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राजनीतिक विचारधारा के 25 प्रकार

    आजकल आप भारत में किसी भी विचारधारा के समर्थन में बोलते है तो, उसे राजनीति से जोड़ दिया जाता है. लेकिन, ऐसा नहीं होता है. किसी का विचार कई प्रकार से प्रभावित होते है. ये जरुरी नहीं है कि किसी के द्वारा व्यक्त विचार हमेशा राजनीति से जुड़े हो. कई बार लोगों के मन में विचार स्वार्थ व परिवेश के अनुरूप भी पनपते है.

    विचारधारा क्या हैं? (What is Ideology in Hindi)

    मानव-सभ्यता के साथ ही लोगों में विभिन्न प्रकार के सोच पनपने लगे. फिर, ख़ास सोच के लोग एक साथ आने लगे और कालान्तर में अच्छे विचारधारा से अधिक लोग जुड़े. इस तरह हमारे समाज में अच्छे विचारों का तेजी से आदान-प्रदान होने लगा. इस तरह, किसी ख़ास व्यवस्थित व विस्तृत विचार व समाज में इसकी पैठ ही विचारधारा हैं.

    विचारधारा का सामान्य आशय राजनीतिक सिद्धांत के विचारों का वह समूह है, जिसके आधार पर वह किसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संगठन विशेष को उचित या अनुचित ठहराता है. विचारधारा के आलोचक अक्सर ये तर्क देते है कि यह विज्ञान से दूर है. हालाँकि, विज्ञान भी अक्सर नास्तिकता जैसे विचारधारा से प्रेरित होकर सिर्फ वास्तविकता पर ही भरोसा करता है.

    अक्सर विचारधारा, कानूनी, नैतिक, सौंदर्यात्मक, धार्मिक तथा दार्शनिक; विचार, चिंतन और सिद्धांत से प्रभावित होता है. किसी विचारधारा के प्रसार में समाज व इसके लाभुकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है. वांछित लाभ से प्रेरित होकर वे अपने विचारधारा पर काफी बल देते है और फैलाते है.

    विचारधारा के प्रकार (Types of Ideologies in Hindi)

    देश और दुनिया में कई तरह के विचारधाराओं का प्रसार हुआ है. ये राजनैतिक, आर्थिक व सामाजिक पहलुओं से जुड़े हो सकते है. इनमें कुछ निर्माणकारी तो कुछ विध्वंसक या विनाश के बाद या विनाश के साथ-साथ निर्माण करने वाला हो सकता है.

    1. अराजकतावाद (Anarchism in Hindi)

    इस विचारधारा को अकसर राजयविहीन उपद्रवी शासन का प्रकार माना जाता है. लेकिन, वास्तव में ऐसा नहीं हो. अराजकतावाद में राज्य या किसी प्राधिकार के बिना स्वतःस्फूर्त शांति और व्यवस्था की बात कही गई है. इस विचारधारा को मानने वाले लोग मानते है कि मनुष्य मूलतः विवेकशील, निष्कपट और न्यायप्रिय प्राणी है. यदि मानव के इन गुणों को उभार दिया जाएं, तो किसी भी प्रकार के शासकीय नियंत्रण की जरुरत नहीं होगी.

    हालाँकि, वर्तमान में दुनिया के बड़ी आबादी को सार्वजनिक परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा व अन्य व्यवस्था की जरुरत होती है. इन चीजों को व्यवस्थित करने के लिए राज्य का होना जरुरी है.

    2. समुदायवाद (Communitarianism in Hindi)

    सभ्य होने के साथ ही मनुष्य समूह में रहने लगा. फिर, समूह के किसी व्यक्ति के तुलना में पुरे समुदाय के स्वार्थ को तरजीह दिया जाने लगा. इस तरह समुदायवाद के विचारधारा का विकास हुआ. कबीले व एक इलाके के एकसमान लोग इसके उदाहरण हो सकते है. यह विचारधारा काफी पुराना है और महान चिंतक अरस्तु के समय में भी यह मौजूद था.

