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बाढ़ की आपदा और प्रबंधन

भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित (Hit by Flood in Hindi) देश है. यह भारत में हरेक साल आने वाली सबसे बड़ी आपदा है. यह देश में तबाही लाने वाली सबसे बड़ी वार्षिक प्राकृतिक आपदा भी है. हर साल देश का एक बड़ा हिस्सा इससे प्रभावित रहता है. भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, देश का 40 से 45 मिलियन हेक्टेयर इलाका बाढ़ प्रभावित है. हालाँकि, बड़े हिस्से में बाढ़-नियत्रण के उपाय किए गए है. लेकिन, इस कोशिश में अभी आंशिक या नाममात्र की सफलता मिली है.

देश का पूर्वी, उत्तर-पूर्वी व उत्तरी इलाका सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित है.

बाढ़ क्या है? (Definition of Flood in Hindi)

यह जल का एक विशाल भंडार होता है, जो सूखे जमीन या आवासीय जमीन व खेतों, मकानों, चरागाहों को डुबो देता है. दूसरे शब्दों में, स्थलीय बसावट में विशाल जलराशि के प्रवेश से इनका जलमग्न होना बाढ़ कहलाता है.

अन्य आपदाओं के तुलना में, बाढ़ के आपदा का कारण सबसे अधिक सुसपष्ट है. किसी ख़ास इलाके में निश्चित कारणों से ही अधिकांश बाढ़ आती है. भारत में बाढ़ आने का मुख्य कारण मॉनसूनी बारिश के कारण नदियों का उफान है. इसकी प्रकृति प्रभावित इलाकों के लोगों को अच्छे से ज्ञात होता है. इस वजह से भी नुकसान थोड़ा कम होता है.

बाढ़ के प्रकार (Types of Flood in Hindi)

सामान्यतः बाढ़ आने के कारण के आधार पर इसे तीन प्रकार में बांटा गया है-

1. आकस्मिक बाढ़ (Flash Flood in Hindi)

यह भारी वर्षा की शुरुआत के छह घंटे के भीतर आती है. आमतौर पर बादल फटने, तूफान और चक्रवात से जुड़ी होती है. इसमें व्यापक स्तर पर तत्काल चेतावनी की आवश्यकता होती है. क्षति को कम करने के लिए तत्काल प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है. अचानक बाढ़ की स्थिति में, समय पर निकासी की चेतावनी हमेशा संभव नहीं हो पाती है. ऐसे में व्यापक जानमाल का हानि हो सकता है.

2. नदी का बाढ़ (River Flood in Hindi)

ऐसी बाढ़ बड़े जलग्रहण क्षेत्रों में वर्षा के कारण होती है. ये बाढ़ आमतौर पर धीरे-धीरे या मौसमी रूप से बनती हैं. यह फ्लैश फ्लड की तुलना में दिनों या हफ्तों तक जारी रह सकती हैं.

कई बार नदी के किनारे बने तटबंध टूट जाते है. ऐसे में लोगों को प्रतिक्रिया का समय नहीं मिल पाटा है. यह व्यापक जीवन लील लेता है. इस तरह की लीला बिहार के कोशी नदी द्वारा की जाती है, जो अक्सर अपना रास्ता अचानक बदल लेती है. ऐसा करीब प्रत्येक दशक में एक बार होता है. इसमें कई लोगों को अपना जान भी गंवाना पड़ता है. कोसी नदी को ‘बिहार का शोक’ भी कहा जाता है.

3. तटीय बाढ़ (Coastal Flood in Hindi)

कुछ बाढ़ चक्रवाती गतिविधियों जैसे तूफान, उष्णकटिबंधीय चक्रवात आदि के कारण आती है. विनाशकारी बाढ़ अक्सर तट के तरफ हवा से प्रेरित तूफान से बढ़ जाती है. उच्च ज्वार (High Tides) भी तटीय इलाकों में बाढ़ का एक प्रमुख कारण है.

