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कंप्यूटर सॉफ्टवेयर क्या हैं? इसके कितने प्रकार हैं?

नमस्कार पाठकों. आज का हमारा टॉपिक है कंप्यूटर सॉफ्टवेयर. दोस्तों, इस लेख में हम सॉफ्टवेयर के बारे में जानेंगे, जैसे की सॉफ्टवेयर क्या होता है? सॉफ्टवेयर कितने प्रकार का होता है? सिस्टम सॉफ्टवेयर क्या हैं? एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर क्या है? ट्रांसलेटर और कम्पाइलर क्या हैं इत्यादि?

कंप्यूटर सॉफ्टवेयर क्या है? (What is Computer Software in Hindi?)

सॉफ्टवेयर, प्रोग्राम तथा निर्देशों का एक समूह होता है जो कंप्यूटर को किसी कार्य को पूरा करने का निर्देश देता है. यह प्रोग्राम, नियम और क्रियाओं का वह समूह है जो कंप्यूटर सिस्टम को नियंत्रित करता है. इस प्रकार यह कंप्यूटर के विभिन्न हार्डवेयर के बीच समन्वय स्थापित करता है.

दूसरे शब्दों में, कंप्यूटर प्रोग्राम का वह समूह है जो कंप्यूटर की कार्य प्रणाली को नियंत्रित करता है, सॉफ्टवेयर कहलाता है.इस प्रकार यह डाटा, प्रोग्राम, इंस्ट्रक्शन आदि का कलेक्शन होता है जो की पहले से बताए गए निर्देशों के हिसाब से अलग-अलग कार्यों को करता है. सॉफ्टवेयर कंप्यूटर का महत्वपूर्ण भाग होता है इसके बिना हार्डवेयर से हमारा संपर्क स्थापित नहीं होगा और हम कंप्यूटर पर कोई भी कार्य नहीं कर पाएंगे.

सॉफ्टवेयर कंप्यूटर का आभाषी भाग होता है, जिसे हम ना तो देख सकते हैं और ना ही छू सकते हैं. मतलब हार्डवेयर कंप्यूटर का शरीर हैं तो सॉफ्टवेयर आत्मा. अलग-अलग कार्य को करने के लिए हम अलग-अलग सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हैं.

कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के प्रकार (Types of Computer Software):

TYPES OF COMPUTER SOFTWARE

यह तीन प्रकार का होता हैं. इसे निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता हैं:

  1. सिस्टम सॉफ्टवेयर
    • ऑपरेटिंग सिस्टम
    • लैंग्वेज ट्रांसलेटर
  2. एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर
  3. यूटिलिटी सॉफ्टवेयर

सिस्टम सॉफ्टवेयर (System Software)

यह किसी भी कंप्यूटर सिस्टम का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है .यह हार्डवेयर को मैनेज एवं कंट्रोल करता है. इस प्रकार सिस्टम सॉफ्टवेयर, कंप्यूटर तथा उपयोगकर्ता के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य करता है. सिस्टम सॉफ्टवेयर ही पेरिफेरल डिवाइस का नियंत्रण, समन्वयन और महत्तम उपयोग को सुनिश्चित करता हैं.

सिस्टम सॉफ्टवेयर किसी भी कंप्यूटर सिस्टम का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है. इसके बिना यूजर कंप्यूटर पर किसी भी प्रकार का कार्य को नहीं कर सकता है. यह दूसरे सॉफ्टवेयर को चलाने के लिए एक प्लेटफार्म उपलब्ध करता है. यानी यह यूजर को एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर प्रयोग करने के लिए एक प्लेटफार्म प्रोवाइड करता है. इसके कारण ही यूजर अनेक प्रकार के एप्लीकेशन को प्रयोग कर पाता हैं. इसका दो प्रकार होता है. पहला है ऑपरेटिंग सिस्टम और दूसरा लैंग्वेज ट्रांसलेटर.

ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System)

यह एक सिस्टम सॉफ्टवेयर है जो कंप्यूटर तथा यूजर के मध्य इंटरफेस का कार्य करता है. ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर के ऑन होने के बाद लोड होने वाला पहला प्रोग्राम होता है. यह किसी भी कंप्यूटर में होने वाली सभी क्रियाओं को कंट्रोल एवं मैनेज करने का कम करता है. ऑपरेटिंग सिस्टम किसी भी कंप्यूटर का मुख्य सॉफ्टवेयर होता है. इसके बिना यूजर किसी भी कार्य को नहीं कर सकता. ऑपरेटिंग सिस्टम में आपके सिस्टम बूट प्रोग्राम आदि होते हैं.

ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.

लैंग्वेज ट्रांसलेटर (Language Translater)

लैंग्वेज ट्रांसलेटर भी एक सिस्टम सॉफ्टवेयर है. यह कंप्यूटर को विभिन्न भाषाओं में किए गए कोडिंग को समझने में मदद करता हैं. वास्तव में एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के रूप में कंप्यूटर सिर्फ बाइनरी भाषा (0 और 1 या ऑन और ऑफ) को ही समझता हैं. इस बाइनरी भाषा में कंप्यूटर के लिए लिखे गए सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम मशीनी भाषा कहलाती है.

चूँकि कम्प्यूटर में कई प्रकार के भाषाओं में कोडिंग की गई होती हैं. कई सहायक उपकरणों की भाषाए भी भिन्न होती हैं. लैंग्वेज ट्रांसलेटर इन्हें बाइनरी या मशीनी भाषा में बदलकर कंप्यूटर तक पहुंचता हैं. यह तीन प्रकार के होते हैं, पहला कंपाइलर, दूसरा इंटरप्रेटर और तीसरा असेंबलर.

सोर्स प्रोग्राम वह प्रोग्राम है जिसे प्रोग्रामर ने एक प्रोग्रामिंग भाषा में लिखा है. अक्सर ये कंप्यूटर को समझ आने वाले मशीनी या बाइनरी भाषा में नहीं होते हैं. इसलिए कंप्यूटर इसे समझने और निष्पादन करने के लिए मशीन की भाषा या बाइनरी कोड में अनुवादित करता हैं. यह अनुवाद आमतौर पर कंपाइलर या इंटरप्रेटर जैसे ट्रांसलेटर की मदद से किया जाता है.

(1) कम्पाइलर (Compiler): यह उच्च स्तरीय भाषा (HLL) को मशीनी भाषा में बदलता हैं. यह पुरे प्रोग्राम को एकसाथ अनुवादित कर अशुद्धियों को लाइन के क्रम में सूचित करता हैं. यह सिंटैक्स त्रुटियों से प्रोग्रामर को अवगत करवाता है. प्रोग्रामर द्वारा इन अशुद्धियों को दूर करने पर प्रोग्राम सम्पादित हो जाती हैं और सोर्स प्रोग्राम की जरुरत नहीं रहती हैं. प्रत्येक HLL के अनुसार कम्पाइलर होता हैं.

अनुवादित कोड, ऑब्जेक्ट कोड/प्रोग्राम के रूप में कंप्यूटर के मेमोरी में सुरक्षित हो जाता हैं. परन्तु यह किर्यान्वित (run) नहीं होता हैं. इसे ऑब्जेक्ट कोड के द्वारा किर्यान्वित किया जाता हैं. इसे बाद में बिना कम्पाइलर के निष्पादित किया जा सकता है.

GCC (GNU Compiler Collection), Microsoft Visual C++ और Clang आदि लोकप्रिय कम्पाइलर हैं.

(2) इंटरप्रेटर (Interpreter): यह भी एक ट्रांसलेटर है जो सोर्स कोड को मशीन भाषा में अनुवाद करता है. लेकिन इसके काम करने का तरीका कम्पाइलर से अलग हैं. कम्पाइलर पूरे प्रोग्राम को एक बार में अनुवाद करता है, जबकि इंटरप्रेटर कोड को एक लाइन या एक वक्तव्य (statement) को एक बार में अनुवाद करता है और तुरंत निष्पादन करता है. इसलिए किसी भी लाइन या वक्तव्य में कोई खामी जल्द पता चलता हैं. एक लाइन की खामी दूर होने पर ही यह यह अगले को अनुवादित करता हैं.

