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उपभोक्ता व्यवहार क्या है? ख़रीदार कैसे प्रभावित होते है?

उपभोक्ता व्यवहार विश्व की समस्त विपणन क्रियाओं का केन्द्र बिन्दु उपभोक्ता है. आज विपणन के क्षैत्र में जो कुछ भी किया जा रहा है उसके केन्द्र में कही न कही उपभोक्ता विद्यमान है. इसलिए उपभोक्ता को बाजार का राजा या बाजार का मालिक कहा गया है. सभी विपणन संस्थाए उपभोक्ता की आवश्यकताओं इच्छाओं, उसकी पंसद एवं नापंसद आदि पर पर्याप्त ध्यान देने लगी है. इतना ही नहीं विपणनकर्ता उपभोक्ता के व्यवहार को जानने एवं समझने में लगे हुए है. उपभोक्ता व्यवहार से आशय उपभोक्ता की उन क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं से है जो वह किसी उत्पाद को क्रय करने एवं उपयोग के दौरान उससे पहले या बाद में करता है.

वाल्टर तथा पॉल के अनुसार- “उपभोक्ता व्यवहार वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत लोग यह निर्णय लेते है कि कौन सा माल तथा सेवाएं कब, कहॉ से, किस प्रकार तथा किससे खरीदनी है अथवा नहीं.’’

कुर्ज तथा बून के अनुसार – “उपभोक्ता व्यवहार में लोगों की वे क्रियाएं सम्मिलित है जो वे माल तथा सेवाओं को प्राप्त करने एवं उनका उपयोग करने हेतु करते है तथा इनमें वे निर्णयन प्रक्रियाएं भी सम्मिलित है जो उन क्रियाओं को निर्धारित करने तथा निर्धारित करने से पहले की जाती है.’’

वेबस्टर के अनुसार – “क्रेता व्यवहार भावी ग्राहकों का वह सम्पूर्ण मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा शारीरिक व्यवहार है जो वे उत्पादों तथा सेवाओं से अवगत होने, उनका मूल्यांकन करने, क्रय करने, उपभोग करने तथा उनके बारे में दूसरों को बताने में करते हैं.

निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि उपभोक्ता व्यवहार उपभोक्ताओं का वह व्यवहार है जो वे किसी उत्पाद या सेवा के क्रय या उपयोग से पूर्व, पश्चात एवं क्रय निर्णय प्रकिया के दौरान करते हैं.

उपभोक्ता व्यवहार की विशेषताएँ/प्रकृति (Features/ Nature of Consumer Behaviour in Hindi)

उपभोक्तावहा व्यर की विशेषताओं एवं उसकी प्रकृति का अध्ययन इन बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है.

1. क्रय निर्णयन प्रक्रिया – कुर्ज तथा बून के अनुसार ‘‘एक व्यक्ति का क्रय व्यवहार उसकी सम्पूर्ण क्रय निर्णयन प्रक्रिया है न कि केवल क्रय प्रक्रिया का एक चरण. ‘‘ इस कथन से स्पष्ट है कि उपभोक्ता व्यवहार एक उपभोक्ता के क्रय व्यवहार की एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा वह किसी उत्पाद या सेवा को क्रय करने का निर्णय लेता है. 

2. प्रगटीकरण – एक उपभोक्ता के व्यवहार का प्रगटीकरण उसकी उन क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं से होता है जिनको वह किसी उत्पाद या सेवा के क्रय पूर्व, पश्चात या क्रय करने के दौरान करता है.

3. परिवर्तनशील – उपभोक्ता व्यवहार परिवर्तनशील होता है उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन के अनेक कारण होते है. उपभोक्ता विभिन्न श्रोतों से सूचनाएं एवं जानकारी प्राप्त करता है. इसके अलावा उपभोक्ता की आयु, आय तथा वातावरण में परिवर्तन होने पर उसके क्रय व्यवहार में परिवर्तन होता है. अत: यह कहा जा सकता है कि उपभोक्ता व्यवहार परिवर्तनशील है.

4. व्यवहार में भिन्नता – सभी उपभोक्ता एक प्रकार के नहीं होते हैं. उनकी आवश्यकताएँ दूसरों से भिन्न होती है तथा वे परिस्थितियॉ जिनमें उपभोक्ता जीवन यापन करता है दूसरों से भिन्न होती है. उपभोक्ता की आय, आयु, व्यवसाय व पैशा आदि में भी भिन्नता होती है अत: उपभोक्ता व्यवहार में भिन्नता पाई जाती है.

