साल 2021 व 2022 में वाहन निर्माण उद्योग से सेमीकंडक्टर चिप्स की कमी की शिकायतें मिल रही थ. इसके बाद जनसामान्य को सेमीकंडक्टर चिप्स की जानकारी मिली. आज के समय में सेमीकंडक्टर चिप्स का वृहत उपयोग हो रहा हैं. इसलिए, इसे सुगम जीवन के लिए एक मुलभुत अवयव माना जा सकता हैं.
सेमीकंडक्टर चिप्स क्या हैं? (What is Semiconductor Chips in Hindi)
मुख्यतः इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में प्रयोग की जानेवाली सेमीकंडक्टर चिप्स, सेमीकंडक्टर (अर्धचालक तत्त्व) से बनी होती है. इस तत्व में चालक (Conductor) व कुचालक (Insulator) दोनों का गुण होता है. इसलिए, यह चालक और कुचालकों के बीच का तत्व है. इसका यही गुण इसे सेमीकंडक्टर चिप्स के निर्माण के लिए उपयुक्त बनाता है. डायोड, इंटीग्रेटेड सर्किट (IC) और ट्रांजिस्टर, सेमीकंडक्टर से बने होते हैं.
यह आम तौर पर एक ठोस रासायनिक तत्व या यौगिक से बना होता है. यह कुछ ख़ास परिस्तिथियों में ही बिजली का प्रवाह होने देता है, अन्यथा नही. इससे रोजमर्रा के उपयोग में आनेवाले बिजली उपकरणों में बिजली प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए आदर्श स्थिति उपलब्ध हो जाती हैं.
सेमीकंडक्टर चिप्स का निर्माण सिलिकॉन और जर्मेनियम उपयुक्त है. लेकिन, सबसे अधिक इस्तेमाल सिलिकॉन का किया जाता है. पृथ्वी पर, ऑक्सीज़न के बाद सबसे अधिक पाया जानेवाला तत्त्व सिलिकॉन है. यह मिटटी, बालू, चट्टान, पानी, जीवधारियों व पेड़ -पौधों में पाया जाता हैं. सेमीकंडक्टर गैलियम, आर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड जैसे यौगिकों के रूप में भी पाया जाता है.
कैसे काम करता हैं सेमीकंडक्टर? (How do Semiconductor work in Hindi)
तापमान में वृद्धि के साथ अर्धचालक का प्रतिरोध घटता है और विद्युत चालकता बढती है. इसमें धातु (चालक) या अधातु (कुचालक) मिलाकर इसकी चालकता क्रमशः अधिक या कम किया जा सकता हैं.
अधिकांश अर्धचालक कई सामग्रियों के क्रिस्टल से बने होते हैं. इसके काम करने के तरीके को समझने के लिए परमाणु की आंतरिक संरचना और इसमें इलेक्ट्रॉन के व्यवहार को समझना आवश्यक हैं. इलेक्ट्रॉन खुद को एक परमाणु के अंदर कोश (Cell) में व्यवस्थित रहते हैं. परमाणु के सबसे बाहरी कोश को संयोजकता कोश (Valence Cells) कहते हैं.
वैलेंस शेल के इलेक्ट्रॉन, पड़ोसी परमाणुओं से बंधन बनाते हैं. ऐसे बंधनों को सहसंयोजक बंधन कहा जाता है. अधिकांश कंडक्टरों के वैलेंस शेल में एक से तीन इलेक्ट्रॉन होता है.
दूसरी ओर, अर्धचालकों के वैलेंस शेल में मुख्यतः चार इलेक्ट्रॉन होते हैं. हालाँकि, यदि आस-पास के परमाणु समान संयोजकता से बने हैं, तो इलेक्ट्रॉन अन्य परमाणुओं के संयोजकता इलेक्ट्रॉनों के साथ बंध जाते है. जब भी ऐसा होता है, परमाणु खुद को क्रिस्टल संरचनाओं में व्यवस्थित करते हैं.
अर्धचालक ऐसे ही क्रिस्टलीय पदार्थों से बनाए जाते है. सिलिकॉन भी इसी तरह का एक क्रिस्टल हैं. जब इनका तापमान बढ़ाया जाता है तो कुछ इलेक्ट्रॉन विमुक्त होता है और यह चालक की भांति काम करने लगता हैं. अशुद्धियों को बढ़ाकर भी इसे कम या अधिक किया जा सकता हैं.