इंटरप्रेटर का आउटपुट ऑब्जेक्ट प्रोग्राम नहीं होता है, बल्कि यह सॉफ्टवेयर के क्रियान्वयन का परिणाम होता है. इसलिए, इंटरप्रेटर को हरेक बार उपयोग करने पर सोर्स कोड को पुनः पढ़ना और अनुवाद करना पड़ता है. इस वजह से, इंटरप्रेटर को कंप्यूटर की मेमोरी में सुरक्षित रखा जाता है ताकि इसे बार-बार उपयोग किया जा सके.

Python इंटरप्रेटर, Ruby इंटरप्रेटर, JavaScript इंटरप्रेटर (जैसे Node.js) और Perl इंटरप्रेटर इसके कुछ उदाहरण हैं.

(3) असेम्बलर (Assembler): यह असेंबली या निम्न स्तरीय भाषा में लिखे गए सोर्स कोड को मशीनी भाषा या बाइनरी कोड में अनुवाद करता है. असेंबली भाषा भी एक निम्न-स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा है जो मशीन कोड के समकक्ष होती है. लेकिन इसमें मानव-पठनीय निर्देश होते हैं.

असेम्बलर सॉफ्टवेयर को कम्प्यूटर निर्माताओं द्वारा उपलब्ध करवाया जाता हैं. यह हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर के प्रकार के अनुसार निर्मित होता हैं. अलग-अलग प्रोसेसर के लिए असेम्बलर का प्रोग्रामिंग अलग-अलग होता है.

असेम्बलर द्वारा अनुवादित मशीन या ऑब्जेक्ट कोड कंप्यूटर में एक जगह एकत्रित होता है, जिसे कंप्यूटर मेमोरी में स्थापित कर निष्पादित करने के लिए तैयार किया जाता है.

उदाहरण के लिए, यदि असेंबली कोड में कोई निर्देश MOV A, B हो, तो असेम्बलर इसे मशीन भाषा में अनुवाद करेगा ताकि CPU इसे सीधे निष्पादित कर सके.

एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software)

एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर विशेष कार्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले प्रोग्राम होते हैं. इन्हें यूजर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया जाता हैं. ये विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के रूप में आते हैं, जैसे:

  • डॉक्यूमेंट बनाना: वर्ड प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर (उदाहरण- MS Word)
  • प्रेजेंटेशन बनाना: प्रेजेंटेशन सॉफ्टवेयर (उदाहरण- MS PowerPoint)
  • मार्कशीट बनाना: स्प्रेडशीट सॉफ्टवेयर (उदाहरण- MS Excel)
  • म्यूजिक सुनना: म्यूजिक प्लेयर
  • वीडियो देखना: वीडियो प्लेयर

इस प्रकार विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर का उपयोग करना पड़ता है.

इसके दो प्रकार होते हैं: (1) विशेषीकृत और (2) सामान्य

(1) विशेषीकृत एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर उपयोगकर्ता के ख़ास जरूरतों के अनुसार बनाया जाता हैं. अन्य लोगों के लिए इसकी जरूरत न के बराबर होती हैं. रेलवे टिकटिंग सॉफ्टवेयर, मॉल में इन्वेंटरी निगरानी का सॉफ्टवेयर, हवाई जहाज के नियंत्रण के लिए सॉफ्टवेयर इत्यादि इसके कुछ उदाहरण हैं.

(2) सामान्य एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर खासकर आम उपयोगकर्ताओं को ध्यान में रखकर बनाया जाता हैं. वेब ब्राउज़र, वर्ड प्रोसेसिंग, प्रेजेंटेशन, स्प्रेडशीट, म्यूजिक प्लेयर, वीडियो प्लेयर, डेटाबेस, ग्राफिक्स, CAD और डेस्कटॉप पब्लिशिंग सॉफ्टवेयर इसके उदाहरण है.

