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कंप्यूटर वायरस: इतिहास, प्रकार, पीढ़ियां, जीवन-चक्र और बचाव

कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के विकास के साथ कंप्यूटर वायरस भी एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरे हैं. आरंभ में इसे शहरी मिथक माना जाता था, लेकिन वर्तमान में इसे गंभीरता से लिया जा रहा है. जैसे जैविक वायरस मानव समेत कई जीवों को हानि पहुंचाते हैं, वैसे ही कंप्यूटर वायरस हमारे कंप्यूटर और आईटी सिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए कंप्यूटर जगत में इन्हें गंभीरता से देखा जाता है. आज के समय में अनुमानतः 10,000 से अधिक कंप्यूटर वायरस सक्रिय हैं और हर माह 200 से अधिक नए का पता चलता है.

आइए इस लेख में हम कंप्यूटर वायरस से जुड़े सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते हैं:

कंप्यूटर वायरस क्या है? (What is Computer Virus in Hindi)

Virus का पूर्ण रूप “Vital Information Resources under Seize” होता हैं. कंप्यूटर वायरस एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम होता है, जिसे जानबूझकर कंप्यूटर स्वामी की अनुमति के बिना स्वयं की प्रतिलिपि बनाने के लिए लिखा जाता है. यह जिस भी सिस्टम में रहता है, वहां कुछ अन्य अनाधिकृत क्रियाएं करता है. यह अनजाने में कंप्यूटर में प्रवेश कर जाता हैं. फिर कंप्यूटर के सामान्य संचालन को बाधित करता हैं, और डेटा और प्रोग्राम को नुकसान पहुंचाता हैं. इसलिए यह एक हानिकारक सॉफ़्टवेयर अनुप्रयोग या कोड है जो निम्नलिखित कार्य कर सकता है:

  • अन्य प्रोग्रामों से स्वयं को जोड़ना,
  • अपनी प्रतिलिपि बनाना,
  • अन्य कंप्यूटर या डिजिटल उपकरणों में फैलना,
  • तथा अन्य कंप्यूटर प्रोग्रामों में अपना कोड डालकर उन्हें संशोधित करना.

इसके कई नकारात्मक दुष्परिणाम होते हैं. कई बार उपयोगकर्ता कंप्यूटर के स्टोरेज में सुरक्षित डाटा खो देता हैं तो कई बार संचालन में बाधा उत्पन्न होती हैं. कई वायरस द्वारा कंप्यूटर की गति भी धीमी कर दिया जाता हैं. हरेक कंप्यूटर वायरस का विशेष प्रोग्राम होता हैं और इसी के अनुरूप वह अपना कार्य करता हैं, जो प्रोग्राम के हिसाब से अलग-अलग होते हैं. इस तरह ये वायरस, कंप्यूटर की सुरक्षा और कार्यक्षमता के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करते हैं.

कंप्यूटर वायरस का इतिहास (History of Computer Virus)

कंप्यूटर वायरस पर पहला विचार 1940 के दशक के अंत में गणितज्ञ जॉन वॉन न्यूमैन द्वारा व्याख्यानों की श्रृंखला में दी गई थी. इसे 1966 में प्रकाशित एक शोधपत्र में “स्व-प्रजनन ऑटोमेटा का सिद्धांत” के नाम से प्रकाशित किया गया था. इस दार्शनिक शोधपत्र में एक ऐसे “यांत्रिक” जीव (जैसे कि कंप्यूटर कोड का एक हिस्सा) का कल्पना किया गया जो मशीनों को नुकसान पहुंचा सकता है, खुद की प्रतिलिपि बना सकता है और नए मेजबानों (नए मशीन) को संक्रमित कर सकता है, ठीक वैसे ही जैसे एक जैविक वायरस करता है. आगे इस संकल्पना पर आधारित कंप्यूटर वायरस के विकास की चर्चा की गई हैं:

1971

क्रीपर प्रोग्राम (The Creeper Programme)

इसे बीबीएन के बॉब थॉमस द्वारा सुरक्षा जांच के उद्देश्य से बनाया गया था.

