संघ पोरिफेरा: परिभाषा, विशेषताएँ, वर्गीकरण, उदाहरण

संघ पोरिफेरा (Phylum Porifera) के अंतर्गत उन जीवों को रखा गया है, जो बहुकोशिकीय (Multi Cellular), शारीरिक संगठन कोशिकीय स्तर का तथा इनके शरीर पर विभिन्न छोटे-छोटे छिद्र (Pore) पाए जाते हैं. सरल भाषा में कह सकते है, कि वे यूकैरियोटिक जीव जंतु जिनका शरीर का संगठन एक से अधिक कोशिकाओं का बना होता है व उनके शरीर पर विभिन्न छोटे-छोटे छिद्र पाए जाते हैं. ऐसे जीवों को संघ पोरिफेरा में रखा गया है. यह छिद्र संघ पोरिफेरा का मुख्य लक्षण है. इन छिद्रों के कारण ही इन जंतुओं को पोरिफेरा (Porifera) कहा जाता है.

नामकरण (Nomenclatue)

पोरिफेरा (Porifera) नामक शब्द दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है, जिनमें Poros का अर्थ होता है “छिद्र तथा Ferre का अर्थ होता है- “धारण करने वाला”. इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि पोरिफेरा शब्द का अर्थ छोटे-छोटे छिद्रों को धारण करने वाला (Pore Bearer) होता है. इस प्रकार से इस संघ का नाम पॉरिफेरा (Porifera) पड़ा. इसमें वर्तमान तक 10000 प्रजातियां ज्ञात हैं. वहीं, कई प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी है.

संघ पोरिफेरा के जंतुओ का अध्ययन सबसे पहले रॉबर्ट ग्रांट (Robert Grant) नामक वैज्ञानिक ने किया और 1825 में इन जंतुओ को उनके विशिष्ट लक्षणों के आधार पर संघ पोरिफेरा नाम दिया.

परन्तु संघ पोरिफेरा के जंतुओं की आकृति शारीरिक संरचना पौधों (Plants) से मिलती जुलती है. इसलिए प्रारंभ में वैज्ञानिकों ने इसे पादप (पौधे) ही मान लिया था. परंतु 1765 ईस्वी में एलिस (Ellis) नामक वैज्ञानिक ने पोरिफेरा संघ (Phylum Porifera) पर गहन अध्ययन किया. तत्पश्चात वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे की पोरिफेरा संघ के जंतु पादप नहीं अपितु जंतु ही हैं.

इस संघ के जंतुओं को स्पंज भी कहा जाता है.  माना जाता है, कि इस जंतुओं का विकास प्रोटैरोस्पंजिया जैसे प्रोटोजोआ के पूर्वजों से हुआ है. इन शुरूआती जीवों ने इकठ्ठा होकर कोशिकाओं (Cells) की संरचना का निर्माण कर लिया. किंतु विभिन्न क्रियाओं के ना होने के कारण इनका शरीर ऊतकीय स्तर का नहीं हो पाया.

संघ पोरिफेरा के मुख्य लक्षण (Key Characteristics of Phylum Porifera) 

