संघ मोलस्का (Phylum Mollusca) का वर्गीकरण, नामकरण व लक्षण

संघ मोलस्का के जीव अकशेरुकी (Invertebrate) होते हैं. इसमें कोमल शरीर वाले सभी जीव जंतुओं को शामिल किया गया है. मोलस्क का अर्थ होता है “कोमल” अर्थात कोमल शरीर वाले जंतु मोलस्क कहलाते हैं. साधारण शब्दों में कह सकते हैं, कि वे अकशेरुकी जंतु जिनका शरीर कोमल अखंडित होता है.

इनका देहभित्ति के वलन से बना हुआ एक लिफाफे के जैसा आवरण मेंटल होता है. इस मेंटल से अधिकांश जंतुओं में कैल्शियम से युक्त एक कवच का निर्माण होता है, जो बाहरी आघातों तो उसे इन प्राणियों की रक्षा करने में मदद करता है. ऐसे जंतु संघ मोलस्का के अंतर्गत आते हैं. समुद्र में सबसे ज़्यादा मिलने वाले जीवों में से एक मोलस्क हैं. समुद्र में जितने भी जीव हैं, उनमें से लगभग एक-चौथाई मोलस्क होते हैं. संघ मोलस्का में वर्तमान में 85000  ज्ञात प्रजातियाँ (Species) सम्मिलित हैं.

इस लेख में हम जानेंगे

संघ मोलस्का का नामकरण (Nomenclature of Phylum Mollusca)

संघ मोलस्का (Phylum Mollusca) नाम की उत्पत्ति लैटिन शब्द मोलस्कस (molluscus) से हुई है, जिसका अर्थ है नरम या कोमल. यह नाम पूरी तरह से इस संघ के जीवों की एक प्रमुख विशेषता को दर्शाता है. इनका शरीर आमतौर पर बहुत नरम होता है और अक्सर एक कठोर खोल (shell) से ढका होता है.

संघ मोलस्का के इतिहास में दो प्रमुख व्यक्तियों, अरस्तु (Aristotle) और जोन्सटन (Johnston), का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लेकिन उनकी भूमिकाएँ अलग-अलग थीं:

  • अरस्तु (Aristotle) (384-322 ईसा पूर्व): अरस्तु एक प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक और वैज्ञानिक थे जिन्हें प्राणीशास्त्र (Zoology) का जनक माना जाता है. उन्होंने जानवरों का वर्गीकरण करने का प्रयास किया और समुद्री जीवों का गहराई से अध्ययन किया. उन्होंने अस्थि-रहित (boneless) जीवों को “नरम शरीर वाले” (soft-bodied) जीव के रूप में वर्गीकृत किया. उनके इस वर्गीकरण में आज के मोलस्का, जैसे कि ऑक्टोपस (Octopus) और स्क्विड (Squid), शामिल थे. हालांकि उन्होंने इन जीवों को व्यवस्थित रूप से वर्गीकृत किया था. लेकिन उन्होंने संघ के लिए मोलस्का नाम का उपयोग नहीं किया था.
  • जोन्सटन (Johnston) (1650): जोन्सटन एक ब्रिटिश प्राकृतिक इतिहासकार थे. उन्होंने ही सबसे पहले इन नरम-शरीर वाले जीवों के समूह के लिए मोलस्का नाम का प्रयोग किया. यह नामकरण उनके काम को महत्वपूर्ण बनाता है क्योंकि उन्होंने अरस्तु द्वारा किए गए अवलोकनों को एक औपचारिक वर्गीकरण नाम दिया, जिससे इस समूह को एक अलग पहचान मिली.

इस प्रकार, अरस्तु ने इन जीवों का पहला विस्तृत अध्ययन और वर्गीकरण किया. वहीं, जोन्सटन ने उनके लिए “मोलस्का” नाम दिया, जो आज भी प्रयोग में है.

संघ मोलस्का के मुख्य लक्षण (Main Characteristics of phylum Mollusca)

संघ मोलस्क की कई प्रजातियां और विविधताएं हैं; यह चित्र एक जलीय गैस्ट्रोपॉड की शारीरिक रचना को दर्शाता है.
संघ मोलस्का की कई प्रजातियां और विविधताएं हैं; यह चित्र एक जलीय गैस्ट्रोपॉड की शारीरिक रचना को दर्शाता है.

