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सौर मंडल, इसके ग्रह और अन्य पिंड

    आज तक कोई भी इंसान सौर मंडल के एक छोर से दूसरे छोर तक यात्रा नहीं कर पाया है. यहाँ तक कि हम पृथ्वी के निकटतम ग्रह तक नहीं पहुँच पाए है. मंगल ग्रह तक हम अपने यान जरूर पहुंचा चुके है, लेकिन कोई भी जीवित इंसान धरती के बाहर सिर्फ पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह चन्द्रमा तक ही पहुँच पाया है. ऐसे में ब्रह्माण्ड के अनगिनत प्रश्न आज भी अनसुलझे हुए है और ये ज्ञान और विज्ञान का अनंत सागर की अबूझ पहेली बने हुए हैं.

    यदि हमारा शरीर ब्रह्माण्ड है तो सौर मंडल इसका एक अणु; और सौर मंडल में स्थित ग्रह, उपग्रह, धूमकेतु व उल्कापिंड इसके परमाणु माना जा सकता है. सौर मंडल को समझने के लिए इससे अच्छी कोई अन्य व्याख्या नहीं हो सकती है. तो आइए हम समय न गवांते हुए जानते है सौर मंडल और इसके ग्रहों, उपग्रहों से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारियां-

    सौर मण्डल के 8 ग्रहों की तुलनात्मक तालिका

    क्र. सं.सौरमंडल के ग्रहों के नामग्रह का रंगसूर्य से दूरी (करोड़ किमी में)ग्रह का व्यास (किमी में)अक्ष पर चक्कर लगाने का समयसूर्य की परिक्रमा का समयउपग्रहों की संख्या
    1.बुध (Mercury)भूरा5.84,87858.6 दिन88 दिनशून्य
    2.शुक्र (Venus)हल्का पीला10.812,104243 दिन225 दिनशून्य
    3.पृथ्वी (Earth)नीला-हरा14.9612,75624 घंटे385.26 दिन1 (चन्द्रमा)
    4.मंगल (Mars)लाल-भूरा21.76,75024 घंटे 37मि०687 दिन2
    5.बृहस्पति (Jupiter)गुलाबी रंग पर सफेद पट्टी77.81,42,9849 घंटे 55 मि.11:86 वर्ष69
    6.शनि (Saturn)सुनहरा-पीला142.71,20,53610 घंटे 47 मि०29.46 वर्ष62
    7.यूरेनस (Uranus)आसमानी28.751,11817 घंटे 14 मि०84 वर्ष27
    8.नेपच्यून (Neptune)गहरा आसमानी449.74952816 घंटे164.8 वर्ष14
    सौर मंडल के 8 ग्रह व उनकी स्तिथि

    सौर मंडल क्या है? (What is Solar System in Hindi?)

    Solar System in Hindi 1 1
    सौर मंडल में सूर्य व इसके ग्रह

    सौर मंडल के केंद्र में सूर्य (The Sun) स्थित है और इसके चारों गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे खगोलीय पिंड अपने धुरी पर घूर्णन और सूर्य का प्रक्रिमा कर रहे है. ये सब मिलकर सौर मंडल (The Solar System) का निर्माण करते है. सूर्य के चारों तरफ ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल चक्कर लगा रहे है. इन आकाशीय पिंडों में आठ ग्रह, उनके 172 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौना ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं.

    हमारे सौर मंडल का निर्माण गैस के घने बादल और सौर निहारिका नाम के धूलकण से हुआ है. निहारिका का एक हिस्सा अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण ढह गया, फिर यह तेजी से घूमने लगा और एक डिस्क के आकार में समतल हो गया. इसके पदार्थों का अधिकांश हिस्सा केंद्र की ओर खींचा गया. इसके परिणामस्वरूप केंद्र में सूर्य का निर्माण हुआ.

    डिस्क के भीतर के अन्य कण एक साथ टकरा कर छोटे हिस्सों में बंट गए. ये क्षुद्रग्रह कहलाए. कुछ ने आपस में मिलकर क्षुद्रग्रहों, धूमकेतुओं, चंद्रमाओं और ग्रहों की चट्टानी सतहों का निर्माण किया.

    सूरज से उठ रही शक्तिशाली सौर तूफानों के वजह से अधिकांश हल्के तत्व, जैसे हाइड्रोजन और हीलियम इसके आपसपास के पिंडों से दूर छिटक गए व चट्टान व धूलकण जैसे भरी पदार्थ इन पिंडों में बना रहा. हालांकि, बाहरी क्षेत्रों में सौर तूफ़ान का प्रभाव काफी कम था. इस वजह से बाहरी ग्रहों के निर्माण में हाइड्रोजन और हीलियम मुख्य तत्व बने.

    विज्ञान और खगोलीय पिंडों के प्रति आकर्षण (Attraction Towards Universe in Hindi)

    सौर मंडल के गृह व अन्य आकाशीय पिंड सदैव मानव का ध्यान आकर्षित करते रहे है. कई धार्मिक पुस्तकों में सूर्य व चाँद को आस्था का विषय बना दिया गया है.

    बाइबल में बताया गया है कि पृथ्वी, ब्रह्माण्ड का स्थिर केंद्र है और अन्य गतिशील आकाशीय पिंडों से अलग है. लेकिन 140 इ. में क्लाडियस टॉलमी ने बताया (जियोसेंट्रिक अवधारणा के अनुसार) की पृथ्वी ब्रह्माण्ड के केंद्र में है और सारे गृह पिंड इसकी परिक्रमा करते हैं.

    फिर, 1515 में, निकोलस कोपरनिकस नाम के एक पोलिश पुजारी ने कहा किया कि पृथ्वी भी शुक्र या शनि की तरह एक ग्रह है, और सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं.

    यह मान्यता चर्च यानि बाइबल के अवधारणाओं के विपरीत था. इसलिए उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा व अपने खोज का प्रकाशन रोकना पड़ा. उन्होंने अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले 1543 तक अपने सिद्धांत को प्रकाशित नहीं किया.

    लेकिन जब यह प्रकाशन के बाद दुनिया के सामने आया तो विज्ञान को नई ऊर्जा मिली और ईश्वरीय कल्पना को जोरदार आघात पहुंचा. यहीं से लोग विज्ञानं को सही व धर्म को गलत मानने लगे. इस तरह आज जो हम सौर मंडल के बारे में जानकारी पढ़ पा रहे है, उसमे निकोलस कोपरनिकस का महान योगदान है. तो आइये हम एक-एक कर सौर मंडल के मुख्य पिण्डो को जानते है.

    सूर्य (The Sun in Hindi)

    ये जानना दिलचस्प है कि ब्रह्मांड में हमारे सूर्य जैसे एक खरब से भी अधिक सूर्य हैं. हमारा सूर्य एक विशाल आणविक बादल के हिस्से के ढहने से करीब 4.57 अरब वर्ष पूर्व बना. इसका कुल आयु करीब 10 बरस है. मतलब यह अपना आधा जीवन जी चुका है. यह एक G श्रेणी का मुख्य-अनुक्रम तारा है. इसे पीला बौना या G बौना तारा भी कहा जाता है. सूरज के अलावा अल्फ़ा सेंचुरी “ए” (Alpha Centauri A), टाऊ सॅटाए (τ Ceti) और 51 पेगसाई (51 Pegasi) भी G श्रेणी के मुख्य अनुक्रम तारे हैं.

    यह एक युवा तारा है, जो 5 हजार मिलियन साल (5 अरब वर्ष)बाद बड़ा होते-होते लाल दानव तारा (Red Joint Star) बन जाएगा. इस तरह इसमें सौर मंडल के सभी पिंड व आसपास के कई पिंड समाए जाएंगे और सौर मंडल नष्ट हो जाएगा. इस प्रक्रिया के दौरान नष्ट होने से पहले इसकी प्रकाश दोगुनी हो जाएगी.

    सौर चक्र (The Sun Cycle in Hindi)

    नासा और नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के वैज्ञानिकों के मुताबिक, 25वां सौर चक्र आरम्भ हो चुका है. एक सौर चक्र का जीवनकाल औसतन 11 वर्ष का होता है. इस दौरान सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र अत्यधिक सक्रीय होता और अपने तरफ सूर्य के हरेक अवयव को आकर्षित करता है. इस वजह से सौर तूफानों और लपटों की संख्या में वृद्धि हो जाती है.

    सौर चक्र का शुरुआत उस वक्त होती है जब सूर्य में सबसे कम सनस्पॉट होते हैं. समय बीतने के साथ, सूर्य की गतिविधि और सनस्पॉट की संख्या बढ़ते जाती है. इससे पृथ्वी पर धूमिल और ठंडा मौसम आ सकता है. इस तरह, सौर चक्रों का पृथ्वी पर जीवन, प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष यात्रा पर प्रभाव पड़ सकता है.

    सूर्य का बनावट (The structure of the Sun in Hindi)

    सूर्य का 74% हिस्सा हाइड्रोजन और 24% हिस्सा हीलियम का बना है. शेष हिस्से में, हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम व क्रोमियम जैसे तत्व शामिल हैं. मतलब सूर्य का 98 फीसदी हिस्सा हाइड्रोजन व हीलियम है. (Source: NASA.GOV)

    हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड ‘सूर्य’ है. इसका व्यास लगभग 13 लाख 90 हज़ार किलोमीटर है. सूर्य का व्यास व्यास पृथ्वी के व्यास से लगभग 109 गुना अधिक है. इसका द्रव्यमान है, जो सौर मंडल के कुल द्रव्यमान का 99.86% है. इसका द्रव्यमान 1.9891×10 (to the Power) 30 kg है. मतलब सूर्य का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का लगभग 3,33,000 गुना या बृहस्पति के द्रव्यमान का 1047 गुना है. सूर्य की सतह का क्षेत्रफल धरती के सतही क्षेत्रफल से 11990 गुना अधिक है.

    सूर्य के सतह को प्रकाशमंडल (Photosphere) कहा जाता है. यही हिस्सा हमें दिखाई पड़ता है. यह हिस्सा प्रकाशहीन होता है. ऐसा इस हिस्से के प्रकाश को सूर्य का वर्णमण्डल (Chromosphere) द्वारा सोख लेने के वजह से होता है.

    सूरज के सतह से ठीक ऊपर 2,000 से 3,000 किलोमीटर के वायुमंडल को वर्णमण्डल कहा जाता है. यह लाल रंग का होता है. इसके बाहरी सबसे बाहरी हिस्से को प्रभामंडल या कोरोना कहा जाता है. सूर्य के इस सतह का तापमान 20 लाख डिग्री सेल्सियस होता है. सूर्य का प्रभामंडल प्रकाश के रूप में अंतरिक्ष के लाखों किलोमीटर तक फैला है. सूर्य-ग्रहण के समय दिखने वाले इसके हिस्से को सूर्य किरीट (Corona) भी कहा जाता है.

    सूर्य का धब्बा, ऑरोरा व कॉस्मिक ईयर (The Sun spot, the Aurora and the Cosmic Year in Hindi)

    दूरबीन से देखने पर सूर्य के सतह पर अनेक छोटे-बड़े धब्बे सरकते दिखते हैं. इन धब्बों को सौर कलंक (Sun Spots) कहा जाता है. इसका व्यास 50,000 किलोमीटर तक होता है. इसका तापमान इसके आसपास के क्षेत्र से कम होता है व यह सूर्य को ब्रह्मांडीय किरणों (Cosmic Rays) से बचाता है.

    इसका तापमान करीब लगभग 1000 डिग्री फ़ारेनहाइट होता है. इन धब्बों के गति के आधार पर वैज्ञानिक ये पता लगा पाएं कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर 27 दिन में अपने धुरी पर एक घूर्णन पूरा करती है. इसका वास्तविक घूर्णन अवधि, भूमध्य रेखा पर लगभग 25.6 दिन, और दोनों ध्रुवों में 33.5 दिन का होता है.

