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नवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं: औजार, व्यापार व स्थल

नवपाषाण शब्द उस काल को सूचित करता है जब मनुष्य को धातु के बारे में जानकारी नही थी. परन्तु उसने स्थायी निवास, पशु-पालन, कृषि कर्म, चाक पर निर्मित मृदभांड बनाने शुरू कर दिए थे. इस काल की जलवायु लगभग आज कल के समान थी इसलिए ऐसे पौधे पैदा हुए जो लगभग आज के गेंहू तथा जौ के समान थे. मानव ने उनमें से दाने निकालकर भोजन के रूप में प्रयुक्त करना शुरू कर दिया और उनके पकने के विषय में भी जानकारी एकित्रात की. इस प्रकार स्थाई निवास की शुरूआत हुई. जिस कारण पशुपालन और कृषि कर्म को प्रोत्साहन मिला. कृषि और पशुपालन दोनों एक-दूसरे के पूरक है.

नवपाषाण काल (Neolithic period) में तकनीकी विकास और औजार

नवपाषाण संस्कृति समाज में हुए निम्न परिवर्तनों को दर्शाता है. तकनीकी तौर पर मुख्य परिवर्तन यह हुआ कि इस काल के मानव ने औजारों को घर्षित कर उन्हें पालिश करके चमकदार बना दिया. आर्थिक तौर पर परिवर्तन यह हुआ कि इस काल का मानव खाद्य संग्रहकर्ता से खाद्य उत्पादनकर्ता बन गया. नवपाषाण स्तर पर धातुक्रम के व्यापक संकेत नही मिलते, वास्तविक नवपाषाण काल धातुरहित माना जाता है. जहां कहीं नवपाषाण स्तर पर धातु की सीमित मात्रा दिखाई दी उस काल को पुरातत्वेताओं ने ताम्रपाषाण काल की संज्ञा दी है.

इस काल के मानव ने नई तकनीक से औजारों का विकास किया जिन्हें घिसकर तथा पालिश करके चमकदार बना दिया गया. औजार बनाने के लिए सर्वप्रथम पत्थर के फलक उतारे जाते थे, दूसरी अवस्था में उसके ऊबड़-खाबड़ उभारों को साफ किया जाता था इसे पैकिंग कहा जाता था. तृतीय अवस्था में उस औजार को किसी बड़े पत्थर या चट्टान से घिसकर साफ किया जाता था तथा उसके किनारों को घर्षित कर तीखा किया जाता था.

अंतिम अवस्था में उन पर पशुओं की चर्बी या वनस्पति के तेल से पालिश करके चिकना किया जाता था. इस प्रकार नवपाषाणकाल के मानव में चिकने-चमकदार तथा सुडौल औजार बनाए. जिनमें कुल्हाडियाँ, छैनियां, हथौड़े, बसौले, इत्यादि प्रमुख है. इसके अतिरिक्त हल, दाने अलग करने का औजार (गिरड़ी) तथा ब्लेड़ इत्यादि थे. 

ये औजार कृषि कर्म में उपयुक्त होने के अतिरिक्त गृहकायों में भी प्रयोग किए जाते थे. इस काल में आए मानव के जीवन ने इन महत्वपूर्ण परिवर्तनों को कई विद्वानों जैसे कि गार्डन चाइल्ड ने नवपाषाण क्रांति की संज्ञा दी है. क्योंकि पाषाण काल के मानव की अपेक्षा इस काल के मानव में मूलभूत परिवर्तन हुए. पहले के काल में वह घुमक्कड़ था.

इस काल में उसके जीवन में स्थायित्व आ गया. पहले वह खाद्य सामग्री के लिए प्रकृति पर निर्भर था इस काल में स्वयं अन्न उत्पादन करने लगा. मानव के जीवन में ये परिवर्तन अचानक से नही हुए बल्कि इन परिवर्तनों के प्रारंभिक स्वरूपों के शुरूआत हम पुरापाषाण काल एवम् नवपाषाण काल के बीच देखने को मिलती है.

इस काल से पूर्व पुरापाषाण से लेकर मध्यपाषाण काल तक की संस्कृतियों का स्वरूप जिस प्रकार अफ्रीका, यूरोप और एशिया के विभिन्न स्थलों पर एक समान दिखाई देता है, वैसा हमें नवपाषाण काल में देखने को नही मिलता. नवपाषाण संस्कृति के विकास की प्रक्रिया विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग समयों पर हुई. इस काल की पहली अवस्था को मृदभांड रहित नवपाषाण कहा गया क्योंकि इस काल में मदृभांड कला की शुरूआत नही हुई थी.