मॉनसून, हिमालय व बाढ़ (Monsoon, Himalayas and Floods)

आज से करोडो वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप गोंडवाना नाम के उपमहाद्वीप (भूभाग) का हिस्सा था. इससे भूमध्य सागर की प्लेट टकरा गई. इस वजह से आज जहाँ हिमालय स्थित है, वहां की भूमि काफी ऊपर उठ गई व इससे हिमालय का निर्माण हुआ. इसके दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप व उत्तर में तिब्बत का पठार स्थित है.

हिमालय, हिन्द महासागर व अरब सागर से आने वाले मॉनसूनी हवाओं के लिए अवरोध का काम करता है. मॉनसूनी हवाएं समुद्री से चलती है, इसलिए इनकी आद्रता काफी अधिक होती है. हिमालय से टकराने के बाद ये हवाएं वापस लौटने लगती है. इस दौरान इसमें स्थित जल के नन्हें कण बर्षा के बूंदों में धीरे-धीरे बदलने लगती है. फिर यह भारत, बांग्लादेश व पाकिस्तान (दक्षिण एशिया) में जोरदार बारिश करती है.

मॉनसूनी बारिश काफी तीव्र होते है, जो चार माह तक चलते है. इस वजह से हिमालय के आसपास विशाल जलराशि का जमाव हो जाता है. जो आगे चलकर मैदानी इलाकों में बाढ़ का कारण बनता है.

भारतीय बाढ़ की प्रकृति (Nature of Indian Flood in Hindi)

भारत भौगोलिक रूप से विविधतापूर्ण है. यहाँ पर्वत श्रृंखला, समुद्र तट, मैदानी व पथरी इलाके व रेगिस्तान तक है. साथ ही, पुरे देश में सदाबहार व मौसमी नदियों का बड़ा जाल बिछा हुआ है. देश में साल के निश्चित महीनों के दौरान ही भारी वर्षा होती है. उपर्युक्त भौगोलिक कारकों के अतिरिक्त, मानवीय कारक भी बाद के प्रकृति को प्रभावित करते है.

1. मॉनसूनी प्रकृति के बाढ़ (Monsoon Triggered Floods in Hindi)

भारत में हरेक साल कुछ निश्चित इलाकों में ही बाढ़ आते है. ये इलाके हिमालय के तलहटी में स्थित है. इन इलाकों से हिमालय से निकलने वाले नदियों का जाल बिछा है. जब मॉनसून के वक्त तेज बारिश होती है, तो हिमालय के ऊपरी इलाके से पानी नदियों से बहते हुए निचले इलाकों में फ़ैल जाता है.

इसके नीचे उतरने के साथ ही मैदानी भागों में भी जोरदार बारिश होती है. मैदानी इलाकों का पानी जब इन नदियों से मिलता है, तो विशाल जलराशि का निर्माण होता है. इस तरह भारत के अधिकतर राज्यों में बाढ़ आती है.

2. हिमालयी क्षेत्रों में बाढ़ (Flood in Himalayan Region in Hindi)

कई बार जलाशयों या तालाबों के भर जाने से इनका किनारा टूट जाता है. इससे पैदा हुई बाढ़ भारी तबाही लाती है. ऐसा हाल ही में उत्तराखंड में देखने को मिला है.

“उत्तराखंड में 7 फरवरी 2021 को बाहरी गढ़वाल इलाके में स्थित नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान से भीषण बाढ़ (Flash Flood) शुरू हुई. इसका कारण भूस्खलन, हिमस्खलन या ग्लेशियल झील का किनारा टूटना माना जाता है. इसके कारण ऋषिगंगा, धौलीगंगा, और अलकनंदा नदी में बाढ़ आ गई. ये तीनों धाराएं आगे चलकर गंगा नदी का निर्माण करती है. इस बाढ़ से चमौली जिला सबसे अधिक प्रभावित हुआ. इस आपदा में कम से कम 38 लोग मरे गए और लगभग 168 लोग लापता हुए.”

