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बाजार विभक्तिकरण का क्या तात्पर्य है? इसे क्यों और कैसे लागू किया जाता हैं?

भूमण्डलीकरण के वर्तमान दौर में सम्पूर्ण विश्व एक बड़ा बाजार बन गया है. पूरे विश्व में विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता रहते है जिनमें आयु, आय, लिंग, शिक्षा, व्यवसाय एवं पैशा आदि के आधार पर अनेक अन्तर है. किसी भी संस्था के लिए यह लगभग असम्भव है कि वह इन सभी प्रकार के ग्राहको पर ध्यान केन्द्रित कर सके. अत: एक संस्था कुछ विशेष प्रकार के बाजारों एवं ग्राहकों का चयन कर लेती है और उन्ही पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर लेती है. इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को बाजार विभक्तिकरण का नाम दे सकते है.

उदाहरण के लिए एक संस्था सम्पूर्ण भारत में अपना माल नहीं बेच सकती है तो वह संस्था राजस्थान पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकती है. राजस्थान एक बड़ा प्रदेश है इसे भी बाजार के हिसाब से चार भागों में विभाजित कर किसी एक भाग पर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है.

बाजार विभक्तिकरण का अर्थ (Meaning of Market Segmentation in Hindi)

सामान्यतया बाजार विभक्तिकरण का आशय एक बड़े बाजार को कई छोटे-छोटे भागों में बांटना है ताकि प्रत्येक भाग के लिए एक समुचित विपणन कार्यक्रम एवं व्यूहरचना बनाई जा सके. इसके लिए बाजार के ग्राहकों की विशेषताओं, आवश्यकताओं, व्यवहार आदि के अनुसार समूह बनाये जाते है तथा प्रत्येक समूह की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए अलग विपणन कार्यक्रम एवं व्यूहरचना तैयार की जाती है. 

बाजार विभक्तिकरण की परिभाषा

बाजार विभक्तिकरण की अनेक विद्वानों द्वारा परिभाषाएँ दी गई :-

फिलिप कोटलर के शब्दों में -”बाजार विभक्तिकरण एक बाजार के सामान प्रकार के ग्राहको को उप समूहों में उपविभाजित करना है ताकि किसी उप समूह का काल्पनिक रूप से ऐसे लक्ष्य बाजार के रूप में चयन किया जा सके जिसमें विशिष्ट विपणन मिश्रण के साथ प्रवेश किया जा सके.”

स्टेन्टन के अनुसार – “बाजार विभक्तिकरण किसी उत्पाद के सम्पूर्ण विजातीय बाजार को अनेक उप-बाजार या खण्डों में विभाजित करने की वह प्रक्रिया है ताकि प्रत्येक खण्ड के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं में समजातीयता हो जाय”.

कण्डिफ एवं स्टिल – “उपभोक्ताओं का उनकी आय, आयु, नगरीकरण की स्थिति, जाति या जातीय वर्गीकरण, भौगोलिक स्थिति या शिक्षा आदि विशेषताओं के अनुसार समूहीकरण करना ही बाजार विभक्तिकरण है.”

अमेरिकन विपणन संघ के अनुसार – “बाजार विभक्तिकरण असमान या विजातीय बाजार को ऐसे छोटे ग्राहक समूहों में विभाजित करना है जिनमें कुछ ऐसी एक समान विशेषताएँ पाई जाती हैं जिन्हें उस संस्था द्वारा सन्तुष्ट किया जा सकता है.”

निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि बाजार विभक्तिकरण के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के ग्राहकों को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार समूहों में विभाजित किया जाता है ताकि समान विशेषताओं वाले ग्राहकों के लिए एक समान विपणन कार्यक्रम तैयार कर विपणन कार्य में सफलता प्राप्त की जा सके.

बाजार विभक्तिकरण की विशेषताएँ

  1. बाजार विभक्तिकरण एक नवीन अवधारणा है. 
  2. विभिन्न प्रकार के ग्राहकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न आकृति एवं किस्म की वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है. 
  3. बाजार विभक्तिकरण किसी बाजार को छोटे-छोटे भागों में बांटने की रीति-नीति है. 
  4. बाजार विभक्तिकरण विभिन्न आधारों पर किया जाता है, जैसे – ग्राहकों की आयु, आय, शिक्षा, लिंग आदि.
  5. बाजार विभक्तिकरण में वर्तमान एवं भावी ग्राहकों को उनकी आवश्यकताओं, रूचियों एवं पसन्द के आधार पर समजातीय समूहों में विभाजित किया जाता है. 
  6. बाजार विभक्तिकरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा बाजार को विभिन्न भागों में बांटा जाता है.