    सूर्य के चारों और सौर मंडल के ग्रह व अन्य पिंड परिक्रमा करते है. इसी प्रकार सूर्य भी अपने आकाशगंगा ‘मिल्कीवे’ के चारों ओर पूरब से पश्चिम की ओर परिक्रमा करता है. सूर्य को यह परिक्रमा पुरा करने में 22 से 25 करोड़ वर्ष लगते हैं. इस अवधि को एक निहारिका वर्ष (Cosmic Year) या ब्रह्माण्ड वर्ष भी कहते हैं. सूर्य की परिक्रमा करने की गति 251 किलोमीटर प्रति सेकेंड है.

    मिल्कीवे के केंद्र में धनु ‘A’ या सेजिटेरियस “A” (Sagittarius “A”) नामक एक ब्लैकहोल मौजूद है. इसका व्यास 6 करोड़ किलोमीटर है. हमारे सूर्य व सौर मंडल के साथ-साथ मिल्कीवे के अन्य पिंड भी इसकी परिक्रमा कर रहे है. सूर्य इस ब्लैकहोल से करीब 26,000 प्रकाशवर्ष या 8 किलोपारसेक दूर स्थित है. आकाशगंगा के 5% तारे सूर्य से ज्यादा बड़े और चमकदार है.

    सौर ज्वाला (sun flames) का निर्माण का निर्माण सूर्य पर उठने वाले तूफ़ान की वजह से होता है. जब भी सूरज पर तूफ़ान आता है तो इसकी लपटे सूर्य की चुम्बकीय क्षेत्र को पार कर अंतरिक्ष में फ़ैल जाता है. इसका एक हिस्सा धरती पर भी आ जाता है, जो वायुमंडल में मौजूद कणों से टकराकर रंगीन प्रकाश उत्पन्न करता है. ऐसा कणों में आयनीकरण (ionization) के कारण होता है.

    अक्सर सूर्य से छोटी-छोटी लपटे सामान्य दिनों में भी बाहर निकलती रहती है. ये 70,000 किलोमीटर की ऊंचाई तक जाती है.

    2003 में सूर्य पर सबसे बड़ा सौर तूफ़ान आया था. इसके कारण धरती पर सभी संचार साधन बाधित हो गए थे. लेकिन सूर्य तूफान के कारण धरती को कोई हानि नहीं पहुंचा. इस दौरान कई खगोलशास्त्री भयवश यान में सवार हो गए थे.

    धरती के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों पर सौर ज्वाला के वजह से अक्सर ऐसे रंगीन प्रकाश पैदा होते है, इन्हें वहां पर “ऑरोरा” (Aurora) कहा जाता है. सौर ज्वाला में मौजूद नाभिकीय विकिरणों से धरती पर मौजूद जीवन की रक्षा, पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र करता है.

    सूर्य के ऊर्जा का स्त्रोत (Energy Source of the Sun in Hindi)

    जैसा की हम सभी जानते है सूर्य से प्राप्त रौशनी या ऊर्जा से ही पौधे-प्रकाश संश्लेषण कर भोजन का निर्माण करते है. यह भोजन ही हमें ऊर्जा देती है. इस तरह जीवन के लिए सौर ऊर्जा अति महत्वपूर्ण है, जो सूर्य अपने कोर में नाभिकीय संलयन से उत्पन्न करता है. सौर मंडल को ऊर्जा की प्राप्ति सूर्य प्रकाश से ही होता है.

    सूर्य हाइड्रोजन व हीलियम से बना होता हैं. सूर्य के कोर में परमाणु संलयन की परमाणु प्रतिक्रिया होती है. यहाँ 15 मिलियन केल्विन ताप और अति उच्च दाब (पृथ्वी के सतह से लाखो गुना) में दो हाइड्रोजन के परमाणु संलयित होकर एक हीलियम अणु का निर्माण करते है.

    इस संलयन में प्रति सेकेंड 700 मिलियन टन हाइड्रोजन न्यूक्लियर संलयन के कारण हीलियम में बदल जाता है. इस प्रक्रिया में अत्यधिक ऊर्जा की उत्त्पत्ति होती है. सूर्य की सतह से निकली ये ऊर्जा प्रकाश के विकिरण में बदलकर अंतरिक्ष में फ़ैल जाती है. इसी का एक हिस्सा हमारी धरती तक पहुँचता है.

    प्रकाश की गति 3,00,000 किलोमीटर प्रति सेकेंड होती है.

    पृथ्वी सूर्य से 174 पेटावाट ऊर्जा प्राप्त करता है. सूर्य द्वारा पृथ्वी की तरफ चले ऊर्जा का 30 फीसदी रास्ते में ही समाप्त हो जाता है. इसका 30 फीसदी पानी को भाप बनाने में सम्पत हो जाता है. 15 फीसदी परावर्तन के कारण अंतरिक्ष में वापस चला जाता है. शेष यानि 25 फीसदी का उपयोग ही पेड़-पौधे, सोलर पैनल व मानव व अन्य जीवों द्वारा द्वारा धुप सेंकने में किया जाता है. पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश 8 मिनट 20 सेकेंड में पहुँचता है.

    सूर्य से धरती के प्रतिवर्ग किलोमीटर को 6 से 8 किलोवाट घंटा ताप मिलता है. यह भूमध्य रेखा पर अधिक व ध्रुवों पर कम होती है. यह ऊर्जा बर्फ पर पढ़कर उसे पिघलाने का काम करती है, जिससे नदियों का निर्माण होता है. ये नदियां स्थल पर मीठे जल का महत्वपूर्ण स्त्रोत होते है. इससे सिंचाई, उद्योग, पीने व बिजली परियोजना का सुचारु संचालन सम्भव हो पाता है.

    पार्कर सोलर प्रोब क्या है? (What is Parker Solar Probe in Hindi?)

    ‘नासा’ (NASA) का ‘पारकर सोलर प्रोब‘ “सूर्य को छुने” के अभियान पर निकला एक मिशन है. इसका लक्ष्य सूर्य के सतह, ‘कोरोना’, का अध्ययन करना है. 12 अगस्त 2018 में इसे डेल्टा IV यान से प्रक्षेपित किया गया था. यह प्रयास नासा के ‘लिविंग विद ए स्टार‘ कार्यक्रम का हिस्सा है. किसी तारे तक पहुँचने का पहला मानवीय मिशन है.

    सूर्य के अध्ययन का पहला प्रयास भी नासा द्वारा किया गया था. इस अमेरिकी संस्था ने पायनियर 5, 6, 7, 8 और 9 को 1959 और 1968 के बीच सूर्य के अध्ययन के लिए प्रक्षेपित किया था. इन यानों ने सूर्य परिक्रमा करते हुए सौर वायु और सौर चुंबकीय क्षेत्र का पहला विस्तृत अध्ययन किया था. पायनियर 9 लंबे अरसे काम करता रहा और मई 1983 तक धरती पर डेटा भेजता रहा. हालाँकि, सोलर प्रोब से पहले किसी भी मिशन का लक्ष्य सूर्य की सतह पर उतरना नहीं रहा है.

    सूरज से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य (Important Facts about the Sun)

    • सूर्य के हाइड्रोजन 5 अरब साल बाद समाप्त हो जाएंगे.
    • इसके केंद्र में बना हुआ प्रकाश रुपी फोटोन लाखों सालों तक इसके अन्दर ही घूमता रहता है.
    • पृथ्वी पर औसतन प्रत्‍येक वर्ष 5 बार सूर्यग्रहण लगता है. इसकी अवधि 7 मिनट 40 सेकंड से लेकर 20 मिनट तक होती है. नंगी आँखों से सूर्य ग्रहण देखने पर आँखों की रौशनी भी जा सकती है.
    • लगभग 450 ईसा पूर्व वर्तमान तुर्की के दार्शनिक व खगोलविद एनाक्सागोरस (Anaxagoras) ने सूर्य का एक तारा होने का अनुमान व्यक्त किया था.
    • गैलीलियो और फैब्रिशियस ने ही सबसे पहले सूर्य पर काले धब्बे देखे थें.
    • सूर्य अपने 22 लाख, 22 हजार किलोमीटर दूर स्थित किसी भी आकाशीय पिंड को अपने तरफ खिंच लेता है.
    • सूर्य द्वारा छोड़े गए 800 अरब से ज्यादा न्यूट्रॉन प्रति सेकेंड हमारे शरीर में से गुजर जाते है.
    • आर्क्टिक सर्कल को ‘मध्य रात्रि का देश‘ भी कहा जाता है. मई से जुलाई के मध्य 76 दिनों तक यहां सूर्य अस्त नहीं होता है.
    • आइसलैंड, ग्रेट ब्रिटेन के बाद यूरोप का सबसे बड़ा आइलैंड है, जहाँ10 मई से जुलाई के अंत तक सूर्य नहीं डूबता है.
    • अमेरिका के अलास्का में भी मई से जुलाई के बीच में सूर्य कभी नहीं डुबता है. फिनलैंड में भी 73 दिनों तक सूर्य अपनी रोशनी लगातार बिखेरता रहता है.
    • गर्मी के दिनों में कनाडा के उत्तरी-पश्च‍िमी हिस्से में 50 दिनों लगातार दिन रहता है.
    • सूर्य पर भी मौसम परिवर्तन होता है. इसे सौर चक्र भी कहा जाता है.

    सौर मंडल के ग्रह (The planets of Solar System in Hindi)

    ग्रह उन बड़े खगोलीय पिंडों को कहते है जो अपने तारे के चारों ओर एक निश्चित परिक्रमा पथ पर परिक्रमण करते है. ये किसी दूसरे ग्रह के पथ से नहीं गुजरते है, यदि ये ऐसा करते है तो बौना ग्रह कहलाते है. इनमें तारों की भांति नाभिकीय संलयन नहीं होता है. ग्रहों का घूर्णन करने वाले खगोलीय पिंड उपग्रह कहलाते है.

    सौर मंडल के सभी खगोलीय पिंड सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते है, इसे परिक्रमण कहा जाता है. सौर मंडल के आठों ग्रह भी इसका चक्कर काटते है. आकार के अनुसार ग्रहों का घटता क्रम है- बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण, पृथ्वी, शुक्र, मंगल तथा बुध. सूर्य के निकट के चार ग्रह पार्थिव या आंतरिक ग्रह कहलाते हैं. अन्य चार बृहस्पतीय या बाह्य ग्रह कहलाते हैं.

    • पार्थिव ग्रह: बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल इत्यादि सौर मंडल के पार्थिव ग्रह है. ये ग्रह ठोस चट्टान व धातुओं के मिश्रण से बने है. पृथ्वी इनमें सबसे बड़ा है.
    • बाह्य ग्रह: बृहस्पति, शनि, अरुण तथा वरुण बृहस्पतीय या बाह्य ग्रह कहलाते हैं.

    बाह्य ग्रह मूलतः गैस के गोले है या पुरी तरह ठोस नहीं है. बृहस्पति को गैस दानव भी कहा जाता है. ये अंडाकार चपटे (oblate spheroid) आकर के होते है. इनका कोर भी पुरी तरह ठोस नहीं होता या गैस होता है. इनका अधिकतर हिस्सा हाइड्रोजन व हीलियम से बना है, जिससे सूर्य भी बना है.

    सभी ग्रह अंडाकार पथ पर परिभ्रमण करते है, इस वजह से इनमें अपसौरउपसौर की अनोखी घटना दिखती है. आइये अब जानते है ग्रहों के बारे में ज्ञात तथ्य:

    1. बुध (the Mercury in Hindi)

    मरकरी या बुध ग्रह सूर्य का निकटस्थ आकाशीय पिंड व सौर मंडल का सबसे छोटा ग्रह है. इसे नंगी आँखों से भी सूर्योदय से ठीक पहले पूरब में या सूर्यास्त के बाद पश्चिम में, आकाश में क्षितिज के पास देखा जा सकता है. इसलिए इसे “भोर या सांझ का तारा” भी कहा जाता है. इसका नामकरण रोम के व्यापार के देवता मरक्यूरियस (Mercurius) के नाम पर हुआ है.

