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डार्क वेब का शुरुआत, उपयोग व खतरे

इंटरनेट, आसान सूचना और संपर्क का क्षेत्र है, जिसमें न केवल अच्छे वैध वेबसाइटें, बल्कि रहस्यमय और अँधेरे इलाके भी है, जिन्हें सामूहिक रूप से डार्क वेब के रूप में जाना जाता है. आसान शब्दों में, डार्क नेट पर उपलब्ध वेबसाइटों को डार्क वेब कहा जाता है. इस गुप्त डिजिटल क्षेत्र के इतिहास और विकास की गहराई में जाकर हम इसकी उत्पत्ति, उद्देश्यों और इसके जटिलताओं से निपटने के लिए किए गए उपायों के बारे में कई दिलचस्प जानकारी पाते है.

डार्क वेब, यानि इंटरनेट का वह हिस्सा जहां नशीली पदार्थों के कारोबार से लेकर मानव तस्करी जैसे गैर-कानूनी काम होता है. आज के दौर में डार्क वेब इन्ही गतिविधियों के लिए कुख्यात है और आम जनता के नजरों से दूर है. लेकिन हरेक सिक्के के दो पहलु होते है. कुछ ऐसा ही डार्क वेब के साथ है. तो आइये हम डार्क वेब के इतिहास से लेकर उन तमाम तथ्यों को जानते है, जो प्रतियोगी परीक्षा के दृष्टि से जानना नितांत आवश्यक है.

क्या है डार्क वेब (What is Dark Web in Hindi)?

डार्क वेब इंटरनेट का एक छोटा सा यानि 5 फीसदी हिस्सा हिस्सा है. यह सर्च इंजन पर नहीं होते है. डार्क वेब विशेष रूप से इन्क्रिप्टेड और जानबूझकर छिपे हुए नेटवर्क को संदर्भित करता है, जिन्हें एक्सेस के लिए विशेष सॉफ्टवेर टूल और एप्लीकेशन की आवश्यकता होती है. इंटरनेट का गुमनान दुनिया होने के कारण डार्क वेब, कानूनी और अवैध दोनों तरह की गतिविधियों का केंद्र बन गया है.

डार्क वेब के सर्वर और डाटा स्त्रोत का पता किसी को नहीं होता है. इस तक पहुँच के लिए विशेष ज्ञान और तकनीक की जरूरत होती है. डार्क वेब के वेबसाइट को किसी कंप्यूटर या मोबाईल पर भी स्टोर किया जा सकता है. फिर ख़ास ब्राउज़र व सॉफ्टवेयर के मदद से इस तक पहुंचा जा सकता है.

सामान्यतः तोर ब्राउज़र और ज़ेम्प को होस्टिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है. सामान्य इंटरनेट में डोमेन नेम .com, .org, .net, .in या .us एक्सटेंशन के साथ समाप्त होते है. लेकिन डार्क वेब में .onion एक्सटेंशन का इस्तेमाल होता है. साथ ही, गूगल या बिंग जैसे सर्च इंजिन का इस्तेमाल कर इसे खोजा नहीं जा सकता है. इसका कारण यह है कि ये इनके साथ सूचीबद्ध नहीं होते है. साथ ही ये किसी लोकल कम्प्यूटर पर होस्टेड होते है.

आजकल टोर नेटवर्क का इस्तेमाल डार्क वेब तक पहुँच के लिए हो रहा है. यहाँ अक्सर ड्रग्स और हथियारों की तस्करी, मानव तस्करी, चाइल्ड पोर्नोग्राफी और साइबर अपराध से जुड़े काम होते है. इसलिए इसके जोखिमों और तकनीक से वाकिफ होने के बाद ही इसका इस्तेमाल करना चाहिए. साथ ही डिजिटल संपत्ति यथा ऑनलाइन बैंक के सुरक्षा के लिए किसी भी निजी जानकारी को साझा नहीं करना चाहिए.

इंटरनेट के तीन स्तर (Three Layers of Internet in Hindi)

सामान्यतः डीप वेब को डार्क वेब मान लिया जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है. इंटरनेट के तीन स्तर होते है-डार्क वेब, डीप वेब और सतही वेब. डार्क वेब को आप ऊपर जान ही चुके है. तो आइये जानते है डीप वेब को.