5. एक व्यापक शब्द – उपभोक्ता व्यवहार एक व्यापक शब्द है. जिसमें घरेलू उपभोक्ताओं के साथ-साथ संस्थागत एवं औद्योगिक उपभोक्ताओं का व्यवहार भी सम्मिलित हैं घरेलू उपभोक्ता वह उपभोक्ता है जो अपने स्वयं के या परिवार के उपभोग हेतु उत्पादों को क्रय करता है जबकि औद्योगिक एवं स्ंस्थागत उपभोक्ता वे उपभोक्ता है जो पुन: उत्पादन या पुन: विक्रय हेतु उत्पादों को क्रय करतें है. अत: उपभोक्ता व्यवहार में सभी प्रकार के उपभोक्ताओं का व्यवहार सम्मिलित है.

6. समझने में कठिनाई – उपभोक्ता व्यवहार एक जटिल पहेली है. उपभोक्ता किन परिस्थितियेां में कैसा व्यवहार करेगा इसकी पूर्व जानकारी करना या पता लगाना बहुत कठिन है. उपभोक्ता की अनेक आवश्यकताए होती है. अपनी इच्छाओं एवं आवश्यकताओं का उपभोक्ता द्वारा प्रगटीकरण हो भी सकता है और नहीं भी. कई उपभोक्ता शर्मीले स्वभाव के होते है उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना बहुत कठिन कार्य होता है.

7. उपभोक्ता व्यवहार अध्ययन एवं विश्लेषण – उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन एवं विश्लेषण करने के बाद क्रय व्यवहार सम्बंधी कई प्रश्नों या समस्याओं को जाना एवं समझा जा सकता है. उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन एवं विश्लेषण कर निम्न प्रश्न  के उत्तर प्राप्त किये जा सकते है :-

  1. वह किन उत्पादों को क्रय करना चाहता है उत्पाद का ब्रान्ड नाम एवं उत्पादक कौन है. 
  2. वह उन उत्पादों को क्यो क्रय करना चाहता है तथा उन उत्पादों से उसे किस प्रकार की संतुष्टि प्राप्त होती है.
  3. वह उन का क्रय किस प्रकार करना चाहता है. 
  4. उत्पादों का क्रय कहॉ से करना चाहता है फुटकर व्यापारी, माल या डिपार्टमेन्टल स्टोर से. 
  5. उत्पादों का क्रय कब करना चाहता है? किसी भी समय या निश्चित अवसरों पर ? 
  6. वह उनका क्रय किन से करना चाहता है. 

8. संतुष्टि की व्याख्या- उपभोक्ता व्यवहार क्रेता या उपभोक्ता की संतुष्टि की व्याख्या करता है. यदि उत्पाद के उपभोग से उसे संतुष्टि प्राप्त होती है तो वह पुन: उसी उत्पाद को खरीदने का प्रयास करता है. यदि उत्पाद का उपभोग करने के पश्चात उसे असंतुष्टि का अनुभव होता है. तो वह उस उत्पाद को पुन: क्रय नहीं करने का निर्णय लेता है.

उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले घटक (Factors)

उपभोक्ता व्यवहार अनेक घटकों द्वारा प्रभावित होता है. उपभोक्ता अनेक कारणों या बातों को ध्यान में रखकर क्रय निर्णय लेता है. उपभोक्ता व्यवहार के घटकों को इन भागों में बांटकर अध्ययन किया जा सकता है.

  1. व्यक्तिगत घटक 
  2. आर्थिक घटक 
  3. मनोवैज्ञानिक घटक 
  4. सांस्कृतिक घटक 
  5. सामाजिक घटक 
  6. अन्य घटक

1. व्यक्तिगत घटक (Personal Factors)

उपभोक्ता के व्यक्तिगत जीवन के अनेक पहलू होते हैं. ये सभी पहलू उपभोक्ता व्यवहार को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करते है. ऐसे घटकों/पहलुओं में से प्रमुख है-

1. आयु- उपभोक्ता की आयु उसके क्रय निर्णय को प्रभावित करने वाला बहुत बड़ा घटक है. जैसा कि हम जानते है कि बाल्यकाल, किशोर अवस्था, युवा अवस्था एवं वृद्धावस्था ये चार प्रमुख आयु अवस्थाएं हैं. प्रत्येक उपभोक्ता अपनी आयु एवं अवस्था के हिसाब से क्रय निर्णय करता है. 

