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मैकार्थीवाद (McCarthyism) और इसका इतिहास

    दक्षिणपंथ द्वारा उग्र राजनीति के लिए कई प्रकार के विचारधाराओं को अपनाया जाता है. उन्ही कई दक्षिणपंथी विचारधाराओं में से एक है – मैकार्थीवाद (McCarthyism). मैकार्थीवाद एक ऐसी विचारधारा हैं जिसने 1950-60 के मध्य अमेरिकी समाज में काफी उथल-पुथल मचाई थी. हालाँकि, इसमें हिटलर के नीतियों जैसा क्रूर नस्लीय हिंसा का समावेश नहीं था. इसलिए मीडिया पर नियंत्रण के इस तरीको को हिटलरशाही से नहीं जोड़ा जा सकता. तो आइये विस्तार से मैकार्थीवाद और सरकार के सम्बन्ध को समझने की कोशिश करते हैं.

    मैकार्थीवाद का उद्भव एवं परिचय (Origin and Introduction of McCarthyism in Hindi)

    व्यापक आलोचित “मैकार्थीवाद” (McCarthyism) का नाम एक अमेरिकी सीनेटर जोसफ मैकार्थी (Joseph McCarthy) के नाम पर पर रखा गया हैं. कार्ल मार्क्स (Karl Marx) का “समाजवाद” तेजी से अमेरिका में फैलते जा रहा था. 1917 में बोल्शेविक क्रांति के बाद 1949 के चीनी क्रांति तक इसका तीव्र विस्तार होने लगा.

    समाजवादी सोच अमरीका में भी तेजी से फ़ैल रही थी. इससे अमेरिका का पूंजीपति वर्ग विचलित हो उठा. इस बढ़ते समाजवाद (साम्यवाद) के प्रभाव को रोकने के लिए एक व्यापक योजना तैयार की गई. अनेक कानून बनाए गए. बाद में यह मैकार्थीवाद के नाम से मशहूर हुआ.

    यह भी कहा जाता हैं कि अमेरिका द्वारा साम्यवाद के खिलाफ घोषित युद्ध मैकार्थीवाद से प्रेरित थी. अमेरिका में मैकार्थीवाद के व्यापक प्रयोग के दौरान सबूतों और प्राकृतिक कानून को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया था.

    मैकार्थीवाद मूलतः किसी खास सोच के लोगों को बदनाम कर समाज से अलग-थलग कर देने की नीति हैं. इसके लिए तरह-तरह के हथकंडे इस्तेमाल में लाए जाते हैं. इसमें सुचना तंत्र (मीडिया) का बखूबी इस्तेमाल कर एक ख़ास विचारधारा के लोगों को देशद्रोही और समाज के लिए खतरा साबित करने की कोशिश की जाती हैं.

    सबूतों से छेड़छाड़, बिना सबूत के आरोप आम होती हैं. इसके तहत नागरिकों को अपनी देशभक्ति और विश्वसनीयता साबित करने को विवश किया जाता हैं. सरकार अपनी एक के बाद एक गलतियों को व्यापक प्रचार के माध्यम से ढक देती हैं.

    अमेरिका और मैकार्थीवाद (America and McCarthyism in Hindi)

    अमेरिका मूलतः एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था हैं. यहाँ की सरकार भी पूंजीवाद के हिसाब से चलती हैं. लेकिन, 1917 के बोल्शेविक क्रांति के बाद साम्यवादी (समाजवादी) विचारधारा धीरे-धीरे अमेरिकी समाज में फैलने लगी. इसे रोकने के लिए पिछले कई वर्षों से अभियान चल रहे थे. लेकिन यह उग्र नहीं था.

    1947 में अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसे रोकने के लिए आदेश भी जारी किए थे. रूस द्वारा परमाणु परिक्षण और अमेरिकी अधिकारीयों की इसमें संलिप्तता ने अमेरिका को भड़का सा दिया. इस जासूसी काण्ड के बाद साम्यवाद को बड़े खतरे के रूप में प्रचारित किया जाने लगा. इसके कुछ समय बाद ही चीनी क्रांति और वियतनाम में साम्यवादी आंदोलन ने अमेरिकी सरकार को आक्रांत कर दिया.

    अब अमेरिकी सरकार ने इस आंदोलन को व्यापक रूप से कुचलने की योजना बनाई. इसके लिए राष्ट्रपति के आदेश का सहारा लिया गया. बड़ी संख्या में लोगों को साम्यवाद से किसी तरह का सम्बन्ध न होने के सबूत के तौर पर शपथ-पात्र देने को कहा गया. जो लोग इसमें सहयोग न करते थे, उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाने लगा.

    साथ ही, उन्हें किसी भी तरह के नौकरी से वंचित कर दिया गया. सरकारी अधिकारीयों की व्यापक निष्ठा-परिक्षण की गई. जो भी साम्यवाद से प्रभावित लगते थे, उन्हें व्यापक प्रभाव वाले पद से तत्काल हटा दिया जाता था.