3. तटीय व अन्य क्षेत्रों में बाढ़ (Flood in Coastal and Other Areas in Hindi)

भारत में, तटीय क्षेत्रों में तूफान, लंबे समय तक तेज़ बारिश, हिम का पिघलना, ज़मीन की जल अवशोषण क्षमता में कमी होना और अधिक मृदा अपरदन के कारण नदी के तल में जलोढ़ मिट्टी की मात्रा में वृद्धि से भी कई बार भयावह बाढ़ आते है.

इसके विस्तार में मानवीय हस्तक्षेप भी जिम्मेदार है. अंधाधुंध वन कटाव, अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियाँ, प्राकृतिक अपवाह तंत्रों का अवरुद्ध होना तथा नदी तल और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मानव बसाव की वजह से बाढ़ की तीव्रता, परिमाण, बारम्बारता और विध्वंसता बढ़ जाती है.

बाढ़ का जन-जीवन पर प्रभाव (Impact of Flood on Lifestyle in Hindi)

इस आपदा से जनजीवन को भारी नुकसान होता है. इससे सार्वजनिक व निजी सम्पति, बुनियादी ढांचे, लोगों के मनोविज्ञान व भावनाओं को काफी नुकसान होता है. अक्सर, बाढ़ प्रभावित इलाके के लोग, शहरों की ओर मजदूरी के लिए पलायन कर जाते है. जब वे अपने इलाकों की तुलना इन शहरों से करते है, तो वे राज्य से खुद को ठगा हुआ महसूस करते है. इस तरह बाढ़ से लोगों को मानसिक आघात पहुँचता है.

बाढ़ से प्रभावित इलाका, देश के मुख्य भू-भाग से अलग हो जाता है. इस वजह से ऐसे इलाके में सभी आर्थिक क्रियाकलाप ठप्प हो जाते है. इससे व्यापारियों को तो नुकसान होता ही है. लेकिन, सबसे अधिक नुकसान उन गरीबों का होता है जिन्होंने पाई-पाई जोड़कर झोपडी खड़ी की होती है. उनका कमजोर आशियाना भी बाढ़ की पानी में बह जाता है. मवेशियों, फसलों, खाद्य भंडार, मवेशी चारा व जनहानि बाढ़ के मुख्य विशेषताएं है.

बाढ़ग्रस्त इलाके (Flood Hit Areas) में व्यापार के साथ ही, कृषि, औद्योगिक उत्पादन, शिक्षा, यातायात व अन्य जरुरी सेवाएं ठप्प हो जाती है. इस तरह बाढ़ग्रस्त इलाका कुछ समय के लिए आदिमयुग में पहुँच जाता है.

भारत के बाढ़ ग्रस्त इलाके (Flood Prone Areas of India in Hindi)

हमारे देश भारत का करीब 12.5% हिस्सा बाढ़ क्षेत्र में शामिल है. यहाँ बाढ़ आने का मुख्य कारण हिमालय से निकलने वाली तीन नदी तंत्र है. पश्चिम में सिंधु, उत्तर में गंगा और पूर्वोत्तर में ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र. इन नदियों के किनारे स्थित कई किलोमीटर के इलाके हरेक साल बाढ़ से प्रभावित होते है. इन तंत्रों से मुख्यतः जम्मू-कश्मीर का कुछ इलाका, असम, पश्चिम बंगाल और बिहार प्रभावित होता है.

पंजाब और उत्तर प्रदेश में भी अक्सर बाढ़ आते रहते है. वहीं, पर्यावरण असंतुलन के कारण, राजस्थान, गुजरात और हरियाणा में कुछ सालों से आकस्मिक बाढ़ आने लगे है.

साथ ही, तीव्र समुद्री तूफ़ान व चक्रवात के वजह से, तटीय इलाकों में जोरदार बारिश होती है. इन बारिशों से उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्र और तेलंगाना व केरल जैसे राज्य मुख्य रूप से प्रभावित होते है. साथ ही, लौटती मॉनसून के कारण नवंबर से जनवरी के दौरान तमिलनाडु में काफी बारिश होती है. इससे तमिलनाडु में कभी-कभार बाढ़ आ जाते है.