    पहले प्लूटो (यम) को सबसे छोटा ग्रह माना जाता था. लेकिन अब इसे बौना ग्रह माना जाता है.

    सूर्य की परिक्रमण पुरा कर सूर्य का एक चक्कर लगाने में में बुध सबसे कम समय, यानि केवल 88 पृथ्वी दिवस (87.97 Earth days) लगाता है. यह अन्य ग्रहों के तुलना में सबसे तेज गति से सूर्य का चक्कर लगाता है. सूर्य से बढ़ती दुरी के साथ अन्य ग्रहों का सूर्य का चक्कर लगाने की गति धीमी होती जाती है. सूर्य के तीन चक्कर लगाने के साथ ही यह अपने धुरी पर दो बार घुर्णन कर चुका होता है. इस तरह इसका धुरी पर घुर्णन काफी धीमा होता है.

    बुध के पास अपना कोई भी उपग्रह (Moon) नहीं है. सूर्य के सबसे निकट होने के कारण इसके सूर्य के तरफ वाला सतह +400 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है. वहीं, सूर्य से छिपा हुआ सतह में तापमान -200 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है. बुध भी पृथ्वी के भांति सौर मंडल के चार स्थलीय ग्रहों में से एक है, जो चट्टानी पिंड से बना हुआ है.

    इस ग्रह का घनत्व 5.427 g/cm3 है, जो सौर मंडल में दूसरा सबसे अधिक है. यह घनत्व पृथ्वी के घनत्व 5.515 g/cm3 से थोड़ा ही कम है. इसका व्यास 4880 किलोमीटर है. इसके कोर का धरती के कोर के तुलना में ठोस होने और लोहे से बने होने का अनुमान व्यक्त किया जाता है.

    नासा के 2015 में समाप्त हुए मेसेंजर अभियान से पता चला कि इसके सतह पर पोटैशियम और सल्फर की मौजूदगी का पता चला. इसके बाद ये अनुमान लगाया गया कि जब ये पदार्थ सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से आकर्षित नहीं हुए तो बुध के अन्य अवयव भी वाष्पित होकर सूर्य में नहीं समाए होंगे. इसका सतह चन्द्रमा के तरह ही है.

    2. शुक्र (the Venus in Hindi)

    बुध के बाद स्थित शुक्र ग्रह सूर्य से दुरी के मामले में दूसरे स्थान पर है. आकार में यह छठंवा सबसे बड़ा ग्रह है. वीनस रोम के प्यार और सुंदरता की देवी है. इन्ही के नाम पर शुक्र ग्रह का अंग्रेजी में नाम ‘वीनस‘ (Venus) रखा गया है. यह एक गर्म ग्रह है. इसलिए यह रात में तारों के बीच सबसे अधिक चमकता है. इसके चमक के कारण इसे “सबसे चमकीला ग्रह” भी कहते है.

    धरती से देखने पर शुक्र आकाश में चाँद के बाद सबसे चमकीला पिंड है. इसे अँधेरी रात में भी देखा जा सकता है. लेकिन बुध सिर्फ सुबह और शाम गोधूलि बेला (Twilight) के आसपास दिखता है. सूर्य से अत्यधिक नजदीक होने के कारण यह अधिकतर समय गायब रहता है और सिर्फ सुबह-शाम को दिखता है.

    शुक्र ग्रह भी बुध के तरह कभी-कभार सुबह व शाम को दिखता है. इसलिए इसे भी सुबह या शाम के तारे के रूप में जाना जाता है. शुक्र का एक भी प्राकृतिक उपग्रह (Satellite) नहीं है. इसका आकार और स्वरुप पृथ्वी से बहुत मिलता-जुलता है, इसलिए इसे ‘पृथ्वी का जुड़वा बहन’ या ‘पृथ्वी का बुरा जुड़वा’ भी माना जाता है. इस परिक्रमण पथ पृथ्वी के विपरीत है. पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है जबकि शुक्र पूर्व से पश्चिम की ओर. यह पृथ्वी के सबसे निकट का ग्रह भी है.

    शुक्र ग्रह का बनावट व वातावरण (Venus’s composition and atmosphere)

    इस ग्रह पर पृथ्वी के भांति चुंबकीय क्षेत्र का अभाव है. लेकिन इसके आयनमंडल और सौर हवा के बीच प्रतिक्रिया के फलस्वरूप मेग्नेटोस्फेयर का विकास होता है, जो कॉस्मिक किरणों से शुक्र का बचाव करने में सक्षम नहीं होता है. सूर्य से शुक्र की दुरी 108 मिलियन किलोमीटर या 67 मिलियन मील है.

    इसका वायुमंडलीय दवाब धरती के समुद्र तल पर दवाब के तुलना में 90 से 92 गुना अधिक है. यह अपने अक्ष से 47° झुका हुआ है, जो पृथ्वी के अक्षीय झुकाव से दोगुने से भी अधिक है. शुक्र ग्रह का बनावट भी पृथ्वी के भांति, स्थल, मेन्टल व कोर में बंटा हुआ है.

    इस ग्रह के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और का एक मोटा परत है. इसकी मात्रा 96% है. शुक्र का आकाश अपारदर्शी सल्फ्यूरिक एसिड के घने, पीले बादलों से ढका रहता है. कार्बन डाइऑक्साइड व सल्फ्यूरिक अम्ल मिलकर शुक्र पर ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न करते है. इस वजह से यह हमारे सौर मंडल का सबसे गर्म ग्रह है.

    बुध सूर्य के सबसे करीब है, लेकिन यह शुक्र की तुलना में ठंडा होता है. इसका वजह है शुक्र के वायुमंडल में मौजूद ग्रीनहाउस गैस है. शुक्र पर सतह का तापमान लगभग 900 डिग्री फ़ारेनहाइट या 475 डिग्री सेल्सियस है. इस तापमान पर सीसा भी पिघल जाते है.

    शुक्र ग्रह का रंग जंग खाए हुए लोहे जैसा है. इसका सतह उखड़े हुए पहाड़ों और हजारों बड़े ज्वालामुखियों से भरा हुआ है. वैज्ञानिकों को लगता है कि यह संभव है कि कुछ ज्वालामुखी अभी भी सक्रिय हों. यह तीसरा सबसे छोटा स्थलीय ग्रह है.

    यह सूर्य का परिक्रमण पृथ्वी के 224.7 दिन (224.7 Earth days) में पुरा करता है. लेकिन इसे अपने अक्ष में घुर्णन करने में 243 पृथ्वी दिवस लग जाते है. सौर मंडल के अन्य सभी ग्रहों के तुलना में, अपने अक्ष पर घूमने में शुक्र सबसे अधिक समय लेता है. 2 सदी ईसा पूर्व में सबसे पहले शुक्र ग्रह के गति का ही अध्ययन किया गया था.

    शुक्र ग्रह पर वैज्ञानिक शोध (Scientific research on the Venus planet in Hindi)

    दूसरी शताब्दी में, अपने खगोलीय ग्रंथ अल्मागेस्ट (Almagest) में, टॉलेमी ( Ptolemy) ने सिद्धांत दिया कि बुध और शुक्र दोनों सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थित हैं. 11वीं शताब्दी के फारसी खगोलशास्त्री एविसेना ने शुक्र के पारगमन को देखने का दावा किया, इससे टॉलेमी के सिद्धांत की पुष्टि के हो गई.

    शुरुआती 17वीं शताब्दी में इतालवी भौतिक विज्ञानी गैलीलियो गैलीली ने पहली बार बताया कि शुक्र ग्रह भी चाँद की तरह कलाएं दिखाता है. यह तभी संभव हो सकता है जब शुक्र, सूर्य की परिक्रमा कर रहा हो. इस तरह इन्होंने इन्होंने पृथ्वी को केंद्र बताए जाने की अवधारणा का वैज्ञानिक रूप से खंडन किया और बताया कि सूर्य ही सौर मंडल के केंद्र में है न कि पृथ्वी. इस तरह यह टॉलेमिक जियोसेंट्रिक मॉडल का स्पष्ट खंडन था.

    शुक्र व किसी भी ग्रह के लिए दुनिया का पहला सफल मिशन संयुक्त राज्य अमेरिका का मेरिनर 2 मिशन था. यह 14 दिसंबर 1962 को शुक्र की सतह से 34,833 किमी (21,644 मील) ऊपर पहुंचा और इसके वायुमंडल का जानकारी पृथ्वी पर सम्प्रेषित की.

    जापान का अकात्सुकी (Akatsuki) नाम का प्रोब 7 दिसंबर 2015 से 2020 तक शुक्र के ख़ास कक्षा में रहा और आंकड़े जुटाता रहा. रोस्कोस्मोस, नासा, इसरो, ईएसए और निजी क्षेत्र द्वारा इन आंकड़ों का अध्ययन किया जा रहा है.

    3. पृथ्वी (The Earth Planet in Hindi)

    हमारा पृथ्वी, सूर्य का तीसरा सबसे निकटतम व पाँचवाँ सबसे बड़ा ग्रह है. सुर्य से पृथ्वी की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर या 93 मिलियन मील है. इस दुरी को खगोलीय इकाई कहते हैं. पृथ्वी का केवल एक उपग्रह, चन्द्रमा, है. अब तक शोध के अनुसार, पृथ्वी ही एक मात्र ग्रह है, जिसपर जीवन है. इसलिए इसे हरा ग्रह (Green Planet) भी कहते है. हालाँकि यह नीले रंग का दिखता है. इसकी आकृति को लध्वक्ष गोलाभ (Oblate spheroid) भी कहते है.

    पलायन वेग (Escape Velocity)

    पृथ्वी का पलायन वेग 11.2 किमी प्रति सेकेण्ड है. इससे अधिक तेज गति से किसी वस्तु को पृथ्वी से अंतरिक्ष से बाहर फेंकने पर वह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलकर अंतरिक्ष में जा पहुँचता है. इसी सिद्धांत के आधार पर अंतरिक्ष यान प्रक्षेपित किए जाता है.

    पृथ्वी से 42.1 किमी प्रति सेकंड की दर किसी वस्तु को बाहर फेंकने पर यह सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से बाहर यानि सौर मंडल से बाहर निकल जाएगा. लेकिन सूर्य पर स्थित वस्तु को सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से निकालने के लिए उसे 617.5 किमी प्रति सेकंड की दर से बाहर फेंकना होगा.

    अंतरिक्ष के अलग-अलग पिंडों का पलायन वेग अलग-अलग होता है. गुरुत्व के साथ-साथ अन्य चीजें मिलकर इसका निर्धारण करती है.

    प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of Light)

    आकाश से देखने पर पृथ्वी नीले या ब्लू (Blue) रंग का दिखता है. ऐसा प्रकाश के प्रकीर्णन की वजह से होता है. प्रकीर्णन का शाब्दिक अर्थ होता है बिखराव या फैलाव. दरअसल, प्रकाश जब किसी माध्यम से होकर गुजरता है तो इनसे टकराकर भिन्न – भिन्न दिशाओं में विचलित हो जाता है. यह घटना प्रकाश का प्रकीर्णन कहलाती है. नील रंग का सबसे अधिक व लाल रंग का सबसे कम प्रकीर्णन होता है.

    वायुमंडल में मौजूद धूलकण सूर्य के प्रकाश के नीले रंग के तरंगदैर्घ्य को चारो तरफ फैला देती है. धरती का दो-तिहाई या 71% भाग जल से ढंका है. साफ़ जल वाले समुद्र भी नीले रंग को परावर्तित करता है. इस वजह से आकाश नीले रंग का दिखता है. अंतरिक्ष से धरती का समुद्री हिस्सा नीला व जमीनी हिस्सा धरातल पर मौजूद हरियाली व अन्य बनावट के अनुरूप दिखता है.