Types of General Application Softwares
विभिन्न OS में उपलब्ध कुछ सामान्य एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर

अन्य सॉफ्टवेयर (Other Softwares)

1. यूटिलिटी सॉफ्टवेयर (Utility Software)

यूटिलिटी सॉफ्टवेयर कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का एक प्रकार है. इसका मुख्य उद्देश्य सिस्टम की कार्यक्षमता और दक्षता को बनाए रखना और सुधारना है. यह सॉफ्टवेयर सामान्यतः सिस्टम मेंटेनेंस, फाइल मैनेजमेंट, डाटा बैकअप, और सुरक्षा जैसे कार्यों को संभालने के लिए उपयोग किया जाता है. यह उपयोगकर्ता को विभिन्न तकनीकी समस्याओं से निपटने में मदद करता है.

यूटिलिटी सॉफ्टवेयर के निम्न उदाहरण है:

  • एंटीवायरस सॉफ्टवेयर: यह मालवेयर और वायरस से सुरक्षा प्रदान करता है.
  • डिस्क क्लीनअप टूल: यह अनावश्यक फाइलों को हटाकर डिस्क स्पेस खाली करता है.
  • फाइल मैनेजर: यह फाइलों और फोल्डरों का प्रबंधन करने में मदद करता है.
  • बैकअप सॉफ्टवेयर: यह महत्वपूर्ण डाटा का बैकअप बनाने में सहायक होता है.
  • डिफ्रैगमेंटेशन टूल: यह हार्ड ड्राइव को ऑप्टिमाइज कर उनकी कार्यक्षमता बढ़ाता है.
  • डाटा कम्प्रेशन: ये बड़े मेमोरी साइज वाले फाइलों को कम आकार में बदल देते हैं. इससे डाटा को ऑनलाइन ट्रांसफर करना आसान हो जाता हैं. WinRAR, 7-Zip और WinZip इसके उदाहरण है. आजकल विभिन्न प्रकार के फाइलों को कम्प्रेस करने के लिए ऑनलाइन सॉफ्टवेयर टूल भी उपलब्ध है.

2. सॉफ्टवेयर पैकेज (Software Package)

सॉफ्टवेयर पैकेज एक या एक से अधिक प्रोग्रामों का संग्रह होता है. इसे एक साथ एक विशिष्ट प्रकार के कार्य या कार्यों के समूह को संपन्न करने के लिए डिज़ाइन किया गया होता है. Microsoft Office एक सॉफ्टवेयर पैकेज है, जिसमें Word, Excel, PowerPoint आदि शामिल हैं. Adobe Creative Suite भी इसी श्रेणी में आता हैं, जिसमें Photoshop, Illustrator, InDesign आदि शामिल हैं.

3. रिटेल सॉफ्टवेयर (Retail Software)

इन्हें ओवर द काउंटर (OTC) सॉफ्टवेयर भी कहा जाता हैं. यह एक व्यक्ति के इस्तेमाल के लिए निश्चित राशि या छूट के साथ उपलब्ध होते हैं. इसे एकमुश्त खरीद (one-time purchase) या सदस्यता मॉडल (subscription model) के तहत बेचा जाता है. इसलिए इन्हें रिटेल सॉफ्टवेयर कहा जाता हैं. MyBillBook, QuickBooks, Adobe Photoshop, Tally, MS Office और MS Windows इसके उदाहरण हैं.

4. ओईएम सॉफ्टवेयर (OEM Software)

OEM या Original Equipment Manufacturer सॉफ्टवेयर हार्डवेयर निर्माताओं द्वारा उत्पादों के साथ प्रदान किया जाता हैं. इस सॉफ्टवेयर के बिना ख़रीदा गया हार्डवेयर किसी काम का नहीं होता हैं. इसलिए इनका कीमत मूल-उत्पाद में शामिल करके एकसाथ बंडल में बेचा जाता हैं. ये ख़रीदे गए उत्पाद के साथ प्रयोग करने के लिए लाइसेंस प्राप्त होता है और आमतौर पर प्री-इंस्टॉल्ड होता हैं. कंप्यूटर के साथ प्री-इंस्टॉल्ड ऑपरेटिंग सिस्टम और नए प्रिंटर के साथ दिया गया ड्राइवर सॉफ़्टवेयर इसके उदाहरण हैं.

