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जर्मनी का वाइमर संविधान: विशेषता, उत्पत्ति और पतन के कारण

जर्मनी का वाइमर संविधान, जिसे जर्मन संविधान के नाम से भी जाना जाता है. यह 1919 से 1933 तक वाइमर गणराज्य युग के दौरान जर्मनी का आधिकारिक संविधान था. इसे 11 अगस्त 1919 को लागू किया गया. इसमें लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की स्थापना की गई, जिसमें राष्ट्रपति राष्ट्रप्रमुख और चांसलर सरकार का प्रमुख होता था.वाइमर संविधान ने सार्वभौमिक मताधिकार, नागरिक अधिकार, और संसद के प्रति जवाबदेह सरकार की व्यवस्था जैसे कई आधुनिक प्रावधान थे. लेकिन इसकी कुछ कमजोरियों के कारण यह नाजी तानाशाह के उदय का कारण बना.

वाइमर संविधान की उत्पत्ति 

पेरिस शांति सम्मेलन में 230 पृष्ठों की, पंद्रह भागों में विभाजित कठोर व अपमानजनक वर्साय संधि का मसौदा जर्मन प्रतिनिधि काउंट फॉन ब्राकडॉर्फ रान्टाजू के सामने प्रस्तुत किया गया. जर्मनी की तत्कालीन शिडेमान सरकार ने इसे अस्वीकार कर त्यागपत्र दे दिया. इसके बाद जर्मनी में नए सरकार का गठन हुआ. इसमें गुस्टाव जीर को प्रधानमंत्री और मूलर को विदेश मंत्री बनाया गया. इनके तहत ही जर्मनी में वाइमर रिपब्लिक की स्थापना हुई.

वाइमर रिपब्लिक के प्रतिनिधियों ने 28 जून, 1919 को अपमानजनक परिस्थितियों में वर्साय संधि पर हस्ताक्षर किए. इसके बाद, उन्होंने वाइमर में इकट्ठा होकर प्रजातांत्रिक प्रणाली को अपनाया, जिसमें राष्ट्रपति प्रमुख और प्रधानमंत्री को चान्सलर का पद दिया गया. 11 अगस्त, 1919 को नया संविधान लागू कर दिया गया. फिर फ्रेडरिक इबारत के नेतृत्व में जर्मनी में समाजवादी दल की सरकार बनी.

वाइमर रिपब्लिक द्वारा वर्साय संधि स्वीकार करने के कारण जनता नाराज थी. जनता ने संधि के विरोध में प्रदर्शन किए और नारे लगाए गए. 1929-31 के वैश्विक आर्थिक संकट का प्रभाव जर्मनी पर भी पड़ा. जनता ने इसके लिए वाइमर रिपब्लिक को दोषी ठहराया. राष्ट्रपति एबर्ट की 1925 में मृत्यु के बाद, हिण्डनबर्ग सात साल के लिए राष्ट्रपति बने.

वाइमर गणतंत्र (Weimar Republic)

प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में स्थापित नई लोकतांत्रिक प्रणाली को वाइमर गणराज्य कहा जाता है. चुनावों में सोशल-डेमोक्रेटिक पार्टी को बहुमत नहीं मिला. इसलिए इस दल ने कैथोलिक सेंटर पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया. नई सरकार को नया संविधान बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई. बर्लिन अशांति का केंद्र था, इसलिए समिति की बैठक वाइमर के बाज़ार में हुई. इसी स्थान के नाम पर इसे इसे वाइमर गणराज्य के नाम से जाना गया.

वाइमर संविधान (Weimar Constitution)

  • जर्मनी के नई सरकार ने नवगठित वाइमर गणराज्य के लिए नए नियमों और कानूनों को अपनाया, जिसे वाइमर संविधान कहा गया.
  • इसमें 21 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वयस्कों को वोट देने का अधिकार दिया गया. 
  • वाइमर संविधान ने राजशाही को समाप्त कर दिया. 
  • सात साल की अवधि के लिए राष्ट्रपति का चुनाव कर लोकतंत्र की अवधारणा पेश की. हालाँकि, राष्ट्रपति की शक्तियाँ रीचस्टैग द्वारा सीमित थीं. लेकिन, आपातकाल की स्थिति में, संविधान के अनुच्छेद 48 के तहत राष्ट्रपति को डिक्री द्वारा शासन करने की असीमित शक्तियाँ मिलती थीं.
  • वाइमर गणराज्य में दो सदन का संसद था: रीचस्टैग (Reichstag) और रीचसराट (Reichsrat). चांसलर, जो रीचस्टैग का नेता होता, ब्रिटिश प्रधानमंत्री के समान स्थिति में होता था. आम चुनाव हर चार साल में होते थे.
  • वाइमर गणराज्य एक संघीय राज्य था. यह 18 अलग-अलग राज्यों (लैंडर) में विभाजित था. इन राज्यों की अपनी सरकारें थीं. राज्य अपने प्रतिनिधियों को रीचसराट में भेज सकती थीं.
  • नए वाइमर संविधान ने सभी जर्मन पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित किए. इसने जन्म या सामाजिक स्थिति के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त किया. नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया. साथ ही, सिनेमाघरों में सेंसरशिप को भी खत्म कर दिया गया.

कई सुधारों के बावजूद, जर्मन जनता नवगठित लोकतंत्र को लेकर बहुत उत्साहित नहीं थी, क्योंकि संविधान में कई खामियाँ थीं. गौरतलब है कि भारतीय संविधान का आपातकालीन प्रावधान वाइमर संविधान से ही प्रेरित है.

