Skip to content

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण, प्रमुख घटनाएं और परिणाम

द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) 1919 के पेरिस शांति सम्मेलन के 20 वर्ष बाद 1939 में शुरू हुआ. 1 सितंबर 1939 को हिटलर के पोलैंड पर आक्रमण करने के बाद 3 सितंबर 1939 को इंग्लैंड ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की. यह द्वितीय विश्वयुद्ध का आधिकारिक आगाज था.युद्ध के दौरान, केन्द्रीय शक्तियाँ—जर्मनी, इटली, और जापान—ने भारी तबाही मचाई. अंततः, अमेरिका को जापान के खिलाफ परमाणु बम का इस्तेमाल करना पड़ा, जिससे विश्व को युद्ध और परमाणु बम, दोनों की विभीषिका का सामना करना पड़ा.

द्वितीय विश्व युद्ध ने शीघ्र ही विश्वव्यापी रूप ले लिया. प्रारंभ में जर्मनी और जापान को सफलता मिली. लेकिन मई 1945 में जर्मनी और अगस्त 1945 में जापान परास्त हो गए, जिसके साथ युद्ध की समाप्ति हुई. यह युद्ध 1939 से 1945 तक चला, जिसमें 70 देशों की सेनाएँ सम्मिलित थीं. लगभग 10 करोड़ सैनिकों ने इस युद्ध में भाग लिया. यह इतिहास का सबसे घातक युद्ध साबित हुआ, जिसमें 5 से 7 करोड़ लोगों की जानें गईं.

इस लेख में हम जानेंगे

द्वितीय विश्व युद्ध का आरंभ (Start of Second World War)

1 सितंबर 1939 को जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया. इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चेम्बरलेन ने हिटलर को चेतावनी दी कि वह पोलैंड से अपनी सेनाएँ वापस बुलाए. लेकिन हिटलर ने इसे केवल धमकी मानते हुए ध्यान नहीं दिया. इससे पहले भी हिटलर ने कई आक्रामक कार्रवाइयाँ की थीं, और इंग्लैंड ने तुष्टीकरण की नीति अपनाई थी. इसलिए हिटलर ने इंग्लैंड की चेतावनी को नकार दिया.

हिटलर की उम्मीद के विपरीत जब हिटलर ने पोलैण्ड से सेनाएं नहीं हटाई तो 3 सितम्बर 1939 को इंग्लैण्ड ने जर्मनी के विरूद्ध युद्ध की घोषणां कर दी. इस प्रकार अन्ततः द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हो ही गया. 

द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख कारण

1919 से 1939 तक लगभग बीस वर्षों की ‘शांति’ के बाद 1 सितम्बर, 1939 के दिन द्वितीय विश्व युद्ध की अग्नि ने फिर सारे यूरोप को अपनी लपटों में समेट लिया और कुछ ही दिनों में यह संघर्ष विश्वव्यापी हो गया. विगत दो शताब्दियों के इतिहास के अध्ययन के बाद यह प्रश्न स्वाभाविक है कि शांति स्थापित रखने के अथक प्रयासों के बाद भी द्वितीय विश्व युद्ध क्यों छिड़ गया? क्या संसार के लागे और विविध देशों के शासक यह चाहते थे? नहीं; यह गलत है. 

2nd world war

वास्तव में प्रथम विश्व युद्ध के बाद कोई भी व्यक्ति युद्ध नहीं चाहता था. स्वयं हिटलर भी यह नता था कि द्वितीय विश्व युद्ध से उसका सर्वनाश हो जायेगा. अन्तिम समय तक हिटलर का यही विचार था कि संकट पैदा करके, धौंस देकर और डरा-धमकाकर पोलैंड से डान्जिंग छीन लिया जाय. वह जा बिना द्वितीय विश्व युद्ध किये ही विजय हासिल कर लेना उसकी चाल थी. वास्तव में द्वितीय विश्व युद्ध के बिना विजय’ के सिद्धांत पर ही उसकी सारी मान-मर्यादा निर्भर थी. पर ऐसा न हो सका. किसी की इच्छा नहीं होने पर भी द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया. ऐसा क्यों हुआ और इसके लिए कानै जिम्मेदार था?

