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सिंथेटिक फ्यूल और इसकी खासियत

    सिंथेटिक फ्यूल (कृत्रिम ईंधन या Synthetic Fuel) विज्ञान द्वारा मानवता को समर्पित एक नई खोज हैं. विज्ञान ने क्लोन तकनीक का इस्तेमाल कर सिंथेटिक जीव का निर्माण कर दुनिया को चकित कर दिया था. यह कारनामा 5 जुलाई, 1996 को स्कॉटलैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ ऐडिनबर्ग के रोजलिन इंस्टिट्यूट में शोधकर्ता इयान विल्मट और कीथ कैम्पबल द्वारा ‘डोली’ नामक भेड़ को क्लोनिंग के सफल जन्म के द्वारा किया गया था. विज्ञान ने एक बार फिर ऐसा ही कारनामा सिंथेटिक फ्यूल तैयार कर किया है.

    समाप्त होते जीवाश्म ईंधन के जगह इस्तेमाल की जा सकने वाली इस ईंधन की खोज को कई मायनों में क्रन्तिकारी माना जा रहा है. इस खोज के बाद वैज्ञानिकों ने जीवाश्म ईंधन के अनवरत आपूर्ति की तरकीब खोज निकाली हैं. अभी तक जीवाश्म ईंधन के सिमित भंडार को लेकर दुनिया में कई चिंताएं जाहिर की जा रही थी. लेकिन, सिंथेटिक फ्यूल ने इस समस्या का समाधान कर दिया है.

    सिंथेटिक फ्यूल क्या हैं? (What is synthetic fuel in Hindi)

    जीवाश्म ईंधन की तरह सिंथेटिक फ्यूल भी हाइड्रोजन और कार्बन का यौगिक, यानि एक हाड्रोकार्बन ईंधन है. लेकिन इसे पेट्रोलियम की जगह प्रकृति में मौजूद जल से हाइड्रोजन व हवा के कार्बन डाइऑक्साइड के कार्बन से बनाया जाता है.

    सिंथेटिक फ्यूल की खोज किसने की? (Who did invent the Synthetic fuel in Hindi)

    दुनिया के कई व्यापारिक समूह और औद्योगिक घराने सिंथेटिक फ्यूल पर काम कर रहे है. हालाँकि, इसके सफल उपयोग का पहला उदाहरण ब्रिटेन में मिला है. इसलिए इसके आविष्कार का श्रेय ब्रिटेन के डिफेन्स मिनिस्ट्री को दिया जा सकता है. लेकिन डिफेन्स मिनिस्ट्री को इसकी आपूर्ति ‘जीरो पेट्रोलियम’ नाम की कम्पनी ने किया है. इसलिए इसका प्रथम औद्योगिक उत्पादन या आविष्कार का श्रेय इसी कंपनी को जाता है.

    नवम्बर 2021 में ब्रिटिश रॉयल एयरफोर्स ने सिंथेटिक फ्यूल के इस्तेमाल से अपने फाइटर प्लेन में एक सफल उड़ान भरी. यह ऐतिहासिक उड़ान गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल की गई है. एयरफोर्स के कप्तान पीटर हैकेट द्वारा इकरस C42 माइक्रोलाइट एयरक्राफ्ट में उड़ान भरकर यह उपलब्धि हासिल की गई है.

    सिंथेटिक फ्यूल कैसे तैयार किया जाता हैं? (How does synthetic fuel prepared)

    इस ईंधन के उत्पादन के लिए हाइड्रोलिसिस के माध्यम से समुद्री जल से हाइड्रोजन प्राप्त किया जाता है. फिर हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बन प्राप्त किया जाता है. फिर इन हाइड्रोजन और कार्बन को मिलकर हाइड्रोकार्बन का अणु प्राप्त किया जाता है. इस प्रक्रिया को पूरी करने के लिए 1800 डिग्री सेल्सियस की विशेष तापमान वाली वातावरण की जरूरत होती है.

    1800 डिग्री सेल्सियस पर कार्बन डाइऑक्साइड को तोड़कर कार्बन प्राप्त किया जाता है. इसे हाइड्रोजन से मिलाकर सिंथेटिक ईंधन तैयार होता है. यह प्रक्रिया जटिल होती है. इस प्रक्रिया में बिजली का भी इस्तेमाल किया जाता है. जिसे इलेक्ट्रोलिसिस कहा जाता है. इलेक्ट्रोलिसिस में जल को हाइड्रोजन व ऑक्सीजन में तोड़ा जाता है.

