इसने कई कारणों से दर्शकों को आकर्षित किया. पहला, वे मूक फिल्मों की तुलना में अधिक यथार्थवादी थीं. दर्शकों को अब सजीव चलचित्र के साथ आवाज भी सुनने का मौका मिला, जिससे दर्शकों तक संदेशों का स्पष्ट प्रेषण होने लगा. इससे पहले मूक फिल्मों में वार्तालाप सुनना नामुमकिन था.

    दूसरा, बोलती फिल्में अधिक मनोरंजक साबित हुई. वे मूक फिल्मों की तुलना में अधिक हास्य, रोमांस और एक्शन से भरी थीं. तीसरा, बोलती फिल्में अधिक व्यापक थीं. सवाक होने के कारण वे मूक फिल्मों की तुलना में कहानी को दर्शकों तक पहुँचाने में अधिक सक्षम थी. इससे यह दुनिया भर के दर्शकों के लिए आसानी से समझने योग्य हो गई और प्रसिद्द होते गए.

    बोलती फिल्मों के आगमन ने फिल्म इंडस्ट्री को पूरी तरह से बदल दिया. इसने फिल्मों को एक नए स्तर की लोकप्रियता और सफलता तक पहुंचाया. इससे कई लोग जुड़ते गए और कालांतर में यह एक समृद्ध उद्योग और आर्थिक रूप से सम्पन्न क्षेत्र बन गया. आज, फिल्म उद्योग दुनिया का सबसे बड़ा मनोरंजन उद्योग है और बोलती फिल्मों का इसमें महत्वपूर्ण योगदान है.

    बोलती फिल्मों के आगमन से फिल्म उद्योग में निम्नलिखित बदलाव हुए:

    • दर्शकों की संख्या में वृद्धि हुई.
    • फिल्मों का बजट बढ़ गया.
    • फिल्म निर्माण की तकनीक में सुधार हुआ.
    • फिल्मों की कहानियां अधिक जटिल और रोचक हो गईं.
    • फिल्मों में नए सितारे उभरे.
    • बड़े पैमाने पर लोग फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ने लगे, इससे लोकप्रियता में और भी इजाफा हुआ.

    ‘न्यू वेव सिनेमा’ की शुरुआत (Beginning of ‘New Wave Cinema’ in Hindi)

    द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप तबाह हो गया. लेकिन, फ़्रांस में फिल्म निर्माण जारी रहा. इस वजह से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फिल्मों से जुड़े कई हस्तियां फ़्रांस में जाकर बस गए. इससे फिल्म इंडस्ट्री में नए ऊर्जा का संचार हुआ. इस दौरान भी फिल्मों में यथार्थवाद कायम रहा. धीरे-धीरे पश्चिमी फिल्मों का संसार फ़्रांस के पेरिस से हटकर लॉस एंजेल्स के पास स्थित हॉलीवुड की तरफ खिसक गया. लेकिन आज भी फ़्रांस का ‘कांस फिल्म समारोह’ को फिल्म इंडस्ट्री का सबसे प्रतिष्ठित समारोह माना जाता है.

    रंगीन फ़िल्में और फिल्म इंडस्ट्री (Colourful Films and Film Industry in Hindi)

    दुनिया के पहली रंगीन फिल्म का नाम “द टाइम टेलिस्कोप” था, जो 1895 में फ्रांस में बनाई गई थी. यह फिल्म एक मिनट की थी और इसमें एक कलाकार को एक टाइम टेलिस्कोप के माध्यम से देखे जा रहे दृश्यों को दिखाया गया था. फिल्म को दो रंगों में शूट किया गया था: नीला और लाल.

    रंगीन फिल्मों का निर्माण काफी खर्चीला था. इसलिए शुरुआत में इसका प्रसार काफी कम हुआ. लेकिन 1950 के दशक तक रंगीन फ़िल्में आम हो गई. इस दौर में फिल्म इंडस्ट्री ने एक नया मुकाम हासिल किया और मनोरंजन का एक मुख्य साधन बन गया.

    फिल्म इंडस्ट्री में रंगों के विकास में कई लोगों का योगदान है. इनमें से कुछ प्रमुख व्यक्तित्व हैं:

    • जॉन लॉगी बेयर्ड (1841-1946): बेयर्ड एक स्कॉटिश इंजीनियर और फोटोग्राफर थे, जिन्हें “रंगीन फिल्म के पिता” के रूप में जाना जाता है. उन्होंने 1908 में पहला व्यावहारिक रंगीन फिल्म का कैमरा विकसित किया.
    • गॉर्डन जे. विलियम्स (1886-1948): विलियम्स एक अमेरिकी इंजीनियर और फोटोग्राफर थे, जिन्होंने 1916 में पहला व्यावहारिक रंगीन फिल्म प्रोजेक्टर विकसित किया.
    • डब्ल्यू.के. लेट्ज़र (1888-1944): लेट्ज़र एक अमेरिकी फिल्म निर्माता और उद्यमी थे, जिन्होंने 1927 में पहली रंगीन फीचर फिल्म “द जैज़ सिंगर” का निर्माण किया.