मृदभांड रहित नवपाषाण के प्रमाण हमें जार्डन घाटी स्थित जैरिको, ऐन-गजल, हसिलियार मेरेयबिर, बीघा, मेहरगढ़ (पाकिस्तान) तथा गुफ्कराल (कश्मीर, भारत) इत्यादि से मिलते है. इस संस्कृति का प्रारंभ 8000 ई0पू0 के आसपास हुआ. इनमें सबसे महत्वपूर्ण स्थल जेरिको था, जहाँ सर्वप्रथम इस संस्कृति का विकास हुआ. इसके अतिरिक्त मृदभांड सहित नवपाषाण काल के प्रमाण भी इन्हीं क्षेत्रों से मिलते है; जो अपेक्षाकृत पहले के हैं.

तृतीय अवस्था के प्रमाण हमें श्यालक, फायूम तथा मेरिम्दे (जो कैरो के समीप मिस्र में स्थित है), जारमों मेसोपोटामिया) इत्यादि ये मिलते है.

यूरोप में आल्प्स पर्वत श्रृंखला के उत्तर में नवपाषाण संस्कृति के प्रमाण बाद के काल के है और यह संस्कृति भी निम्न स्तर की है. मध्य यूरोप में ड्रेवे से बाल्टिक तथा डेन्यूब और विस्तुला के मध्य क्षेत्र में इस संस्कृति के प्रमाण प्राप्त हुए है. यहाँ से गेंहू और जौ की कृषि एवम् पत्थर के औजार तथा पशुपालन के अवशेष प्राप्त हुए हैं. जर्मनी के राइनलैड में शंख के बने आभूषण प्राप्त हुए है.

कोल्न लिन्डस्थल के समीप एक विशाल घर के प्रमाण मिले हैं संभवत: यह पूरे समुदाय के लिए था. डेन्यूब से प्राप्त मृदभांडों पर चित्रकारी के प्रमाण मिलते है. इसी प्रकार स्विटजरलैंड, बेल्जियम, तथा ब्रिटेन में रेशेदार पौधे और अन्न पैदा किए जाने के भी प्रमाण मिलते हैं. स्विजरलैंड स्थित नवपाषाण कालीन मानव झील में लकड़ी के खंबे गाड़कर उन पर अपना निवास स्थान बनाता था.

नवपाषाण काल के महत्वपूर्ण स्थल (Important Sites of Neolithic period)

पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर मांऊट कार्मल की गुफाओं तथा अन्य स्थलों से नवपाषाण कालीन अर्थव्यवस्था के प्रमाण मिलते है. इन गुफा के निवासियों को नाटूफियन कहा जाता है, शिकार करने के लिए ये मध्यपाषाण कालीन यूरोपीयों से मिलते-जुलते चकमक के औजारों का प्रयोग करते थे. कृषि कर्म में प्रयुक्त होने वाली अनेक दरातियाँ यहाँ से प्राप्त हुई हैं.

  1. जैरिको 
  2. बीद्या 
  3. अबु हुरेथरा 
  4. एन-गजल 
  5. मेरियबिट 
  6. मेहरगढ 
  7. गुकराल 
  8. श्यालक 
  9. जैरिमों 

जैरिको –

यह स्थल जार्डन घाटी में स्थित है. यहाँ से पहली अवस्था वाले मृदभांड रहित नवपाषाण काल के अवशेष प्राप्त हुए है, जो 8000 ई0पू0 के आसपास काल के हैं. इस स्थल की बस्ती के चारों ओर 27 फिट चौड़ी तथा 5 फिट गहरी खाई खोदी गई थी तथा एक पत्थर का चबूतरा भी बना हुआ था. यहाँ गेहूं की कृषि तथा पशुपालन जैसे गाय, बैल, भेड़, बकरी, तथा सूअर पालने के प्रमाण मिलते हैं. इस काल में मृत संस्कार प्रक्रिया शुरू हो गई थी. यहां से प्राप्त औजारों में कुल्हाडियां, तीर का अग्रभाग, हसिंया, ब्लेड तथा खुरचमियाँ प्राप्त हुई हैं. इसके बाद इसी स्थल से हमें मृदभांड सहित नवपाषाण काल के भी प्रमाण मिलते है.

बीद्या –

यह क्षेत्र जैरिको से 100 कि0मी0 दक्षिण में स्थित है. इस स्थल पर 7200 ई0पू0 के आसपास मृदभांड रहित नवपाषाण के प्रमाण मिलते है. यहां मकान चबूतरों पर निर्मित थे, लेकिन सुरक्षा दृष्टि से जैरिको जैसी व्यवस्था नही थी. कृषि में यहां पिस्ता, जैतून, फल और दालों का प्रमाण मिले है. पशुपालन की यहाँ शुरूआत हो चुकी थी, इसके अतिरिक्त जंगली जानवरों (गजेला, भालू, गीदड़, खरगोश) का शिकार करते थे. अंतिम स्तर से यहाँ मृदभांड के अवशेष मिलने शुरू होते है.

