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बीमा और इसके प्रकार, इतिहास

बीमा (इंश्योरेंस पॉलिसी) एक वित्तीय उत्पाद है; जो बीमा कंपनियों द्वारा आपको और/ या आपकी संपत्ति को नुकसान, जैसे चोरी, बाढ़, दुर्घटना या अन्य क्षति, के जोखिम से बचाने के लिए बेचा जाता है.

आधुनिक समय में बीमा का मतलब बैंक बचत से बेहतर निवेश समझा जा रहा है. लेकिन, वास्तव में यह नुकसान की भरपाई करने की योजना है. बीमा में एक निश्चित रकम, जिसे प्रीमियम (Premium) कहा जाता है, के भुगतान के बदले आपको नुकसान से सुरक्षा की गारंटी मिलती है.

Table of Contents

बीमा क्या है? (Definition of Insurance in Hindi)

किसी इंश्योरेंस पॉलिसी कंपनी द्वारा छोटे रकम के बदले में बड़ी जोखिम से हुए नुकसान की भारपाई करने की निति को ‘बीमा’ कहते है. यह बीमाकर्ता (Insurer) व बीमित (Insured) के बीच एक समझौता (Contract) होता है. इनमें किसी व्यक्ति, वस्तु, सम्पत्ति या व्यापार से जुड़े जोखिम शामिल होते हैं. जब आप बीमा खरीदते हैं, तो आप अप्रत्याशित वित्तीय नुकसान से सुरक्षा पाते हैं.

बीमा से जुडी कम्पनी, छोटे राशि, जिसे प्रीमियम कहते है, के भुगतान के बदले जीवन व आर्थिक नुकसान की भरपाई की गारंटी देती है. नुकसान की भरपाई की अधिकतम व न्यूनतम राशि पूर्वनिर्धारित होती है. प्रीमियम की राशि भी पूर्व निर्धारित होती है.

इंश्योरेंस (बीमा) कई प्रकार के होते है. साथ ही, कई बार बीमा कम्पनियाँ बचत योजनाएं व बीमा का कारोबार एक साथ चलाती है. इसी के आधार पर कई प्रकार के बीमा उत्पाद बाजार में उपलब्ध है. कोई ख़ास कम्पनी अक्सर किसी ख़ास प्रकार का ही इंश्योरेंस का कारोबार करती हैं.

बीमा का उद्भव (Origin of Insurance in Hindi)

इसका उद्भव व विकास कब हुआ, इसके बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है. हालाँकि, इसका शुरुआत सबसे पहले समुद्री व्यापार के जोखिम को कवर करने के लिए किया गया, ऐसा विशेषज्ञों का कहना हैं. इसके बाद जरुरत के हिसाब से इसके दायरे का विस्तार होने लगा.

तीन हजार से चार हजार ईसा पूर्व बेबीलोन में नाव (Bottomry) द्वारा कारोबार को जोखिम से सुरक्षा दिया जाता था. इसमें, नुकसान होने पर ब्याज पर लिए गए धन को माफ़ कर दिया जाता था. हालाँकि, इसमें नुकसान की जानकारी प्राप्त होने तक, नियमित ब्याज का भुगतान करना होता था. इस ब्याज के बदले में सुरक्षा की गारंटी मिलती थी. इस तरह, मूलधन चुकाने से बच जाता था.

कुछ सबूत छठी शब्दि ईसा पूर्व भगवान् बुद्ध के समय भी मिलता है. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, बुद्ध के समकालीन व्यापारी भी बोटोमरी निति का अनुपालन करते थे. रोम के संबंध में भी ऐसी ही जानकारी मिलती है. रोम में मौत के बाद अंतिम संस्कार के पैसे भी इंश्योरेंस कम्पनी देती थी.

दूसरी व तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व चीन के कारोबारी, जोखिम को कम करने के लिए अपने माल को कई हिस्सों में बांटकर कई नावों से भेजते थे. समुद्र में कुछ नाव ही डूबता थे. इस तरह करता को अधिकतम माल मिल जाता था और नुकसान कम होता था.

कालांतर में बीमा का दायरा काफी विस्तृत हो गया है. आजकल बीमा उत्पादों को इंश्योरेंस पॉलिसी (Insurance Policy) भी कहा जाता हैं. आज, कोई व्यक्ति या कंपनी भी खुद का बीमा करवा सकता है. कम्पनियाँ जरुरत के हिसाब से अपने बीमा शर्तों के साथ इंश्योरेंस पॉलिसी जारी करती है.