2. आवश्यकता- प्रत्येक उपभोक्ता दूसरे से भिन्न होता है तथा उसकी आवश्यकताएं दूसरे से भिन्न होती है. उपभोक्ता अपनी आवश्यकताओं का निर्धारण करता है एवं उन आवश्यकताओं के अनुसार क्रय निर्णय लेता है.

3. जीवन शैली- उपभोक्ता की जीवन शैली उसके क्रय व्यवहार को प्रभावित करती है. उपभोक्ता की जीवन शैली उसकी आधारभूत आवश्यकताएँ, आराम की आवश्यकताएँ तथा विलासिता की आवश्यकताएँ तय करती है. 

4. व्यवसाय या धंधा- उपभोक्ता का व्यवसाय या धंधा उसके क्रय व्यवहार को प्रभावित करता है एक सामान्य वेतन भोगी कर्मचारी, उच्च अधिकारी, पैशेवर व्यक्ति एवं व्यवसायी अलग-अलग परिस्थितियों में अलग अलग क्रय व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं. 

5. लिंग- उपभोक्ता व्यवहार पुरुषों एवं महिलाओं में भिन्न भिन्न प्रकार का पाया जाता है. पुरुषों एवं महिलाओं की आवश्यकताएँ, विचार एवं मनोवृतियॉ तथा प्रवृतिया अलग अलग होती है अत: उत्पाद क्रय व्यवहार लिंगानुसार प्रभावित होता है. 

6. व्यक्तित्व- प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग अलग प्रकार का होता है. अत: उसका क्रय व्यवहार उसके व्यक्तित्व के अनुरूप ही होता है. सामान्यता सभी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व से मेल खाने वाली वस्तुओं को ही क्रय करते है. 

7. स्वधारणा- प्रत्येक व्यक्ति की अपने स्वयं के प्रति एक धारणा होती है तथा व्यक्ति अपनी उस धारणा के अनुरूप ही क्रय व्यवहार करता है. व्यक्ति समाज में अपनी छवि बनाना चाहता है तथा उसे सुधारना भी चाहता है. अत: अपनी स्वधारणा के अनुसार उत्पादों को क्रय करता है.

2. आर्थिक घटक (Economic Factors)

उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले घटकों में आर्थिक घटक अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते है. प्रमुख आर्थिक घटकों का वर्णन किया जा रहा है :-

1. आय – कोई भी उपभोक्ता अपनी आय के अनुसार ही क्रय निर्णय लेता है अत: आर्थिक घटकों में आय का महत्वपूर्ण स्थान है. आय को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है :- 

  1. व्यक्तिगत आय –व्यक्तिगत आय से आशय व्यक्ति की स्वयं की आय से लगाया जाता है. व्यक्तिगत आय में कमी एवं वृद्धि उपभोक्ता की क्रय शक्ति को प्रभावित करती है. 
  2. पारिवारिक आय –जब उपभोक्ता संयुक्त परिवार का सदस्य होता है तो आय से आशय उसकी पारिवारिक आय से लिया जाता है. पारिवारिक आय में वृद्धि होने पर क्रय शक्ति में वृद्धि हो जाती है, तथा खर्च के लिए अधिक धन राशि उपलब्ध हो जाती है इसके विपरीत पारिवारिक आय में कमी होने पर क्रय शक्ति मे कमी हो जाती है. तथा खर्च के लिए कम धन राशि उपलब्ध हो पाती है. 
  3. भावी आय की संभावना –भावी आय में वृद्धि होने की संभावना भी उपभोक्ता की क्रय शक्ति में वृद्धि कर देती है. भविष्य में आय बढ़ने की संभावना होने पर लोग अधिक खर्च करते है तथा बचत पर कम ध्यान देते है.यदि भविष्य में आय में कमी होने की संभावना होती हो तो लोग कम खर्च करते है तथा बचत की और ज्यादा ध्यान देते है. 

