उत्पाद नियोजन से आशय उन प्रयासों से है जिनके द्वारा बाजार या उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं एवं इच्छाओं के अनुरूप उत्पाद या उत्पाद श्रृंखला को निर्धारित किया जाता है. दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि उत्पाद नियोजन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा उपभोक्ताओं की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोगी उत्पादों को खोजा एवं जाँचा परखा जाता है तथा उन्हें संस्था के उत्पाद श्रृखला में जोड़ा जाता है.
विलियम जे. स्टेन्टन के अनुसार, ‘‘उत्पाद नियोजन में वे सब क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो उत्पादकों तथा मध्यस्थों को यह निर्धारित करने में सक्षम बनाती है कि संस्था की उत्पाद-श्रृंखला में कौन-कौन से उत्पाद होने चाहिए.’’
कार्ल एच. टिंटजन के शब्दों, उत्पाद नियोजन से तात्पर्य ‘‘नवीन उत्पादों की खोज, जाँच, विकास एवं व्यवसायीकरण, विद्यमान उत्पाद श्रृंखलाओं में संशोधन तथा सीमान्त या अलाभकारी उत्पादों का परित्याग करने से सम्बन्धित क्रियाओं को निर्धारित करना तथा उनका पर्यवेक्षण करना है.’’
जॉनसन के अनुसार, ‘‘उत्पाद नियोजन उत्पाद की उन विशेषताओं का निर्धारण करता है जिससे कि उपभोक्ताओं की अनन्त इच्छाओं को सर्वोत्तम ढंग से पूरा किया जा सके एवं वस्तुओं में विक्रय योग्यता को जोड़ा जा सके तथा उन विशेषताओं को अन्तिम वस्तुओं में सम्मिलित किया जा सकें.’’
इस प्रकार उत्पाद नियोजन एक व्यवस्थित एवं नियोजित कार्य है, जिसके द्वारा एक निर्माता अपने उत्पादों या उत्पाद श्रृंखला को निर्धारित करता है. यह वह कार्य है जिसके द्वारा एक निर्माता अपने उत्पादों को बाजार की निरन्तर परिवर्तनशील मांग एवं आवश्यकता के अनुरूप बनाने के लिए अपने विद्यमान उत्पादों में सुधार करता है, नये उत्पादों का निर्माण करता है तथा सीमान्त एवं अलाभकारी उत्पादों का परित्याग करता है. इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में उत्पादों की किस्म, रंग, रूप, आकार, ब्राण्ड, डिजायन, आदि को निर्धारित, परिवर्तित या संषोधित किया जाता है.
उत्पाद नियोजन की विशेषताएँ
1. उत्पादों का नियोजन – उत्पाद नियोजन संस्था के द्वारा भविष्य में निर्मित या उपलब्ध किये जाने वाले उत्पादों का नियोजन है.
2. मूर्त एवं अमूर्त उत्पादों का नियोजन –उत्पाद नियोजन संस्था के मूर्त एवं अमूर्त उत्पादों का नियोजन हैं इसमें मूर्त उत्पादों अर्थात् जिन उत्पादों को देखा, छुआ या सूँघा जा सकता है, उनके नियोजन के साथ साथ उन उत्पादों का भी नियोजन है जिन्हें देखा, छुआ या सूँघा नहीं जा सकता है अर्थात अमूर्त है.
3. प्रारम्भिक कार्य –उत्पाद नियोजन विपणन कार्यों में प्रारम्भिक कार्य है. यहीं से विपणन कार्यो की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है. स्टेन्टन ने लिखा है कि ‘‘उत्पाद नियेाजन किसी संस्था के सम्पूर्ण विपणन कार्यक्रम का आरम्भिक बिन्दु है.’’
4. अविच्छिन्न प्रक्रिया – उत्पाद नियोजन निरन्तर या अविच्छिन्न रूप से चलने वाली प्रक्रिया है. इसमें कभी नये उत्पादों का नियोजन किया जाता है तो कभी विद्यमान उत्पादों में सुधार. यह प्रक्रिया सदैव चलती ही रहती है.
5. सर्वव्यापी प्रक्रिया- उत्पाद नियोजन सर्वव्यापी प्रक्रिया है. यह निर्माता, थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी, सुपर बाजार, श्रृखलाबद्ध दुकानों आदि सभी में की जाती है. अन्तर केवल इतना है कि निर्माता माल के निर्माण से पूर्व उत्पाद नियोजन करता है, जबकि मध्यस्थ माल क्रय करने से पूर्व उत्पाद नियेाजन करते है.
6. आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति – उत्पाद नियोजन उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है. इसका उद्देश्य बाजार एवं उपभोक्ताओं को उनके इच्छित एवं अपेक्षित उत्पाद उपलब्ध कराना है.
