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जैव विविधता और संरक्षण

    पृथ्वी पर पाए जाने वाले पौधों, जानवरों, कवकों और सूक्ष्मजीवों सहित जीवन के अन्य सभी रूपों की विस्तृत श्रृंखला में काफी अधिक विविधता पाई जाती है. इसी विविधता को ही जैव विविधता कहा जाता है. जीवन के अलावा इसमें उस पर्यावरण को भी शामिल किया जाता है, जो इन जीवों का आवास है. यह हमारे ग्रह के स्वास्थ्य और कार्यक्षमता का एक महत्वपूर्ण पहलू है. जैव विवधता पारिस्थितिक तंत्र को बरकार रखने में दवा का काम कर इसे स्वस्थ्य बनाए रखता है. साथ ही इससे हमें प्राकृतिक ‘सांस्कृतिक मूल्य‘ भी प्राप्त होता है.

    जैव विविधता को आनुवंशिक, प्रजाति विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के विविधता में वर्गीकृत किया गया है. जैव विविधता प्राकृतिक दुनिया और पृथ्वी पर जीवन के स्वास्थ्य में अद्वितीय भूमिका निभाता है. लेकिन, जीवों के प्राकृतिक आवास के विनाश और जलवायु परिवर्तन जैसे नकारात्मक खतरों से कई प्रजातियों के विलुप्ति का संकट पैदा हुआ है. कई तो विलुप्त हो गए है या होने के करीब है. इसलिए जैव विविधता के संरक्षण का सामूहिक प्रयास जरुरी है.

    बढ़ते प्रदुषण, बढ़ती जन आबादी, प्रकृति में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप, घटते वन और मानव द्वारा अन्य जीवों के आवास के अतिक्रमण से कई जीव-जंतुओं, पौधों, पक्षी और सूक्ष्मजीवों के अस्तित्व पर गहरा संकट पड़ा है. इससे धरती के जैविक विविधता को नुकसान हुआ है और इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है. पृथ्वी पर जीवन और जीवधारियों पर आए इस संकट को ही जैव विविधता संकट कहा जाता है.

    जैविक विविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biodiversity – CBD) और साइट्स (CITES – Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और संधियों का संबंध जैव विविधता संरक्षण से है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपने दशकीय और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) में एकीकरण जैसी पहलों के माध्यम से भी जैव विविधता को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है.

    परिचय और इतिहास (Introduction and History)

    जैव विविधता (Biodiversity) दो शब्दों – जैविक (Biological) और विविधता (Diversity) – से बंना है. इस शब्द के प्रथम प्रयोग के बारे में विवाद है. विकिपीडिया के अंग्रेजी संस्करण के अनुसार, 1980 में थॉमस लवजॉय ने एक किताब में वैज्ञानिक समुदाय के लिए जैविक विविधता (Biological Diversity) शब्द पेश किया. इसके बाद इस शब्द का व्यापक इस्तेमाल सामान्य होते चला गया.

    एडवर्ड ओ. विल्सन (Edward O. Wilson) के अनुसार, 1985 में जैव विविधता का अनुबंधित (Contracted) रूप डब्ल्यू. जी. रोसेन (W. G. Rosen) द्वारा गढ़ा गया था. इसके तर्क में उन्होंने कहा कि “जैव विविधता पर राष्ट्रीय मंच” की कल्पना वाल्टर जी.रोसेन ने की थी. इसी दौरान उन्होंने जैव विविधता (Biodiversity) शब्द के उपयोग की शुरुआत की. इसलिए जैव विविधता का प्रथम इस्तेमाल करने का श्रेय वाल्टर जी. रोसेन को दिया जा सकता है.

    जैव विविधता क्या है(What is Biodiversity in Hindi)?

    अलग-अलग विद्वानों ने ‘जैव विविधता‘ शब्द का कई परिभाषाएँ दी है. इसे किसी क्षेत्र के जीन, प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र की समग्रता’ के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है. इसमें प्रजातियों के भीतर, प्रजातियों के बीच और पारिस्थितिक तंत्र की विविधता शामिल है.

    जैव विविधता को विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में मौजूद जीवों के बीच सापेक्ष विविधता के माप के रूप में भी देखा जाता है. इस परिभाषा में, विविधता में प्रजातियों के भीतर और प्रजातियों के बीच भिन्नता और पारिस्थितिक तंत्र के बीच तुलनात्मक विविधता शामिल है.

    गैस्टन और स्पाइसर (2004) के अनुसार, यह ‘जैविक संगठन के सभी स्तरों पर जीवन की विविधता‘ है.

    1992 में रियो डि जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन के अनुसार, “जैव विविधता समस्त स्रोतों, यथा-अंतर्क्षेत्राीय, स्थलीय, सागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्रों के जीवों के मध्य अंतर और साथ ही उन सभी पारिस्थितिक समूह, जिनके ये भाग हैं, में पाई जाने वाली विविधताएँ हैं. इसमें एक प्रजाति के अंदर पाई जाने वाली विविधता, विभिन्न जातियों के मध्य विविधता तथा पारिस्थितिकीय विविधता सम्मिलित है.

    जैविक विविधता पर कन्वेंशन (ग्लोका एट अल, 1994) के अनुसार, “जैव विविधता को सभी स्रोतों से जीवित जीवों के बीच परिवर्तनशीलता के रूप में परिभाषित किया गया, जिसमें अन्य चीजें, स्थलीय, समुद्री और अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्र और पारिस्थितिक परिसर शामिल हैं; जिनका वे हिस्सा हैं“.

    जैव विविधता के स्तर (Levels of Biodiversity in Hindi)

    Levels of Biodiversity

    जैव विविधता को तीन स्तरों में विभाजित किया जा सकता है. ये तीनों मिलकर पृथ्वी पर जीवन के संभावनाओं को साकार करते है. ये है:

    1. आनुवंशिक विविधता
    2. प्रजाति विविधता
    3. पारिस्थितिकी तंत्र विविधता

    1. आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity in Hindi)

    एक प्रजाति के भीतर वंशानुगत जानकारी (जीन) की बुनियादी इकाइयों में विविधता को आनुवंशिक विविधता कहा जाता है. जीनोम किसी जीव की आनुवंशिक सामग्री (यानी, डीएनए) का पूरा सेट है.

