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शेयर बाजार और इसका इतिहास

    आम बोलचाल की भाषा में शेयर बाजार (Share Market) एक मंडी होता है, जहाँ कंपनियों के अंश (Share या Stock) खरीदे और बेचे जाते है. किसी कंपनी के मालिकाना हक़ को कई हिस्सों में बाँट दिया जाता है. प्रत्येक हिस्से, जिसे शेयर या इक्विटी स्टॉक (अंश) कहते है, का निश्चित मूल्य होता है.

    कोई भी व्यक्ति इन अंशों को खरीद कर अमुक कंपनी में मालिकाना हिस्सा प्राप्त करता है. शेयर बाजार वह जगह होता है, जहाँ इन अंशो (Shares) की खरीद बिक्री होती है. यहाँ सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को शेयर बेचा जाता है, इस तरह बिक्रेता को अधिकतम लाभ प्राप्त होता हैं.

    मान ले रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) कम्पनी के कुल 07 अरब शेयर है. इसका आधा 3.5 अरब यानी 350 करोड़ होता है. जो भी व्यक्ति इन 7 अरब शेयरों में 50 फीसदी से अधिक शेयर खरीद लेगा, उसके पास रिलायंस इंडस्ट्रीज का नियंत्रण आ जाता है. लेख लिखे जाने के वक्त यह हैसियत रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन मुकेश अम्बानी को प्राप्त है. उनके पास इस कम्पनी का 50 फीसदी से कुछ कम अंश है.

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    शेयर बाजार क्या है और इसका परिभाषा? (What is Share Market and its definition in Hindi)

    औपचारिक रूप से शेयर बाजार को परिभाषित करें तो, एक स्टॉक मार्केट, इक्विटी मार्केट या शेयर बाजार वह स्थान या संगठन है जहां स्टॉक (शेयर) और अन्य सूचीबद्ध वित्तीय साधनों का खरीदारों और विक्रेताओं के बीच कारोबार होता है.

    अब आप वाकिफ हो गए होंगे की शेयर बाजार क्या है, तो आइये आगे जानते है इसका उद्गम, इतिहास, विकास व कार्यप्रणाली से जुड़े जरूरी जानकारियाँ-

    शेयर बाजार का वैश्विक इतिहास (Global History of Share Market in Hindi)

    12वीं सदी के फ़्रांस में, ‘द कोर्टियर्स डी चेंज‘ नामक समूह का संबंध बैंकों की ओर से कृषि समुदायों के ऋणों के प्रबंधन और विनियमन से था. ये लोग कर्ज का व्यापार करते थे, इसलिए उन्हें पहले दलाल (Brokers) कहा जाता है. यह शेयर बाजार के शुरुआत का सबसे आरंभिक चरण था.

    बाद में औद्योगिक क्रांति के साथ ही अधिक पूंजी की जरुरत होने लगी और कई लोग एक साथ मिलकर कारोबार करने लगे. इसी के साथ जॉइंट वेंचर्स यानि संयुक्त स्वामित्व वाले कंपनियों का उदय हुआ. इसमें निवेश करने वालों को शेयरधारक या अंशधारक (Share Holders) कहा जाने लगा.

    इटालियन इतिहासकार लोदोविको गुइकियार्डिनी (Lodovico Guicciardini) के अनुसार, 13वीं शताब्दी के अंत में जींस (कमोडिटी) व्यापारियों का समूह ब्रुग्स, वान डेर बेउर्ज़ (Van der Beurze) नामक एक परिवार के स्वामित्व वाले बाजार चौक पर बने एक सराय पर एकत्रित हुए थे. यहाँ पर उन्होंने बोली लगाकर व्यापार किया.

    1409 में बोली लगाने के इस कारोबार को “ब्रुग्स बेर्से” (Brugse Beurse) नाम दिया गया. इससे पहले यह कारोबार अनौपचारिक बैठक के माध्यम से ही होता था. लेकिन इसके औपचारिक होते ही यह कारोबार तेजी से फैलने लगा. यह विचार तेजी से फ़्लैंडर्स और पड़ोसी देशों में फैल गया. फिर “बेउरज़ेन” (Beurzen) जल्द ही गेन्ट और रॉटरडैम में खुल गया.

    13 वीं शताब्दी की शुरुआत से ब्रुग्स में मौजूद अंतर्राष्ट्रीय व्यापारियों और विशेष रूप से इतालवी बैंकरों ने स्टॉक मार्केट एक्सचेंज के जगह को परिभाषित करने लिए इस शब्द का प्रयोग किया.

    पहले इटालियंस (बोर्सा), जल्द ही फ्रेंच (बोर्स) भी, जर्मन (बोर्स), रूसी (बिरसा), चेक (बुर्ज़ा), स्वीडन (बोर्स), डेन और नॉर्वेजियन (बीआर) जैसे शब्दों को अपनाकर शेयर बाजार के कारोबार की शुरुआत करने लगे.

    ज्यादातर भाषाओं में यह शब्द (“ब्रुग्स बेर्से” या “बोर्स”) मनी बैग के साथ मेल खाता था, जो लैटिन बर्सा से जुड़ा हुआ है. इसमें वैन डेर बेर्स परिवार का नाम भी मिलता था. इसलिए यह नाम आरंभिक शेयर बाजार के लिए यूरोप के देशों में प्रचलित होने लगा.

    13वीं शताब्दी के मध्य में, विनीशियन बैंकरों (वेनिस के बंकरों) ने सरकारी प्रतिभूतियों में व्यापार करना शुरू किया. 1351 में विनीशियन सरकार ने सरकारी फंड की कीमत कम करने के इरादे से अफवाहें फैलाने पर रोक लगा दी.

    वेनिस के साहूकार ही पहले लोग थे, जिन्होंने कर्जों का कारोबार करना शुरू किया. इन्होंने ही सरकारी फंड के कारोबार को नया रूप दिया.

    14वीं शताब्दी के दौरान पीसा, वेरोना, जेनोआ और फ्लोरेंस के बैंकरों ने भी सरकारी प्रतिभूतियों में व्यापार करना शुरू किया. यह केवल इसलिए संभव था क्योंकि ये स्वतंत्र शहर-राज्य थे, जो एक ड्यूक के जगह प्रभावशाली नागरिकों की एक परिषद द्वारा शासित थे.

    इस दौर में, इतालवी कंपनियां शेयर जारी करने वाली पहली थीं. 16वीं शताब्दी में इंग्लैंड और अन्य छोटे देशों की कंपनियों ने इसका अनुसरण किया. 1500 के दशक में स्थापित, बेल्जियम का एक्सचेंज विशेष रूप से प्रॉमिसरी नोट्स और बॉन्ड में डील करता था.

    बेल्जियम ने 1531 में एंटवर्प में एक स्टॉक एक्सचेंज खोला था. इससे पहले यहाँ मुख्यतः, व्यापार, सरकार और यहां तक ​​कि व्यक्तिगत ऋण के मुद्दों से निपटने के लिए दलाल और साहूकार वहां मिलते थे. चूँकि यह इससे पहले डिबेंचर्स और बांड में काम करता था. इसलिए 1500 के दशक के दौरान इसे वास्तविक स्टॉक नहीं माना जा सकता है.

    16वीं सदी में डच ईस्ट इंडिया कंपनी का विदेशी व्यापार में दबदबा था. यह कंपनी दुनियाभर में जहाजों के जरिए व्यापार कर रही थी. लेकिन इन जहाजों के संचालन में काफी अधिक धन का जरुरत होता था. इसलिए कंपनी ने हर बंदरगाह के आसपास रहने वाले व्यापारियों से मदद लेना तय किया.

    कंपनी ने व्यापारियों से संपर्क कर कहा कि अगर वे जहाजों के संचालन में पैसा लगाते हैं तो, जहाजों से होने वाले मुनाफे में भी उन्हें हिस्सा मिलेगा. हिस्से को अंग्रेजी में शेयर कहा जाता है. व्यापारियों को ये योजना पसंद आई और उन्होंने जहाजों के संचालन में पैसा निवेश किया.

    इस तरह, 1602 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरूआत ने एम्स्टर्डम को एक क्षेत्रीय शहरी बाजार से एक प्रमुख वित्तीय केंद्र में बदलने की शुरुआत की. कंपनी ने आसानी से हस्तांतरणीय शेयरों को पेश किया. कुछ ही दिनों में खरीदारों ने उनका व्यापार करना शुरू कर दिया था. जल्द ही जनता फॉरवर्ड्स (Forwards), वायदा (Futures), ऑपशंस (Options) और नीचले स्तर (Bear Raid) पर खरीदारी सहित कई अन्य जटिल लेनदेन में लग गेन. 1680 के आते-आते एम्स्टर्डम बाजार में तैनात तकनीकें उतनी ही परिष्कृत थीं जितनी आज हम प्रयोग करते हैं.

    इस व्यापार को राज्य का लाइसेंस भी मिला हुआ था. इसलिए इसी व्यापार और हिस्सेदारी को दुनिया का पहला शेयर बाजार कहा जाता है. इसी से संयक्त स्वामित्व वाला जॉइंट वेंचर्स कंपनियों का उदय हुआ. यह यूरोपीय लोगों ने “नई दुनिया” नामक उपनिवेश से व्यापर के लिए महत्वपूर्ण बन गया.

    इस कंपनी का शेयर, एम्स्टर्डम के शेयर बाजार में लगातार ख़रीदे बेचे जा रहे थे. एम्स्टर्डम शेयर बाजार में ही ऑप्शन ट्रेडिंग और शार्ट सेलिंग का शुरुआत हुआ. फिर साल 1610 में डच अधिकारीयों ने शार्ट सेलिंग पर रोक लगा दी.

    इसके साथ ही कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने वाले ईस्ट इंडिया कंपनियों ने शेयर बाजार से पैसे उठाया. लेकिन कुछ समय बाद ये पता चला कि इनमें अधिकांश कम्पनियाँ नाममात्र का कारोबार करती है. इसके बाद ऐसे कंपनियों के शेयर का भाव काफी घट गया और कई लोगों को नुकसान हुआ. इस तरह शेयर बाजार का शुरुआत हुआ और लोगों में इसकी समझ पनपी.

    यूरोप में पनपा शेयर बाजार आज के समय में पुरे दुनिया में फ़ैल चूका है. इसे सामान्यतः स्टॉक एक्सचेंस के नाम से जाना जाता है. कम्पनियाँ खुद के कारोबार का विकास व विस्तार करने के लिए अक्सर शेयर बाजार से पैसा लेती है. संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जापान, भारत, चीन, कनाडा, जर्मनी (फ्रैंकफर्ट स्टॉक एक्सचेंज), फ्रांस, दक्षिण कोरिया और नीदरलैंड आज के समय के कुछ बड़े शेयर बाजार हैं.

    शेयर बाजार के विकास के कारक (Causes of Development of Share Market)

    1600 के दशक में, डच, ब्रिटिश और फ्रांसीसी सरकारों ने ईस्ट इंडिया कंपनियों को उनके नाम पर चार्टर दिए. साम्राज्यवाद के इस चरम समय में, ऐसा लगता है कि ईस्ट इंडीज और एशिया से होने वाले मुनाफे में सभी की हिस्सेदारी थी, सिवाय वहां रहने वाले मूल लोगों के.

    पूर्व से सामान वापस लाने वाली समुद्री यात्राएं बेहद जोखिम भरी थीं. इनपर हमेशा बार्बरी समुद्री लुटेरों, खराब मौसम और नेविगेशन के जोखिम थे. जहाज के मालिक अपना जहाज इन दुर्घटनाओं में खोने के बदले में ऐसे निवेशकों की तलाश में थे, जो इन व्यापारिक समुद्री यात्राओं के में पैसे लगाए और उनका जोखिम कम हो जाएं.