संघ पोरिफेरा के मुख्य लक्षण निम्न प्रकार हैं :-

  1. प्रकृति एवं आवास: पोरिफेरा संघ के सभी प्रकार के जंतु अधिकांशतः समुद्र जलीय परंतु कुछ स्वछ जल में भी जीवन यापन करते हैं, कुछ जीव अकेले तथा समूह में रहना भी पसंद करते हैं.
  2. शारीरिक संगठन: इस संघ के प्राणियों में कोशिकीय स्तर का शारीरिक संगठन पाया जाता है. इनमें कोशिकीय समूह का निर्माण तो हो जाता है, किंतु ऊतकीय स्तर अनुपस्थित होता है.
  3. शारीरिक आकृति: संघ पोरिफेरा के जंतु बेलनाकार नालिकाकार, फूलदान के आकार के गोलाकार प्लेट के समान तथा पादप के समान आकृति रखते हैं, जबकि इनकी सममिति आरीय प्रकार की होती है, तथा कुछ जंतु आसमितिय भी होते हैं.
  4. शारीरिक आवरण: संघ पोरिफेरा के जंतुओं का शरीर देहभित्ति से ढका रहता है, इनमें दो स्तर पाए जाते हैं, एक बाहरी स्तर एवं दूसरा आंतरिक स्तर, जबकि इन दोनों स्तरों के मध्य एक विशेष प्रकार का अकोशिकीय प्रकार का स्तर पाया जाता है जिसे मीजेनकाएमा Mesenchyme कहा जाता है.
  5. जनन स्तर: संघ पोरिफेरा के जंतु द्वीजनन स्तर प्रदर्शित करते हैं. जंतुओं के समस्त संरचनाओं का विकास एक्टोडर्म (Actoderm)और एंडोडर्म (Endoderm) से होता है.
  6. वाह्य कंकाल: इनकी देहभित्ति में धंसी कैल्केरियस, अथवा सलीका की बनी कंकाली संरचनाएं होती हैं, यह संरचनाएं, दो प्रकार की होती हैं- 1.कांटिकाएँ 2. स्पन्जिन तंतु.
  7. नालिका तंत्र: नालिका तंत्र जैसा लक्षण केवल स्पंजों में ही पाया जाता है, जिसमें ओस्टिया अन्तर्वाही छिद्र, अन्तर्वाही नलिकाएँ, प्रोसोपाइल अरीय नालिका एपोपाइल  स्पंज गुहा ऑस्कुलम, जिसमें सबसे पहले जल ओस्टिया के द्वारा अंदर जाता है. इन सभी संरचनाओं से होता हुआ ऑस्कुलम से बाहर निकल जाता है.
  8. प्रचलन और पोषण: इन सभी जंतुओं में प्रचलन नहीं होता, जबकि यह जंतु मांसाहारी (Carnivorous) प्रकृति के होते हैं.
  9. उत्सर्जन परिसंचरण स्वसन तंत्र : इन जंतुओ में उत्सर्जन परिसंचरण के लिए विशेष अंग नहीं होते यह सभी क्रियाएँ शारीरिक सतह के द्वारा ही होती हैं.
  10. तंत्रिका तंत्र: संघ पोरिफेरा के जंतुओं में द्विध्रुवीय एवं बहूधुर्वीय तंत्रिका कोशिकाओं के द्वारा प्राथमिक तंत्रिका तंत्र उपस्थित होता है, जबकि जंतुओं में संवेदी अंग अनुपस्थित होते हैं.
  11. प्रजनन तंत्र: इन जंतुओं में दो प्रकार का प्रजनन पाया जाता है. यह जंतु द्विलिंगी होते हैं, किंतु इनमें नर और मादा जननांग अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं इस कारण से इनमें परनिषेचन की क्रिया होती है. अलैगिक जनन (Asexual) मुकुलन के द्वारा विखंडन के द्वारा इन प्राणियों में होता है, जबकि लैंगिक जनन (Sexual) युग्मकों के संयोजन से होता है.
  12. लारवा अवस्थाएँ: इनमें परिवर्धन सीलियेटेड लार्वा (Ciliated Larva) के द्वारा होता है.

फाइलम पॉरिफेरा का वर्गीकरण (Classification of phylum porifera)

Phylum Porifera Animals Body Structure

संघ पॉरिफेरा को लक्षणों के आधार पर तीन क्लासों में बांटा गया है.