अर्धचालक के प्रकार (Type of semiconductor in Hindi)
सेमीकंडक्टर मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं. पहला आंतरिक और दूसरा बाह्य अर्धचालक.
आतंरिक सेमीकंडक्टर (Intrinsic Semiconductor in Hindi)
यह पूरी तरह से शुद्ध अर्धचालक तत्वों, जैसे जर्मेनियम या सिलिकॉन, से बने होते हैं. ये सिर्फ एक ही प्रकार के अर्धचालत तत्व का उपयोग कर बनाए जाते हैं. इनमे किसी प्रकार की अशुद्धि नहीं मिलाई जाती हैं.
बाह्य सेमीकंडक्टर (Extrinsic Semiconductor in Hindi)
इस प्रकार के सेमीकंडक्टर्स में बाहर से एक या एक से अधिक अशुद्धियाँ मिलाई जाती हैं. इन अशुद्धियों की संयोजकता तीन या पांच होती है. इस मिलावट से इनकी चालकता बढ़ जाती है. अर्धचालकों में मिलावट की यह प्रक्रिया डोपन कहलाती है. इस तकनीक को डोपिंग (doping) कहते हैं.
बाह्य सेमीकंडक्टर भी दो प्रकार के होते हैं-
एन प्रकार के अर्धचालक (N Type Semiconductor)
पी प्रकार के अर्धचालक (P Type Semiconductor)
N Type Semiconductor क्या हैं? (n-Type Semiconductor in Hindi)
किसी शुद्ध अर्धचालक में पांच संयोजकता वाले चालक को को मिलाने से इस प्रकार के अर्धचालक बनते हैं. इस मिलावट से, पांच संयोजकता वाले पदार्थ का चार इलेक्ट्रॉन, अर्धचालक के चार इलेक्ट्रॉन से जुड़ जाता हैं. बाहरी पदार्थ का एक इलेक्ट्रॉन मुक्त रहता है, जो चालकता के काम आता हैं.
चालक अशुद्धि की मात्रा जितना अधिक होता है, अर्धचालक की चालकता उतना ही अधिक बढ़ जाता हैं. इस प्रकार अर्धचालक के चालकता को नियंत्रित किया जाता हैं. इन्हें “एन टाइप सेमीकंडक्टर” कहा जाता हैं. ये आवेश में ऋणात्मक (Negative) होते हैं.
P Type Semiconductor क्या होते हैं? (p-Type Semiconductor in Hindi)
किसी अर्धचालक में तीन संयोजकता वाले चालक पदार्थ को मिलाकर, पी टाइप सेमीकंडक्टर बनाया जाता हैं. जब तीन संयोजकता वाले पदार्थ को अर्धचालक से मिलाया जाता है, तो अशुद्धि का तीन इलेक्ट्रॉन, अर्धचालक के तीन इलेक्ट्रॉन से जुड़ जाता हैं. अर्धचालक का एक इलेक्ट्रॉन शेष रह जाता हैं.
शेष इलेक्ट्रॉन के पास दूसरे इलेक्ट्रॉन को जोड़ने के लिए स्थान रिक्त रह जाता हैं. यह स्थान कोटर कहलाता हैं. बाहर से विद्युत् प्रवाहित करने पर कोटर में पड़ोसी जर्मेनियम परमाणु से बंधा हुआ एक इलेक्ट्रॉन आ जाता है, इससे पड़ोसी परमाणु में एक स्थान रिक्त होकर कोटर बन जाता है.
इस प्रकार कोटर, क्रिस्टल के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर विद्युत क्षेत्र के विपरीत दिशा में चलने लगता है. मतलब, कोटर धनावेशित कण के तुल्य होता है, जो इलेक्ट्रॉन के सापेक्ष विपरीत दिशा में चलता है.
इस प्रकार के अपद्रव्य मिले जर्मेनियम क्रिस्टल को पी-टाइप अर्धचालक कहते हैं, क्योंकि इसमें आवेश वाहक धनात्मक होते हैं. अपद्रव्य परमाणुओं को ग्राही परमाणु कहते हैं, क्योंकि वह शुद्ध अर्धचालक से इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करता है.
