हम मरुस्थल या रेगिस्तान (मरुभूमि) का नाम आते ही रेत (बालू) से भरे बड़े इलाके का कल्पना करने लगते है. लेकिन ऐसा नहीं है. मरुस्थल या तो बड़ा चट्टानी इलाका या फिर बर्फ से ढका बड़ा इलाका भी हो सकता है, जहां कृषि संभव नहीं है. ऐसे इलाकों में जीवन दूभर होता है. इसी के कारण यहां न के बराबर वनस्पति पाई जाती है. साथ ही, इंसानों व अन्य जीवों का बसावट भी सिमित या शून्य होता है. इसके बावजूद भी दुनिया का एक बड़ा हिस्सा मरुस्थल है और यहां एक बड़ी आबादी भी रहती है. इसलिए मरुस्थल व इसके अन्य जानकारी जानना दिलचस्प है. तो आइए हम एक-एक कर इससे सम्बद्ध सभी तथ्य जानते है-
रेगिस्तान या मरुस्थल क्या होता है (What is Desert in Hindi)?
मरुस्थल या रेगिस्तान शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जहां प्रति वर्ष 25 सेंटीमीटर या 250 मिलीमीटर (10 इंच) से कम वर्षा होती है. ये धरती के बंजर जमीन होते है, जहां की भूमि सामान्य उपज देने में सक्षम नहीं होती है. लोग अक्सर “गर्म,” “सूखा,” और “निर्जन” आदि विशेषता का उपयोग मरुस्थल का वर्णन करने के लिए करते है. लेकिन ये तीन शब्द मरुस्थल को परिभाषित नहीं करता है.
हमारे धरती पर कुछ मरुस्थल काफी गर्म है तो कुछ काफी ठन्डे है. उदाहरण के लिए, 9 मिलियन वर्ग किलोमीटर (3.5 मिलियन वर्ग मील) क्षेत्रफल वाला विश्व का सबसे बड़ा गर्म रेगिस्तान सहारा है. हालाँकि, यह पृथ्वी पर सबसे गर्म स्थान नहीं है. यह गौरव अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया के मोजावे रेगिस्तान में डेथ वैली का है. यहां पृथ्वी पर उच्चतम तापमान 56.7°C (134.1 F) दर्ज किया गया हैं.
धरती का सबसे बड़ा ध्रुवीय मरुस्थल अंटार्कटिका है, जो 13 मिलियन वर्ग किलोमीटर (5 मिलियन वर्ग मील) में फैला हुआ है. अंटार्कटिका में आधिकारिक तौर पर पृथ्वी का सबसे कम तापमान, -89.2 C (-128.6 F), 21 जुलाई 1983 को दर्ज किया गया है.
हम “मरुस्थल” या “रेगिस्तान” शब्द से बालू के टीले वाले विशाल मैदान को याद करे है. लेकिन रेतीली टीले वाले मरुस्थल दुनिया का केवल 10 प्रतिशत रेगिस्तान हैं. कुछ रेगिस्तान पहाड़ी और अन्य चट्टान, रेत, या नमक के मैदानों के शुष्क विस्तार मात्र है.
इस तरह मरुस्थल का पारिस्तिथिकी भी विविधताओं से परिपूर्ण है. यहां वाष्पीकरण का दर वर्षा से कहीं अधिक होती है. इसलिए यहां के जीवों और पौधों को काफी कम जल उपलब्ध हो पाता है.
मरुस्थल हर महाद्वीप पर पाए जाते हैं और पृथ्वी के स्थलमंडल का लगभग पाँचवाँ हिस्सा इसी प्रकार का है. विपरीत पारिस्तिथिकी का होने के बावजूद 1 अरब लोग मरुस्थल में रहते है, जो पृथ्वी के आबादी का छठा हिस्सा है.
अधिकांश मरुस्थल वीरान और अनुपजाऊ होते है, जो मरुस्थलीय पौधों और जीवों का घर है. हजारों वर्षों से यहां रह रहे पौधों, जीवन व इंसानों ने खुद को इसके अनुकूल ढाल दिया है. इसलिए यहाँ के इंसानों का जीवन-शैली अलग होता है.
यहाँ पाए जाने वाले जीव व पेड़-पौधों में भी इसी मरुस्थल में जीवन के जीने के लिए कई जरुरी गुण व अंग विकसित हो गए है. इसी विविधता व अन्य विशेषताओं के आधार पर मरुस्थल को विभिन्न प्रकार में विभाजित किया जा सकता है.
सबसे बड़ा रेगिस्तान (The Largest Desert in Hindi)
पृथ्वी पर दो सबसे बड़े रेगिस्तान ‘ध्रुवीय’ क्षेत्रों में हैं. अंटार्कटिका महाद्वीप का लगभग सम्पूर्ण इलाका, जो की लगभग 5.5 मिलियन वर्ग मील है, दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान है. दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रेगिस्तान आर्कटिक ध्रुवीय रेगिस्तान है. यह अलास्का, कनाडा, ग्रीनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, फ़िनलैंड और रूस के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ है. इसका क्षेत्रफल लगभग 5.4 मिलियन वर्ग मील है. ये दोनों शीत मरुस्थल है. स्थलीय रेतीली व गर्म रेगिस्तान में अफ्रीका का सहारा सबसे बड़ा है.