    रंगीन फिल्मों ने चलचित्र को और भी वास्तविक बना दिया. रंगबिरंगी चित्र दर्शकों को और भी लुभाने लगे. कृत्रिम प्रकाश समेत कई अन्य प्रयोग ने इसे आकर्षक बना दिया था. इससे फिल्म इंडस्ट्री की कमाई भी काफी बढ़ने लगी और इसे एक व्यवस्थित उद्योग का दर्जा मिल गया.

    टेलीविज़न का फिल्म इंडस्ट्री में योगदान (Contribution of Television in Film Industry in Hindi)

    टेलीविज़न उद्योग ने फिल्म इंडस्ट्री के विकास में कई तरह से योगदान दिया है. इनमें से कुछ योगदान इस प्रकार हैं:

    • टेलीविज़न ने फिल्मों के लिए एक बड़ा दर्शक वर्ग तैयार किया है. इससे फिल्म निर्माताओं को अपनी फिल्मों को बनाने और प्रदर्शित करने के लिए सुलभ बाजार मिल गया.
    • सिनेमा घरों में चलचित्र देखना थोड़ा खर्चीला होता था. लेकिन, टेलीविज़न पर प्रायोजक के मदद से सिनेमा प्रदर्शित होते थे, जो दर्शकों के लिए कम खर्चीला था. इससे फिल्म इंडस्ट्री के विकास में मदद मिली.
    • टेलीविज़न ने फिल्मों के निर्माण के लिए नए तकनीकों और शैलियों को विकसित करने में मदद की है. उदाहरण के लिए, टेलीविज़न ने सिनेमैटोग्राफी, संपादन और ध्वनि डिज़ाइन के क्षेत्र में कई नई तकनीकों को विकसित किया है.
    • टेलीविज़न ने फिल्मों के लिए नए विषयों और कहानियों को विकसित करने में मदद की है. उदाहरण के लिए, टेलीविज़न ने कई ऐसे शो का निर्माण किया है जो सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आधारित हैं.
    • टेलीविज़न ने फिल्मों के लिए नए कलाकारों और निर्देशकों को उभरने में मदद की है. उदाहरण के लिए, कई ऐसे कलाकार और निर्देशक हैं जो टेलीविज़न से फिल्म इंडस्ट्री गए और सफलता प्राप्त की.

    कुल मिलाकर, टेलीविज़न उद्योग ने फिल्म उद्योग को कई तरह से प्रभावित किया है. नए विषयों और कहानियों को विकसित करने के साथ ही इसने नए कलाकारों और निर्देशकों को उभरने में मदद की है.

    डिजिटल प्लेटफार्म से ओटीटी तक (From Digital to OTT Platform in Hindi)

    समय के साथ ही तकनीकी दुनिया में कई बदलाव हुए और नए आविष्कार हुआ. फिल्म जगत भी इस बदलाव से अछूता नहीं रहा है. टेलीविज़न द्वारा फिल्मों के प्रसार के बाद वीसीआर व सीडी के माध्यम से यह घर-घर पहुँचने लगा. फिर, कंप्यूटर में सीडी डिवाइस लगाने का चलन बढ़ने लगा.

    फिर फिल्मों का डिजिटल संस्करण का आगमन हुआ. इसके बाद कई ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म आए, जिन्होंने सस्ते कीमत पर नए फ़िल्में दर्शकों को उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया. फिल्म इंडस्ट्री के इस प्लेटफार्म को ओटीटी (Over-the-Platform) नाम से भी जाना जाता है. ये प्लेटफार्म केबल टीवी के तरह ही विस्तृत है. लेकिन, ओटीटी पर सभी कंटेंट आपके मनचाहा समय में कही भी डिजिटल टीवी के साथ ही मोबाईल या कंप्यूटर स्क्रीन पर देखे जा सकते है. अधिकतर ओटीटी पर विडिओ, ऑडियो और सन्देश के स्ट्रीमिंग की एकसाथ सुविधा होती है.

    फिल्म इंडस्ट्री में डिजिटल प्लेटफार्मों का उदय एक क्रांतिकारी बदलाव है. यह बदलाव फिल्मों को देखने के तरीके को पूरी तरह से बदल रहा है. अब लोग फिल्में थिएटर में जाने के बजाय अपने घर पर डिजिटल प्लेटफार्मों पर देखना पसंद कर रहे हैं. इस बदलाव के कई कारण हैं, जिनमें शामिल हैं:

    • डिजिटल प्लेटफार्मों पर फिल्में देखना बहुत किफायती है. लोग थिएटर में फिल्म देखने के लिए भारी भरकम कीमत चुकाने के बजाय अपने घर पर डिजिटल प्लेटफार्मों पर फिल्में देखना पसंद कर रहे हैं.
    • डिजिटल प्लेटफार्मों पर फिल्में देखना बहुत सुविधाजनक है. लोग थिएटर में फिल्म देखने के लिए समय निकालने के बजाय अपने घर पर डिजिटल प्लेटफार्मों पर अपनी पसंद की फिल्में देखना पसंद कर रहे हैं.
    • डिजिटल प्लेटफार्मों पर फिल्मों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है. लोग थिएटर में केवल कुछ ही फिल्में देख सकते हैं, जबकि डिजिटल प्लेटफार्मों पर उन्हें कई फिल्मों से एक को चुनने की आजादी मिलती है.
    • डिजिटल प्लेटफार्मों के उदय से फिल्म जगत में कई बदलाव आए हैं. थिएटरों में रिलीज हो रही फिल्मों की कमाई में कमी आई है. कई फिल्में अब डिजिटल प्लेटफार्मों पर सीधे रिलीज हो रही हैं, जिससे नया बाजार विकसित हुआ है और थिएटर खाली हो रहे है.
    • डिजिटल प्लेटफार्मों ने फिल्म निर्माताओं के लिए नए अवसर पैदा किए हैं. वे अब अपनी फिल्मों को एक बड़े दर्शक वर्ग तक पहुंचा सकते हैं. इससे कई नए लोग, जो माध्यम और गरीब तबके से आते है, फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ रहे है. यह बदलाव फिल्मों को देखने के तरीके को पूरी तरह से बदल रहा है.
    • यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म पर आमजनता भी अपने फिल्म को डाल सकते है. कई स्थानीय कलाकार अपने कला का प्रदर्शन इसी प्लेटफॉर्म पर कर रहे है. इससे पारम्परिक फिल्म इंडस्ट्री को एक बड़ी चुनौती मिली है.