अबु हुरेथरा –

यह क्षेत्र उत्तरी सीरिया में स्थित है. इस क्षेत्र में नवपाषाण काल की प्रांरभिक अवस्था के प्रमाण 7500 ई0पू0 के आसपास के हैं. यहाँ मानव के गृत आवास में निवास के प्रमाण मिलते है. यहाँ हड्डियों के औजार भी बहुतायत संख्या मे मिले है जिनमें बेघक, सूइयाँ, दोहरे किनारे के बेघक इत्यादि प्रमुख हैं. प्रांरभिक अवस्था से हमें जौं, गेहूँ तथा मसूर की दाल की खेती के प्रमाण मिलते हैं. मछलियों का भी शिकार किया जाता था. बाद के काल में मृदभांड सहित नवपाषाण कालीन मानव घर बनाकर निवास करने लगा था.

एन-गजल –

जार्डन की राजधानी अम्मान के उत्तर-पूर्व में स्थित इस स्थल पर 7250 ई0पू0 के समीप प्रारम्भिक अवस्था वाले नव पाषाण काल का आंरभ हुआ. कृषि में पिस्ता, बादाम, अंजीर के प्रमाण यहाँ से मिलते है कृषि के साथ-साथ पशुओं का शिकार भी किया जाता था. यहाँ नवपाषाण काल की द्वितीय अवस्था में पशुपालन तथा मृदभांड बनाने की कला की शुरूआत हुई.

मेरियबिट –

नवपाषाण काल की प्रांरभिक अवस्था के प्रमाण यहाँ 8000 ई0 पू0 के आस पास मिलने शुरू हुए. बाद में मानव ने कृषि के साथ-साथ पशुपालन की भी शुरूआत की तथा द्वितीय अवस्था का नवपाषाणकालीन मानव यहां बस्तियाँ बनाकर निवास करने लगा. घरों की दीवारों पर लाल रंग किया मिलता है, जिनकी छतें लकड़ी की होती थी. यहाँ पर कृषि और पशुपालन के भी प्रमाण मिलते हैं.

मेहरगढ –

पाकिस्तान में बोलन दर्रे के पास कांची के मैदानों में स्थित इस स्थल पर सर्वप्रथम मृदभांड रहित नवपाषाण के प्रमाण मिलते है जो 7000 ई0 पू0 के आसपास के हैं. नवपाषाण काल की द्वितीय अवस्था में कृषि की पैदावार के साथ-साथ पशुपालन के भी प्रमाण मिलते हैं. यहाँ से पत्थर के औजारों में हल, कुल्हाडियांँ तथा बसौले भी प्राप्त हुए है.

गुकराल –

यह स्थल कश्मीर स्थित पुलवामा के समीप स्थित इस स्थल से मृदभांड रहित नवपाषाण काल के प्रमाण मिले हैं. यहाँ मानव के गृत-आवास थे. मनुष्य कृषि के अलावा पशुओं का भी शिकार करता था. द्वितीय नवपाषाण कालीन अवस्था में यहाँ से प्राप्त मृदभांड पीले, गुलाबी, गहरे रंग लिए हुए है जिन पर चित्रकारी की गई है. खेती में गेहूं, जौ और मटर के प्रमाण मिलते हैं. इस काल का मानव घरों में निवास करने लगा गुफ्कराल तथा इसके समीप स्थल बुर्जहोम में मृतकों के साथ-साथ इस काल में कुतों को भी दफनाएं जाने के प्रमाण मिलते हैं.

श्यालक –

इस स्थल से नवपाषाण काल की द्वितीय अवस्था के प्रमाण मिलते हैं. जैरिको के समान इस क्षेत्र में भी एक झरना था जहाँ इस काल के जंगली जानवर और पक्षी आकर्षित होते थे जिनका इस काल का मानव भोजन के लिए शिकार करता था. कृषि कर्म में यहाँ कृत्रिम सिंचाई की व्यवस्था का प्रारम्भ भी यहाँ हो गया था. कृषि कर्म के लिए पाषाण औजारों तथा हड्डियों के औजारों का प्रचलन था जिनमें हसिया, हल, दाने निकालने के पत्थर तथा हड्डियों के बेधक प्राप्त हुए हैं. ये रेशेदार पदार्थो से प्राप्त रेशे को कातने और बुनने का भी कार्य करते थे. इस काल मे मिट्टी निर्मित मृदभांडों का प्रचलन शुरू हो गया था.

जैरिमों –

दक्षिण-पश्चिमी एशिया में स्थित यह प्राचीनतम स्थल है. यहाँ कृषि कर्म के अतिरिक्त पशुपालन के भी प्रमाण मिलते है. शिकार में ये लोग सूअर, बारहसिंगा तथा भेड़ का शिकार करते थे. गेहूँ, जौ के अतिरिक्त जैतून और पिस्ते की खेती के प्रमाण 5000 ई0पू0 के आसपास के मिलते हैं. इनके औजार मुख्यत: फलक निर्मित थें जिनमें खुरचमियाँ और ब्लेड उपकरणों की प्रधानता थी. इससे हमें उनके सामाजिक जीवन की जानकारी मिलती है.

नवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं

  1.  नवपाषाण काल की कृषि 
  2.  नवपाषाण काल मे औजार बनाने की विशेष तकनीक 
  3.  नवपाषाण काल के औजार 
  4.  नवपाषाण काल के अन्य उपकरण 
  5.  नवपाषाण काल मे कातने या बुनने की कला 
  6.  नवपाषाण काल मे बर्तन निर्माण 
  7.  नवपाषाण काल मे पशुपालन 
  8.  नवपाषाण काल मे मृदभांड बनाने की कला 
  9.  नवपाषाण काल के उद्योग धंधे 
  10. नवपाषाण काल मे व्यापार 
  11.  नवपाषाण काल की आर्थिक व्यवस्था 
  12.  नवपाषाण काल मे श्रम विभाजन 
  13. नवपाषाण काल मे स्थाई जीवन को प्रोत्साहन 
  14.  नवपाषाण काल की सामाजिक व्यवस्था 
  15.  नवपाषाण काल मे धर्म 
  16.  नवपाषाण काल की कला
  17.  नवपाषाण काल मे ज्ञान विज्ञान 

 नवपाषाण काल की कृषि –

नवपाषाण काल में सर्वाधिक क्रांतिकारी परिवर्तन कृषि की शुरूआत था. इस काल में मानव ने मिट्टी में बीज डालकर फसल उगानी शुरू कर दी. मानव ने इस काल में गेहॅू और जौ की खेती के अतिरिक्त चावल, बाजरे और मक्की के प्रमाण मिलते है. इसके अतिरिक्त पिस्ता, जैतून, अंजीर, ताड़ और सेब इत्यादि फलों का प्रमाण भी इसी काल में प्रारम्भ हो गया. कपास की खेती के भी प्रमाण इस काल में मिलने शुरू हो गए.

इस काल में सिंचाई व्यवस्था की शुरूआत भी हो गई थी. इस काल में कृषि के लिए उपर्युक्त फसलें और उनके अनुरूप कृषि के तरीके ही नहीं बल्कि भूमि की खुदाई के लिए और फसलों की कटाई, संग्रह तथा अनाज पीसने के लिए सिलबट्टें तथा भोजन बनाने के लिए विशेष औजार, बर्तन तथा तकनीक प्रयोग में लाई गई. 

हड्डी के बने उपकरणों का भी प्रयोग इस काल में हो चुका था जैसे :- मछली पकड़ने का काँटा इत्यादि. अनाज की अगली फसल पकने तक भण्डारन किए जाने के भी प्रमाण यहाँ से मिलते हैं. अन्न भण्डारण बर्तनों में किया जाता था. मिश्र और मेसोपोटामिया के कुछ स्थलों से प्राप्त बर्तनों में लगी हुई चीजों के रसायनिक परीक्षण से पता चलता है कि यहाँ पर बीयर के रूप में जौ को पेय बनाना भी इस काल के मानव के रूप में जौ की कर पेय बनाना भी इस काल के मानव ने सीख लिया था.

 नवपाषाण काल मे औजार बनाने की विशेष तकनीक –

नवपाषाणकाल के मानव का बौद्धिक स्तर पूर्वपाषाणकाल स्तर से काफी विकसित हो गया था. इस समय जो औजार बने उनके बनाने में एक विशेष तकनीक अपनाई गई, उन्हें घिसकर और पॉलिश करके बनाया जाता था. सबसे पहले पत्थर की फलक उतारी जाती थी. फिर उबड़-खाबड़ हिस्सों को ठीक किया जाता था. तत्पश्चात् उसकी घिसाई की जाती थी फिर उस पर Animal-fat आदि लगाकर पॉलिश की जाती थी.

 नवपाषाण काल के औजार –

इस प्रकार मानव ने चिकने चमकदार तथा सुडौल हथियार बनाने की विधि का अविष्कार किया इसमें कठोर पत्थर की पालिशदार कुल्हाडी प्रमुख है. इस काल में हथौडे़, छैनी, खुर्पा, कुदाल, हल, हसिया तथा सिलकर का प्रयोग किया जाने लगा. ये औजार कृषि और शिकार में प्रयोग किए जाने लगे. कम और ज्यादाा मात्रा में प्रत्येक site से प्रमाण मिले हैं. भूमि खोदने के लिए सामान्यत: नुकीली छड़ी जिसके सिरे पर सुराख करके पत्थर लगा होता था, का प्रयोग होता था. परन्तु अधिकतर अफ्रीकी कबीले जमीन को खोदने में हल का प्रयोग करते थे. यूरोपीय तथा एशियाई जातियाँ भी ऐसा करती थी.