कुछ अर्धचालक युक्तियाँ (Some Semiconductor Devices in Hindi)
पीएन संधि (P-N Junction in Hindi)
PN संधि में, n-क्षेत्रों से क्षेत्रा से इलेक्ट्रॉन की हानि तथा p क्षेत्रों को प्राप्ति होती हैं. इस प्रकार दो संधि के बीच विभवांतर उत्पन्न हो जाता हैं. इस विभव की ध्रुवता इस प्रकार होती हैं कि यह आवेश वाहकों और प्रवाह का विरोध करता हैं. इसके फलस्वरूप साम्यावस्था की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इस तरह के संधि का प्रयोग कर कई सेमीकंडक्टर उत्पाद बनाए जाते है, जो इलेक्ट्रॉनिक समेत कई क्षेत्रों में उपयोग किए जाते हैं.
अर्धचालक डायोड (Semiconductor Diode in Hindi)
सेमीकंडक्टर डायोड मुख्यतः एक P-N संधि होता हैं. इसके संधि पर धात्विक सम्पर्क जुड़े होते है ताकि इस संधि पर कोई बाहरी वोल्टता प्रयोग की जा सकें. सेमीकंडक्टर डायोड में दो टर्मिनल होते हैं.
प्रकाश उत्सर्जक डायोड (Light Emitting Diode in Hindi)
यह एक अत्यधिक अपमिश्रित p-n संधि डायोड होता है, जो पूर्व निर्धारित दिशा में प्रकाश का उत्सर्जन करता हैं. यह एक पारदर्शी पदार्थ से ढका होता हैं, ताकि प्रकाश बाहर आ सकें. LED बल्ब इसी सिद्धांत पर काम करते हैं.
प्रकाश डायोड (Photo Diode in Hindi)
यह भी p-n संधि के सिद्धांत पर बना होता है. यह प्रकाश-संवेदी पदार्थों से बना होता है. यह पारदर्शी पदार्थ से ढका होता है, जिसपर प्रकाश डालकर इसे सुचना दिया जाता हैं. इसका उपयोग प्रकाश संचालित कुंजियों व कंप्यूटर पंचकार्डों को पढ़ने में किया जाता हैं.
ट्रांजिस्टर (Transistor in Hindi)
यह भी p-n संधि प्रकार का डायोड हैं. इसका उपयोग ट्रायोड वाल्व के स्थान पर किया जाती है. इससे प्रवर्धक, स्विच, वोल्टेज नियामक (Voltage Regulator), संकेत न्यूनाधिक (Signal Modulator), ओसिलेटर (Oscillator) आदि बनाया जाता हैं.
अर्धचालक प्रकाश संवर्धन (Semiconductor Optical Amplifier in Hindi)
यह अर्धचालकों में प्रकाश की गति बढ़ाने की युक्ति हैं. इसका उपयोग डेटा केंद्रों के बीच संचार को त्तेजी देने के लिए ऑप्टिकल ट्रांसीवर मॉड्यूल में किया जाता हैं.
इस तरह, यह ईथरनेट संचार के लिए उपयोग किए जाने वाले ऑप्टिकल सिग्नल को तेज करता हैं. इस तरह यह डाटा के आदान-प्रदान में हो रही समय-क्षति को कम करता हैं.
रेडियो फ्रीक्वेंसी सेमीकंडक्टर क्या हैं? (Radio Frequency Semiconductor in Hindi)
आरएफ एक उपकरण है जिसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में बिजली प्रवाह को शुरू या सुधारने के लिए किया जाता है. ये लगभग 3KHz से लेकर 300GHz की बीच के रेडियो फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम में काम करते हैं.
फेबल सेमीकंडक्टर किसे कहते हैं? (Fable Semiconductor in Hindi)
वे कंपनियां जो हार्डवेयर और सेमीकंडक्टर चिप्स का डिज़ाइन, निर्माण और बिक्री करती हैं. लेकिन अपने स्वयं के सिलिकॉन वेफर्स या सेमीकंडक्टर चिप्स का निर्माण नहीं करती हैं. इसके बजाय, वे फैब्रिकेशन को किसी फाउंड्री या किसी अन्य मैन्युफैक्चरिंग प्लांट को आउटसोर्स करते हैं.