    हॉलीवुड (Hollywood in Hindi)

    संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के लॉस एंजेलिस शहर का एक जिला, हॉलीवुड, है, जिसे दुनिया भर में फिल्म इंडस्ट्री के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है. यह उद्योग शहर के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है और यहां कई प्रमुख फिल्म स्टूडियो और इससे जुडी कंपनियां स्थित हैं. फ़िल्मी जगत और सीने सितारों से सजे इस शहर को चमकी शहर (Tinseltown) भी कहा जाता है, पहाड़ों समेत कई अनोखे भौगोलिक स्थानों से घिरा है.

    कोई भी कलाकार बिना पूंजी के भी अपने कला के दम पर यहां नया मुकाम हासिल कर सकता है. इसलिए, हॉलीवुड को “ड्रीमलैंड” या “सपनो का शहर” भी कहा जाता है.

    1853 में यहां एक ही मकान था. धीरे-धीरे यह छोटे से शहर में बदल गया. फिर, 1887 में हार्वे विलकॉक्स द्वारा यहां कई रियाल स्टेट से जुडी संरचनाए विकसित की गई. एच.जे. व्हिटली ने शहर को एक समृद्ध और प्रसिद्ध इलाके में बदल दिया. इसलिए व्हिटली को “हॉलिवुड का पिता” भी कहा जाता है.

    1908 में द काउंट ऑफ मोंटे क्रिस्टो फिल्म का शिकागो में फिल्मांकन शुरू हुआ और हॉलीवुड में पूरी हुई. यह जगह हल्की जलवायु, अधिक धूप, विविधता भरे भूभाग और बड़े श्रम बाज़ार का एक आदर्श मिश्रण था. 1911 में सनसेट बुलेवार्ड पर एक साइट को हॉलीवुड के पहले स्टूडियो में बदल दिया गया और जल्द ही लगभग 20 कंपनियां हॉलीवुड शहर में फिल्में बनाने लगीं. फिर, 1910 में जल आपूर्ति समेत कई समस्याओं के कारण हॉलीवुड लॉस एंजेल्स शहर का ही हिस्सा बन गया.

    हॉलीवुड एक जीवंत और रोमांचक जगह है, जो हर साल लाखों लोगों को आकर्षित करती है. हॉलीवुड द्वारा निर्मित कई फ़िल्में पुरे दुनिया में लोकप्रिय हुए है. इसलिए इसका वैश्विक बाजार बन गया है. इसने दुनिया को अमेरिकी संस्कृति और सभ्यता से भी जोड़ने का काम किया है. इससे अमेरिका की स्वीकार्यता दुनिया में बढ़ी है और लोग लोकतंत्र व पूंजीवाद के तरफ आकर्षित हुए है.

    आज, हॉलीवुड में हर साल सैकड़ों फिल्में बनती हैं और यह दुनिया भर के लोगों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है. हॉलीवुड में कई प्रसिद्ध स्थल हैं, जिनमें शामिल हैं:

    • ग्रैंड थिएटर: यह हॉलीवुड का सबसे प्रसिद्ध थिएटर है और यहां कई प्रसिद्ध फिल्मों का प्रीमियर हुआ है.
    • वॉक ऑफ फेम: यह हॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेताओं, अभिनेत्रियों और अन्य मनोरंजन उद्योग के लोगों के नामों से सजी एक सड़क है.
    • हॉलीवुड चिह्न: यह हॉलीवुड के पहाड़ों पर बना एक विशाल चिह्न है, जो हॉलीवुड का प्रतीक है.

    हॉलीवुड की पहली फिल्म और पैसों की बरसात (First Successful Hollywood Film in Hindi)

    पूरी तरह से हॉलीवुड में बनने वाली पहली फिल्म 17 मिनट की शॉर्ट इन ओल्ड कैलिफोर्निया थी. इसका निर्देशन डी. डब्ल्यू. ग्रिफ़िथ ने किया था, जो 1910 में रिलीज़ हुई थी. ग्रिफ़िथ को आधुनिक दर्शकों के बीच मुख्य रूप से फिल्म द बर्थ ऑफ ए नेशन (The Birth of a Nation) (1915) के निर्देशन के लिए जाना जाता है. 3 घंटे 17 मिनट की यह फिल्म अवधि के मायने में आज के समय इतनी बड़ी थी.