7. उपभोक्ता संतुष्टि एवं कल्याण- उत्पाद नियोजन का अन्तिम लक्ष्य उपभोक्ताओं की संतुष्टि एवं कल्याण में अभिवृद्धि करना है.
8. व्यापक क्षेत्र – उत्पाद नियोजन का क्षेत्र बहुत व्यापक है. इसमें नवीन उत्पादों की खोज, जाँच-परख तथा उनका व्यवसायीकरण करने और विद्यमान उत्पादों में सुधार करने जैसे अनेक कार्य सम्मिलित हैं. उसमें उत्पाद नवाचार भी सम्मिलित है.
9. अनुसंधान पर आधारित – उत्पाद नियोजन पूर्णत: अनुसंधान पर आधारित होता है. यह बाजार अनुसंधान, उपभोक्ता व्यवहार एवं अभिप्रेरण अनुसंधान तथा उत्पाद अनुसंधानों के परिणामों को ध्यान में रखकर ही किया जाता है. इन अनुसंधानों से उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं, इच्छाओं, पसन्द, नापसन्द, वरीयता, वस्तु की किस्म, रंग, रूप, आकार, डिजाइन, ब्राण्ड के प्रति विचारों का ज्ञान हो जाता है. इससे उत्पाद नियोजन आसान हो जाता है.
10. अंशत: तकनीकी कार्य – उत्पाद नियोजन मूलत: व्यावहारिक विज्ञान से सम्बन्धित शोध पर आधारित कार्य है. उत्पाद नियेाजन हेतु मानवीय इच्छाओं, आवश्यकताओं, भावनाओं आदि का अध्ययन किया जाता है और उसके आधार पर ही उत्पाद के विशिष्ट लक्षणों को निर्धरित किया जाता है. तत्पश्चात् इन विशिष्ट लक्षणों के आधार पर उत्पादों के लिए तकनीकी कार्य (उत्पादन प्रबन्ध से सम्बन्धित) प्रारम्भ होता है और उत्पाद को भौतिक स्वरूप प्रदान किया जाता है.
उत्पाद नियोजन की आवश्यकता एवं महत्त्व
‘‘उत्पाद नियोजन एक संस्था के सम्पूर्ण विपणन कार्यक्रम का प्रारम्भिक बिन्दु हैं.’’ उत्पाद नियोजन सम्पूर्ण संस्था की सफलता को निर्धारित करने वाला महत्वपूर्ण कार्य है. इसी से विपणन कार्यक्रम का श्रीगणेश होता है. उत्पाद मूल्य निर्धारण, विक्रय संवर्द्धन, विज्ञापन, वितरण श्रृखलाओं का चुनाव से सम्बन्धित विपणन कार्यक्रम भी उत्पादन नियोजन से जुड़े हुए है.
संक्षेप में, उत्पाद नियोजन की आवश्यकता एवं महत्त्व को समझा जा सकता है –
1. विपणन कार्यक्रम का आधार – उत्पाद नियोजन विपणन कार्यक्रम का आधारभूत एवं प्रारम्भिक कार्य है. स्टेन्टन ने ठीक ही लिखा है कि ‘‘उत्पाद नियेाजन संस्था के सम्पूर्ण विपणन कार्यक्रम का प्रारम्भिक बिन्दु है.’’ यही से संस्था के विपणन कार्यक्रम की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है. इस कार्य के बाद ही अन्य विपणन कार्यो यथा – मूल्य निर्धारण, वितरण, संवर्द्धनात्मक का श्रीगणेश होता है.
2. उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति – उत्पाद नियोजन का कार्य उपभोक्ता की आवश्यकताओं, इच्छाओं, पसन्दगी, नापसन्दगी, वरीयताओं आदि को जानने से ही प्रारम्भ होता है. अत: इस कार्य के परिणास्वरूप उपभोक्ताओं की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं को भली प्रकार पूरा किया जा सकता है.
3. सुविधाजनक उत्पाद – उत्पाद नियोजन से उपभोक्ताओं को अधिक सुविधाजनक उत्पाद उपलब्ध हो सकते है. उत्पाद नियोजन के द्वारा उत्पाद का आकार, रंग, रूप, डिजाइन, आदि उपभोक्ता की सुविधा को ध्यान में रखकर ही बनाये जाते हैं. फलत: उपभोक्ताओं को अधिक सुविधाजनक उत्पाद मिलने लगे हैं. उदाहरणार्थ, आजकल महिलाओं की सुविधाओं के अनुसार घेरलू उपकरण, स्कूटर, जूते-चप्पल आदि बनने लगे हैं. बच्चों एवं बूढ़ो की सूविधा का भी आजकल कर्इ उत्पादों के निर्माण में ध्यान रखा जाने लगा है.
