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इंटरनेट की पीढ़ियां तथा विकास

    इंटरनेट का इतिहास की बात करें तो इसकी गाथा अमर इसलिए भी हो जाती है ,क्योंकि यह आज के समय में हमारी मौलिक आवश्यकता बन गई है. चाहे वीडियो कॉल करना हो, सन्देश भेजना हो, समाचार पढ़ना हो, टीवी या फिल्म देखना हो, अपना लेख व फुटेज संपादक को भेजना हो, गाने सुनना हो या इनके वीडियो देखना हो, शेयर खरीदना या बेचना हो; ऐसे हरेक काम के लिए आपके मोबाइल या पीसी में इंटरनेट कनेक्शन होना निहायत जरुरी है.

    सही मायने में इंटरनेट ने टेक्नोलॉजी के साथ-साथ हमारे जीवन में भी क्रन्तिकारी परिवर्तन ला दिए हैं. जब इंटरनेट का आविष्कार करने की कोशिश में प्रारंभिक सफलता के समय ARPANET के वैज्ञानिकों नहीं सोचा था कि यह आविष्कार दुनिया में क्रन्तिकारी परिवर्तन लाने जा रहा है. तो आइए बिना वक्त गवाएं जानते है इंटरनेट का इतिहास व विकास गाथा:

    इंटरनेट क्या है? (What is INTERNET?)

    इंटरनेट वह माध्यम है जिसके द्वारा हम एक कंप्यूटर या मोबाइल से, जिसमें इंटरनेट कनेक्शन एक्टिव हो, किसी अन्य कंप्यूटर, मोबाइल, सर्वर या वेबसाइट को एक्सेस कर सकते है. आधुनिक समय में हम चाहे तो दूसरे सर्वर पर उपलब्ध डाटा को डाउनलोड भी कर सकते हैं.

    यह एक Global Computer Network है, जो की पूरी दुनिया में एक Network के माध्यम से जुड़ा है. यह स्टैंडर्ड संचार प्रोटोकॉल का उपयोग करके कई प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां और सुविधाएँ प्रदान करता है. यह लाखो कंप्यूटर, सर्वर व डाटा सेंटर के साथ जुड़ा हुआ होता है.

    इंटरनेट का पुराना नाम क्या है? (What is the old name of INTERNET?)

    इसका आविष्कार अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ़ डिफेन्स (रक्षा विभाग – DoD) द्वारा अर्पानेट (ARPANET) के नाम से 1969 में हुआ था. हालाँकि जल्द ही इसे इंटरनेट कहा जाने लगा.

    इंटरनेट को यूसीएलए और स्टैनफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट कंप्यूटरों को जोड़ने और इस नेटवर्क के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा बनाया गया था. इस तरह इंटरनेट की उत्पत्ति हुई.

    इसका फुल फॉर्म (Fullform of Internet) Interconnected Network होता है.

    इंटरनेट का इतिहास व विकास (History and Development of Internet In Hindi)

    कहा जाता है कि इंटरनेट का आविष्कार का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता है. लेकिन, ये बात भी सच नहीं है. दरअसल, इंटरनेट का विकास कई वैज्ञानिकों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी हुआ है. सभी ने इसमें सुधार कर इसके विकास में योगदान दिया है. इसमें अमेरिकी रक्षा विभाग की एजेंसी ARPA का महत्वपूर्ण योगदान है. सबसे पहले इसी एजेंसी के प्रयासों से कम्प्यूटर्स को आपस में जोड़कर डेटा ट्रांसफर किया जा सका. इसका भी एक रोचक किस्सा हैं.

    दरअसल, साल 1950 के बाद अमेरिकी और रुसी गुटों में शीत युद्ध (Cold War) का दौर चल रहा था. 1960 के आते-आते अमेरिका को अपने महंगे कंप्यूटर व इसके डाटा की सुरक्षा की चिंता होने लगी. अब ऐसा खोज किया जाने लगा जो सभी कम्प्यूटरों को आपस में जोड़े रखे व कुछ कंप्यूटर के नष्ट हो जाने पर भी ज्यादा नुकसान न हो.