    यह फिल्म इंडस्ट्री के सभी कालखंड में आर्थिक रूप से सबसे सफल फिल्मों में से एक है. इसके निवेशकों ने काफी मुनाफा कमाया. लेकिन, अफ्रीकी-अमेरिकियों के अपमानजनक चित्रण या नस्लभेद, कू क्लक्स क्लान के महिमामंडन और कॉन्फेडेरसी (संघ) के समर्थन के कारण विवादों से घिर गया. इससे संयुक्त राज्य अमेरिका के कई प्रमुख शहरों में दंगे हुए और एन. ए. ए. सी, पी. (National Association for the Advancement of Colored People) ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास भी किया.

    आज के समय हॉलिवुड फिल्म इंडस्ट्री का अधिकतर काम पास ही के बुर्बैंक और वेस्टसाइड से सम्पन्न होता है. लेकिन बहुत से काम अब भी हॉलीवुड में ही सम्पन्न होते हैं

    हॉलीवुड की 10 सर्वश्रेष्ठ चलचित्र (10 Best Hollywood Movies in Hindi):

    1. द गॉडफादर (The Godfather) (1972)
    2. द डार्क नाइट (The Dark Knight) (2008)
    3. द शॉशेंक रिडेम्पशन (1994)
    4. फॉरेस्ट गम्प (Forest Gump) (1994)
    5. द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स: द रिटर्न ऑफ द किंग (The Lord of the Rings: The Return of the King) (2003)
    6. द टाइटैनिक (The Titanic) (1997)
    7. द दश अवे मैन (The dash away man) (1957)
    8. सिटिजन केन (Citizen Kane) (1941)
    9. द श्रिंकिंग (The Shrinking) (1963)
    10. द एक्सपेक्टेटर्स (The Expectators) (1999)

    बॉलीवुड & भारतीय फिल्म इंडस्ट्री (Indian Film Industry in Hindi)

    अक्सर भारतीय फिल्म की बात होते ही मुंबई में बनी हिंदी भाषा के फिल्म इंडस्ट्री का ध्यान आता है. लेकिन, भारत में हिंदी के अलावा कई अन्य स्थानीय भाषाओँ में भी सिनेमाओं का निर्माण होता है. इन सभी को मिलाकर ही भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का निर्माण होता है, जो भाषाई, क्षेत्रीयता, सांस्कृतिक, पृष्ठभूमि और संवाद के तौर पर काफी विविध व विस्तृत होती है.

    इन सभी फिल्म उद्योगों में मुंबई स्तिथि हिंदी भाषा का फिल्म इंडस्ट्री काफी अधिक विकसित, विरासतों के लिहाज से समृद्ध व संसाधनों के मामले में संपन्न है. इसलिए हम सबसे पहले मुंबई में बनी हिंदी भाषा के फिल्मों की चर्चा करते है, जिसे बॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता है.

    बॉलीवुड का परिचय (Introduction to Bollywood in Hindi)

    यह दुनिया में सबसे बड़ी फिल्म उद्योगों में से एक है, जो हर साल लगभग 1,000 से 1500 फिल्में बनाती है. बॉलीवुड फिल्में दुनिया भर में लोकप्रिय हैं, और वे भारत के संस्कृति और विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.

    बॉलीवुड फिल्मों को आमतौर पर संगीत, नृत्य और रोमांस के लिए जाना जाता है. वे अक्सर परिवार और दोस्ती के महत्व पर केंद्रित होते हैं. बॉलीवुड फिल्में अक्सर अतिरंजित होती हैं, लेकिन वे हमेशा मनोरंजक होती हैं.

    हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने कई प्रसिद्ध अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को जन्म दिया है, जिनमें अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सलमान खान, ऐश्वर्या राय बच्चन, प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण शामिल हैं.

    आर्थिक नजरिये से भी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री काफी महत्व रखती है. ये जहां अरबों डॉलर का राजस्व उत्पन्न करता है, वहीं लाखों लोगों को रोजगार भी देता है. साथ ही, भारतीय फ़िल्में दुनिया भर में भारत के लिए एक सकारात्मक छवि निर्माण करने में अहम योगदान देता है.

    भारतीय सिनेमा जगत का नामकरण (Naming of Indian Cinema Industry in Hindi)

    भारत के विभिन्न भागों और भाषाओं में बनने वाली फिल्मों का नामकरण हॉलीवुड के तर्ज पर किया गया है. भारत में मुख्य बोलचाल की भाषा हिंदी के अलावा तेलुगु, असमिया, मैथिलि, ब्रजभाषा, गुजरती, कश्मीरी, हरयाणवी, पंजाबी, भोजपुरी, मराठी, मलयालम, राजस्थानी, तमिल, कन्नड़, संथाली, उड़िया व बंगाली भाषाओँ में चलचित्रों का निर्माण होता है.

    मुंबई से संचालित हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को बॉलिवुड नाम से भी जाना जाता है. कई लोग इस नाम को बॉम्बे और हॉलीवुड के सम्मिश्रण से बना मानते है. लेकिन कई लोगों का राय अलग है.

    पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के टॉलीगंज इलाका बंगाली सिनेमा का मुख्य केंद्र है. यहीं पर विल्फोर्ड ई डेमिंग नाम के एक साउंड इंजीनियर ने सबसे पहले यहां के बंगाली फिल्म इंडस्ट्री के लिए टॉलीवूड शब्द का इस्तेमाल 1932 में अमेरिकन सिनेमेटोग्राफर पत्रिका में किया था. फिर, सिनेब्लिट्ज मैगजीन की कॉलमिस्ट बेविंडा कोलैको ने 1976 में सबसे पहले बॉम्बे के लिए ‘बॉलीवुड’ शब्द का इस्तेमाल किया.

    इस तरह बॉलीवुड और टॉलीवूड के तर्ज पर भारत के क्षेत्रीय फिल्म इंडस्ट्री का नामकरण किया जाने लगा, जो इस प्रकार है-

    • हिन्दी सिनेमा- बॉलीवुड,
    • तेलुगू या बंगाली सिनेमा-टॉलीवुड,
    • छत्तीसगढ़- छाँलीवुड,
    • झारखंड- झॉलीवुड,
    • कॉलीवुड (तमिलनाडु).

    भारत में सिनेमा का विकास (Growth of Indian Cinema in Hindi)

    भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है, जिसकी जड़ें 20वीं सदी के शुरुआत से है. 1896 में लुमियर ब्रदर्स ने 6 मूक फिल्मों का भारत के बॉम्बे में प्रदर्शन किया था. इसके बाद दादा साहेब फाल्के ने फिल्म निर्माण के दिशा में प्रयास तेज कर दिया, जिसमें उन्हें अन्तः कामयाबी भी मिली. उसके बाद फिल्म इंडस्ट्री के विकास के 6 दौर में बाँट सकते है, जो मुख्यतः बॉलीवुड का ही विकास चरण है.

    मूक युग (Silent Era) (1913-1931)

    पहली भारतीय फ़िल्म, राजा हरिश्चंद्र, 1913 में रिलीज़ हुई थी. यह एक मूक फ़िल्म थी. इस युग की अधिकांश भारतीय फ़िल्में मूक थीं. मूक युग भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के लिए प्रयोग का समय था, क्योंकि फिल्म निर्माताओं ने विभिन्न शैलियों और तकनीकों की खोज की थी.

    टॉकी (Talkies) युग (1931-1950)

    पहली भारतीय टॉकी मतलब बोलती फिल्म “आलम आरा”, 1931 में रिलीज़ हुई थी. इससे भारतीय सिनेमा में टॉकी युग की शुरुआत हुई. टॉकीज़ को भारी सफलता मिली. इसके कारण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का तेजी से विकास हुआ.

    स्वर्ण (Golden) युग (1950-1970)

    1950 और 1960 के दशक को भारतीय सिनेमा का स्वर्ण युग (Golden Era of Indian Cinema) माना जाता है. यह उद्योग में महान रचनात्मकता और नवीनता का समय था. इस अवधि के दौरान कुछ सबसे प्रतिष्ठित भारतीय फिल्में बनाई गईं. इन फिल्मों में मदर इंडिया (1957), शोले (1975) और मुगल-ए-आजम (1960) शामिल हैं.

    नई लहर (1970-1980)

    1970 के दशक में भारतीय सिनेमा में नई लहर (New Wave) का उदय हुआ. यह उन युवा फिल्म निर्माताओं का आंदोलन था जो पश्चिमी सिनेमा से प्रभावित थे और जो अधिक यथार्थवादी और चुनौतीपूर्ण फिल्में बनाना चाहते थे. इस अवधि की कुछ सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में भूमिका (1977), नक्सली आंदोलन पर मृणाल सेन की त्रयी और मणिरत्नम की रोजा (1992) जैसी तमिल फिल्में शामिल हैं.

    1990 और उसके बाद (Bollywood: 90s and thereafter)

    1990 के दशक में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री अधिक वैश्वीकृत हो गया, क्योंकि भारतीय फिल्में दुनिया भर के सिनेमाघरों में रिलीज होने लगीं. यह उद्योग के लिए बड़ी व्यावसायिक सफलता का भी समय था, क्योंकि दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) और क्रिश (2006) जैसी फिल्में बड़ी ब्लॉकबस्टर बन गईं.

    भारतीय फिल्म उद्योग अब दुनिया में सबसे बड़ा और सबसे सफल में से एक है. यह एक विविध और जीवंत उद्योग है, जिसमें कई भाषाओं और शैलियों में फिल्में बनाई जाती हैं। उद्योग लगातार विकसित हो रहा है, और आने वाले वर्षों में भी इसका बढ़ना और फलना-फूलना निश्चित है.

    Note : सितम्बर 2016 में डेलॉयट (Deloitte) के एक सर्वे में ये बात सामने आई कि भारत में 20 भाषाओँ में हरेक साल करीब 1500 से 2000 फिल्मों को बनाया जाता है.

    टॉलीवूड और क्षेत्रीय फ़िल्में (Tollywood and Local Films in Hindi)

    स्थानीय भाषा फिल्म इंडस्ट्री विविध और जीवंत क्षेत्र है, जो 20 से अधिक विभिन्न भाषाओं में फिल्में बनाता है. बॉलीवुड के साथ ही चलना सीखे स्थानीय भाषी फिल्मों का का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है.