2. साख सुविधाएँ –यदि उपभोक्ता को साख सुविधाए उपलब्ध है अर्थात उत्पाद उधार या किराया क्रय प्रद्धति पर उपलब्ध हो जाता है तो उपभोक्ता उस उत्पाद के क्रय के लिए सकारात्मक रूख अपना लेता है इसके विपरीत यदि साख सुविधाए उपलब्ध नही है तो उपभोक्ता अपने साधनों की ओर देखकर ही क्रय निर्णय लेता है.

3. तरल सम्पतियॉ – तरल सम्पतियों से आशय ऐसी सम्पतियों से लिया जाता है जो बहुत शीघ्र नगदी में परिवर्तित की जा सकती है. उदाहरण के लिए अंश, ऋणपत्र, बैंक में जमाराशि आदि. तरल सम्पतियॉ क्रेता के व्यवहार को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है क्योंकि क्रेता इनके आधार पर तुरन्त क्रय करने का निर्णय ले सकता है. 

4. मूल्यस्तर – बाजार में वस्तुओं का मूल्य स्तर भी क्रेता के क्रय व्यवहार को प्रभावित करता है. वस्तुओं का मूल्य अधिक होने पर उपभोक्ता कम मात्रा में वस्तु क्रय करता है या क्रय निर्णय को कुछ समय के लिए टाल देता है. इसके विपरीत स्थिति में जब मूल्य स्तर में कमी आती है तो क्रेता तुरन्त क्रय निर्णय लेता है तथा अधिक मात्रा में भी उत्पाद का क्रय कर सकता है या क्रय कर लेता है.

3. सामाजिक घटक (Social Factors)

उपभोक्ता समाज का ही एक अंग है. समाज में रहकर प्रत्येक उपभोक्ता पलता है एवं बड़ा होता है. अत: सामाजिक घटक भी उसके क्रय व्यवहार को प्रभावित करते है. प्रमुख सामाजिक घटक  है-

1. परिवार – परिवार में अनेक सदस्य होते है उनमें प्रत्येक सदस्य का क्रय निर्णय अलग होता है तथा परिवार के एक सदस्य का क्रय निर्णय दूसरे सदस्य के क्रय निर्णय को प्रभावित करता है. परिवार के सदस्य अनेक भूमिकाओं में होते है जैसे माता-पिता, पुत्र-पुत्री, पति-पत्नि आदि की भूमिकाए. इनका क्रय निर्णय इनकी अपनी भूमिका के अनुसार प्रभावित होता है. इसके अतिरिक्त परिवार के सदस्यों की आयु, उनकी जीवन-चक्र अवस्था भी क्रय निर्णय को प्रभावित करती है. 

बचपन में परिवार के सदस्य बड़ों द्वारा अपनाई गई क्रय निर्णय व्यवस्था से प्रभावित होते है लेकिन कभी कभी बच्चे भी अपनी पसंद, आवश्यकता एवं रूचि बताकर बड़ों के क्रय व्यवहार को प्रभाावित कर देते है. इस प्रकार स्पष्ट है कि परिवार का वातावरण क्रय व्यवहार को प्रभावित करता है.

2. सम्पर्क समूह – एक उपभोक्ता सिर्फ अपने परिवार के सम्पर्क में ही नहीं आता है. वरन अन्य लोगों के सम्पर्क में भी आता है. इनमें मित्र, रिस्तेदार, धार्मिक एवं सामाजिक समूह, क्लब तथा सामाजिक संस्थाए प्रमुख है. ये सम्पर्क समूह उपभोक्ता के क्रय निर्णय को गम्भीर रूप से प्रभावित करते है. लोगों में आपसी देखा-रेखी, एक दुसरे से होड़ करना इसके जीते जागते उदाहरण है. 

इन सब कारणों से उपभोक्ताओं के खर्च में बहुत अधिक वृद्धि हुई है. अत: विपणनकर्ता को सम्पर्क समूहों का भी ध्यानपूर्वक अध्ययन करना चाहिए क्योंकि ये सम्पर्क समूह उपभोक्ता के क्रय निर्णय को प्रभावित करने की स्थिति में होते है. 

3. प्रभावित करने वाले व्यक्ति – कुछ लोग हमेशा दूसरे लोगों के निर्णयों को प्रभावित करने की स्थिति में होते है. दूसरे शब्दों में कुछ ऐसे लोग होते है जिनकी राय क्रेता या उपभोक्ता के लिए महत्व रखती है. एक व्यक्ति जिससे प्रभावित होता है उसकी रूचि, पंसद या नापसंद को अपना लेता है तथा उसी के अनुसार क्रय निर्णय लेना पसंद करता है.