    यह एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में हस्तांतरित होता है. मतलब कोई संतान अपने माता-पिता से इस गुण को प्राप्त करता है. इसी के कारण एक जीव का अगला पीढ़ी अपने पिछले पीढ़ी के समान गुण का होता है. किसी प्रजाति के दो जीवों के गुणों, बनावट, खानपान व व्यवहार में अंतर् का कारण भी आनुवंशिक विविधता ही है. इसी कारण दो मनुष्यों के चेहरे, रंगरूप व गुणों में अंतर होते है. वास्तव में, आनुवंशिक विविधता ही जैव विविधता का मूल स्त्रोत है और विभिन्न प्रजातियों का आधार है.

    एक ही प्रजाति के पक्षियों के स्वर, पंखों के रंग, सेब और अन्य खाद्य पदार्थों के रंग, स्वाद और बनावट इत्यादि अलग-अलग होने का कारण आनुवंशिक विविधता ही है.

    आनुवंशिक विविधता यह निर्धारित करता है कि कोई जीव अपने पर्यावरण के प्रति किस हद तक अनुकूलन कर सकता है. धरती पर जलवायु परिवर्तन के इतिहास को देखते हुए, यह अनुकूलन उक्त जीव के अस्तित्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. लेकिन जानवरों के सभी समूहों में आनुवंशिक विविधता समान नहीं होती है. आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने के लिए, एक प्रजाति की विभिन्न आबादी को संरक्षित किया जाना चाहिए.

    इस तरह बदलते पर्यावरण और मौसम के कारण आनुवंशिक गुण व जीन प्रकृति के लिए महत्वपूर्ण हो जाते है. इसी को ध्यान में रखते हुए विश्व में जीनों को संरक्षित करने के प्रयास भी किए जा रहे है. ग्लोबल जीनोम इनिशिएटिव एक ऐसा ही प्रोजेक्ट है. जीनोम के नमूनों को एकत्रित व संरक्षित कर पृथ्वी की जीनोमिक जैव विविधता को बचाना ही इसका लक्ष्य है.

    2. प्रजातीय विविधता (Species Diversity in Hindi)

    प्रजाति विविधता से तात्पर्य किसी पारिस्थितिक तंत्र में विभिन्न प्रजातियों की विविधता से है. दो प्रजाति समान नहीं होते है, जैसे इंसान और चिम्पांजी. दोनों के जीन में 98.4 प्रतिशत का समानता होता है. लेकिन दोनों अलग-अलग जीवधारी है. यहीं अंतर प्रजति विविधता कहलाता है.

    दूसरे शब्दों में, किसी प्रजाति की आबादी के भीतर या किसी समुदाय की विभिन्न प्रजातियों के बीच पाई जाने वाली परिवर्तनशीलता ही प्रजातीय विविधता है. प्रजाति किसी जीव का बुनियादी इकाई होता है, जिसका उपयोग जीवों को वर्गीकृत करने के लिए किया जाता है. इसका इस्तेमाल जैव विविधता का वर्णन करने में सबसे अधिक होता है. इसी से किसी प्रजाति के समुदाय के समृद्धि, प्रचुरता और पर्यावरण से अनुकूलता का पता चलता है.

    यदि प्रजातियों की संख्या और प्रकार के साथ ही प्रति प्रजाति अधिक आबादी से जैविक विविध परिस्थिति का पता चलता है. प्रजातीय विविधता को 0 से एक के बीच मापा जाता है. 0 सबसे अधिक विविधता को दर्शाता है, जबकि 1 सबसे कम विविधता को दर्शाता है. यदि किसी परिस्थिति में प्रजातीय विविधता 1 है तो माना जाता है कि उक्त जगह सिर्फ एक प्रजाति निवास कर रहा है.

    किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में प्रजातीय विविधता कायम होना उसके सुरक्षा के लिए नितांत जरुरी है. उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन चक्र में बैक्टीरिया, पौधे और केंचुए भाग लेते है. इससे मिटटी को उर्वरता प्राप्त होता है. यदि इनमें कोई एक जीव विलुप्त हो जाए तो नाइट्रोजन चक्र समाप्त हो जाएगा. इससे मिटटी के उर्वरता के साथ-साथ मानव खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित होगी.

    3. पारिस्थितिकीय विविधता (Ecological Diversity in Hindi)

    पारिस्थितिकी तंत्र जीवन के जैविक घटकों का एक समूह है जो आपस में और पर्यावरण के निर्जीव या अजैविक घटकों के साथ परस्पर सम्बन्धित होते है. मतलब, पारिस्थितिकी तंत्र जीवों और भौतिक पर्यावरण का एक साथ पारस्परिक क्रिया है. पारिस्थितिकी तंत्र के उदाहरण में ग्रेट बैरियर रीफ, मकड़ी का जाल, तालाब, पहाड़, रेगिस्तान, समुद्र तट और नदी शामिल है. यहां अलग-अलग प्रकार के जीव निवास करते है.

    इसलिए पारिस्थितिक तंत्र विविधता, आवासों की विविधता है, जहां जीवन विभिन्न रूपों में पाए जाते है. ऐसे स्थानों पर ख़ास प्रकार के जीव स्वाभाविक रूप से पाए जाते है. जैसे रेगिस्तान में कैक्टस, ऊँचे पर्वतों पर शंकुधारी वृक्ष, तालाबों में जलकुम्भी व मीठे जल की मछली इत्यादि, पारिस्थितिकीय विविधता का उदाहरण है.

    जैव विविधता प्रवणता (Biodiversity Gradients in Hindi)

    जलवायु जनित परिस्तिथियों के कारण बायोमास और प्रजातियों की संख्या में क्रमिक कमी जैव विविधता प्रवणता कहलाता है. इसके कारण जीवन के सघनता में निम्न प्रकार से बदलाव देखा जाता है-

    • उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों (ध्रुवों से भूमध्य रेखा) में जाने पर जीवों की संख्या और जैव विविधता में कमी पाया जाता है.
    • पर्वतीय क्षेत्रों में ऊंचाई के साथ ही विविधता में कमी होते जाता है.
    • टुंड्रा व टैगा जलवायु क्षेत्रों में विषुवतीय व उष्णकटिबंधीय वर्षावन वाले क्षेत्रों के तुलना में कम विविधता होता है.

