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कृषि को प्रभावित करने वाले 10 कारक

कृषि कार्य को प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक कारक प्रभावित करते हे. प्राकृतिक वातावरण कृषि का आधार होता है अत: यह प्रत्यक्ष रूप से कृषि को प्रभावित करता हे.

कृषि को प्रभावित करने वाले भौतिक कारक

इस सभी कारकों के प्रभाव स्वरूप ही कृषि में विशिष्टता आती हे. अत: कृषि को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण हे –

1. जलवायु 

कृषि क्रिया को प्रभावित करने वाले भौतिक कारकों में जलवायु सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक हे. जलवायु का सीधा सम्बंध कृषि से होता हे. जलवायु द्वारा ही भूमि उपयोग स्वरूप निर्धारित एवं नियन्त्रित होता हे. जलवायु की भिन्नता के साथ-साथ कृिष सलों में भी परिवर्तन आ जाता हे. कृषि एक ऐसी आर्थिक क्रिया हे जो जलवायु के विभिन्न घटकों -तापमान, वर्षा, आर्द्रता, पवन, पाला, ओलावृष्टि, शीतलहर इत्यादि के द्वारा प्रत्येक समय प्रभावित होती हे.

बीजों के अंकुरण, वर्धनकाल, पौधों की वृद्धि तथा फ़सलों के पकने के लिए उचित समय पर अलग-अलग तापमान की आवश्यकता होती हे. सामान्यत: कृषि पौधों के अंकुरण, वर्धन, विकास तथा पकने के लिए 65 डिग्री से 75 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती हे. कम तापमान में पौधों की वृद्धि रूक जाती हे. रबी की फ़सल के लिए 10 डिग्री से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान उचित होता हे. 

इसके बोते समय कम व पकते समय अधिक तापमान होना चाहिए. जबकि खरीफ की फ़सल को 25 डिग्री सेल्सियस से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती हे.

कृषि में मिट्टी की नमी या आर्द्रता वर्षा पर निर्भर करती हे. पौधे अपनी जड़ो के माध्यम से मिटटी में विध्यमान नमी का अवशोषण करते हे. और जब नमी की कमी होती हे तो पौधे की वृद्धि रूक जाती है या पौधा नष्ट हो जाता है. कृत्रिम रूप से मृदा को नमी प्रदान करने के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती हे. मिट्टी में अधिक मात्रा में आर्द्रता से कृषि फसल नष्ट हो जाती हे. अत: पौधे की वृद्धि के लिए मिट्टी में अपेक्षित आर्द्रता होनी चाहिए. 

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Image Credit: Down to Earth

रबी की फ़सलों को 50 से.मी. से 75 से.मी. तथा उचित सिंचाई की आवश्यकता पड़ती हे जबकि खरीफ की फ़सलों को 50 से.मी. की आवश्यकता पड़ती हे. इसके अतिरिक्त विभिन्न  फ़सलों को पृथक-पृथक मात्रा में वर्षा या आर्द्रता की आवश्यकता होती हे. तहसील में वर्षा की अनियमितता एवं अनिश्चितता बनी रहती हे. 

अत: भूमि आर्द्रता को बनाये रखने के लिये सिंचाई की जाती हे.

2. उच्चावच तथा धरातलीय स्वरूप

किसी प्रदेश के उच्चतम व न्यूनतम भागों की ऊंचाई के अन्तर को उच्चावच की संज्ञा दी जाती हे. कृषि भूमि उपयोग व कृषि क्रियाएँ धरातल के उच्चावच द्वारा भी प्रभावित होती है. ढाल और ऊँचाई कृषि क्रिया को प्रत्यक्ष रूप से सभी स्थानों पर प्रभावित करती हे. उच्चावच कृषि के स्वरूप और प्रकार को बदल देता हे. 

3. मृदा की प्रकृति

जलवायु के बाद मिट्टी कृषि क्रिया को प्रभावित करने वाला प्राकृतिक कारक है. मिटटी एक ऐसा अनिवार्य पदार्थ हे जिस पर कृषि आधारित होती हे. मिट्टी कृषि व अर्थव्यवस्था का आधार होती हे. दोमट व चीका प्रधान मिट्टी कृषि के लिए अधिक महत्वपूर्ण होती हे. रेतीली (बलुई) मिट्याँ प्राय: अनुर्वर होती हे क्योंकि वे आवश्यक तत्वों को रखने में असमर्थ होती हे. इस प्रकार मृदा की प्रकृति किसी भी क्षेत्र के कृषि प्रारूप को बदल देती हे. 