संघ मोलस्का, संघ आर्थोपोडा के बाद दूसरा बड़ा संघ हैं. संघ मोलस्का की विशेषताएं निम्न प्रकार से हैं:-

  1. आवास एवं प्रकृति (Habitat and Nature) – संघ मोलस्का के जंतु सभी स्थानों पर पाए जाते हैं. इस संघ के जंतु स्वच्छ जलीय, समुद्री जलीय, कुछ जंतु स्थलीय, तो कुछ जंतु उभयचर स्वभाव की भी होते हैं. संघ मोलस्का के जंतु शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रवृत्ति के होते हैं.
  2. शारीरिक संगठन और जनन स्तर (Physiological organization and reproductive level) – संघ मोलस्का के जंतुओं का शरीर अंग स्तर का होता है. जबकि यह त्रिजनन स्तरीय जंतु होते है.
  3. सममिति (Symmetry) – संघ मोलस्का के अधिकतर जंतु द्वीपाशर्व जंतु होते हैं, अर्थात जिनका शरीर दो बराबर भागों में विभक्त हो सकता है. जबकि इस संघ के कुछ वर्ग के जंतु असममिति भी प्रदर्शित करते हैं.
  4. शारीरिक आवरण (Body Aavran) – संघ मोलस्का के जंतुओं में उनकी देहभित्ति के वलन से बना हुआ एक लिफाफे जैसा आवरण मेंटल होता है. जो आवरण का कार्य करता है, जबकि मेंटल एक कठोर कैल्शियम युक्त कवच का स्राव भी करता है, जो संघ मोलस्का के जंतुओं का कवच उन्हें बाहरी आघातों से बचाता है.
  5. शारीरिक विभाजन (Physical Division) – इस संघ के जंतुओं का शरीर विभाजन सिर विसरल मास मेन्टल और पाद में विभाजित होता है.
  6. प्रचलन (Motion)  – इन जंतुओं में तैरने के लिए तथा प्रचलन के लिए विशेष प्रकार की संरचना होती है, जिसे मांसल पाद कहते हैं.
  7. खण्डीभवन (Saigmentation) – संघ मोलस्का के जंतु खंड रहित होते हैं अर्थात इनका शरीर अखंडित होता है.
  8. देहगुहा (Body Cavity) – संघ मोलस्का के जंतुओं की देहगुहा वास्तविक देहगुहा होती है, जिसे शीजोसीलोम कहते है. यह देहगुहा हृदय,उत्सर्जी अंग, जननांग के चारों ओर तक ही सीमित होती है.
  9. पोषण (Nutrition)– संघ मोलस्का के जंतु शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के होते हैं. इन जंतुओं की आहार नाल पूर्ण विकसित होती है. पाचन ग्रंथियांयकृत जबकि कुछ जंतुओं में हिपेटोपैंक्रियास भी उपस्थित होता है. बहुत से जंतुओं के मुख में रेडुला नामक संरचना भी पाई जाती है.
  10. उत्सर्जन तंत्र (Excretory System)– संघ मोलस्का के अधिकांश जंतुओं में उत्सर्जन के लिए मेटानेफ्रीडिया पाए जाते हैं.
  11. परिसंचरण तंत्र (Circulatory System) – संघ मोलस्का के अधिकतर प्राणियों में बंद प्रकार का परिसंचरण तंत्र पाया जाता है, किंतु कुछ प्राणियों में खुला परिसंचरण तंत्र भी उपस्थित होता है, क्योंकि उन जंतुओं में रक्त अवकाश उपस्थित होते हैं. जंतुओं में हृदय विकसित होता है, हृदय दो या तीन कोष्ठीय (अर्थात 2 या 1 अलिन्द और एक निलय) उपस्थित होता है. इन प्राणियों में शिरा और धमनी तंत्र सुविकसित प्रकार का होता है.
  12. स्वसन तंत्र (Respiratory System) – संघ मोलस्का के जंतुओं का शवसन तंत्र भी विकसित प्रकार का होता है, जो जंतु जल में रहते हैं उनके शवसन गिल्स (Respiratory gill) तथा ज़मीन पर रहने वाले जंतुओं में  फेफड़े या पल्मोनरी कोष उपस्थित होते हैं, जबकि उभयचर प्राणियों में दोनों प्रकार की संरचना पाई जाती हैं.
  13. तंत्रिका तंत्र (Nervous System) – इन जंतुओं में तंत्रिका तंत्र के रूप में युग्मित और अयुग्मित गैगलिया संयोजक और तंत्रिकायें उपस्थित होती हैं.
  14. संवेदी अंग (Sensory Organ)- संघ मोलस्का के जंतुओं में संवेदी अंग के रूप में टेंटाकल्स (Tentacles) नेत्र (Eye) तथा संतुलन पट्टी होती है, जो स्वाद तथा गंघ संवेदी अंग होते हैं.
  15. प्रजनन तंत्र (Reproduction System) – संघ मोलस्का के जंतु एकलिंगी (Monosexual) जबकि कुछ जंतु द्विलिंगी (Bisexual) भी होते हैं. जंतुओं में जनन अंग अयुग्मित या युग्मित होते हैं.
  16. परिवर्धन (Parivardhan) – इन जंतुओं में निषेचन बाहरी और आंतरिक दोनों प्रकार का होता है, जबकि परिवर्धन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है. इसमें प्लावी लार्वा अवस्था पाई जाती है.