डीप वेब (Deep Web) इंटरनेट का वह हिस्सा है जिसे सर्च इंजन द्वारा अनुक्रमित नहीं किया जाता है. पासवर्ड से सुरक्षित, निजी डेटाबेस और इंट्रानेट इसके कुछ उदाहरण है. व्यक्तिगत ईमेल, नेट बैंकिंग, डेटा बेस, ब्लॉगिंग वेबसाइट, विपणन और डिजिटल दस्तावेज सामान्यतः इसके भाग होते है. अनुमानतः डीप वेब पूरे इंटरनेट का 90% है. लेकिन यह सरफेस वेब की तुलना में इस तक काफी कम लोगों का पहुँच होता है. दूसरे शब्दों में, इसके ख़ास मालिक या उपभोक्ता तक ही इसकी पहुँच होती है.

इसका उपयोग कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जिनमें शामिल हैं:

  • बैंकिंग और वित्तीय लेनदेन
  • हेल्थकेयर रिकॉर्ड
  • कानूनी दस्तावेजों
  • अनुसंधान डेटा
  • शैक्षिक संसाधन
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म
  • डार्क वेब बाज़ार

डीप वेब वैध उद्देश्यों के लिए एक मूल्यवान संसाधन है. लेकिन इसका उपयोग अवैध गतिविधियों, जैसे मादक पदार्थों की तस्करी, हथियारों की बिक्री और बाल पोर्नोग्राफ़ी के लिए भी किया जा सकता है. डीप वेब तक पहुंच से पहले इससे जुड़े जोखिमों के बारे में जागरूक होना भी जरूरी है.

सरफेस वेब (Surface Web) इंटरनेट का वह हिस्सा है, जिस तक जनसामान्य की पहुँच सुलभ होती है. इसतक पारंपरिक वेब ब्राउज़र का उपयोग करके भी पहुंचा जा सकता है और उपयोग किया जा सकता है. यह इंटरनेट का सबसे लोकप्रिय हिस्सा है, जहाँ सर्च इंजिन द्वारा सूचीबद्ध सभी वेब पृष्ठ उपलब्ध होते है.

इसमें वेब पेज, तस्वीरें, वीडियो और अन्य जानकारियां होती है. अक्सर यहां हम अपना राय भी लिख सकते है. इस तरह, सरफेस वेब हमारे जीवन को आसान और अधिक सुविधाजनक बनाता है. यह हमें दुनिया भर से जानकारी तक पहुंचने, संवाद करने और काम करने की अनुमति देता है. अक्सर इसका इस्तेमाल जानकारी पाने, शिक्षा, खरीदारी, मनोरंजन या सोशल मीडिया के उपयोग के लिए होता है.

नीचे दी गई तालिका में सरफेस वेब, डीप वेब और डार्क वेब के बीच मुख्य अंतरों का सारांश दिया गया है:

विशेषतासतही वेबडीप वेबडार्क वेब
सरल उपयोगखोज इंजनों द्वारा अनुक्रमितखोज इंजन द्वारा अनुक्रमित नहीं, लेकिन इनके उपयोग से पहुँच सम्भवसर्च इंजन पर अनुपलब्ध, विशेष सॉफ्टवेयर की आवश्यकता
आकारइंटरनेट का 5%90% इंटरनेटइंटरनेट का 5%
उद्देश्यवैध गतिविधियाँवैध और अवैध गतिविधियाँअधिकतर अवैध या गैरकानूनी गतिविधियां
जोखिमधोखाधड़ी, घोटालों और मैलवेयर का कम जोखिमधोखाधड़ीऔर मैलवेयर का उच्च जोखिमअति उच्च जोखिम
इंटरनेट के 3 स्तर

डार्क वेब का शुरुआत (Inception of Dark Web in Hindi)

इंटरनेट के आविष्कार के साथ ही डार्क वेब का विकास जुड़ा हुआ है. 1960 में अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा अर्पानेट के माध्यम से दो कंप्यूटर को सर्वर के रूप में इस्तेमाल हुआ था. यह इंटरनेट के साथ ही डार्क वेब के विकास में सहायक बना. हम कह सकते है कि इंटरनेट और डार्क वेब एक ही पिता, अर्पानेट के जुड़वा पुत्र है.

