सिकंदर लोदी का दिल्ली सल्तनत पर शासन (1489–1517)

सिकंदर लोदी (निज़ाम खान) लोदी वंश का दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण शासक था. सिकंदर लोदी 17 जुलाई 1489 को सुल्तान सिकंदर शाह’ की उपाधि के साथ दिल्ली के सिंहासन पर बैठा. उसने 1489 से 1517 ई. तक शासन किया. वह बहलोल लोदी का पुत्र था.

सिकंदर लोदी को लोदी वंश का सबसे सफल सुल्तान माना जाता है. उसने 9000 फ़ारसी कविताओं का दीवान लिखा था. उसने दिल्ली सल्तनत से अलग हुए क्षेत्रों को वापस प्राप्त करने का प्रयास किया. इसमें वह सफल भी रहा और दिल्ली सल्तनत का दिल्ली के बाहर काफी विस्तार हुआ.

सिकंदर लोदी द्वारा साम्राज्य विस्तार (Expansion of Empire by Sikandar Lodhi)

सिकंदर लोदी की साम्राज्य-विस्तार की नीति अत्यंत सफल रही थी. उसने साम्राज्य में बयाना, धौलपुर, मंदरैल, अर्वतगढ़, शिवपुर, नारवार, चंदेरी, नागर, बिहार, तिरहुत आदि पर विजय प्राप्त की. इन इलाकों को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया. उसने जौनपुर के शर्कियों की शक्ति लगभग पूर्णतया कुचल दी थी. उसने ग्वालियर के राज्य को बहुत क्षीर्ण कर दिया था और मालवा के राज्य को भी अत्यंत दुर्बल कर दिया था.

सिकंदर लोदी ने दिल्ली सल्तनत का विस्तार किया. उसने ग्वालियर पर विजय प्राप्त की और पूर्व में अपने साम्राज्य का बिहार तक विस्तार किया. लेकिन, ग्वालियर के शासक मान सिंह तोमर के खिलाफ कई अभियान चलाए जाने के बावजूद इसे पूरी तरह से जीतने में सफल नहीं हुए.  बंगाल के शासक अलाउद्दीन हुसेन शाह से संधि कर पूर्व में शांति की स्थापना की. किन्तु वह न तो अपने पिता के समान एक कुशल प्रशासक था और न ही अपने अमीरों तथा अपनी प्रजा में उसकी भांति लोकप्रिय. उसकी धार्मिक नीति भी कट्टर थी. 1504 में, सिकंदर लोदी ने आगरा शहर की स्थापना की और इसे अपनी राजधानी बनाया. 

सिकंदर लोदी ने स्वतंत्र प्रकृति के अपने अफ़गान अमीरों को नियंत्रण में रखने में सफलता प्राप्त की. हालांकि इस नियंत्रण में स्थायित्व नहीं था. साम्राज्य पर नियंत्रण रखने के लिए और विद्रोह की संभावनाओं को रोकने के लिए उसने अपने गुप्तचर विभाग को सक्षम बनाया.

धार्मिक नीति (Religious Policy)

सिकंदर लोदी अपनी धर्मान्धता के लिए कुख्यात है. जन-श्रुतियों में प्रसिद्ध है की उसने कबीरदास जैसे उदार विचारक के दमन का भरसक प्रयास किया था और बोधन नामक एक ब्राह्मण को केवल इसलिए प्राण-दंड दिया था कि वह इस्लाम की भांति अन्य धर्मों में भी सत्य के दर्शन करता था. उसने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर को ध्वस्त किया था और उसके पवित्र मूर्ति के टुकड़े-टुकड़े करवा कर उन्हें कसाइयों को बाँट के रूप में प्रयुक्त करने के लिए दे दिया था.

राजस्व व व्यापार (Revenue and Trade)

सिकंदर लोदी ने व्यापार को बढ़ावा दिया और चूंकि व्यापार के विस्तार के लिए शांति और व्यवस्था की स्थापना आवश्यक होती है. सिकंदर लोदी ने अपने साम्राज्य में उसे स्थापित किया और व्यापार के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न कीं. व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए उसने अनेक व्यापारिक करों को हटा दिया. सिकंदर लोदी ने अपने निष्पक्ष न्याय-कर्ता के रूप में प्रसिद्द मियां भुआ को ‘क़ाज़ी-उल-क़ज़ात’ के पद पर नियुक्त किया.