    1960 के दशक तक अमेरिका में अधिकतर कंप्यूटर मेनफ्रेम कंप्यूटर थे जो काफी महंगे होते थे व इनका इस्तेमाल सिर्फ सरकार और विश्वविद्यालय करते थे. रूस पर बढ़त बनाए रखने के लिए अमेरिका ने कंप्यूटर के माध्यम से सूचनाओं का आदान प्रदान करने की सोची. इसी योजना के तहत, राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहावर द्वारा 7 फरवरी, 1958 को ARPA (Advanced Research Projects Agency) नाम की एजेंसी की स्थापना की गई.

    ARPANET का विकास साल 1966 में शुरू हुआ. इसके लिए कई मानक विकसित किए गए. तय किया गया कि नेटवर्क कंट्रोल प्रोग्राम (एनसीपी) सॉफ्टवेयर दो होस्ट (मेजबान कम्प्यूटर्स) के बीच संचार का काम संभालेगा और यह पहले कमांड, टेलनेट और फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल ( एफ़टीपी ) को सपोर्ट करने वाला हो. यह संचार करने के लिए पैकेट-स्विचिंग तकनीक का उपयोग करेगा.

    इसके लिए, मेजबानों के बीच संदेशों को पारित करने के लिए इंटरफेस संदेश प्रोसेसर विकसित किया गया था. इसे पहला पैकेट गेटवे या राउटर माना जा सकता है. हार्डवेयर मोडेम डिजाइन किए गए और भाग लेने वाले संगठनों को भेजे गए.

    सन 1969 में ARPANET ने चार Nodes बनाये. ये है:-

    • University of California at Los Angeles (UCLA)
    • University of California at Santa Barbara (UCSB)
    • Stanford Research Institute (SRI)
    • University of Utah.

    इन चारो University को IMPs के माध्यम से नेटवर्क के रूप में कनेक्ट किया और उनको कनेक्ट करने के लिए एनसीपी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया, जो कि होस्ट के बिच कम्युनिकेशन प्रदान करता है

    ARPANET पर पहला संदेश 29 अक्टूबर, 1969 को भेजा गया. चार्ली क्लाइन, जो कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय लॉस एंजिल्स (UCLA) के छात्र थे, ने स्टैनफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट (SRI) के मेनफ्रेम में लॉग इन करने का प्रयास किया. उन्होंने L और O अक्षर को सफलतापूर्वक टाइप किया, लेकिन जब उन्होंने LOGIN कमांड का G टाइप किया तो कंप्यूटर क्रैश हो गया .हालाँकि, वैज्ञानिकों ने प्रारंभिक बाधा को दूर कर दिया और उसी दिन उनका एक सफल कनेक्शन स्थापित हुआ.

    UCLA और SRI के बीच पहला स्थायी नेटवर्क संबंध 21 नवंबर, 1969 को स्थापित किया गया था. दो और विश्वविद्यालय ARPANET में 5 दिसंबर, 1969 को संस्थापक सदस्यों के रूप में शामिल हुए. ये कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा और यूटा स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग विश्वविद्यालय थे.

    इस तरह अमेरिका के चार विश्विद्यालयों के कंप्यूटर साल 1969 में APRA Network के माध्यम से आपस में जुड़ गए. साल 1970 में इस तरह के नेटवर्क को इंटरनेट का नाम दिया गया. उसके बाद भी इसमें कई सुधार हुए और इसकी स्पीड और सन्देश सम्प्रेषण की क्षमता बढ़ती गई.

    साल 1974 तक ARPANET के द्वारा 3 मिलियन से भी अधिक कम्युनिकेशन पैकेट्स का आदान-प्रदान हुआ. इसी साल Vint Cerf ने Kahn के साथ मिलकर टीसीपी/आईपी प्रोटोकॉल का डिज़ाइन दिया तथा तथा आधुनिक इंटरनेट का आर्किटेक्चर बने. इसके बाद इन्होंने सफलतापूर्वक दो कम्प्यूटर्स को आपस में जोड़ने के लिए NCP की जगह TCP का इस्तेमाल किया. इसलिए Vint Cerf को Father of Internet भी कहा जाता है.

    1 जनवरी 1983 को TCP/IP प्रोटोकॉल का एक स्टैंडर्ड वर्जन जारी किया गया था ,जो नेटवर्क में शामिल कम्प्यूटर्स को आपस में कम्युनिकेशन करने की अनुमति प्रदान करता है. इसलिए इस दिन को इंटरनेट का आधिकारिक जन्मदिन माना जाता है.

