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स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, महत्व एवं सिद्धांत

स्वास्थ्य शिक्षा वह अभियान है जो जन-साधारण को ऐसे ज्ञान व आदतों के सीखने में सहायता प्रदान करता है जिससे वे स्वस्थ रह सकें. स्वास्थ्य शिक्षा से, जन-साधारण जीवन की बदलती हुई अवस्थाओं में स्वस्थ रहकर समस्याओं का धैर्य से सामना करना सीखता है.

कोई भी कार्य जो जन-साधारण को स्वास्थ्य के विषय में नया सिखाये या नई जानकारी दे, वह स्वास्थ्य शिक्षा है. वैसे ‘‘स्वास्थ्य शिक्षा वह शिक्षा है जो स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं की पहचान करने और इन आवश्यकताओं से मेल खाते उचित व्यवहार सुझाने के लिए दी जाती है.’’ 

सरल शब्दों में लोगों को स्वास्थ्य व बीमारियों संबंधी जानकारी देना, उनका स्वास्थ्य सुधारने के लिए प्रयत्न करना, उनको बीमारियों के ऊपर नियंत्रण होने के योग्य बनाना आदि स्वास्थ्य को उत्साहित करने की समूची प्रक्रिया ही स्वास्थ्य शिक्षा है. ‘‘आम शिक्षा की तरह स्वास्थ्य शिक्षा भी लोगों के ज्ञान, भावनाओं व व्यवहार में परिवर्तन से संबंधित है. अपने स्वरूप में यह स्वास्थ्य संबंधी ऐसी आदतों को विकसित करने की ओर ध्यान देती है, जो लोगों को स्वस्थ होने का अहसास पैदा कर सके.’’ 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) की वर्ष 1954 की तकनीकी रिपोर्ट की इस परिभाषा से यह स्पष्ट ही है कि स्वास्थ्य शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जो लोगों को स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं के बारे में जानने में सहायता करता है. उचित व्यवहार व उचित जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करता है और उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करने व बनाये रखने के लिए उत्तम दृष्टिकोण विकसित करता है. 

स्वास्थ्य शिक्षा जन-साधारण के ज्ञान व रवैये में बदलाव लाती है तथा स्वास्थ्य की देखरेख से जुड़ी उनकी आदतों व सोच को नया रूप प्रदान करती है. संक्षेप में स्वास्थ्य शिक्षा के तीन मुख्य भाग है.-

  1. मानव की शारीरिक, मानसिक व सामाजिक पहलुओं की एकता. 
  2. स्वस्थ व्यवहार को संभव बनाने के लिए ज्ञान, सोच व आदतों को विशेष महत्त्व देना. 
  3. व्यक्ति, परिवार और भाईचारे पर केन्द्रित स्वास्थ्य शिक्षा.

स्वास्थ्य शिक्षा के ये सभी भाग एक-दूसरे पर निर्भर है. इनका आपस में मेलजोल निरन्तर बना रहता है.

स्वास्थ्य शिक्षा की परिभाषा (Definitions of Health Education in Hindi)

1. रुथ ई. ग्राउट – ‘‘स्वास्थ्य शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी जानकारी व ज्ञान को शैक्षिक तरीके के माध्यम से व्यक्ति व सामुदायिक आचार-व्यवहार में ढालने की विधि के साधन है.’’ 

2. विश्व स्वास्थ्य संगठन की तकनीकी रिपोर्ट (1954) – ‘‘स्वास्थ्य शिक्षा, आम शिक्षा की तरह लोगों के ज्ञान, भावनाओं व व्यवहार में परिवर्तन से संबंधित है. अपने आप रूपों में यह स्वास्थ्य से जुड़ी ऐसी प्रथाओं व आदतों को विकसित करने पर केन्द्रित होती है, जो लोगों के अंदर स्वरूप होने की भावना उजागर करती है.’’ 

3. स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों की कमेटी – ‘‘स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य जिन्दगी की ऐसी गुणवत्ता स्थापित करना है, जो व्यक्ति को अधिक से अधिक जीवन जीने और बेहतरीन ढंग से समाज के काम आने के योग्य बना सके.’’

4. थामस वुड – ‘‘स्वास्थ्य शिक्षा स्कूल व दूसरी जगहों पर हुए उन सारे अनुभवों का सार है, जो व्यक्ति, भाईचारे व समाज के स्वास्थ्य से जुड़ी आदतों, रवैयों और ज्ञान पर सुखद प्रभाव डालती है.’’ 