अर्पानेट प्रोजेक्ट से स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के छात्र भी जुड़े थे. यहीं पर 1970 में एक छात्र ने गांजे के अवैध भुगतान के लिए अर्पानेट का इस्तेमाल किया था. हालाँकि, यह प्रोजेक्ट सरकार से जुड़ा था और अमेरिकी रक्षा विभाग के निगरानी में चल रहा था. ऐसे में 1983 में सरकार ने अर्पानेट को दो भागों में विभाजित करने का फैसला किया, पहला मिलनेट (Milnet)- जिसका इस्तेमाल रक्षा विभाग करेगा और दूसरा अर्पानेट (Arpanet)- जिसे आम जनता के लिए खोल दिया गया.

इसके साथ ही, डाटा का उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा और इसके भण्डारण की समस्या पर चर्चा होने लगी. इसके लिए ‘डाटा हैवेन’ का संकल्पना प्रस्तुत किया गया, जो सरकार से छिपकर बिना किसी क़ानूनी अड़चन के डाटा स्टोर करता था. यह डार्क वेब और डार्क नेट के शुरुआती संकल्पना थे.

इंटरनेट आम जनता को सुलभ होते ही बड़े पैमाने पर डाटा का आदान प्रदान होने लगा. साथ ही, हस्तांतरित हो रहे डाटा के सुरक्षा का भी प्रश्न उठ खड़ा हुआ. माना जाता है कि अमेरिकी रक्षा विभाग अपने डाटा की सुरक्षा को लेकर अत्यधिक चिंतित था. ऐसे में इसने 1990 में डार्क वेब का विकास और इस्तेमाल आरम्भ कर दिया. अमेरिका ने इस वक्त ओनियन राउटिंग तकनीक विकसित की थी. इसे हैक करना नामुमकिन था. यहीं तकनीक आगे चलकर डार्क वेब के रूप में जानी गई और विकसित हुई.

लेकिन, डार्क वेब पर अभी सिर्फ रक्षा विभाग के डाटा भेजे जा रहे थे. ऐसे में इनके पकड़े जाने का खतरा अधिक था. इस हस्तांतरण को छिपाने के उद्देश्य से ही आम जनता के लिए भी डार्क वेब का दरवाजा खोल दिया गया.

डार्क वेब पर पहला अवधारणा साल 2000 में एडिनबर्ग विश्विद्यालय के इयान क्लार्क ने दिया था. इन्होंने इस पर फ्रीनेट नामक थीसिस प्रोजेक्ट जारी किया. यह “वितरित विकेंद्रीकृत सूचना भंडारण और पुनर्प्राप्ति प्रणाली” पर आधारित था, जो गुमनाम तरीके से संचार और फ़ाइल साझा करने की अनुमति देता था.

ऐसा माना जाता है कि टोर प्रोजेक्ट, जो 1990 से ही विकास के अवस्था में था, को फ्रीनेट ने विकास के लिए तकनीक और सहूलियत उपलब्ध करवा दिया. फिर साल 2002 में टोर प्रोजेक्ट को जारी कर दिया गया. 2008 में टोर ब्राउज़र और 2009 में क्रिप्टोकरेंसी ने डार्क वेब को अवैध कारोबारियों और हैकर्स में प्रसिद्ध बना दिया.

आज के समय में क्रिप्टोकरेंसी के इस्तेमाल से सरकार के नजर में आए बिना भुगतान किया जा सकता है. साथ ही, डार्क वेब पर अवैध संचार स्थापित किया सकता है.

डार्क वेब कैसे काम करता है? (How Dark Web Works in Hindi)

डार्क वेब, पारंपरिक इंटरनेट के सतह के नीचे छिपा एक रहस्यमय दुनिया है, जो गोपनीयता और साज़िश की आभा के साथ संचालित होता है. यह ओनियन राउटिंग टेक्नोलॉजी पर काम करता है, जिस तक पहुँचने के लिए एक स्थानीय होस्ट, जो की हमारा कंप्यूटर या लैपटॉप हो सकता है, के साथ ही विशेष सॉफ्टवेयर विन्यास (Configuration) की जरूरत होती है. विशेष ब्राउज़र ‘टोर’ का इस्तमाल कर इस तक पहुंचा जा सकता है.