    इससे पहले एक दूसरे से संवाद स्थापित करने के लिए कंप्यूटर में ऐसा कोई प्रोटोकॉल नहीं होता था. आप भी शायद IP एड्रेस से वाकिफ हो. ऐसे में ट्रांसफर कंट्रोल प्रोटोकॉल/इंटरनेटवर्क प्रोटोकॉल (टीसीपी/आईपी) का विकास हुआ व आधुनिक इंटरनेट का भी जन्म हुआ.

    शुरुआत में इंटरनेट सिर्फ कंप्यूटर के साथ जुड़ा होता था. तकनीक में सुधार के बाद इसे मोबाईल में भी उपलब्ध करवाया जाने लगा.

    नेटवर्क और इंटरनेट में अंतर (Difference between Network and Internet in Hindi)

    यदि नेटवर्क और इंटरनेट के बीच के मुख्य अंतर यह है कि नेटवर्क में कंप्यूटर फिजिकल रूप से एक दूसरे से कनेक्ट होते हैं और साथ ही साथ एक-दूसरे के साथ इनफार्मेशन को शेयर कर सकते हैं. इसके विपरीत, इंटरनेट एक ऐसी तकनीक है जो इन छोटे और बड़े नेटवर्कों को एक-दूसरे के साथ जोड़ती है और एक बहुत बड़े नेटवर्क का निर्माण करती है. इंटरनेट भी नेटवर्क का ही एक रूप होता है. लेकिन इंटरनेट काफी विस्तृत और पुरे दुनिया में फैला हुआ है. जबकि नेटवर्क का प्रयोग सिमित स्तर पर होता है. नेटवर्क के कुछ प्रकार है:-

    • Local Area Networks (LAN)
    • Personal Area Networks (PAN)‍
    • Home Area Networks (HAN)
    • Wide Area Networks (WAN)
    • Metropolitan Area Networks (MAN)
    • ‍Global Area Networks (GAN)

    यदि आप अब भी दोनों के बीच अंतर समझ नहीं पाए है तो इस टेबल पारा को भी पढ़ें-

    नेटवर्कइंटरनेट
    नेटवर्क को दो या अधिक कंप्यूटर सिस्टम के समूह के रूप में परिभाषित किया गया है.इंटरनेट बहुत सारे छोटे और बड़े नेटवर्कों को एक-दूसरे के साथ जोड़ती है.
    इंटरनेट की तुलना में नेटवर्क का कवरेज सीमित है.इंटरनेट बड़े भौगोलिक क्षेत्र को कवर करता है.
    यह कई कंप्यूटर और नेटवर्किंग उपकरणों के बीच लिंक प्रदान करता है. इंटरनेट कई नेटवर्क के बीच संबंध प्रदान करता है.
    नेटवर्क के प्रकार हैं: LAN, MAN, WAN और CAN है.वहीं, इंटरनेट का प्रकार है- वर्ल्ड वाइड वेब.
    नेटवर्क के माध्यम से, सैकड़ों या कुछ हजारों कंप्यूटर सिस्टम एक साथ लिंक किए जा सकते हैं.इंटरनेट के माध्यम से, लाखों कंप्यूटर सिस्टम एक साथ लिंक किए जा सकते हैं.
    काफी कम संख्या में हार्डवेयर उपकरणों की आवश्यकता होती है.अधिक मात्रा में विभिन्न हार्डवेयर उपकरणों की आवश्यकता होती है.
    नेटवर्क और इंटरनेट में अंतर

    भारत में इंटरनेट कब आया? (When did internet come in India in Hindi)

    भारत का प्रथम इंटरनेट एर्नेट (Education and Research Network ) है. इसकी शुरुआत भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक विभाग ने 1986 में की थी. इसका वित्तपोषण में भारत सरकार के साथ ही UNDP ने भी योगदान दिया था. इसमें कुल आठ एजेंसियों ने भाग लिया था. ये आठ प्रमुख संस्थान शामिल थे- एनसीएसटी (नेशनल सेंटर फॉर सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी) (अब सीडीएसी) बॉम्बे, आईआईएससी (भारतीय विज्ञान संस्थान) बैंगलोर, दिल्ली, बॉम्बे, कानपुर, खड़गपुर और मद्रास के पांच आईआईटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान), और इलेक्ट्रॉनिक विभाग.