बाजार विभक्तिकरण की मान्यताएँ

  1. बाजार विभक्तिकरण की प्रथम मान्यता यह है कि बाजार में विभिन्न प्रकार के या विषम ग्राहक विद्यमान होते है.
  2. इन विभिन्न प्रकार के ग्राहकों के पृथक-पृथक समूह बनाये जा सकते है. 
  3. विभिन्न प्रकार के अलग-अलग ग्राहकों के लिए पृथक-पृथक विपणन मिश्रण एवं व्यूह रचनाओं का निर्माण किया जा सकता है.

बाजार विभक्तिकरण के उदेश्य

  1. समान प्रकार के ग्राहक जिनकी विशेषताएँ एवं आवश्यकताएँ एक प्रकार की है, समूह बनाना.
  2.  प्रत्येक समूह के ग्राहक की रूचि, पसन्द एवं आवश्यकता की जानकारी करना. 
  3. संस्था के लिए सर्वश्रेष्ठ ग्राहक वर्ग की जानकारी करना. 
  4. संभावित ग्राहकों को वास्तविकता में बदलना. 
  5. संस्था की विपणन नीतियों, कार्यक्रमों को ग्राहकोन्मुखी बनाना. 
  6. असन्तुष्ट ग्राहक वर्ग की जानकारी कर उन्हें सन्तुष्ट करना. 
  7. प्रत्येक बाजार खण्ड के लिए अलग विपणन व्यूहरचना तैयार करना. 
  8. विपणन अवधारणा को व्यवहार में लाना. 
  9. सर्वोतम बाजार क्षैत्रों का चयन करना एवं उनका विकास करना.

बाजार विभक्तिकरण का महत्व

बाजार विभक्तिकरण एक संस्था की कार्य प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. बाजार विभक्तिकरण से एक संस्था अच्छे उत्पाद प्रस्तुत कर सकती है तथा सर्वोतम वितरण एवं संचार की व्यवस्था कर सकती है. फिलिप कोटलर के अनुसार – “बाजार विभक्तिकरण से संस्था अधिक अच्छे उत्पाद या अच्छी सेवा उपलब्ध करा सकती है तथा लक्ष्य बाजार के लिए उसका समुचित मूल्य निर्धारित कर सकती है. संस्था सर्वोत्तम वितरण एवं संचार माध्यमों का चयन कर सकती है तथा अपने प्रतिस्पर्धियों की तस्वीर को अधिक स्पष्ट रूप से देख सकती है.” 

बाजार विभक्तिकरण के महत्व को इन बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट रूप में समझा जा सकता है :-

1. बाजार खण्डों का तुलनात्मक अध्ययन – बाजार विभक्तिकरण द्वारा विपणन प्रबन्धन सर्वोत्तम विपणन अवसरों की जानकारी कर सकता है ऐसा बाजार खण्डों के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा किया जा सकता है. जिस बाजार खण्ड में तुलनात्मक रूप से अच्छे विपणन अवसर विद्यमान होते हैं, उस खण्ड में विपणन प्रबन्धक अपना विपणन कार्य प्रभावी तरीके से कर सकता है. 

2. सर्वोत्तम लक्ष्य बाजार का चयन – जब बाजार खण्डों का तुलनात्मक अध्ययन कर लिया जाता है तो विपणनकर्त्ता के सामने सभी बाजारों की स्थिति स्पष्ट रूप से आ जाती है ओर इनमें से सर्वोत्तम लक्ष्य बाजार का चयन कोई कठिन कार्य नहीं होता है. इस प्रकार एक विपणन प्रबन्धक सर्वोत्तम लक्ष्य बाजार का चयन कर उस बाजार के अनुरूप अपना विपणन कार्यक्रम तैयार कर सकता है. 