1974

रैबिट वायरस (The Rabbit Virus)

इसे दुर्भावनापूर्ण इरादे से बनाया गया था. यह मशीन की गति धीरे-धीरे धीमा कर इसे क्रैश कर देता था.

1975

एनिमल (ANIMAL)

यह जॉन वॉकर द्वारा बनाया गया एक प्रोग्राम है. इसे आमतौर पर पहला ट्रोजन हॉर्स हमला माना जाता है.

1986

ब्रेन बूट सेक्टर वायरस (The Brain Boot Sector Virus)

यह पहला पीसी वायरस है, जो 5.2″ के फ्लॉपी डिस्क को संक्रमित करता था. कंप्यूटर स्टोर चलाने वाले दो पाकिस्तानी भाई बासित और अमजद फारूक अल्वी ने इसे बनाया था.

1987

लीहाई (Lehigh)

लीहाई यूनिवर्सिटी में एक्जीक्यूटेबल फ़ाइलों पर हमला करने वाला पहला मेमोरी रेजिडेंट फ़ाइल इंफ़ेक्टर ‘लीहाई” खोजा गया. जेरूसलम वायरस सबसे पहले हिब्रू यूनिवर्सिटी, जेरूसलम में मिला. यह इस साल खोजा गया एक और मेमोरी रेजिडेंट फ़ाइल इंफ़ेक्टर था.

1988

डेन ज़ुक (Den Zuk) एंटीवायरस और कास्केड (Cascade) वायरस

इंडोनेशिया में पहला एंटी-वायरस, डेन ज़ुक, विकसित किया गया. यह ब्रेन वायरस का पता लगाने, उसे हटाने और डिस्क को इसके संक्रमण से बचाने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया था. इसी साल जर्मनी में एन्क्रिप्टेड वायरस ‘कैस्केड’ जर्मनी में पाया गया. एन्क्रिप्टेड होने के कारण इसका आसानी से पकड़ा नहीं जा सकता था.

1989

डार्क एवेंजर और फ्रिडो (Freedo) वायरस

डार्क एवेंजर (Dark Avenger) विकसित हुआ. यह नजर में आने बचने के लिए धीरे-धीरे हमला करता था. इजराइल में फ़्रीडो वायरस की खोज हुई. यह पहला वायरस था जो पूरी तरह से गुप्त फ़ाइल संक्रमित करता था.

1998

ई-मेल अटैचमेंट वायरस

एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर के छद्म रूप में एक ई-मेल अटैचमेंट वायरस ने दुनिया भर के कंप्यूटरों को संक्रमित किया.

1999

मेलिसा (Mellisa)

मैक्रो वायरस ‘मेलिसा’ दुनिया भर के कम्प्यूटरों खासकर माइक्रोसॉफ्ट वर्ड और आउटलुक को संक्रमित करता हैं. यह उपयोगकर्ता की एड्रेस बुक में उपलब्ध सभी इ-ईमेल एड्रेस को मेल भेजता है.

2000

मैलवेयर (Malware)

अबतक कई प्रकार के दुर्भावनापूर्ण प्रोग्रामिंग ने नए तरह के साइबर खतरे को उप्तन्न कर दिया था. इस समय तक ट्रोजन और वर्म भी काफी प्रचलति हो गए थे. इसलिए ऐसे सॉफ़्टवेयर के लिए “मैलवेयर” नाम दिया गया.

4 मई, 2000

प्रेम-पत्र वायरस (Love Letter Virus)

4 मई, 2000 को लवलेटर वायरस ईमेल के माध्यम से एक VBS फ़ाइल के रूप में सामने आया. इसकी विषय पंक्ति “आई लव यू (I Love You)” थी. इस प्रकार के प्रत्येक ईमेल में “LOVE-LETTER-FOR-YOU-TXT.vbs” नाम का एक अनुलग्नक था. इसे ओनेल डी गुज़मैन ने वर्म फ़ैलाने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया था.