1. वर्ग कैलकेरिया (Class  Calcarea)

इस वर्ग के सामान्य लक्षण (Common Symptoms) इस प्रकार हैं:

  1. यह प्राणी समुद्र के कम गहरे जल में पाए जाते हैं.
  2. इन प्राणियों के शरीर का आकार बेलनाकार  फूलदान जैसा होता है.
  3. इन प्राणियों का कंकाल कैल्सीमय दीर्घ कांटिकाओं का बना होता है
  4. इनका नाल तंत्र एक्सोन सायकॉन एवं सरल रैगोन  प्रकार का होता है.

2. वर्ग हैक्सेक्तिनेलिडा या हैलोस्पोन्जिया (Class Hexactinellida or Hyalospongia)

इस वर्ग के सामान्य लक्षण (Common Symptoms) इस प्रकार हैं:

  1. इस वर्ग के सभी प्राणी समुद्री होते हैं जो गहरे जल में पाए जाते हैं.
  2. प्राणियों के शरीर की आकृति प्याले के सामान्य फूलदान के के आकार की होती है.
  3. इस वर्ग के प्राणियों को काँच स्पंज के नाम से भी जाना जाता है.
  4. प्राणियों का कंकाल रंगहीन पारदर्शक चमकदार सिलका की बनी कणिकाओं का होता है उनका कंकाल 6 भुजा वाला या त्रिआरीय होता है.
  5. इस वर्ग के प्राणियों की सतह अमीबी कोशिकाओं के जुड़े रहने के कारण बहू केंद्रकीय जाल के समान बन जाती है स्थिति को सिंसायटियम कहा जाता है.

3.वर्ग डीमोस्पॉन्जिया (Class Demospongia)

इस वर्ग के सामान्य लक्षण (Common Symptoms) इस प्रकार हैं:

  1. इस वर्ग के अधिकांश प्राणी समुद्र के जल में रहते हैं जबकि कुछ स्वच्छ जल में भी पाए जाते हैं.
  2. इनके शरीर की आकृति गोलाकार फूलदान के समान प्याले के समान होती है.
  3. इनके शरीर पर कांटिकाएँ चमकीले रंग की तथा लघु एवं गुरु कांतिकाओं में विभाजित होती हैं.
  4. इन प्राणियों का नाल तंत्र ल्यूकोन प्रकार का और अधिक जटिल होता है.
  5. प्राणियों की कीप कोशिकाएं गोल कक्षों तक सीमित होती हैं.
  6. कशाभिकक्ष छोटे-छोटे और गोल गोल होते हैं.

संघ पोरिफेरा के दो जंतुओं के उदाहरण (Two Animals Example of phylum Porifera)

1. यूस्पोन्जिया (Eusopongia)

वर्गीकरण (Classification):

  •  संघ (Phylum) – पोरिफेरा (Porifera)
  •  वर्ग (Class) – डीमोस्पॉन्जिया  (Demospongiae)
  •  गण (Order) – डिक्टायोसेरेटिडा (Dictyoceratida) 
  •  वंश (Genus) – यूस्पोन्जिया (Euspongia)

इसके सामान्य लक्षण हैं:

  1. यह प्राणी समुद्र के पुतले जल में चट्टानों पर पत्थरों पर आदि कई आधार से चिपके हुए पाए जाते हैं.
  2. इनके शरीर की आकृति गोलाकार पिंडाकार प्याले के जैसा और पाटलिआकार होती है.
  3. इन प्राणियों को व्यापारिक स्नान स्पंज भी कहा जाता है.
  4. इनका कंकाल स्पंजिन ततुवों से निर्मित है.

2. साइकॉन Sycon

 वर्गीकरण (Classification)

  •  संघ (Phylum) – पोरिफेरा (Porifera)
  •  वर्ग (Class) – कैलकेरिया (Calcarea)
  •  गण (Order) – साइसैटिंडा (Scycettida)
  •  वंश (Genus) – साइकॉन (Sycon)

इसके सामान्य लक्षण हैं:

  1. यह प्राणी समुद्री जल में चट्टानों पर पत्थरों पर और जलीय पौधों से चिपका हुआ पाया जाता है.
  2. इनका शरीर नालवत अथवा फूदान के जैसा भूरा और कांटे की संरचनाओं से निर्मित होता है.
  3. इनका कंकाल कैल्शियम कार्बोनेट की कंटिकाओं से निर्मित है.
  4. इस प्राणी की शरीर में कीप कोशिकाएँ केवल कशाभि  नालिकाओं की दीवार पर उपस्थित होती हैं.
  5. प्रत्येक कॉलोनी में दो या दो से अधिक बेलनाकार शाखाएं होती हैं जो स्टोलन से जुड़ी होती हैं.