बीसवीं शताब्दी में व्यापर के तेज विकास व दो विश्व युद्ध के कारण इंश्योरेंस पॉलिसी व्यव्यसाय का काफी विकास हुआ. हालाँकि, दो युद्धों में व्यापक नुकसान की भरपाई करने में कंपनियों के पसीने छूट गए.

आधुनिक बीमा का इतिहास (History of Modern Insurance in Hindi)

वर्तमान स्वरुप के बीमा का कारोबार का विस्तार पुनर्जागरण काल में हुआ है. साम्राजयवाद ने इसे फलने-फूलने में काफी मदद की.

1666 में लन्दन शहर में भीषण आग लगी. इसमें 13 हजार से अधिक मकान जल गए. इसके बाद फायर इंश्योरेंस की जरुरत महसूस हुई. 1681 तक इसका इंग्लैंड में पूरी तरह विकास हो गया था. धीरे-धीरे कई तरह के अन्य सम्पत्तियों का भी इंश्योरेंस किया जाने लगा.

शेयर बाजार की तरह, इंश्योरेंस मार्केट के विकास में भी लन्दन के एडवर्ड लॉयड के कॉफी हाउस ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. सबसे अधिक योगदान समुद्री बीमा का रहा. एडवर्ड लॉयड ने 1680 में लंदन में कॉफ़ी हाउस खोली. यहाँ पर समुद्री बीमा से जुड़े लोग भी शेयर बाजार के लोगों की तरह जुटते थे.

जीवन बीमा जिसे हम लाइफ इंश्योरेंस के नाम से जानते है; 18वीं सदी में शुरू की गई. जीवन बीमा की पेशकश करने वाली पहली कंपनी एमिकेबल सोसाइटी फॉर ए परपेचुअल एश्योरेंस ऑफिस थी. इसकी स्थापना 1706 में लंदन में विलियम टैलबोट और सर थॉमस एलन ने की थी. इसीसिद्धांत पर, एडवर्ड रो मोरेस ने 1762 में सोसाइटी फॉर इक्विटेबल एश्योरेंस ऑन लाइव्स एंड सर्वाइवरशिप की स्थापना की.

यह दुनिया का पहला पारस्परिक बीमाकर्ता था. इसने आधुनिक व वैज्ञानिक पैमाने पर आधारित बीमा कारोबार के विकास के लिए ढांचा उपलब्ध करवाया. यह “आधुनिक जीवन आश्वासन का आधार” पर आधारित थी. इसी पर बाद में सभी जीवन बीमा योजनाएं आधारित है. इसमें ‘मृत्यु दर के आधार पर आयु आधारित’ प्रीमियम भुगतान का तरीका विकसित किया गया.

दुर्घटना बीमा पहली बार रेलवे यात्री आश्वासन कंपनी द्वारा 1848 में इंग्लैंड में शुरू किया गया. इंश्योरेंस लॉ एसोसिएशन ने 1890 में इंश्योरेंस पॉलिसी से जुड़ा अंतर्राष्ट्रीय नियम ‘यॉर्क एंटवर्प नियम’ जारी किया था.

1840 में जर्मनी ने जनसामान्य का बीमा करने का शुरुआत किया. इसमें स्वास्थ्य, दुर्घटना व मौत से जुड़े जोखिम शामिल होते थे.

साल 2008 में बीमा संघों का अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क (INIA) की स्थापना की गई. इसने ग्लोबल फेडरेशन ऑफ इंश्योरेंस एसोसिएशन (GFIA) का स्थान लिया व; 2012 से औपचरिक रूप से काम करने लगा.

भारत में बीमा का इतिहास (History of Insurance in India in Hindi)

हमारे देश भारत में इंश्योरेंस पॉलिसी का आधुनिक इतिहास ब्रिटिश शासन के समय से शुरू होता है. शुरुआत में समुद्री एवं अग्नि बीमा का कारोबार अंग्रेजों द्वारा भारत में फैलाया गया. भारत की पहली बीमा कंपनी, 1818 में ‘ओरिएन्टल लाइफ इन्श्योयोरेन्स कम्पनी’ के रूप में कलकत्ता में स्थापित की गई थी. 1823, 1829, 1847 में भी कई अन्य कम्पनियां स्थापित हुई. आगे, 1850 में कलकत्ता में ही साधारण बीमा व्यवसाय हेतु ट्रिटोन इन्श्योरेन्स कम्पनी लि. स्थापित की गयी.

शुरुआत में स्थापित बीमा कम्पनियाँ यूरोपियनों द्वारा स्थापित किए गए थे. ये सिर्फ यूरोपियनों को ही बीमा कवर उपलब्ध करवाते थे. इसका व्यापक विरोध किया गया. फिर, भारतियों को भी बीमा उत्पाद बेचा जाने लगा. लेकिन, प्रीमियम की राशि अधिक व बीमा की शर्तें असमानता पर आधारित थी.

