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जब संविधान सभा के एक सत्र में कुल 7,635 संशोधन प्रस्तावित किए गए

 देश के आजाद होने से पहले ही संविधान बनने का कार्य आरम्भ हो चुकी थी. सितम्बर, 1945 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी (कंजर्वेटिव पार्टी को हराकर) सत्ता में आई. इस सरकार ने वर्ष 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजी थी.

कैबिनेट मिशन के द्वारा सुझाए गए प्रस्तावों के अनुसार भारतीय संविधान सभा का गठन किया गया. संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को संपन्न हुई. 13 दिसंबर, 1946 ई० को जवाहर लाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्‍ताव रखी. इसके बाद संविधान सभा विधिवत आरम्भ हो गई.

वरिष्ठतम, सदस्य सच्चिदानंद सिन्हा संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष बनाए गए थे. बाद में डॉ राजेंद्र प्रसाद को विधिवत रूप से स्थायी अध्यक्ष चुना गया. वही, हरेंद्र कुमर मुखर्जी (Harendra Coomer Mookerji) उपसभापति चुने गए थे.

सभा ने संविधान निर्माण के लिए पहली बड़ी कदम 29 अगस्त, 1947 को उठाया गया. इस दिन संविधान सभा ने प्रारूप समिति की गठन की. डॉ भीम राव अम्बेडकर इसके अध्यक्ष बनाए गए.

डॉ भीम अम्बेडकर एक प्रसिद्ध वकील रह चुके थे. साथ ही उन्होंने विश्व के कई देशों के संविधान का ज्ञान था. उनके इस विद्वता के कारण सभा काफी लाभान्वित हुई. संविधान निर्माण के दौरान उन्होंने कई अन्य देशों के संविधान का अध्ययन किया. इसके तैयार करने में कुल 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन लगा था.

डॉ भीमराव अम्बेडकर ने संविधान का मसौदा तैयार करने में काफी बारीकी से काम किया. उनका एकमात्र लक्ष्य सभी क़ानूनी पहलुओं को संविधान में शामिल करने का था. उनके प्रयत्नों के वजह से ही भारतीय संविधान विश्व की सबसे बड़ी संविधान बन गई.

मैं मानता हुँ कि संविधान साध्य हैं, यह लचीला हैं. पर साथ ही यह इतना मजबूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़कर रख सके. वास्तव में, मैं कह सकता हुँ कि अगर कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नहीं होगा कि संविधान ख़राब था; बल्कि, इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था.”

संविधान पर डॉ अम्बेडकर के महत्वपूर्ण विचार (26 नवम्बर, 1949)

भारतीय संविधान से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य (Important Facts of Indian Constitution in Hindi)

भारतीय संविधान में कुल 470 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ शामिल हैं. मूल संविधान में 395 अनुच्छेद एवं 8 अनुसूचियाँ थी. अन्य अनुच्छेद एवं अनुसूचियाँ बाद में संसोधनो के द्वारा जोड़ी गई हैं.

डॉ भीमराव आंबेडकर के अध्यक्षता में एक प्रारूप या मसौदा समिति (Drafting Committee) का स्थापना संविधान सभा ने 29 अगस्त 1947 को की थी. मसौदा समिति के सदस्य भारत के सबसे प्रतिष्ठित और अनुभवी विद्वान थे. उन्होंने भारतीय संविधान को एक ऐसा दस्तावेज बनाने के लिए मिलकर काम किया जो भारत के लोगों के लिए एक मजबूत और न्यायसंगत सरकार प्रदान करे.

26 नवंबर 1949 को अपना कार्य पूरा कर लिया था. समिति ने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया, जिसे संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को अपनाया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया. इसके सात सदस्य थे-

  • डॉ. बी. आर. अम्बेडकर (अध्यक्ष)
  • अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
  • एन. गोपालस्वामी अय्यंगर
  • के. एम. मुंशी
  • मोहम्मद सादुल्लाह
  • बी. एल. मित्तर
  • डी. पी. खेतान

आगे चलकर, डॉ अम्बेडकर ने जनवरी 1948 में संविधान का पहला प्रारूप चर्चा के लिए प्रस्तुत किया. संविधान सभा में कुल तीन चर्चाए आयोजित की गई थी. इसकी दूसरी चर्चा सबसे अधिक विख्यात हैं. यह 15 नवम्बर, 1948 से 17 अक्टूबर 1949 तक चली थी. इस दौरान 7,635 संशोधन प्रस्तावित किए गए थे. किन्तु, सिर्फ 2,473 प्रस्तावों पर ही विस्तार से चर्चा हुई.

संविधान की मूल प्रति हिंदी और अंग्रेजी में हाथो से लिखी गई हैं. सुन्दर अक्षर में इस लिखावट को ‘सुलेखन’ भी कहा जाता हैं. संविधान की मूल प्रति हीलियम भरे बक्से में भारतीय संसद में रखी हुई हैं.