    हमारे सौर मंडल में दो अन्य ग्रह वरुण यानी नेपच्यून और अरुण यानी यूरेनस भी नीले दिखते हैं. नेपच्यून पर मीथेन गैस ज्यादा मात्रा में है जो नीले रंग को परावर्तित करता है. इसलिए वरुण नीले रंग का दिखाई देता है. अरुण या युरेनस के वातावरण में भी मीथेन होता है. इसलिए यह भी वरुण के समान नीला दिखता है.

    पृथ्वी की गति व मौसम में बदलाव (Rotation of the earth and change in its weather in Hindi)

    पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.44 डिग्री झुका हुआ है. यह अपने अक्ष पर घूर्णन के साथ-साथ सूर्य का परिक्रमा भी करती है. इसके परिक्रमण व अक्षीय झुकाव के वजह से किसी स्थान पर पड़ने वाला धुप की मात्रा में बदलाव आता रहता है, जो ऋतू-परिवर्तन का कारण है.

    Earth Structure Weather Change 2 1 11
    सौर मंडल में पृथ्वी का परिक्रमण व मौसम परिवर्तन

    पृथ्वी का परिक्रमण पथ अंडाकार होता है. पृथ्वी के अंडाकार पथ के वजह से इसकी सूर्य से दुरी घटती-बढ़ती रहती है. इस वजह से भी पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर मौसम प्रभावित होता है. वह स्थान, जहाँ सूर्य की किरणे सीधी पड़ती है, वहां अधिक धुप पहुँचने के वजह से गर्मी अधिक होती है. वहीं, जहाँ सूर्य की किरणे सीधी पड़ती है, वहां सूर्यताप कम पहुँचने से ठंड होती है. साथ ही वायुमंडल द्वारा सूर्य की गर्मी को धरती पर बनाए रखने से भी मौसम पर प्रभाव पड़ता है.

    घुर्णन(Rotation of Earth in Hindi)

    पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना ‘घूर्णन‘ कहलाता है. इसे पृथ्वी का दैनिक गति भी कहा जाता है. इस वजह से ही पृथ्वी में दिन और रात होते है. पृथ्वी का एक घुर्णन 23 घंटे, 56 मिनट और 4.09 सेकेंड का होता है. इस अवधि को पृथ्वी दिवस (Earth Day) भी कहा जाता है.

    परिक्रमण (Revolution of Earth in Hindi)

    सूर्य के चारों ओर एक स्थिर कक्ष में पृथ्वी की गति को परिक्रमण कहते हैं. पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा करीब एक वर्ष या 365 दिन 6 घंटे 48 मिनट और 45.51 सेकेंड में पूरा करती है. इसे पुरा होने में लगे अवधि के वजह से इसे पृथ्वी का वार्षिक गति भी कहते है. पृथ्वी की वार्षिक गति की वजह से मौसम बदलते हैं.

    पृथ्वी का परिक्रमण की स्थिति (Positions of the earth’s rotation in Hindi)

    उपसौर: जब पृथ्वी सूर्य के बिल्कुल पास होती है तो उसे उपसौर (Perihelion) कहते हैं. यह स्थिति 3 जनवरी को होती है. इस दिन पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी मात्र 14.70 करोड़ किमीटर होती है.

    अपसौर (Aphelion): जब पृथ्वी सूर्य से अधिकतम दूरी पर होती है तो यह अपसौर कहलाता है. अपसौर की स्थिति 4 जुलाई को होती है, जब पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी 15.21 करोड़ किमीटर होती है.

    एपसाइड रेखा: उपसौर और अपसौर को मिलाने वाली रेखा सूर्य के केंद्र से गुजरती है. इसे एपसाइड रेखा कहते हैं.

    यह भी पढ़ें: (1) पृथ्वी की संरचना व बनावट (2) भूकम्प के जोन, डिजास्टर, प्रकार व अन्य तथ्य

    चन्द्रमा: पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह (The Moon : sole natural satellite of the Earth)

    चन्द्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है. यह पृथ्वी से 384,400 किलोमीटर (238,855 मील) दूर है और इसका व्यास 3,474 किलोमीटर (2,159 मील) है. चन्द्रमा का घनत्व पृथ्वी के घनत्व का लगभग साढ़े तीन गुना है. यह लोहे और निकल के एक बड़े कोर से बना है, जो चट्टान के एक पतले खोल से घिरा हुआ है.

    चन्द्रमा की सतह पर भारी मात्रा में क्रेटर (गड्ढे) हैं, जो क्षुद्रग्रहों और उल्कापिंडों के टुकड़ों के गिरने से बने हैं. चन्द्रमा का अपना कोई वायुमंडल नहीं है. इसलिए यहाँ वायु नहीं है. साल 2008 में लॉन्च किए गए भारत के चंद्रयान 1 मिशन ने चाँद की सतह पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया था.

    चन्द्रमा का निर्माण लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले हुआ था, जब पृथ्वी और एक अन्य पिंड के बीच एक भयानक टक्कर हुई थी. यह टक्कर इतनी शक्तिशाली थी कि उसने पृथ्वी के एक हिस्से को अलग कर दिया, जो चन्द्रमा बन गया. लेकिन यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर नहीं जा पाया. इसलिए यह पृथ्वी की परिक्रमा करता है.

    चन्द्रमा की परिक्रमा की अवधि लगभग 27.3 दिन है. इतने ही दिनों में यह अपने अक्ष पर भी एक चक्कर पुरा करता है. इसे कारण चन्द्रमा हमेशा पृथ्वी पर हमें केवल एक हिस्से को दिखाता है.

    चन्द्रमा पृथ्वी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. यह पृथ्वी को सौर विकिरण से बचाता है, जो पृथ्वी के वातावरण को नष्ट कर सकता है. चन्द्रमा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को भी प्रभावित करता है, जो समुद्री ज्वार-भाटा का कारण बनता है. यह पूर्णिमा के दिन अधिक और अमावस्या के दिन न्यूनतम होता है.

    मानवों ने पहली बार 20 जुलाई 1969 में चन्द्रमा पर कदम रखा था. अमेरिका के ओपोलो-11 मिशन ने यह इतिहास रचा था. इस मिशन में, अंतरिक्ष यात्री नील आर्म स्ट्रांग ने चांद पर पहला कदम रखा और इसके 19 मिनट बाद एडवर्ड बज एलड्रिन चांद पर कदम रखने वाले दूसरे अंतरिक्ष यात्री बने. दोनों ने चांद पर करीब दो घंटे बिताए. तब से, 12 लोग चन्द्रमा पर चले हैं. चन्द्रमा पर कई अंतरिक्ष यान भी भेजे गए हैं, जिन्होंने चन्द्रमा की सतह का अध्ययन किया है.

    चन्द्रमा एक रहस्यमय और आकर्षक स्थान है. यह एक ऐसा स्थान है जहां मानव जाति ने धरती के बाहर अपना पहला कदम रखा. खगोलीय पिंडो में यह एकमात्र ऐसा स्थान है जिसके बारे में बहुत कुछ सीखा है.

    चाँद का अध्ययन सेलेनोलॉजी (Selenology) कहलाता है. इसके पिछले हिस्से या दक्षिणी ध्रुव पर धूल के मैदान फैले हुए है, जिसे शांतिसागर भी कहा जाता है. अन्तर्राष्ट्रीय चन्द्रमा दिवस 20 जुलाई को मनाया जाता है. चन्द्रमा सौर मंडल का पांचवा सबसे बड़ा उपग्रह है.

    4. मंगल ग्रह (The Mars Planet in Hindi)

    सूर्य से दुरी के मामले में चौथे स्थान पर स्थित मंगल ग्रह सिर्फ बुध ग्रह से बड़ा है. यह धरती से 128.13 मिलियन किमी व सूर्य से 215.95 मिलियन किमी की दुरी पर स्थित है. इसका व्यास पृथ्वी से करीब आधा या 6,779 किमी है.

    बनावट में मंगल पृथ्वी के आयतन का 15% और द्रव्यमान का 11% है. इस वजह से, मंगल पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के तुलना में मात्र 38% है. रोमन युद्ध का देवता नाम भी मार्स (Mars) है. इसकी सतह पर जंग खाए हुए लोहे के आयरन ऑक्साइड जमे है. इस वजह से यह लाल दिखता है. लालिमा के कारण इस ‘लाल ग्रह‘ कहा जाता है.

    विरल वातावरण वाले मंगल पर कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता है. यहाँ पृथ्वी के तुलना में 0.6% का वायुदाब होता है. यह अपने अक्ष पर 25.19 डिग्री झुका है. इन सभी वजहों से यहाँ ऋतू-परिवर्तन होता है. यह अपना घुर्णन 24 घंटे, 31 मिनट और 35.244 सेकेंड में पुरा करता है. इसके ऋतू परिवर्तन का एक कारण इसका भौगोलिक विशेषता पृथ्वी के समान होना है.

    मंगल में न्यूनतम तापमान −110° सेल्सियस (−166 °F) व अधिकतम 35° सेल्सियस (95 °F) होती है. इसे पृथ्वी के तुलना में मात्र 43% सौर ऊर्जा प्राप्त होता है. इसकी वजह इसका सूर्य से पृथ्वी की तुलना में अधिक दूर स्थित होना है. साथ ही इसके छोटे आकार के कारण भी ऐसा है. यहाँ सौर मंडल में सबसे तेज धूलों का तूफान 160 किमी/घंटा के रफ्तार से चलता है.

    जीवन और मंगल ग्रह (Life on the Mars Planet in Hindi)

    मंगल आज से काफी पहले रहने के अधिक योग्य था. लेकिन इसपर जीवन का वर्तमान या भूत में अस्तित्व के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. यहाँ तरल जल नहीं है, ऐसे में जीवन सम्भव नहीं है. साथ ही इसका न्यूनतम तापमान इसे मानव-निवास के अयोग्य बनता है.

    असमतल धरातल (Uneven surface of the Mars in Hindi)

    ज्वालामुखी पर्वत निक्स ओलंपिया मंगल का सबसे ऊँचा पर्वत है. इसकी ऊंचाई 21,287.4 मीटर है, जो माउन्ट एवेरेस्ट के ऊंचाई से तीन गुना है. इसमें ही सौर मंडल का सबसे गहरे गड्ढों में से एक, कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस (Valles Marineris)स्थित है. यह 4,000 किमी (2,500 मील) लंबी, 200 किमी (120 मील) चौड़ी और 7 किमी (23,000 फीट) गहरी है. यह एक भ्रंश घाटी (rift valley) है.

    मंगल का आंतरिक संरचना (Internal Structure of the Mars in Hindi)

    पृथ्वी के भांति इसके आंतरिक संरचना को तीन हिस्से में बांटा गया है. इसका सबसे अंदरूनी हिसा, कोर, निकिल व लोहे के साथ 16–17% सल्फर से बना है. यहाँ लोहे और सल्फर मिलकर आयरन सल्फाइड बनाते है. इसका मेंटल, ऑक्सीज़न व सिलिकॉन के अभिक्रिया से बने सिलिकेट से बना है. धरती के मेंटल के तरह मंगल का मेंटल भी ज्वालामुखी का कारण है. 50 से 125 किलोमीटर तक फैला इसका क्रस्ट लोहा, मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम, कैल्शियम, और पोटेशियम से मिलकर बना है.

    मंगल के उपग्रह (Satellites of Mars in Hindi)

    धरती से मंगल को नंगी आँखों से भी देखा जा सकता है. मंगल के दो छोटे प्राकृतिक उपग्रह- फोबोस (Phobos) व डिमोस (Deimos) है. इनका खोज 1877 में आसफ हॉल (Asaph Hall) द्वारा हुआ है. ये वृत्ताकार कक्षा में मंगल का परिभ्रमण करती है. इनका निर्माण मंगल के मलबे (debris) से हुआ है.