1871 में ‘बॉम्बे म्युचुअल लाइफ एश्योरेन्स सोसाइटी’ एक भारतीय द्वारा स्थापित पहला बीमा कंपनी था. इसने बिना भेदभाव का भारतियों का भी बीमा करने का शुरुआत किया. 1905 में शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन से भारतीय जीवन बीमा कंपनियों को काफी फायदा हुआ. इस दौर में कई नई भारतीय कंपनियां भी स्थापित की गई. लेकिन अब क़ानूनी तौर पर अब भारतीय कंपनियों के साथ भेदभाव किया जाने लगा.

भारत में इंश्योरेंस पॉलिसी के नियमन के लिए पहली बार साल 1912 में भारतीय बीमा अधिनियम पारित किया गया. इसमें भारतीय कंपनियों के साथ भेदभाव किया गया था. इसी समय प्रोविडेंट फंड अधिनियम भी पारित किया गया था.

मुम्बई में 1907 में स्थापित इण्डियन मर्केन्टाइल इन्श्योरेन्स कम्पनी लि. ने सर्वप्रथम अग्नि बीमा करना प्रारम्भ किया. फिर इस क्षेत्र में कई भारतीय व विदेशी संस्थानों ने कार्य करना प्रारम्भ किया. इसके बाद नई अधिनियम की जरुरत महसूस की जाने लगी.

बीसवीं सदी के पहले दो दशकों में भारतीय बीमा कारोबार में काफी विकास हुआ. 22.44 करोड़ रुपये के कुल कारोबार 1938 में बढ़कर 298 करोड़ रुपये का होगा. इसी दौर में कंपनियों की संख्या 44 से बढ़कर 176 हो गई.

1928 में पारित भारतीय जीवन बीमा कंपनी अधिनियम से सभी प्रकार के इंश्योरेंस पॉलिसी से जुड़े आंकड़े इकठ्ठा करने का अधिकार सरकार को मिला. वर्ष 1938 में पारित संसोधन अधिनियम में जीवन बीमा के अलावा अन्य प्रकार के बीमा को भी क़ानूनी दायरे में लाया गया. इसे नया नाम, बीमा अधिनियम, 1938 दिया गया. फिर इसमें 1944 में संसोधन किया गया. इस वक्त बीमा कारोबार के राष्ट्रीयकरण की मांग भी उठने लगी थी.

बीमा व्यवसाय का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation of Insurance Sector in Hindi)

आजाद भारत में बीमा के राष्ट्रीयकरण का मांग काफी उठने लगा. 19 जनवरी, 1956 को जीवन बीमा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण करने हेतु एक अध्यादेश जारी किया गया. इसके लिए सरकार ने भारतीय जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation of India – LICI) का स्थापना किया. जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 भी इसी वक्त पारित किया गया.

एलआईसी में 154 भारतीय व 16 विदेशी बीमाकर्ताओं के साथ-साथ 75 प्रोविडेंट फंड सोसाइटी का विलय किया गया. कुल 245 भारतीय और विदेशी बीमा कंपनियों को एलआईसी में शामिल किया गया. 1 जनवरी 1957 से एलआईसी ने औपचारिक रूप से काम करना शुरू कर दिया. बीमा क्षेत्र में 90 के दशक के अंत तक एलआईसी का एकाधिकार था. फिर, इस क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया.

सन् 1956 में ही इण्डिया रिइन्श्योरेन्स कार्पोंरेशन लि. की स्थापना की गई. इसका उद्देश्य भारतीय बीमा कम्पनियों का पुनर्बीमा करना है.

साधारण बीमा का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation of General Insurance in Hindi)

साल 1971 में सामान्य बीमा का भी राष्ट्रीयकरण करने के प्रयास शुरू हो गए. फिर, 1972 में सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम. पारित किया गया. आगे, समुद्री, अग्नि व विविध बीमा करने वाली 107 कम्पनियों को अधिगृहित कर भारतीय साधारण बीमा निगम (General Insurance Company of India in Hindi) व इसकी चार सहायक कम्पनियों को सौंप दिया गया.

जीआईसीआई के सहायक थे- नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड. इसने 1 जनवरी, 1973 से औपचारिक रूप से कारोबार शुरू कर दिया.

मार्च 2003 से साधारण बीमा निगम की चारों सहायक कम्पनियों को इससे पृथक कर दिया गया. ये चारों कम्पनियाँ आज भी स्वतंत्र रूप से काम कर रही है. इरडा ने भारतीय साधारण बीमा निगम को भारतीय पुनर्बीमाकर्ता के रूप में अधिकृत किया है. इस सम्बन्ध में GIC अधिनियम साल 2002 में पारित किया गया था.