    शुरुआत में हरेक समुद्री यात्रा के लिए नए निवेशक तलाशे जाते थे और सफल यात्रा के बाद लाभांश (Dividend) सभी में बाँट दिया जाता था. फिर नए यात्रा से पहले एक बार फिर से निवेशक तलाश किए जाते थे व सफल यात्रा के बाद लाभांश बाँट दिया जाता था. यह शेयर बाजार का शुरुआत था.

    Investment Positive Growth Symbol

    निवेशक अपना जोखिम कम करने के लिए कई समुद्री यात्राओं में थोड़ा-थोड़ा करके धन लगाते थे. कुछ में नुकसान होने के स्थिति में, अन्य यात्राओं से प्राप्त लाभांश से इसकी भरपाई हो जाती थी. इस तरह निवेशक भी फायदे में रहते थे.

    लेकिन, इंग्लैंड की ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापर के इस तरीके को बदल दिया. इस कंपनी ने अपना स्टॉक (शेयर) पत्र के शक्ल में जारी किया, जो आधुनिक शेयर की तरह ही होते थे. हालाँकि, यह ऑनलाइन न होकर पत्र के शक्ल में होता था.

    ईस्ट इंडिया कंपनी अब यात्रा के जगह, सभी यात्राओं से प्राप्त कुल लाभ को लाभांश में बदलकर बांटने लगे. इस तरह ये कम्पनियाँ पहली आधुनिक संयुक्त स्टॉक कंपनियां थीं. ये कम्पनियाँ अब अधिक से अधिक शेयर जारी करने लगे. इससे इन्हें अपने जहाज के बड़े के आकार को बड़ा करने में मदद मिला. इन कंपनियों को शाही चार्टर के द्वारा पूर्व में व्यापर करने का एकाधिकार मिला हुआ था. इसलिए यह सौदा शेयरधारकों के साथ-साथ इन कंपनियों के लिए भी काफी फायदेमंद रहा.

    कॉफ़ी हाउस में लगता था शेयर बाजार (When Stock market was operated in Coffee House)

    विभिन्न ईस्ट इंडिया कंपनियों के शेयर कागज पर जारी किए गए थे. निवेशक जरुरत होने पर अन्य निवेशकों को कागज के शक्ल वाले इन शेयरों को बेच सकते थे. दुर्भाग्य से, इस वक्त तक कोई स्टॉक एक्सचेंज नहीं था. इसलिए निवेशक को किसी खास कंपनी के स्टॉक में व्यापर करने के लिए उस ब्रोकर को ट्रैक करना होता था, जिसके पास इस कंपनी का शेयर खरीदने या बेचने के लिए ग्राहक या क्लाइंट हो.

    इस स्थिति में, इंग्लैंड के अधिकांश दलालों और निवेशकों ने लंदन के आसपास विभिन्न कॉफी की दुकानों में अपना कारोबार शुरू किया. खरीद-बिक्री किए जाने वाले शेयर का संख्या व दर के साथ कॉफ़ी हाउस के गेट पर टांग दिया जाता था. …या फिर एक समाचार पत्र के रूप में बाँट दिया जाता था. इस तरह शेयर बाजार पनपने लगा.

    कम मुनाफा और हो गया पहला क्रैश (Least profit and the First Crash in Hindi)

    ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के वित्तीय इतिहास में सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी लाभों में से एक था – सरकार समर्थित एकाधिकार. जब निवेशकों ने भारी लाभांश प्राप्त करना शुरू किया और अपने शेयरों को बड़े कीमत पर बेचने लगे, तो अन्य निवेशक इसे ललचाई निगाह से देख रहे थे और मौके के तलाश में थे.

    इंग्लैंड में शेयर बाजार से नवोदित वित्तीय उछाल तेजी से आया. शेयर जारी करने के लिए कोई नियम या विनियम नहीं थे. इसी का फायदा उठाते हुए कुछ छोटे पैमाने के कंपनियों ने बड़े पैमाने पर शेयर जारी किए और लोगों को बाद में नुकसान उठाना पड़ा. साउथ सी कंपनी एक ऐसी ही कंपनी थी.

    साउथ सी कंपनी (एसएससी) को इंग्लैंड के राजा से ईस्ट इंडिया कंपनी के समान चार्टर मिला. इसने अपने शेयर जारी किए और ये हाथोहाथ बिक गए. इसके बाद कंपनी ने कई और दौर में हजारों शेयर जारी किए और एक बड़ी रकम की उगाही की.

    हैरानी की बात ये थी कि कंपनी ने अभी तक एक भी व्यापारिक समुद्री यात्रा नहीं की थी. लेकिन अपार धन प्राप्त होने के बाद कंपनी ने लन्दन के पॉश इलाके में अपना आलिशान कार्यालय खोला.

    एसएससी की सफलता से उत्साहित होकर कई अन्य कंपनियों ने भी इस तरिके को अपना लिया. इन जॉइंट कंपनियों ने भी जमकर नए शेयर बेचे गए. कई तो सब्जी या पान के पत्ते में अंतर्राष्ट्रीय कारोबार करने के विचार लेकर आए थे. लेकिन इन हास्यास्पद योजनाओं के बावजूद ये सभी शेयर ऊँचे कीमतों पर बिक गए.

    लोगों को लग रहा था कि ये कम्पनियाँ फिलहाल अपने कारोबार को जाहिर नहीं करना चाहती है. लेकिन आप ये न सोचे की काफी समय बीत गया है और अब ऐसा कोई खतरा नहीं है. आज भी स्थिति काफी नहीं बदली, इसलिए शेयर बाजार में काफी सोच-समझकर व अध्ययन के बाद ही निवेश करें.

    एससीसी कम्पनी ने काफी धन तो उगाह लिया था, लेकिन उसके द्वारा अर्जित लाभ काफी कम या नगण्य था. ऐसे में यह कंपनी अपने निवेशकों को उचित या अन्य कंपनियों के तरह लाभांश वितरित नहीं कर पाई. इस कंपनी का प्रदर्शन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के तुलना में काफी खराब था.

    इस तरह शुरुआती दौर का यह बुलबुला 1711 में फट गया और शेयर बाजार धराशाही हो गया. परिणामस्वरूप सरकार ने नए शेयर जारी करने पर रोक लगा दी. यह रोक 1825 तक जारी रही. इस क्रैश को साउथ सी बब्बल कहा जाता है. आप इसकी तुलना आप डॉट कॉम बुलबुले से भी कर सकते है, इसकी चर्चा हम आगे करेंगे.

    स्टॉक एक्सचेंज का शुरुआत (Beginning of Stock Exchange in Hindi)

    लन्दन स्टॉक एक्सचेंज (London Stock Exchange – LSE in Hindi)

    सबसे पहला स्टॉक एक्सचेंज की शुरुआत लन्दन में ‘रॉयल एक्सचेंज‘ के नाम से साल 1571 में हुई थी. इसकी स्थापना थॉमस ग्रेशम (Thomas Gresham) और सर रिचर्ड क्लॉ ने (Sir Richard Clough) एंटवर्प बोर्स के मॉडल पर की थी. इसका उद्घाटन इंग्लैंड और आयरलैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने किया था.

    अशिष्टतापूर्वक पेश आने के कारण, इस स्टॉक एक्सचेंज में शेयर ब्रोकर्स को प्रवेश की अनुमति नहीं थी. इसलिए (Brokers) पास के कॉफ़ी हाउस से अपना काम करते थे. यह औपचारिक शेयर बाजार का आधुनिक स्वरुप जैसा ही था.

    साल 1698 में ब्रोकर जॉन कास्टिंग ने जोनाथन कॉफी हाउस में स्टॉक और कुछ वस्तुओं की कीमतों की सूचि लगना शुरू कर दिया. यह जगह व्यापारियों के लिए व्यापार करने के लिए एक लोकप्रिय बैठक था. kasting ने ने अपनी मूल्य सूची को “द कोर्स ऑफ द एक्सचेंज एंड अदर थिंग्स” (The Course of the Exchange and Other Things) नाम से सम्बोधित किया. इसी से प्रेरणा लेकर बाद में स्टॉक के बदलते कीमतों को प्रदर्शनी लगाने का चलन शुरू हुआ. यह लन्दन स्टॉक एक्सचेंज का अनौपचारिक शुरुआत था.

    इंग्लैंड और फ़्रांस के बीच साल 1756 से 1763 तक चले सप्तवर्षीय युद्ध के कारण भी शेयर का कारोबार धीमा हो गया था. लोग नुकसान के आशंका से कम निवेश कर रहे थे या नहीं कर रहे थे.

    हालांकि साल 1773 के आते-आते स्थितियां बदल गई और बाजार में फिर से रौनक (Boom) छा गई. इसी साल जोनाथन ने 150 अन्य दलालों के साथ मिलकर एक क्लब का गठन किया. इस क्लब ने स्वीटिंग ऐली में एक नया और अधिक औपचारिक “स्टॉक एक्सचेंज” खोला.

    इस एक्सचेंज में एक निर्धारित प्रवेश शुल्क था. शुल्क अदायगी के बाद व्यापारी को स्टॉक रूम में प्रवेश कर प्रतिभूतियों (Securities) का व्यापार कर सकते थे. लेकिन, इससे स्टॉक की अंतिम कीमत में बढ़ोतरी होने लगी. इसके समाधान के रूप में शुल्क सब्सक्रिप्शन में बदल दिया गया और वार्षिक रूप से लिया जाने लगा. उस वक्त इस एक्सचेंज से लंदन में सबसे अधिक दलाल जुड़े हुए थे. इसे आरंभिक लन्दन स्टॉक एक्सचेंज भी माना जाता है.

    1801 में सदस्यों के एक समूह ने कैपेल कोर्ट, बार्थोलोम्यू लेन में एक इमारत के निर्माण के लिए धन जुटाया. ये स्पष्ट हो गया कि धोखाधड़ी और बेईमान व्यापारियों को रोकने के लिए एक औपचारिक प्रणाली की आवश्यकता है.

    ब्रोकर नियमों की एक सूचि पर सहमत हुए और एक्सचेंज से जुड़ने के लिए सदस्यता शुल्क का भुगतान करना शुरू किया. इस प्रकार लंदन में पहले विनियमित स्टॉक एक्सचेंज का मार्ग प्रशस्त हुआ.

    30 दिसंबर 1801 को “इन नियमों पर आधारित” लंदन स्टॉक एक्सचेंज का स्थापना किया गया. वर्त्तमान में यह लन्दन स्टॉक एक्सचेंज समूह का एक एक्सचेंज है.

    अमेरिका व न्यूयोर्क स्टॉक एक्सचेंज (America & Newyork Stock Exchange – NYSE in Hindi)

    अमेरिका में सबसे पहला स्टॉक एक्सचेंज फिलाडेल्फिया में साल 1790 में किया गया. मूल रूप से इसे “द बोर्ड ऑफ ब्रोकर्स” कहा जाता है. इसे एक कॉफी हाउस में स्थापित किया गया था. यह बाद में सिटी टैवर्न के नाम से प्रसिद्ध हुआ. व्यवसायी यहाँ निवेश का खरीद-बिक्री करने के लिए मिलते थे. 2008 में, इसे नास्दाक़ (NASDAQ) द्वारा खरीद लिया गया.

    इसके दो साल बाद ही साल 1792 में 68 वाल स्ट्रीट जगह पर एक बटनवुड ट्री के नीचे 24 स्टॉकब्रोकरों की एक बैठक में न्यूयोर्क स्टॉक एक्सचेंज शुरू हुआ. यह जगह अब न्यूयॉर्क शहर में वॉल स्ट्रीट के नाम से मशहूर है. इसे औपचारिक रूप से 1817 में न्यूयॉर्क स्टॉक एंड एक्सचेंज बोर्ड के रूप में गठित किया गया. वर्तमान नाम (NYSE) को 1863 में अपनाया गया था. NYSE एक्सचेंज का स्वामित्व इसके सदस्यों द्वारा नियंत्रित था.

