भारतीय अर्थव्यवस्था की में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है. वर्तमान में भारत 3.94 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. लेकिन, सर्वाधिक जीडीपी वाले शीर्ष के 10 देशों में सबसे कम प्रति व्यक्ति आय भारत की है. भारत और चीन, दोनों देशों को आधिक्य आबादी वाला देश माना जाता है. लेकिन, आर्थिक विकास के मोर्चे पर ‘जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय में’ चीन ने भारत को करीब डेढ़ दशक पहले ही पीछे छोड़ दिया था. भारत आनुपातिक तौर पर काफी पछाड़ गया. इसलिए भारत के आर्थिक विकास के मसले पर अब सवाल भी उठ रहे है.
पिछले 15 वर्षों से भारत की विकास दर पांच प्रतिशत या उससे अधिक रही है, पर इसी मामले में कुछ अन्य देशों, जिनमें कोरिया मुख्य उदाहरण के तौर पर सामने आता है, ने पिछले 50 वर्षों से अपनी विकास दर को बरकरार रखा है.
भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ और खामियां
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था के निम्न विशेषताएं जान पड़ते है:
1. परम्परागत विशेषताएँ (Traditional Characteristics)
भारतीय अर्थव्यवस्था में ये खासियत इसके अल्पविकसित होने के कारण है.
- निर्बल आर्थिक संगठन: भारत के ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बचत सुविधाओं की कमी, जमींदारों और साहूकारों का प्रभुत्व, और उचित वित्तीय संस्थाओं की कमी आम है. शहरी गरीबों और अशिक्षितों के बीच भी अक्सर यही स्थिति पाई जाती है.
- पूंजी निर्माण की नीची दर: गरीब राष्ट्र होने के कारण पूंजी निर्माण और विनियोजन की दर धीमी है.
- आर्थिक विषमता: भारत में संपत्ति और आय में असमानता का दर काफी ऊँचा है. उच्च और निम्न स्तर के व्यक्तियों के बीच की खाई निरंतर बढ़ती जा रही है. कोविड19 की महामारी ने इस विषमता को और अधिक बढ़ाया है.
- तकनीकी ज्ञान का निम्न स्तर: भारत में तकनीकी शिक्षा और अनुसंधान की कमी है.
- कृषि की प्रधानता: अधिकांश जनसंख्या कृषि में संलग्न है, लेकिन राष्ट्रीय आय में इसका योगदान काफी कम है.
- प्रति व्यक्ति निम्न आय: अन्य देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति औसत आय काफी कम है. यदि शीर्ष एक फीसदी अमीरों की आय गणना से हटा दिया जाए, तो स्थिति काफी गंभीर नजर आती है.
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था: जनसंख्या का अधिकांश भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है. लेकिन ग्रामीणों के आय के साधन सिमित हैं.
- जनसंख्या का अधिक भार: बढ़ती जनसंख्या से अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ता जा रहा है. लेकिन संसाधन सिमित है.
- व्यापक बेरोजगारी: भारत में बेरोजगारी की उच्च दर पाई जाती है. विशेषकर शिक्षित व्यक्तियों में यह अधिक है. ग्रामीण छेत्रों में प्रच्छन्न बेरोजगारी आम है.
- प्राकृतिक साधनों की बहुलता: भारत में पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन है. लेकिन इनका उचित उपयोग की कमी है. चाल्ल्स एस. बेहर ने लिखा, “भारत के पास कोयला, लोहा, और मानवीय शक्ति है इसके द्वारा वह चीन के साथ मिलकर समस्त एशिया का नेतृत्व कर सकता है. यही नहीं, यदि भारत चाहे तो एशिया के आर्थिक विकास में असाधारण स्थान प्राप्त कर सकता है.
2. अर्थव्यवस्था की नवीन प्रवृत्तियाँ (New Trends in Indian Economy)
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने नियोजित अर्थव्यवस्था अपनाई, जिससे कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन आए, नए उद्योग स्थापित हुए, उत्पादन विधियों में आधुनिक तकनीक का समावेश हुआ, और सामाजिक चिंतन में परिवर्तन हुआ. इन परिवर्तनों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया और इसमें कई नई प्रवृत्तियाँ उभरीं
- शिक्षा एवं स्वास्थ्य में सुधार: भारत ने शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में निरंतर प्रगति की है. लेकिन अन्य सेवाओं के तुलना में ये महंगे होते जा रहे है.