 नवपाषाण काल के अन्य उपकरण –

नव पाषाणकालीन मानव ने अपनी सुख-सुविधानुसार और भी उपकरणों का अविष्कार किया. उसने ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ी बनाई झीलों और नदियों को पार करने के लिए नाव का अविष्कार किया. फसल काटने के लिए दंराती, सूत कातने के लिए तकली तथा चरखा, कपड़ा बुनने के लिए करघों का निमार्ण किया. इस काल के मानव को नरकूल की शाखाओं से सीढ़ियाँ बनाने की कला के बारे में भी जानकारी थी.

 नवपाषाण काल मे कातने या बुनने की कला –

इस काल में कपड़ा बुनने की कला का भी अविष्कार हो गया था. अब वे लोग खाल व पत्तियों के वस्त्र पहनने लगे थे. करघे का अविष्कार एशिया में नव-पाषाण काल में हुआ था. यह अविष्कार अवशेष मिस्त्रा तथा पश्चिमी एशिया में मिलते हैैं. इस युग के मानव ने चरखे, तकले तथा करघे की सहायता से कपड़ा बनाना शुरू कर दिया था. स्विटजरलैंड से कुछ कपडे़ के अवशेष, मछली पकड़ने के जाल का एक टुकड़ा तथा टोकरी प्राप्त हुई है. नव-पाषाण गाँवों में कपास के प्रमाण मिले हैं. यहाँ कपास की खेती और भेड़-पालन होता था. अत: कपड़ों का व्यापक प्रयोग इस काल में शुरू हो गया था. सुईयों से वस्त्र सीले जाते थे.

 नवपाषाण काल मे बर्तन निर्माण –

इस काल में मानव अपनी आवश्यकतानुसार बर्तन बनाने लगा था. बर्तन चॉक पर भी बनाए जाते थे. अवशेषों में इस काल के पॉलिशदार मृदभांड भी मिली है जो पकाने पर Pale या Pink रंग की हो जाती थी. पाकिस्तान के मेहरगढ़ से भी इसके प्रमाण मिले हैं. जेरिमो में लोग पत्थर और लकड़ी के बर्तन प्रयोग में लाते थे. ऐसे प्रमाण मिले है. िस्यालक के लोग बर्तन की पृष्ठभूमि पर गहरे रंग से चित्रकारी करते थे.

 नवपाषाण काल मे पशुपालन –

इस काल मे कृषि के साथ-साथ मानव ने पशु पालन की आवश्यकताओं का अनुभव किया. पशु कृषि में तो सहायक होते ही थे, साथ ही इनसे उन्हें दूध तथा मांस की प्राप्ति भी होती थी. इस काल में कुत्ता, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर तथा बैल आदि पाले जाने लगे. ये पशु उस समय के मानव की लगभग सभी आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक, अर्थात् मास और दूध का स्त्रोत भी ये पशु ही बने, सिलाई-बुनाई के लिए भेड़ो से प्राप्त होने वाले रेशों का इस्तेमाल किया जाता था.

पहिए के अविष्कार के परिणामस्वरूप पहले-पहले बोझे को ढोने या आवागमन के लिए पशु का ही प्रयोग किया गया. सम्भवत: इस काल का पहला पालतू जानवर कुता था. इस काल में मनुष्य पशुओं से काफी परिचित हो चुका था. वह यह समझने लगा था कि अगर पशु उनके समीप रहेंगे तो वह जब चाहेगा इनका शिकार कर सकेगा. इसलिए वह अपने खेतों से उत्पन्न चारा उन्हें देने लगा था. धीरे-धीरे आवश्यकता एवम् उपयोगिता के अनुसार पशुओं की संख्या बढ़ती चली गई.

 नवपाषाण काल मे मृदभांड बनाने की कला –

कृषि कार्य या पशुपालन आरम्भ होने से मनुष्य के पास खाद्य सामग्री प्रचुर मात्रा में एकत्रा होने लगी. परन्तु इनका संग्रह करने के लिए पात्रों (बर्तनों) का अभाव था. इस कठिनाई को दूर करने के लिए मनुष्य ने मिट्टी के बर्तनों का निर्माण करना आरम्भ कर दिया. इसका प्रारम्भ कब और कैसे हुआ कहना कठिन है. इस काल के आरम्भ के परिणामस्वरूप मनुष्य ने खाद्य सामग्री के संग्रह के लिए बडे़-बडे़ मृदभांडो का निर्माण किया. वह धरती में गड्ढ़ा खोदकर उसकी चारों और से लिपाई करके उसमें भी खाद्य सामग्री संग्रहित करता था. ये बर्तन वह पले हाथ से जानवरों की खाद से बनाता था. बाद में चॉक पर विभिन्न आकार के बर्तनों का निर्माण करने लगा.