    1812 के युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में अधिक व्यावसायिक गतिविधि होने लगी. एक्सचेंज की नियमों को मजबूत करने के लिए 1817 में एक संविधान का मसौदा तैयार किया गया था, जिसमें एक्सचेंज के भीतर काम करने वाले अन्य दलालों को दी गई वरीयता और अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए एक फ्लैट 0.25% कमीशन ब्रोकर का शुल्क शामिल किया गया.

    1830 के दशक में रेल स्टॉक में आनेवाली तेजी की अटकलों ने एक्सचेंज में व्यापार को प्रोत्साहित किया. इस दौरान रेल विकास के लिए अधिक पूंजी की जरुरत थी, जिसकी भरपाई में एक्सचेंज अहम् रोल निभाया.

    अमेरिकी गृहयुद्ध (1861-65) के बाद, इस एक्सचेंज ने संयुक्त राज्य के त्वरित औद्योगीकरण के लिए पूंजी प्रदान की. आज न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज (एनवाईएसई), प्रतिभूतियों और अन्य एक्सचेंज-ट्रेडेड निवेशों (ETFs) के लिए दुनिया का सबसे बड़ा बाजार हैं.

    विश्व के कुछ अन्य मुख्य स्टॉक एक्सचेंज (Some other major stock exchanges in the world in Hindi)

    टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज (Tokyo Stock Exchange):

    यह जापान का मुख्य स्टॉक एक्सचेंज है. इसकी स्थापना 15 मई 1878 को हुआ था. निक्की 225 (Nikkei 225) व TOPIX इसके मुख्य सूचकांक है.

    कोरिया एक्सचेंज (Korea Exchange):

    विश्व प्रसिद्ध कोरिया स्टॉक एक्सचेंज दक्षिण कोरिया के बुसान में स्थित है. कोरिया स्टॉक एंड फ्यूचर्स एक्सचेंज एक्ट के तहत कोरिया स्टॉक एक्सचेंज (KSE), कोरिया फ्यूचर्स एक्सचेंज और KOSDAQ शेयर बाजार के एकीकरण के माध्यम से 1956 में कोरिया एक्सचेंज बनाया गया था.

    हांगकांग स्टॉक एक्सचेंज (Hong Kong Stock Exchange):

    इसकी औपचारिक स्थापना 3 फ़रवरी 1891 में की गई थी. हालाँकि यह साल 1866 से ही अव्यवस्थित रूप में सक्रिय था. इसका मुख्यालय हांगकांग के ‘केंद्रीय जिले’ में है. हैंगसंग इंडेक्स इसका मुख्य सूचकांक है.

    ऑस्ट्रेलियाई सिक्योरिटीज एक्सचेंज (ASX):

    मध्य 1800 के दौरान ऑस्ट्रेलिया में भी शेयर बाजार अनियमित तौर पर विकसित हो था. इनमें से कइयों ने मिलकर ऑस्ट्रेलियाई एक्सचेंज की स्थापना की. औपचारिक रूप से 1987 में स्थापित इस एक्सचेंज का मुख्यालय सिडनी में है. इसके अलावा 1997 में स्थापित सिडनी एक्सचेंज भी ऑस्ट्रेलिया का एक प्रमुख एक्सचेंज है.

    सिंगापुर स्टॉक एक्सचेंज (SGX):

    एसजीएक्स का गठन 1 दिसंबर 1999 को एक होल्डिंग कंपनी के रूप में किया गया था. स्टॉक एक्सचेंज ऑफ सिंगापुर (SES), सिंगापुर इंटरनेशनल मॉनेटरी एक्सचेंज (SIMEX – 1984) और सिक्योरिटीज क्लियरिंग एंड कंप्यूटर सर्विसेज प्रा. ली. (SCCS) को आपस में मिलकर इस कम्पनी को स्थापित किया गया था. इस तरह, इन तीनों कंपनियों के स्वामित्व वाली सभी संपत्तियां SGX को हस्तांतरित कर दी गईं. SES, SIMEX और SCCS के द्वारा खरीद करने वाले शेयरधारकों को नए शेयर SGX द्वारा बिना भुगतान के जारी किए गए.

    फ्रैंकफर्ट स्टॉक एक्सचेंज (Frankfurt Stock Exchange):

    जर्मनी का यह एक्सचेंज दुनियां का बारहवां सबसे बड़ा एक्सचेंज है. विकिपीडिया (Wikipedia) के अनुसार, इसकी स्थापना 1585 में हुई थी.

    शंघाई स्टॉक एक्सचेंज(Shanghai Stock Exchange):

    चीन के शंघाई शहर में 26 नवंबर 1990 को स्थापित यह एक्सचेंज जुलाई 2021 के आंकड़ों के अनुसार दुनिया का तीसरा बड़ा और एशिया का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है. शंघाई में शेयरों का कारोबार 1860 में ही शुरू हो गया था. आधुनिक दौर में स्थापित यह चीन का पहला स्टॉक एक्सचेंज है.

    1870 से 1920 – बकेट शॉप द्वारा धोखाधड़ी (Fraud by Bucket Shops in Hindi)

    कल्पना कीजिए कि आप एक बड़ी कंपनी में निवेश करना चाहते हैं. लेकिन आपके पास अधिक धन नहीं है और एक्सचेंजों पर व्यस्त स्टॉक ब्रोकर्स के साथ काम काम करने के लिए बड़े धन की जरुरत है. आज, एक मजबूत ऑनलाइन ट्रेडिंग सिस्टम उपलब्ध है ,जिसके माध्यम से आप अपने खुद के ट्रेड कर सकते हैं. चाहे वह ट्रेड कितना भी छोटा क्यों न हो. लेकिन, शुरुआती दौर में छोटे पूंजी वालों से ब्रोकर बात तक नहीं करते थे, उनका ध्यान बड़े खिलाडियों के तरफ रहता था, जिनका सौदा उनके लिए लाभदायक था.

    इसके समस्या का समाधान के लिए उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में एक समाधान तैयार किया गया, जिसे “बकेट शॉप” कहा जाता था. लेकिन ही इसमें घोटाले सामने आ गए और इस व्यवस्था को बंद करना पड़ा.

    दरअसल, कई छोटे निवेशक मिलकर कॉफ़ी शॉप हाउस के मालिक को कोई ख़ास स्टॉक निश्चित कीमत पर खरीदने और बेचने के लिए धन मुहैया करवाते थे. ये उम्मीद की जाती थी कि अमुक स्टॉक के इतने लॉट ख़रीदे जाएंगे.

    घाटा होने पर कमिसन और नुकसान काटकर उसी दिन बाकि पैसा छोटे निवेशकों के समूह को लौटा दिया जाता था. लाभ होने पर कॉफ़ी हाउस मालिक एक बड़ा रकम कमीशन के तौर पर काट लेता था. बाकि का लाभ व मूलधन समूह को लौटा दिया जाता था.

    लेकिन, कॉफ़ी शॉप कभी भी निवेश करता ही नहीं था. वह इस उम्मीद में रहता था कि इनकी कीमत और नीचे जाएगी. अक्सर ऐसा होता भी था. चूँकि वास्तव में निवेश नहीं किया गया होता था, इसलिए कोई भी नुकसान नहीं हुआ होता था. लेकिन छोटे निवेशकों को यह बात मालूम नहीं होती थी. वे अपना नुकसान व कमीशन की राशि कॉफ़ी शॉप को सौंपकर बांकी बचा धन लेकर चले जाते थे. इस तरह कॉफ़ी शॉप के मालिक धन कमा रहे थे.

    ये मालिक वास्तव में, इस पैसे को हॉर्स ट्रेडिंग में लगाकर कई गुना मुनाफा कमा रहे थे. 1929 में स्टॉक मार्केट क्रैश के बाद बकेट शॉप पर प्रतिबंध लगा दिया गया. लगभग 70 साल बाद तक स्टॉक एक्सचेंजों मेंऑनलाइन स्टॉक ट्रेडिंग के आगमन के तक, आम जनता की भागीदारी बंद रही. ऑनलाइन ट्रेडिंग ने अधिकांश बिचौलिए के खेल को समाप्त कर दिया और आम जनता भी शेयर बाजार में निवेश के लिए आकर्षित हुए.

    शेयरों का ऑनलाइन व्यापार (Online Trading of Stocks in Hindi)

    कंप्यूटर युग ने शेयर बाजार में स्टॉक ट्रेडिंग उद्योग में एक क्रांति ला दी. इसे पूरी तरह से विकसित होने में कई दशक लग गए. लेकिन इसकी शुरुआत पहली डिजिटल ट्रेडिंग सिस्टम “इलेक्ट्रॉनिक संचार नेटवर्क” (ईसीएन) से हुई. एक ईसीएन (ECN) बोली के लिए रीयल-टाइम डेटा प्रदर्शित करता है. इससे दलालों को इच्छुक खरीदारों के साथ विक्रेताओं से अधिक तेज़ी से और आसानी से मिलान करने की सुविधा मिलती है.

    मान ले किसी स्टॉक का कीमत 5 हजार रूपये है. आप इसे 4800 में खरीदना चाहते है. जब यह 4800 तक आती है तो कई लोग इसके क्रैश होने के डर से बेच देते है. अब आप इसे 4800 में खरीद लेते है. ऑनलाइन ट्रेडिंग सिस्टम में यह जानकारी आपको स्टॉक ब्रोकर के एप्लीकेशन में ही वास्तविक समय में मिल जाती है. इस तरह ऑनलाइन ट्रेडिंग ने शेयर बाजार में कारोबार को सुगम बना दिया.

    वर्ल्ड बैंक के अनुसार 2016 में 77.5 ट्रिलियन ड़ालर के स्टॉक्स का कारोबार स्टॉक एक्सचेंज (STOCK EXCHANGE) पर हुए है.

    शेयर बाजार में इंटरनेट प्रौद्योगिकी ने कई कंपनियों का ध्यान आकर्षित किया. इन्होंने ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित करना शुरू किया जो ईसीएन के साथ काम कर सकें. इसके क्रमिक विकास के साथ ही स्टॉक ट्रेडिंग में इंसानों का दखल कम होने लगा और स्टॉक ट्रेडिंग स्वतःस्फूर्त होने लगे.

    ऑनलाइन ट्रेडिंग का शुरुआत करने वाला सबसे पहला स्टॉक एक्सचेंज नास्डैक है. इसे 1971 में नेशनल एसोसिएशन ऑफ सिक्योरिटीज डीलर्स द्वारा बनाया गया था. यह पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक रूप से एक कंप्यूटर नेटवर्क पर संचालित होता था.

    इसने तेजी से लोकप्रियता हासिल की. साल 1992 तक, अमेरिका में स्टॉक ट्रेड 42% हिस्सा नास्डैक से संचालित होता था. इसके बाद इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म भी लॉन्च किए गए.

    इसके बाद आया ट्रेड*प्लस पहला उपभोक्ता-उन्मुख ऑनलाइन ट्रेडिंग एप्लिकेशन बना. कंपनी ने पहले ब्रोकरेज हाउसों को अपनी सेवाएं दीं. कंपनी द्वारा 1991 में ई * ट्रेड नामक एक उपभोक्ता संस्करण शुरू किया गया. यह जल्द ही लोकप्रिय हो गया. 1999 में ई*ट्रेड की 9% प्रति माह की वृद्धि दर के साथ इन प्लेटफार्मों में सबसे तेजी से लोकप्रियता हासिल की.

    1992 में ग्लोबेक्स ट्रेडिंग सिस्टम लांच किया गया. यह पहला वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग सिस्टम था, जिसमें फ्यूचर ट्रेडिंग और ऑप्शन ट्रेडिंग दोनों किया जा सकता था. इसे शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज (सीएमई) द्वारा विकसित किया गया था.

    भारत में ऑनलाइन ट्रेडिंग की शुरुआत साल 1994 में तब हुई, जब 1992 में स्थापित नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने पूरी तरह से ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्म पर काम करने का निर्णय लिया. इसके अगले साल 1995 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ने भी ऑनलाइन ट्रेडिंग का शुरुआत कर दिया.