    फोबोस: इसका व्यास 22 किलोमीटर (14 मील) है.फोबोस पश्चिम में उगता है, पूर्व में अस्त होता है. इसका मतलब होता है- दहशत/डर (panic/fear). यह फिर से केवल 11 घंटों में उगता है.

    डिमोस: इसका व्यास 12 किलोमीटर (7.5 मील) है. इसका मतलब है-आतंक/ भय (terror/dread). यह पूरब में उगता है.

    वैज्ञानिक अनुसंधान (Scientific Research)

    मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है. इस वजह से इसपर खगोलविद अधिक ध्यान दे रहे है. मंगल पर चौदह अंतरिक्ष यान कार्यशील है.

    आठ इसके कक्षा में हैं. ये है- 2001 मार्स ओडिसी (2001 Mars Odyssey), मार्स एक्सप्रेस (Mars Express), मार्स टोही ऑर्बिटर(Mars Reconnaissance Orbiter), मावेन (MAVEN), भारत का मार्स ऑर्बिटर मिशन (Mars Orbiter Mission), एक्सोमार्स ट्रेस गैस ऑर्बिटर (ExoMars Trace Gas Orbiter), होप ऑर्बिटर (Hope orbiter) और तियानवेन-1 ऑर्बिटर (Tianwen-1 orbiter).

    छह अन्य इसके सतह पर हैं. ये है- इनसाइट लैंडर (the InSight lander), मार्स साइंस लेबोरेटरी क्यूरियोसिटी रोवर (the Mars Science Laboratory Curiosity rover), पर्सवेरेंस रोवर (the Perseverance rover), इनजेनिटी हेलिकॉप्टर(the Ingenuity helicopter), तियानवेन-1 लैंडर (the Tianwen-1 lander), और ज़ूरोंग रोवर (the Zhurong rover).

    5. बृहस्पति ग्रह (The Jupiter Planet in Hindi)

    सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति दुरी के मामले में सूर्य सेे पांचवे स्थान पर स्थित है. इसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवा भाग तथा अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुणा व पृथ्वी से 38 गुणा है. इसके चारो तरफ गैस का एक धुंधला छल्ला भी है. यह चपटा अंडाकार आकृति (oblate spheroid) का है. रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था. पृथ्वी से देखने पर, यह चन्द्रमा और शुक्र के बाद तीसरा सबसे अधिक चमकदार पिंड है. इसे देवताओं का ग्रह भी कहा जाता है.

    जुपिटर ग्रह हाइड्रोजन व हीलियम गैस से बना है. हीलियम इसके द्रव्यमान का 25 फीसदी व आयतन का 10 फीसदी है. इसके केंद्र में थोड़ा सा मात्रा ठोस अवयवों की भी है. यह जितना सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करता है. उससे अधिक अपने तेज घूर्णन से उत्पन्न कर देता है.

    बृहस्पति का गुरुत्वकरण काफी अधिक है. इससे सौर मंडल को अपना वर्तमान रूप प्राप्त करने में मदद मिली है. क्षुद्रग्रह बेल्ट में किर्कवुड अंतराल (Kirkwood gaps) का मुख्य कारण बृहस्पति है. बृहस्पति से धरती के तुलना में 200 गुणा अधिक आकाशीय पिंड व टुकड़े टकराते है. बृहस्पति को सौर मंडल का वैक्यूम क्लीनर (Vacuum Cleaner), भी कहा जाता है.

    उपग्रह (Satellites of Jupiter in Hindi)

    बृहस्पति के 80 ज्ञात प्राकृतिक उपग्रह हैं. इनमें से 60 का व्यास 10 किमी से कम है. इसके चार सबसे बड़े उपग्रह आयो, यूरोपा, गेनीमेड, और कैलिस्टो (IO, Europa, Ganymede, and Callisto) हैं. इन्हें “गैलीलियन चंद्रमा” भी कहा जाता है. साफ़ रात में इन्हें दूरबीन से देखा जा सकता है.

    6. शनि ग्रह (Saturn Plant in Hindi)

    गैसीय दानव शनि ग्रह बृहस्पति के बाद सौर मंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है. यह आयतन में पृथ्वी से 95 गुणा बड़ा है. इसकी त्रिज्या, 58,232 किलोमीटर (36,183.7 मील) है, जो पृथ्वी से साढ़े-नौ गुणा बड़ी है. पृथ्वी से यह धुंधला पीला-भूरा दिखता है. बृहस्पति और शनि सौर मंडल का सौर मंडल में सभी ग्रहों के द्रव्यमान का 92% हिस्सा हैं. शनि भी अन्य तीन गैसीय (बाह्य) ग्रहों के भांति अंडाकार चपटा है. सैटर्न (Saturn) नाम “धन और कृषि के रोमन देवता” और “बृहस्पति के पिता” के नाम पर रखा गया है.

    बर्फ और चट्टान के टुकड़ों से बने 12 सुंदर छल्लों से सुशोभित शनि, ग्रहों में अद्वितीय है. यह एकमात्र ऐसा ग्रह नहीं है, जिसके छल्ले हैं. लेकिन कोई भी अन्य ग्रह शनि जितना शानदार या जटिल नहीं है. यह सूर्य से औसतन 1.4 बिलियन किलोमीटर (886 मिलियन मील) या 9.5 खगोलीय इकाई की दुरी पर स्थित है.

    शनि पर एक दिन 10.7 का होता है. यह सौर मंडल में दूसरा सबसे छोटा दिन है. इसे सूर्य का परिक्रमा पुरा करने में लगभग 29.4 पृथ्वी वर्षों (10,756 पृथ्वी दिनों) का समय लगता है. इसकी धुरी अपने अक्ष पर 26.73 डिग्री झुकी हुई है, जो पृथ्वी के 23.5 डिग्री झुकाव के समान है. इसलिए कहा जा सकता है कि पृथ्वी की तरह, शनि ग्रह में भी ऋतुओं का परिवर्तन होता है.

    कहा जाता है कि शनि ग्रह के साथ ही बृहस्पति, यूरेनस और नेपच्यून में हीरों की बारिश (Rain of Diamonds) होती है. इसके उत्तरी अक्षांश में ऐसे बादल पाए जाते है, जो बहुमूल्य रत्नों का बारिश करते है. इसे मोतियों की माला (sting of pearls) कहा जाता है.

    शनि ग्रह का वातावरण (Atmosphere of Saturn Planet in Hindi)

    इस ग्रह का वायुमंडल 96.3% हाइड्रोजन और 3.25% हीलियम अणु के रूप में है. इसके वायुमंडल में मीथेन (CH4), अमोनिया (NH3), हाइड्रोजन ड्यूटेराइड (HD) व इथेन (C2H6) गैसीय रूप में है. बर्फ के एनॉन के रूप में अलप मात्रा में अमोनिया (NH3), जल (H2O) और अमोनियम हाइड्रोसल्फाईड (NH4SH) भी मौजूद है.

    शनि के वायुमंडल में नेप्च्यून के बाद सबसे तेज तूफ़ान 1,800 किमी/घंटा से वॉयेजर यान ने रिकॉर्ड किया है. इस ग्रह पर बादल भी बनते है.

    अमोनिया के बादलों से बना सबसे ऊपर दिखाई देने वाला बादलों का सतह (Cloud Deck), “क्षोभमंडल के शीर्ष (tropopause)” से लगभग 100 किलोमीटर नीचे पाया जाता है. यहाँ का तापमान -250°C होता है. इसके “क्षोभमंडल (troposphere)” में तापमान लगभग -130°C से लेकर +80°C तक होता है. ऊंचाई में परिवर्तन के साथ इन बादलों के रासायनिक व भौतिक बनावट में बदलाव आता है.

    अमोनियम हाइड्रोसल्फाइड बादलों से बना दूसरा क्लाउड डेक (बादलों का सतह), ट्रोपोपॉज़ यानि क्षोभमंडल के शीर्ष से लगभग 170 किलोमीटर नीचे पाया जाता है. यहाँ तापमान -70°C होता है.

    पानी के बादलों से बना सबसे निचला बादल डेक, ट्रोपोपॉज़ से लगभग 130 किलोमीटर नीचे पाया जाता है, जहाँ तापमान लगभग 0°C (पानी का हिमांक के बराबर) होता है.

    शनि ग्रह के छल्ले (The rings of Saturn Planet in Hindi)

    नासा (NASA) के वॉयेजर (Voyager) यान ने 1980 में ये पता लगाया कि शनि के भूमध्य रेखा के चारों तरफ छल्ले है. ये कुछ सौ लाख साल पहले बने है. ये छल्ले (वलय) बर्फ व थोड़ी मात्रा में चट्टानी मलबा और धूल से बने है, जो 6,630 किमी से लेकर 1,20,700 किमी की ऊंचाई पर फैले है. शनि की सुंदरता में ये छल्ले चार-चाँद लगाते है.

    दो अवधारणाओं के अनुसार, शनि के छल्ले या तो चाँद के कचरे या फिर मूल नीहारिकीय के कचरे, से बने है. इसके 9 सतत मुख्य वलय और 3 असतत चाप है. ये वलय-तंत्र का निर्माण करते है. इसके छल्ले 93% जल व 7% कार्बन से बना है. थोड़ी मात्रा में धूलकण व अन्य अवयव भी इसके बनावट में शामिल है.

    शनि ग्रह की संरचना (Structure of Saturn Planet in Hindi)

    लगभग 4.5 अरब साल पहले गुरुत्वाकर्षण से शनि के आसपास के इलाके के गैस व धूलकण एक साथ इकठ्ठा हो गए. इससे शनि के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई. शनि अपने वर्तमान स्वरुप में, लगभग 4 अरब साल पहले आया था.

    शनि के वातावरण और केंद्र में हाड्रोजन एवं हीलियम की मात्रा अलग-अलग अनुमानित की गई है. शनि मुख्यतः एक गैसीय गोला है, इसलिए पृथ्वी के भांति इसके आंतरिक संरचना को हिस्सों में नहीं बांटा जा सकता. हालाँकि, इसका केंद्र का छोटा हिस्सा बृहस्पति के भांति ठोस है. इसके केंद्र का घनत्व पृथ्वी के केंद्र से अधिक है.

    यह ग्रह मुख्यतः हाइड्रोजन और हीलियम से बना है. ज्ञात तथ्यों के अनुसार, सूर्य भी इन्हीं दो तत्वों से बना है. शनि में कम मात्रा में अमोनिया, एसिटिलीन, ईथेन, प्रोपेन, फॉस्फीन, मीथेन, और पानी भी पाए गए हैं. अत्यधिक दवाब के कारण इसके केंद्र में थोड़ी लौह-निकल और चट्टान (सिलिकेट यौगिक) ठोस अवस्था में जमा है.

    शनि के वातावरण का अधिकांश हिस्सा यानि, हाइड्रोजन गैस दबाव बढ़ने पर धीरे-धीरे गहराई के साथ तरल में बदल जाती है. द्रव हाइड्रोजन के नीचे भारी द्रव हीलियम होता है. शनि के कोर में अति-गहराई में अत्यधिक दवाब के कारण हाइड्रोजन, तरल धातु हाइड्रोजन में बदल जाता है. ठोस हिस्सा हाइड्रोजन व हीलियम के पतले परत से घिरा रहता है. इसके चट्टानी कोर का द्रव्यमान, पृथ्वी के द्रव्यमान का लगभग 9–22 है.

    केंद्र का धात्विक हाइड्रोजन, इसके चुम्बकीय क्षेत्र को जन्म देता है. लेकिन यह पृथ्वी के तुलना में काफी कमजोर होता है.