1. वर्साय-संधि

पेरिस शांति सम्मेलन में इंग्लैण्ड और फ्रांस द्वारा जर्मनी पर अपमानजनक वर्साय संधि थोपना द्वितीय विश्व युद्ध का प्रमुख कारण बना. इस संधि ने जर्मनी को गंभीर आर्थिक और सैन्य प्रतिबंधों के तहत रखा, जिससे जर्मन जनता में गहरा अपमान और प्रतिशोध की भावना उत्पन्न हुई. हिटलर ने सत्ता में आकर वर्साय की संधि की शर्तों को तोड़ा और जर्मनी के खोए हुए क्षेत्रों को पुनः प्राप्त किया. उसने पोलैंड पर आक्रमण किया, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया.

2. जर्मनी में उग्रराष्ट्रीयता

हिटलर के सत्ता में आने के बाद जर्मन जनता में अत्यधिक उत्साह और जातीय उच्चता की भावना फैली. वे अपने को विश्व की सर्वश्रेष्ठ जाति समझने लगे. जर्मनी की उग्र विदेशनीति और उग्रराष्ट्रीयता के विकास ने द्वितीय विश्व युद्ध का मार्ग प्रशस्त किया.

3. ब्रिटेन की नीति

जर्मनी के शक्ति-संतुलन के सिद्धांत को ब्रिटिश विदेश-नीति का एक महत्वपूर्ण तत्व माना गया है. हालांकि, युद्धोत्तर काल में ब्रिटिश नीति का मुख्य उद्देश्य रूसी साम्यवाद के प्रसार को रोकना था, न कि जर्मनी को चुनौती देना. तुष्टिकरण की नीति वास्तव में साम्यवाद को रोकने के लिए प्रोत्साहन की नीति थी. ब्रिटेन की सबसे बड़ी समस्या साम्यवादी प्रसार को रोकना थी, न कि जर्मनी. एशिया में जापान और सोवियत संघ तथा यूरोप में जर्मनी और सोवियत संघ को भविष्य के वास्तविक प्रतिद्वंद्वी माना गया, जिससे ब्रिटेन अपने साम्राज्य को कायम रख सकता था.

ब्रिटेन की नीति थी कि फ्रांस के साथ असहयोग करके और उस पर दबाव डालकर हिटलर, मुसोलिनी और हिरोहितो को साम्यवादी रूस के खिलाफ उभारा जाए. यह प्रयास इस उद्देश्य से था कि साम्यवादी रूस का विनाश करवाया जाए. इस नीति में शक्ति-संतुलन का सिद्धांत नहीं था क्योंकि सोवियत संघ उस समय बहुत कमजोर था.

द्वितीय विश्व युद्ध

ब्रिटिश शासकों की नीति कुछ अनुभवहीन और कट्टर साम्यवाद विरोधी व्यक्तियों के हाथ में थी. इस गुट में कर्नलब्लिम्प, चैम्बरलेन, बैंक ऑफ इंगलैंड के गवर्नर मांग्टेग्यू नारमन, पत्रकार जेकोव अस्टर और गारविन, लेखक डीन इक, कैन्टरबरी के आर्चविशप और अन्य पूंजीपति, सामंत और प्रतिक्रियावादी शामिल थे. इन लोगों के हाथों में ब्रिटेन का भाग्य-निर्धारण था, और उनकी नीति साम्यवाद का विरोध करने पर केंद्रित थी. चैम्बरलेन इस दल का नेता था और इन लोगों के हाथ की कठपुतली.

मई 1937 में चेम्बरलन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने और तुष्टिकरण की नीति के प्रतीक माने गए. उन्होंने चेकोस्लोवाकिया का विनाश इस उम्मीद में कराया कि हिटलर सोवियत संघ पर हमला करेगा. इसी भावना से प्रेरित होकर वे पोलैंड के विनाश में भी सहयोग देने को तैयार थे. लेकिन हिटलर की जिद के कारण वे सफल नहीं हो सके. उनकी गलत नीति का परिणाम पूरे विश्व को भुगतना पड़ा.

4. इटली एवं जापान में उग्रराष्ट्रवाद एवं सैन्यवाद का विकास

1919 के पेरिस शांति सम्मेलन में कोई फायदा न मिलने के कारण इटली असंतुष्ट होकर वापस आया. इसके बाद 1921-22 के वाशिंगटन सम्मेलन ने जापान की पेरिस शांति सम्मेलन की उपलब्धियों को धो डाला. इसके तुरंत बाद इटली में मुसोलिनी के अधीन फासीवाद और जापान में सैन्यवादी शासन स्थापित हुआ. इस प्रकार दोनों देशों में उग्रराष्ट्रवाद और सैन्यवाद के विकास ने द्वितीय विश्वयुद्ध का मार्ग प्रशस्त किया.