संविधान सभा के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges before Constituent Assembly)

भारत एक विविधताओं से भरा देश हैं. साथ ही यह अनेक जातियों, उपजातियों, धर्मों और कबीलों में बँटी हुई थी. सभी समुदायों अपने हिसाब से संविधान निर्माण करना चाहते थे. अभी हाल ही में देश ने सांप्रदायिक दंगा झेला था. इन परिस्थितियों में सभा देश को पुनः किसी विवाद में घसीटना नहीं चाहता था.

समस्या के समाधान के लिए संविधान के सभी मसौदे जनता के बीच जारी की गई. साथ ही, जनता से आमराय मांगी गई.

जनता से काफी अधिक विचार और सुझाव आये थे. अनेक हास्यास्पद विचार भी आये थे. इन सुझावों में कुछ प्रमुख विचार संविधान सभा के समक्ष वाद-विवाद के लिए रखा गया था. कुछ बेहतरीन, सुझावों को वाद-विवाद के बाद स्वीकार कर लिया गया, तो कुछ को अस्वीकार कर दिया गया.

संविधान सभा में विवाद (Dispute in Constituent Assembly in Hindi)

संविधान निर्माण के समय सबसे अधिक विवाद हिन्दू कोड बिल को लेकर हुए थे. डॉ अम्बेडकर चाहते थे कि हिन्दू धर्म में फैली कुरीतिओं को क़ानूनी तौर पर समाप्त कर देना चाहते थे. उनका मत था कि इससे देश आधुनिकता की ओर तेजी से अग्रसर हो सकेगा. यह कानून मुख्यतः विवाह और संपत्ति-अधिकार से सम्बंधित था.

लेकिन, अतिवादियों के विरोध के कारण यह कानून संविधान लागु होने तक पारित न की जा सकी. वास्तव में डॉ अम्बेकर इस सुधार के माध्यम से हिन्दू धर्म में फैली अवैज्ञानिक कुरीतिओं को दूर करना चाहते थे.

बाद में, 1955 एवं 1956 में हिन्दू कोड बिल कई टुकड़ो में पारित की गई. ये थे, हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955; हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956.

इसके अलावा 1956 में ही हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम और हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम लागू हुए. इस सभी कानूनों के सम्मिलित रूप को ही ‘हिन्दू कोड बिल, 1956’ कहा जाता हैं.

हिन्दू कोड बिल पर सामंजस्य की कमी (Lack of Coordination on Hindu Code Bill)

cartoon on hindu code bill dispute
छवि ट्विटर से: हिंदू कोड बिल विवाद पर एक ऐतिहासिक कार्टून

प० नेहरू इसे टुकड़ो में पारित करवाना चाहते थे. जबकि, डॉ अम्बेडकर इसे एक सम्मिलित रूप में पारित करवाना चाहते थे. साथ ही, अतिवादी भी अम्बेडकर का विरोध कर रहे थे.

अंततः, डॉ अम्बेकर ने हिन्दू कोड बिल और अनुच्छेद 370 पर बढ़ते विवाद की वजह से, 27 सितम्बर, 1951 को कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने इस मसले पर कहा था कि, ‘मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से अधिक दिलचस्पी और खुशी हिंदू कोड बिल पास कराने में है.’

संविधान सभा की आलोचना (Criticism of Constituent Assembly in Hindi)

संविधान निर्माण के समय संविधान सभा की आलोचना भी की गई थी. कुछ आलोचकों ने इस हिन्दुओं की सभा कहा तो किसी ने इसे कांग्रेस सभा कहा. ब्रिटैन के संविधान विशेषज्ञ ग्रेनविले ऑस्टिन ने टिपण्णी की, “संविधान सभा एक-दलीय देश का एक-दलीय निकाय हैं. सभा ही कांग्रेस हैं और कांग्रेस ही भारत हैं.”

कुछ लोग तो, संविधान निर्माण प्रक्रिया को ही समय और पैसे की बर्बादी कहा. आलोचकों के अनुसार अमेरिका ने अपना संविधान 4 माह में ही पूरा कर लिया था, जबकि भारतीय बहसों में उलझे थे. संविधान सभा के एक सदस्य, निराजुद्दीन अहमद, ने इसका नाम ही ‘अपवहन समिति’ रख दिया था.

आजादी से पूर्व, संविधान सभा को अपनी बैठकों के लिए अंग्रेजो से अनुमति लेनी पड़ती थी. उस समय अनेक लोग इस सभा के संप्रभु न होने का आरोप लगाते थे.

डॉ भीमराव अम्बेडकर ने न सिर्फ संविधान का निर्माण किया, बल्कि देश को एक आधुनिक विचारों से लैस ग्रन्थ सौंप दी. जब भी इस ग्रन्थ की चर्चा होगी, यह सभी भारतीय ग्रंथो में श्रेष्ठतम होगी.

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