मरुस्थल के उत्पत्ति का कारण (Reason of Desert evolution)
मरुस्थल के उत्पत्ति के कई कारण हैं. इनमें से कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
- विश्व के सभी रेगिस्तानों के 90% से अधिक क्षेत्र में वार्षिक वर्षा 10 इंच (250 मिमी) से कम होती है.
- भौगोलिक कारणों से भी इसका निर्माण होता है. कई बार एक पहाड़ या पठार अपने दूसरे तरफ वर्षा नहीं होने देता है. इससे मरुभूमि का जन्म होता है.
- कुछ वायु प्रवाह अत्यधिक गर्म और शुष्क होते हैं, जो पौधों को उगने से रोकते हैं.
- मानव गतिविधि से भी कुछ मरुस्थल बनते है. उदाहरण के लिए, जब पेड़ों को काट दिया जाता है, तो वर्षा की मात्रा कम हो जाती है, जिससे रेगिस्तान बन जाता है.
- धुप की कमी भी रेगिस्तान का निर्माण करते है. ऐसे मरुभूमि में जमीन पर बर्फ की परत जम जाती है, जहां कुछ ख़ास काई और लाइकेन के अलावा कोई भी अन्य पौधा नहीं पनप पाता है.
मरुस्थल का वर्गीकरण (Classification of Deserts in Hindi)
A. शुष्कता के कारणों के अनुसार
विश्व के मरुस्थलों को पाँच प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है- उपोष्णकटिबंधीय, तटीय, वर्षा छाया, आंतरिक और ध्रुवीय. इसके शुष्कता के कारणों के अनुसार यह विभाजन किया गया है.
1. उपोष्णकटिबंधीय मरुस्थल (Subtropical Deserts in Hindi)
इस तरह के मरुस्थल कर्क रेखा और मकर रेखा के निकट पाया जाने वाला शुष्क क्षेत्र है, जो विशाल वायुराशियों के संचरण से बनता है. इसे मध्य अक्षांशीय रेगिस्तान भी कहा जाता है. वे कर्क रेखा के साथ, भूमध्य रेखा के उत्तर में 15 से 30 डिग्री के बीच, या मकर रेखा के साथ, भूमध्य रेखा के 15 से 30 डिग्री दक्षिण के बीच पाए जाते हैं
भूमध्य रेखा के निकट गर्म और नम हवा ऊपर की ओर उठती है. ये हवा ऊपर उठकर ठंडी हो जाती है और भारी उष्णकटिबंधीय बारिश का कारण बनती है. इसके बाद इनका नमी समाप्त हो जाता है. इस दौरान यह ठंडी व शुष्क वायुराशि भूमध्य रेखा से दूर चली जाती है. जैसे-जैसे यह हवा उष्ण कटिबंध के पास पहुंचता है, हवा नीचे आती है और फिर से गर्म हो जाती है. नीचे की ओर आने वाली ये हवा गर्म व शुष्क होती है, जिसके कारण ये बादलों के निर्माण में बाधा डालती है. इसलिए नीचे की भूमि पर बहुत कम वर्षा होती है. कम वर्षा के कारण ही यह इलाका सूखा रहता है और मिटटी रेत में बदलकर रेगिस्तान का निर्माण करती है.
दुनिया का सबसे बड़ा गर्म रेगिस्तान, सहारा, उत्तरी अफ्रीका में एक उपोष्णकटिबंधीय मरुस्थल का उदाहरण है. सहारा रेगिस्तान लगभग संयुक्त राज्य अमेरिका के आकार का है. अन्य उपोष्णकटिबंधीय रेगिस्तानों में दक्षिणी अफ्रीका में कालाहारी रेगिस्तान और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में तनामी मरुस्थल शामिल हैं.
2. तटीय मरुस्थल (Coastal Desert in Hindi)
ठंडी महासागरीय धाराएँ तटीय मरुस्थल के निर्माण में योगदान करती हैं. समुद्र से स्थलीय किनारे की ओर बहने वाली हवा समुद्र के ठंडे पानी के संपर्क से ठंडी होकर तटीय इलाके में कोहरे की एक परत बनाती है. यह घना कोहरा ज़मीन पर छा जाता है. यद्यपि यहां आर्द्रता अधिक होती है, लेकिन वर्षा का कारण बनने वाली सामान्य वायुमंडलीय परिवर्तन यहां मौजूद नहीं होते है. इसलिए यहां वर्षा न के बराबर होता है. एक तटीय रेगिस्तान लगभग पूरी तरह से वर्षा रहित हो सकता है, या फिर भी कोहरे से गीला हो सकता है.