5. यूरोपीय गुटबन्दियां

इस युग में यह धारणा फैल गई कि सैन्य-संधि और गुटबंदी के माध्यम से विश्व-शांति बनाए रखी जा सकती है. यूरोप में विभिन्न संधियों के परिणामस्वरूप, यूरोप फिर से दो विरोधी गुटों में बंट गया. एक गुट का नेतृत्व जर्मनी और दूसरे का फ्रांस कर रहा था.

इटली, जापान और जर्मनी तानाशाही में विश्वास करते थे और वर्साय संधि से असंतुष्ट थे. जबकि फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया और पोलैंड वर्साय व्यवस्था से लाभान्वित थे और यथास्थिति बनाए रखना चाहते थे. रूस को पूंजीवादी और फासिस्टवादी दोनों गुटों ने अपने गुट में शामिल करने का प्रयास किया. अंत में, जर्मनी ने रूस को अपने गुट में शामिल कर लिया, जिससे यूरोप में तनाव बढ़ा और राष्ट्रों के परस्पर संबंध बिगड़ गए. इस प्रकार, गुटबंदियां द्वितीय विश्व युद्ध का एक बड़ा कारण बनीं.

6. मोर्चाबन्दी

1930 के बाद जर्मनी, इटली और जापान की विस्तारवादी गतिविधियों ने विभिन्न राष्ट्रों के बीच असुरक्षा की भावना पैदा की. इन राष्ट्रों ने अपनी सुरक्षा के लिए सैन्य तैयारियों और मोर्चाबंदी पर जोर दिया. वर्साय संधि के बाद फ्रांस को जर्मनी के प्रतिशोध का भय था, जिससे उसने ‘मैजिनो लाइन’ नामक किलों की एक श्रृंखला बनाई. प्रतिक्रिया स्वरूप जर्मनी ने भी अपनी सीमा पर ‘सीजफाइड लाइन’ की किलेबंदी की. इस प्रकार की मोर्चाबंदियों ने द्वितीय विश्व युद्ध को अनिवार्य बना दिया.

7. राष्ट्रसंघ की कमजोरियां

प्रथम विश्व युद्ध के बाद राष्ट्रसंघ की स्थापना विश्व शांति कायम रखने के उद्देश्य से की गई थी. छोटे राष्ट्रों के झगड़ों में कुछ सफलता मिलने के बावजूद, बड़े राष्ट्रों के मामलों में राष्ट्रसंघ असफल रहा. जापान ने चीन पर और इटली ने अबीसीनिया पर हमला किया, जिसे राष्ट्रसंघ रोकने में असमर्थ था. राष्ट्रसंघ की असफलता का कारण शक्तिहीनता था, और इसके लिए उसे दोष देना उचित नहीं है. राष्ट्रसंघ की निष्क्रियता और बड़े देशों के असहयोग के कारण लोगों का विश्वास उसमें कम हो गया. इन कमजोरियों ने द्वितीय विश्व युद्ध के लिए एक बड़ा कारण बना.

8.  हिटलर की विदेश नीति

हिटलर की आक्रामक विदेश नीति द्वितीय विश्व युद्ध के लिए पूरी तरह जिम्मेदार थी. उसने जर्मन जनता को विश्वास दिलाया कि युद्ध छिड़ जाना चाहिए. हिटलर की विदेश नीति के प्रमुख कदम थे: ऑस्ट्रिया का जर्मनी में विलय, चेकोस्लोवाकिया का विभाजन, लिथुआनिया से मेमल क्षेत्र छीनना, और पोलैंड के गलियारे और डेजिंग बंदरगाह को छीनने का प्रयास. इन नीतियों ने विश्व को एक ऐसे युद्ध की ओर धकेल दिया जहां से वापस लौटना असंभव था.

