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सैटेलाइट फोन कैसे काम करता है?

जब भी किसी सेना के जवान, पुलिस या आपदा प्रबंधन कर्मी को सैटेलाइट फोन पर बातचीत करते हुए देखते हैं तो हमारे मन में इस फ़ोन के बारे में जानने की जिज्ञासा और उत्सुकता उमड़ पड़ती है. लेकिन, इंटरनेट या गूगल सर्च रिजल्ट के एक ही लेख में सम्पूर्ण जानकारी का अभाव होता है. ऐसे में हमें कई लेखों को पढ़कर अपनी जिज्ञासा शांत करना होता है. खासकर छात्र, जिनका समय काफी महत्वपूर्ण उनका बहुमूल्य समय व्यर्थ का ही बर्बाद होता रहता है. ऐसे में मैं आपका समय बर्बाद न करते हुए सैटेलाइट फ़ोन के बारे में सारी महत्वपूर्ण जानकारी एक साथ प्रस्तुत हैं.

सैटेलाइट फोन क्या होता हैं व कैसे करता हैं काम? (What is Satellite Phone and How it works in Hindi)

उपयोगकर्ता आम बोलचाल की भाषा में इसे ‘सैट फोन’ भी कहते है. यह फोन एक रिसीवर (जो उपयोगकर्ता के साथ ही होता है) के माध्यम से सीधे सैटेलाइट के माध्यम से जुड़ा फोन होता है. मतलब इससे संपर्क स्थापित करने के लिए किसी मोबाईल टावर की जरूरत नहीं होती है. मतलब इनके लिए अंतरिक्ष में स्थापित उपग्रह (Saitellite) टावर का काम करती है.

ये उपग्रह भूस्थिर कक्षा (आम तौर पर) में धरती के चारों ओर चक्कर लगाते रहते है. इस वजह से सैटेलाइट फोन से सम्पर्क किसी भी भी परिस्थिति व स्थान में आसानी से किए जा सकते है, जैसे बारिश वाली तूफानी मौसम में व सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्धक्षेत्र सियाचिन में.

हालांकि, काफी अधिक वजन वाले ये उपग्रह पृथ्वी से करीब 35,786 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होते है. इस वजह से दो सम्पर्ककर्ताओं के बीच संपर्क साधने में कुछ समय का देरी लग सकता हैं.

सैटेलाइट फोन की विशेषताएं (Features of Satellite Phone in Hindi)

  1. इसमें बुनियादी सुविधाएं हैं; लेकिन सेलफोन की तुलना में भारी होता है.
  2. व्यापक क्षेत्र कवरेज प्रदान करने में सक्षम.
  3. दोनों समान प्रदर्शन प्रदान कर सकते हैं. हालांकि, स्थलीय फोन सेवाओं की तुलना में, इसकी आवाज की गुणवत्ता कम हो सकती है और विलंबता के कारण संचार में देरी हो सकती है.
  4. एक ही सैटेलाइट फोन संख्या मिलता है और नहीं बदलता है.
  5. किसी स्थापना या सेटअप की आवश्यकता नहीं होती है.
  6. फोन के अन्य रूपों की तुलना में अधिक महंगा.
  7. बड़ा बाहरी एंटीना है और आंतरिक एंटेना नहीं होता है.
  8. इंटरनेट एक्सेस के लिए, कम डेटा बैंडविड्थ उपलब्ध है.
  9. उपयोग को स्थानीय सरकार से पूर्व अनुमति की आवश्यकता हो सकती है और; उनके उपयोग के संबंध में नियम हैं.
  10. आपदा प्रभावित क्षेत्रों में, जरूरतों के वक्त जुड़ने में उपयोगी होता है.

सैटेलाइट फोन व सामान्य मोबाईल फ़ोन में अंतर (Difference between Satellite Phone and Cellular Phone in Hindi)

आम मोबाईल फोन टावर से सिग्नल प्राप्त करता है. यह टावर के लोकेशन से ख़ास दुरी के बाद सिग्नल खो देता हैं. लेकिन, सैटेलाइट फ़ोन सीधे उपग्रह से जुड़े होते है, इसलिए सिग्नल खोने जैसे समस्या से इस दोचार नहीं होना पड़ता.