चिली के प्रशांत तट पर अटाकामा मरुस्थल तटीय रेगिस्तान का एक उदाहरण है. अटाकामा के कुछ क्षेत्र अक्सर कोहरे से ढके रहते हैं. लेकिन इस क्षेत्र में कई दशकों से वर्षा नहीं हुई हैं. वास्तव में, अटाकामा रेगिस्तान पृथ्वी पर सबसे शुष्क स्थान है. अटाकामा के कुछ मौसम केंद्रों ने कभी भी बारिश की एक बूंद भी दर्ज नहीं की है.
3. वृष्टि छाया रेगिस्तान (Rain Shadow Desert in Hindi)
इस प्रकार का मरुस्थल किसी पहाड़ या पर्वत श्रृंखला के पवनमुखी (downwind) पक्ष में स्थित होता है. जब नमी से भरी हवा पहाड़ों से टकराती है, तो यह ऊपर उठ जाती है और ठंडी हो जाती है. ये हवा ठंडी होने के कारण पानी या बर्फ का बरसात करती है. वर्षा के बाद, नमी रहित हवा पर्वत के दूसरी ओर, पवनमुखी पक्ष में उतरती है. यह हवा बहुत शुष्क होती है. इस नमी के कमी वाले हवा के कारण पवनमुखी पक्ष में बारिश नहीं होती है. इस तरह वृष्टि छाया का निर्माण होता है, जो इलाके को शुष्क व रेगिस्तानी बना देता है.
वृष्टि छाया रेगिस्तान दुनिया भर में पाए जाते हैं. कुछ प्रसिद्ध उदाहरणों में उत्तरी अमेरिका में अटलांटिक महासागर के तट पर स्थित चियापास रेगिस्तान, कैलिफ़ोर्निया और नेवादा में स्थित डेथ वैली और ऑस्ट्रेलिया में ग्रेट विक्टोरिया रेगिस्तान शामिल हैं.
नोट: डेथ वैली, उत्तरी अमेरिका का सबसे निचला और शुष्क स्थान है. यह सिएरा नेवादा पहाड़ों की वर्षा छाया क्षेत्र में स्थित है.
4. आंतरिक मरुस्थल (Interior Desert in Hindi)
महाद्वीपों के मध्य में पाए जाने वाले मरुस्थल, आंतरिक रेगिस्तान कहलाते है. इनके निर्माण का कारण नमी भरी हवाओं का इन इलाकों तक नहीं पहुंचना है. जब तटीय क्षेत्रों से वायुराशियाँ आंतरिक भाग तक पहुँचती हैं, तब तक वे अपनी सारी नमी खो चुकी होती हैं. आंतरिक मरुस्थल को कभी-कभी अंतर्देशीय रेगिस्तान भी कहा जाता है.
चीन और मंगोलिया में फैला गोबी रेगिस्तान, समुद्र से सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित है. गोबी तक पहुँचने वाली हवाएँ बहुत पहले ही अपनी नमी खो चुकी हैं. गोबी दक्षिण में हिमालय पर्वत की वर्षा छाया में भी है, जो इसकी शुष्कता को और भी बढ़ा देता है.
5. ध्रुवीय मरुस्थल (Polar Desert in Hindi)
ध्रुवीय मरुस्थलों में पानी बड़ी मात्रा में होता है. लेकिन इसका अधिकांश भाग साल भर ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों में बंद रहता है।के रूप में रहता है. इसलिए, लाखों लीटर पानी की मौजूदगी के बावजूद, पौधों और जानवरों के लिए वास्तव में बहुत कम पानी उपलब्ध होते है. अंटार्कटिका का लगभग पूरा महाद्वीप एक ध्रुवीय रेगिस्तान है, जहाँ बहुत कम वर्षा होती है. कुछ जीव अंटार्कटिका की ठंडी, शुष्क जलवायु का सामना कर सकते हैं, जैसे ध्रुवीय भालू.
B. वर्षापात के आधार पर मरुस्थल के प्रकार (Types of Desert on the basis of Rainfall in Hindi)
दुनिया में मरुस्थल की कई प्रकार की परिभाषाएँ और वर्गीकरण प्रणालियाँ हैं. अधिकांश वर्गीकरण वर्षा के दिनों की संख्या, वार्षिक वर्षा की कुल मात्रा, तापमान, आर्द्रता या अन्य कारकों के कुछ संयोजन पर निर्भर करते हैं. 1953 में, पेवेरिल मीग्स (Peveril Meigs) ने पृथ्वी पर रेगिस्तानी क्षेत्रों को उनके द्वारा प्राप्त वर्षा की मात्रा के अनुसार तीन श्रेणियों में विभाजित किया था.
पेवरील मिग्स का यह प्रणाली भी आज के समय में व्यापक रूप से स्वीकृत है. इसमें कम से कम 12 महीने लगातार वर्षा नहीं होने वाले क्षेत्र अत्यधिक शुष्क भूमि, 250 मिलीमीटर से कम औसत वार्षिक वर्षा वाले इलाके शुष्क भूमि और वर्षा 250 से 500 मिलीमीटर वार्षिक औसत वर्षा वाले क्षेत्र अर्धशुष्क भूमि मरुस्थल कहलाते है.