    पहली पूर्ण लंबाई वाली भारतीय फ़िल्म 1912 में मराठी और गुजराती पृष्ठभूमि में रिलीज़ हुईं थी (ऐसी व्याख्या का एक कारण यह भी है कि उस वक्त ये दोनों राज्य बॉम्बे में शामिल थे.). इस तरह, भारत में रिलीज़ होने वाली पहली मराठी फिल्म दादा साहब तोरणे द्वारा 18 मई 1912 को कोरोनेशन सिनेमैटोग्राफ, मुंबई में श्री पुंडलिक थी.

    फिर, पहली तमिल और मलयालम फ़िल्में 1917 में रिलीज़ हुईं और पहली तेलुगु फ़िल्म 1933 में रिलीज़ हुई. स्थानीय भाषा फिल्म उद्योग के शुरुआती वर्षों में चुनौतीपूर्ण थी. इस समय तकनीकें आदिम थी और वितरण नेटवर्क सीमित थे. इसके बावजूद भी फिल्म इंडस्ट्री लगातार बढ़ता गया और 1930 के दशक तक, भारत के कई हिस्सों में फिल्म इंडस्ट्री फल-फूल रहे थे.

    फिल्म इंडस्ट्री के तेजी से विकास का कारण इसका नए तकनीक से लैस होना और लोगों में इसे देखने के जिज्ञासा होने के कारण भी था.

    1940 और 1950 के दशक में स्थानीय भाषा के फिल्म उद्योग का स्वर्ण युग माना जाता है. इस अवधि के दौरान भारतीय सिनेमा की कुछ सबसे प्रतिष्ठित फिल्में बनाई गईं, जिनमें मदर इंडिया (1957), पाथेर पांचाली (1955), और देवदास (1955) शामिल हैं.

    1960 और 1970 का दशक स्थानीय फिल्म उद्योग के लिए मंदी का समय था. इस समय हिंदी सिनेमा लोगों के दिलों पर राज कर रही थी, क्योंकि देश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिभा बॉलीवुड से जुड़कर इसे बेहतर बनाते जा रहे थे. शोले (1975) और नायकन (1987) जैसे ब्लॉकबस्टर इसी दौर में बने थे.

    हाल के वर्षों में डिजिटल तकनीक ने स्थानीय फिल्म इंडस्ट्री को नई ऊर्जा दी है. देश में सम्पर्कों के विस्तार ने भी स्थानीय फिल्मों के स्वीकार्यता को बढ़ाया है. बाहुबली (2015), केजीएफ: चैप्टर 1 (2018), और पुष्पा: द राइज (2021) जैसे स्थानीय फिल्मों ने पुरे दुनिया में आकर्षक कमाई की है और इस मामले में बॉलीवुड से कही आगे निकल गया. ये फ़िल्में स्थानीय संस्कृति का भी समावेश करते है, जो फिल्मों को नया आयाम देता है और इसे सफल बनाता है.

    स्थानीय फिल्म इंडस्ट्री उन प्रतिभाओं को, जो बॉलीवुड में जगह नहीं बना सके, अपनी रचनात्मकता व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करती हैं. आज स्थानीय फिल्म इंडस्ट्री भी आर्थिक रूप से सम्पन्न है और हरेक साल अरबों डॉलर का राजस्व की उगाही करता है.

    इन फिल्मों ने भारत के अद्वितीय सांस्कृतिक परम्परा और कहानी सम्प्रेषण को दुनिया के हरेक कोने तक पहुँचाया है. यहां भारत में कुछ प्रमुख स्थानीय भाषा फिल्म उद्योगों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

    1. तमिल फिल्म उद्योग (कॉलीवुड): चेन्नई, तमिलनाडु (पूर्व में मद्रास) में स्थित, तमिल फिल्म उद्योग सबसे पुराने और सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रीय फिल्म उद्योगों में से एक है. यह हर साल बड़ी संख्या में फिल्में बनाने के लिए जाना जाता है और न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में तमिल भाषी प्रवासियों के बीच भी इसकी मजबूत पकड़ है.
    2. तेलुगु फिल्म उद्योग (टॉलीवुड): हैदराबाद, तेलंगाना और विशाखापत्तनम, आंध्र प्रदेश में केंद्रित, तेलुगु फिल्म उद्योग अपनी ब्लॉकबस्टर फिल्मों और व्यावसायिक सफलता के लिए प्रसिद्ध है. इसका एक विशाल दर्शक वर्ग है, खासकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में.
    3. बंगाली फिल्म उद्योग (टॉलीवुड): कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित, बंगाली फिल्म उद्योग का एक लंबा और शानदार इतिहास रहा है, जो सत्यजीत रे जैसे दिग्गज फिल्म निर्माताओं के फिल्मों और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्मों के निर्माण के लिए जाना जाता है. पाथेर पांचाली सत्यजीत रे की शास्त्रीय व उत्कृष्ट रचना है.
    4. मराठी फिल्म उद्योग: मुंबई और पुणे, महाराष्ट्र में स्थित, मराठी फिल्म उद्योग की लोकप्रियता बढ़ी है और हाल के वर्षों में गुणवत्तापूर्ण सामग्री और कलात्मक फिल्मों में वृद्धि देखी गई है. यह समाज और संस्कृति के हकीकत को बेहतरीन तरीके से बयान करने करने के लिए जाना जाता है.
    5. मलयालम फिल्म उद्योग (मॉलीवुड): केरल में स्थित, मलयालम फिल्म उद्योग अपनी यथार्थवादी और सामाजिक रूप से प्रासंगिक फिल्मों के लिए जाना जाता है, जो अक्सर जटिल कहानी कहने और मजबूत प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करते हैं.
    6. कन्नड़ फिल्म उद्योग (चंदन): बेंगलुरु, कर्नाटक में केंद्रित, कन्नड़ फिल्म उद्योग ने पिछले कुछ वर्षों में कई प्रभावशाली फिल्में और प्रतिभाशाली अभिनेता से फिल्म जगत को परिचित करवाया है.