    इसके अलावा सागरीय पारिस्थितिकी भी जैव विविधता प्रवणता से प्रभावित होता है. समुद्र की गहराई बढ़ने के साथ-साथ जानवरों की संख्या कम हो जाती है, लेकिन प्रजातियों की विविधता बहुत अधिक होती है. सतह के करीब वाले समुद्री हिस्से अधिक उत्पादक होते हैं, क्योंकि उन्हें निचली गहराई की तुलना में अधिक प्रकाश प्राप्त होता है. यह उच्च उत्पादकता उन्हें विभिन्न प्रकार के जीवन रूपों का समर्थन करने की अनुमति देती है.

    उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बायोमास और अत्यधिक जनसंख्या के निम्नलिखित कारण है-

    • मैदानी व उष्णकटिबंधीय इलाकों में जीवन आसान होता है, जबकि टुंड्रा जैसे ठन्डे और पहाड़ों के चोटी पर जीवन कठिन होता है.
    • भूमध्य रेखा पर धुप की किरणे सीधी पड़ती है, इससे पौधों को अधिक ऊर्जा प्राप्त होता है. अधिक पौधें शाकाहारी जीवों के विकास में योगदान देते है और मांसभक्षियों की संख्या भी बढ़ जाती है.

    जैव विविधता मापन के घटक (Components of Biodiversity Measurement in Hindi)

    measurement of biodiversity alpha beta and gama

    किसी स्थान में जैव विविधता के समृद्धि या एकरूपता का पता लगा के लिए विभिन्न तरीकों अपनाया जाता है. समुदाय और पारिस्थितिकी तंत्र के स्तर पर विविधता 3 स्तरों पर मौजूद है. पहली है अल्फा विविधता (सामुदायिक विविधता के भीतर), दूसरी है बीटा विविधता (समुदायों की विविधता के बीच) और तीसरी है गामा विविधता (कुल परिदृश्य या भौगोलिक क्षेत्र में आवासों की विविधता). इनकी व्याख्या इस प्रकार है:

    1. अल्फा (α) विविधता (Alpha Diversity in Hindi):

    किसी पारिस्थितिकी तंत्र में प्रजातियों की विविधता को मापती है. इसे आम तौर पर उस पारिस्थितिकी तंत्र में प्रजातियों की संख्या से व्यक्त किया जाता है. अल्फा विविधता एक समुदाय के भीतर छोटे पैमाने पर या स्थानीय स्तर पर प्रजातियों की विविधता का वर्णन करती है, आमतौर पर एक पारिस्थितिकी तंत्र के आकार की. जब हम लापरवाही से किसी क्षेत्र में विविधता की बात करते हैं, तो अक्सर इसका तात्पर्य अल्फा विविधता से होता है.

    2. बीटा (β) विविधता (Beta Diversity in Hindi):

    दो समुदायों या दो पारिस्थितिक तंत्रों के बीच प्रजातियों की विविधता में परिवर्तन का माप बीटा विविधता कहलाता है. यह आवासों या समुदायों की एक प्रवणता के साथ जातियों के विस्थापन दर से संबंधित है. यह जीवों की विविधता मापने का बड़ा पैमाना है और दो अलग-अलग अवयवों के बीच प्रजातियों की विविधता की तुलना करता है. ये अक्सर नदी या पर्वत श्रृंखला जैसी स्पष्ट भौगोलिक बाधा से विभाजित होती हैं.

    3. गामा (γ) विविधता (Gama Diversity in Hindi):

    एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र की समग्र जैव विविधता को मापती है. यह एक क्षेत्र में विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों के लिए समग्र विविधता का माप है. गामा विविधता में विविधता का अध्ययन बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है. जैसे एक बायोम, जहां कई पारिस्थितिक तंत्रों के बीच प्रजातियों की विविधता की तुलना की जाती है. यह किसी पर्वत की संपूर्ण ढलान, या समुद्र तट के संपूर्ण तटीय क्षेत्र तक विस्तृत हो सकता है.

    α, β और γ विविधता का महत्त्व (Importance of α, β and γ Diversity)

    Alpha Beta and Gama Diversity Diagram for UPSC and Other State PCS Competitive Examination

    विविधता के एक या दो स्तरों पर मानवीय हस्तक्षेप के काफी बढ़ गया है. इससे समग्र गामा विविधता में गिरावट हो रही है. इंसानों ने अपने आवश्यकताओं के पूर्ति के लिए प्रकृति का भरपूर दोहन किया है. जंगल के जगह खेत, शहर, सड़के और अन्य मानवीय संरचनाओं का निर्माण हुआ है, जो पारिस्थितिक तंत्र के सिकुड़ने का कारण बन गया.

    इन छोटे तंत्रों में सड़कों और शहरों के अवरोध उत्पन्न हुए है. यह दो समुदायों के सम्पर्क में बाधा के तौर पर उभरा है. साथ ही, एक तरह के जैवीय वातावरण बना है, जिससे बीटा विविधता में वृद्धि हुई है.

    इसके साथ ही दुनियाभर में गामा विविधता में गिरावट देखा जा रहा है. अल्फा विविधता स्थिर हो या मामूली रूप से कम हो रही है या बीटा-विविधता में उतार-चढ़ाव हो, दुनिया के विभिन्न स्थानों पर बड़े पैमाने पर जीवों की विलुप्ति गामा विविधता में कमी का स्पष्ट प्रमाण है.

    जैव विविधता सूचकांक (Biodiversity Index in Hindi)

    ये सूचकांक किसी पारिस्थितिकी तंत्र की जैव विविधता का मूल्य है. चूँकि कोई एक सूचकांक जैव विविधता के सभी पहलुओं का आकलन नहीं कर पाता है. इसलिए अनुसंधानकर्ताओं द्वारा विविधता का मूल्यांकन के लिए कई प्रकार के सूचकांकों का इस्तेमाल किया जाता है. यह मूल्यांकन मुख्यतः निम्नलिखित दो कारकों पर निर्भर होता है:

    1. प्रचुरता (Richness)
    2. समानता (Evenness)

    1. प्रचुरता (Richness)

    किसी सैंपल में उपलब्ध प्रजातियों की संख्या जितनी अधिक होगी, उसे उतना ही प्रचुर कहा जाएगा. विविधता के गणना के लिए प्रजाति के जीवों की संख्या का गणना नहीं किया जाता है. उदाहरण के लिए, किसी सैंपल में उपलब्ध आम के 5 पेड़ और कटहल के 25 पेड़ों को दो प्रजाति माना जाता है.