संघ मोलस्का का वर्गीकरण (Classification of phylum Mollusca)

संघ मोलस्का का वर्गीकरण कवच की उपस्थिति तथा पाद के आधार पर निम्नलिखित 6 वर्गों (Classes) में किया गया है:-

1. वर्ग मोनोप्लेकोफोरा (Class Monoplacophora)

इस वर्ग के सामान्य लक्षण हैं:

  1. इस वर्ग के अधिकांश जंतु प्रशांत महासागर में पाए जाते हैं, तथा इनके लक्षण ऐनेलिडा संघ से मिलते जुलते हुए हैं.
  2. इस वर्ग के प्राणियों के शरीर पर मेंटल और विशेष संरचना वाला कवच पाया जाता है.
  3. प्राणियों के मुख पर रेडुला नामक संरचना पाई जाती है, तथा इनकी आंत कुंडलित प्रकार की होती है.
  4. प्राणियों में प्रचलन के लिए मोटा मांसल पाद उपस्थित होता है, जो प्रचलन के लिए,तैरने के लिए उपयुक्त होता है.
  5. इन प्राणियों का हृदय 3 कोष्ठीय जिसमें दो आलिंद और एक निलय पाया जाता है.

उदाहरण – निओपिलाइना

2.  वर्ग एमफीन्यूरा (Class Amphineura)

इस वर्ग के सामान्य लक्षण हैं:

  1. इस वर्ग के प्राणी निम्न श्रेणी के प्राणी होते हैं, जो अधिकतर समुद्री होते हैं.
  2. इन प्राणियों का शरीर के ऊपर का आवरण, कवच  कैल्शियम युक्त कंटीकाओं से मिलकर बना हुआ होता है.
  3. इस वर्ग के प्राणियों के जंतुओं का शरीर चपटा, अंडाकार और छोटा होता है जो एकलिंगी होते हैं.
  4. इन प्राणियों में प्रचलन के लिए अधर तल पर एक माशल पाद होता है.
  5. प्राणियों के परिवर्धन मे ट्रॉकोफॉर लारवा अवस्था पाई जाती है.
  6. यह प्राणी वाहय निषेचन क्रिया करते है.

उदाहरण – निओमेनिया

3.  वर्ग सकेफोपोडा (Class Scaphopoda)

इस वर्ग के सामान्य लक्षण हैं:

  1. इस वर्ग के अधिकांश प्राणी समुद्र जलीय होते हैं.
  2. प्राणियों का शरीर लंबा बेलनाकार तथा सममिति द्वीपाशर्व  होती है.
  3. इन प्राणियों में मेंटल और कवच नालाकार आकृति का पाया जाता है. जबकि इनका कवच हांथी के दांतो के समान दोनों ओर से मुड़ा हुआ रहता है.
  4. इन प्राणियों के मुख पर चारों ओर स्पर्शक पाए जाते हैं जो संवेदी अंग की तरह कार्य करते हैं.
  5. इस वर्ग के प्राणियों में गिल्स की अनुपस्थिति होती है, जबकि ये एक लिंगीप्राणी होते हैं.
  6. इन प्राणियों के जीवन में ट्रकोफोर और वेलीजर लारवा अवस्था देखने को मिलती हैं.