टोर एक ओपन-सोर्स ब्राउज़र है, जो इंटरनेट ट्रैफ़िक को एन्ड-तो-एन्ड एन्क्रिप्ट करता है. मतलब इसे सिर्फ उपयोगकर्ता और जारीकर्ता द्वारा पढ़ा जा सकता है, जिनके पास इसे पढ़ने के लिए ख़ास तकनीक और विन्यास उपलब्ध है. टोर डाटा को कई अलग-अलग सर्वर के माध्यम से रूट करता है. इस वजह से संदेश भेजने वाले और पाने वाले को पकड़ना मुश्किल होता है. दूसरे शब्दों में, यह ट्रैफ़िक को ट्रैक करना बहुत मुश्किल बना देता है.

साथ ही, डार्क वेब प्रौद्योगिकी हमारे आईपी एड्रेस को छिपा देता है. इसके लिए हमें वीपीएन का इस्तेमाल करना होता है. इसके बाद ही हम डार्क वेब का सुरक्षित इस्तेमाल कर पाते है.

हम कह सकते है कि डार्क वेब सूचना और डाटा के आदान-प्रदान के लिए एक मजबूत बक्से का इस्तेमाल करता है, जिसे खोलने के लिए ख़ास चाभी की जरूरत होती है. यह चाभी दुनिया में सिर्फ सूचना देने वाले और पाने वाले के पास ही उपलब्ध होते है. इस चाभी का न तो नकल बनाया जा सकता है और न ही बक्से को तोड़कर या अन्य तरीके से खोला जा सकता है.

डार्क वेब का सुरक्षित उपयोग (Safe Use of Dark Web in Hindi)

  • इसके सुरक्षित उपयोग के लिए इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी का विस्तृत ज्ञान काफी जरुरी है. साथ ही, टोर ब्राउज़र से किसी भी वेबसाइट को एक्सेस करने से पहले, एक बेहतर और प्रीमियम वीपीएन सेवा का उपयोग करना चाहिए.
  • डार्क वेब पर कई लिंक फिशिंग, हैकिंग व मैलवेयर के भी हो सकते है. इसलिए किसी भी लिंक पर क्लिक से पहले इसके सुरक्षित होने का पुष्टि कर ले.
  • फेसबुक व कई अन्य सुरक्षित वेबसाइट भी यहां उपलब्ध है. लेकिन इन वेबसाइटों पर उपलब्ध सामग्रियों व लिंक के सुरक्षित होने का कोई गारंटी नहीं होता है. इसलिए डार्क वेब के इस्तेमाल के लिए विशेषग्यता और अतिरिक्त तकनीकी ज्ञान जरुरी है.

डार्क वेब पर डाटा की कीमत क्या होती है? (Cost of Data on Dark Web in Hindi)

Dark Web में डाटा की कीमत इसके उपयोग और संभावनाओं से तय होता है. इसलिए अलग-अलग डार्क वेब का अलग-अलग कीमत होता है. यहाँ 50 डॉलर से लेकर 2000 डॉलर तक में डाटा मिलते है. कई बार ये डेटा मिलियन डॉलर में भी बिकते है, जैसे हेरोइन जैसे नशीले पदार्थ या किसी विस्फोटक का फॉर्मूला.

किसी यूजर की डेटा की वैल्यू 1500 डॉलर तक हो सकती है. सामान्य लोगों के ऑनलाइन लॉगइन डिटेल्स 50 से 100 डॉलर में बिक जाता है. क्रेडिट और डेबिट कार्ड का जानकारी 20 से 150 डॉलर तक में मिलते है. ऑनलाइन बैंकिंग लॉगइन डिटेल्स की कीमत 80 डॉलर तक होती है. वहीं सामान्य फेसबुक अकाउंट की कीमत 45 डॉलर, क्लोन्ड VISA और पिन की डिटेल्स व चोरी की गई PayPal अकाउंट 20 से 30 डॉलर में उपलब्ध होते है. हैक्ड वेब और Uber व Netflix जैसी एंटरटेनमेंट सर्विसेस के यूजर्स का डेटा 35 से 45 डॉलर तक की कीमत पर बिकता है.