4. भौम जल स्तर 

भौम जल की उपलब्धता किसी स्थान की कृषि क्रिया के प्रारूप को निर्धारित एवं नियन्त्रित करता हे. जहाँ पर भौम जल अधिक व धरातल से आसानी से मिल जाता हे वहाँ पर सिंचाई गहनता, शस्य गहनता तथा शल्य वैविध्य अधिक पाया जाता है.

कृषि को प्रभावित करने वाले आर्थिक कारक

1. पूँजी

पूँजी कृषि को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण आर्थिक कारक हे. यह कृषि की प्रकृति व स्वरूप का निर्धारण करती हे. 

2. बाजार

कृषि उत्पादित पदाथो्रं के उचित क्रय-विक्रय के लिए बाजार का उपलब्ध होना आवश्यक है. दूरस्थ बाजारों तक माल (कृषि उपज) पहुँचाने में कृषकों को उत्पादित वस्तु का सही मूल्य नहीं मिल पाता हे. बाजार व विपणन सम्बन्धी सुविधाएं न होने पर कृषकों का अतिरिक्त उत्पादन खराब हो जाता हे. बाजार के बदलते मूल्य से भी कृषकों में अस्थायित्व आ जाता हे. इससे अच्छी व व्यवस्थित कृषि प्रणाली पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता हे. कृषक प्राय: उन्हीं उपजों को पैदा करता हे जिनका बाजार मूल्य अधिक होता है. 

कृषक को जब अपनी उपज का उचित मूल्य प्राप्त हो जाता हे तो वह कृषि विस्तार एवं उत्पादन की वृद्धि के लिए आधुनिक वैज्ञानिक कृषि तकनीकी का प्रयोग बढ़ा देता हे.

3. परिवहन 

कृषि उपज को उपभोक्ता या बाजार तक पहुंचाने में सस्ते एवं सुगम परिवहन के साधनों की आवश्यकता पड़ती हे. इनके अभाव में कृषि उपज बाजार तक नहीं पहुँच पाती हे. और कृषक उपज को स्थानीय खरीददारों को कम मूल्य पर बेचने के लिए विवश हो जाता हे. परिवहन फ़सल की स्थिति को निर्धारित करता हे. 

परिवहन के साधनों से दूर जाने पर शस्य गहनता और भूमि उपयोग तीव्रता में कमी आ जाती हे.

4. कृषि समर्थन मूल्य 

सरकार द्वारा प्रति वर्ष कृषकों की प्रत्येक उपज को खरीदने के लिए जो न्यूनतम मूल्य निर्धारित किया जाता हे उसे ‘समर्थन मूल्य’ कहा जाता हे. पूर्व में खाद्यान्न फसलों के अन्तर्गत अध्ययन क्षेत्र में मोटा अनाज (बाजरा) की कृषि की जाती थी. लेकिन वर्तमान में बाजरे का समर्थन मूल्य कम होने के कारण इसके क्षेत्र में कमी आयी हे. 

ग्वांर, मूंगफली, तिल, चना, सरसों का समर्थन मूल्य अधिक होने के कारण तहसील में इनकी कृषि फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई हे.

5. जोतों का आकार 

कृषि जोतों का आकार किसी क्षेत्र में कृषि गहनता व कृषि प्रारूप को प्रभावित करता हे. बड़े-2 कृिष फ़र्मों में व्यापारिक व विस्तृत कृषि की जाती है. इन कृषि फ़र्मों पर कृषि यंत्रों, सिंचाई की नवीनतम विधियों का प्रयोग कर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. लेकिन जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि जोतों का विभाजन हो रहा है और कृषि जोतों का आकार छोटा होता जा रहा है.  इन छोटे जोतों पर कृषि यंत्रों का प्रयोग सम्भव नहीं हो पाता है. इसका प्रभाव फ़सल के उत्पादन पर पड़ता है.

Video Source: Rajya Sabha TV Youtube
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