मरुस्थलीकरण (Desertification in Hindi)
मरुस्थलीकरण उपजाऊ भूमि के बंजर रेगिस्तान में बदलने की प्रक्रिया है. यह मुख्य तौर पर मरुस्थल की सीमा से लगे अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में होता है. लेकिन, मरुस्थलीकरण का प्राथमिक कारण मानवीय गतिविधियाँ हैं. इन गतिविधियों में पशुधन की अत्यधिक चराई, वनों की कटाई, कृषि भूमि की अत्यधिक खेती और खराब सिंचाई प्रथाएं शामिल हैं.
अत्यधिक चराई और वनों की कटाई से मिट्टी के अपरदन को रोकने वाले पेड़-पौधे नष्ट हो जाते हैं. परिणामस्वरूप, अपरदन के कारक, जैसे हवा और पानी, पोषक तत्वों से भरपूर ऊपरी मिट्टी को नष्ट कर देते हैं. अनुमानतः, हर साल लगभग 6 मिलियन वर्ग किलोमीटर (2.3 मिलियन वर्ग मील) मरुस्थलीकरण के कारण कृषि भूमि के कारण बेकार हो जाती है. कई देश मरुस्थलीकरण की दर को कम करने के लिए काम कर रहे हैं. हवा की ताकत को तोड़ने और मिट्टी को अपरदित होने से रोकने के लिए पेड़ और अन्य वनस्पतियाँ लगाई जा रही हैं.
मरुस्थलीकरण के उदाहरण (Examples of Deforestation in Hindi)
- 1950 और 1975 के बीच सहारा रेगिस्तान 100 किलोमीटर (39 मील) दक्षिण में खिसक गया.
- दक्षिण अफ्रीका हर साल 300-400 मिलियन मीट्रिक टन ऊपरी मिट्टी खो रहा है.
- दक्षिण अमेरिका के सबसे बड़े पेटागोनिया का मरुस्थल अत्यधिक चराई के कारण फैल रहे हैं. इस मरुस्थलीकरण के कारण अर्जेंटीना, चिली और बोलीविया के 30 प्रतिशत से अधिक घास के मैदान बंजर होने को है.
- मेडागास्कर में झूम खेती अपनाई गई. इसके कारण जंगल का एक बड़ा हिस्सा समाप्त हो गया. फिर यहां भयानक सूखा पड़ा और इस द्वीपीय राष्ट्र का मध्य पठार अब रेगिस्तान है.
- चाड झील सहारा रेगिस्तान के किनारे पर स्थित चार देशों: चाड, कैमरून, नाइजर और नाइजीरिया, के मीठे पानी का स्रोत है. आबादी बढ़ने से इस झील पर दवाब भी बढ़ गया है. 1960 के दशक के बाद से इस झील का आकार घटकर आधा रह गया है. इस मरुस्थलीकरण से मत्स्य-पालन और चरागाह भूमि को काफी नुकसान पहुंचा है.
- उत्तरी अमेरिका के विशाल मैदान खेती के गलत तरीकों और सूखे के कारण 1930 के दौर में धूल के मैदान में बदल गए.
मरुस्थलीकरण के इतिहास (Making of Deserts History in Hindi)
पुरातात्विक साक्ष्य बताते है कि आज जो क्षेत्र आज रेगिस्तान हैं, वे सदैव इतने शुष्क नहीं थे. उदाहरण के लिए, 8000 और 3000 ईसा पूर्व के बीच, सहारा की जलवायु बहुत हल्की व नम थी. जलवायु विज्ञानी इस अवधि को “हरित सहारा” कहते हैं.
आज सहारा के जो शुष्क, अनुत्पादक क्षेत्र हैं, उनके बीच में अतीत की बस्तियों के पुरातात्विक साक्ष्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. इस साक्ष्य में शैलचित्र, कब्रें और उपकरण शामिल हैं. जीवाश्मों और कलाकृतियों से पता चलता है कि नींबू और जैतून के पेड़, ओक और ओलियंडर एक समय सहारा में आम रूप से पाए जाते थे. हाथी, चिकारे, गैंडे, जिराफ जैसे जानवर और इंसान धारा से बने तालाबों और झीलों के पानी का उपयोग करते थे.
सहारा में तीन या चार अन्य नम अवधियाँ थीं. हाल ही में पाया गया है कि 25,000 साल पहले भी ऐसी ही हरी-भरी स्थितियाँ मौजूद थीं. नम अवधियों के बीच कई बार आज की तरह शुष्कता की अवधियाँ भी आईं.
सहारा नाटकीय जलवायु परिवर्तन वाला एकमात्र रेगिस्तान नहीं है. घग्गर नदी, जो अब भारत और पाकिस्तान में है, प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के शहरी क्षेत्र मोहनजोदड़ो के लिए एक प्रमुख जल स्रोत थी. समय के साथ, घग्गर ने अपना रास्ता बदल लिया और अब केवल बरसाती नदी के रूप में सिर्फ मानसून के मौसम में ही बहती है. मोहनजोदड़ो अब विशाल थार और चोलिस्तान रेगिस्तान का हिस्सा है.