बीमा क्षेत्र का उदारीकरण (Liberalization of Insurance Sector in Hindi)

सन 1993 में मल्होत्रा समिति के गठन के साथ ही भारत में बीमा क्षेत्र में उदारीकरण की प्रक्रिया का प्रारम्भ हो गया था. परन्तु विधिवत रूप से 1 दिसम्बर 1999 में लोकसभा में 31 विधेयक पारित कर निजीकरण की प्रक्रिया को प्रारम्भ किया गया. इसी दिन बीमा नियमन व विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 बनाया गया.

1999 में, बीमा उद्योग को विनियमित और विकसित करने के लिए बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण; (Insurance Regulatory and Development Authority – IRDA); का गठन किया गया. यह सेबी की तरह एक स्वायत निकाय है. इसे अप्रैल, 2000 में एक वैधानिक निकाय के रूप में मान्यता मिली.

इसके बाद, साल 2015 में विदेशी निवेश सीमा को 26% से बढ़ाकर 49% किया गया. फिर, 2019-20 के केंद्रीय बजट में बिचौलियों (Insurance Corporate Agents) को 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का अनुमति दिया गया.. इस तरह इस क्षेत्र में निजी व विदेशी, दोनों को प्रवेश की अनुमति मिल गई.

आज के समय भारत में, साधारण व लाइफ इंश्योरेंस के क्षेत्र में, सरकारी व निजी; दोनों प्रकार की कंपनियां काम कर रही है.

बीमा के प्रकार (Types of Insurance in Hindi)

मुख्य तौर पर इसके दो प्रकार होते है-

  1. जीवन बीमा (Life Insurance in Hindi): इसमें अपंगता, बीमारी व मृत्यु से किसी व्यक्ति या परिवार को होने वाले नुकसान की भरपाई की जाती है.
  2. सामान्य बीमा (General Insurance in Hindi): इसमें सम्पति, समुद्री व अन्य परिवहन, वाहन दुर्घटना, व्यापार व किसी ख़ास मिशन के जोखिम को किया जाता हैं.

इस आधार पर कुछ प्रचलित बीमा के प्रकार है-

1. हेल्थ इंश्योरेंस (Health Insurance in Hindi)

इसमें बीमित व्यक्ति को तय बिमारी के होने पर नुकसान की भरपाई की जाती है. कई बार यह उम्र संबंधित भी होती है, जैसे आँख का कमजोर होना. कम प्रीमियम के स्वास्थ्य बीमा ही ठीक समझे जाते है.

2. घर का बीमा (Home Insurance in Hindi)

इसमें घर में चोरी, डाका, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी व तूफ़ान से मकान को हुए नुकसान की भरपाई की जाती है. अक्सर घरेलु सामान, जैसे टीवी, फ्रिज, एसी, पलंग, सोफे भी बीमा में शामिल होते है.

3. वाहन बीमा (Automobile or Vehicle Insurance in Hindi)

निजी या व्यावसायिक वाहन का ऑटो इंश्योरेंस करवाना भारतीय कानून के हिसाब से जरुरी है. चोरी, तोड़फोड़, दुर्घटना (Accident) या प्राकृतिक आपदा जैसी क्षति की भरपाई इसमें की जाती है.

4. जीवन बीमा (Life Insurance in Hindi)

एक लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी गारंटी देती है कि बीमाकर्ता नामित लाभार्थियों को तय राशि का भुगतान करेगा, जब बीमाधारक की मौत हो जाए. सामान्यतः इसके शर्तों में नियमित प्रीमियम बीमा कम्पनी को चुकाया हुआ होना चाहिए.

5. यात्रा बीमा (Travel Insurance in Hindi)

इस प्रकार के बीमा में किसी प्रकार के यात्रा के दौरन हुए नुकसान की भरपाई की जाती है. इसमें, साथ के सामान भी कई बार शामिल होते है. होटल द्वारा ठहराव रद्द किया जाना या यातायात के दौरान दुर्घटना से नुकसान; की भरपाई भी की जाती है. अलग-अलग कंपनी अलग-अलग शर्तें तय करती है.

6. फसल बीमा ( Crop Insurance in Hindi)

यह किसानों के फसल को बाढ़, सुखाड़, या अन्य किसी कारण हुए नुकसान से जुड़ा है. साथ ही, फार्म उद्योग, जैसे पोल्ट्री, से भी यह जुड़ा है. केंद्र सरकार प्रायोजित इस योजना से कई राज्य सरकारें बाहर हो गई है. इसकी वजह, नुकसान की भरपाई की दोषपूर्ण तकनीक है. इसके भुगतान में भी सरकारी प्रक्रिया के वजह से देरी होता था. इसलिए किसानों के साथ-साथ कई राज्यों ने इसे छोड़ दिया.