3. ग्राहकों की आवश्यकता एवं रुचि की जानकारी – बाजार विभक्तिकरण द्वारा ग्राहकों की पसन्द एवं आवश्यकता की जानकारी आसानी से हो जाती है. विपणनकर्त्ता ग्राहकों की पसंद एवं आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए विपणन कार्यक्रम एवं व्यूह रचनाओं का निर्धारण कर सकता है. ग्राहकों की आवश्यकता एवं रूचि को ध्यान में रखकर बनाये गये विपणन कार्यक्रम अधिक सफल होते हैं. 

4. मध्यस्थों के चयन में सुविधा – बाजार खण्डो का निर्धारण हो जाने के बाद मध्यस्थों के चयन में सुविधा होती है. किस बाजार खण्ड के लिए किस प्रकार के मध्यस्थ उपयुक्त रहेंगे इस बात का पता लगाकर मध्यस्थों का चयन किया जा सकता है. इस प्रकार बाजार विभक्तिकरण से विशेष आवश्यकता वाले मध्यस्थों का चयन संभव है. 

5. मूल्य निर्धारण में सहायक – बाजार विभक्तिकरण मूल्य निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान देता है. ग्राहकों की आय, जीवन-स्तर, व्यवसाय आदि के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है तथा इस जानकारी के आधार पर उत्पाद का मूल्य निर्धारण किया जा सकता है. उपभोक्ताओं की आय को ध्यान में रखते हुए बाजार विभक्तिकरण द्वारा विभेदकारी मूल्य निर्धारण भी किया जा सकता है. 

6. लाभकारी विपणन खण्डों पर ध्यान – बाजार विभक्तिकरण के माध्यम से विपणनकर्त्ता लाभकारी एवं अलाभकारी विपणन खण्डों की जानकारी कर सकता है तथा उन विपणन खण्डों पर ज्यादा ध्यान दे सकता है जो उसके लिए लाभप्रद हो. इस प्रकार सम्पूर्ण विपणन प्रयास लाभकारी विपणन खण्डों पर केन्द्रित किये जा सकते हैं. 

7. प्रतिस्पर्धा में विजय प्राप्त करना – बाजार विभक्तिकरण द्वारा प्रत्येक बाजार खण्ड में स्थित प्रतियोगी संस्था के उत्पादों के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती है. प्रतियोगी संस्था के उत्पाद की किस्म मूल्य, विपणन माध्यम आदि की जानकारी कर प्रभावकारी विपणन व्यूह रचनाएँ बनाई जा सकती है जो प्रतिस्पर्धा में विजय दिलाने में सहायक होगी. 

8. समय की मांग – बाजार विभक्तिकरण वर्तमान समय की एक मांग है क्योंकि कोई भी उत्पादक सम्पूर्ण बाजार में विपणन कार्य का संचालन नहीं कर सकता है. अत: कुछ उपयुक्त बाजार खण्डों का चयन कर लिया जाता है, तथा उन बाजार खण्डों में अधिक प्रभावी तरीके से विपणन कार्यों का संचालन किया जा सकता है. 

फिलिप कोटलर के अनुसार – “कई संस्थाएँ अपने विपणन प्रयासों को फैलाने की अपेक्षा उन्हें उन ग्राहकों पर केन्द्रित करना पसन्द करती है जिनको सन्तुष्ट करने की अधिक संभावना होती है.’’ 

विलियम जे. स्टेन्टन ने लिखा है कि अमेरिका की कई बहुराष्ट्रीय संस्थाएँ जो सम्पूर्ण बाजार के सभी ग्राहकों में विपणन कार्य करती थी वे आज बाजार विभक्तिकरण कर छोटे-छोटे बाजार खण्डों में अपनी पहुंच बना रही है. 

9. ग्राहक के स्तर के अनुरूप संवर्द्धनात्मक प्रयास – विभिन्न बाजार खण्डों में विभिन्न प्रकार के ग्राहक उपस्थित होते है. इन ग्राहकों की आय, आयु, जीवनस्तर, व्यवसाय एवं पैशा आदि में प्रयाप्त अन्तर होता है. इस अन्तर को ध्यान में रखते हुए ग्राहक के स्तर के अनुरूप संवर्द्वनात्मक प्रयास किये जा सकते हैं. 