5. पब्लिक डोमेन सॉफ्टवेयर (Public Domain Software)

ये कॉपीराइट मुक्त सॉफ्टवेयर होते हैं, जिसका इस्तेमाल कोई भी व्यक्ति बिना किसी प्रतिबंध कर सकता है. इस प्रकार का सॉफ़्टवेयर अक्सर सार्वजनिक संपत्ति होता है. इसके उपयोग के लिए कोई लाइसेंस शुल्क या अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है. इसे बिना किसी प्रतिबंध के संशोधित या वितरित भी किया जा सकता है. कई बार निर्माता अपने पुराने सॉफ्टवेयर या टूल को मुफ्त में जारी कर ऐसे सॉफ्टवेयर को जन्म देते हैं. इन्हें शेयरवेयर या फ्रीवेयर भी कहा जाता हैं. ब्लेंडर (Blender), नुप्लोट(Gnuplot), लिनक्स कोर यूटिलिटीज (GNU Core Utilities) और टेक्स्ट एडिटर VI इसके उदाहरण हैं.

6. शेरवेयर(Shareware)

इसे कुछ समय के लिए मुफ्त में इस्तेमाल किया जा सकता हैं. इसके बाद शुल्क चुकाना होता है.

7. फ्रीवेयर (Freeware)

ये इस्तेमाल के लिए मुफ्त में उपलब्ध होते हैं. लेकिन इनके सोर्स कोड में बदलाव नहीं किया जा सकता हैं और कॉपीराइट इसके मालिक के पास रहती हैं.

8. ग्रुपवेयर (Groupware)

इन्हें कॉलैबोरेटिव ग्रुप सपोर्ट सॉफ्टवेयर भी कहा जाता है. ये कई उपयोगकर्ताओं को एक साथ काम करने, सहयोग करने और सूचनाओं का आदान-प्रदान करने में सहायता करता है. यह सॉफ़्टवेयर मुख्य रूप से टीमवर्क और परियोजना प्रबंधन को सुधारने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है.

ये ईमेल, चैट, वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग, आदि द्वारा टीम के सदस्यों के बीच संवाद को सुगम बनाते हैं. कैलेंडर में मीटिंग शेड्यूल करने की सुविधा होता है. टीम के सदस्य दस्तावेज़ों को साझा कर सकते हैं और उन पर सहयोग कर सकते हैं. इस तरह यह रिमोट एक्सेस को भी संभव बनाता हैं. Microsoft Teams, Slack, Trello, Google Workspace जैसे Gmail, Google Drive, Google Docs, इत्यादि ग्रुपवेयर के उदाहरण हैं.

9. फर्मवेयर (Firmware)

अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक एशर ओप्लर ने अपने प्रकाशन डेटामेशन के 1967 के अंक में फर्मवेयर शब्द गढ़ा था. उन्होंने हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के बीच एक प्रकार के माइक्रोप्रोग्राम का वर्णन करने के लिए इसका उपयोग किया था. आज इसे फर्म और सॉफ्टवेयर का संयोजन माना जाता हैं.

फर्मवेयर किसी नए हार्डवेयर के उपयोग के बदले पुराने हार्डवेयर को निर्देशित कर काम करने में सक्षम बनाता है. इससे अतिरिक्त हार्डवेयर की जरूरत नहीं होती है और लागत में कटौती होता है. जैसे गुना करने के लिए कई बार जोड़ने का निर्देश देना फर्मवेयर का काम है.

यह कंप्यूटर, मोबाइल फोन, राउटर, माइक्रोवेव और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों में पाया जाता है. फर्मवेयर अपडेट्स हार्डवेयर डिवाइस के कार्यों को सुधार सकते हैं और बग्स को ठीक कर सकते हैं.