    शेयर बाजार का महत्व (Importance of Stock Market in Hindi)

    स्टॉक मार्केट कारोबारी कंपनियों के लिए बाजार से पैसे उगाहने का महत्वपूर्ण जरिया है. कोई कम्पनी किसी व्यक्ति या बैंक से भी पैसे लेकर अपना काम चला सकती है. लेकिन उस स्थिति में, जब कर्जदाता को पैसे की जरुरत हो जाती है और देनदार के पास देने को पैसे नहीं होते है, तो दोनों दवाब की स्थिति में आ जाते है.

    इस परिस्थिति से निपटने के लिए शेयर बाजार सबसे बेहतर विकप उपलब्ध करवाती है. शेयर बाजार में अधिसूचित कर्ज व शेयरों को आसानी से ख़रीदा और बेचा जा सकता है, बशर्ते जिस कम्पनी का शेयर या कर्ज ख़रीदा या बेचा जा रहा है, उसकी स्थिति ठीक हो. इस तरह यहाँ लेनदार और देनदार दवाब मुक्त होकर काम करते है. इन कंपनियों पर शेयरधारकों व कर्जदाताओं का मनोवैज्ञानिक व सकारात्मक दवाब होता है. ऐसे में सूचीबद्ध (Listed) कंपनी अपने शेयर या कर्ज का कीमत गिरने से बचाने के लिए पूर्ण क्षमता से काम करती है.

    इतिहास गवाह है कि स्टॉक और अन्य संपत्तियों की कीमत आर्थिक गतिविधि की गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण सूचक होती है. यह राज्य की आर्थिक मनोदशा को तुरंत व्यक्त कर देती है. जहां शेयर का बाजार बढ़ रहा होता है, उसे एक बेहतर और बढ़ता अर्थव्यवस्था माना जाता है. अक्सर, शेयर बाजार को किसी देश की आर्थिक मजबूती और विकास का प्राथमिक संकेतक माना जाता है. शेयर की बढ़ती कीमतें व्यावसायिक निवेश में बढ़त से जुड़ी होती हैं. …और इसका उल्टा भी सही होता है.

    शेयर बाजार के बड़े क्रैश (Big Crasesh of Stock Market in Hindi)

    जब भी किसी देश या दुनिया का विकास धीमा या नकारात्मक होने लगता है या युद्ध छिड़ जाता है या कोई बड़ा संकट आता है तो ये अनुमान लगाया जाता है कि अर्थव्यवस्था सिकुड़ेगी और कंपनियों का प्रदर्शन खराब रहेगा. इस स्थिति में शेयर बाजार में बड़ी गिरावट होती है, इस स्थिति को ही मार्किट क्रैश कहा जाता है. दुनिया में हुए अब तक के बड़े मार्केट क्रैश कुछ इस तरह हैं-

    1929 का महामंदी (The Great Depression of 1929 in Hindi)

    प्रथम विश्व-युद्ध में अमेरिका के जमीन पर काफी कम लड़ाई हुआ थे. इस वजह से उसे काफी कम नुकसान उठाना पड़ा. विश्वयुद्ध के बाद जब अन्य देश फिर से खड़े होने के कोशिश में था, वहीं अमेरिका तनकर खड़ा था. 1920 में अमेरिकी शेयर बाजार में तेज विकास दिखी. सभी शेयर के दाम दो से तीन गुने हो गए.

    इस दौरान लोगों ने बैंकों से कर्ज लेकर भी निवेश किए. बैंकों ने भी ऐसे निवेशकों को प्रोत्साहित किया. लोगों के पास पैसा आया तो उन्होंने अपने जीवन स्तर सुधारने के लिए जमकर पैसे खर्च किए. इस दौर को द रोअरिंग ट्वेंटीज (the Roaring Twenties) भी कहा जाता है.

    लेकिन, 1929 के आते-आते बैंकों के पास पैसे का अकाल हो गया. उन्होंने लोगों से पैसे माँगा, तो उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए. धीरे-धीरे बात फैली और इसी साल अक्टूबर में शेयर मार्किट क्रैश कर गया. डाउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज में सबसे बड़ी गिरावट 24 अक्टूबर, 1929 हुआ. इस दौरान यह 50 फीसदी से अधिक लुढ़क गया. इसे काला गुरुवार (Black Thursday) भी कहा जाता हैं. यह आर्थिक महामंदी का आधिकारिक शुरुआत था.

    इसके अगले साल 1930 में अमेरिका में भयंकर सूखा आया. अब किसान भी महामंदी की चपेट में थे. अमेरिका ने इस स्थिति से निपटने की कोशिश की. ऐसे में उसने अपने यूरोपियन दोस्तों, जिसे उसने पहले विश्वयुद्ध व दूसरे युद्ध के बाद कर दिया था, से कर्ज का रकम लौटाने को कहा. लेकिन ये यूरोपीय देश पहले से ही कंगाल थे और इन्होंने अपने देश का सारा सोना खरीदकर अमेरिका भेज दिया. इससे इन देशों की वित्तीय स्थिति भी चरमारा गई और पुरे दुनिया में महामंदी छा गई.

    ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, जापान और भारत इस मंदी से प्रभावित मुख्य देश थे. बाद में अमेरिका ने न्यू डील नाम से योजना चलकर कई सुधार किए. इस जैसे सुधारात्मक योजना अपनाकर अन्य देश भी महामंदी से बाहर आ गए. 1940 तक सभी देश महामंदी के चपेट से बाहर आ चुके थे.

    1987 का क्रैश

    शेयर बाजार की एक और बड़ी गिरावट 19 अक्टूबर 1987 को हांगकांग से शुरू हुई और पुरे दुनिया में फ़ैल गई. इस दिन को ब्लैक मंडे (Black Monday) भी कहा जाता है.

    अक्टूबर के अंत तक, हांगकांग में शेयर बाजारों में 45.5%, ऑस्ट्रेलिया में 41.8%, स्पेन में 31%, यूनाइटेड किंगडम में 26.4%, संयुक्त राज्य अमेरिका में 22.68% और कनाडा में 22.5% की गिरावट दर्ज की गई. ब्लैक मंडे शेयर बाजार के इतिहास में सबसे बड़ी एक दिनी (Intra Day) गिरावट थी.

    ब्लैक मंडे” और “ब्लैक मंगलवार” नामों का उपयोग 28-29 अक्टूबर, 1929 के लिए भी किया जाता है. यह 1929 में स्टॉक मार्केट क्रैश के भयानक गुरुवार के बाद के अगले हफ्ते के दो दिन है.

    इस क्रैश के बाद दुनिया भर में स्टॉक एक्सचेंजों में व्यापार रोक दिया गया. बिकवाली के इस दौर में काफी आर्डर आ रहे थे और इतने बड़े कारोबार को सँभालने में स्टॉक एक्सचेंज का सर्वर या कंप्यूटर सक्षम नहीं था.

    इस बड़ी गिरावट का को बड़ा कारण नहीं था. फ़ेडरल सरकार ने ट्रेड में कमी और डॉलर की क़ीमत में गिरवाट की उम्मीद जताई थी. ऐसे में बाजार के चाल से जुड़े कई आर्थिक सिद्धांत सवालों के घेरे में आ गए. ये थे- तर्कसंगत मानव आचरण का सिद्धांत (The theory of rational human conduct), बाजार संतुलन का सिद्धांत (the theory of market equilibrium) व कुशल-बाजार परिकल्पना (the efficient-market hypothesis).

    इस क्रैश के बाद फेडरल रिजर्व सिस्टम और अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों को विश्वव्यापी वित्तीय संकट के प्रसार को नियंत्रित करने के उपाय करने की अनुमति दी. शेयर बाजार में नियंत्रण के कई नए उपाय किए गए.

    डॉट-कॉम बब्बल (Dot-com bubble in Hindi)

    डॉट-कॉम बबल को डॉट-कॉम बूम, टेक बूमइंटरनेट बब्बल के नाम से भी जाना जाता है. इसका शुरुआत साल 1990 में हुई, जब इंटरनेट आईपी अड्रेस के आधार पर विकसित हो गया और इसमें काफी सुधार आया. इसके बाद विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र में तेज वृद्धि की उम्मीद जताई, और ऐसा होने भी लगा. इस वजह से कमजोर टेक कंपनियों के शेयर के भाव भी तेजी से बढ़ने लगे. टेक्नोलॉजी व वेब आधारित कंपनियों में लिक्विडिटी बढ़ गई और इनके शेयर का भाव आसमान छूने लगा.

    1995 और मार्च 2000 में इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी से सम्बन्धित नैस्डैक कम्पोजिट शेयर बाजार सूचकांक 400% बढ़ा. लेकिन, अक्टूबर 2002 तक अपने चरम से 78% गिर गया. इस तरह लोगों ने काफी लम्बे समय से जो लाभ कमाया था, वह धराशाही हो गया.

    इस दौरान, कई कंपनियों के स्टॉक गोते खा गए और वे कम्पनियाँ बर्बाद हो गई. ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी, Pets.com, WebvanBoo.com व इस बुलबुले में बर्बाद हो गए, लेकिन Amazon.com अपने प्रतिस्पर्धी क्षमता के बदौलत इस जलजले से बचने में सफल रहा. सिस्को सिस्टम्स के शेयर भी गोते खा रहे थे, लेकिन यह भी अमेज़न के भांति बचने में सफल रहा. अन्य संचार कंपनियां, जैसे वर्ल्डकॉम, नॉर्थपॉइंट कम्युनिकेशंस, और ग्लोबल क्रॉसिंग तबाह हो गए थे. Amazon.com, eBay और Google को डॉट-कॉम बबल के बाद अपनी बाजार पहुँच बढ़ाने में मदद मिली थी.

    2008 की महामंदी (The Great Deppression of 2008 in Hindi)

    1929 की तरह यह महामंदी भी अमेरिका से शुरू हुई थी. लेकिन साल 2008 का महामंदी, केवल शेयर बाजार तक सिमित नहीं था. इसका असर, आवास बाजार (Real Estate), ऋण बाजार (Debt Market) और यहां तक ​​कि वैश्विक व्यापार में भी महसूस किया गया.

    2002-04 के दौरान अमेरिकी बैंकों के पास डिपॉजिट्स (बचत) का आकर काफी बढ़ गया था. इसके बाद कई बैंकों ने सस्ता होम लोन बाँटना शुरू कर दिया. मकानों के कीमत में भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही थी. ऐसे में लोगों ने कर्ज लेकर मकान में निवेश करना शुरू कर दिया. 2006 के बाद इन बैंकों ने कर्ज की वसूली शुरू कर दी. ऐसे मेंकई लोग निवेशित मकान को बेचने लगे और बाजार में सस्ते दरों पर मकान उपलब्ध होने लगा.

    सस्ते मकान बेचकर लोग कर्ज चूका पाने में असमर्थ थे. ऐसे में बैंकों में संकट उत्पन्न हो गया व वे दिवालिया होने लगा. इसका शुरुआत अमेरिका के एक बड़े बैंक लेहमन ब्रदर्स के दिवालिया होने के साथ हुआ था. 15 सितंबर 2008 को इस बैंक ने दिवालिया होने का आवेदन किया. इसी दौरान वाचोविया और वॉशिंगटन म्यूचुअल भी दिवालिया के शिकार हो गए. इसके बाद आई मंदी अगले 2013 तक कायम रही. बैंक और प्रमुख वित्तीय संस्थान विफल हो गए.

    अमेरिकी सरकार ने इन वित्तीय संस्थानों में पैसे डालकर इन्हे बचा लिया. लेकिन करदाताओं के पैसे से कंपनियों के बचाने के इस प्रयास का विरोध भी हुआ. अक्टूबर 2007 से मार्च 2009 तक, एस एंड पी 500 इंडेक्स 57% तक गिर गया. यह अप्रैल 2013 के बाद ही 2007 के स्तर तक पहुंचा.

