चार्टिस्ट आन्दोलन ग्रेट ब्रिटेन के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है. रानी विक्टोरिया के शासन के प्रारंभिक वर्षों में वहाँ एक श्रमिक-आंदोलन हुआ, जिसे चार्टिस्ट आंदोलन का नाम दिया गया. यह आर्थिक कठिनाईयों पर आधारित एक राजनीतिक-आंदोलन था, जिसका अंतिम लक्ष्य समाज में परिवर्तन लाना था.
देश में होने वाली औद्योगिक-क्रांति ने देश के सामाजिक और आर्थिक ढाँचे में बड़ा परिवर्तन प्रस्तुत किया. इसने मध्यम-वर्ग की स्थिति को तो ठीक कर दिया, परन्तु इसके कारण मजदूर-वर्ग की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया. आर्थिक क्षेत्र में इसके कारण मजदूर वगर् की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया. आर्थिक क्षेत्र में धनी और निर्धनों के बीच की खाई गहरी ही बनी रही. यही नहीं वरन् वह और गहरी होती गयी.
1832 ई. के सुधार ने मध्यम वर्ग को तो राजनीतिक अधिकार प्रदान किये थे, परंतु मजदूर वर्ग को इससे कोई लाभ नहीं हुआ था. मजदूरों के बीच बेकारी और भूखमरी फैल रही थी और अन्य परिस्थितियाँ उनके बीच असंतोश को उत्पन्न कर रही थीं. इससे वहाँ अनेक मज़दूर -आंदोलनों का जन्म हुआ. इन्हें में से एक महत्वपपूर्णा आन्दोलन-चार्टिस्ट आंदोलन था.
राबर्ट-ओवेन ने 1834 ई. में एक ‘वृहत राष्ट्रीय मजदूर संघ’ की स्थापना की थी. 8 मई 1838 ई. को लंदन के मजदूरों की सभा ने अपनी मांगों का एक प्रपत्र तयै र किया, जो लोक-प्रपत्र के नाम से जाना गया. इस प्रपत्र द्वारा चार्टिस्टों ने अपनी मुख्य मांगे इस प्रकार प्रस्तुत कीं-
- वार्षिक पार्लियामेटं ,
- वयस्क मताधिकार,
- गुप्त मतदान,
- संसद की सदस्यता के लिए सम्पित्त की योग्यता को समाप्त करना,
- समान निर्वाचन क्षेत्र,
- संसद के सदस्यों का वेतन देना.
इस प्रकार चार्टिस्टों द्वारा छह सूत्रीय मांगे पेश की गई. इन मांगों का संबंध देश के मजदरूों में व्याप्त राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक असंतोश से था.
चार्टिस्ट आंदोलन के कारण
चार्टिस्ट आंदोलन के सामाजिक कारण
इंग्लैण्ड की औद्योगिक क्रान्ति ब्रिटेन की सामाजिक व्यवस्था को परिवर्तित कर दिया. इसके कारण मध्यम वर्ग सम्पन्न होता गया जब कि मजदूर-वर्ग निर्धन. फलत: अमीर और गरीब की सामाजिक स्थिति में अंतर बढ़ता गया. इससे सामाजिक एकता नष्ट होती गयी. यह स्थिति देश के अंदर दो राश्ट्र होने जैसे अनुभव का आभास कराती थी, जिसमें विभिन्न वर्गों में आपस में कोई सहानुभूति न थी.
चार्टिस्ट आंदोलन के आर्थिक कारण
औद्योगिक-क्रान्ति के कारण देश में आर्थिक असमानताएँ भी बढ़ती गयी. देश में बड़े-बड़े उद्योगो की स्थापना और विकास के कारण संपित्त में वृद्धि तो हो रही थी, पर इसका लाभ कुछ लोगों को ही मिल रहा था. धन का समान वितरण न होने के कारण मध्यम-वर्ग ओर उद्योगपति ही धनी होता गया, जबकि मजदूरों को उनका उचित हिस्सा नहीं मिल पा रहा था. इस प्रकार औद्योगीकरण का दुश्परिणाम मजदूर-वर्ग को भुगतना पड़ रहा था.