इससे ये साबित होता है कि पृथ्वी के अधिकांश रेगिस्तान जलवायु परिवर्तन के दौर से गुजरते रहे है और यह आगे भी जारी रह सकता है.
मरुस्थल की विशेषताएं (Features of Deserts in Hindi)
- रेतीली मरुस्थल में नमी आमतौर पर इतनी कम होती है कि बादल बनाने के लिए पर्याप्त जल वाष्प मौजूद नहीं होता है. सूर्य की किरणें बादल रहित आकाश से टकराती हैं और भूमि को काफी गर्म कर देती हैं. ज़मीन हवा को इतना गर्म कर देती है कि हवा लहरों के रूप में ऊपर उठती है, जिसे नंगी आँखों से देखा जा सकता है. ये झिलमिलाती लहरें आंखों को भ्रमित कर देती हैं, जिन्हें मृगतृष्णा कहा जाता है.
- अत्यधिक उच्च तापमान रेतीली मरुस्थल की समान्य विशेषता है. इससे निर्जलीकरण और यहाँ तक कि मृत्यु का भी खतरा हो जाता है. रात में, ये क्षेत्र जल्दी ठंडे हो जाते हैं क्योंकि इनमें नमी और बादलों द्वारा प्रदान किए जाने वाले इन्सुलेशन की कमी होती है. तापमान 4°C (40°F) या उससे कम तक गिर सकता है.
- मरुस्थलों में 100 किलोमीटर प्रति घंटे (60 मील प्रति घंटे) की गति से हवाएँ चलती हैं. इसे अवरुद्ध करने के लिए वनस्पति का अभाव होता है. ऐसे में ये हवा पूरे महाद्वीपों और यहां तक कि महासागरों में रेत और धूल ले जा सकती है. इसी कारण सहारा मरुस्थल के बालू अमेरिका, अमेज़न व एशिया तक फ़ैल जाते है.
- मरुस्थलों में बालू के टीलों का बनना और बिखरना आम होता है. इनके एक जगह से दूसरे जगह उड़ने से धूल का बवंडर बनता है, जो समुद्री तूफानों के ठीक उल्टा होता है. यह गर्म बालू के कारण जमीन पर अधिक सक्रीय होता है.
- ‘बरचन’ जिसे ‘बरखान’ भी कहते हैं, हवा की क्रिया द्वारा निर्मित अर्धचंद्राकार रेत के टीले हैं. यह सभी रेतीली मरुस्थलों में सामान्य रूप से पाए जाते है.
- कई मरुस्थलों में खारे पानी की झीलें पाए जाते है, जिन्हें ‘प्लाया‘ कहा जाता है.
- मरुस्थलों में पानी की कमी होती है और यह जमीन में 30 से 120 मीटर नीचे मिलता है.
- मरुस्थलों में कई बार अचानक अतितीव्र वर्षा होती है. इसलिए ऐसे मौसम के दौरान पर्यटकों को यहाँ न आने की सलाह दी जाती है.
- कृषि का अभाव और शुष्क मौसम, मरुस्थलों का सामान्य विशेषता है.
मरुस्थल में मानव जीवन (Human Life in Deserts)
आज के समय में करीब एक बिलियन लोग मरुस्थल में रहते है. इन्होंने अपने रीती-रिवाज, जीवन पद्धति, पहनावा, भोजन और जीविका के तरीकों को मरुस्थल में जीवन जीने के अनुकूल ढाल लिया है. इसलिए यहाँ के लोग अत्यधिक निष्ठुर मौसम का सामना करते हुए भी जीने में सक्षम हो सकें.
पूरे मध्य पूर्व और मगरेब की सभ्यताओं ने अपने पहनावे को सहारा और अरब के रेगिस्तानों की गर्म, शुष्क परिस्थितियों के अनुरूप ढाल लिया है. इनके कपडे पुरे शरीर को ढकने वाले और हवादार होती है. अक्सर ये सफ़ेद रंग की होती है, जो प्रकाश को परावर्तित कर देती है. इन इलाकों में पहनी जाने वाली मोटी पगड़ी सर को धुप से बचने में अतिरिक्त मदद करती है.
मरुस्थल में मकान भी यहाँ के परिस्तिथियों के अनुकूल बनाए जाते है. दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका और उत्तरी मेक्सिको के प्राचीन अनासाज़ी लोगों ने सोनोरान रेगिस्तान की चट्टानी चट्टानों में विशाल अपार्टमेंट परिसरों का निर्माण किया था. ये चट्टानी आवास जमीन से दर्जनों मीटर ऊपर, मोटी, मिट्टी की दीवारों से बनाए जाते थे जो इन्सुलेशन प्रदान करते थे. इस वजह से घर के अंदर और बाहर के तापमान में काफी अंतर आ जाता था. जहाँ घर के अंदर सामान्य जैसा तापमान रहता था, वहीं बाहर का तापमान अत्यधिक गर्म या ठंडा होता था. इसकी छोटी व ऊँची खिड़कियाँ केवल थोड़ी रोशनी देती थीं और धूल और रेत को दूर रखने में मदद करती थीं.