    सैंपल में प्रजाति के जिस जीव या पौध का संख्या कम हो उसे अधिक भार दिया जाता है. उपरोक्त उदाहरण में आम के 5 पेड़ों को कटहल के 25 पेड़ों के तुलना में अधिक भार दिया जाएगा.

    2. समानता (Evenness)

    किसी सैंपल में विभिन्न प्रजातियों की सापेक्षिक उपलब्धता को सैंपल का समानता कहा जाता है. इसे आसानी से समझने के लिए नीचे दिए गए तालिका पर गौर करें:

    प्रजातिसैंपल 1सैंपल 2
    बरगद512129
    लीची4871173
    कटहल501198
    कुल15001500

    इस उदारहरण में पहला सैंपल अधिक समान है, क्योंकि इसमें तीनों प्रजातियों की संख्या लगभग समान है. इसलिए इसे अधिक विविध माना जाएगा.

    जिस सैंपल में अत्यधिक प्रचुरता और समानता का गुण हो, उसमें उतना ही अधिक विविधता होता है.

    जैव विविधता के अन्य सूचकांक (Other Indices of Biodiversity in Hindi)

    विभिन्न जीव विज्ञानियों द्वारा अलग-अलग सूचकांक विकसित किए गए है. इनके माध्यम विविधता के सम्बन्ध में कई प्रकार के जानकारियां आसानी से प्राप्त हो जाते है. इनमें कुछ प्रमुख और विख्यात सूचकांक इस प्रकार है:

    1. सिम्पसन विविधता सूचकांक (Simpson’s Diversity Index)

    इसमें सूचकांक में समानता और प्रचुरता, दोनों का ध्यान रखा गया है. प्रचुरता और समानता, दोनों के लिए एक अंक निर्धारित किया गया है. सिम्पसन विविधता सूचकांक जैव विविधता को मापने के लिए काफी उपयोगी है. विविधता मापने के लिए कई अन्य सूचकांक भी है. अन्य सूचकांक, जैसे कि स्पीशीज़ समृद्धि और स्पीशीज़ समानता, कभी-कभी अधिक उपयुक्त होते हैं.

    सिम्पसन विविधता सूचकांक का सूत्र निम्नलिखित है:

    D = 1 – Σ n(n-1)/N(N-1)

    जहाँ:

    D = सिम्पसन विविधता सूचकांक
    n = समुदाय में ख़ास प्रजाति के जीवों की संख्या
    N = समुदाय में सभी प्रजातियों के जीवों की संख्या

    इस सूचकांक का मान 0 से 1 के बीच होता है. 0 का मतलब समुदाय में केवल एक प्रजाति के मौजूद होने का संकेत देता है, जबकि 1 का मान समुदाय में सभी प्रजातियों की समान प्रचुरता को दर्शाता है.

    मतलब विविधता का मान उच्च होना प्रजातियों के विस्तृत श्रृंखला के उपस्थिति को दर्शाता है. यह प्रत्येक जीव की आनुपातिक तौर पर पर्याप्त प्रचुरता होना निर्धारित करता है. दूसरी तरफ,संख्या का मान कम होने का मतलब है समुदाय में प्रजाति की संख्या और प्रचुरता कम है.

    सिम्पसन विविधता सूचकांक का उपयोग अक्सर जैव विविधता के नुकसान को ट्रैक करने के लिए किया जाता है. जैसे-जैसे प्रजातियां विलुप्त होती हैं, समुदाय में प्रजातियों की संख्या और प्रचुरता कम होते जाता है.विविधता में कमी के अनुसार सिम्पसन विविधता सूचकांक भी कम हो जाता है. इससे किसी ख़ास क्षेत्र के विविधता में हो रहे बदलाव का पता चल जाता है.

    सिम्पसन विविधता सूचकांक का उदाहरण

    प्रजातिसंख्या (n)n(n-1)
    साल22
    चन्दन856
    सागवान10
    शीशम10
    महुआ36
    कुल1564
    N = 15Σ n(n-1) = 64

    यहाँ सिम्पसन फॉर्मूले में Σ n(n-1) और N का मान रखने पर हमें विविधता का मान 0.7 प्राप्त होता है. यह एक के करीब है, इसलिए यह इलाका समान और प्रचुर विविधता के करीब माना जा सकता है.

    Note: सूचकांक सीमांकन क्षेत्र में सिर्फ एक प्रजाति होगा तो उसका Pi = 1 माना जाएगा. इसका परिणामस्वरूप हमें विविधता का मान शून्य प्राप्त होगा. इसलिए आंकड़ों में सटीकता के लिए रैंडम सैंपलिंग तकनीक से एक ही क्षेत्र में कम से कम तीन नमूनों को प्राप्त करना आवश्यक माना जाता है. Pi का अर्थ क्षेत्र में प्रजाति के आनुपातिक प्रचुरता से है.

    सिम्पसन सूचकांक के लाभ और हानि (Advantages and Disadvantages of Simpson Index)

    सिम्पसन विविधता सूचकांक के कुछ लाभ और नुकसान निम्नलिखित हैं:

    लाभ (Advantages):

    • यह एक सरल और समझने में आसान सूचकांक है.
    • यह समुदाय में प्रजातियों की संख्या और प्रचुरता दोनों को ध्यान में रखता है.

    नुकसान (Disadvantages):

    • यह प्रजातियों के आकार या वितरण को ध्यान में नहीं रखता है.
    • यह प्रजातियों के बीच संबंधों को ध्यान में नहीं रखता है.

    2. शेनॉन-वीनर सूचकांक (Shannon-Weiner Index in Hindi)

    यह सूचकांक मूलतः क्लाउड शेनॉन (Claude Shannon) द्वारा 1948 में प्रस्तुत किया गया था. यह सूचकांक सबसे अधिक प्रचलित है. इसमें प्रचुरता और समानता दोनों तरह के विविधता का ध्यान रखा गया है. इस सूचकांक का सबसे बड़ा खासियत इसका लॉग (Log) पर आधारित होना है, जो क्लाउड ई. शैनन और नॉर्बर्ट वीनर द्वारा विकसित सूचना के सिद्धांतों पर आधारित है.