    ईआरनेट ने टीसीपी/आईपी और ओएसआई-आईपी प्रोटोकॉल स्टैक दोनों के साथ एक मल्टी प्रोटोकॉल नेटवर्क के रूप में शुरुआत की जो बैकबोन के लीज-लाइन हिस्से पर चल रहा था. हालांकि, 1995 के बाद से, लगभग सभी डाटा आदान प्रदान टीसीपी/आईपी प्रोटोकॉल द्वारा किया जाता है.

    भारत सरकार ने 15 अगस्त 1995 को इंटरनेट का व्यावसायिक शुरुआत की घोषणा की. इसकी शुरुआत केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली कम्पनी विदेश संचार निगम लिमिटेड के द्वारा किए गए थे. फिर, नवम्बर, 1998 में, सरकार ने निजी ऑपरेटरों के लिए इंटरनेट सेवा खोल दिया.

    देश में इंटरनेट आने के साथ ही साल 1996 में अजित बालकृष्णन ने Rediff.com डोमेन भारत में पंजीकृत करवाई. इस वेबसाइट को 8 फरवरी 1996 को लांच कर दिया गया. इस तरह Rediff.com भारत की पहले वेबसाइट बन गई.

    आगे चलकर, जब इंटरनेट को निजी क्षेत्र के लिए खोला गया तो, साल 1998 में, सत्यम इनफोनवे ने पहली बार प्राइवेट इंटरनेट सर्विस लॉन्च किया. इस तरह यह कंपनी भारत में निजी क्षेत्र की पहली इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर बन गई.

    आजकल इंटरनेट भारत में एक मुलभुत आवश्यकता बन गई है. IAMAI द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल 692 मिलियन सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता है. इनमें से 351 मिलियन ग्रामीण क्षेत्रों से तथा 341 शहरी क्षेत्रों से हैं. इस रिसर्च में, भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या के 2025 तक 900 मिलियन तक पहुंचने की संभावना व्यक्ति की गई है.

    इंटरनेट की पीढ़ियां (Generations of Internet in Hindi)

    इसके तीन पीढ़ियां है- Web 1.0, Web 2.0 व Web 3.0.

    1. वेब 1.0 (Web 1.0 in Hindi)

    यह सबसे सामान्य प्रकार का स्थैतिक वेबसाइट उपलब्ध करवाता था, जो सिर्फ Read Only होती थी. इसके वेबसाइट का डिज़ाइन सामान्य होता था, जिसे सिर्फ एक्सेस किया जा सकता था. इसमें दुसरी पार्टी यानी जनसामान्य कोई भी जानकारी दर्ज नहीं कर पाती थी. वेबसाइट में कोई खास डिज़ाइन नहीं होती थी. वेब 1.0 का युग मोटे तौर पर 1991 से 2004 तक था. 1989 में World Wide Web यानी WWW की शुरुआत के साथ ही WEB 1.0 का शुरुआत माना जाता हैं. इसका एक उदाहरण है- Britannica Online.

    वेब 1.0 की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं:

    • Read Only वेब
    • Static वेब पेज
    • एकतरफा प्रकाशन माध्यम (one way publication )
    • पेज हाइपरलिंकिंग और बुकमार्किंग
    • सर्वर के फाइल सिस्टम से सामग्री दी जाती थी
    • केवल टेक्स्ट मेल ही लिखे और भेजे जा सकते थे – इमेजेज को संलग्न करने का कोई विकल्प नहीं
    • फ़्रेम और तालिकाओं का उपयोग, वेबपृष्ठ पर एलिमेंट्स संरेखित की सुविधा

    2. वेब 2.0 (Web 2.0 in Hindi)

    वेब 2.0 या सोशल मीडिया वेब 1990 के दशक के अंत में आने सामने आने लगा. WEB 2.0 के औपचारिक शुरुआत का समय साल 2004 माना जाता है, जब सोशल मीडिया जैसे वेबसाइट्स के लिए प्रोग्रामिंग शुरू हुई. यह वेब 1.0 का उन्नत संस्करण है. इससे वेब पेजों का डिज़ाइन और नेविगेशन में सुधार हुआ.

    वेब 1.0 और वेब 2.0 मुख्य अंतर् यह है कि वेब 2.0 में उपयोगकर्ताओं स्वयं पोस्ट कर सकता है. इसने सोशल मीडिया की कल्पना को साकार किया. यूजर इस तकनीक के आने से लाइक, कमेंट, इमेज और वीडियो शेयर कर सकते है.