उदाहरण – डेंटलियम

4.  वर्ग गैस्ट्रोपोडा (Class Gastropoda)

इस वर्ग के सामान्य लक्षण हैं:

  1. इस वर्ग के प्राणी समुद्री जलीय स्वच्छ जलीय तथा कुछ नम मिट्टी में रहने वाले होते हैं.
  2. प्राणियों के शरीर के अगले हिस्से पर सिर नेत्र तथा मुख पर रेडुला नामक सरचना उपस्थित होती है.
  3. इस वर्ग के कुछ प्राणियों में कवच अनुपस्थित होता है, जबकि कुछ प्राणियों में  कुंडलित प्रकार का कवच पाया जाता है.
  4. प्राणियों में शवसन मुख्यत: गिल्स के द्वारा या पलमोनरी कोष के द्वारा होता है.
  5. यह प्राणी एकलिंगी या द्विलिंगी हो सकते हैं, जबकि जीवन में ट्रॉकोफॉर और वेलीजर प्रावस्था और शिशु अवस्था में पाई जाती हैं.

उदाहरण – पाइला

5.  वर्ग बाइवालिविया (Class Bivalvia)

इस वर्ग के सामान्य लक्षण हैं:

  1. इस वर्ग के अधिकांश प्राणी समुद्री जलीय होते हैं, किंतु कुछ प्राणी स्वच्छ जल में भी रहते हैं.
  2. प्राणियों का मेंटल पतला होता है, जबकि शरीर दो कपाटों के बने हुए कवच में बंद रहता है.
  3. प्राणियों के सिर पर नेत्र, टेंटाकल्स तथा रेड्यूला नामक संरचना उपस्थित नहीं होती.  
  4. स्वसन चपटे क्लोम गिल के द्वारा होता है.
  5. इस वर्ग के प्राणियों में तंत्रिका तंत्र पाया जाता है, जो 3 जोड़ी गुच्छक से मिलकर बना होता है.
  6. इन प्राणियों के जीवन में ट्रोकोफोर लारवा अवस्था तथा ग्लोकीडियम लारवा अवस्था पाई जाती है.

उदाहरण – योल्डिया

6.  वर्ग सिफेलोपोडा (Class Cephalopoda)

इस वर्ग के सामान्य लक्षण हैं:

  1. इस वर्ग के प्राणी समुद्र जलीय होते हैं.
  2. इस वर्ग के सभी प्राणी समुद्र में तैरते हुए रहते हैं, और विकसित होते हैं.
  3. प्राणियों का सिर बड़ा होता है, जिस पर नेत्र स्पष्ट पाए जाते हैं.
  4. प्राणियों का तंत्रिका तंत्र विकसित और यह एकलिंगी प्राणी होते हैं.
  5. मुख पर रेडुला उपस्थित तथा परिवर्धन प्रत्यक्ष प्रकार का होता है.

उदाहरण – नॉटीलस, ऑक्टोपस

संघ मोलस्का का आर्थिक महत्व

मोलस्का संघ के प्राणी आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हैं. इनमें कुछ लाभदायक तो कुछ हानिकारक हैं.

सकारात्मक पहलुएं

  • खाद्य स्रोत: संघ मोलस्का के जीवों का उपयोग दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत के रूप में किया जाता है. यूनियो (Unionidae), सीपिया (Sepia) और सीप (Oysters) जैसे जीवों को लोग बड़े चाव से खाते हैं. ये प्रोटीन, विटामिन और खनिजों से भरपूर होते हैं.
  • आभूषण और सजावट: कुछ मोलस्का, विशेषकर सीप, अपने आकर्षक खोल के कारण गहने और सजावट की वस्तुएं बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं. मोती का उत्पादन सीपों से होता है, जो एक अत्यंत मूल्यवान रत्न है.
  • औद्योगिक उपयोग: यूनियो जैसे मोलस्का के खोल का उपयोग कई उद्योगों में होता है. इनके खोल से बटन, फर्श के चिप्स और मुर्गीपालन में इस्तेमाल होने वाले पोल्ट्री फ़ीड बनाए जाते हैं. इन खोलों से निकलने वाला चूना भी बहुत अच्छी गुणवत्ता का होता है, जिसका उपयोग निर्माण कार्यों में किया जाता है.
  • स्याही का उपयोग: सीपिया नामक मोलस्का एक विशेष प्रकार की भूरे-काले रंग की स्याही (सेपिया इंक) का उत्पादन करता है. इस स्याही का उपयोग अतीत में कलाकारों द्वारा पेंटिंग और लेखन के लिए किया जाता था, और आज भी कुछ विशेष कला रूपों में इसका प्रयोग होता है.
  • अनुसंधान: ऑक्टोपस जैसे मोलस्का का उपयोग वैज्ञानिक अनुसंधान में किया जाता है. ये अपनी सीखने और समस्या-समाधान करने की क्षमता के कारण बुद्धिमान माने जाते हैं.