5. एन.आर. सोमर्स – ‘‘स्वास्थ्य शिक्षा वह प्रक्रिया है, जो कि लोगों को स्वस्थ आदतों, आचार-व्यवहार व जीवनशैलियों को अपनाने व जारी रखने के प्रति सचेत व प्रेरित करता है और इस काम में उनके लिए सहायक भी साबित होता है. साथ ही इस लक्ष्य की पूर्ति को संभव बनाने के लिए पर्यावरण में पर्याप्त परिवर्तन भी सुझाता है और फिर इस आशय तक पहुंचने के लिए पेशेवर प्रशिक्षण व खोज को संभव बनाता है.’’

6. सोफी (Sophic) ‘‘स्वास्थ्य शिक्षा लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े व्यवहार से संबंधित है.’’ 

7. स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति की कमेटी, न्यूयार्क (1973) – ‘‘स्वास्थ्य शिक्षा वह प्रक्रिया है, जो स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और स्वास्थ्य से जुड़ी प्रथाओं व आदतों के बीच के अन्तराल को दूर करती है. स्वास्थ्य शिक्षा व्यक्ति को जानकारी ग्रहण करने और इसे अपनाने तथा अपने आपको तंदुरुस्त रखने के योग्य बनाती है और उन कार्यवाहियों से बचने के लिए प्रेरित करती है, जो हानिकारक हो सकती है.’’ 

स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य

एन.आर. सोमर्स की परिभाषा का अध्ययन व विश्लेषण करने के बाद जे.ई. पार्क ने स्वास्थ्य शिक्षा के  मुख्य उद्देश्य बताये-

1. लोगों को जानकारी देना/स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान का विकास करना-अनुसंधानों के आधार पर प्राप्त की गई वैज्ञानिक जानकारी जन-साधारण तक पहुंचाना स्वास्थ्य शिक्षा का प्रथम उद्देश्य है. ऐसी जानकारी जन-साधारण को स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं की पहचान करने और उसका उपयोग करने में सहायक साबित होती है. इस प्रकार की जानकारी स्वास्थ्य व सफाई से जुड़े अज्ञानता, पूर्वाग्रहों, गलत धारणाओं और अंधविश्वासों को दूर करने में सहायक सिद्ध होती है.

2. लोगों को प्रेरित करना/स्वास्थ्य के बारे में वांछित दृष्टिकोण का विकास करना-जन-साधारण को स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान या जानकारी देना ही अपने आप में पर्याप्त नहीं है. उन्हें इस प्रकार प्रेरित करने व उत्साहित करने की आवश्यकता है कि वे उस ज्ञान को अपने जीवनचर्या में वांछिप रूप से उपयोग में लायें और इसके आधार पर अपने व्यवहार, अपनी सोच, अपनी आदतों और अपनी जीवनशैली में सुखद परिवर्तन करने के लिए प्रेरित हो.

3. कार्यवाही के लिए दिशा-निर्देश देना/वांछित आदतों का विकार करना-ज्ञान या जानकारी तभी लाभकारी होती है जब जन-साधारण दिशा-निर्देशानुसार कार्य करने लगे तथा अपनी आदतों में सुधार कर ले. अर्थात् यह कहा जा सकता है कि दिशा-निर्देश की प्रेरणा जन-साधारण की आदतों में परिवर्तन कर दे, ऐसी चमत्कारी होनी चाहिए.

4. स्वास्थ्य शिक्षा के अन्य उद्देश्य –

  1. व्यक्ति का सर्वोत्तम विकास मुख्य रूप से शारीरिक व भावात्मक विकास. 
  2. मानव संबंधों की बेहतरी, मुख्य रूप से स्वास्थ्य के मापदंडों के बिन्दु की ओर से.
  3. वस्तुओं व सेवाओं में उत्पादन और खपत के क्षेत्र में आर्थिक कार्यकुशलता और इसी सन्दर्भ में स्वास्थ्य संबंधी तथ्यों व नियमों का उपयोग. 
  4. नागरिक कर्तव्य विशेषतः स्वास्थ्य के संबंध में.

स्वास्थ्य शिक्षा का महत्व 

स्वास्थ्य शिक्षा के ज्ञान का बहुत महत्त्व है क्योंकि बहुसंख्यक आबादी स्वास्थ्य व सफाई के बुनियादी सिद्धान्तों से अनजान है. इस अज्ञानता के कारण लोग बीमारियों की रोकथाम नहीं कर पाते है. लोगों में यह अज्ञानता दूर करना बहुत बड़ी आवश्यकता व चुनौती है. उन्हें स्वास्थ्य व सफाई के बुनियादी सिद्धान्तों व नियमों से अवगत करवाया जाना चाहिए. 