दरअसल, फसल खराब होने, बीमा कंपनियां, उस खेत के आसपास मौजूद सभी खेत का सर्वे करती हैं. मुआवजा तभी दिया जाता है जब अधिकतर किसानों की फसल को नुकसान पहुंचा हो. अन्यथा मान लिया जाता है कि खेती सही से नहीं की गई है. क्रॉप इंश्योरेंस के असफलता का यह मुख्य कारण है.

7. कारोबार उत्तरदायित्व बीमा (Business Liability Insurance in Hindi)

इसमें कारोबार को मंदी या अन्य वजहों से हुए नुकसान की भरपाई की गारंटी मिलती है. कई बार विकास प्रोजेक्ट्स, अंतरिक्ष मिशन इत्यादि भी इसमें शामिल होते है. सरकारी एजेंसी द्वारा पकड़ी गई कर चोरी व आर्थिक दंड से हुआ नुकसान भी इस प्रकार के बीमा में शामिल होते है. कंपनी के कामकाज से हुए नुकसान व; इसके उत्पाद से ग्राहकों को हुआ नुकसान भी इसमें शामिल होता है.

8. जरुरत के हिसाब से बीमा (Situation based Insurance in Hindi)

कई बार लोगों के जरूरत के हिसाब भी बीमा किया जाता है. जैसे, उग्रवाद प्रभावित इलाके में अपहरण व फिरौती इंश्योरेंस पॉलिसी, चिकित्सीय धोखाधड़ी के खिलाफ, डिग्री में असफल होने पर इत्यादि.

शर्तों के अनुसार जीवन बीमा के प्रकार (Types of Life Insurance in Hindi)

जीवन बीमा आम जनता में सबसे अधिक प्रचलित इंश्योरेंस पॉलिसी का रूप है. इसके भी कई प्रकार है-

1. मनीबैक पॉलिसी (Moneyback Policy in Hindi)

‘भारतीय जीवन बीमा निगम’ का यह उत्पाद काफी प्रसिद्ध रहा है. इसमें समय-समय पर धारक को लाभ हस्तांतरित किया जाता है. मृत्यु होने पर, लौटाई गई रकम का गणना किए बिना नुकसान की भरपाई की जाती है. मैच्युरिटी पर पूर्व तय रकम भी वापस किया जाता है.

2. एंडोमेंट प्लान (Endowment Plan in Hindi)

इसमें निश्चित अवधि के बाद तय रकम पॉलिसीधारक को वापस कर दिया जाता है. पालिसी धारक की यदि इससे पूर्व मृत्यु हो जाती है, तो उसके नॉमिनी को शर्तों के अनुरूप तय राशि का भुगतान किया जाता है. यह बचत के साथ चलने वाला पालिसी प्लान है.

3. यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (Unit Linked Insurance Plan- ULIP in Hindi)

यूलिप, मृत्यु के स्तिथि में नामित व्यक्ति को नुकसान का भरपाई करता है. इसमें निवेश का विकल्प भी दिया जाता है, जो जोखिम भी कवर करता है.

4. होल लाइफ पॉलिसी (Whole Life Policy in Hindi)

यह बीमित व्यक्ति को उसके पुरे जीवनकाल के लिए कवर करता है. लाभार्थी को भुगतान का गारंटी दिया जाता है. सामान्यतः बीमित के 100 साल या मृत्यु होने पर मुआवजा दिया जाता है; इनमें से जो भी पहले हो. बीमित के मृत्यु न होने पर, बीमित के तय उम्र होने पर उसे निश्चित राशि लौटा दिया जाता है.

5. टर्म लाइफ इंश्योरेंस (Term Life Insurance in Hindi)

इसमें बीमित पॉलिसीधारक को तय अवधि तक ही जोखिम से सुरक्षा मिलती है.

बीमा पॉलिसी के घटक (Components of Insurance Policy in Hindi)

किसी भी बीमा उत्पाद को खरीदने से पहले इसके विभिन्न पहलुओं को समझना जरुरी होता है. यह समझ होना भी जरुरी होता है कि यह पालिसी उत्पाद कैसे काम करता हैं. इसे समझने में नींम घटक आपकी मदद कर सकते है-

बीमा क़िस्त (Premium in Hindi)

मुआवजा के बदले ली जाने वाले नियमित क़िस्त ही प्रीमियम कहलाती है. यह अक्सर, मासिक या त्रैमासिक होती है. यह जोखिम प्रोफाइल के आधार पर बीमाकर्ता द्वारा निर्धारित किया जाता है. इसमें आपका साख भी शामिल हो सकता है.