    वेब 2.0 के कारण ही फेसबुक (मेटा), ट्विटर, गूगल, ऐप्पल, माइक्रोसॉफ्ट और अमेज़ॅन जैसे तकनीकी दिग्गजों का उदय हुआ. ये कम्पनियाँ हमारे अल्गोरिथम के माध्यम से हमारी निजी डेटा का उपयोग कर हमें हमारे स्वभाव व जरुरत के अनुसार बेहतर कंटेंट उपलब्ध करवाते है. सोशल मीडिया, सोशल नेटवर्किंग, टैगिंग, ब्लॉग, पॉडकास्ट व वेबसाइट के माध्यम से मतदान Web 2.0 के कारण ही संभव हो पाया है.

    इस Web Version में Ajax 2.0 Technology का उपयोग होने लगा. इस टेक्नोलॉजी से किसी पेज को बिना रिफ्रेश यूजर को अपडेटेड डेटा उपलब्ध होती है. Live News Blog व Google Maps जैसी टेक्नोलॉजी इसी तकनीक पर आधारित है.

    वेब 2.0 की कुछ विशेषताएं हैं:

    • Read and Write वेब
    • सहभागी व सोशल वेब
    • उपयोगकर्ता के इनपुट के अनुसार सामग्री
    • यूजर द्वारा साझा की गई सामग्री
    • सोशल मीडिया पर साझा रूप से चलाए जाने वाले ग्रुप्स, पेजेज संभव
    • यूजर फ्रेंडली

    3. वेब 3.0 (Web 3.0 in Hindi)

    वेब 2.0 में इंटरनेट और इंटरनेट ट्रैफ़िक संबंधी अधिकांश डेटा का स्वामित्व या प्रबंधन कुछ विशिष्ट कंपनियों जैसे- गूगल द्वारा ही किया जाता है. इससे डेटा की सुरक्षा, गोपनीयता व दुरुपयोग से संबंधित समस्याएँ पैदा हो गई है. इसके कारण इंटरनेट का मूल उद्देश्य विकृत हो गया है.

    वेब 3.0 विकेंद्रीकृत और निष्पक्ष इंटरनेट प्रदान करेगा, जहाँ उपयोगकर्त्ता अपने स्वयं के डेटा को नियंत्रित कर सकते हैं.

    इस Version में Metaverse, Blockchain, Cryptography व Machine Learning जैसे तकनीक उपलब्ध होंगे. फिलहाल यह शुरुआती चरण में है व कुछ समय में पुरी तरह विकसित होने की संभावना है. WEB 3.0 साल 2010 से सामने आने लगा. हालाँकि यह अभी पूरी तरह तैयार नहीं हुआ है और इसपर शोधकार्य चल रहा हैं. जल्द ही इस तकनीक के उपलब्ध हो जाने की संभावना है.

    वेब 3.0 की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं:

    • यह read-write-internet वेब वर्जन है
    • ब्लॉकचेन द्वारा संचालित
    • विकेंद्रीकृत नेटवर्क का उपयोग मालिकों का डेटा नियंत्रण प्रदान करता है
    • 3डी दृश्य और ग्राफिक्स
    • रीयल-टाइम पर तेज़ परिणाम के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का उपयोग
    • शब्दों के अर्थ को समझने वाले सिमेंटिक वेब
    • उपयोगकर्ता डेटा और निजता की सुरक्षा के लिए उन्नत प्राधिकरण तंत्र का उपयोग

    1G, 2G, 3G, 4G और 5G – मोबाइल इंटरनेट के पीढ़ियां

    मोबाइल इंटरनेट के चरणबद्ध तकनीकी विकास को कई जनरेशन में परिभाषित किया गया है. ये है- 1G, 2G, 3G, 4G और 5G.

    1G नेटवर्क (1G Network in Hindi)

    यह वायरलेस टेलिकम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी पर आधारित इंटरनेट सेवा थी. यह Analogue Technology पर काम करता था और मात्र 2.4 Kbps तक की इंटरनेट स्पीड मिलती थी. इसके सेल्लुलर फोन का आकार काफी बड़ा होता था.

    इसके कुछ टेक्नोलॉजी हैं- AMPS (Advanced Mobile Phone System), C-Netz (Funktelefonnetz-C or Radio Telephone Network C), NMT (Nordisk MobilTelefoni or Nordic Mobile Telephone) और TACS (Total Access Communications System).