    सूचकांक का सूत्र निम्नलिखित है:

    H’ = -\sum_{i=1}^{S} p_i \log_e p_i

    जहाँ:

    H’ = शेनॉन – वीनर सूचकांक
    p_i = समुदाय में iवीं प्रजाति की प्रचुरता
    S = समुदाय में प्रजातियों की कुल संख्या

    सिम्पसन सूचकांक के भांति शेनॉन-विनर सूचकांक का मान भी 0 से 1 के बीच होता है. 0 का मान पूर्ण रूप से एकल समुदाय को दर्शाता है. मललब इलाके में सिर्फ एक ही प्रजाति मौजूद है. वहीं, 1 का मान पूर्ण रूप से विविध समुदाय को दर्शाता है. मतलब इलाके में विभिन्न प्रजातियों के जीव समान रूप से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है.

    इस सूचकांक का उपयोग विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक समुदायों, जैसे कि वन, घास के मैदान, झीलें और महासागरों में प्रजातियों की विविधता को मापने के लिए किया जाता है. यह सूचकांक हमें यह समझने में मदद करता है कि प्रजातियों की विविधता को कैसे संरक्षित किया जाए. इसलिए यह पारिस्थितिकीय संरक्षण के लिए भी उपयोगी है.

    खासियत और खामी

    शेनॉन – वीनर सूचकांक के कुछ फायदे निम्नलिखित हैं:

    • यह सूचकांक सरल और आसानी से समझने योग्य है.
    • यह विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक समुदायों में प्रजातियों की विविधता को मापने के लिए उपयोग किया जा सकता है.
    • यह हमें यह समझने में मदद करता है कि प्रजातियों की विविधता को कैसे संरक्षित किया जाए.

    शेनॉन – वीनर सूचकांक के कुछ नुकसान निम्नलिखित हैं:

    • यह प्रजातियों की प्रचुरता के आकार पर निर्भर करता है.
    • यह प्रजातियों के आकार या आवास के प्रकार जैसे अन्य कारकों को ध्यान में नहीं रखता है.

    जीवीय विविधता के महत्व (Importance of Biological Diversity in Hindi)

    मानव अपने जीवन को बनाए रखने के लिए प्रकृति से कई प्रकार के वस्तुएं प्राप्त करता है. इसलिए मानव जीवन के लगभग सभी पहलुओं में जैव विविधता का अत्यधिक महत्व है. जैव विविधता के विविध उपयोगों में शामिल हैं:

    1. उपभोग्य उपयोग (Consumptive Uses):

    जैव विविधता के उपभोग का अर्थ जीवीय उत्पादों की कटाई और उपभोग से है, जैसे ईंधन, भोजन, औषधियाँ, औषधियाँ, रेशे आदि. जंगली पौधे और जानवरों की एक बड़ी संख्या मनुष्यों के भोजन का स्रोत हैं. दुनिया की लगभग 75% आबादी दवाओं के लिए पौधों या पौधों के अर्क पर निर्भर है.

    उदाहरण के लिए, एंटीबायोटिक के रूप में उपयोग की जाने वाली दवा पेनिसिलिन, पेनिसिलियम नामक कवक से प्राप्त होती है. वहीं टेट्रासाइक्लिन एक जीवाणु से प्राप्त होता है. मलेरिया का इलाज के लिए जरूरी कुनैन भी सिनकोना पेड़ की छाल से प्राप्त किया जाता है.

    विनब्लास्टिन और विन्क्रिस्टिन नाम की दो कैंसर रोधी दवाएं कैथरैन्थस पौधे से प्राप्त की जाती हैं. इसके अलावा इंसान जंगलों का उपयोग सदियों से ईंधन की लकड़ी के लिए करते रहे है. जीवाश्म ईंधन कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस भी जैव विविधता के उत्पाद हैं.

    2. उत्पादक उपयोग (Productive Use)

    इसका तात्पर्य पशु उत्पाद जैसे कस्तूरी मृग से कस्तूरी, रेशमकीट से रेशम, भेड़ से ऊन, कई जानवरों से प्राप्त फर, लाख के कीड़ों से प्राप्त लाख आदि इत्यादि के व्यापार से है. इसके अलावा, कई उद्योग विविध जीव के उत्पादक उपयोग पर निर्भर हैं, जैसे, कागज और लुगदी, प्लाईवुड, रेलवे स्लीपर, कपड़ा, चमड़ा और मोती उद्योग इत्यादि.

    3. सामाजिक महत्व (Social Value)

    लोगों के सामाजिक जीवन, रीति-रिवाज, धर्म, मानसिक-आध्यात्मिक इत्यादि पहलू प्रकृति से जुड़े होते है. मतलब, जैव विविधता का अलग-अलग समाजों में विशिष्ट सामाजिक मूल्य होता है. उदाहरण के लिए बिश्नोई समाज के लोग काले हिरण को अपने गुरु जंबाजी उर्फ जंबेश्वर भगवान का रूप मानते है. भगवान् बुद्ध को भी बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ है. हिन्दू धर्म में भी तुलसी, पीपल, आम, कमल आदि कई पौधों को पवित्र माना जाता है और पूजा भी जाता है. कई पौधों के पत्तियों, सूखे टहनियों, फलों या फूलों का उपयोग पूजा में किया जाता है. आदिवासियों का सामाजिक जीवन, गीत, नृत्य और रीति-रिवाज वन्य जीवन से जुड़े हुए हैं. इस प्रकार जीवीय विविधता का समाज में विशेष महत्व होता है.

    4. नैतिक या अस्तित्व मूल्य (Ethical or Existence Value)

    यह ‘जियो और जीने दो’ की अवधारणा पर आधारित है. मतलब मानव जीवन के सुरक्षा के लिए पृथ्वी का विविधता बचाए रखना जरुरी है. इसलिए धरती पर सभी प्रकार के जीवन को सुरक्षित किया जाना चाहिए.

    5. सौन्दर्यपरक मूल्य (Aesthetic Value)

    सौंदर्यपूर्ण पर्यावरण का उपयोग पर्यटन और मनोरंजन के लिए किया जाता है. लोग प्राकृतिक सुंदरता और विविधता का आनंद लेने के लिए दूर-दूर तक का सफर तय करते है. इसमें उनके बड़ा धन खर्च होता है और समय की बर्बादी भी होती है. लेकिन, इससे प्राप्त होने वाला ताजगी मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है. इसलिए जैव विविधता का सौंदर्य संबंधी महत्व बहुत अधिक है.