उदाहरण के लिए, यदि आपका इतिहास गलत ड्राइविंग का रहा है, तो आपको अधिक भुगतान करना पड़ सकता है. अलग-अलग बीमाकर्ता समान पॉलिसियों के लिए अलग-अलग प्रीमियम चार्ज कर सकते हैं. इसलिए, आप कोई भी बीमा खरीदने से पहले इसके सस्ता या महंगा होने का जाँच कर लें.

मुवावजा सीमा (Compensation Limit of Policy in Hindi)

वह अधिकतम राशि जिसका भुगतान; बीमाकर्ता कवर किए गए नुकसान के बदले अपने पॉलिसी धारक या उसके द्वारा नामित किसी व्यक्ति को करता है; मुआवजा सीमा कहलाता है.

कम्पनियाँ ऐसी शर्ते लगाती है, जिससे कई बार छोटे नुकसान की भरपाई नहीं की जाती है. साथ ही, अधिकतम मुआवजा की रकम व शर्ते भी पहले से ही तय होती है.

बीमा एजेंट (Insurance Agent in Hindi)

किसी कंपनी में वह व्यक्ति जो सीधे ग्राहक से इंश्योरेंस पॉलिसी बेचने के लिए सम्पर्क करता है, बीमा एजेंट कहलाता है. वह खरीदार को इंश्योरेंस पॉलिसी के फायदे, शर्त, नुकसान दवा व प्रीमियम राशि से सम्बन्धित जानकारी देता है.

नुकसान के दावे के स्तिथि में, एजेंट का रोल काफी अहम हो जाता है. बीमा एजेंट ही वह व्यक्ति होता है जिसके निर्देशों के अनुसार, बीमित व बीमाकर्ता आगे का कार्रवाही करते है. कई बार इंश्योरेंस पॉलिसीदावे से जुड़े विवाद अदालत में भी चले जाते है.

आजकल ऑनलाइन माध्यमों से भी इंश्योरेंस पॉलिसी ख़रीदा जा रहा है. यह पारम्परिक माध्यम से सस्ता होता है. सामान्यतः इंश्योरेंस पॉलिसी उत्पाद की परिपक्वता अवधि, मैच्युरिटी (Maturity) कहलाता है.

बीमा धारक व बीमित (Policy Holder and Insured in Hindi)

खरीदार ही इंश्योरेंस पॉलिसी का मालिक होता है. इन्हें बीमा धारक कहा जाता है. वहीं, जिस सम्पत्ति या व्यक्ति का बीमा करवाया गया हो, उसे बीमित (Insured in Hindi) कहते है.

बीमाकर्ता (Insurer in Hindi)

इंश्योरेंस उत्पाद बेचने वाली कंपनी बीमाकर्ता कहलाती है. भारत सरकार एक अधीन लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ़ इंडिया, भारत की सबसे बड़ी जीवन बीमा कम्पनी है. इसके अलावा भी निजी क्षेत्र के कई कम्पनियाँ भारत में कार्यरत है.

बीमा कैसे काम करता है? (How does Insurance Work in Hindi)

जब आप कोई पॉलिसी खरीदते हैं तो, अपने बीमाकर्ता को नियमित प्रीमियम का भुगतान करते हैं. नुकसान के दावे के बाद, बीमाकर्ता पॉलिसी के अंतर्गत कवर किए गए नुकसान के लिए भुगतान करता है. इससे पहले नुकसान की त्वरित जांच की जाती है. सामान्यतः बीमा एजेंट यह काम करते है.

नुकसान दावे के लिए कागजिय व अन्य सबूत का नक़ल बीमाकर्ता के पास जमा करना होता है. दावें का रकम पॉलिसीधारकों के पूल या निवेश से निकालकर भुगतान क्या जाता है.

भारतीय बीमा क्षेत्र से जुडी कंपनियां ‘इरडा’ के निर्देशानुसार सरकारी बांड, स्टॉक, डिबेंचर या अन्य माध्यमों में निवेश करती है. विदेश में निवेश के लिए अलग से निर्देश भी जारी किए जाते है.