भारत में बाढ़ की व्यापकता (Prevalence of Floods in India in Hindi)

द एशियन डेवलपमेंट बैंक के अनुसार, बाढ़ की आपदा (Calamity of Flood) भारत में सबसे ज्यादा क्षति करती है. देश के कुल प्राकृतिक आपदाओं के नुकसान का 50 प्रतिशत केवल बाढ़ से होता है.

राष्ट्रीय बाढ़ आयोग और असम सरकार की रिपोर्ट (2018) के अनुसार, असम के कुल भौगौलिक क्षेत्र 78.52 लाख हेक्टेयर है. इनमें 31.05 लाख हेक्टेयर अर्थात लगभग 40 फीसदी क्षेत्रफल सालाना बाढ़ से प्रभावित होता है. बिहार की स्थिति भी कुछ ऐसा ही है. उत्तर बिहार का 73.63 प्रतिशत भाग बाढ़ प्रभावित है. हर साल राज्य के 38 में से 28 जिलों में बाढ़ आती है.

बिहार, भूटान और सिक्किम से चलकर हिमालय की कई नदिया पश्चिम बंगाल पहुँचती है. गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना बेसिन का हिस्सा होने के कारण, उत्तर बंगाल अत्यधिक बाढ़ प्रवण है. राज्य के कुछ हिस्सों में सलाना बाढ़ आते है.
साथ ही, देश के अलग-अलग हिस्सों में अत्यधिक बारिश से भी बाढ़ के हालात उत्पन्न हो जाते है. समुद्रतटीय इलाकों में भी सुनामी व चक्रवातीय बारिश से बाढ़ का आकस्मिक खतरा बना रहता है.

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात व उत्तराखंड भी बर्षा के दिनों में बाढ़ की चपेट में आ जाते है. हालाँकि, इन राज्यों के कुछ हिस्से में ही बाढ़ आता है.

नदियों में बाढ़ आने के प्रमुख कारण (Causes of River Flooding in Hindi)

  • जलग्रहण क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा या सहायक नदियों से मुख्य नदी को क्षमता से अधिक जल प्राप्त होने से इनका पानी आश्रय स्थलों में फ़ैल जाता है.
  • भूस्खलन के कारण नदी के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होने से नदी अपना मार्ग बदल देती है. इससे अचानक व भारी तबाही वाली बाढ़ आती है.
  • वनों की कटाई से नदियों के पेंदी में गाद बहकर जमा हो जाता है. नदी के पहाड़ो व जलग्रहण क्षेत्र में वनों की कटाई से मिट्टी, बालू, कंकड़-पत्थर बहकर नदियों के तलछट में जमा हो जाती है. इन गाडों की सफाई न होने से नदी का जल बड़े इलाके में फ़ैल जाता है. इस तरह बाढ़ आ जाती है.
  • प्राकृतिक जल निकास में मानवीय व अन्य अवरोध. जैसे, तटबंधों, नहरों, सड़क पुलों और रेलवे के कारण नदी की चौड़ाई व बहाव बाधित होना.
इसके अलावा निम्न कारणों से भी बाढ़ आते है (Other reasons of Flood in Hindi)
  1. चक्रवात और बहुत तीव्र वर्षा;
  2. भरे हुए नदी के इलाकों में तेज बारिश;
  3. बादल फटना;
  4. ज्वार-भाटा; और
  5. सुनामी इत्यादि.

बाढ़ राज्य सूची का विषय कैसे है? (Flood: A State Issue in Hindi)

सिंचाई और जल प्रबंधन राज्य सूचि का विषय है. लेकिन, आपदा प्रबंधन का उल्लेख न तो राज्य सूची और न ही समवर्ती सूची में है. इसलिए, अनुच्छेद 248 के तहत, संघ सूची की प्रविष्टि संख्या 97 के समानांतर आपदा प्रबंधन अधिनियम को केंद्र द्वारा लागू किया जा सकता है.