जार्डन में स्थित दक्षिणी जेरिको, बीघा और आस पास के अन्य स्थानों पर मृदभांडों के प्रमाण मिलें है. लगभग 7000 ई0 पू0 के आस पास दक्षिणी-पूर्वी यूरोप में भी इस कला के प्रमाण प्राप्त हुए है. 4300 ई0 पू0 के करीब के प्रमाण मेहरगढ़ से प्राप्त हुए हैं.

 नवपाषाण काल के उद्योग धंधे –

इस युग में कृषि का अविष्कार हो जाने से मानव भोजन की तलाश में इधर-उधर नहीं भटकता था. उसके जीवन में स्थिरता और वह अपनार भरण पोषण एक ही स्थान पर रहकर करने लगा. समय की उपलब्धता न उसे उद्योगों एवं व्यवसायों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया. इस युग मे चाक का अविष्कार हुआ जिससे मिट्टी के बर्तन बनाए जाने लगे.

पहिए के अविष्कार से यातायात के साधनों का विकास हुआ. मानव ने घोड़ों तथा बैलों की सहायता से खींची जाने वाली गाड़ियां बनाई. कृषि के विकास से कपास उगाई जाने लगी जिससे वस्त्र निर्माण उद्योग भी विकसित हुआ. इस काल में मछली पकड़ने के लिए जाल प्रयोग में लाया जाता था. इसके प्रमाण मिले हैं, इससे स्पष्ट होता है कि मछली उत्पादन करने लगे थे. जलमार्ग से यातायात के लिए नाव का निर्माण किया.

नवपाषाण काल मे व्यापार –

देखा जाए तो ऐसा लगता है नवपाषाणकालीन गांव आत्मनिर्भर थे. अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति वे स्थानीय क्षेत्रों से ही पूरी कर लेते थे. किंतु शायद कोई भी नवपाषाण समुदाय पूर्णतया आत्मनिर्भर नहीं था. आरम्भिक नवपाषाण गाँव और कब्रों में ऐसा सामान मिला है जो दूरस्थ स्थानों से आया जैसा कि सीप, जो कि भूमध्यसागर या लाल सागर से लाई गई थी. जिन्हें फायम अपने गले के हारों में लगाते थे.

अच्छी किस्म का काटने वाला पत्थर हारों में लगाते थे. अच्छी किस्म का काटने वाला पत्थर, बढ़िया किस्म का चकमक पत्थर आदि दूर-दूर से लाएं जाते थे. यातायात के साधनों के विकास ने व्यापार मे ंप्रोत्साहित किया. व्यापार वस्तु विनियम पद्धति पर आधारित था. इस प्रकार हम देखते हैं कि नव-पाषाण कालीन समुदाय की आत्मनिर्भारता वास्तविक नहीं थी.

 नवपाषाण काल की आर्थिक व्यवस्था –

नवपाषाणकाल में नए-नए अविष्कारों के परिणामस्वरूप मनुष्य का आर्थिक जीवन काफी सुदृढ़ हो गया था. स्थाई कृषि व्यवस्था से उत्पादन मे वृद्धि हुई. अब मनुष्य का सम्पति के प्रति लगाव बढने लगा था. अपने परिवार के लिए उपयोग के लिए उपयोग की वस्तुओं कें संग्रह में व्यक्तिगत सम्पति की भावना को जागृत किया. नवपाषाण काल में विनियम व्यापारिक अर्थव्यवस्था प्रचलित थी.

इस काल में मनुष्य ने रेशेदार फलों का उत्पादन आरम्भ कर दिया था. इसके प्रमाण Mesopotamia, Egypt आदि में 3000 ई0पू0 के करीब मिलते है. इस काल में मनुष्य flinting तथा mining भी करने लगा था. इसके प्रमाण Poland, France, Britain आदि स्थानों पर मिले है. इस काल के लोग spinning, weaving आदि के विषय में भी जानकारी रखते थे.

नवपाषाण अर्थव्यवस्था में विशेषीकरण के चिन्ह प्रारम्भ हो गए. मिश्र, सिसली, पुर्तगाल, फ्रांस, इंग्लैंड, बैलज्यिम, स्वीडन और पोलैंड में नवपाषाण कालीन समुदाय चकमक को खदानो से निकालने लगे थे. ये खान खोदने वाले वास्तव में खान खोदने के विशेषज्ञ थे.