    भारतीय सिनेमा में योगदान:

    क्षेत्रीय फिल्म इंडस्ट्री ने भारतीय सिनेमा में बहुत बड़ा योगदान दिया है. असाधारण स्थानीय फिल्मों ने आलोचकों के प्रशसा के साथ-साथ कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम किए है. इसके अलावा, कई प्रसिद्ध अभिनेता, निर्देशक और तकनीशियन को नई पहचान मिली और उन्होंने भारतीय सिनेमा को वैश्विक मंच पर ला दिया.

    जहाँ बॉलीवुड भारतीय सिनेमा का सबसे प्रभावशाली और व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त चेहरा बना हुआ है, वहीं क्षेत्रीय फिल्म उद्योग भी अपने दर्शकों के दिलों में विशेष पहचान रखता है. स्थानीय फिल्मों ने भारत के विविधता को पहचान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

    चुनौतियाँ और संभावनाएं (Challenges and Opportunities in Hindi)

    अपने उद्भव से लेकर अब तक फिल्म इंडस्ट्री ने कई बदलाव देखे है. समय के तकनीक, समाज और लोगों के सोचने के तरीके में बदलाव आया है. पहले जहां सड़क किनारे फिल्मे दिखाकर निर्माता पैसे बटोरते थे, वहीं अब लोग चलती ट्रेन में भी डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से फिल्म का आनंद लेते है. इस तरह फिल्म उद्योग नित नए चुनौतियों और संभावनाओं के दौर से गुजर रहा है, जो इस प्रकार है-

    चुनौतियाँ:

    1. पायरेसी और डिजिटल वितरण: ऑनलाइन शेयरिंग और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म की भेद्यता के कारण पायरेसी (नकल या चोरी) में वृद्धि हुई है, जिससे फिल्म निर्माताओं और स्टूडियो के राजस्व पर असर पड़ा है.
    2. उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव: दर्शकों की प्राथमिकताएं बदल गई हैं. फिल्में देखने के लिए सिनेमाघरों में जाने के पारंपरिक मॉडल को स्ट्रीमिंग सेवाओं और अन्य मनोरंजन विकल्पों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.
    3. उच्च उत्पादन लागत: कई बार फिल्म का निर्माण काफी महंगा हो सकता है. ऐसा ग्राफिक्स, एनिमेशन व वीएफएक्स के कारण होता है. कई बार फिल्म के न चलने पर निर्माता को नुकसान भी झेलना पड़ता है.
    4. बाजार संतृप्ति: आज दुनिया के एक हिस्से का फिल्म डिजिटल माध्यम से दूसरे हिस्से में कुछ ही सेकंड में पहुँच जाता है. इस तरह फिल्म बाजार प्रचुर मात्रा में सामग्री से भरा हुआ है. इससे छोटी व स्वतंत्र फिल्मों के लिए दृश्यता हासिल करना और दर्शकों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है.
    5. विविधता और प्रतिनिधित्व: भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को कलाकारों के विविधता और उनके कहानी के प्रतिनिधित्व की कमी से जुड़े आलोचनाओं ने एक बड़े तबके को इससे दूर किया है. अधिकांश धनाढ्य और उच्च तबके के लोग ही बॉलीवुड में अपना जगह बना पाते है, ऐसा कई लोगों ने आरोप लगाया है. इससे लोगों का भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से अलगाव होते जा रहा है.
    6. श्रम मुद्दे: फिल्म उद्योग को अक्सर श्रम संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. जैसे यूनियनों के साथ विवाद, काम करने की स्थिति और उचित मुआवजा इत्यादि. ये क्षणिक चुनौतियाँ होती है जिन्हें तुरंत हल कर लिया जाता है.
    7. तकनीकी प्रगति: फिल्म से जुडी प्रौद्योगिकी कहानी व्यक्त करने की नई संभावनाओं का दरवाजा खोलती है. इस तेजी से विकसित हो रहे उपकरणों और तकनीकों को खरीदना और इनसे तालमेल बिठाना भी निर्देशकों व निर्माताओं के लिए एक चुनौती है.