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    पूंजीवाद पर एक कार्टून

    अमेरिकी संसद द्वारा अपनाए गए इस नीति को अन्य निजी संस्थानों ने हूबहू लागु किया. इस योजना के वजह से कई जाने गई, तो दूसरी ओर सरकार का विरोध करने वाले लोगो को जेल में डाल दिया गया. किताबों, कलाकृत्तियों एवं अन्य संकेतों के आधार पर भी लोगों को साम्यवादी बता जेल भेजा जाता रहा.

    आमजन के हक़ की आवाज उठाने वाले, निशस्त्रीकरण जैसे मुद्दे उदार मुद्दों को उठाने वाले लोगों को भी साम्यवादी करार दे दिया गया. साम्यवादी संगठनों का लगभग अस्तित्व ही मिटा दिया गया.

    इस दौर में अमेरिका में बाल श्रम कानून और महिलाओं के मताधिकार जैसे मुद्दों को भी कम्युनिस्ट विचारधारा से जोड़ दिया गया. हरेक प्रतिशील विचारधारा के लोग शक के निगाह से देखे जाने लगे थे. इस दौर को जोसफ मैकार्थी का दौर कहा गया, और उनके इस तरिके को मैकार्थीवाद के नाम से जाना गया.

    इसे ‘रेड स्केअर’ मतलब लाल खौफ या आतंक का दौर भी कहा गया. लाल रंग, कम्युनिस्ट क्रांति का समानार्थी है. इस तरह मैकार्थीवाद, साम्यवाद से भयभीत विचारधारा है, जो उन्नीसवीं सदी के पांचवे दशक के आखिरी सालों से छठे दशक तक चला था.

    मैकार्थी के मुताबिक अमेरिकी सरकार को हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने का एक व्यापक षड्यंत्र जारी था और इसमें छात्र, शिक्षक, बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक, संगीतकार, अभिनेता आदि शामिल थे.

    इसलिए अल्बर्ट आइंस्टीन, जोसफ नीधम, बर्टोल्ट ब्रेख्त, एलन गिंसबर्ग, चार्ली चैपलिन, आर्थर मिलर, हॉवर्ड फास्ट, थॉमस मान, ओट्टो क्लेम्पेरेर जैसे वैज्ञानिक, कलाकार, लेखक, नाटककार, संगीतकार महान शक्शियत भी इसके शिकार बन गए और उन्हें बदनाम होना पड़ा.

    इनमें कई नोबेल पुरस्कार से सम्मानित व्यक्तित्व भी थे. लेकिन मैकार्थीवादियों ने उनके इस प्रतिष्ठा को दरकिनार करते हुए इनपर मैकार्थीवादी हथकंडों का इस्तेमाल किया.

    जोसफ मैकार्थी और उग्र मैकार्थीवाद का अंत (Joseph McCarthy and End of McCarthyism in Hindi)

    विस्कोंसिन के रिपब्लिकन सीनेटर जॉसेफ मैकार्थी ने 1950 में यह कहकर सनसनी फैला दी कि उनके पास 200 के करीब कम्युनिस्टों की सूची हैं. इसके बाद प्रेस ने उनकी तरफ खास ध्यान देना आरम्भ कर दिया. पूर्व में उन्होंने अधिकारीयों को यह संख्या कुछ और बताई थी. उन्होंने साम्यवादियों के दमन के लिए क्रूर नीतियां अख्तियार कर ली, जो बाद में मैकार्थीवाद के नाम से मशहूर हुई.

    1954-55 में मैकार्थी ने सेना में भी साम्यवादियों की खोज की योजना बनाई. साथ ही वे किसी पर भी शक के आधार पर साम्यवादी होने का आरोप लगा देते थे. इन घटनाओं के फैलने के बाद, उनके विचार का तेजी से पतन होने लगा. लोग उन्हें सुनने के से कतरा रहे थे. साथ ही न्यायपालिका ने भी अब सख्ती बरत ली और इस विचारधारा को गैरकानूनी करार दे दिया.

    अपनी पराजय होते देख मैकार्थी अत्यधिक शराब का सेवन करने लगा. तीन वर्ष के बाद ही उसकी मौत हो गई. इसी के साथ अमेरिका में उग्र मैकार्थीवाद का अंत हमेशा के लिए हो गया. लेकिन, अन्य रूपों में यह 1972 तक चलता रहा.

    वर्तमान दुनिया और मैकार्थीवाद (Present World and McCarthyism in Hindi)

    आज के समय दुनिया के कई हिस्सों में मीडिया और अन्य माध्यमों के द्वारा व्यापक दुष्प्रचार की रणनीति अपनाई जा रही हैं. इसमें दक्षिणपंथी और उदारवादी दोनों रत हैं. लेकिन, इस दुष्प्रचार की राजनीति में दक्षिणपंथी, उदारवादियों से कई गुना आगे हैं. करीब से विश्लेषण करने पर हम छद्म उदारवादियों के नीतियों को मैकार्थीवाद के अत्यधिक करीब पाते हैं. ऐसा कठोरतम कार्रवाही से बचने के लिए किया जाता रहा है.