 नवपाषाण काल मे श्रम विभाजन –

इन नवपाषाण कालीन समाजों मे किसी प्रकार का औधोगिक श्रम विभाजन नहीं था. श्रम विभाजन था तो केवल श्रम स्त्राी-पुरूषों के बीच था. स्त्रियां खेत जोतती थी. अनाज पीसती थी और पकाती थीं कातकर और बुनकर कपड़ा तैयार करती थी. बर्तन बनाती और उन्हें पकाती थी. दूसरी तरफ पुरूष शायद खेत साफ करते झोपड़ी बनाते, जानवर पालते, शिकार करते और औजार व हथियार बताते थे. समाज में स्त्राी की महत्वपूर्ण भूमिका थी और प्राप्त प्रमाणों के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि समाज मातृप्रधान था.

नवपाषाण काल मे स्थाई जीवन को प्रोत्साहन –

पूर्व पाषाण काल में मनुष्य अपनी उदरपूर्ती के लिए इधर-उधर घूमता रहता था. परन्तु नवपाषाण काल मे कृषि कार्य, पशुपालन तथा नए-नए अविष्कारों के कारण स्थायी रूप से रहना आरम्भ कर दिया. स्थायी रूप से रहने के लिए उसे घर की आवश्यकता महसूस होने लगी. प्रारम्भ मे वह झािड़ों, घास-फूस व पत्तों का घर बनाकर रहता था. pit-houses और Mudhouses के प्रमाण लगभग सभी नवपाषाण कालीन स्थानों पर मिले हैं. नवपाषाणकालीन यूरोप और एशिया की जनसंख्या छोटे-छोटे समुदायों के रूप में गाँवों में रहती थी. नवपाषाण काल में सुरक्षा के लिए बस्तियाँ ऊँचे स्थानों पर बसाई जाती थी.

नीदरलैंड से पक्के मकानों के व्यापक प्रभाव मिले है Merinde में घरों का नियमित रूप से पंक्तिबद्ध पाया जाना सामुदायिकत जीवन का द्योतक है. नव-पाषाण कालीन विशेष रूप से उल्लेखनीय है. ये लकड़ी के खम्बों को पानी में गाडकर बनाए जाते थे. इनमे आने-जाने के लिए सीढ़ियों का प्रबन्ध था.

 नवपाषाण काल की सामाजिक व्यवस्था –

नवीन अविष्कारों से मानव जीवन की सामाजिक व्यवस्था मे भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए. एक स्थान पर इकट्ठा रहने से उनमें सामाजिक संगठन आया जिसमें सब सदस्य मिल जूलकर कार्य करते थे. अनुमान है कि सामाजिक संगठन की इकाई कबीला था. हर कबीले के अपने-अपने चिन्ह होते थे. जिन्हें कबीले के सदस्य अपना आदि-पूर्वज मानते थे.

कुछ विद्वानों के अनुसार इस काल में राजा का अस्तित्व आरम्भ हो गया था. परन्तु इसके बारे में निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता. सामाजिक व्यवस्था में विवाह की नियमित व्यवस्था चल पड़ी. व्यक्तिगत सम्पति की प्रथा से आपसी संघर्ष को बढ़ावा मिला. आपसी संघर्ष तथा युद्ध में जो शत्राु पकडे़ जाते थे. उनसे दबाव देकर काम कराया जाता था. इस प्रकार गुलाम की प्रथा भी चल पड़ी. कालान्तर में नगरों की भी स्थापन होने लगी.

इस प्रकार नव-पाषाण कालीन सामाजिक व्यवस्था पूर्ण-पाषाण काल की व्यवस्था से काफी विकसित थी.

 नवपाषाण काल मे धर्म –

इतिहासकारों के अनुसार कृषि के प्रसार के साथ-साथ देवियों की पूजा प्रमुख हुई. मिश्र में मातृ देवी की पूजा की जाती थी. अधिकांश समाजों में मातृदेवी की पूजा होती थी. यहां मातृदेवी की मिट्टी की मूर्तियां और कहीं-कहीं हड्डी और पत्थर की मूर्ति से स्पष्ट होता है कि ऐसी मूर्तियाँ मिश्र, सीरिया, ईरान, भूमध्य सागर के इर्द-गिर्द दक्षिणी-पूर्वी यूरोप और कहीं-कहीं इंग्लैण्ड में भी मिलती है. ऐसा माना जाता है कि वास्वत में ये मूर्तिया मैसोपोटामिया, ग्रीस और सीरिया में मिलने वाली मूर्तियां मैसोपोटामिया, ग्रीस और सीरिया में मिलने वाली मूर्तियों के पूर्वज थी.

इंग्लैंड, बाल्कन और Anatolia में पुरूषों को पत्थर या मिट्टी के लिंग बनाकर दर्शाया गया.