10. डिबगिंग और टेस्टिंग (Debugging and Testing)

कम्प्यूटर प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर में त्रुटि बग कहलाते हैं. इन्हें ढूँढना और मरम्मत करना डिबगिंग कहलाता है. डिबगिंग के तैयार किया गया सॉफ्टवेयर, डीबग्गर और जिस सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम के मदद से बग को ठीक किया जाता है, पैच कहलाता हैं. सॉफ्टवेयर के रिलीज़ करने से पहले वाली जांच टेस्टिंग कहलाता है.

किसी भी प्रोग्राम में दो प्रकार की गलती होती हैं:

(1) सिंटेक्स की गलती (Syntax Error): प्रत्येक प्रोग्रामिंग के लिए एक निर्धारित नियम और भाषा होती है. इसे सिंटेक्स रूल कहा जाता है. इसमें किसी प्रकार की गलती सिंटेक्स एरर कहलाता है. यह कोड को कंपाइल या इंटरप्रेट करते समय उत्पन्न होती है. यानी कम्पाइलर और इंटरप्रेटर प्रोग्राम के सिंटेक्स एरर को पकड़ते है. इसे ठीक करने के बाद ही प्रोग्राम काम करता है.

उदाहरण:

Python
# गलत सिंटैक्स (Syntax Error)
print("Hello, world!"

इस उदाहरण में, अंतिम ब्रैकेट बंद नहीं किया गया है, जिससे Syntax Error उत्पन्न होती है. इसे सुधारने के लिए:

Python
# सही सिंटैक्स
print("Hello, world!")

इस प्रकार सिंटैक्स त्रुटियों को सही करके प्रोग्राम को सफलतापूर्वक निष्पादित किया जा सकता है.

(2) लॉजिक एरर (Logic Error): किसी प्रोग्राम के किर्यान्वयन के बाद विभिन्न परिणाम हो सकते हैं. सभी परिणामों पर उचित विचार न किए जाने पर लॉजिक एरर उत्पन्न होता है.

उदाहरण:

मान लीजिए, हमारे पास एक ऐसा प्रोग्राम है जो दो संख्याओं का औसत निकालता है:

Python
# Logic Error का उदाहरण
def calculate_average(a, b):
    return (a + b) / 2

result = calculate_average(10, 20)
print("Average is:", result)

ऊपर दिए गए कोड में कोई सिंटैक्स एरर नहीं है. यह सही ढंग से निष्पादित भी होगा. लेकिन मान लीजिए कि प्रोग्रामर चाहता था कि औसत का परिणाम पूर्णांक (integer) हो, तो सही कोड होना चाहिए:

Python
# Logic Error को ठीक किया गया
def calculate_average(a, b):
    return (a + b) // 2

result = calculate_average(10, 20)
print("Average is:", result)

यहाँ // ऑपरेटर का उपयोग पूर्णांक विभाजन के लिए किया गया है. इस प्रकार, Logic Error प्रोग्राम की इच्छित कार्यप्रणाली में गलती होती है, जिसे प्रोग्राम के तर्क को सही करके ठीक किया जा सकता है.

10. कर्नेल (Kernel)

कंप्यूटर का पूरा ओएस इसी पर आधारित होता है. इसे कंप्यूटर का सोर्स कोड भी कहा जाता है. कंप्यूटर के ओएस का मुख्य घटक के रूप में यह हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के बीच मध्यस्थता करता है. यह कंप्यूटर प्रणाली के संसाधनों का प्रबंधन करता है. साथ में, विभिन्न हार्डवेयर घटकों के साथ सॉफ्टवेयर अनुप्रयोगों को संप्रेषण करने की अनुमति भी देता है.

Linux Kernel व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला मोनोलिथिक Kernel है. वहीं, Windows NT Kernel का उपयोग Microsoft Windows OS में किया जाता है.