2001

कोड रेड (The Code Red)

कोड रेड तेजी से नक़ल बनाने वाला एक अनुलग्नक रहित वायरस था. यह माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट इंफॉर्मेशन सर्वर (IIS) में सुरक्षा खामियों का फायदा उठाकर फैल जाता हैं. यह विंडोज में सिस्टम फाइल चेकर (SFC) को निष्क्रिय कर देता है. यह बेतरतीब ढंग से IP पतों को खोजकर अन्य होस्ट पर फैलता हैं. कोड रेड ने 359,000 से अधिक कंप्यूटरों को संक्रमित कर दिया था.

2003

फ़िज़र (The Fizzer)

ईमेल से फैलने वाला फ़िज़र वायरस यूजर का महत्वपूर्ण लॉगिन जानकारी चुरा लेता था. यह पैसे कमाने के उद्देश्य से बनाया गया पहला वर्म हैं.

2004

कबीर (Cabir)

कबीर को मोबाइल फोन को संक्रमित करने वाला पहला वर्म माना जाता हैं. ब्लूटूथ बंद करने पर इसकी खामी ठीक हो जाती थी.

2013

क्रिप्टोलॉकर ट्रोजन (The CryptoLocker Trojan)

क्रिप्टोलॉकर ट्रोजन रैनसमवेयर के पहले प्रमुख उदाहरणों में से एक है. इसके द्वारा 250,000 पीड़ितों से क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन में लगभग 27 मिलियन डॉलर की उगाही की गई.

2018

श्लेयर (Shlayer)

यह एक एक macOS से संबद्ध विशेष ट्रोजन हैं. यह मुख्य रूप से नकली सॉफ़्टवेयर अपडेट और डाउनलोड के माध्यम से फैलता है.

आज के समय साइबर अपराधों में निरंतर बढ़ोतरी हो रही हैं. हाल के समय में बैंक और वित्तीय जानकारी पर सेंध लगाने का चलन बढ़ा हैं. 2023 में रैनसमवेयर हमले के पीड़ितों की संख्या 2023 में 4,698 थी. 2023 में औसत फिरौती भुगतान 2 मिलियन डॉलर था, जो पिछले वर्ष 2022 की तुलना में पांच गुना अधिक है. इसके 2025 तक बढ़कर 5,200 होने की उम्मीद है.

कंप्यूटर वायरस की पीढ़ियां (Generations of Computer Virus)

जटिलता और प्रोग्रामिंग विशेषताओं के आधार पर कंप्यूटर वायरस के विकास को पाँच पीढ़ियों में वर्गीकृत किया जा सकता है. प्रत्येक अगली पीढ़ी में नई विशेषताएँ शामिल होती गईं, जिससे वायरस का पता लगाना और हटाना मुश्किल होता गया.

प्रथम पीढ़ी (First Generation)

ये सरल और प्रतिलिपि बनाने पर केंद्रित थे. ये बूट सेक्टर या प्रोग्राम को बार-बार संक्रमित करके समस्याएँ पैदा करते थे. इससे संक्रमित फ़ाइल का आकार बड़ा हो जाता था और कंप्यूटर का अलग पैटर्न देखने को मिलता था. इनका प्रभाव ज़्यादातर बग या सॉफ़्टवेयर असंगतियों के रूप में होता था. ये वायरस अपनी मौजूदगी नहीं छिपाते थे और इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता था. आज भी इस पीढ़ी के कई कंप्यूटर वायरस पाए जाते हैं.

दूसरी पीढ़ी (Second Generation)

इस पीढ़ी के कंप्यूटर वायरस फाइल को संक्रमित करने के बाद एक विशेष हस्ताक्षर फाइल में छोड़ देते हैं. इस प्रकार चिन्हित किए गई संक्रमित फाइल को दोबारा संक्रमित नहीं करते हैं. इससे इन फाइलों का आकार अकारण बढ़ता नहीं दिखता और ये वायरस जल्द पकड़ में नहीं आते हैं.

तीसरी पीढ़ी (Third Generation)

इस पीढ़ी के कंप्यूटर वायरस गोपनीय तरीके से काम करते हैं. सक्रिय होने पर ये सिस्टम द्वारा दिए जाने वाले चेतावनियों को पकड़ते हैं. यदि कोई चेतावनी वायरस को प्रकट करता है, तो वायरस कोड इसे रोक देता है और उपयोगकर्ता को गलत जानकारी प्रदान करता है.