    3. जातिवाद (Casteism in Hindi)

    यह विचारधारा ऐतिहासिक भेदभाव, सामाजिक घृणा, छुआछूत व उत्पीड़न जैसे असामनता वाले कारकों का जन्मदाता है. आधुनिक समाज में इसे रंगभेद की भाँती भेदभाव का एक कारण माना जाता है. कई बार राजनैतिक दल भी जातिवादी भावना से काम करते है. हालाँकि, जागरूकता के कारण दुनिया के कई देश जातिवादी उत्पीड़न के सम्बन्ध में कानून ला रही है. कई सरकारें व संस्थान जातिय उत्पीड़न के शिकार समूहों को विशेष सुविधाएं भी दे रही है.

    4. कुलीनतावाद (Oligarchicism in Hindi)

    राजनीति विज्ञान के इस विचारधारा में कुलीन तंत्र को सर्वश्रेष्ठ मानकर सत्ता सौंप दिया जाता है. प्लेटो एवं अरस्तू को कुलीनतावाद का उन्नायक विचारक माना गया है. इस सिद्धांत के अंतर्गत वंश, कुल तथा प्रजाति को आभिजात्यता का प्रतिमान माना जाता है.

    सामाज में कुलीनों की संख्या कम होती है. इसमें भी विशेषाधिकार वर्ग में काफी कम लोग शामिल हो पाते है. इस तरह ताकतवर अल्पसंख्यक वर्ग का शासन कायम हो जाता है.

    प्राचीन रोम में कुलीनों को सत्ता में शामिल होने का अधिकार था. सामंतवाद के दौर में भी ऐसा दिखा है. अक्सर कुलीन वर्ग, खुद के स्वार्थपूर्ति में लगे होते थे. इसलिए, सामान्य जनता के हित के लिए यह विचारधारा सही नहीं माना जाता है.

    5. साम्यवाद (Communism in Hindi)

    यह सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक पहलुओं का सम्मिलित व्यवस्था का विचारधारा है. इसमें लोगों को उनके योग्यता के अनुसार काम दिया जाता है और जरुरत के हिसाब से निजी उपयोग के संसाधन मुहैया कराए जाते है. लोगों में संसाधन के बंटवारे के वक्त कोई भेदभाव नहीं किया जाता है और अमीर-गरीब को एक नजरिए से देखा जाता है.

    साम्यवाद वस्तुतः गरीबों के कल्याण पर जोर देती है. लेकिन, इसमें सामजिक, राजनैतिक व आर्थिक प्रतिस्पर्धा का अभाव हो जाता है. चूँकि, सभी को समान सुविधाएं मिल रही होती है. इसलिए, यह विचारधारा अक्सर असफल होते हुए देखा गया है.

    यह समाजवादी विचारधारा का ही एक रूप है, जो किसी समय दो-ध्रुवीय विचारधाराओं (साम्यवाद व पूंजीवाद) में एक था. यह कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों पर आधारित है. माओवाद, नक्सलवाद जैसे विचारधारा भी साम्यवाद से ही प्रेरित है. क्षेत्रीय स्तर पर उन्हें अलग नाम दे दिया गया है.

    6. रूढ़िवाद (Conservatism in Hindi)

    यह विज्ञान और तार्किकता को दरकिनार करते हुए पुराने रूढ़िवादी सोच और परम्परा के अनुरूप व्यवहार करने का पुरातन विचारधारा है. इसमें पुराने और परखे हुए सिद्धांतों को बेहतर बताया जाता है. आधुनिक युग में इसके समर्थकों को पिछड़ी सोच के दायरे में वर्गीकृत किया जाता हैं. इस विचारधारा को विज्ञान व नवोन्मेष के खिलाफ भी माना जाता है.

    7. निगमवाद (Corporatism in Hindi)

    इस व्यवस्था में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कृषि, श्रम, सैन्य, व्यवसाय, वैज्ञानिक, आदि; के निगमीकरण (Corporatisation) का वकालत किया जाता हैं. इसमें क्षेत्रों से जुड़े लोगों को फैसला का अधिकार देने की वकालत की गई है. कई बार इसका अर्थ पूंजीपतियों को सत्ता सौंपने से भी लगा लिया जाता है.

