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कच्छतीवु द्वीप और इसका विवाद

    कच्छतीवु द्वीप (Katchatheevu Island) भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका की मुख्य भूमि के बीच स्थित एक छोटा सा टापू है. हिन्द महासागर में श्रीलंका के उत्तरी तट और भारत के दक्षिण-पूर्वी तट के बीच पाक जलडमरूमध्य क्षेत्र है. इस जलडमरूमध्य का नाम रॉबर्ट पाल्क के नाम पर रखा गया था जो 1755 से 1763 तक मद्रास प्रांत के गवर्नर थे. 163 एकड़ के इस निर्जन कच्छतीवु द्वीप पर श्रीलंका का शासन है.

    मूंगे की चट्टानों और रेतीली चट्टानों की प्रचूरता के कारण बड़े जहाज़पाक जलडमरूमध्य से नहीं जा सकते. इसलिए इसे समुद्र नहीं कहा जाता है. कच्छतीवु द्वीप इसी पाक जलडमरूमध्य में स्थित है. ये भारत के रामेश्वरम से मात्र 12 मील (20 किलोमीटर) और जाफना के नेदुंडी से 10.5 मील दूर है. इसका क्षेत्रफल लगभग 285 एकड़ है. इसकी अधिकतम चौड़ाई 300 मीटर है.

    कच्छतीवु द्वीप का महत्व (Importance of Katchatheevu Island in Hindi)

    यह द्वीप समुद्र के बीचोबीच स्थित है, जहाँ नौसैनिक निगरानी केंद्र बनाया जा सकता है. साथ ही, मछुवारों को अपना जाल सुखाने और थकान दूर करने के लिए समुद्र में एक स्थान मिल जाता है. इस द्वीप पर स्वामित्व होने से भारत या श्रीलंका का विशेष आर्थिक क्षेत्र का दायरा काफी बढ़ जाता है. इसलिए यह सामरिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है.

    कच्छतीवु द्वीप पर निर्माण (Constructions on Katchatheevu Island)

    सेंट एंटनी चर्च भी इसी निर्जन द्वीप पर स्थित है. इसका निर्माण श्रीनिवास पादैयाची (एक भारतीय तमिल कैथोलिक) ने ने करवाया था. कच्छतीवु द्वीप जाने के लिए किसी को भारतीय पासपोर्ट या श्रीलंकाई वीजा रखने की आवश्यकता नहीं है. हर साल फरवरी-मार्च के महीने में यहां एक हफ़्ते तक पूजा-अर्चना होती है. इसमें भारतीय भी बड़ी संख्या में भाग लेते है. सिर्फ एक बार 1983 में श्रीलंका के गृह युद्ध के दौरान ये पूजा-अर्चना बाधित हो गई थी.

    ‘द गज़ेटियर’ के मुताबिक़, 20वीं सदी की शुरुआत में रामनाथपुरम के सीनिकुप्पन पदयाची ने यहां एक मंदिर का निर्माण कराया था और थंगाची मठ के एक पुजारी इस मंदिर में पूजा करते थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने इस द्वीप पर कब्ज़ा कर लिया.

    कच्छतीवु द्वीप पर किसका नियंत्रण (Who controls Katchatheevu Island)

    कच्छतीवु द्वीप बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है. भारत और श्रीलंका के बीच इसे लेकर विवाद रहा है. साल 1976 तक भारत इस पर दावा करता था और उस वक़्त ये श्रीलंका के अधीन था. साल 1974 से 1976 की अवधि के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका की तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमाव भंडारनायके के साथ चार सामुद्रिक सीमा समझौते पर दस्तखत किए थे. इन्हीं समझौते के फलस्वरूप कच्छतीवु द्वीप श्रीलंका के अधीन चला गया.

    प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और श्रीलंका की तत्कालीन प्रधानमंत्री सिरिमावो भंडारनायके
    सिरिमावो भंडारनायके और इंदिरा गाँधी (बाएं से)

    ये समझौता दो हिस्सों में हुआ था. पहले 26 जून को कोलम्बो में और फिर 28 जून को दिल्ली में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और श्रीलंका की तत्कालीन प्रधानमंत्री सिरिमावो भंडारनायके के बीच सम्पन्न हुआ था. इसके बाद कच्छतीवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया.