11. BIOS (Basic Input/Output System)

यह एक प्रकार का फर्मवेयर हैं जो मदरबोर्ड में बने स्थायी रोम में सुरक्षित रहता है. कंप्यूटर ऑन होने पर यह पासवर्ड और हार्डवेयर को जांचता है और सिस्टम को उपयोग लायक बनाता है. इसके द्वारा जांचे गए हार्डवेयर की खामी भी मॉनिटर पर प्रदर्शित की जाती है. जांच की यह प्रक्रिया पोस्ट (Power On Self Test) कहलाता हैं. यह ओएस को चालू भी करता है. अवार्ड BIOS, एएमआई BIOS (American Megatrends Inc.) और फीनिक्स BIOS इसके उदाहरण हैं.

12. बूटिंग (Booting)

यह कंप्यूटर को चालु करने की प्रक्रिया है. इसे बूट स्ट्रैप (Boot Strap) भी कहा जाता है. बिजली सप्लाई शुरू होने पर BIOS कम्प्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) को मुख्य मेमोरी में डाल देता है. जब ओएस पूरी तरह लोड हो जाता है तो कंप्यूटर उपयोग के लिए तैयार हो जाता है. हार्ड ड्राइव (अधिकांश उपयोग में), फ्लॉपी डिस्क ड्राइव और सीडी ड्राइव आदि बूट डिवाइस के उदाहरण हैं.

13. डिवाइस ड्राइवर (Device Drive)

यह एक प्रकार का सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन होता है जो एक हार्डवेयर डिवाइस (जैसे पर्सनल कंप्यूटर) को दूसरे हार्डवेयर डिवाइस (जैसे प्रिंटर) के साथ संवाद करने में सक्षम बनाता है. इसे सॉफ्टवेयर ड्राइवर भी कहा जा सकता है.

ये ओएस का अन्य परिधीय हार्डवेयर डिवाइस के बीच संचार को सुगम बनाते हैं. प्रत्येक ड्राइवर में एक विशेष हार्डवेयर डिवाइस या सॉफ्टवेयर इंटरफेस के बारे में जानकारी होती है. यह जानकारी अन्य प्रोग्रामों – जिसमें अंतर्निहित ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) भी शामिल है – के पास नहीं होती.

आजकल कई ओएस में डिवाइस ड्राइवर की जानकारी दर्ज होती हैं. इन्हें Plug and Play Device कहा जाता है. इसके न होने पर कंप्यूटर द्वारा इसे अलग से लोड करने का निर्देश दिया जाता है.

14. यूजर इंटरफ़ेस (User Interface)

यूजर या उपयोगकर्ता इंटरफेस हमें कंप्यूटर के मॉनिटर या स्क्रीन पर दिखने वाला डिज़ाइन हैं. यह यूजर और ऑपरेटिंग सिस्टम के बीच लिंक होता है. यूजर, कंप्यूटर को डेटा और निर्देश प्रदान करता है. मशीन इस सूचना के साथ प्रतिक्रिया करती है. इसे मानव-कंप्यूटर इंटरफेस (Human-Computer Interface, HCI) भी कहा जाता है.

यूजर इंटरफेस के प्रकार:

मेनू-आधारित इंटरफेस: स्क्रीन पर कई मेनू प्रदान करता है जो कार्यों को पूरा करने में मदद करते हैं.
कमान्ड-लाइन इंटरफेस (CLI): टेक्स्ट-आधारित इनपुट और आउटपुट के साथ एक कंप्यूटर इंटरफेस है.
फॉर्म-आधारित इंटरफेस: डेटा प्रविष्टि के लिए कागजी फॉर्म के समान कंप्यूटर इंटरफेस.
ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (GUI): ग्राफिकल आइकन जैसे बटन, विंडो, टैब्स आदि का उपयोग करता है.
नेचुरल लैंग्वेज इंटरफेस (NLI): प्राकृतिक भाषा प्रश्नों को कम्प्यूटर समझने योग्य बनाता है.

वास्तव में यूजर इंटरफ़ेस ही यूजर को कंप्यूटर से जोड़ता है. उपयोग में आसान होने के कारण ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (GUI) का व्यापक उपयोग होता है. macOS, GNOME, Ubuntu Unity और Microsoft Windows इसके उदाहरण है.

Video Source : E. C. C. Education’s Youtube Channel
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