वाइमर संविधान की कमजोरियाँ

वाइमर गणराज्य की स्थापना यूरोप में एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक कदम मानी गई, लेकिन यह ‘स्वप्नलोक‘ केवल पंद्रह वर्षों तक ही चला. प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में लाई गई वाइमर संविधान की कई शक्तियों और नए दृष्टिकोण के बावजूद, इसमें कई खामियां थीं इन खामियों ने अंततः वाइमर गणतंत्र को पतन के तरफ धकेल दिया.

  1. आनुपातिक प्रतिनिधित्व: रैहस्टाग में आनुपातिक प्रतिनिधित्व ने समस्याएँ खड़ी कर दीं, क्योंकि इसने कई छोटी पार्टियों को रैहस्टाग में प्रवेश करने की अनुमति दी. इससे किसी भी एक पार्टी को बहुमत हासिल करना मुश्किल हो गया, जिसके कारण कई पार्टियों को सरकार बनाने के लिए गठबंधन करना पड़ा.
  2. अनुच्छेद 48: संविधान का अनुच्छेद 48 आपातकाल की स्थिति में राष्ट्रपति को असीमित शक्तियाँ प्रदान करता था. लेकिन यह आपातकाल की स्थिति को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं कर सका. परिणामस्वरूप, निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा इन शक्तियों का अक्सर दुरुपयोग किया गया.
  3. डावेस योजना: डावेस योजना के तहत आर्थिक बहाली ने जर्मन अर्थव्यवस्था को विदेशी ऋणों और प्रेषणों पर बहुत अधिक निर्भर बना दिया. वॉल स्ट्रीट के पतन (collapse) के बाद, यह निर्भरता जर्मनी को एक गंभीर आर्थिक संकट में धकेलने का कारण बनी.
  4. पुराने सिविल सेवकों का प्रभाव: नए वाइमर संविधान ने पुराने सिविल सेवकों को उन्हीं उच्च पदों पर बनाए रखा, जो वे राजशाही के समय पर काबिज थे. इसका मतलब था कि वे अभी भी सत्ता और बदलाव को प्रभावित करने की स्थिति में थे, जिससे लोकतांत्रिक सुधारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा.

वाइमर गणराज्य की असफलता और पतन के कारण

वाइमर गणराज्य (Weimar Republic) की असफलता और पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:

  1. बर्साय संधि का विरोध:
    • वाइमर गणराज्य की स्थापना अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में हुई थी.
    • गणराज्य को बर्साय संधि (Treaty of Versailles) पर हस्ताक्षर करना पड़ा, जिससे जर्मन जनता बहुत नाराज थी.
    • इस संधि के तहत जर्मनी पर भारी युद्ध क्षतिपूर्ति (reparations) का बोझ डाला गया, जिसे चुकाना जर्मनी के लिए बहुत कठिन था.
  2. आर्थिक संकट:
    • युद्ध के बाद की आर्थिक समस्याओं के कारण जर्मनी पहले से ही मुश्किलों में था.
    • 1929 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी (Great Depression) ने स्थिति को और भी बिगाड़ दिया.
    • मुद्रा स्फीति (hyperinflation) के कारण वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ीं, और जर्मन मुद्रा का मूल्य गिर गया.
    • बेरोजगारी बढ़ गई, कारखाने बंद होने लगे, और मजदूर बेरोजगार हो गए.
  3. राजनीतिक अस्थिरता:
    • वाइमर गणराज्य के दौरान जर्मन राजनीति दलगत राजनीति की शिकार हो गई.
    • साम्यवादी (Communists) और राजतंत्रवादी (Monarchists) दल, दोनों ही वाइमर गणराज्य का विरोध कर रहे थे, जिससे राजनीतिक स्थिरता में कमी आई.
    • राजनीतिक दलों के बीच आपसी अविश्वास और संघर्ष ने गणराज्य की शासन प्रणाली को कमजोर कर दिया.
  4. अंतर्राष्ट्रीय अपमान:
    • बर्साय संधि के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जर्मनी की प्रतिष्ठा गिर गई थी.
    • अन्य यूरोपीय देशों ने जर्मनी के प्रति उपेक्षापूर्ण और अपमानजनक रवैया अपनाया.
    • जर्मनी की स्वाभिमानी जनता इसे सहन नहीं कर सकी और इसके लिए वाइमर गणराज्य को दोषी ठहराया.
  5. उद्योगपतियों और आम जनता का समर्थन खोना:
    • आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता के कारण उद्योगपतियों ने गणराज्य का समर्थन करना बंद कर दिया.
    • आम जनता ने भी गणराज्य को कमजोर और अक्षम माना, जिससे उसकी लोकप्रियता और समर्थन तेजी से घटा.

वाइमर गणराज्य के पतन का सबसे महत्वपूर्ण कारण जर्मनी में हिटलर और नाजीवादी पार्टी का उदय था.

जर्मन जनता हताश और निराश थी, और उसे भविष्य में कोई आशा नहीं दिखती थी. वे वाइमर गणराज्य को अपने संकटों का दोषी मानते थे. एक जर्मन युवक ने अपनी हताशा व्यक्त करते हुए कहा था, “हम एक ऐसे युवक समाज के सदस्य हैं, जिसको न तो भविष्य में कोई आशा है और न तो वर्तमान काल में कोई सुख.

ऐसे हताश नवयुवकों में हिटलर ने आशा का संचार किया. जब उसने बर्साय संधि की शर्तों को तोड़ने की बात की, तो जनता ने उसका समर्थन किया. नाजीवादी पार्टी के उत्थान ने जर्मन समाज में नई चेतना और ऊर्जा का संचार किया, जिससे वाइमर गणराज्य का पतन और हिटलर का उदय हुआ.

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