    इसका लगभग पुरा हिस्सा द्रव व गैस के रूप में है. शनि हमारे का औसत घनत्व पानी से कम है और सभी ग्रहों में सबसे कम सघन है. यह सौर मंडल का एकमात्र ऐसा ग्रह है. इसलिए इसपर टहलना नामुमकिन है. इसका केंद्र का ताप 11,700°C है. इसलिए यह सूर्य से प्राप्त ऊर्जा से 2.5 गुणा विकिरण के रूप में अंतरिक्ष में छोड़ता है.

    शनि ग्रह के चन्द्रमाएँ (The moons of Saturn Planet in Hindi)

    टाइटन, शनि का सबसे बड़ा और सौर मंडल का दूसरा सबसे बड़ा चंद्रमा है. यह बुध ग्रह से भी बड़ा है और सौर मंडल में वायुमंडल वाला एकमात्र चंद्रमा है. शनि के अब तक कुल 83 चन्द्रमाएँ खोजे जा चुके है, जिनमें 53 का नामकरण किया जा चुका है. 40-500 मीटर आकर के सैकड़ों उपचन्द्रमाएँ शनि के छल्लों में है. इसके अत्यधिक चंद्रमाओं के कारन, इसे छोटा सौर मंडल (Mini Solar System) भी कहा जाता है.

    शनि के पैंडोरा (Pandora) और प्रोमेथियस (Prometheus) उपग्रह छल्लों के पहरेदार के रूप में काम करते है. ये शनि के छल्लों को शनि से दूर छिटकने से रोकते है. पैन (Pan) और एटलस (Atlas) उपग्रह, शनि के वलयों में कमजोर व रैखिक घनत्व तरंगों में ढालते है.

    हाइपरियन (Hyperion), शनि का एक ऐसा उपग्रह है जिसका आकार असामान्य है. यह 13 दिन में अपने अक्ष पर घूमता है. इसका घूर्णन गति व परिक्रमण पथ भी अनियमित है.

    हाइपरियन (Hyperion)
    हाइपरियन (Hyperion)

    शनि के अंतरिक्ष कार्यक्रम (Space Programmes on थे Saturn Planet in Hindi)

    इस ग्रह ग्रह पर पायनियर 11 और वायजर्स 1 और 2 मिशन सफल रहा है. लेकिन कैसिनी ने 2004 से 2017 तक 294 बार शनि की परिक्रमा की और शनि पर सबसे सफल मिशन रहा है. शनि पर जीवन सम्भव नहीं है. लेकिन इसके टाइटन व कुछ अन्य चंद्रमाओं पर जीवन सम्भव होने की संभावना है.

    7. अरुण ग्रह (The Uranus Planet in Hindi)

    सूर्य से दुरी के अनुसार सातवां; व्यास के अनुसार तीसरा व द्रव्यमान से चौथा सबसे बड़ा ग्रह अरुण ग्रह या युरेनस (Uranus) है. सौर मंडल में बृहस्पति और शनि ही अरुण से बड़े है. अरुण, पृथ्वी से 14.5 गुणा अधिक द्रव्यमान का व 63 गुणा बड़ा है. यह सूर्य से 3 अरब किलोमीटर (20 खगोलीय इकाई) है. यह अपने अक्ष पर 97.77 डिग्री झुका है, इसलिए इसे “लेटा हुआ ग्रह” भी कहते है. अरुण “सौर मंडल का सबसे अजीब और रहस्यमय ग्रह” है.

    अरुण ग्रह की खोज 13 मार्च 1781 को विलियम हर्शेल (William Herschel) ने की थी. यह सौर मण्डल का पहला ग्रह है, जिसे टेलिस्कोप (Telescope) की मदद से खोजा गया था. इससे पहले, इसे प्राचीन समय से तारा माना जाता था. खगोलविद जोहान एलर्ट बोडे (Johann Elert Bode) के प्रेक्षण के आधार पर इसे ग्रह की श्रेणी में रखा गया था. इन्ही के सिफारिश पर इस गृह का नाम आसमान के ग्रीक देवता, युरेनस (Uranus) रखा गया था.

    इस ग्रह व वरुण में गैस के साथ-साथ बर्फ के टुकड़ों की अधिकता है, इसलिए दोनों को “बर्फ़ीला गैसीय दानव” भी कहते है. मीथेन गैस की अधिकता, तापमान और हवा के कारण अरुण पर हीरे की बारिश होती है.

    वरुण जहां चमकदार नीला दिखाई देता है, वहीं अरुण का हल्का नीला रंग उसके वायुमंडल में मौजूद धुंध के कारण होता है. यूरेनस का नीला-हरा रंग वातावरण में मौजूद मीथेन गैस के कारण है. इसलिए, इसे हरा ग्रह (Green Planet) भी कहा जाता है.

     इन दोनों ग्रहों में द्रव्यमान, आकार और वायुमंडलीय रचना में लगभग समान है. इसलिए इन्हें सहोदर अथवा जुड़वा भाई (Twins) कहा जाता है. यूरेनस (अरुण) अपने पड़ोसी भाई नेपच्यून (वरुण) की तुलना में व्यास में थोड़ा बड़ा है, लेकिन द्रव्यमान में छोटा है. अरुण ग्रह, शनि के बाद दूसरा सबसे कम घना ग्रह है.

    अरुण ग्रह का गति व वलय (The motion and rings of the Uranus Planet in Hindi)

    शुक्र ग्रह के साथ ही अरुण ग्रह का भी घुर्णन दक्षिणावर्त यानि पूरब से पश्चिम (Anti-clockwise) है. अरुण अपना एक घुर्णन 17 घंटे 14 मिनट में पुरा करता है. लेकिन इसका एक दिन या एक रात 42 पृथ्वी-वर्षों के बराबर होता है. मतलब इसे सूर्य का परिक्रमा पुरा करने में 84 वर्ष लगता है.

    लम्बे दिन व रात के कारण अरुण का मौसम अजीब रहता है. इसलिए यहाँ 900 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से तूफ़ान भी चलती है. यहाँ सूर्य का प्रकाश पहुँचने में पृथ्वी से 20 गुणा अधिक समय, यानि 2 घंटे 40 मिनट लगता है.

    अन्य गैसीय ग्रहों के भांति इसके भी चारो ओर 9 मुख्य छल्ले (वलय) है. नासा के अनुसार, बढ़ती दूरी के क्रम में इन छल्लों को जेटा, 6, 5, 4, अल्फा, बीटा, एटा, गामा, डेल्टा, लैम्ब्डा, एप्सिलॉन, नु और म्यू कहा जाता है. इनमें कुछ बड़े वलय महीन धूल की पेटियों से घिरे होते हैं. इनमें पांच मुख्य का नाम अल्फ़ा, बीटा, गामा, डेल्टा व ईप्सिलोन है.

    अरुण ग्रह के प्राकृतिक उपग्रह (The natural satellites of Uranus planet in Hindi)

    यूरेनस के 27 ज्ञात उपग्रह है. इसके चंद्रमाओं (उपग्रहों) का नामकरण शेक्सपियर (William Shakespeare) के रचना “ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम” (A Midsummer Night’s Dream) और अलेक्जेंडर पोप (Alexander Pope) के रचना “द रेप ऑफ़ द लॉक” (The Rape of the Lock) के पात्रों के नाम पर हुई है. अन्य ग्रहों के उपग्रह का नाम ग्रीक या रोमन पौराणिक कथाओं के पात्रों से लिया गया है.

    अरुण ग्रह के सबसे बड़े दो उपग्रहों की खोज शेक्सपियर ने ही की थी. अगले 10 उपग्रहों की खोज, इसके ऊपर से निकलते समय वॉयजर 2 यान ने साल 1986 में की. इन 10 उपग्रहों का आकार 26 से 154 किमी है. अरुण के अन्य चांदों का खोज हब्बल टेलिस्कोप (The Hubble Telescope) के जरिए हुई है.

    हब्बल टेलिस्कोप द्वारा खोजे गए अरुण के चंद्रमाओं का आकार काफी छोटा है. ये 12 से 16 किलोमीटर चौड़े है.

    यूरेनस के सभी आंतरिक चंद्रमा लगभग आधा पानी बर्फ और आधा चट्टान से बने है. बाहरी चंद्रमाओं की संरचना अज्ञात बनी है. लेकिन इनकी बनावट संभावित रूप से क्षुद्रग्रह की भांति हैं.

    इसके पांच सबसे बड़े उपग्रह हैं:-

    (मिरांडा (Miranda in Hindi)

    साल 1948 में खोजा गया यह उपग्रह आकर में सिर्फ 470 किमी बड़ा है. यह पांचों सबसे बड़े उपग्रहों में सबसे छोटा है.

    एरियल (Ariel in Hindi)

    1,157 किमी लंबा इस उपग्रह की खोज साल 1851 में हुई थी. यह अरुण का सबसे चमकीला उपग्रह है. इसका सतह उबड़-खाबड़ है. इसमें अनेक छोटे-बड़े गड्ढें है, इससे पता चलता है कि यहाँ उल्कापिंड की बारिश हुई है.

    ऊम्ब्रियल (Umbriel in Hindi)

    इसकी खोज एरियल के साथ ही हुई है. यह 1,170 किमी बड़ा है. यह अरुण का सबसे कम चमकीला उपग्रह है. इसलिए इसे “अरुण का डार्क उपग्रह” भी कहते है. यह बर्फ से बना है. इसमें भी एरियल की भांति गड्ढे पाए गए है.

    टाइटेनिया (Titania in Hindi)

    यह अरुण का सबसे बड़ा प्राकृतिक चन्द्रमा है. इसका व्यास पृथ्वी के चन्द्रमा से आधा यानि तकरीबन 1,576.8 किमी है. इसकी खोज अरुण के ही खोजकर्ता, विलियम हर्शेल ने साल 1787 में की थी.

    ओबेरोन (Oberon in Hindi)

    टाइटेनिया के साथ खोजा गया यह उपग्रह अरुण का दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह है. वॉयेजर यान जनवरी 1986 में इसके पास से गुजरा था व इसकी तस्वीर ली थी. फिर 1987 में अन्य उपग्रहों के साथ इसका पता चला था. यह आधा चट्टान व आधा बर्फ से बना है. इसपर 6 किलोमीटर ऊँचा पर्वत भी है. “ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम” उपन्यास के राजा के नाम पर इसका नामकरण हुआ है.

    अरुण ग्रह की संरचना, बनावट और वातावरण (The construction, structure and atmosphere of the Uranus planet in Hindi)

    सौर मंडल के साथ ही लगभग 4.5 अरब साल पहले गुरुत्वकर्षण बल से अरुण ग्रह अस्तित्व में आया था. ग्रह के द्रव्यमान का अधिकांश (80% या अधिक) एक छोटे चट्टानी कोर के ऊपर “बर्फीले” सामग्री – पानी, मीथेन और अमोनिया के गर्म घने तरल पदार्थ से बना है. इसके कोर का अधिकतम तापमान 9,000 डिग्री फ़ारेनहाइट (4,982 डिग्री सेल्सियस) तक है.

    गैसीय अरुण ग्रह का कोई सतह नहीं है. अन्य बृहस्पतिय ग्रहों का भी लगभग यही हाल है. इसमें गैस के अलावा तरल पदार्थ घूर्णन करते है. इसके वातावरण में मुख्यतः हाइड्रोजन व हीलियम है. मीथेन, पानी व अमोनिया की भी अल्प मात्रा इसपर है.

    यह सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमा पुरा करने में 84 पृथ्वी वर्ष का समय लगाता है. यहाँ 42 साल का दिन और 42 साल का रात होता है. इसका कारण इसका अक्षीय झुकाव 98 डिग्री के करीब होना है. इस वजह से इसका एक ध्रुव या पोल (Pole) 42 सालों तक सूर्य के तरफ रहता है व दूसरा सूर्य से छिपा रहता है.