स्वास्थ्य शिक्षा वैज्ञानिक तथ्यों व वैज्ञानिक विधियों की जानकारी प्रदान करती है तथा यह जानकारी अज्ञानता दूर कर कई बीमारियों को रोकने व उनको समाप्त करने में बहुत सहायक सिद्ध हो सकती है. स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम मुख्य तौर पर सावधानी व रोकथाम की किस्म का कार्यक्रम है क्योंकि ईलाज के साथ परहेज हमेशा ही आवश्यक होता है. इसलिए ऐसे कार्यक्रम जानकारी व ज्ञान के संचार के लिए काफी उपयोगी साबित होते है.

स्वास्थ्य शिक्षा में जन-साधारण को भिन्न-भिन्न खतरनाक बीमारियों की जानकारी देते है. और इन बीमारियों को आने से रोकने के ढंग व उपाय बताते है. इस तरह स्वास्थ्य शिक्षा बच्चों, नौजवानों, प्रौढ़ों और समस्त समाज पर बुरा असर डालने वानी कई समस्याओं को दूर करने में अहम भूमिका निभाती है.

  1. स्वास्थ्य शिक्षा का महत्त्व इसलिए है क्योंकि यह शिक्षा परिवार व समाज में अच्छे स्वास्थ्य और सुरक्षित रीति-रिवाज व आदतों के महत्त्व के प्रति स्पष्ट दृष्टिकोण विकसित करती है.
  2. नित्य के जीवन में स्वास्थ्यपरक व अच्छी आदतें डालने के रुझान को उत्साहित करती है. 
  3. विद्यार्थियों को स्वास्थ्य के साथ जुड़ी जानकारी व उनके क्षेत्रों के बारे में बताती व शिक्षित करती है. इस तरह उन्हें निजी व सामाजिक स्वास्थ्य समस्याओं को बेहतर ढंग से समझने व उनसे निपटने में समर्थ बनाती है. 
  4. जन-साधारण को मानव शरीर की बुनियादी प्रणालियों व कार्यों से अवगत कराती है. 
  5. जैविक, सामाजिक व शारीरिक विज्ञान में स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी के कई स्रोतों को संघटित बनाती है ताकि पूर्ण स्वास्थ्य का संकल्प स्थापित करने के लिए इन स्रोतों का सार्थक उपयोग किया जा सके.
  6. जन-साधारण को सामािजक जीवन व पारिवारिक जिन्दगी के स्वभाव संबंधी गहरा ज्ञान प्रदान करती है. 
  7. जन-साधारण को पारिवारिक नियंत्रण का ध्यान रखने की हिदायत देकर उनके अंदर जिम्मेदारी व आपसी सहयोग की भावना विकसित करती है.
  8. अंगहीनों व लाचारों की शिक्षा में योगदान देती है और उन्हें उपलब्ध शैक्षणिक सुविधाओं का अधिक से अधिक लाभ लेने के प्रति उत्साहित करती है.

पिछले कुछ सालों से स्वास्थ्य शिक्षा का महत्त्व दिनो दिन बढ़ता जा रहा है. इसकी वजह यह है कि मीडिया की ओर से सामाजिक व स्वास्थ्य समस्याओं पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है. इससे लोगों में स्वास्थ्य चिंता के साथ-साथ सूझ भी बढ़ती जा रही है. 

वर्तमान में तो अच्छा स्वास्थ्य सुविधा दुनिया भर के देशों के लिए सामाजिक उद्देश्य ही बन गयी है. स्वास्थ्य शिक्षा का महत्त्व इसलिए है क्योंकि इसका मुख्य लक्ष्य व्यक्ति के लिए सर्वोत्तम, सर्वपक्षीय स्वास्थ्य सुनिश्चित करना है. ऐसे सर्वपक्षीय स्वास्थ्य में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व भावनात्मक आयामों समेत लगभग सभी पक्ष शामिल है., जो कि व्यक्ति को स्वस्थ व अच्छा नगारिक बना सकते है. यही कारण है कि स्वास्थ्य शिक्षा को शिक्षा की सबसे अहम कड़ी माना जाने लगा है.

स्वास्थ्य शिक्षा के सिद्धांत

स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वास्थ्य के प्रति संचेतना जागृत कर समुदाय को जागृत किया जाता है ताकि जन-साधारण स्वास्थ्यगत परेशानियों से अपना बचाव कर सकें. इसके तहत कतिपय सिद्धान्त शिक्षाविदों द्वारा बताये गये है.- 

  1. रुचि 
  2. सहभागिता
  3. सम्प्रेषण 
  4. अभिप्रेरणा 
  5. बौद्धिक स्तर.