वहीं, कटाव नियंत्रण सहित बाढ़ प्रबंधन राज्‍य सूचि में शामिल है. इससे जुडी योजनाएं राज्य सरकार अपने प्राथमिकता के अनुसार अमल में लाती है. इसके लिये केंद्र सरकार राज्‍यों को तकनीकी मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता प्रदान करती है.

कई बार दो राज्यों में स्थित जलस्त्रोतों को लेकर दोनों में विवाद हो जाते है. साथ ही सूखे व कम जल संसाधन वाले राज्यों को अन्य राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है. रावी-व्यास, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महादाई और कृष्णा नदी जल विवाद इसी तरह से उपजे है. इसलिए जल को समवर्ती सूचि में लाने का मांग उठता रहता है.

बाढ़ के विनाशकारी परिणाम (Devastating Consequences of Flood in Hindi)

  • बाढ़ के मैदानों (Flood Fields) में सबकुछ जलमग्न हो जाता है. कमजोर इमारत के ढहने से जनहानि होती है. इमारतों के बेसमेंट डूबने से मकान गिरने का खतरा रहता है.
  • आधारभूत संरचना, जैसे सड़कें, रेल मार्गों, पुल; और मानव बस्तियों को भी नुकसान पहुँचता है.
  • सीवरेज, पानी की आपूर्ति, संचार लाइनों और बिजली आपूर्ति बाधित हो जाता है.
  • गोदामों में खाद्य भंडार, कृषि क्षेत्र व फसल, पशुधन, वाहन, मशीनरी और जमीन पर लगे उपकरण, मछली पकड़ने वाली नावें भी बर्बाद हो जाता है.
  • इलाके में हैजा, आंत्रशोथ (Enteritis), हेपेटाईटिस एवं अन्य दूषित जलजनित बीमारियाँ फैल जाती हैं.
  • आर्थिक गतिविधि ठप्प होने से लोगों के आजीविका का साधन भी छीन जाते है. इसलिए बाढ़ग्रस्त इलाके में गरीबी आम है. यह गरीबी, निर्धनों में मानसिक तनाव का कारण भी बनता है.

संभावित लाभ (Some Benefits of Flood in Hindi)

  • बाढ़ से होने वाले नुकसान के तुलना में इससे प्राप्त होने वाला लाभ नगण्य है.
  • इससे नदी द्वारा बहाकर लाइ गई नई जलोढ़ मृदा की परत बिछ जाती है. यह काफी उपजाऊ होती है.
  • भूजल का स्तर भी बाढ़ के पानी के कारण सुधर जाता है.

बाढ़ नियंत्रण के उपाय (Flood Control Measures in Hindi)

1. अवसंरचनात्मक तैयारी (Infrastructure in Flood Areas in HIndi)

प्राकृतिक जल-बहाव के क्षेत्र में निर्माण का निषेध या कमतर निर्माण: नदी के किनारे दो से तीन किलोमीटर तक के इलाके को सिर्फ खेती के लिए आरक्षित कर इसे खुला रखा जा सकता है. बाढ़ का पानी उतरने के बाद यहाँ फिर से खेती की जा सकेगी. इस इलाके के बाद ही आवासीय, व्यावसायिक व अन्य निर्माण की अनुमति दी जानी चाहिए. नियोजित विकास, हरित पट्टी का विकास, प्राकृतिक व मानव-निर्मित जलनिकासी व्यवस्था में सुधार, बाढ़ से बचने में सहायक होते है.

2. नदियों को परस्पर जोड़ना:

यह भी इसका एक उपाय माना जाता है. केंद्र सरकार की केन-बेतवा, दमनगंगा-पिंजाल, पार-तापी-नर्मदा, महानदी – गोदावरी, और मानस-संकोश-तीस्ता-गंगा नदियों को आपस में जोड़ने का लक्ष्य है.