    आपातकाल के दौर में इंदिरा गाँधी ने इस नीति का व्यापक प्रयोग किया और खुले तौर पर सेंसरशिप लागु कर दी गई. दूसरा उदाहरण के तौर पर गांधी को खलनायक के रूप में पेश करना, उदारवाद को खतरा बताना, एक समुदाय को दूसरे के लिए खतरा बताना, सरकार के ख़ास लोगों या सरकार का विरोध करने वालों को देश-द्रोही बता देना इत्यादि, मैकार्थीवाद से ही प्रेरित हैं.

    बुद्धिजीवियों को बिना सबूत के किसी गैंग का सदस्य या नक्सली बता दिया जाना भी इसी के अंतर्गत आते हैं. ये सभी आरोप बिना सबूत के लगाए जाते हैं. इस काम के लिए व्यापक प्रचार-तंत्र, सोशल मीडिया का प्रयोग किया जाता हैं. जबकि ये सभी बातें सच्चाई से दूर होती हैं. वर्तमान में कई मीडिया समूहों पर जनभावनाओं के विरुद्ध कार्य करने के आरोप लगते रहे है.

    अपने विरोधियों को बदनाम करने के लिए मैकार्थीवाद को सबसे कारगर समझा जाता हैं. इससे प्रेरित हथकंडे अफवाह के रूप में तेजी से फैलकर समाज में अपना स्थान बना लेती हैं. साथ ही अफवाह का शक्ल लेने के वजह से यह काफी सस्ती होती हैं. यही कारण है कि इसके इस्तेमाल का व्यापकता बढ़ते जा रहा है.

    आधुनिक इंटरनेट ने इसे और आसान कर दिया हैं. भारत जैसे देश में शिक्षा की गुणवत्ता खराब होने की वजह से इसका तोड़ ढूंढना आसान नहीं हैं. लेकिन, सच्चाई का व्यापक प्रचार के माध्यम से इसे समाप्त किया जा सकता हैं. इस विचारधारा के उपयोग का मुख्य वजह इसका सस्ता होना भी हैं.

    मैकार्थीवाद के दुष्परिणाम (Effects of McCarthyism in Hindi)

    इस सिद्धांत को न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत के बिलकुल विपरीत समझा जाता हैं. इस सिद्धांत के उपयोग से समाज में बिना सबूत या क़ानूनी फैसले के आरोपी को दोषी मान लेने की प्रवृत्ति बढ़ती हैं.

    भीड़ द्वारा किया जानेवाला फैसला (मोब-लिंचिंग) इसी विचारधारा से प्रेरित एक मानसिकता हैं. इसके वजह से सच और झूठ में फर्क करना सामान्य नागरिक के लिए काफी मुश्किल हो जाती हैं. इसके सफल होने की स्थिति में, देश की वास्तविकता को आसानी से आम नागरिकों से छुपा लिया जाता हैं.

    दीर्घकाल में इस सिद्धांत का देश की व्यवस्था पर भी व्यापक असर दिखता हैं. जैसा की अमेरिका के मामले में हुआ. वहां सत्ता का पूरी तरह पूंजीवादियों के हाथ जाने के बाद, वंचित समाज लम्बे अंतराल के बाद भी हाशिए पर हैं. यह खाई दिनों दिन चौड़ी होती जा रही हैं. अब निचले तबके का विरोध “वालस्ट्रीट” जैसे आंदोलन के रूप में सामने आ रही हैं. इसे अमेरिकी पूंजीवाद के खतरें के रूप में देखा जा रहा हैं.

    मैकार्थीवाद एक ऐसी विचारधारा है जो एक-दो दशक के बाद अपनी पहचान खोने लगती हैं. हिटलर के मामले में बिलकुल ऐसा ही हुआ था. लेकिन, तबतक यह व्यापक नुक्सान कर चुकी होती होती हैं.

    भारत में शिक्षा प्रणाली का कमजोर होना और सत्तासीन नेताओं का इसमें सीधे भाग न लेकर मीडिया को आगे करने की रणनीति, इसे लम्बे समय तक जीवित रख सकती हैं. भारत में इस नीति के व्यापक उपयोग सरकार की नाकामियों को छुपाने में भी की जा रहा हैं.

    हरेक उग्र विचार किसी समाज में एक निश्चित समय तक ही कायम रह सकती हैं. मैकार्थीवाद भी इसका अपवाद नहीं हैं.

    Note: “मैकार्थीवाद” शब्द का पहला रिकॉर्ड किया गया उपयोग 28 मार्च, 1950 को क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर में था.

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