    कार्बन को हवा के अलावा चिमनियों से भी प्राप्त किया जा सकता है. जल भी आमतौर पर मीठे जल की तुलना में समुद्र के खारे पानी से लिया जाता है. सिंथेटिक फ्यूल UL91 को सबसे पहले जीरो पेट्रोलियम कंपनी ने पानी से हाइड्रोजन और वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बन तैयार किया है.

    क्या सिंथेटिक फ्यूल पर्यावरण अनुकूल हैं? (Is Synthectic Fuel Eco-Friendly in Hindi)

    आमतौर पर सिंथेटिक ईंधन पर्यावरण अनुकूल होता है. इसकी वजह है इसके निर्माण में उपयोग की जाने वाले अवयवों का वातावरण से लिया जाना. साथ ही इसके उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल होता है.
    हालाँकि, उपयोग के बाद फिर यह पर्यावरण में चला जाता है. लेकिन यह मात्रा पहले पर्यावरण से ली गई होती है., इसलिए वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा संतुलित रहती है. यानी हम जितना वातावरण से लेते है उतना छोड़ भी देते है. इससे वातावरण में प्रदूषण का आधिक्य नहीं होता और यह संतुलित रहता है.

    दूसरी तरफ, जीवाश्म ईंधन से पेट्रोल, डीजल व अन्य ईंधन प्राप्त करने में काफी प्रदुषण फैलता है. साथ ही, वाता में प्रदूषक की नई मात्रा फ़ैल जाती है. लेकिन, सिंथेटिक फ्यूल वातावरण से ली गई प्रदूषक अवयवों से तैयार होता है. इस तरह सिंथेटिक फ्यूल के इस्तेमाल से पर्यावरण को फायदा होगा. सिंथेटिक फ्यूल को नवीकरणीयय ऊर्जा स्त्रोत भी माना जा सकता है.

    सिंथेटिक फ्यूल और जीवाश्म ईंधन (Synthetic and Fossil Fuel in Hindi)

    जीवाश्म ईंधन, जैसे पेट्रोल, डीजल, केरोसिन, व एलपीजी; हाइड्रोकार्बन के अणु होते है. सिंथेटिक फ्यूल भी कृत्रिम ढंग से उत्पादित हाइड्रोकार्बन का होता है. इसलिए सिंथेटिक फ्यूल भविष्य में जीवाश्म ईंधन का जगह ले सकता है.

    इसके कीमत फिलहाल चिंता का विषय है. जहाँ जीवाश्म ईंधन एक डॉलर की कीमत पर उपलब्ध है, वहीं, सिंथेटिक ईंधन का कीमत 10 डॉलर प्रति लीटर है. भविष्य में इसके कम होकर 2 डॉलर आने की संभावना है. यदि जीवाश्म व सिंथेटिक फ्यूल की कीमत समान हो तो सिंथेटिक फ्यूल उपयोग के लिए बेहतर होगा.

    सिंथेटिक फ्यूल का व्यापारिक उत्पादन (Industrial Production of Synthetic Fuel in Hindi)

    इसके व्यापारिक उत्पादन के लिए कार्बन का आसानी से मिलना एक बड़ी शर्त है. दुनिया के कई कम्पनियाँ इसपर काम कर रही है. बिल गेट्स के स्वामित्व वाली माइक्रोसॉफ्ट की अनुषंगी इकाई कार्बन इंजीनियरिंग साल 2015 से इसपर काम कर रही है.

    स्विट्जरलैंड की क्लाइमवर्क्स भी इसपर काम कर रही है. फिलहाल एक टन कार्बन पर 600 डॉलर खर्च की संभावना जताई जा रही है. लेकिन इसके भविष्य में कम होकर 100 डॉलर पर आने की संभावना है.

    सिंथेटिक ईंधन का भविष्य (Future of Synthetic Fuel in Hindi)

    फिलहाल पुरे दुनिया के सरकार का लक्ष्य कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना है. इसलिए सरकारें इलेक्ट्रिक व्हीकल समेत दूसरे नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा दे रही है. इलेक्ट्रिक व्हीकल न के बराबर शोर करता है. साथ ही, इसमें कम्पन भी पैदा नहीं होता. इसलिए लोग अधिक संख्या में इलेक्ट्रिक व्हीकल के तरफ आकर्षित हो रहे है.