4. सामाजिक वर्ग – प्रत्येक व्यक्ति का सामाजिक वर्ग एवं उसका जातीय वर्ग उसके क्रय व्यवहार को प्रभावित करता है. समाज के प्रत्येक वर्ग का रहन-सहन, खान-पान दूसरे वर्ग के लोगों से अलग होता है. उपभोक्ता अपने समाज के बनाये रिवाजों के अनुसार खर्च करता है या क्रय व्यवहार करता है. इस प्रकार स्पष्ट है कि लोगों का सामाजिक वर्ग एवं जातीय वर्ग उनके क्रय व्यवहार को प्रभावित करता है.

4. मनोवैज्ञानिक घटक (Psychological Factors) – 

उपभोक्ता का क्रय व्यवहार अनेक प्रकार के मनोवैज्ञानिक घटकों से प्रभावित होता है. मनोवैज्ञानिक घटकों में प्रमुख घटक इस प्रकार है:-

1. अवबोधन – जब एक व्यक्ति अपनी ज्ञानेन्दियों की सहायता से किसी वस्तु, सेवा, घटना, या विचार मे सम्बंध में कोई धारणा बनाता है या कोई निष्कर्ष निकालता है या किसी निर्णय पर पहुंचता है तो उसे अवबोधन कहते है. अवबोधन की प्रक्रिया के द्वारा ही कोई उपभोक्ता किसी उत्पाद या सेवा के बारे में अपनी धारणा बनाता है. क्रेता किसी उत्पाद या सेवा के बारे मे जिस प्रकार की धारणा बनाता है ठीक उसी प्रकार की विशेषताएँ उत्पाद में होनी चाहिए ताकि क्रेता उस उत्पाद या सेवा को क्रय करने के बाद संतुष्टि का अनुभव कर सके. 

2. अनुभव द्वारा सीखना – क्रेता व्यवहार का दुसरा महत्वपूर्ण घटक है अनुभव द्वारा ज्ञानार्जन अथवा सीखना. उपभोक्ता या क्रेता अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में अनेक बाते सीखता है तथा अभ्यास और अनुभव से ज्ञान प्राप्त करता है. धीरे-धीरे उसका यह व्यवहार उसकी आदत में आ जाता है. उदाहरण के लिए एक क्रेता जब किसी विशेष ब्रान्ड के उत्पाद को क्रय करता है और वह उत्पाद बार-बार खराब हो जाता है. ऐसे अनुभव के बाद क्रेता के मन मे उस विशेष ब्रान्ड के उत्पाद के प्रति धारणा खराब हो जाती है. क्रेता भविष्य में इस प्रकार के उत्पादों को क्रय करना पसंद नही करता है.

3. छवि – एक क्रेता के मस्तिष्क में किसी उत्पाद या सेवा के बारे में जो छाप होती है उसे छवि कहते है. उदाहरण के लिए एक क्रेता की सोच में मंहगे उत्पाद ही अच्छे होते है, ब्रान्डेड वस्तुओं का कोई मुकाबला नही इस प्रकार की बाते आ जाती है तो क्रेता अपनी सोच के अनुसार ही उत्पादों को क्रय करना पसंद करेगा. विपणनकर्ता को चाहिए कि क्रेता के मस्तिष्क में उत्पाद के बारे में जो सकारात्मक छवि बनी है उसे बनाये रखने में मदद करे अर्थात उत्पादों का स्तर उसके ब्रान्ड नाम के अनुरूप बनाये रखे.

4. अभिप्रेरणा या प्रेरक तत्व – उपभोक्ता किसी न किसी कारण से प्रेरित होकर किसी उत्पाद को क्रय करने का निर्णय लेता है. क्रेता की यही क्रय प्रेरणा उस उत्पाद को क्रय करने का कारण बनती है. हम यह जानते है कि प्रत्येक व्यक्ति की अनेक इच्छाए एवं आवश्यकताएँ होती है. जब व्यक्ति इन इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करता है तो यही इच्छाए उसकी क्रय पे्ररणा बन जाती है. इसके पश्चात वह उस क्रय-प्रेरणा के प्रति जो प्रति क्रिया करता है. वही उसका उसका क्रय व्यवहार होता है. 