    8. लोकतंत्र (Democracy in Hindi)

    इसे शासन-प्रणाली का सबसे लोकप्रिय रूप माना जाता है. अक्सर, इसमें पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का समावेश होता हैं. आधुनिक लोकतंत्र में समाजवाद से जुड़े निति व योजनाएं भी लागु की जाने लगी है. इसकी विस्तार से चर्चा अलग से भी की गई है.

    9. पर्यावरणवाद (Environmentalism in Hindi)

    यह प्रकृति और पर्यावरण के स्वास्थ्य बनाए रखने पर जोर देता है. इसमें मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई की भी चेष्टा की जाती है.

    अक्टूबर 2022 में ब्राजील में हुए राष्ट्रपति चुनाव में वहां के पदस्थ राष्ट्रपति फिर बोल्सोनारो का हार हुआ. इसमें उनके प्रतिद्वंदी लूला डी सिल्वा की जीत हुई. बोल्सोनारो के दौर में अमेज़न वर्षा वनों की जमकर कटाई हुई थी. इसका वहाँ के जनता विरोध कर सकते है. इस तरह ब्राजील के चुनाव परिणाम को पर्यावरणवादियों की जीत कहा जा सकता है.

    10. फासीवाद व नाजीवाद (Fascism & Nazism in Hindi)

    ये दोनों विचारधारा प्रथम विश्व युद्ध से जुड़े कुंठाओं की उपज है. द्वितीय विश्वयुद्ध में विनाश के लिए इन विचारधाराओं को काफी हद तक जिम्मेदार माना जाता है. यह धुर-दक्षिणपंथी व तानाशाही विचारधारा है, जिसका उदय इटली में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुआ.

    कालांतर में इटली से निकली इस घृणित विचारधारा को जर्मनी में हिटलर ने भी अपना लिया. जर्मनी में इसे नाजीवाद का नाम दिया गया. यह व्यवस्था मानवधिकार के खिलाफ जाकर सिर्फ अपने समूह के हित के लिए काम करता था.

    द्वितीय विश्व युद्ध में ध्रुवीय राष्ट्रों के पराजय के साथ ही इन विचारधाराओं का समापन हो गया. हालाँकि, दुनिया के कई हिस्सों में आज भी तानाशाही से जुड़े शासन-प्रणाली पाए जाते है.

    11. पहचान की राजनीति (Identity Politics in Hindi)

    यह एक राजनीतिक दृष्टिकोण है जिसमें एक विशेष लिंग, धर्म, जाति, सामाजिक पृष्ठभूमि, सामाजिक वर्ग, पर्यावरण, या इसी के समान अन्य पहचान वाले लोग, अपने पहचान पर आधारित राजनीतिक एजेंडा विकसित करते हैं.

    बहुसंस्कृतिवाद, महिला व नागरिक अधिकार आंदोलन, समलैंगिक और समलैंगिक आंदोलन, और क्षेत्रीय अलगाववादी आंदोलन के रूप में विविध घटनाओं का वर्णन करने के लिए इस शब्द का उपयोग विभिन्न तरीकों से किया जाता है. इस प्रकार इसे किसी ख़ास मकसद से जोड़कर पहचान की राजनीति करार दिया जाता है.

    12. उदारवाद (Liberalism in Hindi)

    यह व्यक्ति के अधिकारों, स्वतंत्रता, शासितों की सहमति और कानून के समक्ष समानता पर आधारित एक राजनीतिक और नैतिक दर्शन है. ये आम तौर पर व्यक्तिगत अधिकारों (नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों सहित), उदार लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, कानून के शासन, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता, भाषण, प्रेस व धर्म की स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं.

    राजनैतिक व बौद्धिक परंपरा के रूप में उदारवाद एक नवीन घटना है. यह आधुनिक युग में 17वीं शताब्दी की घटना है. भारत में बौद्ध धम्म व श्रवण परंपरा के रूप में उदार दार्शनिक विचार आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व से मौजूद थे.

    13. स्वतंत्रतावाद (Libertarianism in Hindi)

    यह एक राजनीतिक दर्शन है जो स्वतंत्रता को एक राज्य का प्रमुख मूल्य मानता है. स्वतंत्रतावादी, जनता के स्वायत्तता और राजनीतिक स्वतंत्रता को अधिकतम करने और इसमें राज्य के हस्तक्षेप को कम करने की कोशिश करते हैं. इसका मकसद लोगों को गरिमापूर्ण जीने की आजादी दिलाना होता है.