9. द्वितीय विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण

हिटलर अपनी आक्रामक विदेश नीति के तहत जब किसी देश को हड़पता था, तो इंग्लैंड को यह कहकर संतुष्ट करता था कि वह साम्यवादी रूस के विस्तार को रोकने के लिए यह कर रहा है. इंग्लैंड और फ्रांस रूस के साम्यवादी विस्तार से चिंतित थे और हिटलर की आक्रामक गतिविधियों के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाए हुए थे. 1 सितम्बर 1939 को हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण किया, जिससे इंग्लैंड और फ्रांस ने विरोध किया. 3 सितम्बर 1939 को इंग्लैंड ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध का आरंभ हुआ.

द्वितीय विश्व युद्ध का घटनाक्रम

1919 में पेरिस में शांति सम्मेलन हुआ, जिसे ब्रिटेन के लायड जार्ज और फ्रांस के क्लीमेंशु ने नेतृत्व किया. यह सम्मेलन नाम के विपरीत अशांति फैलाने वाला साबित हुआ. जर्मनी और इटली इस सम्मेलन से असंतुष्ट थे, और इटली बीच में ही वापस लौट गया. जापान भी वाशिंगटन सम्मेलन (1921-22) के बाद असंतुष्ट हो गया. इन देशों में नाजीवाद, फासीवाद और सैन्यवाद का उदय हुआ, और उन्होंने आक्रमक विदेश नीति अपनाई. वे साम्यवाद के प्रसार को रोकने के बहाने विभिन्न देशों पर कब्जा करते रहे. 1 सितम्बर 1939 को जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया, जिससे इंग्लैंड ने 3 सितम्बर को जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की, और द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया.

इस युद्ध के मुख्यतः चार चरण थे. इन चार चरणों का घटनाक्रम इस प्रकार है –

1. द्वितीय विश्वयुद्ध का प्रथम चरण

द्वितीय विश्वयुद्ध का प्रथम चरण 1 सितम्बर, 1939 ई. से 21 जून, 1941 ई. तक माना गया है. इस प्रथम चरण में हिटलर ने पोलैण्ड, डेनमार्क, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, लग्जेमबर्ग, फ्रांस, ब्रिटेन, यूनान तथा क्रीट पर आक्रमण किया. शुक्रवार 1 सितम्बर, 1939 ई. को प्रातः चार बजे जब सारा यूरोप सो रहा था, उसी समय हिटलर ने तीव्रगति से पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया. अपने तमाम प्रतिरोध के बावजूद पोलैण्ड परास्त हुआ. 26 सितम्बर, 1939 ई. को पोलैण्ड को युद्ध विराम संधि पर हस्ताक्षर करने बाध्य होना पड़ा. यह युद्ध 27 दिन तक चला.

इंग्लैण्ड ने जब 3 सितम्बर, 1939 को जर्मनी के विरूद्ध युद्ध आरंभ कर दिया था उस समय चेम्बरलेन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे. युद्ध में निरंतर जर्मनी की सफलता के कारण 10 मई, 1940 को चेम्बरलेन ने स्तीफा दे दिया. अब 11 मई, 1940 को विंस्टन चर्चिल इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री बने. विस्टन चर्चिल एक कुशल युद्ध नेता थे. उन्होंने कुशलता के साथ युद्ध का संचालन किया.

जिस दिन इंग्लैण्ड में चेम्बरलेन ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया उसी दिन 10 मई, 1940 को इंग्लैण्ड ने हालैण्ड पर आक्रमण किया. 14 मई को हालैण्ड का पतन हो गया. 10 मई को ही हिटलर की सेना ने बेल्जियम पर भी आक्रमण किया. 5 दिन में ही बेल्जियम ने भी आत्मसमर्पण कर दिया.

Second World War Army

7 जून को जर्मन सेनाओं ने तेजी के साथ फ्रांस पर आक्रमण कर दिया. फ्रांस की मैजीनो रेखा के विशाल टैंक जर्मन सेना का मुकाबला न कर सके. चूँकि इस समय इंग्लैण्ड स्वयं मुसीबत में था अतः वह भी कुछ सहायता न कर सका. 8 जून, 1940 को जर्मनी ने पेरिस नगर पर अधिकार कर लिया. 22 जून, 1940 को फ्रांस ने घुटने टेक दिये. जर्मनी एवं हिटलर के लिये यह एक महान जीत थी. वर्साय की संधि के अपमान के धब्बे को उन्होंने धो दिया. वर्साय की संधि का प्रतिशोध फ्रांस से जर्मनी ने ले लिया.