नकारात्मक पहलुएं

  • फसलों और पौधों को नुकसान: लिमैक्स (Limax) जैसे घोंघे पौधों के लिए हानिकारक कीट होते हैं. ये फसलों, कोमल शाखाओं और पत्तियों को खाकर उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे कृषि को भारी नुकसान हो सकता है.
  • जहाजों को नुकसान: कुछ मोलस्का, जैसे शिपवॉर्म (Shipworm), लकड़ी के जहाजों और गोदी में बने लकड़ी के ढाँचों को छेद कर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं.
  • रोगवाहक: कुछ घोंघे परजीवियों के मध्यस्थ वाहक (intermediate host) होते हैं, जो मानव और अन्य जानवरों में बीमारियाँ फैला सकते हैं.

मोलस्का संघ के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

प्रश्न 1: एक मोलस्क आमतौर पर कितने अंडे देता है?

उत्तर: संघ मोलस्क के जीव प्रजाति के अनुसार अलग-अलग संख्या में अंडे देते हैं. आम तौर पर, एक मोलस्क 2 से 25 अंडे देता है. लेकिन कुछ मामलों में यह संख्या 40 तक भी पहुँच सकती है. ये अंडे लगभग 30 से 45 दिनों में फूट जाते हैं. दिलचस्प बात यह है कि कुछ घोंघे अपनी प्रजाति के अन्य अंडों को खा सकते हैं, जिसे नरभक्षण कहते हैं.

प्रश्न 2: द्विकपाटी (Bivalves) और एककपाटी (Univalves) में क्या अंतर है?

उत्तर: यह वर्गीकरण संघ मोलास्का के जीवों के खोल (shell) की संख्या पर आधारित है. द्विकपाटी मोलस्क वे होते हैं जिनके शरीर पर दो खोल होते हैं, जैसे कि क्लैम और सीप. इसके विपरीत, एककपाटी मोलस्क के शरीर पर केवल एक ही खोल होता है, जिसका सबसे अच्छा उदाहरण घोंघा है. वहीं, स्क्विड, ऑक्टोपस और स्लग जैसे कुछ मोलस्क बिना किसी खोल के होते हैं.

प्रश्न 3: कुछ मोलस्क के शरीर पर खोल क्यों नहीं होता है?

उत्तर: स्लग जैसे मोलस्क ने अपने खोल को खो दिया है. यह एक अनुकूलन है ताकि वे उन वातावरणों में जीवित रह सकें जहाँ कैल्शियम की मात्रा कम होती है. खोल बनाने के लिए कैल्शियम बहुत ज़रूरी होता है. ऐसा माना जाता है कि स्लग की उत्पत्ति ऐसे ही कम कैल्शियम वाले क्षेत्रों में हुई थी.

प्रश्न 4: “डेविल्स टोनेल्स” क्या हैं?

उत्तर: “डेविल्स टोनेल्स” (Devil’s Toenails) ग्रिफ़िया नामक विलुप्त हो चुके सीपों का लोकप्रिय नाम है. ये समुद्री मोलस्क के जीवाश्म हैं जो लाखों साल पहले के हैं, खासकर ट्राइऐसिक और जुरासिक काल के. ये जीवाश्म विशेष रूप से यूनाइटेड किंगडम में पाए जाते हैं.

प्रश्न 5: क्या घोंघे के दाँत होते हैं?

उत्तर: हाँ, घोंघों के दाँत होते हैं. लेकिन वे हमारे दाँतों की तरह नहीं दिखते. उनके दाँत एक विशेष, जीभ जैसी संरचना पर होते हैं जिसे रेडुला कहा जाता है. एक घोंघे के जीवनकाल में 25,000 से अधिक दाँत हो सकते हैं. ये दाँत शार्क के दाँतों की तरह लगातार टूटते और बदलते रहते हैं.

Spread the love!

इस लेख में हम जानेंगे

मुख्य बिंदु
Scroll to Top