पारिस्थितिक महत्व (Ecological Importance)

स्पंज समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जो अपने फिल्टर-फीडिंग के कारण कई आवश्यक पारिस्थितिक कार्य करते हैं.

जल की गुणवत्ता में सुधार

स्पंज पानी को छानने वाले प्राकृतिक फिल्टर के रूप में कार्य करते हैं. वे पानी से सूक्ष्मजीवों, बैक्टीरिया और कार्बनिक पदार्थों को हटाते हैं, जिससे समुद्री जल की पारदर्शिता और गुणवत्ता बनी रहती है. यह क्रिया न केवल स्पंज के लिए भोजन प्रदान करती है, बल्कि यह प्रवाल भित्तियों (coral reefs) जैसे अन्य संवेदनशील जीवों के लिए भी एक स्वच्छ वातावरण बनाए रखने में मदद करती है.

पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण

स्पंज पोषक तत्वों के चक्रण (nutrient cycling) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे कार्बनिक पदार्थों को अवशोषित करते हैं और उन्हें पुन: उपलब्ध कराते हैं, जिससे समुद्र के तल पर पारिस्थितिकी तंत्र की उर्वरता बढ़ती है. यह क्रिया समुद्र में जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं को संतुलित करने में मदद करती है.

आश्रय और आवास

स्पंज कई समुद्री जीवों के लिए घर और सुरक्षा प्रदान करते हैं. उनकी जटिल संरचनाएं छोटी मछलियों, क्रस्टेशियन (जैसे केकड़े और झींगा), और अन्य अकशेरुकी जीवों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल बनाती हैं. कुछ स्पंज अन्य जीवों, जैसे शैवाल और साइनोबैक्टीरिया, के साथ सहजीवी संबंध बनाते हैं, जहां शैवाल प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से स्पंज को भोजन प्रदान करते हैं.

आर्थिक महत्व (Economic Importance)

स्पंज का उपयोग लंबे समय से और आधुनिक समय में विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में किया जाता है.

प्राकृतिक स्नान स्पंज

ऐतिहासिक रूप से, डेमोस्पोंजिया (Demospongiae) वर्ग के कुछ स्पंजों को उनके मुलायम और लचीले कंकाल (spongin) के कारण स्नान स्पंज के रूप में काटा और बेचा जाता रहा है. ये प्राकृतिक स्पंज अपनी उच्च अवशोषण क्षमता के लिए जाने जाते हैं.

जैव-प्रौद्योगिकी और चिकित्सा

स्पंज विभिन्न प्रकार के जैवसक्रिय यौगिकों (bioactive compounds) का उत्पादन करते हैं. इन यौगिकों का उपयोग कैंसररोधी, रोगाणुरोधी, सूजनरोधी और एंटीवायरल दवाओं के विकास में किया जा रहा है. ये यौगिक स्पंज को परभक्षियों और बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं, और इनका चिकित्सीय क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपयोग हो सकता है.

जैव-निगरानी (Biomonitoring)

अपनी अत्यधिक फिल्टरिंग क्षमता के कारण, स्पंज का उपयोग जल प्रदूषण के जैव-संकेतक (bioindicators) के रूप में किया जाता है. वे पानी से प्रदूषकों, जैसे भारी धातुओं और माइक्रोप्लास्टिक्स, को अवशोषित कर सकते हैं. वैज्ञानिक इन स्पंजों का अध्ययन करके जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य की निगरानी करते हैं.