    6. पारिस्थितिकी तंत्र सेवा मूल्य (Ecosystem Service Values in Hindi)

    मानव कल्याण और निर्वाह के लिए अपरिहार्य वस्तुओं और सेवाओं के समुच्चय को पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ (ESs) कहा जाता है. वहीं, पारिस्थितिकी तंत्र कार्यप्रणाली (Ecosystem Function) इसके भीतर होने वाली प्रक्रियाओं और घटकों को संदर्भित करता है. ‘पारिस्थितिकी तंत्र सेवा मूल्य (ESVs)’ पारिस्थितिकी तंत्र की वस्तुओं और सेवाओं और उसके कार्यों को आर्थिक मूल्य निर्धारित करने और निर्दिष्ट करने का एक दृष्टिकोण है.

    हमे पारिस्थितिक तंत्र द्वारा कई प्रकार के सेवाएं और लाभ प्राप्त होते है. उदाहरण के लिए, मिट्टी के कटाव को रोकना, बाढ़ की रोकथाम, मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखना, पोषक तत्वों का चक्रण, नाइट्रोजन का स्थिरीकरण, पानी का चक्रण, प्रदूषक अवशोषण और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को कम करना इत्यादि में पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न घटकों द्वारा प्राप्त लाभ है.

    बढ़ती मांग और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना और कार्यप्रणाली गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं. इसलिए विविधता का संरक्षण आवश्यक हो जाता है.

    पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का वर्गीकरण चार प्रकार में किया गया है:

    • उपबंधित या उत्पादक सेवाएं:
      • खाद्य: फसल, पशुधन, मछली
      • पानी: जलाशय, नदियां, झीलें
      • लकड़ी: इमारती लकड़ी, कागज
      • दवाएं: औषधीय पौधे, जंतु उत्पाद
    • नियामक सेवाएं:
      • बाढ़ नियंत्रण: नदी के किनारों पर पेड़, जंगल
      • मिट्टी संरक्षण: वन, घास के मैदान
      • जलवायु नियमन: वन, समुद्री वनस्पति
      • रोग नियंत्रण: परभक्षी, रोगाणुरोधी पौधे
    • आर्थिक सेवाएं:
      • कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन
      • पर्यटन, मनोरंजन
      • वन्यजीव अवलोकन
      • शिक्षा, अनुसंधान
    • सांस्कृतिक या सामाजिक सेवाएं:
      • आध्यात्मिक मूल्य
      • मनोवैज्ञानिक लाभ
      • सांस्कृतिक पहचान

    इसके अलावा जैव विविधता द्वारा संचालित वे कार्य जो जैव विविधता, पोषण चक्र तथा अन्य सेवाओं को यथावत कायम रखने में सहायक हो, सहायक सेवा कहा जा सकता है.

    7. जैव विविधता का कृषि में महत्व

    कृषि कार्य में जैव विविधता का काफी अहम योगदान होता है. राइजोबियम, एज़ोटोबैक्टर और साइनोबैक्टीरिया जैसे जीवाणु नाइट्रोजन स्थिरीकरण में हिस्सा लेकर जमीन में नाइट्रोजन का मात्रा बढ़ाते है. वहीं, केंचुआ मिटी को मुलायम और भुरभुरी बनाए रखने में मदद करता है. इसलिए केंचुए को किसान का मित्र कहा जाता है.

    दुनिया में करीब 1400 प्रकार के पौधों को खाद्य उत्पाद के लिए उगाया जाता है. इनमें 80 फीसदी को परागण का जरूरत होता है. मधुमक्खियाँ, भृंग, तितलियाँ, चींटियाँ, हमिंगबर्ड, चमगादड़, कृंतक, नींबू, छिपकली, ततैया, पतंगे और स्लग इसमें मदद करते है.

    विविधता में ह्रास के कारण उपरोक्त जीवों के संख्या में ह्रास हुआ है. बढ़ती आबादी को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध करवाने के लिए आधुनिक कृषि प्राद्यौगिकी व उत्पाद का इस्तेमाल किया जाने लगा है. इनमें कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी शामिल है. इससे कृषि में सहायक जीवों के जीवन पर खतरा उत्पन्न हुआ है.

    प्रदुषण से भी कृषि पादपों के प्रजाति पर असर हुआ है. अनुमानतः 940 के करीब कृषि प्रजातियों पर संकट मंडरा रहा है.

    8. वैज्ञानिक और विकासवादी मूल्य (Scientific and Evolutionary Values)

    प्रत्येक प्रजाति का विशेषता मिलकर ये बताने में सक्षम होते है कि पृथ्वी पर जीवन कैसे विकसित हुआ और कैसे विकसित होता रहेगा. जीवन कैसे कार्य करता है और पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने में प्रत्येक प्रजाति की भूमिका क्या है, जैसे मुद्दों को भी विविधता द्वारा समझा जा सकता है. इसके अलावा भी जैव विविधता के अन्य कई अन्य महत्व है.

    जैव विविधता हानि के कारण (Causes of Biodiversity Loss in Hindi)

    पृथ्वी पर जैव विविधता का नुकसान हमारे ग्रह और इसके लोगों के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है. जैव विविधता के नुकसान के कारणों को समझकर ही हम अपनी प्राकृतिक दुनिया की रक्षा के लिए कदम उठा सकते है. इसलिए इन कारणों को समझना जरुरी है. जैव विविधता के हानि का कारण या तो प्राकृतिक या फिर मानवीय हो सकता है.

    A. प्राकृतिक

    1. प्राकृतिक आपदाएँ: भूकंप, भू-स्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, तूफान, बाढ़-सुखाड़ और जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाएँ आवासों को नष्ट कर सकती हैं और बड़ी संख्या में पौधों और जानवरों को मार सकती हैं.
    2. जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान, वर्षा और समुद्र के स्तर में परिवर्तन हो रहा है. इससे कई प्रजातियों के लिए प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां उत्पन्न होते है. इससे पारिस्थितिक तंत्र बाधित होता है और प्रजातियों के नुकसान का कारण बन जाता है.
    3. आक्रामक प्रजातियाँ: आक्रामक प्रजातियाँ गैर-देशी प्रजातियाँ हैं. जब ये नए वातावरण में प्रवेश करते है तो यहाँ इनका कोई प्राकृतिक शिकारी या प्रतिस्पर्धी नहीं होता है. इसके कारण ये तेजी से फैलकर देशी और स्थानीय प्रजातियों को विस्थापित कर सकती हैं, जिससे स्थानीय विविधता का नुकसान हो सकता है.
    4. सहविलुप्तता: जब एक प्रजाति विलुप्त होती है तब उस पर आधारित दूसरी जंतु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगते है. उदाहरण के लिए, जब एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है तब उसके विशिष्ट परजीवि भी विलुप्त होने लगते है. दूसरा उदाहरण सह-उद्भव व विकास (Co – evolution and Development ), परागण (Pollination) और सहोपकारिता (Mutualism) का है. परागण में पौधों के विलोपन से किट-पतंगों का भी विनाश होने लगता है.