    कोविड-19 महामारी और 2020 की मंदी (Covid-19 pandemic and recession of 2000)

    2020 का वैश्विक स्टॉक मार्केट क्रैश 20 फरवरी 2020 को शुरू हुआ और 7 अप्रैल को समाप्त हुआ. यह वैश्विक महामारी कोविड-19 (COVID-19) के अचानक फैलने के कारण हुई. हालाँकि, इसका टिका (Vaccine) उपलब्ध होते ही बाजार पुनः अपने पुराने स्तर पर लौट आया.

    महामारी के दौरान लोग अपने घरों में कैद थे और इंटरनेट का जमकर इस्तेमाल कर रहे थे. इसलिए आईटी सेक्टर के क्षेत्र में काफी तरक्की हुई.

    शेयर बाजार के प्रकार (Types of Share Market in Hindi)

    शेयर बाज़ार को दो हिस्सों में बांटा जाता है, पहला प्राइमरी मार्केट और दूसरा सेकेंडरी मार्केट:-

    जब कोई कंपनी अपना शेयर जारी करती है और जनता से सीधे उगाही करती है, तो इसे प्राइमरी मार्केट कहा जाता है. प्राइमरी मार्केट में ही कंपनियां शेयर जारी करने के लिए स्टॉक एक्सचेंज में पहली बार सूचीबद्ध होती है. इस तरह शेयर जारी करने को आईपीओ या इनिशियल पब्लिक आफरिंग (IPO or Initial Public Offering) कहा जाता है.

    सेकेंडरी मार्केट को एक्सचेंज ट्रेडेड मार्केट भी कहते हैं. यह एक रेगुलर मार्केट है, जहां पर कंपनियों द्वारा शेयर्स की ट्रेडिंग रेगुलर बेसिस पर होती है. निवेशक शेयर ब्रोकर के माध्यम से शेयर की खरीद-बिक्री का कारोबार करते है.

    शेयर बाजार कैसे काम करता है? (How does stock market operate in Hindi)

    कोई स्टॉक एक्सचेंज प्रत्येक लेनदेन के लिए क्लियरिंग हाउस के रूप में भी कार्य करता है. लेकिन भारत में स्टॉक एक्सचेंज व क्लीयरिंग हाउस अलग-अलग है.

    भारत में BSE व NSE मुख्य स्टॉक एक्सचेंज है. ये इस बात का हिसाब रखते है कि किस कम्पनी ने कितना शेयर जारी किए है व उसका कितना शेयर किस व्यक्ति या कंपनी के स्वामित्व में है. ये इस बात का ध्यान रखते है कि शेयर कारोबारी ने जिस कीमत पर खरीद-बिक्री का बोली लगाया है, उसी कीमत पर उसका कारोबार सम्पन्न हो. वास्तव में ये ईसीएन जैसे तकनीक को सुचारु रूप से चला रहे होते है.

    इसका अर्थ यह भी है कि ये शेयरों को इकट्ठा करते हैं और वितरित करते हैं, और विक्रेता को सुरक्षित भुगतान की गारंटी देते हैं. यह एक व्यक्तिगत खरीदार या विक्रेता के लिए जोखिम को समाप्त करता है कि दूसरा पक्ष लेनदेन में चूक कर सकता है.

    भारतीय शेयर बाजार का इतिहास (History of Indian Share Market in Hindi)

    बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज, भारत का सबसे बड़ा और एशिया का सबसे पुराना शेयर बाजार है. बम्बई (अब मुंबई) में शेयर बाजार का शुरुआत का मुख्य श्रेय कॉटन किंग के नाम से मशहूर प्रेमचंद रॉय चंद (एक जैन कारोबारी) को जाता है. साल 1840 में चार गुजराती और एक पारसी शेयर ब्रोकर्स ने बम्बई में एक बरगद के पेड़ क नीचे शुरू की थी.

    शुरुआत में ये कॉटन का कारोबार करने वाले जहाजों पर दांव लगाते थे. देखते ही देखते इनकी संख्या कई गुना बढ़ गई. फिर, 9 जुलाई 1875 में इन सभी ने मिलकर अपना नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएशन (Native Share and Stock Brokers Association) बना लिया. यह भारत का पहला स्टॉक एक्सचेंज था, जहां ब्रोकर्स 1 रुपये की एंट्री फीस के साथ शामिल हो सकते थे. जिसके बाद सभी ने मिलकर दलाल स्ट्रीट पर अपना एक ऑफिस खोला. 1 जनवरी 1986 से यह बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई या BSE) के नाम से मशहूर हुआ.

    भारत सरकार ने 31 अगस्त 1957 को बीएसई को सिक्योरिटी एक्ट के तहत लाया. 1980 में BSE का कार्यालय दलाल स्ट्रीट पर शिफ्ट किया गया. 1986 में इस एक्सचेंज द्वारा एसएनपी (SNP), बीएसई (BSE) और सेंसेक्स (SENSEX) जैसे इंडेक्स बनाए गए.

    1980 के दशक में यह एक्सचेंज बहुत ही कम पारदर्शिता के साथ काम करता था, इसलिए अक्सर छोटे-मोटे धोखाधड़ी सामने आते रहती थी. इसलिए सही कंपनियों और आर्थिक विकास के उद्देश्य से सरकार ने एक आधुनिक वित्तिय सिस्टम की जरूरत महसूस की. फिर, मार्केट वैल्यू का डिरेगुलेशन किया गया और अर्थव्यवस्था को सर्विस ओरिएंटेड कर दिया गया. 1992 में हर्षद मेहता द्वारा की गई धोखाधड़ी सामने आने पर, भारत सरकार ने सेबी (SEBI) की स्थापना की. ऑनलाइन ट्रेडिंग और सरकार के प्रयासों से आज शेयर बाजार काफी उन्नत हो गया है, हालाँकि धोखाधड़ी की आशंका आज भी बनी रहती है.

    भारतीय शेयर बाजार से जुड़े बड़े घोटाले (Big scams of Indian Share Market in Hindi)

    भारतीय शेयर बाजार में अब तक हुए घोटालों में तीन उल्लेखनीय है.

    हर्षद मेहता का शेयर घोटाला (Share Scam by Harshad Mehta in Hindi)

    29 जुलाई 1954 को गुजरात के पनेल मोटी, गुजरात में एक छोटे से व्यापारिक परिवार में जन्मे हर्षद मेहता को एक समय “दलाल स्ट्रीट के रेड बुल” के साथ-साथ “भारतीय शेयर बाजार का अमिताभ बच्चन” उपनाम भी दिया गया था. 1980 और 1990 के दशक में हर्षद ने शेयर बाजार को अपने उँगलियों पर नाचा डाला था. लेकिन टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पत्रकार सुचेता दलाल ने इस धोखाधड़ी का भंडाफोड़ कर दिया और भारतीय शेयर बाजार क्रैश कर गया.

    कहा जाता है एसबीआई बैंक के पीआर विभाग में काम करने वाले शरद भिलारी ने सबसे पहले सुचेता दलाल को हर्षद मेहता द्वारा की जा रही घपले की जानकारी दी गई थी.

    शेयर बाजार में घपले का विचार

    हर्षद मेहता का बचपन मुंबई के कांदिवली इलाके में बिता. यहीं से उसने बी. कॉम. की पढ़ाई पूरी की व आठ साल तक कई कंपनियों में काम किया. इसी दौरान उसने एक शेयर ब्रोकरेज फर्म में काम किया व प्रसन्न परिजीवनदास को अपना गुरु मानकर उनसे शेयर से जुड़े बारीकियां सीखी.

    उसे यह समझ आ गया था कि किसी कम्पनी के स्टॉक का कीमत किस तरह ऊपर व नीचे होता है. बस इसी बात को आधार बनाकर उसने काम शुरू कर दिया. साल 1984 में हर्षद मेहता ने अपनी स्टॉक ब्रोकर कंपनी, ग्रो मोर एंड असेट मैनेजमेंट, खोली. इसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आगे चलकर यही हर्षद मेहता भारतीय शेयर बाजार का अमिताभ बच्चन कहलाया.

    कैसे हुआ घोटाला

    दरअसल, हर्षद मेहता किसी ख़ास स्टॉक में जमकर निवेश करता था और अन्य लोगों से भी ऐसा करने को कहता था. लेकिन वह खुद ही इन कंपनियों से धीरे-धीरे पैसे निकालकर अच्छा मुनाफा कमा लेता था. फिर वह किसी दूसरे कम्पनी के शेयर को अपना शिकार बनाता था.

    उदाहरण के लिए, हर्षद मेहता के वजह से सीमेंट कंपनी एसीसी के स्टॉक का कीमत 200 रूपये से बढ़कर 9000 रूपये तक पहुँच गया था. एसीसी के ाला अपोलो टायर्स, रिलायंस, टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी, बीपीएल, स्टरलाइट और वीडियोकॉन उन शेयरों में शामिल थे, जिनमें मेहता ने भारी निवेश किया था.

    वह बैंक से छोटे अवधि के लिए कर्ज लिया करता था. आमतौर पर यह 15 दिन के लिए होता था. इसपर नाममात्र या नहीं के बराबर ब्याज चुकाना होता था. साथ ही वह नकली बैंक रिसीप्ट पर भी कर्ज ले लेता था. जब तक बैंक को पता चलता तबतक वह उधार चूका होता था. ऑफलाइन बैंकिंग के वजह से बैंक उसके फ्रॉड को कभी पकड़ नहीं पाए और मिलीभगत के वजह से बैंक के वाकिफ कर्मी चुप रहे.

    इसके अलावा भी उसने कई सारी तकनीकी खामियों का फायदा उठाकर बैंकों की जमा पूंजी शेयर बाजार में लगा दी. इस पूरी प्रक्रिया में कुछ बैंक कर्मचारियों की भी मिलीभगत थी. जब खुलासा हुआ तो सभी बैंकों ने हर्षद से पैसा वापस मांग लिया. जब हर्षद ने मार्केट से पैसा निकाला तो शेयर बाजार बुरी तरह गिर गया. कई बैंकों तो वह उधार रकम भी वापस नहीं कर पाया.

    ऐसे में, उसपर कई सारे वित्तीय हेर-फेर के मुकदमें दर्ज हुए. बेल पर बाहर आने पर उसने अखबार में कॉलम लिखना शुरू किया और फाइनेंस सलाहकार बन गया. फिर पता चला कि वह उन्ही कंपनियों में पैसा लगाने कि सलाह देता था, जिनमें उसका पैसा लगा होता था.

    हर्षद मेहता से जुड़े घोटाले सामने आने के बाद ही सेबी का गठन किया गया और भारत में शेयर बाजार और बैंकिंग से जुड़े कई नियम बने.

    थाणे जेल में बंद हर्षद को 31 दिसंबर, 2001 को अचानक सीने में दर्द उठा. उसे सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया. यही पर उसकी मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हो गई.

    आईपीओ घोटाला 2005 (IPO Scam 2005 in Hindi)

    पुरूषोत्तम बुधवानी ने 2003-2005 के दौरान यस बैंक और सुजलान एनर्जी समेत 13 कंपनियों के आईपीओ की बोली प्रक्रिया के दौरान खुदरा निवेशकों के लिए आरक्षित शेयरों की हेराफेरी की थी. यहां तक आईडीएफसी शॉपर्स स्टॉप, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज और गोकुलदास एक्सपोर्ट्स जैसी कंपनियों के आईपीओ में भी यह फर्जीवाड़ा किया गया था.

    दरअसल, बुधवानी ने काल्पनिक लोगों के नाम पर फर्जी और बेनामी डीमैट खाते खोलकर इस हेराफेरी को अंजाम दिया. बाद में सेबी ने जांच किया और मामले को सही पाया. फिर सेबी ने बुधवानी पर फर्जीवाडे़ में लिप्त रहने के आरोप में 1.50 करोड़ रूपए का जुर्माना ठोका. खुदरा निवेशकों को आरक्षित अधितर शेयर फर्जी अकाउंट को आवंटित हो गए थे, जो बुधवानी ने खुलवाएं थे.

