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शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, उद्देश्य और महत्व

    शिक्षा का अर्थ शिक्षा के लिये प्रयुक्त अँग्रेजी शब्द एजुकेशन (Education) पर विचार करें तो भी उसका यही अर्थ निकलता है. इसके अंग्रेजी शब्द Education की उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द Educatum से हुई है. Education का अर्थ शिक्षण की कला. ‘‘एजूकेशन’’ शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के तीन शब्दों से मानी गयी है.

    1. एजुकेटम – इसका अर्थ है- शिक्षण की क्रिया
    2. एजुकेयर – शिक्षा देना- ऊपर उठाना, उठाना
    3. एजुसियर – आगे बढ़ना

    सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि शिक्षा का अर्थ है- प्रशिक्षण, संवर्द्धन और पथ-प्रदर्शन करने का कार्य. 

    शिक्षा की परिभाषा

    शिक्षा की परिभाषा शिक्षा को अपने-अपने दृष्टिकोण से देखा-परखा और परिभाषित किया है.

    1. जगतगुरू शंकराचार्य की दृष्टि में – स: विद्या या विमुक्तये (वास्तविक शिक्षा वह है जो मुक्ति के साधन के रूप में काम करती है).
    2. भारतीय मनीणी स्वामी विवेकानन्द के अनुसार – शिक्षा के द्वारा मनुष्य को अपने पूर्णता को भी अनुभूति होनी चाहिए. उनके शब्दों में- ‘‘ मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है.’’
    3. युगपुरूष महात्मा गॉधी के शब्दों में- ‘‘शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है.’’
    4. प्लेटो – शिक्षा के द्वारा शरीर और आत्मा दोनों क विकाश के महत्व को स्वीकार करते है. 
    5. प्लटेो के शिष्य अरस्तू के अनुसार – ‘‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निर्माण ही शिक्षा है.’’
    6. भौतिकवादी चार्वाकों की दृष्टि में-’’शिक्षा वह है जो मनुष्य को सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने के योग्य बनाती है.’’
    7. हरबर्ट स्पेन्सर के अनुसार-’’शिक्षा का अर्थ अन्त: शक्तियों का बाह्य जीवन से समन्वय स्थापित करना है.’’
    8. सुकरात-’’शिक्षा का अर्थ है- प्रत्यके मनुष्य के मस्तिष्क में अदृश्य रूप में विद्यमान संसार के सर्वमान्य विचारों को प्रकाण में लाना.’’
    9. एडीसन-’’अब शिक्षा मानव मस्तिष्क को प्रभावित करती है तब वह उसके प्रत्येक गुण को पूर्णता को लाकर व्यक्त करती है.’’ 
    10. फ्राबेल- ‘‘शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक की जन्मजात शक्तियॉ बाहर प्रकट होती है.’’
    11. टी0पी0नन-’’शिक्षा व्यक्तित्व का पूर्ण विकास है जिससे कि व्यक्ति अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार मानव जीवन को योगदान दे सके.’’
    12. पेस्टालॉजी- ‘‘शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक सामजंस्यपूर्ण और प्रगतिशील विकास है.’’
    13. जेम्स- ‘‘शिक्षा कार्य सम्बन्धी अर्जित आदतों का सगंठन है, जो व्यक्ति को उसके भौतिक और सामाजिक वातावरण में उचित स्थान देती है.’’
    14. हार्न-’’शिक्षा शारीरिक और मानसिक रूप से विज्ञान विकसित सचते मानव का अपने मानसिक संवेगात्मक और संकल्पित वातावरण से उत्तम सामंजस्य स्थापित करना है.’’
    15. ब्रा्रा्उन-’’शिक्षा चैतन्य रूप में एक नियंत्रित प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किये जाते हैं और व्यक्ति के द्वारा समूह में.’’
    16. डॉ. भीमराव अंबेडकर– शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पीएगा,वो दहाड़ेगा.

    शिक्षा के अंग

    शिक्षा के अंग – शिक्षा प्रक्रिया के मुख्यत: दो अंग होते हैं- एक सीखने वाला और दूसरा सिखाने वाला. 

    1. शिक्षार्थी – 

    यह शिक्षा प्रक्रिया का सबसे पहला और मुख्यतम अंग होता है. शिक्षार्थी की अनुपस्थिति में शिक्षा की प्रक्रिया चलने का केाई प्रश्न ही नहीं. शिक्षा अपनी रूचि, रूझान और योग्यता के अनुसार ही सीखता है. सीखने की क्रिया शिक्षार्थी के शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, उसकी अभिवृद्धि, विकास एवं परिपक्वता और सीखने की इच्छा, पूर्व अनुभव, नैतिक गुणों, चरित्र, बल, उत्साह, थकान एवं उसकी अध्ययनशीलता पर निर्भर करती है. 