दरअसल, दूरसंचार उपग्रहों का समूह, धरती की कक्षा में चक्कर लगा रहे होते हैं. ये जमीन पर लगे रिसीवर को रेडियो सिग्नल भेजते हैं. ये रिसीवर (मतलब सेटेलाइट फ़ोन का सेट) सैटेलाइट फोन को सिग्नल ट्रांसमिट करता है, जिसके हम बात कर पाते है.

सियाचिन जैसे दुर्गम व सुदूर समुद्रों, जंगलों व किसी वीरान जगह में स्थित पर्यटक स्थल पर, जहाँ मोबाईल टावर नहीं होते है. उन इलाकों में मोबाइल फ़ोन सिग्नल रिसीव नहीं कर पाता व इससे संपर्क स्थापित नहीं हो पाता. लेकिन, सैटेलाइट फ़ोन सीधे उपग्रह से जुड़े होने के कारण अपना सिग्नल कभी नहीं खोता.

आपदा ग्रस्त इलाकों में भी आम मोबाईल फोन सेवा ठप्प होने की संभावना होती है. इस वजह से आपदा राहत व बचाव कार्य के लिए सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल किया जाता है.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 1999 का भूकंप, 11 सितंबर का हमला, 2006 का किल्हो बे भूकंप, 2003 का नॉर्थईस्ट ब्लैकआउट, तूफान कैटरीना, 2007 का ब्रिज ब्रिज पतन, 2010 चिली का भूकंप और 2010 हैती भूकंप जैसे कई आपदाओं के समय इन इलाकों में मोबाईल फोनों ने काम करना बंद कर दिया था या फिर; काफी प्रयास व देर से संपर्क हो पाई.

दरअसल, अधिकांश मोबाइल टेलीफोन नेटवर्क सामान्य समय के दौरान अपनी पूरी क्षमता या क्षमता के करीब काम करते हैं. व्यापक आपात स्थितियों के कारण होने वाले कॉल वॉल्यूम में बड़े स्पाइक अक्सर सिस्टम को ओवरलोड करते हैं, जब उनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है.

रिपोर्टर और पत्रकार भी इराक, अफगानिस्तान, आइसिस (ISIS) जैसे युद्ध क्षेत्रों में घटनाओं पर बातचीत करने और रिपोर्ट करने के लिए सैटेलाइट फोन का उपयोग करते रहे हैं.

स्थलीय सेल एंटेना और नेटवर्क प्राकृतिक आपदाओं से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं. लेकिन, सैटेलाइट फोन इस समस्या से बच सकती है और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान उपयोगी हो सकती है.

सैटेलाइट फोन नेटवर्क खुद ही भीड़भाड़ वाले होते हैं; क्योंकि उपग्रह और स्पॉट बीम अपेक्षाकृत कम आवाज वाले चैनलों के साथ बड़े क्षेत्र को कवर कर रहे होते हैं.

सटेलाइट फोन की कमियां (Cons of Satellite Phones in Hindi)

सैटेलाइट फोन में कभी नेटवर्क न खोने जैसे कुछ फायदे हैं तो इसके कुछ नुक्सान भी हैं. पहला है, आवाज साफ नहीं सुनाई देना, और दूसरा बातचीत को आसानी से ट्रेस किया जा सकना. हालाँकि, इस दिशा में सुधार के लिए कई काम किये गए हैं और इनकी सेवाओं में काफी सुधार हुआ हैं. लेकिन फिलहाल भी इस सेवा में काफी सुधार की संभावनाएं हैं.

ट्रैकिंग से बचने के लिए महत्वपूर्ण जानकारियों को कूटभाषा (कोडिंग) में साझा करने की सलाह दी जाती हैं. आपने सिनेमा में सेना का किरदार निभा रहे कलाकारों को इसी तरह बात करते सुना होगा.

इसकी तीसरी खामी हैं कि जब दो लोग सैटेलाइट फोन से आपस में जुड़े हो तो एक समय में एक ही व्यक्ति बोल सकता है. दोनों एक साथ नहीं बोल पाएंगे. सैटेलाइट फोन में एक बटन होता है, जिसे दबाने के पश्चात बोलना होता है. यदि दो लोगों में आपस में बात करते समय एक साथ इसे दबा दिया है तो; यह उस अवस्था में काम नहीं करता हैं. इसलिए एक व्यक्ति बोलने के बाद दूसरे को बोलने देने के लिए ‘ओवर’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं.