इन परियोजनाओं के लागु हो जाने से 35 मिलियन हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी. इससे समग्र सिंचाई क्षमता 140 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 175 मिलियन हेक्टेयर हो जाएग. इससे बाढ़ नियंत्रण, नौवहन, जलापूर्ति, मातिस्यिकी, लवणता तथा प्रदूषण नियंत्रण आदि लाभ प्राप्त होंगे. इसके अतिरिक्त 34000 मेगावाट विद्युत शक्ति का उत्पादन भी होगा.

3. ऐतिहासिक बाढ़ से सबक (Lessons from Past Floods in Hindi)

बाढ़ की आपदा देश में हरेक वर्ष विभिन्न इलाकों में आते है. इलाकों में इसके कारण और विनाशलीला की व्यापकता के आधार पर व्यापक तैयारी कर, इससे होने वाले नुकसान को काफी कम किया जा सकता है.

4. संस्थागत सतर्कता (Vigilance on Flood)

नागरिकों में जागरूकता व सतर्कता, स्वास्थ्य व आपदा कर्मियों को पूर्व प्रशिक्षण से बाढ़ की विभीषिका के प्रभाव को हम कम कर सकते है.

5. तटबंध (Embankment against Flood)

नदी के किनारे से दो से तीन किलोमीटर दूर तक इसका क्षेत्र विस्तारित रहता है. इस इलाके के बाद तटबंधों का निर्माण कर अन्य इलाकों में बाढ़ फैलने से रोका जा सकता है.

6. ईमानदार प्रयास (Unselfish Efforts against Flood)

सरकार बाढ़ रोकने के लिए अनेक योजनाएं चला रही है. लेकिन, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, अवैज्ञानिक विकास कार्य आदि को रोके बिना ऐसा असंभव है.

राष्ट्रिय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (National Disaster Management Act, 2005 in Hindi)

भारत सरकार ने 23 दिसंबर, 2005 को ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ अधिनियमित किया है. इसी अधिनियम के तहत, ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA) एवं ‘राष्ट्रीय आपदा मोचन बल’ (NDRF) का गठन किया गया. पुनः एनडीआरएफ के तर्ज पर, राज्यों द्वारा राजकीय आपदा मोचन बल (SDRF) का गठन किया गया. यह गठन भी इसी अधिनियम के प्रावधानों के तहत हुआ है.

राष्ट्रीय जल निति, 2012 (National Water Policy, 2012 in Hindi)

यह नीति फिलहाल जलशक्ति मंत्रालय के द्वारा संचालित है. इसमें जल के प्रबंधन के सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा की गई है.

इसमें माना गया है कि जल एक दुर्लभ प्राकृतिक संसाधन है; जो जीवन, जीविका, खाद्य सुरक्षा और निरंतर विकास का अधार है. भारत में संसार की 18% से अधिक अबादी है, जबकि विश्व का केवल 4% नवीकरणीय जल संसाधन और विश्व के भू क्षेत्र का 2.4% भू क्षेत्र भारत में है. इसमें यह भी वर्णित है कि जल के संबंध में नीतियां, कानून बनाने या कार्यान्वयित करने या विनियमन करने का अधिकार राज्य को प्राप्त है.

इस निति के तहत निम्न उपाय के लिए नियम बनाने या इन्हें लागु करने के लिए प्रेरित किया गया है-
  1. बाढ़ एवं सूखे जैसी जल संबंधी आपदाओं को रोकना व निति निर्माण
  2. प्राकृतिक जल निकास प्रणाली के पुनर्स्थापन
  3. भूमि, मृदा, ऊर्जा एवं जल प्रबंधन की व्यवस्था
  4. समेकित खेती प्रणालियों और गैर-कृषि विकास पर विचार का आह्वाहन
  5. जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए भूमि कटाव रोकना
  6. बाढ़ पूर्वानुमान और वास्तविक समय आँकड़ा संग्रहण प्रणाली (Real Time Data Collection System) का उपयोग, इसे पूर्वानुमान मॉडल से जोड़ने का सुझाव
  7. जलाशयों को बाढ़ रोकने में सक्षम बनाना
  8. बाढ़ व सूखा से निपटने के लिए समुदायों को शामिल करने पर जोर
  9. पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेशियर, झील टूटने से बाढ़ तथा भू-स्खलन और बांध टूटने से बाढ़ आने संबंधी अध्ययन और इनका यंत्रीकरण
  10. आकस्मिक बाढ़ से संबंधित आपदाओं से निपटने के लिये तैयारी