    2. शिक्षक – 

    शिक्षा के व्यापक अर्थ में हम सब एक दूसरे को प्रभावित करते हैं सीखते हैं. इसलिये हम सभी शिक्षार्थी और सभी शिक्षक हैं. परन्तु संकुचित अर्थ में कुछ विशेष व्यक्ति, जो जान बूझकर दूसरों को प्रभावित करते हैं और उनके आचार-विचार में परिवर्तन करते हैं, शिक्षक कहे जाते हैं. शिक्षक के बिना नियोजित शिक्षा की कल्पना आज भी सम्भव नहीं है. शिक्षक बालक के विकास में पथ-प्रदर्शक का कार्य करता है. 

    शिक्षा के प्रकार

    व्यवस्था की दृष्टि से शिक्षा के तीन रूप है- औपचारिक, निरौपचारिक और अनौपचारिक. 

    1. औपचारिक शिक्षा- 

    वह शिक्षा जो विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में दी जाती है, औपचारिक शिक्षा कही जाती है. इसके उद्देश्य, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियां सभी निश्चित होते हैं. यह योजनाबद्ध हेाती है .

    2. अनौपचारिक शिक्षा- 

    वह शिक्षा जिसकी याजेना नहीं बनायी जाती न ही निश्चित उद्देश्य होते हैं, न पाठ्यचर्या और न शिक्षण विधियॉ और जो आकस्मिक रूप से सदैव चलती रहती हैं उसे अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं. इस प्रकार की शिक्षा मनुष्य के जीवन भर चलती रहती है. परिवार एवं समुदाय में रहकर हम जो सीखते हैं उसमें से वह सब जो समाज हमें सिखाना चाहता है अनौपचारिक शिक्षा की कोटि में आता है. 

    3. निरौपचारिक शिक्षा- 

    इस शिक्षा का उद्देश्य, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियां प्राय: निश्चित होते हैं, परन्तु औपचारिक शिक्षा की भांति कठोर नहीं होते. यह शिक्षा लचीली होती है. इसका उद्देश्य प्राय: सामान्य शिक्षा का प्रसार और सतत् शिक्षा की व्यवस्था करना होता है. इस पाठ्यचर्या को सीखने वालों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निश्चित की जाती है. समय व स्थान भी सीखने वालों की सुविधा को ध्यान में रखकर निश्चित किया जाता है. यह शिक्षा व्यक्ति की शिक्षा को निरन्तरता प्रदान करने का कार्य करती है. निरौपचारिक शिक्षा के भी अनेक रूप हैं. जैसे प्रौढ़ शिक्षा, खुली शिक्षा, दूर शिक्षा और जीवन पर्यन्त शिक्षा अथवा सतत् शिक्षा.

    शिक्षा के उद्देश्य

    शिक्षा का उद्देश्य देश और काल के अनुरूप बदलता रहता है, शिक्षा के कुछ सर्वमान्य उद्देश्य है –

    1. मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास करना.
    2. शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य सतुंलित व्यक्तित्व का विकास करना भी है.
    3. शिक्षा का अति महत्वपूर्ण उद्देश्य चरित्र का निर्माण एवं उसका नैतिक विकास करना है
    4. मानव जीवन में शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति को आत्म निर्भर बनाना है. ऐसा व्यक्ति समाज के लिये भी सहायक होता है, जो अपना भार स्वयं उठा लेता है.
    5. शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बच्चों को जीवन के लिये तैयार करना है.

    शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व 

    हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शिक्षा की आवश्यकता है. शिक्षा ही बच्चे की जानवर प्रवृत्ति को मानव प्रवृत्ति में बदलती है.

    1. शिक्षा वृद्धि एवं विकास के साथ-साथ परिपक्वता के लिए भी आवश्यक है.
    2. शिक्षा  उसके जीवन में नैतिक, आध्यात्मिक चरित्र निर्माण तथा उच्च स्तर के मूल्यों के व्यवहार के लिए शिक्षा देती है. 
    3. शिक्षा तात्कालिक तथा अंतिम दोनों शैक्षिक लक्ष्यों को पूर्ण करने के लिए महत्वपूर्ण है. 
    4. यह आर्थिक रूप से आत्मसंतुष्ट, आत्मनिर्भर एवं आत्मावलंबी बनाती है. 
    5. शिक्षा मौलिक आवश्यकता के लक्ष्य को पूर्ण करती है. 
    6. यह व्यक्तियों में बौद्धिक तथा भावनात्मक शक्तियों का विकास करती है ताकि व्यक्ति जीवन की समस्याओं के सफलतापूर्वक समाधान करने के योग्य हो जाए. 
    7. शिक्षा व्यक्ति में सामाजिक गुणों जैसे सेवा, सहिष्णुता, सहयोग, सहानुभूति तथा संवैधानिक मूल्यों का विकास करती है. 
    8. शिक्षा हमें राष्ट्र के लिए प्रेम एवं राष्ट्र के विकास के लिए कार्य करना सिखाती है.

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