बीमा खरीदने से पहले (Precautions of Buying Insurance Policy in Hindi)

किसी भी इंश्योरेंस पॉलिसी उत्पाद खरीदने से निम्न बिंदुओं को जरूर जांच ले:

  • आपको इस इंश्योरेंस पॉलिसी की आवश्यकता क्यों है?
  • आप अपने कवर में क्या-क्या शामिल करना चाहते हैं?
  • प्रीमियम राशि कहीं मुआवजा से अधिक तो नहीं है?
  • आप कितना खर्च कर सकते है?
  • कितने समय के लिए इंश्योरेंस पॉलिसी कवर की आवश्यकता है?
  • क्या आप सिर्फ अपने लिए और / या अपने प्रियजनों के लिए कवर चाहते हैं?
  • क्या बीमा किए जा रहे सम्पति, वस्तु, व्यापर या व्यक्ति को वाकई नुकसान का खतरा है?
  • बीमा अवधि के बाद जमा की गई प्रीमियम वापस की जाती है या नहीं?
  • दावा व प्रीमियम से जुड़े शर्तें

भारत के कुछ प्रमुख बीमा कम्पनियाँ (Insurance Companies of India in Hindi)

भारतीय जीवन बीमा निगम, जीवन बीमा के क्षेत्र में भारत की सबसे बड़ी कंपनी है. यह एकमात्र सरकारी कंपनी है, जो सीधे केंद्र सरकार के अधीन काम करती है. भारत में जीवन बीमा का करीब दो-तिहाई कारोबार इसी के तहत होता है. साल 2022 में इसे शेयर मार्किट में सूचीबद्ध किया गया.

इसके अलावा, एसबीआई की अनुषंगी कंपनी, एसबीआई लाइफ (SBI Life) भी इंश्योरेंस पॉलिसी क्षेत्र में कारोबार करती है. सरकारी क्षेत्र की यह दूसरी सबसे बड़ी बीमा कंपनी है. इसके उत्पाद, निगम, से अधिक प्रसिद्ध है.

भारतीय डाक भी, पोस्टल जीवन बीमा (Postal Life Insurance) के नाम से अपना जीवन बीमा उत्पाद बेचती है. यह सरकारी क्षेत्र की तीसरी मुख्य बीमा कंपनी है.

इसके अलावा ICICI प्रुडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस (ICICI Prudential Life Insurance), HDFC लाइफ इंश्योरेंस (HDFC Life Insurance), एक्सिस लाइफ इंश्योरेंस (Axis Life Insurance) इत्यादि निजी कम्पनियाँ भी जीवन बीमा के क्षेत्र में कार्यरत है.

एक्सिस बैंक (Axis Bank) कई कंपनियों के उत्पाद कॉर्पोरेट एजेंट के तौर पर बेचती है. इनमें एलआईसी, बजाज अलाइंज लाइफ इंश्योरेंस (Bajaj Allianz Life Insurance) व मैक्स लाइफ इंश्योरेंस (Max Life Insurance) के उत्पाद शामिल है.

भारत सरकार के कुछ बीमा योजनाएं (Government of India supported Insurance Policies in Hindi)

आम जनता के लिए केंद्र सरकार ने कई बीमा योजनाएं चलाई है. इनमें कुछ ख़ास है-

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Prime Minister Crop Insurance Policy or PMFBY in Hindi)

खरीफ सीजन में 13 जनवरी 2016 को ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई)’ आरम्भ किया गया था. इसमें सिंचित व असिंचित, दोनों प्रकार के खेती शामिल है. किसानों को खरीफ फसल के लिये 2% और रबी फसल के लिये 1.5% प्रीमियम का भुगतान करना होता है. वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए यह राशि 5% है. शेष राशि का भुगतान केंद्र व राज्य सरकार मिलकर करती है.

यह योजना आंशिक रूप से असफल हो गया है. पंजाब इस योजना से जुड़ा ही नहीं; तो बिहार तथा पश्चिम बंगाल भी क्रमशः 2018 और 2019 में बाहर हो गए. वहीं आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना और झारखंड ने 2020 में इसे अपने राज्य में बंद कर दिया.

राज्यों के पीछे हटने का मुख्य कारण मुआवजा भुगतान सम्बंधित समस्या मानी जाती है. कई राज्यों के वित्तीय संकट का भी हवाला दिया जाता है. हालांकि, कई राज्यों ने अपनी फसल बीमा योजना चलाई है.

प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना (PMJJY in Hindi)

भारत सरकार के इस बीमा योजना का लक्षित समूह वंचित व गरीब तबका है. इसकी शुरुआत फ़रवरी, 2015 में बजट से की गई थी. 18 से 50 साल के उम्र के व्यक्ति इसका लाभ ले सकते है. इसकी प्रीमियम राशि 436 रूपये वार्षिक है.

इस पॉलिसी की परिपक्वता (मैच्योरिटी) की उम्र 55 साल या; 18 से 50 साल के बीच मृत्यु है. परिपक्वता पर 2 लाख रूपये का भुगतान किया जाता है. वित्तीय वर्ष 2021 में तक 102.7 मिलियन लोग इस योजना के अंतर्गत पंजीकृत थे. यह केंद्र सरकार का एक सफल योजना है.