भोजन और पानी की आवश्यकता ने कई रेगिस्तानी सभ्यताओं को खानाबदोश बना दिया है. ये अपना समय मोटे कपड़ो से बनाए तम्बू में गुजारते है. मध्य पूर्व और एशिया के रेगिस्तानों में ऐसे सभ्यता विकसित हुए है. खानाबदोश अक्सर घूमते रहते हैं ताकि उनकी भेड़-बकरियों के झुंडों को पानी और चरागाह मिल सके. जरुरत के सामान ऊंट जैसे जानवरों पर ढोया जाता है.
रेगिस्तानी जलवायु में मरूद्यान सदियों से पर्यटकों के लिए लोकप्रिय स्थान रहे हैं. पर्यटक इन इलाकों में मरुस्थल का दीदार करने आते रहते है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था के वृद्धि में सहायक है.
मरुस्थल में पानी के स्रोतों वाले इलाके मरूद्यान कहलाते है. यहां उगने वाले अंजीर, जैतून और संतरे रेगिस्तानी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती है. कई इलाकों में दूर के जलस्त्रोतों से नहर या पम्प द्वारा लाइ गई पानी से भी खेती होती है. राजस्थान के थार में इंदिरा गांधी नहर इसका एक उदाहरण है. दक्षिणपूर्वी कैलिफ़ोर्निया, मोजावे और सोनोरान, रेगिस्तान से बना है. यह पूर्व में कोलोराडो नदी से और उत्तर में सिएरा नेवादा से पिघली बर्फ से पानी प्राप्त करता है. इससे यहां कृषि, व्यापार समेत कई क्षेत्रों में तरक्की हुई है.
यहाँ के ग्रामीण इलाकों में दिन तपती है, लेकिन रात ठंडी होती है. इससे लोगों को राहत मिल जाती है. लेकिन शहरों में कंक्रीट की संरचनाएं रात को भी काफी देर तक गर्म बनाए रखती है. इससे शहरी मरुस्थलों में जीवन कठिन हो जाता है.
रेगिस्तानी वनस्पति और जीव (Desert’s Flora and Fauna)
बरसात के कमी के कारण मरुस्थल में जीवन के लिए बहुत कठिन होता है. लेकिन, कुछ जीव-जंतु ऐसे भी हैं जो यहां भी रह सकते हैं. इन जीव-जंतुओं ने मरुस्थल के अनुकूल होने के लिए कई तरह के अनुकूलन विकसित कर लिए हैं. रेगिस्तान में पाए जाने वाले कुछ जीव-जंतुओं में शामिल हैं:
- ऊंट: ऊंट रेगिस्तान का सबसे प्रसिद्ध जीव है. ऊंट लंबे समय तक बिना पानी के रह सकता है और इसकी गर्दन लंबी होती है ताकि यह रेगिस्तान के पेड़ों की पत्तियों तक पहुंच सके. इसका नाक के विशेष बनावट इसके फेफड़ों तक बालू पहुँचने से रोकती है. गद्देदार पांव बालू में चलने में सहायक है, जो रेत में नहीं धंसती. इसके कूबड़ में वसा के रूप में जल और भोजन संचित रहता है. इसलिए इसे ‘रेगिस्तान का जहाज’ भी कहा जाता है.
- कैक्टस: कैक्टस एक प्रकार का पौधा है जो रेगिस्तान में पाया जाता है. कैक्टस में पानी को संग्रहित करने के लिए मोटी पत्तियां होती हैं और इसकी जड़ें बहुत गहरी होती हैं ताकि यह पानी तक आसानी पहुंच सके. इसके गूदेदार तनों में जलसंचय करने की क्षमता होती है.
- सांप: रेगिस्तान में कई प्रकार के सांप पाए जाते हैं. सांप रात में सक्रिय होते हैं और वे गर्मी से बचने के लिए रेत में छिप जाते हैं.
- छिपकली: रेगिस्तान में कई प्रकार की छिपकली भी पाई जाती हैं. छिपकली गर्मी से बचने के लिए अपने शरीर का तापमान कम कर सकती हैं और वे रेत में छिपकर पानी की कमी को पूरा कर सकती हैं.
- मरुस्थल में पाया जाने वाला फेनेक लोमड़ी रात्रिचर होता हैं. इसकी यह खासियत दिन के समय तपती गर्मी से बचाता है. यह रात के समय शिकार करता है और दिन को अपने गहरे माँद में विश्राम करता है.
- कुछ जानवर, जैसे दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका में रेगिस्तानी कछुआ, अपना अधिकांश समय भूमिगत बिताते हैं.
- अधिकांश रेगिस्तानी पक्षी खानाबदोश होते हैं, जो भोजन की तलाश में आकाश में दूर तक जाते है.