सेमीकंडक्टर फेब इसकी निर्माण इकाई होती है. इसके स्थापना में बड़ी पूंजी कि आवश्यकता होती हैं. साथ ही, जल की भी बड़े पैमाने पर जरुरत होती हैं. भारत में सेमीकंडक्टर चिप्स का फेब, पंजाब के मोहाली में स्थित हैं. इसरो व डीआरडीओ के भी अपने चिप्स फैब हैं, लेकिन ये विश्वस्तरीय नहीं हैं.
सेमीकंडक्टर चिप्स के फायदे (advantage of semiconductor devices in hindi)
आप ये जान ले कि सेमीकंडक्टर चिप्स के स्थान पर पहले वैक्यूम ट्यूब्स का इस्तेमाल किया जाता था. वैक्यूम ट्यूब्स की क्षमता कम होती थी. इसलिए द्वितीय विश्व युद्ध के समय इसके प्रतिस्थापन की खोज की जाने लगी. इसी क्रम में सेमीकंडक्टर चिप्स का खोज हुआ. सेमीकंडक्टर चिप्स का सबसे पहले इस्तेमाल राडार सिस्टम में किया गया था. इसके फायदे इस प्रकार हैं:-
- इन्हें गर्म करने की आवश्यकता नहीं पड़ती, सर्किट को चालु करते ही ये काम करना शुरू कर देते है. ऐसा इनमें फिलामेंट न होने की वजह से होता हैं.
- यह कम वोल्टेज पर काम करता हैं.
- यह वैक्यूम ट्यूब की तुलना में सस्ते और अधिक क्षमता वाले होते हैं.
- इनका जीवनकाल अनंत होता हैं.
सेमीकंडक्टर चिप्स के नुकसान (disadvantages of semiconductor devices in hindi)
- वैक्यूम ट्यूब जहाँ कम शोर करते है, वहीं सेमीकंडक्टर चिप्स अधिक शोर करते हैं.
- सेमीकंडक्टर चिप्स अधिक बिजली यानि उच्च वोल्टता को नहीं सह पाते हैं.
सेमीकंडक्टर चिप्स का इतिहास (History of Semiconductor Chips in Hindi)
1874 में रेक्टिफायर (एसी-डीसी कन्वर्टर) के आविष्कार से ही सेमीकंडक्टर चिप्स का इतिहास शुरू हो जाता हैं. दशकों बाद, 1947 में अमेरिका के बेल लेबोरेटरीज में बर्डीन और ब्रेटन ने पॉइंट-कॉन्टैक्ट ट्रांजिस्टर का आविष्कार किया. 1948 में शॉक्ले ने जंक्शन ट्रांजिस्टर का आविष्कार किया. इन आविष्कारों के बाद, ट्रांजिस्टर युग का शुरुआत हो गया.
1946 में, अमेरिका में पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय ने वैक्यूम ट्यूबों का उपयोग करके एक कंप्यूटर बनाया। कंप्यूटर इतना बड़ा था कि उसकी वैक्यूम ट्यूब से पूरा इमारत पर भर गया. इसे चलाने में काफी बिजली लगी और गर्मी भी काफी अधिक पैदा हुई.
इसके बाद, आधुनिक ट्रांजिस्टर कैलकुलेटर (कंप्यूटर) विकसित किया गया. इस आविष्कार के बाद कंप्यूटर उद्योग में क्रांति आ गई और सेमीकंडक्टर चिप्स का उपयोग भी बढ़ने लगा.
1956 में, अर्धचालक अनुसंधान और ट्रांजिस्टर के विकास में उनके योगदान के लिए शॉक्ले, बारडीन और ब्रेटन को संयुक्त रूप से भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया.
सेमीकंडक्टर चिप्स उद्योग का विकास (Development of Semiconductor Chips Industry in Hindi)
ट्रांजिस्टर के आविष्कार के बाद सेमीकंडक्टर उद्योग तेजी से विकसित हुआ. 1957 में, यह उद्योग 100 मिलियन डॉलर के पैमाने को पार कर चुका था.