नव-पाषाण समाज में मृतकों को पुरापाषाणकालीन शिकारियों की अपेक्षा अधिक आडम्बरों के साथ निश्चित कब्रिस्तान, घरों के नीचे या घरों के साथ दफनाया जाता था. कुछ नवपाषाण कालीन समुदाय विश्वास करते थे कि मृतकों को रीति-रिवाजों के साथ दफनाने से भूमि की उपज पर प्रभाव पड़ता है. धरती से सारे समुदाय को भोजन मिलता था. उस काल के लोगों की धारणा थी कि जिन मृतकों के शव जमीन के नीचे गडे़ है. किन्तु मृतकों को रीति-रिवाज या रस्मों के साथ दफनाने की प्रथा सभी नव पाषाण समुदायों में प्रचलित न थी. इस प्रकार की रस्में यूरोप के नव-पाषाण कालीन समुदाय मे नहीं मिलती.

मृत-व्यक्तियों को हथियार, मिट्टी के बर्तन तथा खाने पीने की वस्तुओं की आवश्यकता होती थी. सम्भवत: नवपाषाणकाल में कब्रों का महत्व पुरा पाषाण काल की अपेक्षा अधिक हो गया था.

नवपाषाण काल में प्रकृति पर कुछ अधिक नियन्त्राण के लिए जादू का प्रयोग होता था. इसका प्रमाण है ताबीज जो भूमध्य सागर के इर्द-गिर्द और Merinde में छोटे-छोटे पत्थर के कुल्हाडे़ बनाकर गले में पहने थे.

 नवपाषाण काल की कला

नवपाषाण काल की कृत्तियां बहुत कम हैं. मिश्र सीरिया, ईरान, पूर्वी यूरोप में कुछ नारी -आकृत्तियां प्राप्त हुई है. जो मातृशक्ति सम्प्रदाय से सम्बन्धित हो सकती इस समय की कलाकृतियों ने सबसे महत्वपूर्ण स्थान वृहद पाषाणों को प्राप्त है जो मृतकों को आदर प्रकट करने के लिए स्मारकों के रूप में खडे़ कर दिए जाते थे.

इस काल में प्राप्त मृतकों के साथ कब्रिस्तानों में कब्रों में मृदभाण्ड, हथियार खाद्य सामग्री प्राप्त हुई है जो मृतकों को आदर प्रकट करने के लिए स्मारको के रूप में खडे़ कर दिए जाते थे. इस काल में प्राप्त मृतकों के साथ कब्रिस्तानों में कब्रों में मृदभांड, हथियार खाद्य सामग्री प्राप्त हुई जो Grave goods कहलाती है. इसके प्रमाण उत्तरी चीन तभा भारत मे मिलते है.

 नवपाषाण काल मे ज्ञान विज्ञान –

इस काल के मानव का ज्ञान-विज्ञान पूर्व-पाषाण कालीन मानव के ज्ञान-विज्ञान से बहुत ही उन्नत था. उन्होंने शताब्दियों के प्रयोगों और अनुभवों द्वारा बहुत सी नई जानकारियां प्राप्त कर दी थी. नवपाषाण कालीन समुदायों के पास नए विज्ञान जैसे बर्तन बनाने का रसायन विज्ञान, पेय पदार्थ बनाने का विज्ञान या कृषि से सम्बन्धित वनस्पति विज्ञान और अनेकों ऐसे विज्ञान थे जो पुरापाषाण काल में अनजाने थे. उन्हें इस बात की भी जानकारी थी कि कृषि का जलवायु से घनिष्ठ संबंध होता है.

नवपाषाण काल वास्तव में एक क्रांतिकारी और युग प्रवर्तक काल था. इसे प्रगति का महान युग कहा जाता इस युग में बडे़ ही क्रांति अविष्कार हुए. ऐसा माना जाता कि 18 वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के पहले तक मानव सम्यता इन्हीं अविष्कारों पर आधारित रही. प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिए मानव ने इस युग में प्रयास किए मनुष्य ने प्राकृति साधनों का प्रयोग करना इसी काल में सीखा, जिससे उसमें नई आशा उत्साह, तथा उपलब्धि का संचार हुआ. इस काल में मानव सभ्यता का आधार वास्तव में स्थापित हो चुका था.

इसी कारण इतिकासकारों ने इस युग को मानव सभ्यता का प्रथम क्रांतिकारी चरण माना है. इस काल के मानव में मनुष्यता तथा विवेक की जागृति हो चुकी थी. किन्तु अभी तक उसे पूर्ण रूप से सभ्य नहीं माना जा सकता था. इस काल में सभ्यताा के मुख्य तत्व का विकास नहीं हुआ था. इस काल में सभ्यताा के मुख्य तत्व का विकास नहीं हुआ था.

नवपाषाण काल में पूर्ण रूप से न तो राज्यों का विकास हुआ था और न ही राजा की शक्ति का उदय हुआ था. इस काल में धातुओं का केवल प्रदुभार्व ही हुआ था. उन्हें प्रयोग में नहीं लाया जाने लगा था. इस युग को मानव सभ्यता के विकास का सर्वप्रथम क्रांतिकारी शोपान माना गया है.

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