    अवसर:

    1. डिजिटल वितरण और स्ट्रीमिंग: इंटरनेट आधारित ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म ने फिल्म निर्माताओं को व्यापक वैश्विक दर्शकों तक पहुंच का अवसर प्रदान किया है. इससे श्रेष्ठ फिल्मों के राजस्व में कई गुना बढ़ोतरी हो सकती है.
    2. आभासी उत्पादन (Virtual Production): आभासी उत्पादन तकनीकों में प्रगति, जैसे आभासी सेट और वास्तविक समय प्रतिपादन का उपयोग, संभावित रूप से उत्पादन लागत को कम कर सकता है और रचनात्मक संभावनाओं को बढ़ा सकता है. आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI), ग्राफिक्स, एनीमेशन व वीएफएक्स इसमें शामिल है.
    3. कहानी की विविधता: विविध कहानियों और प्रतिनिधित्व को अपनाकार व्यापक दर्शकों के साथ जुड़ा जा सकता है. यह अधिक सांस्कृतिक प्रभाव के साथ ही, व्यावसायिक सफलता देने वाला प्रयोग हो सकता है. आरआरआर (RRR) इसका बेहतरीन उदाहरण है.
    4. स्वतंत्र फिल्म निर्माण: डिजिटल तकनीक ने फिल्म निर्माण को लोकतांत्रिक बना दिया है, जिससे स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के लिए अपना काम बनाना और वितरित करना अधिक सुलभ हो गया है. इससे फिल्म इंडस्ट्री विविध व समावेशी बना है.
    5. फ्रेंचाइजी और बौद्धिक संपदा के अवसर: सफल फिल्मों के अलग-अलग भाषाओँ व पृष्ठभूमि में पुनर्निर्माण के लिए लाइसेंस या फ्रेंचाइजी दिया जा सकता है. इससे बौद्धिक सम्पदा का जहाँ विस्तार होती है वहीं राजस्व में भी वृद्धि होती है.
    6. टेक कंपनियों के साथ सहयोग: प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ साझेदारी कर नवीन विपणन अभियान शुरू कर दर्शकों से जुड़ना आसान है. युवा दर्शकों से जुड़ने का यह सबसे बेहतर तरीका है.
    7. स्ट्रीमिंग स्टूडियो मॉडल: कुछ फिल्म निर्माताओं और उत्पादन कंपनियों ने अपनी स्वयं की स्ट्रीमिंग सेवाएं शुरू की हैं, जो उत्पाद के वितरण लागत को कम कर देता है. यह राजस्व तथा वितरण पर अधिक नियंत्रण बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ है.

    फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े महत्वपूर्ण संस्थान

    भारत में अभिनय, सिनेमा या टेलीविज़न तकनीक में प्रशिक्षण देने वाले कई संस्थान है. इनमें मुख्य रूप से शामिल है-

    1. भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई), पुणे (Film and Television Institute of India (FTII), Pune)
    2. सत्यजीत रे फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान, कोलकाता (Satyajit Ray Film And Television Institute, Kolkata)
    3. सेंटर फॉर रिसर्च इन आर्ट ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन (क्राफ्ट), दिल्ली (Centre for Research In Art Of Film And Television (CRAFT), Delhi)
    4. एल वी प्रसाद फिल्म एंड टीवी अकादमी, चेन्नई (L V Prasad Film And TV Academy, Chennai)
    5. व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल, मुंबई (Whistling Woods International, Mumbai)
    6. राष्ट्रीय फिल्म एवं ललित कला संस्थान, कोलकाता (National Institute Of Film & Fine Arts, Kolkata)
    7. डिजिटल अकादमी द फिल्म स्कूल, मुंबई (Digital Academy The Film School, Mumbai)
    8. एशियन एकेडमी ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन, नोएडा (Asian Academy Of Film And Television, Noida)
    9. ज़ी इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया आर्ट्स (ZIMA), मुंबई (Zee Institute Of Media Arts (ZIMA), Mumbai)

    साथ ही, फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई महत्वपूर्ण संगठन भी भारत में है, जो इस उद्योग से जुड़े कलाकारों व अन्य लोगों के हितों की सुरक्षा का काम करता है:

    1. भारतीय फिल्म निर्माता संघ (Film Federation of India)
    2. भारतीय फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान (FTII)
    3. भारतीय फिल्म संगीतकार संघ (Indian Music Composers Association)
    4. भारतीय फिल्म अभिनेताओं संघ (Indian Film Actor Association)
    5. भारतीय फिल्म निर्देशक संघ (Indian Film Director Association)
    6. भारतीय फिल्म संपादकों संघ (Indian Film Editor Association)
    7. भारतीय फिल्म प्रोडक्शन डिजाइनर्स संघ (Indian Film Production Designers Association)
    8. भारतीय फिल्म फोटोग्राफर संघ (Indian Film Photographer Association)
    9. भारतीय फिल्म मेकअप आर्टिस्ट संघ (Indian Film Makeup Artist Association)
    10. भारतीय फिल्म स्टंट एसोसिएशन (Indian Film Stunt Association)

    फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारियां (Important Facts about Indian Film Industry in Hindi)

    • 1933-37 को चीनी सिने-इतिहास में प्रथम स्वर्ण युग के नाम से जाना जाता है.
    • किसान कन्या (1937) भारत की पहली स्वदेसी रंगीन फीचर फिल्म थी, जो मोती गिडवानी द्वारा निर्देशित और इंपीरियल पिक्चर्स के अर्देशिर ईरानी द्वारा निर्मित थी.
    • देविका रानी फाल्के पुरस्कार पाने वाली पहली हस्ती थी.
    • नूतन पहली अभिनेत्री थी, जिन्हें मिस इंडिया का ख़िताब मिला था.
    • दादा साहेब फाल्के को भारतीय फिल्म “इंडस्ट्री का पितामह” कहा जाता है. भारत में प्रथम मौलिक फिल्म बनाने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है.
    • भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा की नायिका “जुबैदा” थी.

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