    2G नेटवर्क (2G Network in Hindi)

    इसके द्वारा अत्यधिक सुरक्षित voice calling और text messaging सेवाओं के साथ-साथ सिमित इंटरनेट सेवा उपलब्ध करवाई गई. इसमें पहली बार GSM (Global System for Mobile communication), D-AMPS और IS-95 तकनीक का उपयोग किया गया. हवा में टावर के माध्यम से सम्पर्क व डिजिटल तकनीक के साथ ही दो नई एक्सेस तकनीक TDMA और CDMA का आगमन हुआ.

    इस नेटवर्क की स्पीड 64 Kbps से 128 Kbps तक थी. GSM नेटवर्क में उपलब्ध GPRS और EDGE नेटवर्क को क्रमशः 2.5G और 2.75G भी कहा जाता है.

    3G नेटवर्क (3G Network in Hindi)

    CDMA टेक्नोलॉजी के दो ट्रैक, Universal Mobile Telecommunications Systems (UMTS) और दूसरा CDMA 2000, पर आधारित इस पीढ़ी के मोबाईल नेटवर्क ने GSM को प्रतिस्थापित किया. UMTS नेटवर्क के High-Speed Packet Access (HSPA) व HSPA+ तकनीक से डाटा ट्रांसफर की गति काफी बढ़ गई. डाटा स्पीड बढ़कर 2.05 Mbps हो गई.

    4G नेटवर्क (4G Network in Hindi)

    Long Term Evolution (LTE) या WiMax तकनीक के माध्यम मोबाइल 4G सेवाओं का शुरुआत किया गया. इसमें इंटरनेट स्पीड 100 Mbps है. हालाँकि, तेज गति के इंटरनेट के साथ ही बिजली की भी अधिक खपत होने लगी, इसलिए 4G की आलोचना भी की जाती है.

    5G मोबाइल नेटवर्क (5G Mobile Network in Hindi)

    यह New Radio (NR) तकनीक पर आधारित है. इसकी गति 20 GBPS है. मतलब आप एक मूवी को पलक झपकते ही डाउनलोड कर पाएंगे. यह तकनीक रियल टाइम डाटा शेयरिंग के लिहाज से क्रांतिकारी माना जाता है.

    आबादी के हिसाब से दुनिया में इंटरनेट यूज करने वाले देश (संख्या मिलियन में) (Internet Users Count in World Country wise in Millions)

    1. चीन- 1020
    2. भारत- 658
    3. USA – 307.2
    4. इंडोनेशिया- 204.7
    5. ब्राज़ील- 165.3
    6. रूस- 129.8
    7. जापान- 118.3
    8. नाइजीरिया- 109.2
    9. मेक्सिको- 96.87
    10. जर्मनी- 78.02

    इंटरनेट एक मौलिक अधिकार (Internet a Fundamental Right in Hindi)

    केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) फहीमा शिरीन बनाम स्टेट ऑफ़ केरल (2019) के अपने फैसले में इंटरनेट को एक मौलिक अधिकार माना है. अदालत ने इंटरनेट के उपयोग करने में सक्षम होने का अधिकार जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के साथ-साथ आर्टिकल 21 के तहत गोपनीयता के अधिकार में शामिल माना है.

    इस तरह ये माना जा सकता है कि सुचना, अभिव्यक्ति, जीवन और गोपनीयता के अधिकार में इंटरनेट का अधिकार एक मौलिक अधिकार के रूप में शामिल है.

    कालक्रम: इंटरनेट का वर्ष दर वर्ष विकास ( Timeline : Yearly Development of Internet in Hindi)

    1969 ईस्वी में : एक अमरीकी रक्षा विभाग की एजेंसी ARPA ने चार विश्वविद्यालय के कंप्यूटर को एकसाथ जोड़कर एक नेटवर्क बनाया. इसे ARPANET कहा गया. इसका विकास शिक्षा संस्थानों में अनुसंधान के लिए किया गया था.

    1972 ईस्वी में : रे टॉमलिंसन ने प्रोग्राम बनाया जिसमें, user@host के रूप में पते का इस्तेमाल करते हुए पहली बार इलेक्ट्रॉनिक मेल यानि ई-मेल की शुरुआत की गई.

    1973 ईस्वी में : इस दौरान इंटरनेट प्रोटोकॉल को डिजाइन किया गया था. इसके माध्यम से कोई भी उपयोगकर्ता किसी कंप्यूटर की फाइल को कभी भी डाउनलोड कर सकता था.