विलियम जे. स्टेन्टन आदि लेखकों के अनुसार – “बाजार विभक्तिकरण के कारण विपणन भी अधिक प्रभावी हो सकता है क्योंकि संवर्द्धनात्मक सन्देश तथा उसको प्रस्तुत करने हेतु माध्यमों का चयन बाजार खण्ड को केन्द्र बिन्दु मान कर किया जा सकता है.”

10. असन्तुष्ट बाजार खण्डों पर ध्यान केन्द्रित करना – बाजार विभक्तिकरण के द्वारा विपणनकर्त्ता किसी विशेष बाजार खण्ड में असन्तुष्ट ग्राहकों की जानकारी कर सकता है और यह पता लगा सकता है कि ग्राहक किन कारणों से असन्तुष्ट हैं. ग्रहको की असन्तुष्टि के कारणों का पता लगाने के बाद उनको सन्तुष्ट करने के प्रयास किये जा सकते है.

बाजार विभक्तिकरण के आधार

बाजार विभक्तिकरण विभिन्न आधारों पर किया जा सकता है तथा इन आधारों में समय के साथ-साथ परिवर्तन होते रहते है और बाजार विभाजन के नये आधार तैयार होते रहते है. विभिन्न विद्वानों की राय को ध्यान में रखते हुए बाजार विभक्तिकरण के आधार बताये जा सकते है :-

1. भौगोलिक आधार – 

भौगोलिक आधार पर विभक्तिकरण से आशय बाजार क्षेत्र को भौगोलिक इकाइयों जैसे देश, राज्य, नगर या गाँव में विभजित करना है. भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर भी यह विभाजन किया जा सकता है. जैसे कि गर्म एवं ठण्डे प्रदेश, जलवायु, पहाड़, मैदानी इलाके, पठार आदि. भारत के विभिन्न राज्यों में जलवायु में काफी अन्तर पाया जाता है. जो स्थान समुद्र के किनारे बसे है जैसे कि मुम्बई यहाँ ठण्डे पेय पदार्थ पूरे साल बेचे जा सकते हैं जबकि उत्तरी भारत के शहरों में सिर्फ ग्रीष्म ऋतु में ही ठण्डे पेय पदार्थों की मांग रहती है.

ग्रामीण एवं शहरी बाजारों की विशेषाओं में काफी अन्तर रहता है. विपणन प्रबन्धन को इन बातों को ध्यान में रखते हुए विपणन कार्य करना चाहिए क्योंकि शहरी क्षेत्रों में जिन उत्पादों का विपणन किया जाता है यह जरूरी नहीं है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी उन उत्पादों की बिक्री हो.

2. जनांकिकी आधार – 

जब किसी बाजार को जनसंख्या के विभिन्न घटकों के आधार पर विभाजित किया जाता है तो उसे जनांकिकी आधार पर विभाजन करना कहते हैं. प्रमुख जनसंख्या सम्बंधी घटक  है

  1. आयु वर्ग – किसी उत्पाद के प्रति उपभोक्ता की पसन्दगी एवं नापसन्दगी उम्र के अनुसार बदलती रहती है. बचपन में जो उत्पाद पसन्द होते हैं बड़े होने पर उनका महत्व समाप्त हो जाता है. विपणन प्रबंधक को आयु वर्ग को ध्यान रखते हुए विपणन कार्य करना चाहिए.
  2. आय – एक व्यक्ति की आय उसकी क्रय करने की शक्ति को निर्धारित करती है आय के अनुसार उपभोक्ता का विभाजन उच्च आय वर्ग, मध्यम आय वर्ग तथा निम्न आय वर्ग में किया जा सकता है.
  3. शिक्षा – शिक्षा के आधार पर अलग अलग उपभोक्ता के वर्ग बनाये जा सकते है. उदाहरण के लिए शिक्षित, अशिक्षित एवं कमपढ़े लिखे व्यक्ति. 
  4. लिंग – बाजार विभक्तिकरण ग्राहकों के लिंग के आधार पर भी किया जा सकता है. महिलाओं एवं पुरूषों के लिए अलग अलग प्रकार के उत्पादों की आवश्यकता होती है अत: विपणन प्रयास भी अलग-अलग प्रकार के करने की आवश्यकता होती है. 
  5. व्यवसाय – बाजार में विभक्तिकरण ग्राहकों के व्यवसाय धन्धे के आधार पर भी किया जा सकता है. इनको पैशेवर व्यक्ति, नौकरीपेशा, व्यवसायी आदि आधारों में बांटकर इनके लिए अलग विपणन कार्यक्रम निर्धारित किये जा सकते है.
  6. जीवन-चक्र अवस्था – एक समान आयुवर्ग के व्यक्तियों की जीवन-चक्र अवस्था अलग-अलग हो सकती है. एक समान आयु वर्ग के ग्राहक कुंवारे, शादीशुदा, विधुर, तलाकशुदा आदि हो सकते है. यह भिन्नता उनकी क्रय वरीयता एवं उनकी आवश्यकताओं में अन्तर पैदा करती है.