डार्क वेब के फायदे (Benefits of Dark Web in Hindi)

  1. जहां पारम्परिक इंटरनेट में हमारे जानकारी सभी तक पहुँच जाते है और लगभग सार्वजनिक होते है. गूगल जैसे वेबसाइट के पास हमसे जुड़े कई जानकारियों होती है. इसके कारण हमारे निजता में सेंध लग जाती है. लेकिन डार्क वेब की दुनिया पूर्ण गोपनीयता उपलब्ध करवाता है.
  2. पारम्परिक इंटरनेट से संवेदनशील जानकारी साझा करना असुरक्षित होता है. दूसरी ओर, डार्क वेब इसके लिए सुरक्षित तकनीक उपलब्ध करवाता है. इसी वजह से अमेरिका समेत कई देशों का रक्षा व अन्य विभाग इसका इस्तेमाल करते है.
  3. कई देशों में सरकारें अभिव्यक्ति के आजादी पर पाबंदी लगा देती है. इस तरह के सेंसरशिप से बचाव के लिए डार्क वेब पर विचार और सन्देश साझा किए जा सकते है.
  4. मुखबिरों (Whistleblowers), पत्रकारों, पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के अभिवक्ति को खतरे के तौर पर देखा जाता है. पारम्परिक वेब पर इनके डाटा का चोरी होना समाज के लिए एक बड़ा नुकसान होता है. डार्क वेब पर इस तरह के हस्ती अपने जानकारी और विचारों का सुरक्षित आदान-प्रदान कर सकते है, जहां सरकार या अन्य एजेंसी की पहुंच नहीं होती है.
  5. छात्रों को गहरे रिसर्च के लिए काफी अधिक डाटा की जरुरत होती है. कई बाद सामाज बाजार में ये जानकारियां महंगे होते है, लेकिन डार्क वेब पर आसानी से मिल जाते है. इस तरह यह छात्रों और रिसर्चरों के लिए फायदेमंद हो सकता है.

डार्क वेब के नुकसान व इससे जुड़ी चिंताएं (Disadvantages and concerns of dark web in Hindi)

  • कई बार जानकारी के अभाव में हमारे बैंकिंग व डिजिटल संपत्ति से जुड़े जानकारी चोरी हो सकते है. इसके उदाहरण है फिक्सिंग, मैलवेयर हमला और हैकिंग. कई बार डार्क वेब पर मौजूद लिंक हमें इसका शिकार बना लेती है.
  • कई हैकिंग का सम्बन्ध डार्क नेट से पाया गया है. ऐसे मामलों को पकड़ना आसान नहीं होता है, जो साथी वेब के सुरक्षा के लिए एक खतरा है.
  • डार्क वेब पर हम अति दक्षिणपंथी या अति वामपंथी विचारों से रूबरू हो सकते है, जो आम दुनिया में सामान्य विचार नहीं होते है. इससे हम विचलित हो सकते है और हमारे मनोस्थिति में गहरा बदलाव या आघात हो सकता है.
  • कुछ उद्देश्यों को छोड़कर, डार्क वेब एक कालाबाजार हैं, जहां सरकारी एजेंसियों से बचने के लिए कई तरह के अवैध कारोबार संपन्न होते है. इनमें तस्करी, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, नशे, हथियार, विस्फोटक व वैश्यावृति का कारोबार आम है.
  • डार्क वेब पर विलुप्तप्राय जीवों से लेकर एटम बम तक का कारोबार हो सकता है. ऐसे में यह मानवता के सुरक्षा के लिए भी गंभीर चुनौती पेश करता है.
  • डार्क वेब पर आतंकी व अन्य गैर-क़ानूनी गतिविधियों के लिए संचार स्थापित किया जाता है. ऐसे में सरकारी महकमों को इन्हें रोकना काफी मुश्किल हो जाता है.