1. रुचि – मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अधिकतर जनता उन बातों को गंभीरता से नहीं लेती, जिनमें उसे रुचि नहीं होती. यही कारण है कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता में कमी रहती है. स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों का कर्त्तव्य है कि पहले जनता में स्वास्थ्य कार्यक्रमों के प्रति रुचि पैदा करें. स्वास्थ्य को लेकर जनता की क्या अपेक्षाएँ है. उनका पता लगायें तत्पश्चात् नीतियों व कार्यक्रमों का निर्माण किया जाये ताकि स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम को सफलता प्राप्त हो सके. साधारण की रुचि के बिना किया जाने वाला कोई कार्य सफल नहीं हो सकता अतएव रुचि का जागृत किया जाना आवश्यक है.

2. सहभागिता – सीखने की प्रक्रिया कारगर तभी होती है, जब व्यक्ति सक्रिय होकर कोई कार्य के लिए तत्पर होता है. स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम में समूह चर्चा, विशेषज्ञ चर्चा, कार्यशाला आदि कार्यक्रमों का आयोजन कर स्वास्थ्य शिक्षा को सफल करने का प्रयास किया जाता है. इन कार्यक्रमों में जनता की अधिक भागीदारी इस बात की परिचायक होती है कि स्वास्थ्य के प्रति आम जनता कितनी सजग है. यही सजगता स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों को सफलता प्रदान करती है.

3. सम्प्रेषण – शिक्षा को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सरलता से पहुंचाने के लिए भाषा महत्त्वपूर्ण होती है. स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम में अधिकतर उन्हीं लोगों को शामिल किया जाता है, जिनका शिक्षा का स्तर या तो बहुत नीचे होता है अथवा मध्यम स्तर का. अतएव ऐसे लोगों को प्रशिक्षण देते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि भाषाशैली उन्हीं लोगों के स्तर की हो ताकि समझाने में कठिनाई नहीं आये. अगर भाषा शैली इन लोगों से उच्च स्तर की होगी तो स्वास्थ्य कार्यक्रमों का लाभ नहीं ले पायेंगे. ऐसे कार्यक्रम की सफलता उचित सम्प्रेषण से ही संभव है.

4. अभिप्रेरणा – प्रत्येक व्यक्ति कुछ-न-कुछ सीखना चाहता है. अन्तर मात्र इतना होता है कि किसी में यह इच्छा जागृत रहती है और किसी में जागृत नहीं होती है. जिन लोगों को सीखने की इच्छा सुप्त होती है, उन्हें अभिप्रेरणा के माध्यम से उद्दीप्त करना पड़ता है. 

अभिप्रेरणा भी दो प्रकार की होती है-1. प्राथमिक, जैसे-भूख, कामवासना, जीवन जीने की इच्छा, 2. द्वितीयक, जैसे-प्रतिस्पर्धा, पुरस्कार, प्रशंसा, दण्ड आदि. प्राथमिक अभिप्रेरणाओं को जागृत करने के लिए अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता जबकि द्वितीयक अभिप्रेरणा हेतु विशेष विधियों का सहारा लेना पड़ता है. 

अगर किसी गुटखा खाने वाले व्यक्ति को ‘यह खराब चीज है, इसे नहीं खाना चाहिये’ ऐसा कहकर रोकेंगे तो उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. लेकिन जब उसे गुटखा खाने वाले लोगों के साथ हुई बीमारियों की विस्तार से जानकारी देंगे और ऐसा ही हश्र उसके साथ होगा, यह बतायेंगे तब इसका प्रभाव उस पर तत्काल पड़ेगा और अपने स्वास्थ्य के प्रति वह सजग होगा.

5. बौद्धिक स्तर – शिक्षा से बहुत सारी जानकारियां प्राप्त होती है. लेकिन शिक्षा देने से पूर्व पाने वाले समूह के बौद्धिक स्तर की स्पष्टता होनी आवश्यक है. शिक्षा देने वाले के लिए यह जानना जरूरी होता है कि उसके द्वारा जिन्हें शिक्षा प्रदत्त की जा रही है, वे किस रूप में, किस स्तर तक शिक्षण सामग्री को ग्रहण करने में समर्थ है. 

यदि जो कुछ सिखाया जाता है, उसे संबंधित व्यक्ति ग्रहण नहीं कर पा रहा है तो उसे सिखाने का प्रयास व्यर्थ होगा. इसलिए स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम प्रारम्भ करने से पूर्व लक्षित लोगों के बौद्धिक स्तर की जानकारी करना आवश्यक होता है ताकि उन्हीं के स्तर के तरीके से उन्हें ज्ञान दिया जा सके.

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