    सरकार के क़दमों से ये साफ़ हो चला है कि स्वच्छ ऊर्जा ही भविष्य की ऊर्जा है. हाल तक ये उम्मीद थी कि जीवाश्म ईंधन का उपयोग कुछ समय बाद कम हो जाएगा या समाप्त हो जाएगा. लेकिन सिंथेटिक फ्यूल ने इसका प्रतिस्थापन्न के रूप में उभरा है. इसलिए यह बाजार भी लम्बे समय तक टिका रहेगा.

    लेकिन वायुमार्ग एक ऐसा परिवहन का जरिया है, जहाँ सिंथेटिक फ्यूल के उपयोग की अपार संभावनाएं है. हवा यातायात में बड़े स्तर पर प्रदूषण पैदा होती है. यदि वायुयानों में सिंथेटिक फ्यूल का इस्तेमाल किया जाएं तो प्रदुषण के नियंत्रण में काफी मदद मिल सकती है.

    भविष्य में, एविएशन के अलावा समुद्री क्षेत्र में बहुत अधिक ऊर्जा वाले ईंधनों की आवश्यकता होगी. अगले 20 सालों में उड़ानों की संख्या दोगुनी होने की संभावना है. जल-यातायात भी डेढ़ से दोगुना होने का संभावना है. इस तरह एविएशन सेक्शन को वर्तमान 100 करोड़ टन की तुलना में 170 करोड़ टन ईंधन की जरूरत होगी. सिंथेटिक फ्यूल इस जरुरत को पुरा करने में सक्षम होगी.

    सिन्थेक फ्यूल की कंपनियां (Synthetic Fuel Companies in Hindi)

    ब्रिटेन के जीरो पेट्रोलियम के अलावा अमेरिका की फुलक्रम बायोएनर्जी इसपर काम कर रही है. फुलक्रम की योजना कचरों से निकलने वाले मीथेन से कार्बन प्राप्त करने की है.

    चिली की कंपनी एचआईएफ़ ग्लोबल (हाइली इनोवेटिव फ़्यूल्स) सिंथेटिक फ्यूल उत्पादन के लिए ‘हारु ओनी’ नाम का प्लांट तैयार कर रही है. यहाँ कुछ ही दिनों में उत्पादन शुरू होने की संभावना है. एचआईएफ मिथेनॉल को सिंथेसाइज कर कार्बन व पवन ऊर्जा के उपयोग से सिंथेटिक फ्यूल बनाने की घोषणा कर रहा है.

    स्पेन की रेपसॉल ने भी मई 2022 में पोर्ट ऑफ बिलबाव में दुनिया का सबसे बड़ा सिंथेटिक फ्यूल प्लांट बना रही है. इस प्लांट में 10 मेगावाट का इलेक्ट्रोलाइज़र होगा. यहाँ 2100 टन सिंथेटिक फ्यूल का उत्पादन होगा. रेपसॉल की 2024 तक अपने इस प्लांट के उद्घाटन की योजना है.

    कृत्रिम ईंधन का पहला इनोवेशन (First Innovation of man-made Fuel in Hindi)

    सिंथेटिक फ्यूल दुनिया का पहला खोज है जो कृत्रिम तौर पर ऊर्जा जरूरतों को पुरा करेगी. इसके साथ ही,ऑडी (Audi) ई-गैसोलीन के सिंथेटिक ईंधन (Synthetic Fuel) पर काम कर रही है. ऑडी ई-डीजल पर भी काम कर रही है. इसे सिंथेटिक डीजल (Synthetic Diesel) भी कहा जाता है.

    इस तरह के ईंधन को सबसे अधिक बढ़ावा पश्चिमी जगत में मिल रहा है. ब्रिटेन को साल 2050 तक अपने जीरो कार्बन एमिशन मिशन को पूरा करने में सिंथेटिक फ्यूल के माध्यम से करने की सोच रहा है. ब्रिटेन की रफ 2025 तक अपना पहला नेट जीरो एयरबेस पूर्ण रूप से स्थापित करने की है.

    भारत और सिंथेटिक फ्यूल (India and Synthetic Fuel in Hindi)

    31 अगस्त 2020 को भारत सरकार ने 2030 तक 100 मिलियन टन (एम टी) कोयला गैसीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया है. इसके लिए 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

    सरकार ने गैसीकरण के लिए इस्तेमाल होने वाले कोयले की राजस्व हिस्सेदारी में 20 प्रतिशत की रियायत प्रदान की है. इससे सिंथेटिक प्राकृतिक गैस, ऊर्जा ईंधन, उर्वरकों के लिए यूरिया और अन्य रसायनों के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा.