फ्रांस को परास्त कर जर्मनी ने 8 अगस्त, 1940 को इंग्लैण्ड पर आक्रमण किया. मगर इंग्लैण्ड की शक्तिशाली सेना ने इस आक्रमण का करारा जबाब दिया. फ्रांस एवं इंग्लैण्ड के पश्चात जर्मनी ने रूस के बाल्टिक राज्यों पर आक्रमण किया. लिथुआनिया, लटेविया एवं एस्टोनिया पर अधिकार कर लिया. उधर इटली ने यूनान एवं

उत्तरी अफ्रीका पर आक्रमण किया. जापान भी धुरी राष्ट्रों के पक्ष में युद्ध में शामिल हो गया. जापान ने द्वितीय विश्वयुद्ध का फायदा उठाकर सुदूर पूर्व में अधिकार कर वृहत्तर पूर्वी एशिया के निर्माण का कार्य जारी किया.

2. द्वितीय विश्वयुद्ध का द्वितीय चरण

द्वितीय विश्वयुद्ध का द्वितीय चरण 22 जून, 1941 ई. से 6 दिसम्बर, 1941 तक चला. द्वितीय विश्वयुद्ध का द्वितीय चरण 22 जून, 1941 ई. को हिटलर के रूस पर आक्रमण के साथ आरंभ हुआ. एक साथ 4 नाजी सेनाओं ने मास्को, कीव, लेनिनग्राड एवं ओडेसा की ओर तीव्रता से बढ़ना आरंभ किया. इन परिस्थितियों में इंग्लैण्ड ने रूस से संधि की और अमेरिका ने रूस को खाद्य एवं युद्ध सामग्री पहुँचायी.

जब जर्मनी के विरूद्ध इंग्लैण्ड व अमेरिका ने रूस की मदद की तो जापान ने जर्मनी के पक्ष में अमेरिका पर आक्रमण किया. 7 दिसम्बर, 1941 को जापान ने अमेरिका के नाविक केन्द्र हवाई द्वीप पर एकाएक आक्रमण कर वहाँ उपस्थित अमेरिकी जहाजों को नष्ट कर दिया. जापान के इस आक्रमण से अमेरिका भी द्वितीय विश्वयुद्ध में शामिल हो गया. अब यह युद्ध पूरी तरह एक द्वितीय महायुद्ध का रूप ले चुका था. एक ओर जर्मनी-इटली एवं जापान थे तो दूसरी ओर इंग्लैण्ड, फ्रांस, रूस एवं संयुक्त राज्य अमेरिका थे. जापान काफी तीव्रता से आगे बढ़ा. उसने हांगकांग, फिलीपाइन्स, मलाया, सिंगापुर को रौंद दिया. यही नहीं उसने भारत के कलकत्ता पर भी बम वर्षाये.

3. द्वितीय विश्वयुद्ध का तृतीय चरण

द्वितीय विश्वयुद्ध का तृतीय चरण 7 दिसम्बर, 1941 ई. से 8 नवम्बर, 1942 ई. तक चला. यह तृतीय चरण मूलतः जापान के पर्लहार्वर पर आक्रमण के पश्चात आरंभ हो गया. पर्लहार्वर के पश्चात जापान ने हांगकांग, गुआम एवं थाइलैण्ड पर अधिकार कर लिया. जनवरी, 1942 ई. में जापान ने मलाया पर एवं 15 दिसम्बर, 1941 को सिंगापुर पर भी अधिकार कर लिया. मार्च, 1942 तक जापान ने रंगून पर अधिकार कर लिया.

19 नवम्बर, 1942 को रूस पर पुनः जर्मनी ने आक्रमण कर दिया. उसने स्टालिनग्राड का घेरा डाला. यह एक अत्यधिक रक्तरंजित एवं लम्बा युद्ध था. रूस ने करारा जवाब दिया और जर्मनी को परास्त कर दिया. सोवियत सेना नाजी सेना को रौंदती हुई बर्लिन जा पहुँची. यह एक महान सफलता थी. रूस ने मित्र राष्ट्रों की जीत सुनिश्चित कर दी.

4. द्वितीय विश्वयुद्ध का चतुर्थ चरण

द्वितीय विश्वयुद्ध का चतुर्थ एवं अन्तिम चरण 8 नवम्बर, 1942 से 14 अगस्त, 1945 तक चला. चतुर्थ चरण में द्वितीय विश्वयुद्ध का परिदृश्य पूर्णतः बदल चुका था. रूस द्वारा जर्मनी की पराजय द्वितीय विश्व युद्ध का परिवर्तन बिन्दु साबित हुआ.