    मछली पकड़ने से शुरू हुआ विवाद (Dispute inception due to fishing)

    यह द्वीप चौदहवीं सदी में ज्वालामुखी विस्फोट से बना है. भारत और श्रीलंका के मछुवारे इसके आसपास मछली पकड़ने जाते रहे है. बीसवीं सदी के आरंभ में इन्ही मछुवारों के बीच हुए टकराव के कारण भारत और श्रीलंका के बीच विवाद हुआ था. 1921 में श्रीलंका ने इसपर दावा किया. आज के वक्त श्रीलंका इस द्वीप पर आनेवाले भारतीय मछुवारों को कई बार गिरफ्तार भी कर लेता है.

    एक समझौता यह भी हुआ था कि श्रीलंका समुद्र के विशेष आर्थिक क्षेत्र में भारतीय मछुआरों को मछली पकड़ने की अनुमति नहीं होगी. लेकिन तमिलनाडु के मछुवारे यहाँ मछली पकड़ने जाते रहे. इसलिए विवाद पूर्णतः समाप्त नहीं हुआ.

    साल 1976 में श्रीलंकाई नौसेना ने तमिल मछुवारों पर कार्रवाई कर दी. इससे कई मछुवारों का जान भी गया.

    इससे पहले तमिलनाडु की सरकार ने इस समझौते को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. तमिलनाडु ने ये मांग की थी कि कच्छतीवु द्वीप को श्रीलंका से वापस लिया जाए.

    केंद्र और तमिलनाडु का कच्छतीवु द्वीप पर तकरार (Centre and Tamilnadu dispute over Katchatheevu)

    साल 1991 में तमिलनाडु विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया और कच्छतीवु को वापस भारत में शामिल किए जाने की मांग दोहराई गई. कच्छतीवु को लेकर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच का विवाद केवल विधानसभा प्रस्तावों तक ही सीमित नहीं रहा.

    साल 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने कच्छतीवु को लेकर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट तक घसीटा. उनकी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कच्छतीवु समझौते को निरस्त किए जाने की मांग की. जयललिता सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से श्रीलंका और भारत के बीच हुए उन दो समझौतों को असंवैधानिक ठहराए जाने की मांग की जिसके तहत कच्छतीवु द्वीप को तोहफे में दे दिया गया है.

    भारत को कैसे मिला कच्छतीवु द्वीप (How India got Katchatheevu Island in Hindi)

    दावे के अनुसार कच्छतीवु द्वीप साल 1974 तक भारत का हिस्सा था और ये रामनाथपुरम के राजा की जमींदारी के तहत आता था. रामनाथपुरम के राजा को कच्छतीवु का नियंत्रण 1902 में तत्कालीन भारत सरकार से मिला था.

    मालगुजारी के रूप में रामनाथपुरम के राजा जो पेशकश (किराया) भरते थे, उसके हिसाब-किताब में कच्छतीवु द्वीप भी शामिल था. रामनाथपुरम के राजा ने द्वीप के चारों ओर मछली पकड़ने का अधिकार, द्वीप पर चराने का अधिकार और अन्य उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग करने का अधिकार पट्टे पर दिया था.

    इससे पहले जुलाई, 1880 में, मोहम्मद अब्दुलकादिर मराइकेयर और मुथुचामी पिल्लई और रामनाथपुरम के जिला डिप्टी कलेक्टर एडवर्ड टर्नर के बीच एक पट्टे पर दस्तखत हुए. पट्टे के तहत डाई के निर्माण के लिए 70 गांवों और 11 द्वीपों से जड़ें इकट्ठा करने का अधिकार दिया गया.

    उन 11 द्वीपों में से कच्छतीवु द्वीप भी एक था. इसी तरह का एक और पट्टा 1885 में भी बना. साल 1913 में रामनाथपुरम के राजा और भारत सरकार के राज्य सचिव के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए.

    इस पट्टे में कच्छतीवु द्वीप का नाम भी शामिल था. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत और श्रीलंका दोनों पर शासन करने वाली ब्रितानी हुकूमत ने कच्छतीवु द्वीप को भारत के हिस्से के रूप में मान्यता दी, लेकिन इसे श्रीलंका का हिस्सा नहीं माना.

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