    कोयला गैसीकरण और द्रवीकरण सरकार के एजेंडे में है और देश में सतह (सर्फेस)कोयला गैसीकरण के विकास के लिए विभिन्न कार्य किए गए हैं. सीआईएल ने 3 गैसीकरण संयंत्र (दानकुनी के अलावा) स्थापित करने की योजना बनाई है. इस कंपनी ने सिंथेटिक प्राकृतिक गैस के विपणन के लिए गेल के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.

    प्रदुषण और सिंथेटिक फ्यूल (Pollution and Synthetic Fuel in Hindi)

    हम जलवायु परिवर्तन के मामले में आपदा की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की समिति आईपीसीसी के मुताबिक़, धरती का तापमान औद्योगिक युग से पहले के टेम्प्रेचर की तुलना में डेढ़ डिग्री सेंटीग्रेड से ज़्यादा न बढ़ पाए, ये सुनिश्चित करने के लिए फ़ॉसिल फ़्यूल (जीवाश्म ईंधन) की खपत से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को साल 2030 तक 45 फ़ीसदी कम किए जाने की ज़रूरत है.

    फिलहाल, हल्के विमानों में बैटरी और हाइड्रोजन ईंधन का इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन यह लंबी यात्रा के लिए सही नहीं है. जीवाश्म ईंधन की जगह एयरोप्लेन में सिंथेटिक ईंधन का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस तरह हम प्रदुषण पर नियंत्रण पा सकेंगे.

    सिंथेटिक फ्यूल के समक्ष चुनौतियाँ (What Are The Challenges Of SyntheticFuel in Hindi?)

    इसे सिंथेटिक ई-ईंधन (Synthetic e-fuel) भी कहा जाता है. इसके व्यावसायिक उपयोग के समक्ष कई चुनौतियाँ है, जो इस प्रकार है:-

    1. यह जीवाश्म ईंधन से काफी महंगा है.
    2. हाइड्रोजन और कार्बन के फ्यूजन के कई चरण होते है. इसलिए लिए काफी ऊर्जा की जरुरत होती है.
    3. हाइड्रोजन का भण्डारण और परिवहन एक जटिल और मुश्किल काम है. यह इसके बड़े स्तर पर उत्पादन में बाधक बन सकती है. हाइड्रोजन को काफी कम तापमान पर रखना होता है. नहीं तो इसके फैलकर विस्फोट करने की संभावना होती है.
    4. सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा व नाभिकीय ऊर्जा से इसे कड़ी टक्कर मिलेगी. इनसे कम कीमत पर उत्पादन होने पर ही यह बाजार में टिक पाएगा.
    5. सिंथेटिक फ्यूल के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाली विद्युत सीधे इस्तेमाल कर ऊर्जा के जरूरतों को पुरा किया जा सकता है.
    6. इसके उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में अक्षय ऊर्जा की आवश्यकता होगी, जो एक बड़ी चुनौती है.

    इतिहास व आंकलन (History and Estimates in Hindi)

    सिंथेटिक फ्यूल का इतिहास साल 1913 से आरम्भ होता है. इस समय जर्मनी में कोयले को गैस में बदलकर इस्तेमाल करने की खोज हुई थी. अप्रत्यक्ष तौर पर कोयले से गैस ईंधन प्राप्त करने की खोज 1923 में जर्मनी में ही हुई थी. हालाँकि, वायु से सीधे कार्बन और समुद्री जल से हाइड्रोजन लेकर कृत्रिम ईंधन बनाने का आविष्कार पूरी तरह इक्कीसवीं सदी का है.

    कोयले से गैस पाने का एक और तरीका बायोफ्यूल तकनीक है. सिंथेटिक फ्यूल का उपयोग उसी तरह किया जा सकता है जैसे दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जाता है. उदाहरण के लिए, पारंपरिक विमानों, जहाजों, ट्रकों और कारों के लिए सिंथेटिक जेट ईंधन, डीजल या गैसोलीन का उत्पादन करना संभव है.

    वे सीधे अपने जीवाश्म ईंधन समकक्ष को बाजार से हटा सकते हैं, क्योंकि, इनकी मात्रा और ऊर्जा घनत्व बहुत समान हैं. इसका मतलब है कि वे मौजूदा पेट्रोल और डीजल इंजन प्रौद्योगिकी के साथ काम करेंगे और भंडारण और वितरण के लिए स्थापित ईंधन बुनियादी ढांचे का उपयोग कर सकते हैं. आप ये जान ले कि सिंथेटिक फ्यूल, बायोफ्यूल से बिलकुल अलग हैं.

    सिंथेटिक फ्यूल पर वीडियो

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