- रेगिस्तानी कीड़ों बड़ी विचित्र अनुकूलता पाई जाती है. इनमें एक नामीबियाई रेगिस्तानी बीटल भी है, जो पानी के लिए हवा का कोहरा का इस्तेमाल कर सकता है.
अपने विशेष अनुकूलन के कारण, रेगिस्तानी जानवर अपने निवास स्थान में परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं. रेगिस्तानी पौधों को कई वर्षों तक ताजे पानी के बिना रहना पड़ सकता है. कुछ पौधों ने लंबी जड़ें उगाकर खुद को शुष्क जलवायु के अनुकूल बना लिया है और गहरे भूमिगत को खिंच लेती है. कइयों में जलभंडारण का विशेष अनुकूल व अंग पूर्ण विकसित होता है.
भारत का थार मरुस्थल (Thar Desert of India in Hindi)
- थार मरुस्थल भारत और पाकिस्तान के बीच स्थित एक मरुस्थल है. यह विश्व का 17वां सबसे बड़ा मरुस्थल है और 9वां सबसे बड़ा गर्म उपोष्णकटिबंधीय मरुस्थल है.
- थार मरुस्थल का क्षेत्रफल 200,000 वर्ग किलोमीटर है और यह भारत के राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांतों में फैला है.
- थार मरुस्थल का नाम थार शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है “पहाड़”. यहां बालू के पहाड़ सामान्य होते है.
- थार रेगिस्तान 4,000 से 10,000 साल पुराना है, जो भारत-पकिस्तान के बीच प्राकृतिक सीमा का निर्माण करता है. इसका एक हिस्सा पकिस्तान में तो अधिकांश हिस्सा भारत के राजस्थान में फैला है.
- थार मरुस्थल का निर्माण अरावली पर्वतमाला के पश्चिमी भाग में हुआ है.
- यह उत्तर-पश्चिम में सतलुज नदी और पूर्व में अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा है. इसके दक्षिण में कच्छ का रण, नमक का दलदल और पश्चिम में सिंधु घाटी है.
- थार मरुस्थल की जलवायु शुष्क और उष्ण है. यहां वर्षा का औसत 200 मिमी से भी कम है. थार मरुस्थल में गर्मियों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.
- थार मरुस्थल में कुछ जीव-जंतु पाए जाते हैं, जिनमें तेंदुए, एशियाई जंगली बिल्ली, चाउसिंघा, चिंकारा, बंगाली रेगिस्तानी लोमड़ी, ब्लैकबक (Antelope), ऊंट, भेड़, बकरी, सांप, छिपकली, गिद्ध, चील आदि शामिल हैं.
- थार मरुस्थल में कुछ महत्वपूर्ण वनस्पति भी पाई जाती हैं, जिनमें धतूरा, कैक्टस, खेजड़ी, अकेसिया नीलोटिका, कांटे, घास आदि शामिल हैं.
- दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाएँ पूर्व की ओर स्थित थार मरुस्थल में वर्षा नही करती हैं. इसके कारण यह इलाका बंजर है.
- थार मरुस्थल एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है. यहां कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं, जिनमें जैसलमेर का किला, बीकानेर का किला, माउंट आबू, जोधपुर का किला, जैसलमेर का शहर आदि शामिल हैं. थार मरुस्थल में कई लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी हैं, जिनमें सफारी, ऊंट की सवारी, रेगिस्तान में रात बिताना आदि शामिल हैं.
- थार मरुस्थल एक महत्वपूर्ण जैव विविधता वाला क्षेत्र है. यहां कई दुर्लभ और विलुप्तप्राय प्रजातियों के जीव-जंतु पाए जाते हैं. थार मरुस्थल एक महत्वपूर्ण जल संरक्षण क्षेत्र भी है. यहां कई झीलें और नदियां हैं, जो इस क्षेत्र के लोगों के लिए पानी का एकमात्र स्रोत हैं.
- थार मरुस्थल एक महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्र भी है. यहां कई उद्योग और कृषि क्षेत्र हैं. थार मरुस्थल में कई महत्वपूर्ण खनिज भी पाए जाते हैं, जिनमें तांबा, सोना, हीरा आदि शामिल हैं.