मित्र राष्ट्रों ने अपनी सेना की संयुक्त कमान जनरल आइजन हावर को सौंपी. जनरल आइजन हावर एवं जनरल मांटगुमरी ने जर्मनी एवं इटली की सेनाओं पर आक्रमण किया. ट्यूनिशिया पर उनके आक्रमण से इटली चिन्तित हो गया. उसने हिटलर से सहायता मांगी. मगर 5 मई, 1943 को जर्मन सेनाओं ने घुटने टेक दिये. 12 मई को मित्र राष्ट्रों ने ट्यूनिशिया पर अधिकार कर लिया. सिसली को अधिग्रहित कर 25 जुलुलुलाईर्,, 1943 को मुसोलिनी को अपदस्थ किया और उसे बन्दी बना लिया. 4 जून, 1943 को रोम पर मित्र राष्ट्रों का कब्जा जम गया. मुसोलिनी को 24 अप्रैल, 1945 को गोली मार दी गई.

Adolf Hitler Army Roadshow

इटली पर आधिपत्य के पश्चात मित्र राष्ट्रों की विजय का सिलसिला जारी रहा. फरवरी, 1945 में मित्र राष्ट्रों ने तीन तरफ से जर्मनी पर आक्रमण किया. जर्मनी बड़ी बहादुरी से लड़ा मगर परास्त हुआ. 30 अप्रै्रैलैल, 1945 को हिटलर ने अपनी पत्नी सहित आत्महत्या कर ली. 7 मई, 1945 को जर्मनी ने मित्र राष्ट्रों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. रूस अमेरिका, फ्रांस व इंग्लैण्ड ने युद्ध पश्चात जर्मनी को चार भागों में बाट दिया.

मित्र राष्ट्र जब इटली एवं जर्मनी में उलझे हुये थे उस समय इनकी पश्चिम में व्यस्तता का लाभ उठाकर जापान पूर्वी एशिया में विस्तार कर रहा था. इटली एवं जर्मनी की पराजय के पश्चात मित्र राष्ट्रों ने मुख्यतः अमेरिका ने पूरा ध्यान जापान पर केन्द्रित किया.

6 अगस्त, 1945 को अमेरिकी वायु सेना ने हिरोशिमा पर एवं 9 अगस्त, 1945 को जापान के नगर नागासाकी पर अणुबम गिराये. अणुबम का विस्फोट अत्यन्त विनाशकारी था. अब जापान के समक्ष आत्मसमर्पण के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प न था. यह अणुबम अमेरिकी वायुयान बी-19 द्वारा गिराये गये थे. 14 अगस्त, 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया. इस प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध पूर्णतः समाप्त हो गया. इस प्रकार 1 सितम्बर, 1939 को आरंभ द्वितीय विश्वयुद्ध पूरे 6 वर्ष चला और 14 अगस्त, 1945 को जापान के आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हुआ.

द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम 

6 वर्ष तक चलने वाले द्वितीय विश्वयुद्ध का स्वरूप अत्यन्त व्यापक, क्रूर, रक्तरंजित, वीभत्स एवं विनाशकारी था. इस युद्ध के परिणाम दूरगामी सिद्ध हुये. इस के परिणामों ने विश्व इतिहास को गहराई के साथ प्रभावित किया. द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रमुख परिणाम थे –

1. जन-धन का अत्याधिक विनाश

द्वितीय विश्व युद्ध को इतिहास का सबसे विनाशकारी युद्ध माना जाता है. इसमें संपत्ति और मानव-जीवन का भारी विनाश हुआ. लगभग एक करोड़ पचास लाख सैनिक और एक करोड़ नागरिक मारे गए, और एक करोड़ सैनिक घायल हुए. इस युद्ध ने अपार आर्थिक नुकसान भी पहुंचाया. इसमें भाग लेने वाले देशों ने लगभग एक लाख करोड़ रुपये व्यय किए, जिसमें अकेले इंग्लैंड ने दो हजार करोड़ रुपये खर्च किए. जर्मनी, फ्रांस, और पोलैंड के आर्थिक नुकसान का आकलन करना कठिन है. द्वितीय विश्व युद्ध ने विभिन्न देशों की राष्ट्रीय संपत्ति का व्यापक पैमाने पर विनाश किया.