बाढ़: क्या करें तथा क्या ना करें (Flood: Dos and Donts in Hindi)

यदि आप बाढ़ ऐसे इलाके में रहते है जहाँ हरेक साल बाढ़ आती है तो आपको यह बाढ़ पूर्व तैयारी कर लेना चाहिए. साथ, ही बाढ़ के दौरान व बाढ़ के बाद क्या करें, ये जानना भी जरुरी है. इस जानकारी से आप बाढ़जनित महामारियों से बच सकते है.

बाढ़ आने से पहले क्या किया जाए (Before Flood)

इससे निपटने की तैयारी के लिए, आपको निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

  1. मकान बनाने से बचे, पहले से बने मकान को मजबूत करें.
  2. भट्टी (फर्निस), जल तापक (वाटर हीटर) तथा इलेक्ट्रिक पैनल (बिजली बोर्ड) को घर के ऊंचे स्थान पर रखें.
  3. बाढ़ का पानी घर में घुसने से रोकने के लिए नालियों के मोरी की जालियों (सीवर ट्रैप्स) में “चेक वाल्व” लगवाएं.
  4. अपने इलाके में बाढ़ रोकने के लिए बने संरचनाओं, यथा तटबंध की जानकारी प्राप्त करते रहे.
  5. रिसाव (सीपेज) को रोकने के लिए अपने बेसमेन्ट में वाटर प्रूफिंग कम्पाउंड से दीवारों को सील करवाएं.

आपके इलाके में बाढ़ प्रवेश करने वाला हो तो (Just before Flood Entrance)

  1. रेडियो या टेलीविजन से सुचना प्राप्त करना.
  2. आकस्मिक बाढ़ की संभावना होते ही ऊँचे व सुरक्षित स्थान पर चले जाएं. किसी हिदायत का इंतजार न करें.
  3. पूर्व में बाढ़ प्रभावित इलाकों के लोगों को आकस्मिक बाढ़ के लिए भी तैयार रहना चाहिए.

संभावित बाढ़ से पूर्व घर छोड़ते वक्त (Leaving Home at Flood)

यदि बाढ़ की आशंका से आप अपना घर खाली करने को तैयार हों, तो आपको निम्न काम करना चाहिएः

  1. जरुरी वस्तुओं को ऊपरी तल या घर के ऊँचे स्थान पर रखे. घर के बाहर कोई भी सामान नहीं छोड़े. बाढ़ में ये सामान बहकर खो सकते है.
  2. बिजली सप्लाई बंद कर दे. पानी में उतारकर या भींगे हाथों या बदन से बिजली का कोई भी उपकरण न छुए. बिजली के उपकरणों को अलग कर सुरक्षित स्थान पर रख दे.
  3. घर को अच्छे से तालाबंद (Lock) व सुरक्षित करने के बाद ही प्रस्थान करें.

बाढ़ के पानी से गुजरते वक्त (Passing through Flood Water)

  1. 6 इंच की गहराई वाले बहते पानी (Flood Water) में आप गिर सकते हैं. इस बहते पानी के बदले शांत पानी से चले. अपने आगे जमीन की सतह की मजबूती को जांचने के लिए छड़ी का प्रयोग करें.
  2. ड्राइविंग न करें. यदि आपकी कार के आस-पास बाढ़ का पानी जमा हो जाए तो कार को छोड़कर सुरक्षित स्थान पर निकल लें. पानी का तेज बहाव कार के साथ आपको भी बहा सकता है.
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