विश्व के प्रमुख मरुस्थलों की सूची (World’s main Desert Places in Hindi)
नाम | प्रकार | अवस्थिति | क्षेत्र (किमी2) |
अंटार्कटिका | ध्रुवीय हिम एवं टुंड्रा | अंटार्कटिका | 142,00,000 |
आर्कटिक | ध्रुवीय हिम एवं टुंड्रा | पूर्वी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी एशिया, उत्तरी यूरोप | 139,00,000 |
सहारा मरुस्थल | उपोष्णकटिबंधीय | पूर्वी अफ्रीका, मध्य अफ्रीका, उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी अफ्रीका | 92,00,000 |
ग्रेट ऑस्ट्रेलियाई | उपोष्णकटिबंधीय | ऑस्ट्रेलिया | 27,00,000 |
अरब | उपोष्णकटिबंधीय | पश्चिमी एशिया | 23,30,000 |
गोबी | शीत शिशिर | पूर्वी एशिया | 12,95,000 |
कालाहारी मरुस्थल | उपोष्णकटिबंधीय | दक्षिणी अफ्रीका | 9,00,000 |
पेटागोनियन | शीत शिशिर | दक्षिण अमेरिका | 6,73,000 |
सीरियाई | उपोष्णकटिबंधीय | पश्चिमी एशिया | 5,00,000 |
ग्रेट बेसिन | शीत शिशिर | उत्तरी अमेरिकी | 4,92,098 |
चिहुआहुआन | उपोष्णकटिबंधीय | उत्तरी अमेरिकी | 453 |
कराकुम | शीत शिशिर | मध्य एशिया | 3,50,000 |
कोलोराडो विक्टोरिया | शीत शिशिर | उत्तरी एशिया | 3,37,000 |
सोनोरन | उपोष्णकटिबंधीय | मध्य अमेरिका उत्तरी अमेरिका | 3,10,000 |
किजिलकुम | शीत शिशिर | मध्य एशिया | 3,00,000 |
टकलामकान मरुस्थल | शीत शिशिर | पूर्वी एशिया | 2,70,000 |
ओग्डन | उपोष्णकटिबंधीय | पूर्वी एशिया | 2,56,000 |
पुंटलैंड | उपोष्णकटिबंधीय | पूर्वी एशिया | 2,00,000 |
थार मरुस्थल | उपोष्णकटिबंधीय | दक्षिणी एशिया | 2,00,000 |
उस्त्युर्ट पठार | समशीतोष्ण | मध्य एशिया | 2,00,000 |
गुबन | उपोष्णकटिबंधीय | पूर्वी एशिया | 1,75,000 |
नामीब | शीतल तटीय | मध्य अफ्रीका, दक्षिणी अफ्रीका | 1,60,000 |
दस्त-ए-मार्गो | उपोष्णकटिबंधीय | दक्षिणी एशिया | 1,50,000 |
रेगिस्तान मरुस्थल | उपोष्णकटिबंधीय | दक्षिणी एशिया | 1,46,000 |
अटाकामा मरुस्थल | मंद तटीय | दक्षिण अमेरिका | 1,40,000 |
डानाकिल | उपोष्णकटिबंधीय | पूर्वी अफ्रीका | 1,37,000 |
मोजावे | उपोष्णकटिबंधीय | उत्तरी अमेरिकी | 1,24,000 |
चल्बी | उपोष्णकटिबंधीय | पूर्वी अफ्रीका | 1,00,000 |
कोलंबिया बेसिन | शीत शिशिर | उत्तरी अमेरिका | 83,139 |
दस्त-ए-कबीर | उपोष्णकटिबंधीय | दक्षिणी एशिया | 77,000 |
मरुस्थल से जुड़े 10 महत्वपूर्ण रोचक तथ्य (10 interesting facts about deserts)
- दुनिया का लगभग एक तिहाई हिस्सा मरुस्थल है. रेगिस्तान शब्द फ़ारसी के रेग और हिंदी के स्थान से मिलकर बना है, रेग का अर्थ बालू और स्थान का अर्थ जगह होता है. इस तरह रेगिस्तान का मतलब ‘बालू का जगह’ बनता है.
- रेगिस्तान में दिन और रात के समय में तापांतर काफी अधिक होता है. यहां दिन एकदम गर्म तो रात अत्यधिक सर्द होते है. ऐसा बालू के जल्द गर्म और ठंडा होने के गुण के वजह से होता है.
- 10 जुलाई 1913 को डैथ वैली का तापमान 56.7 डिग्री दर्ज किया गया था. यह किसी भी मरुस्थल में दर्ज रिकॉर्ड सबसे अधिक तापमान है.
- मिस्त्र का राजधानी काहिरा सबसे बड़ा मरुस्थलीय शहर है.
- अंटार्कटिका में गिरने वाली बर्फ़ पहले से जमे बर्फ के ऊपर परत का निर्माण करती है. फिर ये कभी नहीं पिघलते. हालाँकि, ग्लोबल वार्मिंग के कारण कई नए हिस्सों में भी इस गुण में बदलाव देखा जा रहा है.
- चिली स्थित अटाकामा रेगिस्तान में सबसे कम वर्षा होती है- प्रतिवर्ष डेढ़ सें.मी. से भी कम. किसी साल एक बून्द का बारिश भी नहीं गिरता है.
- अर्लकुम, दुनिया का सबसे युवा रेगिस्तान है. इसका निर्माण 60 के दशक में रूई के उत्पादन के लिए अराल झील के पानी का दोहन करने से हुआ.
- रेगिस्तान के गर्मी से कभी-कभी बारिश की बूंदें धरती पर पड़ने से पहले ही भाप बनकर उड़ जाते है.
- सहारा रेगिस्तान में रेत के कई टीलों की ऊंचाई 180 मीटर तक होती है, जो स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी की ऊंचाई 182 मीटर के करीब है.
- सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन में रेगिस्तान का अहम भूमिका है.