अब्राइम मास्लों ने व्यक्तियों की आवश्यकताओं को समझकर आवश्यकताओं का एक क्रम तैयार किया है जो इस प्रकार है:-

  1. शारीरिक आवश्यकताए- रोटी, कपड़ा, मकान आदि व्यक्ति की शारीरिक आवश्यकताए होती है और एक व्यक्ति इन आवश्यकताओं को सबसे पहले पूरा करना चाहता है. प्प्ण् सुरक्षा आवश्यकताए- शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाने के बाद सुरक्षा की आवश्यकताए आती है. व्यक्ति खतरों एवं आकस्मिक घटनाओं से सुरक्षा चाहता है.
  2. सामाजिक आवश्यकताए- शारीरिक एवं सुरक्षा सम्बंधी आवश्यकताओं की संतुष्टि के बाद सामाजिक आवश्यकताए आती है. व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से प्रेम, स्नैह, अपनत्व और सहानुभूति चाहता है. सामाजिक समूहों में भागीदारी चाहता है.
  3. अहंकारी या आत्मसम्मान की आवश्यकताए- जब उपरोक्त तीनो आवश्यकताओं की संतुष्टि हो जाती है तो व्यक्ति में आत्मसम्मान या अंहाकार जागृत होता है. व्यक्ति अधिकार सत्ता, ऊंचा पद या स्वायतता प्राप्त करना चहता है. सामान्य व्यक्तियों की भीड़ से अलग दिखना चाहता है. 
  4. आत्मविकास की आवश्यकताए- आवश्यकताओं के क्रम में सर्वोच्चय शिखर पर आत्मविश्वास की आवश्यकता आती है. व्यक्ति अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग करना चाहता है तथा वह जो कुछ बन सकता है, बनना चाहता है.

मैस्लों का मानना है कि जब एक स्तर की आवश्यकता पुरी हो जाती है तो अलग स्तर की आवश्यकताओं का जन्म होता है. परिणामस्वरूप अगले स्तर की आवश्यकताए क्रय प्रेरणाए उत्पन्न करती है.

5. सांस्कृतिक घटक (Cultural Factors) – 

किसी समाज के आचरण एवं व्यवहार को नियमन करने वाले घटकों को हम सांस्कृतिक घटकों की श्रेणी में लेते है. इसमें समाज के रीति-रिवाज, आस्थाए, एवं धारणाए आदि सम्मिलित की जाती हैं. समाज के सदस्य अपने पूर्वजों द्वारा प्रदत्त इन रीतिरिवाजों, आस्थाओं एवं धारणाओं का पालन करते रहते है. समाज के सदस्यों का रहन-सहन, खानपान, पहनावा, आचरण आदि इन सांस्कृतिक घटकों से प्रभावित होता रहता है. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि क्रेता का क्रय व्यवहार इन सांस्कृतिक घटकों से प्रभावित होता रहता है.

6. अन्य घटक (Other Factors) – 

क्रेता का क्रय व्यवहार कुछ अन्य घटकों से भी प्रभावित होता है जिसमें सूचना एवं जानकारी एक प्रमुख घटक है. जब क्रेता प्रर्याप्त सूचना एवं जानकारी रखता है तो उस सूचना एवं जानकारी से उसका क्रय व्यवहार प्रभावित होता है. जिस ग्राहक की सूचना एवं जानकारी का स्तर ऊंचा होता है उसे भ्रमित करना काफी कठिन होता है. विपणन कर्ता को चाहिए कि ऐसे ग्राहकों को प्रर्याप्त जानकारी देकर ही क्रय हेतु प्रेरित करें. जिन ग्राहकों को प्रर्याप्त जानकारी नहीं है उन्हें अन्य लोग सुझाव व सलाह देते हैं जिसके आधार पर वे क्रय निर्णय लेते हैं. सूचना एवं जानकारी घटक में इन घटकों का अध्ययन किया जा सकता है :-

  1. सूचना के विभिन्न माध्यम- विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन, प्रचार एवं जनसम्पर्क के साधन 
  2. ग्राहक के ज्ञान का स्तर 
  3. अन्य क्रेताओं द्वारा दिये गये सुझाव एवं सलाह 
  4. ग्राहकों की सुझ बूझ बढ़ाने के उपाय
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