    B. मानव निर्मित

    i) प्रत्यक्ष

    1. पर्यावास का विनाश: पर्यावास का विनाश जैव विविधता हानि का सबसे प्रमुख कारण है. मनुष्य कृषि, विकास और अन्य उद्देश्यों के लिए जंगलों, घास के मैदानों और अन्य प्राकृतिक आवासों को साफ़ करते है. यह पौधों और जानवरों के घरों को नष्ट कर देता है, जिससे उन्हें नए क्षेत्रों में जाना पड़ता है अन्यथा भोजन के अभाव में अपना जीवन त्यागना पड़ता है.
    2. अतिशोषण: अतिशोषण जानवरों और पौधों के उपभोग के उस दर से होती है जो क्रमशः उनके प्रजनन और रोपण के तुलना में तेज़ होती है. इससे आबादी का पतन होता है और यहां तक कि विलुप्ति भी हो सकती है.
    3. प्रदूषण: प्रदूषण आवासों को दूषित कर सकता है और उन्हें पौधों और जानवरों के लिए अनुपयुक्त बना सकता है. यह सीधे तौर पर पौधों और जानवरों के लिए जहर का काम भी कर सकता है. औद्योगिक कचरे, प्लास्टिक, जल में औद्योगिक रसायन द्वारा प्रदुषण इत्यादि इसके उदाहरण है.

    ii) अप्रत्यक्ष

    1. जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों जैसे जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण होता है. जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, जलवायु परिवर्तन का जैव विविधता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है.
    2. आक्रामक प्रजातियों का परिचय: मनुष्य अक्सर व्यापार, यात्रा और अन्य गतिविधियों के माध्यम से अनजाने में आक्रामक प्रजातियों को नए वातावरण में पेश करता है. उदाहरण के लिए, ज़ेबरा मसल्स को 1980 के दशक में उत्तरी अमेरिका में लाया गया था और तब से यह ग्रेट लेक्स में एक प्रमुख आक्रामक प्रजाति बन गई है.
    3. रोग: मनुष्य जंगली पौधों और जानवरों में बीमारियाँ फैला सकते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर मृत्यु और विलुप्ति हो सकती है. उदाहरण के लिए, चेस्टनट ब्लाइट कवक 1900 के दशक की शुरुआत में उत्तरी अमेरिका में लाया गया था और इसने अरबों अमेरिकी चेस्टनट पेड़ों को नष्ट कर दिया था.

    जैव विविधता संरक्षण (Conservation of Biodiversity in Hindi)

    Methods of Biodiversity Conservation in Hindi for UPSC Infographics 1
    जैव विविधता संरक्षण के तरीके

    जैव विविधता संरक्षण क्या है (What is Biodiversity Conservation in Hindi)?

    सतत विकास के लिए प्रकृति से संसाधन प्राप्ति को उस प्रकार प्रबंधित करने से है जिससे जैव विविधता को कम से कम या नहीं के बराबर हानि हो, जैव विविधता का संरक्षण है. इस तरह विविधता संरक्षण का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों के सदुपयोग से है.

    जैव विविधता संरक्षण के तीन मुख्य उद्देश्य हैं:

    1. प्रजातियों की विविधता को संरक्षित करना.
    2. प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र का सतत उपयोग को बरकरार रखना.
    3. पृथ्वी के जीवन-सहायक प्रणालियों और आवश्यक पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बनाए रखना.

    जैव विविधता संरक्षण के रणनीतियां (Strategies of Biodiversity Protection)

    प्रकृति में विविधता बनाए रखने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते है:

    • जीवों के प्राकृतिक आवास को न तो नष्ट करना चाहिए और न ही इनमें कोई बदलाव किया जाना चाहिए.
    • जीवन के लिए जरूरी मृदा, जल, हवा और ऊर्जा को सुरक्षित रखना चाहिए, ताकि सभी जीवों के लिए यह सुलभ हो.
    • सभी प्रकार के जीवों को प्राकृतिक आवास में ही सुरक्षा मिले. यदि ऐसा संभव न हो तो चिड़ियाघर या जंतु शाला (Zoological Park) में इन्हें संरक्षित किया जा सकता है.
    • असुरक्षित, संकटापन्न या विलुप्तप्राय जीवों के संरक्षण के लिए विशेष क़ानूनी प्रावधान होना चाहिए. यदि प्राकृतिक आवास पर इन्हें संरक्षित नहीं किया जा सके तो कृत्रिम आवास में इन्हें संरक्षित करना चाहिए.
    • जंगलों का सीमांकन स्पष्ट होना चाहिए और विविधता के दृश्कों से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बाह्य प्रवेश निषिद्ध होना चाहिए.
    • पशुओं के आहार, जलाशय, विश्राम स्थल और प्रजनन पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
    • पारिस्थितिकी तंत्र का सिमित उपभोग करना चाहिए. साथ ही उपयोग उत्पादन दर के अनुरूप होना चाहिए.
    • असुरक्षित प्रजातियों के व्यापार पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबन्ध होना चाहिए.
    • एक जीव के स्थान पर सम्पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र के सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए, ताकि संतुलन बना रहे.
    • जीवों के शिकार पर प्रतिबन्ध हो.
    • अत्यधिक प्रवणता वाले क्षेतों को संरक्षित घोषित करने से बड़े पैमाने पर जैव विविधता का संरक्षण किया जा सकता है. यदि यह प्रयास वैश्विक स्तर पर हो तो परिणाम कई गुना फलित होंगे.
    • समाज में जागरूकता होने से संरक्षण की संभावना बढ़ती है. शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में जैव विविधता के महत्व और सुरक्षा के उपायों को शामिल करके भी जागरूकता फैलाया जा सकता है.