1959 में, अमेरिका में टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स के किल्बी और फेयरचाइल्ड सेमीकंडक्टर के नॉयस द्वारा बाइपोलर इंटीग्रेटेड सर्किट (ICs) का आविष्कार किया गया. इस आविष्कार का अर्धचालकों के इतिहास पर एक बड़ा प्रभाव पड़ा. इसने आईसी युग का शुरुआत किया. आकार में छोटा और हल्का होने के कारण, विभिन्न प्रकार के विद्युत उपकरणों में IC का व्यापक रूप से उपयोग किया जाने लगा.
1967 में, टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स ने IC का उपयोग करके इलेक्ट्रॉनिक डेस्कटॉप कैलकुलेटर (कैलकुलेटर) विकसित किया. जापान में, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्माताओं ने एक के बाद एक कैलकुलेटर के वर्जन जारी किए.
कंपनियों के बीच कांटे की “कैलकुलेटर युद्ध” 1970 के दशक के अंत तक जारी रहे. आईसी एकीकरण और भी आगे बढ़ा. बड़े पैमाने पर एकीकृत सर्किट (एलएसआई) विकसित किया गया. इसकी प्रौद्योगिकियां आगे बढ़ती रही.
वीएलएसआई (प्रति चिप 100 हजार से 10 मिलियन इलेक्ट्रॉनिक घटक) 1980 के दशक में विकसित किया गया था. फिर, 90 के दशक में, यूएलएसआई (प्रति चिप 10 मिलियन से अधिक इलेक्ट्रॉनिक घटक) विकसित किया गया. आगे, 2000 के दशक में, सिस्टम एलएसआई (एक चिप में एकीकृत कई कार्यों के साथ एक बहुक्रिया एलएसआई) का विकास हुआ और इसका उत्पादन भी शुरू हो गया.
जैसे-जैसे IC विकसित होते गए, इनका प्रदर्शन भी बढ़ते गया. धीरे-धीरे इसका प्रयोग कई क्षेत्रों में होने लगा. आज यह हमारे जीवन के रोजमर्रा के कई चीजों में उपयोग में आता हैं. इससे जीवन सुगम हुआ हैं.
सेमीकंडक्टर चिप्स के उपयोग (Uses of Semiconductor Chips in Hindi)
हम इस बात से वाकिफ हैं कि हमारे कंप्यूटर में सेमीकंडक्टर चिप्स का उपयोग होता हैं. लेकिन, कई ऐसे वस्तुएं और क्षेत्र हैं, जहां इसका उपयोग होता हैं. ये हैं-
- कई प्रकार के उपभोक्ता विद्युत् उपकरणों में : मोबाइल फोन/स्मार्टफोन, डिजिटल कैमरा, टीवी, वाशिंग मशीन, रेफ्रिजरेटर और एलईडी बल्ब भी सेमीकंडक्टर चिप्स का उपयोग होता हैं.
- आटोमेटिक राइस कुकर का ताप संवेदी यंत्र भी सेमीकंडक्टर चिप्स से बना होता हैं.
- बैंक एटीएम, ट्रेन, इंटरनेट, संचार के उपकरणों में भी सेमीकंडक्टर चिप्स का उपयोग होता हैं. स्वच्छ ऊर्जा, एयरोस्पेस व चिकित्सा क्षेत्र में भी इसका इस्तेमाल होता हैं.
- आजकल वाहनों के निर्माण में भी सेमीकंडकर चिप्स का उपयोग होने लगा हैं. ऐसे कई क्षेत्र है, जहाँ सेमीकंडक्टर चिप्स का उपयोग होता हैं. इससे हमारा जीवन आसान हो गया हैं.
सेमीकंडक्टर चिप्स उद्योग (Semiconductor Chips Industry in Hindi)
दुनिया के कई कापनापियाँ सेमीकंडक्टर चिप्स के निर्माण में लगी हैं. 1975 के समय टीआई, मोटोरोला व फिलिप्स जैसी कम्पनियाँ इस क्षेत्र में आगे थे. वहीं, साल 2020 में इंटेल, सैमसंग व टीएसएमसी जैसी कंपनियां इस क्षेत्र में अग्रणी हैं.