    जिस ध्रुव पर सूर्य प्रकाश होता है, वहां दिन और जहाँ नहीं होता है वहां रात होती है. इसके उस हिस्स्से में ठंड का मौसम होता है जहाँ रात होता है और दिन वाले हिस्से में गर्मी का मौसम रहता है.

    सूर्य से सबसे दूर स्थित ग्रह वरुण है, लेकिन अरुण सौर मंडल का सबसे ठंडा ग्रह है. इसका न्यूनतम तापमान -224° सेल्सियस (49 केल्विन) है. यह तापमान ठीक ऐसा ही है जैसे शुक्र सूर्य से दुरी के मामले में दूसरे स्थान पर हैं, लेकिन पहले स्थान के बुध से अधिक गर्म है. अरुण का औसत तापमान -197° सेल्सियस है.

    8. वरुण ग्रह (The Neptune Planet in Hindi)

    यह ग्रह सूर्य से आठवें स्थान और सूर्य से सबसे दूर, 30.1 खगोलीय इकाई या 4.50 अरब किमी (औसतन), पर स्थित है. इसपर सूर्य-प्रकाश पहुँचने में 4 घंटे लगते है. अत्यधिक दुरी के कारण यहां दोपहर में भी सूर्य पृथ्वी के गोधूलि बेला की भांति प्रकाश फैलाता है. वरुण व्यास के आधार पर चौथा सबसे बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है. इसका द्रव्यमान अरुण से थोड़ा ज्यादा और पृथ्वी से लगभग 17 गुणा अधिक है.

    समुद्र के रोमन देवता का नाम नेप्च्यून (Neptune) है. इन्हीं के नाम पर वरुण ग्रह का नाम अंग्रेजी में नेप्च्यून (Neptune) रखा गया है. इसका निर्माण 80% हाइड्रोजन, 19% हीलियम और 1% अन्य गैसों से हुआ है.

    वरुण ग्रह की खोज (Discovery of the Neptune Planet in Hindi)

    गणितीय गणना के आधार पर खोजे जानेवाला यह पहला ग्रह है. अरुण को खोजे जाने के बाद इसके परिक्रमा पथ में कुछ गड़बड़ी का पता चला. जब अधिक पड़ताल की गई तो पता चला कि इसे निकट कोई अन्य ग्रह या पिंड है जिसके गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव वरुण पर हो था है. फिर 23 सितम्बर 1846 को टेलेस्कोप से वरुण खोजा गया. इस खोज के बाद अरुण के परिक्रमा पथ के गणना में आई गड़बड़ी ठीक हो गई.

    अबतक सिर्फ वॉयेजर-2 यान ही एकमात्र अंतरिक्ष यान जो वरुण के पास से गुजरा है. 25 अगस्त 1989 को यह वरुण के पास से गुजरा था. ठंडा होने के साथ-साथ अँधेरा भी इसकी विशेषता है. यह सुपरसोनिक तूफ़ान के लिए भी जाना जाता है.

    परिक्रमा और घूर्णन

    यह सूर्य के चारों तरफ एक परिक्रमा पुरा करने में 164.79 या करीब 165 पृथ्वी-वर्षों का समय लगाता है. इसका घुर्णनकाल 16 घंटा है. यह अपने अक्ष पर 28 डिग्री झुका हुआ है. परिक्रमण अवधि, अक्षीय झुकाव व घूर्णन अवधि के कारण इसके चारों मौसम 40 वर्षों से अधिक समय के होते है. 1846 में खोजे जाने के बाद साल 2011 में नेपच्यून ने सूर्य का एक परिक्रमा 165 साल में पुरा किया है.

    वरुण और यम (प्लूटो) का परिक्रमण-पथ एक दूसरे को काटते हुए गुजरते है. कभी-कभी वरुण, सूर्य से दुरी के मामले में बौना ग्रह प्लूटो से भी अधिक दूर होता है. ऐसा प्लूटो की अत्यधिक विलक्षण, अंडाकार आकार की कक्षा के वजह से होता है.

    प्लूटों का यह परिक्रमण पथ इसे हर 248 पृथ्वी वर्षों में 20 साल की अवधि के लिए नेप्च्यून की कक्षा में लाती है. इस परिवर्तन के बाद, प्लूटो बौना ग्रह, वरुण की तुलना में सूर्य के अधिक निकट आ जाता है. ऐसा हाल ही में, साल 1979 से 1999 के बिच हुआ था.

    एक-दूसरे के परिक्रमा पथ से गुजरने के बावजूद ये एक-दूसरे से नहीं टकराएंगे. चूँकि, वरुण जितने समय में सूर्य का तीन परिक्रमा करता है, उतने समय में यम सिर्फ दो परिक्रमा पुरा कर पाता है. दोनों के परिक्रमण में यही अंतर् इन्हें आपस में टकराने से रोकता है.

    वरुण की संरचना व बनावट (The structure and texture the Neptune of Hindi)

    इस ग्रह की त्रिज्या 24,622 किलोमीटर (15,299.4 मील) है. पृथ्वी के तुलना में इसका सतह 15 गुणा और चौड़ाई चार गुणा बड़ा है. वरुण का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा छोटे चट्टानी कोर के ऊपर स्थित पानी, मीथेन और अमोनिया से बना है. ये कोर पर घने गर्म द्रव या बर्फ के रूप में टिके है. बड़े ग्रहों में, नेपच्यून का घनत्व सबसे अधिक है.

    वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि वरुण के ठंडे बादलों के नीचे अत्यधिक गर्म पानी का महासागर हो सकता है. यह उबलता नहीं है क्योंकि, अविश्वशनिय अति उच्च दबाव इसके बुलबुलें को बाहर नहीं आने देता है.

    इसका वायुमंडल का ज्यादातर हाइड्रोजन, हीलियम और मीथेन से बना है. सौर मंडल में सबसे अधिक वायुमंडल में गतिय हलचल इसी ग्रह पर होती है. इसकी गति 2,000 किलोमीटर प्रति घंटा (1,200 मील प्रति घंटा) से भी अधिक हो जाता है. दूसरी ओर, पृथ्वी पर वायु की अधिकतम गति 400 किमी प्रति घंटा होता है. किसी अज्ञात कारण से यह अरुण (Uranus) से अधिक प्रकाशमान व चमकीला है.

    1989 में इसके दक्षिणी गोलार्ध में एक बड़ा अंडाकार तूफान दिखा था. इसे “ग्रेट डार्क स्पॉट” कहा गया, जिसमें पूरी पृथ्वी समा सकती थी. अब, ऐसे आकृति इस ग्रह पर बार-बार दिख जाते है.

    वरुण का चुंबकीय क्षेत्र की मुख्य धुरी ग्रह के घूर्णन अक्ष की तुलना में लगभग 47 डिग्री झुकी हुई है. लेकिन प्रत्येक घूर्णन के बाद इसमें अनियमित बदलाव देखने को मिलता है. इसका चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की तुलना में लगभग 27 गुना अधिक शक्तिशाली है.

    वरुण के उपग्रह (The satellites of the Neptune in Hindi)

    इसके 14 उपग्रह है, जिनमें ट्रिटॉन (Triton) सबसे बड़ा है. ट्रिटॉन की खोज वरुण की खोज से ठीक 17 दिन पहले, 10 अक्टूबर 1846 को विलियम लासेल (William Lassell) द्वारा की गई थी. वरुण का दूसरा सबसे बड़ा चाँद नेरेइड (Nereid) है. वरुण के नामकरण (Nomenclature) की परंपरा को ध्यान में रखते हुए; इसके उपग्रहों का नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं के विभिन्न छोटे समुद्री देवताओं और अप्सराओं के नाम पर रखा गया है.

    ट्रिटॉन को पोसाइडन (Poseidon) या वरुण का पुत्र भी कहा जाता है. यह वरुण से विपरीत दिशा में घूमता है. ये अनुमानित है कि ट्रिटॉन को वरुण द्वारा अपने कक्षा में आकर्षित किया गया है. इसका 80 फीसदी हिस्सा ठोस जमा हुआ नाइट्रोजन से बना है, इस वजह से इसका न्यूनतम तापमान माइनस 391 डिग्री फ़ारेनहाइट (माइनस 235 डिग्री सेल्सियस) तक पहुँच जाता है. यह धीरे-धीरे गर्म हो रहा है, जिसका कारण अज्ञात है.

    वरुण से बढ़ते दुरी के अनुसार इसके उपग्रहों का क्रम है- नायद, थलासा, डेस्पिना, गैलाटिया, लारिसा, एस / 2004 एन 1 (बेनाम), प्रोटीस, ट्राइटन, नेरीड, हलीमेडे, साओ, लाओमेडिया, सैमाथे और नेसो (Naiad, Thalassa, Despina, Galatea, Larissa, S/2004 N1 (Not officially named yet), Proteus, Triton, Nereid, Halimede, Sao, Laomedeia, Psamathe, and Neso).

    सौर मंडल के विभिन्न ग्रहों की स्थिति

    आकार के घटते क्रम में सौर मंडल के ग्रह

    1. बृहस्पति ग्रह (Jupiter)
    2. शनि ग्रह (Saturn)
    3. अरुण ग्रह (Uranus)
    4. वरूण ग्रह (Neptune)
    5. पृथ्वी (Earth)
    6. शुक्र ग्रह (Venus)
    7. मंगल ग्रह (Mars)
    8. बुध ग्रह (Mercury)

    द्रव्यमान के घटते क्रम के अनुसार सौर मंडल के ग्रह

    1. बृहस्पति (Jupiter)
    2. शनि ग्रह (Saturn)
    3. अरुण ग्रह (Uranus)
    4. मंगल ग्रह (Mars)
    5. पृथ्वी (Earth)
    6. शुक्र ग्रह (Venus)
    7. वरूण ग्रह (Neptune)
    8. बुध ग्रह (Mercury)

    घनत्व के घटते क्रम के अनुसार सौर मंडल के ग्रह

    1. शनि ग्रह (Saturn)
    2. अरुण ग्रह (Uranus)
    3. बृहस्पति ग्रह (Jupiter)
    4. वरूण ग्रह (Neptune)
    5. मंगल ग्रह (Mars)
    6. शुक्र ग्रह (Venus)
    7. बुध ग्रह (Mercury)
    8. पृथ्वी (Earth)

    परिक्रमा-अवधि के अनुसार घटते क्रम में ग्रह

    1. वरूण ग्रह (Neptune)
    2. अरुण ग्रह (Uranus)
    3. शनि ग्रह (Saturn)
    4. बृहस्पति ग्रह (Jupiter)
    5. मंगल ग्रह (Mars)
    6. पृथ्वी (Earth)
    7. शुक्र ग्रह (Venus)
    8. बुध ग्रह (Mercury)

    घटते क्रम में परिक्रमण-वेग के अनुसार ग्रह

    1. बुध ग्रह (Mercury)
    2. शुक्र ग्रह (Venus)
    3. पृथ्वी (Earth)
    4. मंगल ग्रह (Mars)
    5. बृहस्पति ग्रह (Jupiter)
    6. शनि ग्रह (Saturn)
    7. अरुण ग्रह (Uranus)
    8. वरूण ग्रह (Neptune)

    सौर मंडल के अन्य पिंड (Other celestial objects/ bodies of the Solar System in Hindi)

    ग्रहों के अलावा कई अन्य आकाशीय पिंड व टुकड़े सूर्य का परिक्रमा करते है. इन्हें क्षुद्रग्रह, बौना ग्रह, उल्का पिंड व पुच्छल तारों के रूप में विभाजित किया गया है.

    सौर मंडल का बौना ग्रह (The Dwarf Planets of Solar System in Hindi)

    बौने ग्रह वास्तव में छोटे ग्रह होते है. ये ग्रह की परिभाषा में पुरी तरह फिट नहीं बैठते है. इसलिए इन्हें “बौना ग्रह” कहा जाता है. बौने ग्रहों का क्षेत्रफल काफी कम होता है. ये ग्रहों के परिभाषा में किसी नियम का अपवाद होते है. इस वजह से इन्हें बौने ग्रह की श्रेणी में रखा जाता है.