औद्योगिक और अनुसंधान उपयोग

स्पंज से प्राप्त स्पिक्यूल (spicules) और अन्य संरचनाओं का उपयोग सामग्री विज्ञान (materials science) में किया जा रहा है. उनकी अद्वितीय संरचनाओं का अध्ययन बायो-आधारित सामग्री (bio-based materials) और नए नैनोमैटिरियल्स (nanomaterials) के विकास में मदद कर सकता है. कुछ स्पंज प्रजातियों के रेशेदार कंकाल का उपयोग शिल्प और सजावटी वस्तुओं में भी किया जाता है.

विकासवादी महत्व

स्पंज विकासवादी इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं:

  • सबसे प्रारंभिक जानवर: स्पंज सबसे प्राचीन जानवरों में से एक हैं, जिनके जीवाश्म 600 मिलियन वर्ष से भी अधिक पुराने हैं. वे बहुकोशिकीय जीवन के सबसे शुरुआती रूपों में से एक हैं.
  • बहुकोशिकीयता का अध्ययन: स्पंज का सरल शारीरिक संगठन एककोशिकीय से बहुकोशिकीय जीवों में संक्रमण को दर्शाता है. उनके पास विशिष्ट ऊतक या अंग नहीं होते हैं, फिर भी उनकी कोशिकाएँ सहयोगात्मक रूप से कार्य करती हैं. यह विशेषता वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करती है कि कैसे सरल जीव अधिक जटिल प्राणियों में विकसित हुए.
  • पूर्वज संबंध: आनुवंशिक साक्ष्य बताते हैं कि स्पंज और कोएनोफ्लेजेलेट्स (choanoflagellates) के बीच घनिष्ठ संबंध है. कोएनोफ्लेजेलेट्स एककोशिकीय जीव हैं जो स्पंज की कॉलर कोशिकाओं (collar cells) के समान दिखते हैं. यह समानता इस सिद्धांत का समर्थन करती है कि स्पंज ने एककोशिकीय जीवों से बहुकोशिकीय जानवरों के विकास में एक महत्वपूर्ण कड़ी का प्रतिनिधित्व किया.

संघ पोरिफेरा पर अक्सर पूछे जाने वाले 10 प्रश्न (10 FAQs on Phylum Porifera)

Q1: पोरीफ़ेरा का क्या अर्थ है, और इसका सामान्य नाम क्या है?

Ans: ‘पोरीफ़ेरा’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है “छिद्रों को धारण करने वाला”. इन छिद्रों वाले जीवों का सामान्य नाम स्पंज है.

Q2: संघ पोरिफेरा क्या है?

Ans: पोरीफ़ेरा एक प्राणी संघ (animal phylum) है जिसमें सभी प्रकार के स्पंज शामिल हैं. ये सबसे आदिम बहुकोशिकीय जीव हैं और मुख्य रूप से समुद्री जल में पाए जाते हैं. इनमें न तो कोई विशिष्ट अंग होते हैं और न ही कोई ऊतक. ये आमतौर पर किसी सतह से चिपके रहते हैं.

Q3: स्पंज को आदिम प्राणी क्यों माना जाता है?

Ans: स्पंज को आदिम इसलिए माना जाता है क्योंकि इनका शरीर अत्यंत सरल होता है. इनमें कोई वास्तविक ऊतक या अंग नहीं होते हैं, जो कि अधिक जटिल जानवरों में पाए जाते हैं. इनकी कोशिकाएं अपने कार्यों को स्वतंत्र रूप से करती हैं, जैसे कि भोजन ग्रहण करना और प्रजनन करना. यह अन्य जानवरों में एक संगठित प्रणाली के रूप में होता है.

Q4: स्पंज किस प्रकार भोजन और पोषक तत्व ग्रहण करते हैं?