चौथी पीढ़ी (Fourth Generation)

इसी पीढ़ी के कंप्यूटर वायरस को बख्तरबंद भी कहा जाता हैं. ये स्पष्टीकरण तकनीक का उपयोग करते हैं. ये एंटी-वायरस शोधकर्ताओं से बचने के लिए भ्रामक और अनावश्यक कोड जोड़ते हैं. ये एंटी-वायरस सॉफ़्टवेयर पर भी हमला कर सकते हैं. ऐसे में इनका पता लगाना और हटाना और भी जटिल हो जाता हैं.

पांचवी पीढ़ी (Fifth Generation)

कंप्यूटर वायरस के इस पीढ़ी में बहुरूपी या स्व-उत्परिवर्तन का गुण होता हैं. (यही गुण कोविड-19 वायरस में भी पाया जाता हैं.) ये अपने संशोधित या एन्क्रिप्टेड संस्करणों के साथ लक्ष्य को संक्रमित करते हैं. कोड अनुक्रमों को बदलकर या यादृच्छिक एन्क्रिप्शन कुंजियों का उपयोग करके, वे सरल बाइट मिलान के माध्यम से पता लगने से बचते हैं. इनका पता लगाने के लिए मास्किंग या डिक्रिप्शन को उलटने और उनकी उपस्थिति की पहचान करने के लिए जटिल एल्गोरिदम की आवश्यकता होती है.

कंप्यूटर वायरस की जीवन चक्र और कार्यप्रणाली

Life-Cycle of a Computer Virus in Hindi and English (Bilingual Infographics Image free download) by Piyadassi.in Education UPSC BPSC Civil Services Examination

कंप्यूटर वायरस का जीवन चक्र इसके निर्माण से शुरू होकर पूर्ण उन्मूलन के साथ समाप्त होता है. इस चक्र में आमतौर पर 6 चरण शामिल होते हैं:

  1. निर्माण: सबसे पहले किसी आपराधिक किस्म के सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर द्वारा नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से कंप्यूटर वायरस बनाए जाते हैं.
  2. प्रतिकृति या उत्परिवर्तन: वायरस एक पीसी से दूसरे पीसी में खुद की नकल करके प्रतिकृति बनाते हैं.
  3. सक्रियण: क्षति पहुंचाने वाले वायरस कुछ स्थितियों में सक्रिय होते हैं. अन्य स्टोरेज स्पेस का उपयोग करके क्षति पहुंचाते हैं.
  4. खोज: यह आमतौर पर सक्रियण के बाद होता है. यह अक्सर वायरस के एक बड़ा खतरा बनने से एक साल पहले आरम्भ हो जाता हैं.
  5. आत्मसात: एंटीवायरस डेवलपर्स नए वायरस का पता लगाने के लिए अपने सॉफ़्टवेयर को अपडेट करते हैं, जिसमें एक दिन से लेकर छह महीने तक का समय लग सकता है.
  6. उन्मूलन: अपडेट किए गए एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर के मदद से वायरस को काफी हद तक मिटाया जा सकता है. हालाँकि कुछ वायरस लंबे समय तक बने रह सकते हैं. लेकिन एंटीवायरस के कारण ये महत्वपूर्ण खतरा नहीं रह जाते हैं.

कंप्यूटर वायरस के प्रकार (Types of Computer Virus)

कंप्यूटर वायरस कई तरह के होते हैं और हर वायरस सिस्टम और डेटा को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है. उन्हें उनके व्यवहार और प्रभाव के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में बांटा जा सकता है. यहाँ विभिन्न प्रकार के कंप्यूटर वायरस, उनका कार्यप्रणाली, प्रभाव और उदाहरणों का सारांश दिया गया है:

  1. रेज़िडेंट वायरस: ये कंप्यूटर की रैम मेमोरी में रहते हैं और सिस्टम द्वारा किए जाने वाले सभी कामों को प्रभावित करते हैं. उदाहरण: रैंडेक्स (Randex), सीएमजे (CMJ), मेव (Meve), मिस्टरक्लंकी (MrKlunky).
  2. प्रोग्राम या फ़ाइल वायरस: ये EXE, BIN, COM, SYS जैसी संपादन योग्य फाइलों को संक्रमित करते हैं, जिससे प्रोग्राम और डेटा नष्ट हो सकते हैं या बदल सकते हैं. उदाहरण: संडे, कैस्केड.
  3. बूट सेक्टर वायरस: ये हार्ड और फ्लॉपी डिस्क के बूट सेक्टर को संक्रमित करते हैं, जिससे प्रोग्राम और डेटा नष्ट या बदल सकते हैं. उदाहरण: डिस्क किलर, स्टोन वायरस.
  4. मल्टीपार्टाइट वायरस: ये प्रोग्राम और बूट सेक्टर वायरस का हाइब्रिड होते हैं, जो प्रोग्राम और डेटा को नष्ट या बदल देते हैं. उदाहरण: इनवेडर, फ्लिप, टकीला.
  5. मैक्रो वायरस: ये माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस में कमांड पर ट्रिगर होते हैं. सामान्यतः वर्ड और एक्सेल को प्रभावित करते हैं. उदाहरण: डीएमवी, न्यूक्लियर, वर्ड कॉन्सेप्ट.
  6. स्टील्थ वायरस: ये अपने पता लगाने से बचने के लिए कई तकनीकें अपनाते हैं और प्रोग्राम तथा डेटा को नष्ट या बदल देते हैं. उदाहरण: रोडो, जोशी, व्हेल.
  7. पॉलीमॉर्फिक वायरस: ये एन्क्रिप्शन का उपयोग करके पता लगाने से बचते हैं, ताकि हर संक्रमण में अलग दिखाई दें। उदाहरण: इन्वॉलन्टरी, स्टिमुलेट, कास्केड, फ़ीनिक्स, ईविल, प्राउड, वायरस 101.
  8. ईमेल वायरस: ये ईमेल अटैचमेंट के खुलने के साथ ही फैलते हैं और मैक्रो शब्द सक्रिय हो जाता है. उदाहरण: मेलिसा, आईलवयू, लव बग.
  9. स्पाइवेयर: ये आपके पीसी में अनावश्यक बदलाव करते हैं और सिस्टम को धीमा कर देते हैं. उदाहरण: 7FaSSt, Elf Bowling.
  10. ट्रोजन हॉर्स: ये उन चीजों को करते हैं जो वास्तविक प्रोग्राम के विनिर्देशों में वर्णित नहीं होते और अन्य उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट के माध्यम से आपके पीसी पर नियंत्रण करने की अनुमति देते हैं. उदाहरण: A2KM, नाइट्रोजन, 91Cast, 8sec!Trojan.
  11. वर्म्स: ये सिस्टम पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, एंटीवायरस द्वारा पहचाने जाते हैं और समाप्त कर दिए जाते हैं. ये स्टैंडअलोन प्रोग्राम के रूप में खुद को दोहराते हैं. उदाहरण: लोवगेट.एफ, ट्राइल.सी, सोबिग.डी, मैपसन.
  12. डायरेक्टरी वायरस: ये क्लस्टर में दुर्भावनापूर्ण कोड डालते हैं और FAT में आवंटित के रूप में चिह्नित करते हैं, जिससे भविष्य में FAT आवंटन रोका जा सके. उदाहरण: स्पैम लॉज़, DIR II वायरस.

कंप्यूटर वायरस के नुकसान (Disadvantages of Computer Virus)

कंप्यूटर वायरस के हमलों के कारण होने वाली कुछ सामान्य समस्याएँ इस प्रकार हैं:

  • कंप्यूटर की गति या प्रदर्शन धीमा हो जाना.
  • सिस्टम फ़्रीज़ हो जाना और ब्लू स्क्रीन ऑफ़ डेथ.
  • बार-बार रीबूट होना.
  • पूरी डिस्क या ड्राइव मिट जाना.
  • अनियमित स्क्रीन व्यवहार.
  • स्क्रीन पर अस्पष्ट संदेश.
  • ब्राउज़र का होम पेज अपने आप बदल जाता है.
  • एप्लिकेशन सॉफ़्टवेयर बदला हुआ लगता है.
  • ऑपरेटिंग सिस्टम सॉफ़्टवेयर संशोधित लगता है.
  • अस्पष्ट प्रिंटिंग समस्याएँ.