    यह विचारधारा कई लोकतान्त्रिक मूल्यों में से एक है और इसे मानवीय अधिकार भी माना जाता है. इसमें, समाज में हस्तक्षेप की राज्य की शक्तियों को न्यूनतम करने की कोशिश भी होती है.

    राज्य को उस हद तक ही स्वतंत्रता होता है, जिससे एक व्यक्ति दूसरे के स्वतन्त्रता का हनन न कर सके. लोगों को अपने पसंद और तरीके से जीने की आजादी की मांग भी इसी सिद्धांत का भाग है.

    14. राष्ट्रवाद (Nationalism in Hindi)

    आधुनिक समय में कई बार इस विचारधारा को तानाशाही से भी जोड़ दिया जाता है. कई लोग इसे भूमंडलीकरण के खिलाफ भी मानते है. यह एक ऐसी विचारधारा है जो मानती है कि समान पहचान और विशेषताओं वाले लोग एक अलग राजनीतिक समुदाय है. इसलिए उन्हें अलग देश बनाकर अपना क्षेत्रीय सीमा निर्धारित करना चाहिए. ऐसे देश के प्रबंधन से संबंधित शक्तियां उनके संप्रभु सरकार के पास होनी चाहिए. इसमें कोई भी बाहरी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए.

    इस विचारधारा का उद्देश्य भौगोलिक स्थिति, सरकार, संस्कृति, जातीयता, भाषा, धर्म, परंपराओं आदि की साझा सामाजिक विशेषताओं के आधार पर एकल राष्ट्रीय पहचान का निर्माण और रखरखाव करना होता है.

    15. लोकलुभावनवाद (Populism in Hindi)

    यह एक राजनीतिक दर्शन है, जो अक्सर लोकतान्त्रिक देशों में पाया जाता है. इसमें जनता के आर्थिक लाभ और उनके भलाई की बात की जाती है. इसमें महंगाई कम करना, टैक्स हटाना, शहरियों को मुफ्त कार व ग्रामीणों को मुफ्त ट्रेक्टर जैसे मुद्दे शामिल होते है.

    कई बार इन घोषणाओं को वास्तविकता में लागु करना संभव नहीं होता है. लेकिन, फिर भी ऐसे मुद्दे उछाले जाते है. इसकी वजह है ऐसे मुद्दों पर पर्याप्त जनसमर्थन मिलता महसूस होना. कई बार ऐसे मुद्दो चुनाव जीत भी लिए जाते है.

    इस शब्द का विकास 19वीं शताब्दी के अंत में हुआ था. उस समय कई राजनेताओं, राजनीतिक दलों और आंदोलनों को इस प्रकार का बताया गया. हालाँकि, इसे अब नकारात्मक रूप में भी पेश किया जाने लगा है.

    राजनीति विज्ञान और अन्य सामाजिक विज्ञानों के भीतर, लोकलुभावनवाद की कई अलग-अलग परिभाषाएँ डी गई हैं. कुछ विद्वानों का प्रस्ताव है कि इस शब्द को पूरी तरह से खारिज कर दिया जाना चाहिए.

    16. प्रगतिवाद (Progressivism in Hindi)

    इस राजनीतिक दर्शन के समर्थक सामाजिक सुधारों का समर्थन करते है. इसमें विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अर्थव्यवस्था और समाजिक विकास को मानव स्थितियों में सुधार के लिए बहुत जरुरी मन जाता है.

    18वीं और 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति से यूरोप में हुए बदलाव से इस विचारधारा को फलने-फूलने में मदद मिला. इसे पूंजीवाद और लोकतंत्र का समर्थक विचारधारा भी माना जा सकता है.

    17. धार्मिक-राजनीतिक विचारधारा (Religio-political ideologies in Hindi)

    कार्ल मार्क्स के अनुसार, धर्म जनता के लिए अफीम के समान है. लेकिन, कई बार लोगों को अपने साथ जोड़ने के लिए बहुसंख्यक धर्म का सहारा लिया जाता है. इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण है. कई राजनैतिक दल भी सीधे तौर पर धर्म की राजनीति से प्रेरित हुए है. यह विचारधारा रूढ़िवाद को बढ़ावा देने वाला होता है.