चौथी, लम्बी बातचीत के दौरान आवाज साफ़ सुनाई नहीं देती. इस वजह से बात करने में काफी असुविधा होती है. हालाँकि इससे बचने के लिए खुली जगह या वैसे स्थान, जहाँ रिसीवर ठीक से काम करता हो, वहां चले जाना चाहिए. कॉल का रिंग प्राप्त होते ही इसे रिसीवर को ठीक जगह पर ले जाने से बातचीत बेहतर हो पाती हैं.

इसकी एक और खामी इसकी कॉल व डाटा दरें काफी महंगा होना भी हैं.

पहले सैटेलाइट फोन से बातचीत व मेसेजेस का आदान-प्रदान हो सकता था. लेकिन आजकल यह इंटरनेट सुविधा भी मुहैया करवाने लगी हैं व सैटेलाइट फोन भी आकर्षक डिज़ाइन में यानी आम मोबाईल की तरह आने लगे है.

इन देशों में आम जनता के लिए है प्रतिबंधित (Restrictions on use of Sat Phone in Hindi)

भारत में सैटेलाइट फोन का ईस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ अधिसूचित कार्यों में या सरकार के विशेष अनुमति के बाद ही किया जा सकता हैं. भारत के अलावा बर्मा, क्यूबा, उत्तर कोरिया व रूस ने आम जनता व अनधुसूचित कार्यों के लिए इसके ईस्तेमाल पर आंशिक या पूर्ण रोक लगा रही है.

सेटेलाइट फोन से बातचीत की लागत (Cost of Conversation over Satellite Phone in Hindi)

आम फोन के तुलना में ये सैटेलाइट फ़ोन कॉल काफी महंगे होते है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कॉल दरें 10 रूपये से 150 रूपये (भारतीय मुद्रा) प्रति मिनट तक होती है.

भारत में सैटेलाइट फोन सेवा भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) द्वारा प्रदान की जाती हैं. इसकी कॉल दरें सरकारी यूजर्स के लिए 18 रुपये प्रति मिनट, वहीं कमर्शियल यूजर्स के लिए 25 रुपये प्रति मिनट हैं. इसकी इंटरनेशनल कॉल की दर 250 रुपये प्रति मिनट से भी ज्यादा है. वहीं, केंद्र सरकार सशस्त्र बलों को इस सेवा के उपयोग के बदले सब्सिडी भी मुहैया करवाती है. सरकारी एजेंसिया इसके अवैध ईस्तेमाल पर लगातार नजर रखती हैं.

सैटेलाइट फोन बनाने वाली कंपनियों में इरीडियम, ब्लॉकस्टार, थुराया और बीएसएनएल है. इरिडियम का सैटेलाइट फोन इस समय दुनिया में सबसे लोकप्रिय हैं. हालाँकि भारतीय कंपनी बीएसएनएल इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही हैं.

सैटेलाइट नेटवर्क के प्रकार (Types of Satellite Phone Network in Hindi)

यह फोन दो तरह के नेटवर्क पर काम करती हैं. पहला, कम कक्षीय ऊंचाई (Low Earth Orbit – LEO) पर स्थित अनेक उपग्रहों का जाल, जो समुद्री सतह से 640 से 1120 किलोमीटर (400 से 700 मील) की ऊंचाई पर स्थित होता हैं. ये उपग्रह 70-100 मिनट के कक्षीय समय में कम ऊंचाई पर तेज गति से पृथ्वी का चक्कर काटती हैं.

आज के समय में सेटेलाइट नेटवर्क के प्रौद्योगिकी में काफी सुधार आया है. इस वजह से एलन मस्क की कम्पनी स्पेसएक्स द्वारा संचालित स्टरलिंक सैटेलाइट इंटरनेट उपलब्ध करवा रही हैं. स्टरलिंक के अलावा भायासेट (एक्सीड) व एकस्टार भी सैटेलाइट इंटरनेट सेवा उपलब्ध करवा रही है. ये सभी सेवाएं LEO पर आधारित है.