सिकंदर लोदी ने सैनिक अभियानों में लूटे गए धन – ‘खम्स’ में राज्य का हिस्सा समाप्त कर दिया. उसने भू-राजस्व के निर्धारण के लिए भूमि की नाप-जोख की प्रणाली को पुनर्जीवित किया. नाप के लिए उसके द्वारा प्रचलित ‘गज़’ को ‘गज़-ए-सिकंदरी’ कहा गया. यह 39 इंच के बराबर था. इससे भूमिकर वसूली में आसानी हुई. इस माप प्रणाली का उपयोग लोदी वंश के शासकों द्वारा भी किया जाता था. बाद में इसे शेर शाह सूरी और अकबर जैसे शासकों द्वारा भी जारी रखा गया था.

फ़िरोज़ तुगलक़ के शासनकाल के बाद सिकंदर लोदी के शासनकाल में भी खाद्य पदार्थों के दामों में कमी आई क्योंकि उसने अनाज पर से चुंगी हटा दी थी और उस पर लिया जाने वाला ‘ज़कात’ भी हटा दिया. उसने गड़े हुए खज़ाने में से राज्य द्वारा लिया जाने वाला हिस्सा भी समाप्त कर दिया.

स्थापत्य (Architecture)

स्थापत्य कला की दृष्टि से लोदी काल में तुगलक़कालीन खान-ए-जहाँ तेलंगनी के मकबरे के अष्टकोणिक कक्ष की शैली को अपनाया गया. इस काल में अलंकरण के लिए रंगीन टाइल्स का प्रयोग किया गया.

लोदी काल की इमारतों में भवन-निर्माण कला के अभिन्न अंग के रूप में उद्यान-योजना को शामिल किया गया. इसका सबसे उत्कृष्ट उदाहरण लोदी गार्डन्स में मिलता है. सिकंदर लोदी के मक़बरे का प्रभाव मुग़ल इमारतों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है.

सिकंदर लोदी के वज़ीर द्वारा बनवाई गयी मोठ की मस्जिद को उसकी ज्यामितीय समरूपता तथा लाल पत्थर और सफ़ेद संगमरमर के सुन्दर सम्मिश्रण के कारण जॉन मार्शल लोदी काल की सबसे सुन्दर इमारत मानता है. सिकंदर लोदी ने ही 1503 में आगरा शहर की नींव रखी थी.

बलबन और अलाउद्दीन खिलजी के बाद सिकंदर लोदी ही वह सुल्तान था जिसने कि राजत्व के दैविक सिद्धांत को अपने राज्य में सफलतापूर्वक स्थापित किया था. किन्तु अफ़गान राजत्व के लोकतान्त्रिक सिद्धांत के स्थान पर राजत्व के दैविक सिद्धांत को स्वतंत्रता-प्रिय अफ़गान अमीरों ने कभी दिल से स्वीकार नहीं किया.

सुल्तान की मृत्यु पर अवसर मिलते ही उन्होंने नए सुल्तान इब्राहीम लोदी के लिए कठिनाइयाँ खड़ी कर दीं. इस प्रकार सिकंदर लोदी ने अपने उत्तराधिकारी इब्राहीम लोदी को विरासत में अफ़गान अमीरों की बगावत दी थी.

मृत्यु व मकबरा (Death and Tomb)

सिकंदर लोदी का मकबरा | Tomb of Sikandar Lodhi

सिकंदर लोदी का निधन 21 नवंबर 1517 ई. को दिल्ली में हुआ था. उनकी मृत्यु का कारण गले की बीमारी बताया जाता है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उन्हें मलेरिया या टाइफाइड जैसी कोई बीमारी हुई थी, जिससे उन्हें तेज बुखार आ गया था. मृत्यु के समय सिकंदर लोदी की आयु लगभग 59 वर्ष थी.

उसका मकबरा नई दिल्ली के लोदी गार्डन में स्थित है. इस क्षेत्र को पहले खैरपुर गांव कहा जाता था. इब्राहिम लोदी ने इसका निर्माण 1517-1518 ई. के बीच करवाया था. यह मकबरा अष्टकोणीय (आठ भुजाओं वाला) है, जो लोदी वंश के मकबरों की एक विशिष्ट विशेषता थी. यह बलुआ पत्थर से निर्मित है.

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