    जैव विविधता संरक्षण के तरीके (Methods of Biodiversity Conservation in Hindi)

    जैव विविधता से तात्पर्य पृथ्वी पर जीवन की परिवर्तनशीलता से है. इसे निम्नलिखित तरीकों से संरक्षित किया जा सकता है:

    1. स्वस्थाने संरक्षण (In-situ Conservation)
    2. अस्थानिये संरक्षण (Ex-situ Conservation)

    1. स्वस्थाने संरक्षण (In-situ Conservation)

    यह प्राकृतिक आवास के भीतर प्रजातियों के संरक्षण का तरीका है. इस विधि से सम्पूर्ण प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का रखरखाव एवं संरक्षण किया जाता है. इस रणनीति में उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र का पता लगाया जाता है. ये वैसे क्षेत्र है जिसमें पौधे और जानवर बड़ी संख्या में मौजूद हो. इस उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र को प्राकृतिक पार्क, वन्यजीव अभयारण्य, जीव मंडल आरक्षित क्षेत्र आदि के रूप में कवर किया किया जाता है. इस प्रकार जैव विविधता को मानवीय गतिविधियों से बचाकर उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित किया जा सकता है.

    इस प्रकार के संरक्षण से अधिक लाभ होता है, जो इस प्रकार है.

    • यह सुविधाजनक और सस्ता तरीका है.
    • इस प्रकार के संरक्षण में लक्षित जीवों के साथ ही अन्य जीवों का सुरक्षा भी हो जाता है. इससे संरक्षित जीवों की संख्या बढ़ जाती है.
    • प्राकृतिक परिवेश में जीवों को जीवन से जुड़े बाधाओं से झूझना पड़ता है. इससे इनका बेहतर विकास होता है. साथ ही, विभिन्न वातावरण में समायोजित होने का गुण भी बरकरार रहता है.

    भारत सरकार द्वारा इस विधि का उपयोग करते हुए निम्नलिखित आरक्षित क्षेत्र बनाए गए है:

    1. राष्ट्रीय उद्यान (National Parks)

    ये सरकार द्वारा संरक्षित छोटे क्षेत्र है. इसकी सीमाएँ अच्छी तरह से सीमांकित हैं और चराई, वानिकी, आवास और खेती जैसी मानवीय गतिविधियाँ निषिद्ध हैं. उदाहरण के लिए, कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, और बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान.

    2. वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuary)

    ये वे क्षेत्र हैं जहां केवल जंगली जानवर पाए जाते हैं. लकड़ी की कटाई, खेती, लकड़ियों और अन्य वन उत्पादों का संग्रह जैसी मानवीय गतिविधियों को तब तक अनुमति दी जाती है जब तक वे संरक्षण परियोजना में हस्तक्षेप नहीं करते हैं. पर्यटकों को इन इलाकों में आने दिया जाता है.

    3. बायोस्फीयर रिजर्व (Biosphere Reserve)

    बायोस्फीयर रिजर्व बहुउद्देश्यीय संरक्षित क्षेत्र हैं, जहां वन्य जीवन, निवासियों की पारंपरिक जीवनशैली और पालतू पौधों और जानवरों की रक्षा की जाती है. यहां पर्यटक और अनुसंधान गतिविधियों की अनुमति है.

    अस्थानिये संरक्षण (Ex-situ Conservation)

    सरक्षण के इस तकनीक में जैव विविधता को प्राकृतिक आवास के बाहर कृत्रिम पारिस्थितक तंत्र में संरक्षित किया जाता है. चिड़ियाघर, नर्सरी, वनस्पति उद्यान, जीन बैंक आदि इसके उदाहरण है. इसमें आनुवंशिक संसाधनों के साथ-साथ जंगली और खेती या प्रजातियों का संरक्षण शामिल है. इसके लिए विभिन्न तकनीकों और सुविधाओं का उपयोग किया जाता है.

    अस्थानिये संरक्षण के निम्नलिखित लाभ हैं:

    • जीवों को भोजन, पानी और आवास के लिए कम संघर्ष करना पड़ता है. इससे उन्हें प्रजनन और आराम के लिए लम्बा समय मिलता है.
    • कैदी प्रजातियों को जंगल में फिर से बसाया जा सकता है.
    • लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए आनुवंशिक तकनीकों का उपयोग हो सकता है.
    • ऐसे कृषि बीज, जो प्रकृति में सुरक्षित नहीं रह सकते को जीन में सुरक्षित किया जा सकता.
    • जीन बैंक में सुरक्षित बीजों का उपयोग भविष्य में अनुसंधान और रोपण कार्य किया जा सकता है.
    • पुरे दुनिया में करीब 60 करोड़ लोग हरेक वर्ष चिड़िया घर व अन्य संरक्षित पार्क घूमने जाते है.

    अस्थानिये जैव विविधता संरक्षण निम्नलिखित तरीके से किया जा सकता है:

    • जीन बैंक बनाकर: इसमें बीज, शुक्राणु और अंडाणु को बेहद कम तापमान और आर्द्रता पर संग्रहित किया जाता है.
    • शुक्राणु और अंडाणु बैंक, बीज बैंक इत्यादि बहुत कम जगह में पौधों और जानवरों की बड़ी विविधता वाली प्रजातियों को बचाने में बहुत मददगार है.
    • चिड़ियाघर और वनस्पति उद्यान का निर्माण: अनुसंधान उद्देश्य के लिए और जलीय जीवों, चिड़ियाघरों और वनस्पति उद्यानों के लिए जीवित जीवों को इकट्ठा कर सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना.
    • इन विट्रो प्लांट टिश्यू और माइक्रोबियल कल्चर का संग्रह.
    • जंगल में फिर से प्रवेश करवाने के उद्देश्य के साथ जानवरों का बंदी प्रजनन और पौधों का कृत्रिम प्रसार.

    जैव विविधता का संरक्षण क्यों करें (Why to Protect Biodiversity)?

    प्रजातियों के अधिक सघनता वाले क्षेत्र विविधता के दृष्टिकोण से अधिक स्थिर होते है. हम कई प्रकार से सजीवों से प्राप्य उत्पादों पर निर्भर है. साथ ही, यह हमें आर्थिक, औषधीय, सांस्कृतिक, नैतिक व सौंदर्य लाभ प्रदान करता है. इसलिए इनका संरक्षण जरुरी है.

    इसे भी पढ़ें – भारत के 6 जैव विविधता हॉटस्पॉट

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