डार्क वेब तक पहुँचने का आसान और सुरक्षित तरीका (Easy and Safe to Access Dark Web in Hindi)

यदि आप डार्क वेब के खतरों को जानते हुए भी इसका इस्तेमाल करना चाहते है, तो आप नीचे बताए गए तरीके से इसका इस्तेमाल कर सकते है.

कदम 1 – अपनी सुरक्षा के लिए VPN का इस्तेमाल करें

डार्क वेब का उपयोग करने के लिए पहला और महत्वपूर्ण कदम है एक अच्छी गुणवत्ता वाले VPN की उपयोग करना. VPN, वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क, आपकी गोपनीयता और सुरक्षा की चिंता को काफी दूर कर आपको डार्क वेब तक पहुँचने में मदद कर सकता है. इसलिए एक अच्छी VPN सेवा का चयन करें और उसे अपने कंप्यूटर पर इनस्टॉल करें.

कदम 2 – एंटी-मैलवेयर इंस्टॉल या अपडेट करें

डार्क वेब पर उपलब्ध कई वेबसाइटें मालवेयर का अड्डा है. इसलिए बिना पूर्ण सुरक्षा के इसके इस्तेमाल से आपको आर्थिक, मानसिक या डिजिटल नुकसान हो सकता है. इसलिए उन्हीं लिंक्स पर टिके रहें जिनसे आप अच्छे से वाकिफ है. किसी भी नए या अनजाने लिंक पर क्लिक न करें.

यदि आप साइबर हमलों के शिकार हैं तो वास्तविक समय (Real Time) सुरक्षा से लैस एक मजबूत व अद्यतन (Up-to-Date) एंटी-मैलवेयर आपको इससे बचा सकता है या बाहर आने में मदद कर सकता है. लेकिन यह भी शत-प्रतिशत सुरक्षा का गारंटी नहीं है.

कदम 3 – टोर को सुरक्षित रूप से कैसे नेविगेट करें

नीचे दिए गए अतिरिक्त सावधानियां आपको डार्क वेब पर सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है-

  • हमेशा टोर के साथ वीपीएन का उपयोग करें
  • अपरिचित .onion लिंक पर क्लिक न करें
  • हमेशा लिंक पते (Link Address) का दोबारा जांच करें
  • व्यक्तिगत जानकारी कभी न दें
  • अपने वेबकैम को ढकें या अपारदर्शी टेप लगा दे
  • डार्क वेब से कुछ भी डाउनलोड न करें
  • टोर का उपयोग करते समय अन्य सभी ऐप्स बंद कर दें
  • डार्क वेब पर कुछ भी खरीदने या बेचने से बचें
  • रूपये या आपके आर्थिक हित से जुड़े कोई भी जानकारी साझा न करें.

कदम 4 – TOR ब्राउज़र इनस्टॉल करें

डार्क वेब तक पहुँचने के लिए आपको अपने कंप्यूटर में TOR ब्राउज़र को डाउनलोड और इनस्टॉल करना होगा. जहां गूगल व बिंग पारम्परिक सर्च इंजन है, वहीं TOR ब्राउज़र डार्क वेब तक पहुँचने में मदद करता है.

कदम 5 – TOR ब्राउज़र का उपयोग करें

TOR ब्राउज़र को सफलतापूर्वक इनस्टॉल करने के बाद उसे खोलें और “Connect” विकल्प पर क्लिक करें. इससे आपका इंटरनेट ट्रैफ़िक TOR नेटवर्क के माध्यम से संचालित होगा और आपकी गोपनीयता सुरक्षित रहेगी.

कदम 6 – IP पता बदलें

कुछ समय के बाद, आपका TOR ब्राउज़र सफलतापूर्वक डार्क वेब से जुड़ जाएगा और आपके स्थानीय IP पते का पता छिपाने के लिए बदल जाएगा. यह आपकी गोपनीयता को सुरक्षित रखने में मदद करेगा और आपको डार्क वेब पर सर्फिंग में सहायक होगा.