कंप्यूटर वायरस द्वारा उत्पन्न समस्याओं की पहचान होने पर आसान समाधान मिल सकता है.

कंप्यूटर वायरस पता लगाने की विधियां (Methods of Computer Virus Detection)

वायरस डिटेक्शन विधियाँ एंटी-वायरस सॉफ़्टवेयर की प्रभावशीलता सुनिश्चित करती हैं. ये विधियां एंटीवायरस को अद्यतित रहने में भी मददगार होती है. यहाँ पाँच प्रमुख डिटेक्शन विधियाँ हैं:

  1. सिग्नेचर-बेस्ड स्कैनिंग:
    • यह विशेष वायरस सिग्नेचर के लिए अद्वितीय कोड स्ट्रिंग्स की खोज करती है.
    • समस्याएँ: अक्सर अपडेट की आवश्यकता होती है; केवल ज्ञात वायरस की पहचान करती है.
  2. इम्यूलेशन (Emulation):
    • संक्रमित फाइल के निष्पादन के लिए सैंडबॉक्स वातावरण में अनुकरण करता है.
    • समस्याएँ: यह लम्बे समय तक काम करता हैं और कंप्यूटर के प्रदर्शन में धीमापन ला सकता है.
  3. ह्यूरिस्टिक्स (Heuristics):
    • सामान्यीकृत सिग्नेचर स्कैनिंग के माध्यम से अज्ञात वायरस का पता लगाती है.
    • समस्याएँ: झूठे सकारात्मक परिणाम देने की संभावना; प्रदर्शन संबंधी चिंताएँ.
  4. बिहेवियरल एनालिसिस:
    • फाइल के निष्पादन की निगरानी करके संदेहास्पद क्रियाओं को रोकता है.
    • फायदे: बिना प्रदर्शन में कमी के वास्तविक समय में मॉनिटरिंग.
  5. चेक समिंग (Check summing):
    • बिट काउंट की तुलना करके फाइल की अखंडता को सत्यापित करता है.
    • फायदे: फाइलों में बदलाव को पहचानता है, जो संभावित संक्रमण की पहचान करता है.

इस प्रकार हर विधि वायरस खतरों की पहचान और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

कंप्यूटर वायरस से बचाव (Prevention from Computer Virus)

इसे रोकने के लिए निम्नलिखित उपायों को किया जा सकता हैं:

  1. प्रतिष्ठित एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर का उपयोग करें और नए खतरों से बचने के लिए इसे अपडेट रखें.
  2. अनधिकृत पहुँच को ब्लॉक करने के लिए अपने कंप्यूटर के फ़ायरवॉल को सक्रिय रखें.
  3. अपने ऑपरेटिंग सिस्टम और सभी सॉफ़्टवेयर को नवीनतम सुरक्षा पैच के साथ अद्यतित (Updated) रखें.
  4. अज्ञात स्रोतों वाले लिंक पर क्लिक करने या अटैचमेंट डाउनलोड करने से सावधान रहें. यह नियम ईमेल के लिए भी लागू होता हैं.
  5. अपने डिजिटल एकाउंट्स के लिए मज़बूत, अद्वितीय (Unique) पासवर्ड बनाएँ और उन्हें नियमित रूप से बदलते रहें.
  6. डेटा हानि से बचने के लिए नियमित रूप से महत्वपूर्ण फ़ाइलों का बैकअप बाहरी ड्राइव या क्लाउड स्टोरेज में करें.
  7. संवेदनशील लेनदेन के लिए सार्वजनिक वाई-फ़ाई का उपयोग करने से बचें. सुरक्षित कनेक्शन के लिए VPN का उपयोग करना चाहिए.
  8. नवीनतम वायरस खतरों और सुरक्षित ब्राउज़िंग तरीकों को बारे में सूचित रहें.

इन तरीकों का पालन करके आप अपने कंप्यूटर के वायरस से संक्रमित होने के जोखिम को काफी हद तक कम कर सकते हैं.

यह भी पढ़ें: साइबर अपराध क्या है? इसके प्रकार और बचने के तरीके


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