    डीएचएफएल घोटाला (DHFL Scam in Hindi)

    यह साल 2019 में हुआ यानी हाल का ही घोटाला है. इस घपले में दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड के प्रमोटरों पर 31,000 करोड़ रूपये की वित्तीय धोखाधड़ी का आरोप लगा. डीएचएफएल भारत के सबसे बड़े एनबीएफसी में से एक है. वधावन परिवार इसके प्रमोटर है. इनमें कपिल वधावन मुख्य है.

    यह वित्तीय धोखाधड़ी साधारण प्रकार की और काफी बड़ी थी. इसलिए शुरुआती जांच में ही सच्चाई सामने आ गई. वधावन बंधुओं ने कुछ कंपनियों को बड़ी मात्रा में क्रेडिट जारी करके अपनी कंपनी से पैसा निकाल दिया. जिन कंपनियों को पैसे जारी हुए थे, वे कंपनियों बाद में शेल कंपनियों के रूप में सामने आए. जांच में पता चला कि अंत में ये पैसे बधावन बंधुओं के खाते में गए थे.

    इस मामले में भी सुचेता दलाल के खोजी पत्रकारिता ने ही इस भ्रष्टाचार का खुलासा किया था. सुचेता जी ने ही पहली बार वधावन और दाऊद इब्राहिम गिरोह के ज्ञात सदस्य इकबाल मिर्ची के बीच संबंध की खोज की थी, जिसके बाद पुरा मामला सामने आ पाया.

    शेयर बाजार में निवेश के माध्यम (Medium of Investment in Share market in Hindi)

    आप शेयर मार्किट में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीके से निवेश (Investment) कर सकते है.

    प्रत्यक्ष निवेश (Direct Investment in Hindi)

    आप शेयर बाजार में सीधे निवेश कर सकते है. इसके लिए आपको किसी ब्रोकर के पास जाकर अपना डीमैट अकाउंट खोलना होगा. स्टॉक ब्रोकर SEBI सेबी से पंजीकृत होते है. ये ब्रोकर कम्पनियाँ आपसे प्रति कारोबार निश्चित कमीशन व सालाना शुल्क की वसूली भी करते है. कई बार ये खता खोलने के बदले भी छोटा सा शुल्क लेते है. यह प्रत्यक्ष निवेश होता है. प्रत्यक्ष निवेश काफी जोखिम भरा होता है, लेकिन लाभ की स्थिति में आप मालामाल भी हो सकते है.

    भारत के कुछ स्टॉक ब्रोकर्स हैं- जीरोधा (zerodha), अपस्टॉक (Upstock), एंजलवन (AngleOne), शेयर खान (ShareKhan), आईसीआईसीआई डायरेक्ट (ICICI Direct Securities), मोतीलाल ओसवाल :(Motilal Oswal), IIFL सिक्योरिटीज (IIFL Securities), SBI Cap सिक्योरिटीज (SBI Cap Securities), रेलिगेयर ब्रोकिंग (Religare Broking), एक्सिस डायरेक्ट (Axis Direct Securities), वेंचुरा सिक्योरिटीज (Ventura Securities) व HDFC सिक्युरिटीज (HDFC Securities).

    अप्रत्यक्ष निवेश (Indirect Investment in Hindi)

    इसके अलावा आप म्युचुअल फंड व नेशनल पेंशन स्कीम (National Pension Scheme -NPS) द्वारा भी स्टॉक मार्केट में अप्रत्यक्ष निवेश कर सकते है. LIC जैसी बिमा कम्पनियाँ भी अपना धन शेयर बाजार में लगाती है. आप इनके मार्फत भी आप शेयर बाजार में निवेश कर सकते है. चूँकि इन कंपनियों के फंड को विशेषज्ञ संभाल रहे होते है. इसलिए नुकसान की संभावना काफी कम हो जाती है यानी इसमें कम जोखिम होता है.

    शेयर बाजार में सुरक्षित निवेश कैसे करें? (How to invest safely in Share Market in Hindi)

    सुरक्षित निवेश से सम्बंधित कई घोषणाएं NSE, BSE व SEBI द्वारा की जाती रहती है. किसी भी इक्विटी में निवेश से कई बातें अहम् होती है, जैसे आपका और आप सलाहकार का शेयर बाजार के बारे में ज्ञान. निवेश से पहले इन पहलुओं को भी जान लेना मददगार हो सकता है.

    • कंपनी का वित्तीय स्थिति: वर्तमान व कम से कम पिछले 3-5 साल के बैलेंस शीट, लाभ-हानि खाता का अध्ययन करें,
    • विकास की संभावनाएं: कंपनी का विकास कैसा है, क्या कंपनी अपने प्रतिद्वंदियों की तुलना में अच्छी वृद्धि कर रहा है,
    • मौलिक विश्लेषण: प्रमुख अनुपातों जैसे पी/ई, पीईजी आदि (P/E , PEG etc.) को देखे; व समान एवं विभिन्न उद्योगों के अलग-अलग अनुपातों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करें,
    • कंपनी उत्पाद लाइन और विस्तार योजना का स्टडी करें,
    • अनुसंधान रिपोर्ट और विश्लेषक की सिफारिशें: ये अपने काम में पेशेवर होते हैं जो इस विषय को पूरी तरह से कवर कर आपको कम्पनी का थोड़ा-बहुत जानकारी दे देते है.
    • सामान्यतः, अच्छे व्यापार, मजबूत वित्तीय स्थिति, अच्छा लाभ कमा रही व बिना कर्जवाली व ऊपर के बिंदुओं के अनुसार सटीक कंपनियों में लम्बे अवधि का निवेश बेहतर माना जाता है.
    • शेयर बाजार के नियमों में सबसे प्रमुख है कि जब किसी कम्पनी के स्टॉक में खरीदारों की संख्या बिक्रेताओं से अधिक हो तो यह ऊपर जाता है यानी कीमत बढ़ता है और जब बिक्रेताओं की संख्या क्रेताओं से अधिक हो तो यह नीचे जाता है यानी इसकी कीमत घटती है.

    उम्मीद है शेयर बाजार में नुकसान से बचने के टिप्स आपके लिए फायदेमंद हो.

    भारत और दुनिया के बड़े स्टॉक सूचकांक (The Major Stock Index of India and World in Hindi)

    आमतौर पर किसी भी स्टॉक एक्सचेंज में सैकड़ों कम्पनियाँ सूचीबद्ध होती हैं. ऐसे बाजार का चाल पता लगा पाना मुश्किल होता है. इस समस्या के समाधान के लिए स्टॉक इंडेक्स (सूचकांक) विकसित किए गई है. इसमें अपने सेक्टर के प्रमुख शेयरों को वेटेज के अनुसार शामिल किया जाता है व व इन कंपनियों में आई तेजी या गिरावट का सीधा प्रभाव इन इंडेक्स पर होता है. उदाहरण के लिए निफ़्टी इंडेक्स में रिलायंस इंडस्ट्रीज का वेटेज 10 फीसदी से अधिक है. तो आइये अब जानते है कुछ और महत्वपूर्ण सूचकांकों के बारे में-

    निफ़्टी (NIFTY in Hindi)

    निफ़्टी का पूर्ण-रूप (full form) नेशनल स्टॉक एक्सचेंज फिफ्टी (National stock exchange FIFTY) है. यह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का मुख्य सूचकांक है, जिसकी स्थापना 21 अप्रैल 1996 को की गई है. इसमें 50 कम्पनियाँ शामिल हैं, जिनमे रिलायंस इंडस्ट्रीज, HDFC बैंक व इनफ़ोसिस मुख्य हैं.

    सेंसेक्स (Sensex in Hindi)

    इसका फुलफॉर्म सेंसिटिव इंडेक्स (Sensitive Index) है. यह 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक हैं. इसकी स्थापना एक जनवरी 1986 को हुई थी.

    डीजेआईए (DJIA in Hindi)

    यह शब्द डाउ ज़ोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज ( Dow Jones Industrial Average) का संक्षिप्त रूपांतरण हैं. डीजेआईए अमेरिका के 30 बड़े व प्रसिद्ध ब्लू-चिप शेयरों का बेंचमार्क इंडेक्स है. इस सूचकांक में न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज (एनवाईएसई) और नैस्डैक पर व्यापार करने वाली कम्पनियाँ शामिल हैं. इस सूचकांक को 1896 में चार्ल्स डॉव (Charles Dow) द्वारा बनाया गया था.

    कोस्पी (KOSPI)

    यह दक्षिण कोरियाई शेयर बाजार का प्रतिनिधि सूचकांक है. KOSPI का फुलफॉर्म Korea Composite Stock Price Index होता है. इसकी स्थापना 1983 में हुई, जिसमें सैमसंग व हुंडई जैसे कंपनियों के स्टॉक शामिल हैं.

    निक्की 225 (Nikkei 225)

    यह टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज, जापान का मुख्य इंडेक्स है. इसे निक्की स्टॉक एवरेज भी कहा जाता हैं. इसकी शुरुआत 1950 में की गई थी.

    S&P/ASX 200 इंडेक्स

    यह ऑस्ट्रेलियाई सिक्योरिटीज एक्सचेंज का प्रमुख सूचक है और ऑस्ट्रेलियाई इक्विटी के लिए बेंचमार्क का काम करता है. यह 31 मार्च 2000 को आरम्भ किया गया.

    FTSE 100 इंडेक्स

    यह इंडेक्स फूट्सी के नाम से भी प्रसिद्द है, जिसका पूरा नाम फाइनेंसियल टाइम्स स्टॉक एक्सचेंज 100 इंडेक्स है. इसे लंदन स्टॉक एक्सचेंज ग्रुप अपने मुख्य स्टॉक को शामिल कर चलता है. इसे 3 जनवरी 1984 को शुरू किया गया था.

    डॉक्स (DAX)

    इसमें फ्रैंकफर्ट स्टॉक एक्सचेंज के 40 प्रमुख जर्मन ब्लू चिप कंपनियां सम्मिलित है. इसका पूरा नाम Deutscher Aktien Index है, जिसे 1 जुलाई 1988 को स्थापित किया गया था.

    CAC 40

    यह फ्रेंच स्टॉक एक्सचेंज में शामिल 40 बड़ी कंपनियों का इंडेक्स है. इसका फुलफॉर्म Cotation Assistée en Continu होता है. FCHI इसका ट्रेडिंग सिंबल है. इसकी स्थापना 31 दिसंबर 1987 को हुई थी.

    एसटीआई (STI)

    यह सिंगापुर स्टॉक एक्सचेंज (SGX) का प्रसिद्ध सूचकांक है, जिसे Straits Times Index भी कहा जाता है. 15 सितम्बर 1966 में स्थापित इस सूचकांक में 30 बड़ी कम्पनियाँ शामिल है, जिसे FTSE ग्रुप संचालित करती है.

    शेयर बाजार से जुड़े महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दावली

    स्टॉक मार्केट से जुड़े एक्सपर्ट्स इन शब्दों का अक्सर प्रयोग करते है-

    बियर्स या मंदड़िया (Bears)

    जो लोग शेयर का भाव गिरना या गिरता हुआ देखना चाहते है, उन्हें बियर्स कहते है. जब शेयर बाजार में गिरावट का दौर चल रहा हो तो उसे बियर मार्किट (bear market) कहते है. कम कीमत में खरीद के लिए लोग स्टॉक में गिरावट दिखना चाहते है.

    बुल्स या तेजड़िया (Bulls)

    यह स्थिति बियर्स के ठीक उलटी होती है. इसमें लोग स्टॉक के भाव को बढ़ता देहना चाहते है, क्योंकि उनहोंने इनमें निवेश किया होता है. जिस शेयर बाजार में कीमत में बढ़ोतरी हो रही हो, उस बाजार को बुल बाजार कहा जाता है.