चार्टिस्ट आंदोलन के राजनीतिक कारण
देश की राजनीति में भी मजदूरों का कोई महत्व न था. सन् 1832 ई. का सुधार अधिनियम उनकी स्थिमि में सुधार लाने में असफल सिद्ध हुआ. ऐसी स्थिति में देश के मजदूरों ने राजनीतिक-अधिकार प्राप्त करना आवशयक समझा. वे यह मानते थे कि इसके बिना उनकी सामाजिक ओर आर्थिक स्थिति में सुधार लाना संभव न होगा.
इसीलिए उन्होंने अपने आंदोलनों द्वारा अनेक मांगें रखी. वे यह भी मानते थे कि संसद में जाने के बाद ही वे अपने अधिकारों को प्राप्त करने में समर्थ हो सकेगे . इसी कारण चार्टिस्ट-आन्दोलन ने राजनीतिक-आंदोलन का रूप ले लिया था. राजनीतिक-अधिकार प्राप्त करने के बाद ही वे आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों के लिए कोशिश करना चाहते थे. इस प्रकार इस आंदोलन के अनेक कारण थे. विलियम जॉनेट और फर्गुस ओकानेर इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे.
चार्टिस्ट आंदोलन की प्रगति
14 जून सन् 1839 ई. को चार्टिस्टों ने अपनी माँगों से संबंधित प्रथम आवेदन पत्र संसद के समक्ष पेश किया, जिस पर लाखों लोगों के हस्ताक्षर थे. इपर संसद ने उस पर विचारकरने से इंकार कर दिए. अपना प्रार्थनापत्र अस्वीकार किए जाने के कारण चार्टिस्टों ने जो आंदोलन प्रारंभ किया, उसका नेतृत्व ओकानेर, ऐटबुड और ओब्रायन के हाथों में आ गया.
मन्मथशायर में एक भयंकर विद्रोह किया गया. जब विद्रोहियों ने अपने नेता हेनरी विन्सेटं को छुड़ाने न्यूपाटेर् की जेल पर आक्रमण किया, तब सैनिकों को सुरक्षा की दृष्टि से गोली चलानी पड़ी. इससे तीस लोग मारे गये और अनेक घायल हुए. इस घटना को ‘न्यूपोर्ट के युद्ध’ का नाम दिया गया. इस घटना के बाद चार्टिस्टों के अनेक नेता कैद कर लिए गए और कुछ को निर्वाचित कर दिया गया. इसके बावजूद चार्टिस्टों का आन्दोलन जारी रहा, लेकिन इसके पशचात उन्होंने शक्ति-प्रदशर्न का मार्ग छोड़ दिया.
1841 ई. में चार्टिस्टों ने अपना दूसरा आवेदन पत्र प्रस्तुत किया, पर संसद ने उस पर भी विचार नहीं किया. 1848 ई. में जब फ्रासं में तीसरी क्रान्ति हुई तब उससे प्रोत्साहित होकर चार्टिस्टों ने पुन: आन्दोलन छेड़ दिया.
उन्होंने इस बार 50 लाख लोगों के हस्ताक्षरपूर्ण तीसरी आवदे न पत्र संसद के समक्ष प्रस्तुत करने का निशचय किया. उसे उन्होंने एक बड़े जुलूस के साथ संसद तक ले जाने का निशचय किया, पर उन्हें ऐसा करने से राके दिया गया.
संसद ने इस आवदे न पत्र पर विचार करने करने के लिए एक समिति की नियुक्ति की. जाँच से यह ज्ञात हुआ कि उनमें से अनेक हस्ताक्षर जाली थे. उस समय वे चॉर्टिस्टों का महत्व घट गया और लोग उनका मजाक उड़ाने लगे. धीरे-धीरे उनका नैतिक हृास हो गया. इस प्रकार एक अच्छे उद्देशय के बावजूद यह आंदोलन असफल रहा.