2. औपनिवेशिक साम्राज्य का अंत

द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप एशिया महाद्वीप में यूरोपीय शक्तियों के औपनिवेशिक साम्राज्य का अंत हो गया. भारत, लंका, बर्मा, मलाया, मिस्र और अन्य देशों को ब्रिटिश दासता से मुक्त कर दिया गया. हॉलैंड, फ्रांस और पुर्तगाल के एशियाई साम्राज्य भी कमजोर हो गए और इन देशों के अधीनस्थ एशियाई राज्यों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई. इस युद्ध ने एशिया का राजनीतिक मानचित्र पूरी तरह बदल दिया और यूरोपीय साम्राज्यवाद का अंत कर दिया.

3. शक्ति-संतुलन का हस्तांतरण

द्वितीय विश्व युद्ध ने विश्व के प्रमुख राष्ट्रों की शक्ति संतुलन को गहराई से प्रभावित किया. युद्ध से पहले नेतृत्व इंग्लैंड के पास था, लेकिन बाद में यह अमेरिका और रूस के हाथों में चला गया. जर्मनी, जापान, और इटली के पतन से रूस पूर्वी यूरोप का सबसे प्रभावशाली राष्ट्र बन गया, और उसने एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड, और फिनलैंड पर अधिकार कर लिया. 

पश्चिमी यूरोप के देशों ने अमेरिका के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित किए, जिससे यूरोप दो विरोधी विचारधाराओं में बंट गया – एक का नेतृत्व अमेरिका और दूसरे का रूस कर रहा था. पूर्वी यूरोप पर रूस का प्रभाव बढ़ गया, जबकि पाकिस्तान, मिस्र, अरब और अफ्रीका रूस की नीतियों से अप्रभावित रहे. इस प्रकार, शक्ति संतुलन अमेरिका और रूस के बीच स्थापित हो गया.

4. अंतर्राष्ट्रीय की भावना का विकास

द्वितीय विश्व युद्ध के विनाशकारी परिणामों ने देशों की आँखें खोल दीं. उन्होंने महसूस किया कि शांति और व्यवस्था के लिए आपसी सहयोग, विश्वास और मित्रता आवश्यक है. विश्व में ये भावना बनी कि युद्ध समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता. प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी इसी तरह के अंतर्राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ था और राष्ट्र-संघ की स्थापना की गई थी. लेकिन स्वार्थी दृष्टिकोण के कारण यह संस्था असफल रही, और द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया.

द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद, देशों ने पारस्परिक सहयोग की आवश्यकता और महत्व को पुनः पहचाना. इस बार इसकी जड़े गहरी थी. इसलिए समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान और युद्ध का खतरा हमेशा के लिए समाप्त करने का प्रयत्न किया जाने लगा. इसका आखिरी उद्देश्य विश्वस्तरीय शांति स्थापित करना था.

उपरोक्त भावनाओं के आधार पर 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थापना किया गया. इसका मूल लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम करना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और मैत्री भावना को बढ़ावा देना है.

5. सामाजिक आर्थिक प्रभाव

द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप, अधिकांश वस्तुओं की कमी हो गई और राष्ट्रों को आपूर्ति के लिए अमेरिका पर निर्भर होना पड़ा, जिससे पूंजीवादी व्यवस्था को बल मिला. यूरोप में एक नई सामाजिक व्यवस्था का उदय हुआ और जर्मनी को अपनी जातीय उच्चता का अभिमान त्यागना पड़ा.

6. राजनीतिक परिणाम 

  1. यूरोपियन साम्राजयवाद का विनाश
  2. यूरोप के राजनीतिक मानचित्र में परिवर्तन 
  3. दो महाशक्तियों का उदय 
  4. शीतयुद्ध का आरंभ 
  5. उपनिवेशवाद का पतन व तृतीय विश्व का उद्भव 
  6. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उद्भव 
  7. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 
  8. प्रादेशिक संगठनों का विकास
  9. शक्ति संतुलन के स्थान पर आतंक संतुलन की स्थापना 

द्वितीय विश्व युद्ध का अंत कैसे हुआ?