- आधारभूत संरचना का विस्तार: परिवहन, संचार और बिजली उत्पादन में वृद्धि.
- बचत और पूँजी निर्माण में वृद्धि: बचत और पूँजी निर्माण दर में प्रगति.
- राष्ट्रीय आय में वृद्धि: राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि.
- उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि: उत्पादन और विकास दर में वृद्धि.
- बैंकिंग सुविधाओं का विकास: बैंकिंग सुविधाओं में वृद्धि.
- कृषि का आधुनिकीकरण: आजादी के बाद देश में खाद्यान्न संकट के समस्याओं को समझकर सरकार ने कृषि क्षेत्र में कई सुधार किए. भारत ने सिंचाई, उन्नत बीज और खाद, और भूमि सुधार में प्रगति की है. हरित क्रांति से कई इलाकों में कृषि की दशा और दिशा बदल गए. लेकिन कई इलाके अभी भी इनसे अछूते है.
- सार्वजनिक क्षेत्र का विकास: भारत में सार्वजनिक उद्योगों की संख्या और पूँजी विनियोजन में वृद्धि हुई है. लेकिन, उदारीकरण और निजीकरण से सार्वजनिक क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ है.
3. संरचनात्मक विशेषताएँ (Structural Characteristics)
- भौगोलिक स्थिति: भारत भौगोलिक रूप से विविध है. यहाँ पर्वतीय, मैदानी, रेगिस्तानी, तटीय और पथरी इलाके है. इस विविधता का पर्यटन क्षेत्र में व्यापक दोहन की क्षमता है.
- जल संसाधन: भारत में नदियों का जाल बिछा हुआ है. इनका इस्तेमाल जलविद्युत् उत्पादन और सिंचाई के लिए किया जाता है. इस दिशा में अभी भी व्यापक संभावनाए है.
- जलवायु: भारत के भिन्नभिन्न क्षेत्रों में भिन्नभिन्न जलवायु पाई जाती है. इसके अनुरूप वैज्ञानिक कृषि को बढ़ावा देकर भारत कृषि उत्पादन अग्रणी बन सकता है.
- जन शक्ति: भारत के आबादी का प्रकृति ‘युवा’ है. इस विशाल युवावर्ग का इस्तेमाल राष्ट्रहित में किया जा सकता है.
- वन सम्पदा: भारत का 20 फीसदी से अधिक हिस्सा वनों से ढाका है. इन वनों से तारपीन का तेल, कागज उद्योग, पेण्ट्स एवं वारनिश, रबर, औषधि, शहद और अन्य वन्य उत्पाद प्राप्त होते है. इनके उचित विपणन से आदिवासी समुदायों में समृद्धि लाया जा सकता है.
- खनिज सम्पदा: भारत में कोयला, लोहा, और अन्य खनिजों की प्रचुरता है. इनसे सम्बन्धित उद्योगों के व्यापक विकास से बेरोजगारी को कम किया जा सकता है.
- शक्ति के साधन: कोयला, पेट्रोलियम, गैस, और जलविद्युत की उपलब्धता का उपयोग ऊर्जा उत्पादन में होता है. ग्रामीण और वंचित आबादी को सस्ते ऊर्जा उपलब्ध करवाकर आय की विषमता को कम किया जा सकता है.
- पशुधन: भारत में दुधारू किस्म के नस्लों का अभी भी अभाव देखा जा रहा है. किसानों को पशुओं का उन्नत नस्ल उपलब्ध करवाकर डेरी और मांस उद्योग का व्यापक विस्तार सम्भव है. यह किसानों को अतिरिक्त आय प्रदान करने में भी सक्षम है.
इन विशेषताओं के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था का व्यापक और बहुआयामी स्वरूप उभरकर सामने आता है, जो निरंतर विकास और परिवर्तन के पथ पर अग्रसर है. लेकिन विकास की गाथा बरकरार रखने और आर्थिक विषमता को कम करना भी काफी जरुरी है. इसके लिए हमें शिक्षा पर व्यय को निवेश के रूप में देखना और विलासिता के जगह आर्थिक बचत को सही निवेश में लगाना आदि लक्षण विकसित करने होंगे. साथ ही, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाकार आम जनता के धन-हानि को बचाया जा सकता है.