3. मनोवैज्ञानिक आधार –

ग्राहकों की मनोदशा या उनकी मनोवैज्ञानिक विशेषताएं ग्राहकों में अंतर उत्पन्न करती है. ग्राहक की ये विशेषताएं उनके व्यक्तिव के कारण होती है. कुछ लोग बहुत खर्चीले होते है जबकि कुछ लोग धन खर्च करना पसंद नही करते है, कुछ स्वभाव से साहसी होते है तो कुछ लोग भीरू प्रवृति के होते है. ग्राहकों की जीवन-शैली या उनके जीवन जीने का ढंग उनकी आवश्यकताओं, क्रय वरीयताओं को निर्धारित करती है.

अत: विपणनकर्ता जीवन-शैली के आधार पर भी उपभोक्ताओं का विभाजन करते हैं. इसके अलावा ग्राहकों का व्यक्तित्व भी उनकी पसन्द, नापसन्द एवं क्रय वरीयताओं का निर्धारित करता है. प्रत्येक व्यक्ति का जीवन मूल्य उसकी आवश्यकताओं एवं क्रय वरीयताओं का निर्धारण करता है. एक व्यक्ति के अनेक जीवन मूल्य हो सकते है जैसे जीवन में आनन्द, अपनत्व, संतोष, मधुर सम्बंध बनाना, सुरक्षा की भावना आदि. ग्राहकों में विद्यमान ये सभी जीवन मूल्य उसकी आवश्यकताओं का निर्धारण करते हैं.

4. लाभ आधार –

जब क्रेता किसी उत्पाद को इस आशा से क्रय करता है कि इस उत्पाद के प्रयोग से उसे लाभ होगा तो इसे लाभ आधार पर बाजार पर विभक्तिकरण कहेंगे. विपणन प्रबंधक को इसके आधार पर विपणन निर्णय लेने चाहिए. जैसे एक उपभोक्ता किसी विशेष ब्रान्ड की चाय के साथ दिये जाने वाले उपहार की वजह से उस ब्रान्ड को पसन्द करता है. इस प्रकार विपणन प्रबंधक को उपभोक्ता के किसी लाभ के प्रति विशेष झुकाव को ध्यान में रखते हुए विपणन कार्य करना चाहिए.

5. विपणन आधार –

विपणन आधार पर भी बाजार का विभक्तिकरण किया जा सकता है कुछ ग्राहक अधिक मूल्य वाले उत्पादों की और आंख उठा कर भी नही देखते जबकि कुछ ग्राहक अधिक मूल्य का ब्रान्डेड उत्पाद पसन्द खरीदना करते हैं. कुछ उपभोक्ता वस्तु की किस्म पर ज्यादा ध्यान देने वाले होते है. अत: एक उत्पादक/विपणनकर्त्ता को इन बातों का ध्यान रखते हुए विपणन प्रयास करने चाहिए ताकि उसे अधिक सफलता प्राप्त हो सके.

6. क्रय अवसर –

कुछ उपभोक्ता इस प्रकार के होते है जो विभिन्न अवसरों पर उत्पादों का क्रय करते है उदाहरण के लिए जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ, वेलैन्टाइन्स डे, आदि अवसरो पर ही कुछ उपभोक्ता द्वारा क्रय निर्णय लिये जाते हैं. कुछ लोगों दीपावली, धनतेरस, आदि दिनों पर किसी उत्पाद को क्रय करने का निर्णय लेते है.