    1986 ईस्वी में : नेशनल साइंस फाउंडेशन ने पहली बार ARPANET को बहुत बड़े नेटवर्क के रूप में विकसित किया.

    1988 ईस्वी में : फिनलैंड के जाक्र्को ओकेरीनेने नामक शख्स ने पहली बार इंटरनेट चैटिंग का विकास किया.

    1989 ईस्वी में : होस्ट की संख्या जनवरी में 80,000 से बढ़कर जुलाई में 130,000 हो जाती है और नवंबर में 160,000 से अधिक हो जाती है. ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इज़राइल, इटली, जापान, मैक्सिको, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड और यूनाइटेड किंगडम इंटरनेट से जुड़ते हैं.

    सी ई आर एन, स्विट्ज़रलैंड के टीम बर्नर्स ली ने एक नईी सूचना तकनीक का विकास किया, जिसे वर्ल्ड वाइड वेब के नाम से जाना जाता है. यह रोबर्ट कैलिओ के दिमाग की अवधारणा थी. यह हाइपरटेक्स्ट सिस्टम जैसे HTML पर आधारित था. इस तकनीक से इंटरनेट उपयोगकर्ता किसी दूसरी साइट का डाटा कभी भी डाउनलोड कर सकते थे. साल 1991 में इसे सार्वजनिक कर दिया गया.

    1993 ईस्वी में : एक मार्क एंड्रीसन नामक व्यक्ति ने मोजेइक नामक नेवीगेटिंग सिस्टम का विकास किया. ऐसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल आमतौर पर ग्राफ़िक्स के लिए किया जाता है. यह WWW के विकास के वजह से ही संभव हो पाया था. WWW इंटरनेट की दुनिया में एटम की तरह फूटता है और इंटरनेट का विकास सुपरनोवा की होता जाता है. यह हर साल दोगुना हो रहा था, लेकिन अब यह तीन महीने में दोगुना हो रहा था. ARPA के प्रयोग के रूप में जो शुरू हुआ था, वह केवल 30 वर्षों की अवधि में, दुनिया की लोकप्रिय संस्कृति का हिस्सा बन गया है.

    1994 ईस्वी में : अब बहुत सारे ब्राउज़र इंटरनेट की दुनिया में आ चुके थे. इससे इंटरनेट को एक्सेस करना बेहद आसान हो गया. इसी साल अमरीका के स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के दो छात्र जैरी यांग और डेविड फिलो (Jerry Yang and David Filo) ने Yahoo Directory की स्थापना की. इसके अगले साल Yahoo Search Engine को लांच कर दिया गया.

    1995 ईस्वी में : अब बिज़नेस वेबसाइट भी शुरू की जाने लगी, इसका उदेश्य व्यपार को बढ़ावा देना था.

    1996 ईस्वी में : साल 1996 में नोकिया ने फ़िनलैंड में इंटरनेट ऐक्सेस वाला फ़ोन पेश किया, जिसका नाम Nokia 9000 कम्यूनिकेटर रखा गया. इस तरह अब इंटरनेट न सिर्फ कंप्यूटर, बल्कि मोबाईल पर भी उपलब्ध थी. तेज गति (High Speed) के कारण इंटरनेट को चलाना आसान हो गया. लोग इसमें काफी रुचि ले रहे थे. हालाँकि, यह अब भी काफी महंगा था.

    1998 ईस्वी में : 4 सितंबर 1998 में संयुक्त राज्य अमेरिका के मेनलो पार्क, कैलिफोर्निया में, Google Search Engine लांच लिया गया. इसके संस्थापक सर्गेई ब्रिन और लैरी पेज (Sergey Brin and Larry Page) है. इसके अल्गोरिथम काफी उन्नत व विकसित थे, इस वजह से लोग जानकारी प्राप्त करने के लिए इंटरनेट का अधिक से अधिक उपयोग करने लगे. इससे पहले सर्च इंजन के क्षेत्र में Yahoo का दबदबा था.

    1999 ईस्वी में : लोग ऑनलाइन समान खरीदने में रूचि दिखाने लगे.

    2003 ईस्वी में : अब इंटरनेट चलाने वाली की संख्या में एक बूम आया जो पिछले रिकॉर्ड से काफी ज्यादा था.

    2022 ईस्वी में : दुनिया की 69% आबादी या 4.9 बिलियन लोग सक्रिय रूप से इंटरनेट का उपयोग करने लगे हैं.

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