    18. व्यंग्य और राजनीति-विरोध (Satirical and anti-politics in Hindi)

    राजनीतिक व्यंग्य में राजनीति का मजाकिया लहजे में प्रस्तुत कर या किसी ख़ास व्यक्ति या विचारधारा के राजनीति का मजाक उड़ाकर मनोरंजन प्राप्त किया जाता है. कई बार इसका उपयोग विध्वंसक इरादे से भी किया गया है, जब सरकार ने लोकतान्त्रिक मूल्यों को कुचलने का प्रयास किया.

    इस तरह का व्यंग्य कई बार राजनीतिक विरोध या असंतोष जुड़ा नहीं होता है; और इसका मकसद सिर्फ मनोरंजन प्रदान करना होता है.यह नेपोलियन-तृतीय यानी 19वीं से 20वीं सदी से प्रचलित है. कई बार इसका उपयोग किसी विचारधारा के खिलाफ लोगों को भड़काने के लिए भी किया जाता है.

    19. समाजवाद (Socialism in Hindi)

    यह एक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दर्शन से जुड़ा विचारधारा है. इसमें समाज के किसी भी व्यक्ति के पास भूमि, भवन, फैक्ट्री, अस्पताल जैसी संपत्ति के निजी स्वामित्व का विरोध किया गया है. समाजवादी, भूमि व अन्य प्राकृतिक संसाधनों जैसे झीलों, नदियों, समुद्रों, पहाड़ों के झरनों, तालाबों आदि को प्राकृतिक संसाधन मानते है.

    इसके अनुसार, इमारतों और आर्थिक संसाधनों के अन्य सम्पत्तियों पर व्यक्तिगत स्वामित्व के बजाय, सामाजिक स्वामित्व होना चाहिए. यानी किसी भी चीज पर किसी एक व्यक्ति का एकाधिकार नहीं होना चाहिए.

    क्षमता के अनुसार काम और काम के अनुसार संसाधन के उपयोग की अनुमति, समाजवाद की पहचान है. साम्यवादी विचारधारा भी समाजवाद का ही अंग है. इसलिए, दोनों में समानता दिखती है.

    आधुनिक समय में, समाजवाद का मकसद जनता को मौलिक सहूलियत मुफ्त में उपलब्ध करवाना भी हो गया है. जैसे, स्वास्थ्य व शिक्षा. दुनिया के पूंजीवादी देश भी इस तरह के कुछ संकल्पनाओं को अपना रहे है.

    20. श्रमिक संघवाद (Syndicalism in Hindi)

    इस विचारधारा के अनुसार श्रमिकों और मजदूरों के स्थानीय स्तर पर संघ संगठन होने चाहिए, जो जरुरत पड़ने पर इनके अधिकारों के लिए आवाज उठा सकें व प्रदर्शन कर सकें. इस विचारधारा में मजदूरों, श्रमिकों व इनके संगठन को राज्य या किसी राजनीतिक दल पर बिलकुल भरोसा न करने की हिदायत दी गई है.

    सिंडीकलिस्ट, सरकार को पूंजीपतियों एजेंट मानती है. इनके अनुसार, सरकार वही करेगी जो पूंजीपति, औद्योगिक और व्यापारी वर्ग के हित में है. राजनीतिक दल भी किसी न किसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है. वे कभी भी मजदूरों और श्रमिकों के वाज़िब हक की बात नहीं कर सकते.

    इसलिए उनका मानना ​​है कि मजदूरों को अपने अधिकारों के लिए खुद ही लड़ना पड़ता है. और वे अपने अधिकारों के लिए केवल ट्रेड यूनियन संगठनों के माध्यम से ही आंदोलन कर सकते हैं.

    सिंडिकलिस्ट विचारधारा अक्सर साम्यवाद और समाजवाद से भी प्रेरित होते है. यह तथ्य लगभग शत-प्रतिशत सत्य भी है. इसका कारण कार्ल मार्क्स का नारा. “दुनिया के मजदूरों एक हो” भी है.