दूसरी, यदि ये उपग्रह समुद्र तल से 2,000 से 35,786 किलोमीटर (1,243 से 22,236 मिल) के ऊंचाई पर स्थित हो तो इसे (Medium Earth Orbit – MEO)कहा जाता हैं.

तीसरा, भूस्थिर कक्षीय (Geostationary Orbit – GEO) सैटेलाइट संचार सेवा, जिसमें उपग्रह पृथ्वी के किसी स्थान पर इसकी सतह से करीब 36 हजार किलोमीटर की ऊंचाई व स्थिर रहता है व संचार सेवा उपलब्ध करवाता हैं. गति के मामले में यह LEO व MEO से धीमा होता है. हालाँकि इसे सबसे अन्य दो मुकाबले अधिक कारगर व सुरक्षित माना जाता हैं.

दुनिया का पहला स्मार्ट सैटेलाइट फोन (First Smart Satellite Phone in Hindi)

दुबई में नवम्बर, 2018 में लांच थुराया एक्स5 टच दुनिया का पहला स्मार्ट सैटेलाइट फोन है. यह एंड्राइड 7.1 पर आधारित था. फिलहाल, इसमें कई सुधार हो चुके है.

इस स्मार्ट सैटेलाइट फोन को यूएई की कंपनी थुराया ने बनाया था. इसमें कैमरा समेत स्मार्ट फोन के अन्य फीचर्स दिए गए है.

सिम आधारित स्मार्टफोन की तरह, इसमें भी २जी, ३जी व ४जी सिम को स्पोर्ट करने की क्षमता है. यह भी ब्लूटूथ व वाईफाई जैसे टेक्नोलॉजी को स्पोर्ट करता है. आज के समय में स्मार्ट सैटेलाइट फोन में कई सुधार हो गए है. यह लगभग सामान्य स्मार्टफोन की तरह हो गया है.

व्यावसायिक उपयोग की संभावनाएं (Bussiness Possibilities in Hindi)

अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देशों ने सैटेलाइट फोन संचार को आमजन के लिए खोलने की तरफ तेजी से कदम बढ़ा दिया हैं. इसकी प्रौद्योगिकी में तेजी हो रहे सुधार स्टारलिंक जैसे सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं को सफल बना दिया हैं. इसकी विश्वशनीय सेवा के कारण व इस दिशा में हो रहे उल्लेखनीय सुधार की वजह से, लोग टावर फ़ोन से सैटलाइट फ़ोन के तरफ आकर्षित हो रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध में स्टरलिंक ने अपनी सेवाएं आम लोगों को उपलब्ध करवाकर सैटेलाइट फोन के लम्बी लकीर खिंच दी हैं.

भविष्य में उपग्रहों को रिले करने के एक प्रस्तावित विकल्प में विशेष प्रयोजन सौर-संचालित अल्ट्रालाइट विमान सैटेलाइट दूरसंचार सेवा उपलब्ध करवाना है. यह लगभग 20 किलोमीटर की ऊंचाई पर (Ultra Low Earth Orbit – ULEO) ऑटोमेटिक कंप्यूटर नियंत्रण के तहत संचालित एक निश्चित जमीनी स्थान के ऊपर एक गोलाकार पथ पर पृथ्वी के चारों ओर उड़ान भरेगा. कम ऊंचाई पर स्थित विमानों से धरती की दुरी कम हो जाएगी व सैटेलाइट संचार की समय अवधि (लेटेंसी) में भी सुधार आएगा.

साल 2013 में सैटेलाइट इंटरनेट की स्पीड को आंके गए स्पीड से 140 फीसदी अधिक पाया गया. सैटेलाइट संचार के क्षेत्र में इस उपलब्धि ने वैज्ञानिकों व अनुसंधानकर्ताओं में नई ऊर्जा भर दी है.

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1 thought on “सैटेलाइट फोन कैसे काम करता है?”

  1. मोबाइल टावर कम करके सेटेलाइट कम्यूनिकेशन को बढ़ावा देना चाहिए ताकि मोबाइल टावरों के कारण जो DNA जनित बीमारियां हो रही है उनमें कमी आये

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