कुछ विद्वानों का यह भी विचार है कि सूफी शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द सोफिया से हुई जिसका अर्थ ज्ञान है. एक मत यह भी है कि मदीना के मुहम्मद साहब द्वारा बनाई मस्जिद के बाहर सफा अर्थात मक्के की एक पहाड़ी पर जिन व्यक्तियों ने शरण ली तथा खुदा की आराधना में लगे रहे, वे सूफी कहलाये. इस्लाम धर्म में जो रहस्यवाद है, उसी को सूफी कहा जाता है. सूफी धर्म इस्लामी रहस्यवाद का ही एक रूप हैं. सूफी धर्म एक सम्प्रदाय भी है और एक आंदोलन भी. सूफी मत की उत्पत्ति के संबंध में विद्वानों के कई मत है.
भारत के प्रमुख सूफी सम्प्रदाय
भारत में सूफियों के कई सम्प्रदाय थे. 1200 ई. से लेकर 1500 ई. तक सूफी मत का विस्तार धीरे-धीरे हुआ. उस काल में कई नये सम्प्रदाय और आंदोलन प्रारंभ हुए जो कि हिंदू धर्म और इस्लाम के मध्य का रास्ता बताते थे. उनमें से चिश्ती, सुहरावर्दी, सुहुहरावर्दी, फिरदौसी, कादिरी औरैर नकशाबंदी सिलसिले सम्प्रदाय महत्वपूर्ण है.
चिश्ती सिलसिले का अजमेर, राजस्थान के कुछ नगरों, पंजाब, उत्तरप्रदेश, बंगाल, उड़ीसा तथा दक्षिण में विस्तार हुआ. सुहरावर्दी सिलसिला सिंध, मुल्तान और पंजाब में सीमित रहा. इस सिलसिले के कुछ संत दिल्ली और अवध में रहने लगे.
A. चिश्ती सम्प्रदाय
1. शेख मुईनुद्द्दीन चिश्ती
भारत में चिश्तियाँ सम्प्रदाय के प्रथम सतं शेख मुईनुद्दीन चिश्ती थे. उनकी कब्र अजमेर में है. जन साधारण में वे ख्वाजा के नाम से विख्यात है. उनका जन्म लगभग 1143 ई. में इरान में स्थित सिजिस्तान में हुआ था. ख्वाजा उस्मान हसन ने जो कि चिश्ती संप्रदाय के प्रमुख संत थे, इन्हें दीक्षित किया तथा भारत में जाकर सूफी मत का प्रसार करने का आदेश दिया. मुईनुद्दीन चिश्ती कुछ समय तक अब्दुल कादिर जीलानी के सत्संग में रहे. वे लाहोर के पश्चात् दिल्ली आये, जहां से अजमेर गये. इनकी मृत्यु के पश्चात भी उनके शिष्य ख्वाजा के सिद्धांतों का प्रचार करते रहे.
2. हमीदुद्द्दीन नागौरी
मुईनुद्दीन चिश्ती के शिष्य हमीदुद्दीन नागौरी ने उनके आदेशों और उपदेशों का प्रचार किया. वे अपनी पत्नी के साथ नागौर के पास एक गांव में कच्ची झोपडी में रहते थे और अपनी जीविका के लिये एक छोटे भू भाग में खेती करते थे. मुसलमान लेखक उनके उदार दृष्टिकोण की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं कि वे गैर मुसलमानों के आध्यात्मिक गुणों को भी पहचान लेते थे और उनकी कद्र करते थे. ये समन्वयवादी थे.
3. कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी
ख्वाजा साहब के प्रमुख शिष्यों में इनका नाम उल्लेखनीय है. बख्तियार भाग्य बंधु नाम इन्हें मुईनुद्दीन ने दिया. अपना अधिकांश समय इन्होंने भ्रमण में व्यतीत किया. इल्तुतमिश इनका आदर करता था. कुतुबुद्दीन ने सुल्तान की सांस्कृतिक योजनाओं को नैतिक समर्थन प्रदान किया था. शेख उल इस्लाम के पद पर कार्य करने हेतु ये सहमत नहीं हुए उनकी राजनीति में कोई रुचि नहीं थी. शेख कुतुबुद्दीन रहस्यवादी गीतों के बडे प्रेमीथे.
4. फरीदुद्दीन गंज ए शकर
कुतुबुद्दीन के दो मुख्य शिष्यों में से शेख फरीदुद्दीन मसूद गंज ए शकर अधिक प्रसिद्ध है उन्होंने हांसी और अजोधान में सूफी धर्म का प्रचार कार्य किया था, यह उन्हीं के प्रयत्न का फल था कि सूफियों का चिश्तियाँ सम्प्रदाय एक अखिल भारतीय सम्प्रदाय बन गया. वह बाबा फरीद शकरगंज के नाम से विख्यात है.
5. निजामुदुद्दीन औलिया
इनका वास्तविक नाम मुहम्मद बिन दानियाल अल बुखारी था. बीस वर्ष की अवस्था में इन्होंने सात सुल्तानों का शासन देखा था. दुर्भाग्यवश इनके संबंध किसी भी शासक से अच्छे नहीं थे. इन्होंने खिलाफत नामा बख्शा और चिश्तिया सूफी सम्प्रदाय के सिद्धांतों का प्रचार किया.
6. अमीर खुसरो
अमीर खुसरो एक सूफी संत थे. अमीर खुसरो एक महान साहित्यकार भी थे. वे अमीर खुसरो निजामुद्दीन औलिया के शिष्य थे. अमीर खुसरों को संगीत का भी विशेष ज्ञान था. उन्होंने फारसी तथा भारतीय संगीत में समन्वय करने का प्रयत्न किया. ध्रुपद तथा ख्याल के जन्मदाता खुसरो ही थे.