7. ब्रान्ड निष्ठा

बाजार विभक्तिरण ग्राहकों की ब्रान्डनिष्ठा के आधार पर भी किया जा सकता है. कुछ लोग किसी विशेष ब्रान्ड के लिए पूर्ण सर्मपित होते है जबकि कुछ उपभोक्ताओं की निष्ठा बदलती रहती है. कुछ लोग ऐसे भी होते है जिनकी किसी भी ब्रान्ड के प्रति कोई निष्ठा नही होती है.

प्रभावी बाजार विभक्तिकरण के आवश्यक तत्व

बाजार विभक्तिकरण सभी संस्थाओं द्वारा किये जा सकते है किन्तु सभी बाजार विभक्तिकरण प्रभावी नही हो पाते है. अत: बाजार विभक्तिकरण को प्रभावी बनाने के लिए कुछ विशेष बातों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है जो है:-

1. मापनयोग्य – बाजार विभक्तिरण के सभी घटक मापन योग्य नहीं हो सकते है लेकिन प्रभावी बाजार विभक्तिकरण के लिए घटकों का मापन योग्य होना चाहिए. उदाहरण के लिए उपभोक्ता की आय का मापन किया जा सकता है लेकिन उसके मनोवैज्ञानिक घटकों का मापन संभव नहीं है.

2. बाजार खण्डों तक सुगम पहुंच – प्रभावी बाजार विभक्तिकरण के लिए आवश्यक है कि विपणनकर्ता न्यूनतम खर्च पर बाजार खण्डों तक पहुंच सके. वितरण माध्यमों तथा विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन के साधनों की पहुंच भी बाजार खण्डो तक सुगमता पूर्वक हो जानी चाहिए. 

3. बाजार खण्डों का उचित आकार – प्रत्येक बाजार खण्ड का आकार न तो इतना बड़ा हो कि उस पर ध्यान न दिया जा सके न इतना छोटा होना चाहिए कि विपणन प्रयास संस्था के लिए लाभ का सौदा न हो. अत: बाजार खण्डों का आकार उचित होना चाहिए. 

4. विभेद योग्यता – बाजार खण्ड में विभेद योग्यता होनी चाहिए अर्थात बाजार का प्रत्येक खण्ड दूसरे खण्ड से अलग एवं पहचानने योग्य होना चाहिए. यदि ऐसा नहीं होगा तो बाजार विभक्तिकरण प्रभावशील नहीं हो पायेगे तथा बाजार विभक्तिकरण का कोई अर्थ भी नहीं रहेगा. 

5. व्यवहारिक – बाजार खण्डों का व्यवहारिक होना इस बात पर निर्भर करता है कि बाजार खण्डों के लिए विपणन कार्यक्रम बनाना और उसकों क्रियान्वित करना संभव होना चाहिए. यदि किसी कारणवश विपणन कार्यक्रम को क्रियान्वित करना संभव नही हो तो बाजार विभक्तिकरण का कोई अर्थ नही होगा. 

6. बाजार खण्डों का स्थायी अस्तित्व – बाजार खण्ड ऐसे होने चाहिए जो स्थायी हो यदि बाजार खण्ड अल्पकालीन है तो इनके लिए बनाया गया विपणन कार्यक्रम भी अल्पकालिक होने के कारण अधिक खर्चीला होगा. अत: बाजार खण्ड ऐसे होने चाहिए कि उनके लिए लम्बे समय तक प्रभावी रहने वाला विपणन कार्यक्रम बनाया जा सके. 

7. मितव्ययी – विपणन प्रबंधकों द्वारा ऐसे बाजार खण्डों का निर्माण किया जाना चाहिए जिनमें विपणन कार्यक्रम मितव्ययतापूर्ण तरीके से संचालित किया जा सके. बाजार खण्डों का निर्माण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि बाजार खण्ड न बहुत बडे़ हो और न ही बहुत छोटे हो अन्यथा बाजार खण्ड का मितव्ययतापूर्ण तरीके से संचालन संभव नहीं होगा.

8. लाभदायी – बाजार खण्डो का बहुत बड़ा होना या छोटा होना इतना महत्व नही रखता है, जितना कि बाजार खण्डों का लाभदायी होना. अत: विपणन प्रबंधक द्वारा इस प्रकार के बाजार खण्डो का निर्माण किया जाना चाहिए जो लाभदायी हो.

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