कदम 7 – डार्क वेब का आनंद लें

अब आपका TOR ब्राउज़र डार्क वेब तक पहुँचने के लिए तैयार है. आप अब डार्क वेब का उपयोग कर सकते हैं. लेकिन ध्यान दें कि आपको डार्क वेब की वेबसाइटों के URL पते का पता होना आवश्यक है. इन URL पतों का पता लगाना आमतौर पर कठिन होता है, लेकिन धीरे-धीरे आप इसका भी मास्टर बन सकते हैं.

कदम 7 – संक्षिप्त में

डार्क वेब का उपयोग करना खतरनाक हो सकता है. इसलिए आपको सभी जरुरी सावधानी बरतनी चाहिए. सुरक्षा के लिए VPN और TOR ब्राउज़र के उपयोग के साथ ही अन्य जरुरी सुरक्षा उपायों का पालन करें. हो सके तो इस संबंध में विशेषज्ञ के देखरेख में अपना काम करे. धीरे-धीरे, आप डार्क वेब के अंदर के दुनिया को समझने और नियंत्रित करने में माहिर हो सकते हैं.

डार्क वेब को लेकर कानून (Laws regarding Dark Web in Hindi)

डार्क वेब पर सरकार या किसी अन्य संस्था द्वारा कोई रोक नहीं लगाया गया है. इसका कारण है, इसे सरकार से लेकर कई बड़ी कंपनियां तक इस्तेमाल करती है. अक्सर सेना, ख़ुफ़िया विभाग या रक्षा विभाग इसका इस्तेमाल करते है. बड़े कम्पनियाँ भी अपने किसी गोपनीय जानकारी को साझा करने के लिए इसका इस्तेमाल करती है. ऐसा सूचना के सुरक्षित आदान-प्रदान के लिए किया जाता है.

लेकिन, आपको भूलकर भी डार्क वेब को एक्सेस नहीं करना चाहिए. वजह है इसपर ख़ुफ़िया विभागों व गैरकानूनी कारोबार करने वाले हमेशा सक्रीय रहना. यदि आपने कोई भी कानून तोड़ा या गलती की, तो आप दोनों में से एक का शिकार बन सकते है.

इसलिए आप चाहे तो सुरक्षित सन्देश आदान-प्रदान के लिए वीपीएन युक्त डिवाइस से टेलीग्राम या व्हाट्सप्प का इस्तेमाल कर सकते है. इस तरह से आपका ऑनलाइन संपर्क काफी सुरक्षित हो जाता है.

डार्क वेब वेबसाइटों के उदाहरण (Examples of Dark Websites in Hindi)

  1. The Hidden Wiki
  2. Torch
  3. DuckDuckGo
  4. ProtonMail
  5. The Intercept
  6. ProPublica
  7. SecureDrop
  8. Hidden Answers
  9. Archive.Today
  10. Deep Web Radio
  11. Blockchain
  12. Facebook

आप ऊपर दिए गए सभी डार्क वेब का लिंक यहां पा सकते है. इस प्लेटफार्म पर फेसबुक भी उपलब्ध है, जिसका मकसद सरकारी सेंसरशिप को तोड़ते हुए निर्बाध अभिव्यक्ति को सुनिश्चित करना हैं.

डार्क वेब का भविष्य (Future of Dark Web in Hindi)

आप इस बात से भलीभांति अवगत है कि डार्क वेब आपके डाटा, वेबसाइट का लिंक व पहचान को छिपा डेटा है. ऐसे में इसे पकड़ना काफी मुश्किल है. टोरेंट जैसे मामले में भी यहीं हुआ. इसे बंद तो करवा दिया गया. लेकिन, समर्थक इसे बार-बार उपलब्ध करवाते रहे. इसलिए डार्क वेब आने वाले समय में बंद होने की संभावना काफी कम है. हाँ, इसपर सरकार का निगरानी और शिकंजा जरूर बढ़ सकता है. लेकिन इससे सिर्फ गैर-कानूनी गतिविधियों में लिप्त लोगों को खतरा है.

अस्वीकरण: यह आर्टिकल केवल जानकारी के उद्देश्य से है. कृपया किसी भी गैर-कानूनी गतिविधियों से बचने के लिए कानूनी दिशानिर्देशों का पालन करें.

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