द्वितीय विश्व युद्ध मित्र राष्ट्रों और धुरी राष्ट्रों के मध्य लड़ा गया था. मित्र राष्ट्रों में सोवियत रूस, ग्रेट ब्रिटेन, फ़्रांस और अमेरिका शामिल थे, दीसरे तरफ, जर्मनी, इटली और जापान के गट को धुरी राष्ट्र कहा गया. इस युद्ध का अंत कुछ प्रमुख घटनाओं के माध्यम से हुआ:

  1. जर्मनी की पराजय:
    • युद्ध के प्रारंभिक चरण में जर्मनी ने फ्रांस को परास्त कर उस पर कब्जा किया और इंग्लैंड को भी करारी टक्कर दी.
    • रूस पर आक्रमण के बाद, रूस ने जर्मनी को करारी शिकस्त दी और युद्ध का रुख बदल गया.
    • मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी के खिलाफ विजय प्राप्त की, और हिटलर ने 30 अप्रैल, 1945 को अपनी पत्नी सहित आत्महत्या कर ली.
  2. मुसोलिनी का पतन:
    • 24 अप्रैल, 1945 को इतालवी तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी को बंदी बनाकर गोली मार दी गई.
  3. हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी:
    • 6 और 9 अगस्त, 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए, जिससे भारी विनाश हुआ.
  4. जापान का आत्मसमर्पण:
    • इन बमबारी के परिणामस्वरूप, 14 अगस्त, 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया.

इन घटनाओं के परिणामस्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ.

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति तक की घटनाएं:

  1. होलोकॉस्ट: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी एकाग्रता शिविरों में 6 मिलियन यहूदियों की हत्या की गई, और कुल मिलाकर 60 से 80 मिलियन लोग मारे गए, जो दुनिया की कुल आबादी का लगभग 3% था.
  2. वीई दिवस (8 मई 1945): यूरोप में आधिकारिक तौर पर द्वितीय विश्व युद्ध का अंत जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ हुआ. इसे वीई दिवस या विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब लोग सड़कों पर आकर जश्न मनाते थे.
  3. जापान का आत्मसमर्पण (2 सितंबर 1945): अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने घोषणा की कि जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया है, और 2 सितंबर 1945 को यूएसएस मिसौरी पर आधिकारिक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हुआ.
  4. स्टेलिनग्राद की लड़ाई (अगस्त 1942 – फरवरी 1943): रूस के खिलाफ जर्मनी की करारी हार, जिसमें लगभग 2 मिलियन लोग हताहत हुए. इस लड़ाई के बाद जर्मन सेना को पीछे हटना पड़ा.
  5. मुसोलिनी का पतन (जुलाई 1943): सोवियत और मित्र राष्ट्रों के आक्रमणों के कारण इतालवी तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी की सरकार गिर गई.
  6. डी-डे (6 जून 1944): मित्र राष्ट्रों द्वारा नॉरमैंडी पर आक्रमण, जिससे पेरिस और ब्रुसेल्स की मुक्ति हुई. यह द्वितीय विश्व युद्ध की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक थी.
  7. बल्गे की लड़ाई (16 दिसंबर 1944): हिटलर का अंतिम प्रयास मित्र राष्ट्रों को विभाजित करने का था, लेकिन यह असफल रहा. यह लड़ाई जर्मनी की हार का संकेत थी.
  8. जर्मनी का आत्मसमर्पण (7-8 मई 1945): बर्लिन पर बमबारी के बाद हिटलर ने आत्महत्या कर ली. ग्रैंड एडमिरल कार्ल डोनिट्ज़ ने हिटलर की जगह ली और शांति वार्ता शुरू की. जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण किया.
  9. हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमबारी (6 और 9 अगस्त 1945): अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने जापान पर परमाणु बम गिराने का आदेश दिया, जिससे तुरंत हजारों लोगों की मौत हुई और जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया.
  10. सोवियत संघ का जापान पर युद्ध की घोषणा (8 अगस्त 1945): सोवियत संघ ने जापानी कब्जे वाले मंचूरिया पर आक्रमण किया, जिससे जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया.
  11. जापान का औपचारिक आत्मसमर्पण (2 सितंबर 1945): यूएसएस मिसौरी पर आत्मसमर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हो गया.

इन घटनाओं ने मिलकर द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति को संभव बनाया और वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया.

Spread the love!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

इस लेख में हम जानेंगे

मुख्य बिंदु