Ans: स्पंज फ़िल्टर फीडर होते हैं. उनके शरीर में मौजूद छोटे-छोटे छिद्रों (ऑस्टिया) से पानी अंदर आता है. इस पानी में मौजूद भोजन के कण (जैसे बैक्टीरिया और प्लवक) उनकी विशेष कॉलर कोशिकाओं (कोएनोसाइट्स) द्वारा फ़िल्टर कर लिए जाते हैं.

Q5: स्पंज में जल नलिका प्रणाली (canal system) का क्या कार्य है?

Ans: जल नलिका प्रणाली स्पंज के जीवन का आधार है. यह प्रणाली उनके शरीर में पानी के प्रवाह को नियंत्रित करती है. यह न केवल भोजन ग्रहण करने में मदद करती है, बल्कि यह श्वसन (गैसों का आदान-प्रदान), अपशिष्ट निष्कासन और प्रजनन कोशिकाओं को शरीर से बाहर निकालने में भी सहायक होती है.

Q6: स्पंज में प्रजनन कैसे होता है?

Ans: स्पंज में लैंगिक (sexual) और अलैंगिक (asexual) दोनों तरह से प्रजनन होता है. अलैंगिक प्रजनन में, वे कलिकाएँ (buds) बनाते हैं या अपने शरीर को तोड़कर नए स्पंज बना सकते हैं. लैंगिक प्रजनन में, वे शुक्राणु और अंडाणु का उत्पादन करते हैं, जिससे एक तैरता हुआ लार्वा बनता है. यह बाद में कहीं और जाकर बस जाता है.

Q7: स्पिक्यूल्स क्या हैं? स्पंज में इनका क्या कार्य है?

Ans: स्पिक्यूल्स स्पंज के कंकाल के हिस्से होते हैं, जो कैल्शियम कार्बोनेट या सिलिका से बने होते हैं. ये नुकीली संरचनाएँ स्पंज को सहारा और आकार देती हैं. कुछ स्पंज में स्पोंजिन नामक प्रोटीन से बने लचीले रेशे होते हैं, जो उन्हें अपनी स्थिरता बनाए रखने में मदद करते हैं.

Q8: संघ पोरिफेरा के मुख्य वर्ग कौन से हैं?

Ans: संघ पोरिफेरा को उनके कंकाल की प्रकृति के आधार पर तीन मुख्य वर्गों में वर्गीकृत किया गया है:
(1) कैल्केरिया (Calcarea): कंकाल कैल्शियम कार्बोनेट से बना होता है.
(2) हेक्सैक्टिनेलिडा (Hexactinellida): कंकाल सिलिका से बना होता है, और इन्हें अक्सर ‘कांच के स्पंज’ कहा जाता है.
(3) डेमोस्पोंजिया (Demospongiae): यह सबसे बड़ा वर्ग है. इनका कंकाल स्पोंजिन रेशों और/या सिलिका से बना होता है.

Q9: स्पंज का पारिस्थितिक महत्व क्या है?

Ans: स्पंज समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में कई महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे पानी को छानकर साफ करते हैं, जिससे जल की गुणवत्ता बनी रहती है. वे अन्य समुद्री जीवों के लिए आवास और आश्रय प्रदान करते हैं. ये पोषक तत्वों के चक्रण में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं.

Q10: पोरीफ़ेरा के कुछ उदाहरण क्या हैं?

Ans: पोरीफ़ेरा के सामान्य उदाहरणों में शामिल हैं:
(1) साइकॉन (Sycon): यह एक छोटा, साधारण स्पंज है.
(2) यूस्पोंजिया (Euspongia): इसे आमतौर पर ‘बाथ स्पंज’ के रूप में जाना जाता है.
(3) स्पोंजिला (Spongilla): यह मीठे पानी में पाया जाने वाला एकमात्र स्पंज है.

Spread the love!
मुख्य बिंदु
Scroll to Top