    सीएजीआर (CAGR)

    इसे चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (Compound Annual Growth Rate) भी कहते है. यह एक वर्ष से अधिक समय की निर्दिष्ट अवधि में निवेश की औसत वार्षिक वृद्धि दर है. यह व्यक्तिगत संपत्तियों, निवेश पोर्टफोलियो, और समय के साथ मूल्य में वृद्धि या गिरावट के लिए रिटर्न की गणना और निर्धारण करने के सबसे सटीक तरीकों में से एक है.

    डीआईआई (DII)

    इसका full form होता है Domestic Institutional Investors. ये स्वदेसी संस्थागत निवेशक होते है. जैसे, जब एक भारतीय कंपनी एलआईसी भारतीय शेयर बाजार में निवेश करता है तो इसे डीआईआई कहा जाएगा. वहीं यह यदि पाकिस्तान या चीन के शेयर बाजार में निवेश करता है तो इसे एफआईआई कहा जाएगा.

    पोर्टफोलियो (Portfolio in Hindi)

    किसी वित्तीय संसथान या व्यक्ति द्वारा किये गए निवेशों की मूल्यों व संख्या के साथ सूचि को पोर्टफोलियो कहते है.

    होल्डिंग्स (Holdings)

    स्टॉक खरीदने से बेचने के बीच का अवधि होल्डिंग पीरियड (Holding Period) कहा जाता है. जिन स्टॉक्स को इस दौरान खरीदकर रखा जाता है, उसके कीमत व संख्या के साथ सूचि को होल्डिंग्स कहा जाता है.

    सपोर्ट लेवल (Support Level)

    यह एक तकनीकी शब्द है. वह दर जिससे नीचे किसी शेयर या सूचकांक का मूल्य नीचे नहीं जाता है या जाने की संभावना हो, उसे सपोर्ट लेवल कहा जाता है. यानि कम्पनी के स्टॉक का समकालीन कीमत का निचला स्तर ही सपोर्ट लेवल है. इस लेवल को पहचानकर निवेशक अच्छे कम्पनयों के स्टॉक खरीदते है. इसे बॉटम (Bottom) भी कहा जाता है.

    रेजिस्टेंस लेवल (Resistance Level)

    यह सपोर्ट के ठीक उलट होता है. यह वह संख्या है जिसके ऊपर किसी शेयर या सूचकांक का भाव नहीं जाता है या जाने की संभावना हो. यह किसी स्टॉक का ऊपरी स्तर होता है. कई बार शेयर के कीमत में जोरदार उछाल आ जाता है और यह इसे तोड़कर और भी बढ़ जाता है. इस लेवल पर कई लोग शेयर को बेच देते है. इसे टॉप (Top) भी कहा जाता है.

    इंट्राडे (Indtraday in Hindi)

    जब कोई निवेशक एक ही दिन में शेयर को खरीदकर ऊँचे कीमत पर बेचता है तो इसे इंट्राडे कहा जाता हैं. अनुमानों पर आधारित इस कारोबार में अधिकतर नुकसान हो जाती है. इसलिए इस तरह का कारोबार न करने की हिदायत विशेषज्ञ देते है.

    डिलीवरी (Delivery in Hindi)

    जब हम किसी स्टॉक को खरीदकर उसी दिन नहीं बेचते बल्कि उसे कुछ और दिन, महीने या साल के लिए रखते है तो इस खरीद को डिलीवरी कहा जाता है.

    शॉर्ट सेलिंग (Short Selling)

    जब कोई सट्टेबाज ब्रोकर के मदद से स्टॉक के मालिक से स्टॉक उधार लेता है व उसे बेच देता है तो इसे शार्ट सेलिंग कहते है. इसमें अधिक मूल्य पर शेयर को बेचा जाता है और कम मूल्य पर खरीदकर वापस लौटा दिया जाता है. बेचने और खरीदने का अंतर कारोबारी का लाभ होता है, इससे कई कमीशन व कर भी करने होते है.

    मार्जिन खरीद (Margin buying)

    यह इंट्राडे कारोबार से जुड़ा शब्द है. इसमें एक ही दिन में शेयर को खरीदकर बेचना या बेचकर खरीदना होता है. इस एकदिनी कारोबार में आपको कुल पूंजी से काफी कम पूंजी को निवेशित करना होता है. इस तरह आप कम पूंजी में अधिक लाभ कमा सकते है. जैसे जीरोधा इंट्राडे के लिए कुल निवेश का सिर्फ 20 फीसदी आपसे लेता है. लेकिन सामान्य कारोबारी समय के बीच किसी समय आपको अपने खरीद को बिक्री या फिर बिक्री को खरीद में बदलना होता है.

    इस तरह के ट्रेडिंग शुरू करने से पहले निवेशक को तीन महत्वपूर्ण स्टेप्स याद रखने होते हैं. पहला, सेशन के जरिए मिनिमम मार्जिन को मेंटेन करना होता है. दूसरा हर ट्रेडिंग सेशन के खत्म होने पर अपनी पोजिशन पर आना होता है. मतलब यदि शेयर खरीदे हैं तो उन्हें बेचना होगा और अगर शेयर बेचे हैं तो उन्हें सेशन खत्म होने पर खरीदना होगा, तीसरा स्टेप यह कि ट्रेडिंग के बाद शेयरों को डिलीवरी ऑर्डर में कन्वर्ट करना होता है. (Source NBT)

    शेयर गिरवी रखना (Pledge Share)

    जब निवेशक या कंपनी का प्रमोटर अपना शेयर गिरवी रखता है तो इसे प्लेज़िंग कहा जाता है. सत्यम कम्प्यूटर्स के मालिक ने अपने शेयर को गिरवी रख दिया था और बाद में इससे जुड़ा घोटाला सामने आया था. इसलिए किसी स्टॉक में निवेश से पहले इसे भी परखा जाता है.

    म्यूचुअल फंड (Mutual Fund)

    म्यूच्यूअल फंड के जरिए आप स्टॉक, बॉन्ड्स, मनी मार्केट और दूसरी चीजों में अप्रत्यक्ष तौर पर निवेश कर सकते है. इसका संचालन म्यूच्यूअल फंड कम्पनी का पेशेवर विशेषज्ञ करता है, जिसे फंड मैनेजर या मनी मैनेजर कहते हैं. जो म्यूच्यूअल फंड निवेशकों को अधिक लाभ दिला पाता है, उसका कारोबार बेहतर चलता है. इसलिए सभी फंड मैनेजर बेहतरीन निवेश करने की कोशिश करते है और सफल भी होते है.

    पेनी स्टॉक्स (Penny Stocks)

    ये वो स्टॉक्स होते है जिनका भाव काफी कम होता है. अक्सर ये 1 से 10 रूपये या फिर कभी-कभी 90 के निचे के भाव में मिल जाते है. इनमें कारोबार करना काफी जोखिम भरा होता है. अधिकतर छोटे निवेशक अपना सारा निवेश इसी तरह के स्टॉक्स में गँवा देते है. इन कंपनियों का कारोबार भी अच्छा नहीं होता है.

    रिस्ट्रक्चरिंग या पुनर्गठन (Restructuring)

    जब कोई कंपनी खास उद्देश्यों या घाटे में कमी लाने या लाभ बढ़ाने के प्रयास में अपने कम्पनी और उत्पाद में काफी बदलाव कर देती है, इसे ही रिस्ट्रक्चरिंग कहा जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य कंपनी की स्थिति सुधारना और अपने प्रतिद्वंदियों से मुकाबला करना होता है.

    सर्किट ब्रेकर्स (Circuit breakers in Hindi)

    किसी भी स्टॉक में एक दिन में अधिकतम कितनी प्रतिशत वृद्धि या कमी हो सकती है, इसे सर्किट ब्रेकर कहा जाता है. भारतीय बाजारों में सामान्यतः यह 20 फीसदी होता है.

    सर्किट फिल्टर (Circuit Filter in Hindi)

    सर्किट ब्रेकर में लगाए गए सीमा का निर्धारण सर्किट फ़िल्टर कहलाता है. यह +20 फीसदी से -20 फीसदी तक होती है. असामान्य स्थिति में इसे +5 फीसदी से -5 फीसदी तक कर दिया जाता है.

    सर्कुलर ट्रेडिंग (Circular Trading)

    जब निवेशकों का एक समूह आपस में ही शेयरों की खरीद-बिक्री कर इसके भाव को बढ़ता हुआ दिखाना चाहता है, सर्कुलर ट्रेडिंग कहलाता है. इनका लक्ष्य अन्य निवेशकों को आकर्षित कर स्टॉक का खरीद बढाकर इसका कीमत बढ़वाना होता है.

    स्टॉप लॉस (Stop Loss in Hindi)

    नुकसान की सीमा तय करना ही स्टॉप लॉस होता है. मन कोई स्टॉक आपने 100 रूपये में खरीदी व ये तय किया की इसे 105 रूपये में बेच दूंगा. लेकिन इसकी कीमत कम होने लगती है और 95 रूपये की कीमत पर आप इसे बेच देते है. कम कीमत पर नुकसान के साथ इस बिकवाली को स्टॉप लॉस कहा जाता है. आजकल आप स्टॉपलॉस की कीमत खुद भी सेट कर निश्चिन्त हो सकते है, ताकि एक सीमा से अधिक नुकसान न हो.

    स्वेट इक्विटी (Sweat Equity)

    शब्द से स्पष्ट है पसीना बहाकर कमाया गया इक्विटी. कई बार कम्पनियाँ अपने कर्मियों को बोनस या फिर वेतन के बदले में इक्विटी स्टॉक देती है. इसे ही स्वेट इक्विटी कहते है.

    शॉर्ट कवरिंग (Short Covering)

    जब बाजार में गिरावट का दौर होता है तो कई लोग अपने शेयर को बेच देते है. जब इस स्टॉक का भाव बेचे गए कीमत से काफी कम हो जाता है तो इसे फिर से खरीद लिया जाता है. इस प्रकार के ट्रेडिंग को शार्ट कवरिंग कहा जाता है.

    युनिक क्लाइंट कोड या यूसीसी (Unique Client Code or UCC)

    शेयर दलालों के पास अपना पंजीकरण कराने वाले प्रत्येक ग्राहक को एक कोड नंबर दिया जाता है. ब्रोकर के पास शेयरों के सौदे लिखवाते समय ग्राहकों को यह कोड नंबर बताना होता है.

    यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान या यूलिप (ULIP or Unit Linked Insurance Plan in Hindi)

    यह म्यूच्यूअल फंड के तरह ही होता है. लेकिन इसमें सौदे के शर्तों के अनुरूप बिमा का लाभ भी मिलता है. इसमें बिमा का हिस्सा काफी कम व शेयर बाजार में निवेश का हिस्सा अधिक होता है. इसलिए इसे म्यूच्यूअल फंड से अत्यधिक जोखिम वाला माना जाता है. हालाँकि, यह स्टॉक में सीधे निवेश से थोड़ा कम जोखिमवाला होता है. इसमें काफी सोचसमझ कर व आंकलन कर निवेश करने की सलाह दी जाती है. साथ ही अपने निवेश का छोटा हिस्सा इसमें लगाए तो ठीक रहता है.

    आउटलुक (Outlook in Hindi)

    यह किसी कम्पनी के स्टॉक में निवेश के लिए सामान्य रेटिंग होती है. यह अधिकतर सकारात्मक (Positive), नकारात्मक (Negative) या फिर स्थिर (Stable) के रूप में होती है.

    ऑर्डर बुक (Order Book)

    किसी कंपनी को भविष्य में कितने उत्पाद या सेवाओं का ग्राहक से आदेश मिला है, यह आर्डर बुक से पता चलता है. यह कंपनी के आकर के हिसाब से जितना अधिक हो, उतना ही बेहतर माना जाता है.

    आर्बिट्रेज (Arbitrage)

    एक स्टॉक एक्सचेंज के शेयर को कम कीमत पर खरीदकर किसी दूसरे स्टॉक एक्सचेंज में अधिक कीमत पर बेचकर लाभ कमाने को आर्बिट्रेज कहते है. ऐसा करने वाला अर्बीट्रेजर कहलाता है.