    सौर मंडल के 5 ज्ञात बौने ग्रह हैं. इनका नाम प्लूटो (Pluto), सेरेस (Ceres), एरिस (Eris), ह्यूमिया (Haumea) और माकेमेक (Makemake) है.

    प्लूटो (यम) (Pluto Planet in Hindi)

    यह सौर मंडल का सबसे बड़ा ज्ञात बौना ग्रह है. इसकी खोज 1930 में अमेरिकी खगोलशास्त्री क्लाइड टॉमबौ ने की थी. इसका नाम अंडरवर्ल्ड के रोमन देवता (Roman God of Underworld) के नाम पर रखा गया है. इसे साल 2006 तक सौर मंडल के आखिरी छोर पर स्थित ग्रह माना गया.

    सूर्य के प्रकाश को यम तक पहुंचने में 5 घंटे का समय लगता है. अत्यधिक ठंड के कारन यहाँ कार्बन मोनोऑक्साइड के बर्फ मिलते है.

    15-24 अगस्त, 2006 को चेक गणराज्य की राजधानी प्राग में अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) द्वारा एक सम्मेलन आयोजित किया गया. इसमें 75 देशों के 2500 से अधिक खगोलविदों ने भाग लिया था. इसी दौरान ग्रहों की परिभाषा व मानक तय की गई. फिर इस परिभाषा में फिट न बैठने के कारण, यम को बौना ग्रह माना गया.

    इस तरह सौर मंडल के ग्रहों की संख्या 9 से घटकर 8 हो गई. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने इस सम्मेलन को अपमानजनक बताते हुए विरोध किया था.

    दरअसल, प्लूटों कभी वरुण के कक्षा के भीतर तो कभी बाहर से सूर्य की परिक्रमा करता है. यह आकार में भी काफी छोटा है. प्लूटों आकार में बुध का आधा व पृथ्वी के चन्द्रमा का एक-तिहाई है. इस वजह से इसे ग्रह की श्रेणी से निकाल दिया गया. इससे पहले यह सौर मंडल का सबसे छोटा ग्रह था. अब बुध है.

    यम के पाँच ज्ञात उपग्रह हैं. 1978 में खोजै गया शैरन (Charon) इसका सबसे बड़ा उपग्रह है. इसका व्यास यम का आधा है. 2005 में निक्स और हाएड्रा खोजा गया. स्टिक्स और कर्बेरॉस भी इसके उपग्रह है.

    एरिस (Eris in Hindi)

    एरिस के कारण ही प्लूटो का पुनर्वर्गीकरण हुआ. इसे 2005 में खोजा गया था. यह आकार में प्लूटो के बराबर है. इसलिए थोड़े समय के लिए इसे सौर मंडल का दसवां ग्रह माना गया.

    लेकिन, इसकी खोज के बाद खगोलविदों को ग्रहों को पुनर्भाषित करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसके लिए साल 2006 में खगोलविदों का प्राग सम्मेलन हुआ. फिर इसे और प्लूटों को बौने ग्रह की श्रेणी में डाल दिया गया.

    एरिस का नाम ग्रीक देवी एरिस के नाम पर रखा गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, रोमन देवताओं के बीच ट्रोजन युद्ध को इन्होंने ही भड़काया था.

    अधर्म की देवी व एरिस की बेटी “डायस्नोमिया” (Dysnomia) के नाम पर इस बौने ग्रह के एक मात्र ज्ञात चंद्रमा का नाम रखा गया है.

    सेरेस (Ceres in Hindi)

    इसे 1801 में खोजा गया था. यह क्षुद्र ग्रहों की पट्टी में अवस्थित है. यह सूर्य के सबसे नजदीक का बौना ग्रह है. सूर्य से इसकी दुरी लगभग 2.77 खगोलीय इकाई (414 मिलियन किमी या 257 मिलियन मील) है.

    ह्यूमिया (Haumea in Hindi)

    इसे 2003 में खोजा गया. साल 2008 में इसे “बौना ग्रह” माना गया. यह सौर मंडल में सबसे तेजी से घूमने वाले पिंडों में से एक है. संरचना व आकार के कारण यह कुइपर बेल्ट के पिंडो से अलग है. यह लम्बे आकर का है. ह्यूमिया का आंतरिक हिस्सा बर्फ से घिरा ठोस चट्टान है.

    मेकमेक (Makemake in Hindi)

    इसका कोई चंद्रमा नहीं है. यह शायद बर्फीले; मीथेन, ईथेन और नाइट्रोजन से बना है. कई मायनों में यह प्लूटो के समान है. साल 2005 में खोजा गया यह आखिरी बौना ग्रह है.

    ह्यूमिया, मेकमेक और एरिस सूर्य से दुरी के अनुसार, वरुण ग्रह के बाद स्थित है. सूर्य का प्रकाश प्लूटो तक पहुंचने में 5 घंटे 30 मिनट लगता है.

    क्षुद्र ग्रह पट्टी (The Asteroids belt in Hindi)

    मंगल एवं बृहस्पति की परिक्रमण कक्षाओं के बीच हज़ारों-लाखों छोटे-छोटे पिंड सूर्य की परिक्रमा कर रहे है. ये क्षुद्रग्रह कहलाते है. खगोलविदों के अनुसार, क्षुद्रग्रहों के टुकड़े हैं करोड़ों वर्ष पहले विस्फोट से बिखर गए थे.

    इस बेल्ट (पट्टी) में स्थित ह्यूमिया, वॅस्टा, पैलस और हाइजिआ इनके कुल द्रव्यमान का आधा से भी अधिक है. इनका व्यास 400 किमी से अधिक है. ह्यूमिया इस पट्टी में स्थित बौना ग्रह है.

    क्षुद्रग्रहों के पृथ्वी व अन्य पिंडों से टकराने का अंदेशा बना रहता है. इसलिए अंतरिक्ष एजेंसियां इस चीज की लगातार निगरानी करते है.

    उल्का पिण्ड (The Meteorolds in Hindi)

    सौर मंडल के ये पिंड छोटे-छोटे टुकड़े है. ये कभी-कभी पृथ्वी के इतने निकट आ जाते हैं कि पृथ्वी के वायुमण्डल के साथ घर्षण से जलने लगते हैं. अक्सर, ये जलकर वयमंडल पर नष्ट हो जाते है. इससे धमाकेदार प्रकाश उत्पन्न होता है. इन्हें ही “टूटता हुआ तारा” (shooting stars) भी कहा जाता है. क्षुद्रग्रह पहले ग्रह के हिस्से थे. ये करोड़ों वर्ष पहले विस्फोट से बिखर गए थे.

    पुच्छल तारे (The Comets in Hindi)

    पुच्छल तारे अथवा धूमकेतु चट्टानों, बर्फ, धूल और गैस से बने होते हैं. ये अक्सर सूर्य के पास आने से जलकर भस्म हो जाते है. इस दौरान इनका भाप सूर्य से दूर यानि पीछे की तरफ लम्बी से पूँछ बनाती है. इस वजह से यह धरती से चमकता दिखता है.

    लघु अवधि के धूमकेतुओं की कक्षा दो सौ वर्ष से कम की होती है. लंबी अवधि के धूमकेतुओं की कक्षाएँ हजारों वर्षों में पुरी होती है. लघु अवधि के धूमकेतु कुइपर बेल्ट में उत्पन्न होते हैं, जबकि लंबी अवधि के धूमकेतु ऊर्ट बादल (Oort Cloud) में उत्पन्न माना जाता है.

    कई धूमकेतु समूह किसी एक के टूटने से बने हैं, जैसे क्रेट्ज़ संग्राज़र (Kreutz sungrazers). अतिपरवलयिक कक्षाओं (Hyperbolic Orbits) वाले कुछ धूमकेतु सौर मंडल के बाहर उत्पन्न हो सकते हैं. लेकिन इनकी सटीक कक्षाओं का निर्धारण करना कठिन है.

    कुइपर मेखला (Kulper Belt in Hindi)

    सौर मंडल के आखिरी ग्रह वरुण से दूर क्विपर या कुइपर मेखला स्थित है. क्षुद्र ग्रह की भांति, यह एक तश्तरी (Disc) के आकार की विशाल पट्टी है. इनमें कई बर्फ से बने हैं. प्लूटो इसी मेखला में स्थित है. यहाँ कई अन्य ग्रह या बौने ग्रह जैसे कई बड़े पिण्ड उपस्थित होने की संभावना है.

    यह पट्टी सूर्य से 30 से 50 AU (4.5 से 7.5 बिलियन किमी या 2.8 से 4.6 बिलियन मील) के बीच फैला हुआ है. कुइपर बेल्ट का कुल द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का केवल दसवां या सौवां हिस्सा माना जाता है. इसके कई पिंडों के उपग्रह भी है.

    शास्त्रीय कुइपर बेल्ट के सदस्यों को कभी-कभी “क्यूबवानोस” कहा जाता है.

    साल 2022 में सौर मंडल का अनोखा दृश्य (Solar Incident 2022 in Hindi)

    सोमवार (26 सितंबर 2022) को बृहस्पति, पृथ्वी के काफी निकट आ गया था. ये दोनों पिछले 59 वर्षों में एक-दूसरे के इतने करीब पहुंचे. इस दिन, बृहस्पति को पृथ्वी से देखने पर सूर्य के ठीक था. इस खगोलीय व्यवस्था को ‘विपक्ष’ (Opposition) कहा जाता है. इस दौरान बृहस्पति असामान्य रूप से चमकीला और बड़ा दिख रहा था.

    सौर मंडल का निर्माण (formation of the solar system in Hindi)

    माना जाता है कि सौर मंडल का निर्माण गैस और धूल की घूर्णन डिस्क की तरह होने से हुआ है. इसे प्रीसोलर नेबुला ( presolar nebula) कहा जाता है. इसकी अधिकांश गैस से सूर्य का निर्माण हुआ. ये गैसें हाइड्रोजन व हीलियम थे.

    धूल के कण एक साथ एकत्रित होने से आरंभिक ग्रहों (Proto Planet )बने. ये अपने गुरुत्वाकर्षण से सौर मंडल में बचे हुए गैस व धूलकण अपने और खींचने लगे. एक निश्चित आकर में पहुँचने के बाद ये प्रक्रिया बंद हो गई. नाइस मॉडल (the Nice Model) के अनुसार, अरुण व वरुण सूर्य के करीब बने हैं. बाद में ये सूर्य से दूर छिटक गए.

    सौर मंडल से जुड़े कुछ रोचक तथ्य (Some interesting facts about Solar System in Hindi)

    • ब्रह्मांड में लाखों आकाशगंगाएँ हैं और गुरुत्वाकर्षण बल से आपस में जुड़े है.
    • आकाशगंगाओं का अस्तित्व सबसे पहले 1924 में एडविन हबल द्वारा प्रदर्शित किया गया था.
    • एडविन हब्बल ने साबित किया कि आकाशगंगाएँ एक दूसरे से दूर जा रहे है. दूर जाने से इनके बीच का गुरुत्वाकर्षण कम हो जाता है. जिससे इनके दूर जाने की गति बढ़ जाती है..
    • ब्रह्माण्ड का तुलना एक फैलते गुब्बारे से किया जा सकता है.
      हमारी आकाशगंगा का नाम “मिल्की वे गैलेक्सी” (या आकाश गंगा) है. यह वृत्ताकार (Circular) है. इसमें 100 बिलियन से भी अधिक सितारे है. ये अपने अक्ष पर घूमते है. ये अपने आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर परिक्रमा करते हैं. सौर मंडल से सबसे नजदीकी आकाशगंगा एंड्रोमेडा (the andromeda) है.

    “सौर मंडल, इसके ग्रह और अन्य पिंड” पर 3 विचार

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