आयुष्मान भारत योजना (ABY in Hindi)

यह योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना जे रूप में शुरू की गई है. इसका घोषणा केन्‍द्रीय वित्‍त बजट 2018 में किया गया. 10 करोड़ गरीब और कमजोर परिवारों (लगभग 50 करोड़ लाभार्थियों) को कवर करना इसका लक्ष्य है.

केंद्र सरकार का प्रयास प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रुपये का मुफ्त इलाज एयर एक लाख हेल्‍थ एण्‍ड वेलनेस सेंटर्स स्‍थापित करना है. इसमें क्लेम सम्बन्धी सभी प्रक्रिया 30 दिनों में पूरा किया जाता है.

इरडा (Insurance Regulatory & Development Authority of India – IRDAI in Hindi)

भारत में सभी प्रकार के बीमा कारोबार का इरडा से निबंधित होना जरुरी है. यह भारत में बीमा कारोबार की शीर्षस्थ नियामक एजेंसी है, जो केंद्र सरकार के अधीन काम करती है. इसके द्वारा समय-समय ओर पर नियम व नीतियां जारी की जाती है.

इसका स्थापना 1999 के बीमा नियामक व विकास अधिनियम (Insurance Regulatory & Developmental Act) के तहत की गई है. इसी स्थापना रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) के सेवानिवृत गवर्नर आर. एन. माथुर की अध्यक्षता में गठित समिति के सिफारिश पर की गई थी.

इरडा ने 1 जनवरी, 2021 से सभी बीमा कंपनियों को सरल जीवन बीमा जारी करने का आदेश दिया है. यह मानक टर्म लाइफ इंश्योरेंस प्लान है. इसका लक्ष्य स्वरोज़गार या निम्न आय वाले लोगों को मौलिक सुरक्षा प्रदान करना है.

इसी तरह के कई सुधार निति व दिशानिर्देश इरडा द्वारा जारी किए जाते है. इरडा के पास किसी बीमा कंपनी का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार भी है.

केंद्र सरकार भी बीमा से जुड़े कई फैसले लेती है. कई बार अध्ययन के लिए आयोग का गठन भी किया जाता है. ऐसे ही एक समिति वर्ष 2007 में एन.एम. गोवर्धन की अध्यक्षता में गठित की गई थी. इसने बीमा मार्केटिंग फर्मों को शुरू करने की अनुशंसा की थी.

फिर, वर्ष 2018 में सुरेश माथुर की अध्यक्षता में गठित 9 सदस्यीय समिति की अनुशंसाओं के आधार पर कई सुधार किए गए.

बीमा सुगम पोर्टल (Bima Sugam Portal in Hindi)

बीमा नियामक इरडा द्वारा अक्टूबर, 2022 में इस डिजिटल प्लेटफार्म का घोषणा किया गया. यह बीमा का ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफार्म है. यह पॉलिसीहोल्डर के लिए वन स्टॉप प्लेटफॉर्म (One Stop Platform for Insurance Portal) की तरह काम करेगा.

इसमें आप पॉलिसी खरीद सकते है, भुगतान व दावा (क्लेम) भी कर सकते है. इसमें डीमैट खाते की तरह E-BIMA या E-IA खाता उपलब्ध करवाया जाएगा. KYC के लिए इसपर सिर्फ आधार लिंक्ड मोबाईल से ओटीपी डालना होगा. इसमें पॉलिसी नंबर भी जारी किया जाएगा. इसे दर्ज कर शिकायत, भुगतान,दावा व अन्य जरुरी बदलाव किया जा सकेगा.

पॉलिसी होल्डर्स के अलावा एजेंट्स, वेब एग्रीगेटर और बाकी बीमा मीडिएटर इसका प्रयोग कर सकेंगे. इसमें सभी बीमा धारक का जानकारी इसमें दर्ज करना अनिवार्य किया गया है. इसमें निजता का भी पूरा ख्याल रखा गया है. अन्य पारम्परिक तरीको से भी बीमा ख़रीदा जा सकेगा.

बीमा में निवेश के फायदे (Benefit of Investing in Insurance Policy in Hindi)

इसमें निवेश से जोखिम से सुरक्षा मिलती है. साथ ही, अक्सर बैंक के तुलना में इसमें अधिक रिटर्न प्राप्त होता है. हालाँकि, कम आय वाले लोगों के लिए यह अक्सर महंगा होता है. इसलिए उन्हें सरकार द्वारा चलाई जा रही बीमा योजनाओं का लाभ लेना चाहिए.

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