चार्टिस्ट आंदोलन के असफलता के कारण
चार्टिस्ट आंदोलन की असफलता के निम्न प्रमुख कारण थे-
- चार्टिस्ट आंदोलन से संबंधित लोग आपस में विभाजित थे. उनमें से कुछ लोग हिंसक तरीके अपनाना चाहते थे, जबकि कुछ लोग शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन चलाना चाहते थे. इस मतभेद के कारण उनकी शक्ति कम हुई.
- उनके साधन और तरीके अपर्याप्त और अनुचित थे. उन्होंने जिस प्रकार से विद्रोह किया और जाली हस्ताक्षर से युक्त आवेदन-पत्र तैयार किया, इससे वे जन-सहानुभूति से वंचित हो गए. अभीश्ट जन-समर्थन के अभाव में उनका आंदोलन कुछ समय के पशचात महत्वहीन हो गया.
- ब्रिटिश-सरकार ने अपनी ओर से ऐसा कानून पारित किया, जिससे देश के मजदूरों की स्थिति में सुधार आया. फैक्ट्री और श्रम कानूनों के निर्माण से चार्टिस्ट आन्दोलन को शक्ति और उपयाेि गता में कमी आयी.
- कृशि, व्यापार की उन्नति और अनाज कानून के समाप्त हो जाने से देश की आर्थिक स्थिति में पूर्व की अपेक्षा सुधार हुआ तथा वस्तुओं के मूल्यों में कमी आयी. इन उपायों के कारण आंदोलन के समर्थकों की संख्या कम होती गयी.
- योग्य नेतृत्व के अभाव के कारण भी यह आन्दोलन सफल न हो सका. चार्टिस्टों ने सभी मजदूरों को संगठित नहीं किया था. इस कारण उन्हें संपूर्ण मजदूरों का सहयोग प्राप्त नहीं हो सका. उनके लक्ष्य स्पश्ट और निर्धारित नहीं थे.
- हिंसा, दंगों और हड़ताल के कारण चार्टिस्टों ने जन-समथर्न खो दिया, क्यों वहां की जनता शान्तिपूर्ण तरीके से ही परिवर्तन लाने में विशवास करती थी. झूठे हस्ताक्षर के कारण भी उनकी असलियत सामने आ गयी थी, इसलिए उनका आंदोलन हंसी-मजाक से समाप्त हो गया.
- उक्त कारणों के परिणामस्वरूप यद्यपि चार्टिस्ट आंदोलन असफल रहा, परंतु उसका अपना महत्व हैं. आंदोलन के असफल होने के बावजूद उसके उद्देशय जीवित रहे. इस संदर्भ में कार्लायल ने लिखा है, ‘‘ उसके सिद्धांत मौलिक और व्यापक थे. उनमें ऐसी बातें न थीं, जो कल ही आरंभ हुई हों और आज या कल समाप्त गो जाए’ ‘. इसी कारण उनकी सभी मांगे धीरे-धीरे स्वीकार कर ली गयीं. गुप्त मतदान, व्यस्क मताधिकार, संसद के सदस्यों को वेतन देने आदि बातें स्वीकार कर ली गयीं.
- यह पहला श्रमिक-आंदोलन था, जिसकी ओर देश की जनता और सरकार का ध्यान आकृश्ट हुआ. इसने देश में भावी सुधारों के लिए मार्ग प्रशस्त किया. इस प्रकार असफल होने के बावजूद यह आंदोलन काफी उपयोगी और महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ.
- 19वीं सदी का साहित्य भी इस आंदोलन से प्रभावित हुआ तभी तो कार्लायल जैसे विद्वान ने इससे संबंधित साहित्य की रचना की.