7. दिल्ली के शेख नासिरूद्द्दीन चिराग
चिश्ती सिलसिले का एक बड़ा सूफी संत था. उसको दिल्ली का चिराग भी कहते है. आलौया साहिब का उराराधिकारी बना और उसने अपने गुरु की परम्परा को निभाया. कहा जाता है कि शेख के जीवन के अंतिम समय में उनके चेहरे पर शोकपूर्ण उदासी सी छा गयी थी. इसका कारण सभी और लोगों का दःखी जीवन था.
8. शेख सलीम चिश्ती
चिश्ती शाखा के अंतिम महत्वपूर्ण संत शेख सलीम चिश्ती थे. शेख सलीम चिश्ती ने चिश्तिया सम्प्रदाय की परम्पराओं को बनाये रखा और बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त की. इनकी मजार फतेहपुर सीकरी की प्रसिद्ध जामा मस्जिद के में हैं.
B . सुहरावर्दी सूफी सम्प्रदाय
सुहारावर्दी सिलसिले की स्थापना शेख शहाबुद्दीन सुहरावर्दी 1145-1234 ई. ने की. इस सम्प्रदाय की स्थापना उत्तरी पश्चिमी भारत में हुई थी. भारत में इसका श्रेय वहाउद्दीन जकरिया को है.
उनका विचार था कि इस्लाम के सभी रिवाज सख्ती से माने जाये. उन्होंने हिंदुओं के नमस्कार के तरीके का विरोध किया. वहाउद्दीन ने जिस व्यवस्था पर सूफियों के सुहरावर्दी सम्प्रदाय को संगठित किया था, वह व्यवस्था भी चिश्तियाँ सम्प्रदाय की व्यवस्था से बहुत ही भिन्न थी.
शेख वहाउद्दीन के देहांत के बाद सुहरावर्दी सिलसिला दो भागों में विभाजित हो गया. एक का कार्यक्षेत्र मुलतान था और दूसरे का सिंध के उच्छ. शेख जकारिया सुहरावर्दी का एक पुत्र बदरुद्दीन आरिफ मुलतान शाखा का मुखिया बना. जलालुद्दीन सुरख बुखारी उच्छ शाखा का अध्यक्ष बना.
बदरुद्दीन अपने पिता से एक बात में भिन्न था. उसका विचार था कि धन का इकट्ठा करना आध्यात्मिक उन्नति में बाधा पैदा करता है. अपने पिता से मिला धन उसने गरीबों में दान कर दिया. जलालुद्दीन सुरखी ने उच्छ में सुहरावर्दी सिलसिले का विस्तार किया. उसने बड़ी संख्या में गैर-मुस्लिमों को को इस्लाम अपनाने के लिए राज़ी किया.
सुहरावर्दी सिलसिले ने पंजाब, सिंध और बंगाल में तीन महत्वपूर्ण केन्द्र बनाए. सुहरावर्दी संत हिंदुओं को मुसलमान बनाने पर जोर देते थे और उनको सहायता इस काम के लिये कई स्रोतों से मिलती थी. इस सम्प्रदाय के अन्य महत्वपूर्ण संत रूकनुद्दीन अबुलफतह, शेख मूसा और शाहदौला दरियाई थे. इस संप्रदाय का दृष्टिकोण चिश्ती सम्प्रदाय के कुछ हटकर था.
3. फिरदौसी सम्प्रदाय
फिरदौसी सिलसिला सुहरावर्दी सिलसिले की एक शाखा थी और उसका कार्यक्षेत्र बिहार था. इस सिलसिले को शेख शरीफउद्दीन यह्या ने लोकप्रिय बनाया. उसने इस्लाम के सिद्धांतों का आधुनिकीकरण किया. उसने इस्लाम के एक ईश्वरवाद को इस्लाम के सिद्धांतों से मिलाने की कोशिश की.
4. कादिरी सिलसिला
12 वीं शताब्दी में अब्दुल कादिर जिलानी ने कादिरिया शाखा की स्थापना की. मध्य ऐशिया और पश्चिमी अफ्रीका में इस्लाम का प्रचार करने का श्रेय इसी सम्प्रदाय को है. भारत में इस शाखा के प्रवर्तक नासिरूद्दीन महमूद जिल्लानी थे. वे अब्दुल कादिर जिल्लानी के वंशज थे. भारत आने पर इनके शिष्यों की संख्या अधिक बढ गयी और उनका खूब सम्मान हुआ. इनके पश्चात इस सम्प्रदाय के उत्तराधिकारी इनके पुत्र अब्दुल कादिर द्वितीय हुए. इस सम्प्रदाय ने इस्लाम धर्म का प्रचार करना था. शाहजहां का ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह कादिरी सूफी सम्प्रदाय का अनुयायी था.
5. नक्शबंदी सम्प्रदाय
इस सिलसिले की ख्वाजा पीर मुहम्मद के अनुयायियों ने भारत में चलाया. भारत में मुहम्मद बाकी बिल्लाह ने इस शाखा की नींव डाली. इसके अनुयायियों ने शहायत पर बहुत जोर दिया और नई बातों का विरोध किया. इस सिलसिले के लोग संगीत के विरोधी थे. उन्होंने एक ईश्वरवाद के सिद्धांतों को भी चुनौती दी. इस सम्प्रदाय का भारत में प्रचार ख्वाजा बाकी बिल्लाह के शिष्य शेख अहमद फारूकी सरहिन्दी ने किया. उन्होंने कट्टर मुसलमानों और सूफियों को एक स्थान पर लाने का प्रयत्न किया. शाह वलीउल्लाह इस सिलसिले के प्रमुख संत माने जाते है.