इसका अधिकांश उत्पादन दक्षिण कोरिया, चीन, ताइवान व अमेरिका में होता हैं. भारत इस उद्योग में काफी पिछड़ा हैं. भारत की वेदांत समूह और ताइवान की फॉक्सकॉन भारत के गुजरात में सेमीकंडक्टर चिप्स का इकाई लगाने पर काम कर रहे हैं. ये दोनों कंपनियां 1.54 लाख करोड़ रूपये का निवेश करेगी. इससे करीब एक लाख लोगों को रोजगार मिलने की संभावना हैं.
अहमदाबाद में बन रही इस इकाई से अगले दो साल में उत्पादन शुरू हो जाने की उम्मीद हैं. भारत सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम से इस योजना को फायदा पहुँचाने का निर्णय लिया हैं.
भारत में 2021 तक सेमीकंडक्टर चिप्स का बाजार 27.2 बिलियन डॉलर का था. इसके साल 2026 तक बढ़कर 64 बिलियन डॉलर हो जाने का अनुमान हैं.
सेमीकंडक्टर चिप्स पर लड़ाई (Semiconductor War in HIndi)
साल 2022 में अमेरिका ने चीन पर सेमीकंडक्टर चिप्स के सम्बन्ध में प्रतिबन्ध लगा दिया. अमेरिका ने चीन के सैन्य महत्वाकांक्षा को देखते हुए किया. इससे चीन की, कम्प्यूटरीकृत हथियारों के निर्माण के लिए जरुरी सेमीकंडक्टर चिप्स, तक पहुँच सिमित हो गई.
इस प्रतिबन्ध में चीन को कुछ विशेष प्रकार के कम्प्यूटरीकृत सेमीकंडक्टर चिप्स के आपूर्ति पर रोक लगा दी गई. इस आदेश में एकीकृत सेमीकंडक्टर चिप्स पर प्रतिबंध भी शामिल हैं. हालाँकि, अमेरिका के इस कदम की आलोचना भी हो रही हैं. इस कदम को व्यापर युद्ध बढ़ाने वाला माना जा रहा हैं.
सेमीकंडक्टर चिप्स उद्योग की चुनौतियाँ (Challenges before Industry in Hindi)
भारत ने हाल ही में $10 अरब से अधिक निवेश के लिए अपने ‘सेमी-कॉन इंडिया कार्यक्रम‘ की घोषणा की है. इस योजना का उद्देश्य में भारत में सेमीकंडक्टर चिप्स इकाइयां लगाने वाले कंपनियों को वित्तीय मदद पहुँचाना हैं.
वर्तमान में सेमीकंडक्टर चिप्स के कुल उत्पादन का 92 फीसदी ताइवान व 8 फीसदी दक्षिणी कोरिया में होता हैं. थोड़े-बहुत उत्पादन दुनिया के अन्य हिस्सों में होते हैं.
इसके लिए अत्यधिक कुशल श्रम की आवश्यकता होती है, क्योंकि फैब्रिकेशन प्रोसेस काफी जटिल होता हैं. इसमें 400- 1400 जटिल चरण शामिल होते हैं. अलग-अलग चरणों में कमोडिटी केमिकल्स, स्पेशलिटी केमिकल्स और कई अलग-अलग प्रकार के प्रोसेसिंग की जाती हैं. इसके लिए विशेष टेस्टिंग उपकरण की आवश्यकता होती है. इसलिए इसके उत्पादन के लिए अत्यधिक कुशल श्रम की आवश्यकता होती है.
सेमीकंडक्टर चिप्स का उत्पादन स्वच्छ क्षेत्रों में ही किया जा सकता हैं. प्रदूषित हवा सेमीकंडक्टर चिप्स के गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं.
साथ ही, सेमीकंडक्टर चिप्स के डिज़ाइन बदलते रहते हैं. इसलिए नए डिज़ाइन से उत्पादन के लिए नए तकनीक की जरुरत पड़ती है. इस वजह से इस उद्योग में भारी निवेश की जरूरत होती हैं. उदाहरण के लिए, टीएसएमसी अगले तीन वर्षों में अपने फैब्रिकेशन संयंत्रों में $100 बिलियन का निवेश करेगा.