    आर्बिट्रेशन (Arbitration)

    यह शेयर बाजार में किसी विवाद को निपटने की प्रक्रिया है. यह आर्बिट्रेज से बिलकुल अलग शब्द है. इसमें दो ब्रोकर या फिर ब्रोकर और ग्राहक के बीच हुए विवाद का निपटान किया जाता है. इसके लिए नियुक्त किए गए मध्यस्थ को आर्बिट्रेटर व प्रक्रिया को आर्बिट्रेशन प्रोसेस कहा जाता है.

    नीलामी (Auction)

    जब कोई व्यक्ति अपने पास शेयर न होते हुए भी कोई स्टॉक बेच देता है तो इस कारोबार को पूरा करने के लिए शेयर बाजार विक्रेता को शेयर खरीदने के लिए विवश करता है. ताकि खरीदार को आपूर्ति किया जा सके. इस प्रक्रिया नीलामी कहा जाता है. इस तरह कोई व्यक्ति अपने दायित्वों से मुक्त हो जाता है.

    अलॉटमेंट (Allotment)

    जब कंपनियों के सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के बाद आवेदनकर्ताओं को दी जाने वाली शेयर ही अलॉटमेंट कहलाती है.

    सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टेक्स (STT)

    इसे सारांश में एसटीटी कहते हैं. यह शेयर बाजार में प्रत्येक कारोबार के बदले में सरकार के द्वारा वसूला जाने वाला कर है. इसे प्रत्येक कांट्रेक्ट नोट या बिल में ब्रोकरेज के साथ-साथ वसूला जाता है.

    विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई)

    ये विदेशी संस्थागत या सामान्य निवेशक होते है. ये अक्सर बड़ी धनराशि शेयर बाजार में निवेश करते है. इस वजह इनके खरीद-बिक्री से बाजार पर काफी बड़ा असर होता है. इन्हें निवेश से पूर्व आरबीआई व सेबी से अनुमति लेना होता है.

    एक्सपोजर (Exposer)

    यह शब्द वायदा बाजार में अधिक प्रचलित है. जब कोई ट्रेडर प्युचर कांट्रेक्ट करता है तो उसके जोखिम को एक्सपोजर कहा जाता है. सामान्यतः निवेशक द्वारा किसी कम्पनी में निवेश के बाद ली गई जोखिम को भी एक्सपोज़र कहा जाता है.

    बेस्ट बाई (Best Buy)

    किसी स्टॉक का वह कीमत, जिसपर उसे खरीदना सबसे अच्छा भाव कहलाता है. बेस्ट बाई कहलाता है.

    ब्लू चिप (Blue Chip)

    किसी सेक्टर या बाजार के सबसे अच्छे कम्पनियाँ व उनके स्टॉक ब्लू चिप कहलाते है. इनमें निवेश करना कम जोखिमवाला माना जाता है.

    बबल (Bubble in Hindi)

    जब किसी स्टॉक का भाव अचानक धड़ाम से गिर जाएं तो इस स्थिति को बबल ब्रस्ट या बबल का फूटना कहते है. ऐसा इंडेक्स के मामले में भी हो सकता है.

    करेक्शन (Correction)

    जब किसी स्टॉक के कीमत में काफी वृद्धि के बाद, गिरावट होती है तो उसे करेक्शन कहा जाता है.

    कॉर्पोरेट एक्शन (Corporate Action)

    जब कोई कम्पनी अपने स्टॉक के लिए कोई कार्रवाई करती है तो उसे कॉर्पोरेट एक्शन कहा जाता है. उदाहरण के लिए लाभांश / ब्याज का भुगतान, राइट / बोनस इश्यू, मर्जर/डिमर्जर, बाई बैक, ओपन ऑफर आदि इसके तहत आते है.

    कांट्रेक्ट नोट (Contract Note)

    जब भी हम कोई शेयर खरीदते है तो ब्रोकर द्वारा हमें इसके स्वामित्व का एक दस्तावेज दिया जाता है, जिसे कॉन्ट्रैक्ट नोट कहा जाता है. यह क़ानूनी रूप से मान्य होता है. धोखाधड़ी के स्थिति में आपको इस दस्तावेज के मार्फ़त 10 लाख रूपये तक के मुवावजे का प्रावधान एक्सचेंज के तरफ से मिलता है. इसलिए यह काफी अहम् दस्तावेज माना जाता है व इसे निवेशकों को सुरक्षित रखने को कहा जाता है.

    कॉर्नरिंग (Cornering)

    जब कोई व्यक्ति या समूह किसी ख़ास कम्पनी का स्टॉक बड़ी मात्रा में खरीदकर जमा करने लगता है तो इसे कॉर्नरिंग कहा जाता है.

    कंसेंट ऑर्डर (Consent Order)

    शेयर बाजार में किए गए छोटे-मोठे अपराध को जब कोई आरोपी स्वीकार कर लेता है, तो इसके बाद जारी आदेश को कंसेंट ऑर्डरिंग कहा जाता है. इस तरह के आदेश में नुक्सान के भरपाई के अलावा छोटा सा अर्थदंड लगाया जाता है. बड़े मामलों में यह सुविधा नहीं मिलती है.

    डिलिस्टिंग (Delisting)

    किसी कम्पनी के स्टॉक को बाजार में कारोबार से हटा देने की प्रक्रिया को डिलिस्टिंग कहते है. कई बार कम्पनी स्वेच्छा से ऐसा करती है. इसमें अंशधारकों को कोई नुकसान नहीं होता है. लेकिन कई बार नियमों का पालन न करने के वजह से सेबी या स्टॉक एक्सचेंज भी यह कार्रवाई करती है. ऐसे में शेयरधारकों को नुकसान हो जाता है.

    विनिवेश (Disinvestment)

    जब कोई समूह या व्यक्ति, जिसने कम्पनी में बड़े पैमाने पर निवेश किया हो, अपना निवेश निकाल लेता हो तो इसे विनिवेशीकरण या डिसइनवेस्टमेंट कहते है. कई बार देश की सरकार ऐसा, किसी उद्योग, या किसी कम्पनी का योजनाबद्ध रूप से आर्थिक बहिष्कार करती है ताकि उसे अपनी नीतियों को बदलने के लिए विवश किया जा सके. सरकारी कम्पनी का निजीकरण भी विनिवेश की श्रेणी में आता है.

    क्लीयरिंग हाउस (Clearing House)

    समाशोधन गृह (Clearing House) स्टॉक के खरीदारों और विक्रेताओं के बीच एक मध्यस्थ है. यह एक फ्यूचर एक्सचेंज की एक एजेंसी या अलग निगम है जो ट्रेडिंग खातों को निपटाने, ट्रेडों को क्लियर करने, मार्जिन मनी को इकट्ठा करने और बनाए रखने, डिलीवरी को विनियमित करने और ट्रेडिंग डेटा की रिपोर्ट करने के लिए जिम्मेदार है.

    डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट (Depository Participant)

    शेयर बाजार में कारोबार के लिए हमें एक डीमेट अकाउंट की जरुरत होती है. इसे डीपी यानि डिपाजिटरी पार्टिसिपेंट के पास ब्रोकर के माध्यम से खुलवाया जा सकता है. भारतीय बाजार में एनएसडीएल (नेशनल सिक्युरिटीज डिपॉजिटरी लि.) और सीडीएसएल (सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज इंडिया लि.) नाम की दो डिपॉजिटरी हैं.

    विविधीकरण (Diversification)

    किसी एक कंपनी के बदले कई कंपनियों के स्टॉक में निवेश को डाइवर्सिफिकेशन या विविधीकरण कहते है. इसे निवेशकों के लिए फायदेमंद व कम जोखिमवाला माना जाता है.

    क़ानूनी वसूली (Disgorgement)

    डिसगोर्जमेंट या क़ानूनी वसूली वह प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति से सेबी उस रकम का वसूली करती है, जो उसने शेयर बाजार में घपला करके अवैध तरीके से कमाया हो. इस तरह के जारी आदेश डिसगोर्जमेंट आर्डर कहलाते है.

    डिस्क्लोजर (Discloser)

    कम्पनी से जुड़े जानकारियों को आम जनता व सेबी से साझा करना डिस्क्लोज़र कहलाता है. यह सेबी द्वारा जारी नियमों के अधीन होता है.

    इस्यूअर (Issuer)

    शेयर या प्रतिभूतियां जारी करने वाली मूल कंपनियों या संस्थाओं को इस्यूअर कहा जाता है.

    फंडामेंटल (Fundamental)

    यदि किसी कम्पनी व उसका स्टॉक अच्छे स्थिति में हो तो कहा जाता है कि इस कम्पनी का फंडामेंटल मजबूत है. इसके उलट खराब स्तिथि को फंडामेंटल कमजोर होना कहा जाता है. कम्पनी के बिक्री, नफा, आय, मार्जिन, डिमांड, रेश्यो के आधार पर इसका आंकलन किया जाता है.

    गाइडन्स (Guidance)

    जब कोई कंपनी अपने भविष्य के कारोबार की रुपरेखा जारी करती है तो इसे गाइडंस कहा जाता है. इसमें बताया जाता है कि कम्पनी भविष्य में अच्छा प्रदर्शन करेगी या बुरा.

    गाइड लाइन या मार्ग रेखा (Guideline)

    सेबी समय-समय पर शेयर बाजार के लिए कई नए नियम या नियमों में संसोधन जारी करती है, इसे ही गाइड लाइन कहा जाता है. इसे सेबी का शर्त एवं नियम भी कहा जा सकता है.

    केवाईसी (KYC या नो योर क्लाइंट / कस्टमर)

    इसमें शेयर खाताधारकों के पहचान का सत्यापन किया जाता है. कई बार लोग बेनामी खाता भी खोल लेते है व अवैध लाभ कमाते है. इस स्थिति से बचने के लिए केवाईसी का सहारा लिया जाता है. 2003- 2005 के दौरान अनेकों आईपीओ में बेनामी डिमैट एकाउंट खुलवाकर मल्टिपल आवेदन करके अनेक लोगों ने अनुचित लाभ कमाया था. इससे छोटे निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ा. इसलिए भी केवाईसी जरुरी समझा जाने लगा है.

    लिस्टिंग (Listing)

    आईपीओ के बाद जब पहली बार कोई स्टॉक बाजार में सूचीबद्ध होकर खरीद-बिक्री के लिए उपलब्ध होता है तो इसे लिस्टिंग कहा जाता है.

    प्रवाहिता (Liquidity)

    जब भी किसी स्टॉक में अधिक से अधिक लोग निवेश कर रहे हो व इससे उसके कीमत में बढ़ोतरी हो रही हो तो इस स्थिति में ये कहा जाता है कि अमुक स्टॉक में प्रवाहित या लिक्विडिटी बढ़ रही है. इसके ठीक उलट जब किसी स्टॉक को अधिकतर लोग बेचने लगे तो उस स्टॉक की कीमत घटने लगती है तो इस स्थिति में कहा जाता है कि इस स्टॉक में लिक्विडिटी घट रही है. भारतीय रिज़र्व बैंक शेयर बाजार में ऐसे स्थिति को संभाले के लिए कदम उठाते रहती है.

    मार्केट कैप (Market Cap in Hindi)

    किसी कंपनी के सभी शेयरों के कीमत का योग मार्केट कैपिटलाइजेशन कहलाता है. इसे ही मार्केट कैप भी कहा जाता है.

    फ्री फ्लोट फैक्टर(Free Float Factor)

    जो शेयर, मार्केट में लिस्टेड हो गई हो, उसके कीमत से ही कंपनी के अनलिस्टेड स्टॉक की कीमत तय होती है. इसे ही फ्री फ्लोट फैक्टर कहा जाता है. सबसे पहला आईपीओ के कीमत को इसका बेस माना जाता है. इसमें बोनस व स्प्लिट को भी शामिल कर ये गणना किया जाता है कि कम्पनी का स्टॉक लिस्टिंग के बाद से कितना फीसदी या गुना बढ़ा या घटा.

    Tag : share market kya hai in hindi

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