4. दोष रहित उत्पाद – उत्पाद नियोजन का एक लाभ यह है कि उपभोक्ताओं को दोष-रहित उत्पाद उपलब्ध होने लगे हैं. आजकल उत्पाद का रंग, रूप, आकार, किस्म आदि का निर्धारण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि उसमें दोष न हो. टी.वी., फ्रिज, स्कूटर ही नहीं, दैनिक उपयोग की छोटी से छोटी वस्तु को दोष रहित उपलब्ध बनाने पर जोर दिया जा रहा है. यह कुशल उत्पाद नियोजन से ही सम्भव है.
5. संसाधनों का सदुपयोग – उत्पाद नियोजन संस्था के संसाधनों के सदुपयोग में सहायक है. उत्पाद नियोजन के अन्तर्गत उचित उत्पादों को खोजा जाता है, उनका विपणन परीक्षण किया जाता है, विद्यमान उत्पादों में आवश्यक सुधार एवं परिवर्तन किया जाता है और अलाभकारी उत्पादों को संस्था की उत्पाद श्रृंखला से हटाया जाता है. इन सब के परिणामस्वरूप संस्था उन उत्पादों का निर्माण कर पाती है जिनकी बाजार में माँग होती है. फलत: संस्था के संसाधनों का सदुपयोग सम्भव है.
6. लागतों में कमी – अच्छे उत्पाद नियोजन से संस्था के संसाधनों का अपव्यय नहीं होता है. इसके अतिरिक्त अच्छे उत्पाद नियोजन से निर्मित उत्पादों को बेचना भी आसान होता है, अधिक संवर्द्धनात्मक एवं वितरण व्यय नही करने पड़ते है. फलत: संस्था की लागतों में कमी भी आती हैं
7. अधिक विक्रय एवं लाभ – अच्छे उत्पाद नियोजन से संस्था के उत्पादों का विक्रय बढ़ता हैं. ऐसा अच्छे उत्पादों तथा कम लागतों के कारण होता है. इसके परिणामस्वरूप, संस्था के लाभों में भी वृद्धि होती है.
8. प्रतिस्पर्धी क्षमता में वृद्धि – अच्छा उत्पाद नियोजन संस्था के उत्पादों को अच्छा एवं मितव्ययी बना सकता है. इससे संस्था की बाजार में प्रतिस्पर्धी क्षमता में अभिवृद्धि होती है.
9. संस्था का दीर्घकालीन अस्तित्व – दुनिया में कोi भी अमर नहीं है. व्यक्ति एवं उत्पाद, जो जन्म लेते है, सभी मरते हैं. किन्तु नियमित जीवनचर्या वाले व्यक्ति की तरह भली प्रकार से नियोजित उत्पाद भी दीर्घायु होते हैं. वे अपने यौवन के शिखर पर अधिक लम्बे समय तक टिकते है और संस्था के अस्तित्व को भी दीर्घायु बना देते है. इतना ही नहीं, विद्यमान उत्पादों की समीक्षा करके उनमें आवश्यक संशोधन एवं परिवर्तन करने से भी उत्पादों एवं संस्था की आयु में भी वृद्धि होती है.
10. विकास में सहायक – आधुनिक युग में विकास नवकरण पर निर्भर करता है. नवीन उत्पादों का विकास करके, नये कच्चे माल या तकनीक का उपयोग करके जो संस्था न्यूनतम लागत पर अच्छा उत्पाद उपलब्ध करा सकती है, वही आगे विकास कर सकती हैं. उत्पाद नियोजन इस विकास यात्रा में महत्त्वपूर्ण रूप से योगदान दे सकता है.
11. सामाजिक दायित्वों का निर्वाह – आधुनिक युग में प्रत्येक संस्था का सामाजिक दायित्व होता है. अच्छे उत्पाद नियेाजन से वह उपभोक्ताओं, स्थानीय समुदाय एवं देश के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह कर सकती है. अच्छे उत्पादों से उपभोक्ताओं एवं स्थानीय समुदाय के प्रति दायित्वों की पूर्ति कर सकती है. इनसे उपभोक्ता एवं समाज का जीवन-स्तर एवं जीवन की किस्म में सुधार होता है. उत्पाद नियोजन से देश के संसाधनों का सदुपयोग होता है. अत: देश के प्रति दायित्वों का निर्वाह भी सम्भव है.
12. कानूनी दायित्वों का निर्वाह – आजकल उचित उत्पाद उपलब्ध कराना एवं उसकी निष्पादन क्षमता को सुनिश्चित करना व्यवसायियों का वैधानिक दायित्व भी हो गया है. हमारे देश में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम है. यह उपभोक्ता को अनेक अधिकार प्रदान करता है. यदि कोई उत्पाद उचित किस्म, प्रमाण एवं निष्पादन क्षमता का नहीं होता है तो उत्पादक/व्यवसायी उसकी क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी होता है. अच्छा उत्पाद नियोजन करके उत्पादक/व्यवसायी स्वत: ही अपने वैधानिक दायित्वों से सुरक्षित हो जाता है.