    21. क्रोनी कैपिटलिज्म या छद्म पूंजीवाद (Crony Capitalism in Hindi)

    इसे लोकतान्त्रिक व पूंजीवादी व्यवस्था का प्रच्छन्न खामी कहा जा सकता है. इसमें पूंजीपति सरकार के साथ मिलीभगत कर काफी धन कमाते है. नीतियों का निर्माण इस प्रकार किया जाता है कि वह जनहित में दिखता है, लेकिन अंततः पूंजीपतियों के लिए लाभप्रद होता है. इसमें, कई बार पूंजीवादियों द्वारा चलाए जाने वाले मीडिया समूहों से भी निति व योजनाओं को फायदेमंद साबित कर दिया जाता है.

    यह विचारधारा पूंजीवादी लोकतंत्र के मुख्य दोषों में से एक है. इस विचारधारा के प्रश्रय से गरीब और भी गरीब व अमीर और भी अमीर होते जाते है. इससे असमानता की खाई बढ़ती है जनाक्रोश भी बढ़ता जाता है. कई बार यह विचारधारा व्यवस्था के लिए खतरा भी बन सकता है.

    हालाँकि, कई बार पूंजीपति प्राप्त लाभ का बड़ा हिस्सा कर के रूप में चुकाते है. वहीं, इस राजस्व का जनकल्याण में इस्तेमाल कर इस विचारधारा के प्रभाव को कम किया जा सकता है. दूसरी ओर, भ्रष्ट तरीके से की गई मिलीभगत में जनता को कई गुना नुकसान होने का संभावना होता है.

    22. अम्बेडकरवाद (Ambdekarism in Hindi)

    भारत के संविधान-निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर ने समतामूलक समाज का सपना देखा था. उनके विचारों का स्पष्ट प्रभाव हमारे संविधान में भी दिखता है. उन्होंने समाज से जाति. जातिवाद और जातिय उत्पीड़न तथा इससे उपजे असमानता के उन्मूलन की वकालत की है.

    वस्तुतः अम्बेकर्वाद, आधुनिक लोकतान्त्रिक और समाजवादी विचारधारा के खूबियों का समावेश प्रतीत होता हैं. डॉ आंबेडकर के विचार व लेखन काफी विस्तृत है. इसलिए कुछ शब्दों में इसकी व्याख्या करना दुष्कर है. हालाँकि, लोकतंत्र के सम्बन्ध में दी गई उनकी परिभाषा से, उनके राजनैतिक समाज की विचारधारा का एक झलक मिलता है.

    23. सर्वाधिकारवाद (Totalitarianism in Hindi)

    इस विचारधारा में राज्य से जुड़े सभी अधिकार एकेन्द्रित होती है. इस विचारधारा में जनता से जुड़े सभी अधिकारों को राज्य को सौंपने की वकालत की जाती है. फासीवाद या नाजीवाद की एक विशेषता इसे भी माना जा सकता है.

    24. सत्तावाद (Authoritarianism in Hindi)

    इसमें किसी ख़ास विचारधारा या दल को सबसे बढ़कर मानते हुए उसके निर्देशों के अनुसार चलने का प्रावधान होता है. यह विशेषता अक्सर साम्यवादी सरकार में पाई जाती है. इस तरह के राज्य में विचारधारा या दल पर किसी तरह का सवाल नहीं उठाया जाता है. कई बार विरोध करने पर प्रदर्शन को क्रूरतापूर्वक कुचल दिया जाता है.

    25. ट्रांसह्यूमनिज्म (Transhumanism in Hindi)

    इसमें विज्ञान और नवीन प्राद्यौगिकी का इस्तेमाल कर मानवीय विकारों को ठीक करने की वकालत की जाती है. वास्तव में यह जीएम फूड्स के उत्पादन की तरह ही हैं. इसमें भी जीन प्रत्यारोपण या उसमें कान्त-छांट कर सुधार करने की कोशिश की जाती है. यह प्रयोग विचारधारा कम और विज्ञान का चमत्कार अधिक प्रतीत होता है.

    कई बड़ी कंपनियां ऐसी तकनीकों को विकसित करने के लिए अनुसंधान में लगी हुई हैं, जैसे सेमिस रिसर्च फाउंडेशन, एलन मस्क (Elon Musk) का नेरालिंक, सर्कल्स मॉलिक्यूलर, आदि.

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