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इसरो का इतिहास और उपलब्धियां

इसरो आज अंतरिक्ष कार्यक्रमों व सैटेलाइट प्रक्षेपण के मामले में दुनिया का सबसे किफायती व विश्वशनीय स्त्रोत के कारण काफी प्रसिद्ध हो गया हैं. किसी समय बैलगाड़ी व साईकिल से संवेदनशानशील उपकरणों की ढुलाई के कारण इसरो की कंगाली का मजाक बना था. लेकिन चाँद और मंगल के सफर के बाद इस अंतरिक्ष संगठन के साहसिक उड़ान का लोहा आज पुरा दुनिया मानता है.

जब 75 साल पहले 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ, तो उस वक्त देश में खाने, रहने समेत तमाम मुश्किलें थी. भारत की स्थिति उस वक्त आज के सोमालिया की तरह ही थी. लेकिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री के साथ ही देशवासियों ने इस चुनौती को स्वीकार किया व साहस बटोरकर धैर्यपूर्वक आगे बढ़ते रहे.

अंतत: साल 1962 में वह घड़ी आई जब भारत ने अंतरिक्ष का सफर करने का फैसला किया. इस साल देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना की. यहीं से भारत का अंतरिक्ष तकनीक (Space Technology) के क्षेत्र में सफर शुरू हुआ. आज भारत की इसरो दुनिया की 6 सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है. तो चलिये जानते हैं कि आखिर इसरो कैसे प्रसिद्द हुआ और उसके रास्ते में कौन-कौन सी अड़चने आईं जैसे अनेक महत्वपूर्ण बारीक जानकारियां-

इस लेख में हम जानेंगे

इसरो का पुराना नाम क्या है? (Full Name of ISRO in Hindi)

इसरो का पुराना नाम INCOSPAR है. भारत सरकार ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों को बढ़ा देने के लिए साल 1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति’ (Indian National Committee for Space Research -INCOSPAR) की स्थापना की थी. तब यह परमाणु अनुसंधान विभाग (Department of Atomic Energy) के अंतर्गत आता था.

इसके प्रथम व संस्थापक अध्यक्ष थे- दूरदर्शी वैज्ञानिक डॉ विक्रम साराभाई. उनके नेतृत्व में, INCOSPAR ने ऊपरी वायुमंडलीय अनुसंधान के लिए तिरुवनंतपुरम के थुम्बा में इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) की स्थापना की.

इसरो की स्थापना कब, कहाँ, किसने व कैसे की गई? (Foundation of ISRO in Hindi)

15 अगस्त 1969 को INCOSPAR का नाम बदलकर ISRO (Indian Space Research Organisation) मतलब इसरो की स्थापना की गई. यह संगठन वर्तमान में भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग (Department of Space) के अधीन काम करता हैं. इस संगठन का मुख्यालय बैंगलोर में हैं.

“डॉ. विक्रम साराभाई को भारत में आधुनिक अंतरिक्ष कार्यक्रम का ‘संस्थापक जनक’ कहा जाता है. उनका मानना था कि अंतरिक्ष के संसाधनों से मनुष्य व समाज की वास्तविक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है. उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का नेतृत्‍व करने के लिये एक दल का गठन किया था. इसमें देश के सक्षम व उत्‍कृष्‍ट वैज्ञानिकों, मानवविज्ञानियों, समाजविज्ञानियों और विचारकों को शामिल किया गया था.”

1972 में, भारत सरकार ने अंतरिक्ष आयोग और अंतरिक्ष विभाग की स्थापना की. फिर 01 जून, 1972 में इसरो को अंतरिक्ष एटॉमिक ऊर्जा विभाग से अंतरिक्ष विभाग के अधीन कर दिया गया. इसरो के अलावा अंतरिक्ष विभाग, खगोल विज्ञान (Astronomy) और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी (Space Technology) के क्षेत्र में भारत सरकार में अन्य संस्थानों को नियंत्रित करता है.

इसरो किस लिए प्रसिद्ध है? (What is ISRO famous for?)

ISRO अपने किफायती व सुरक्षित अंतरिक्ष मिशन के लिए जाना जाता है. यही वजह है कि साल 1999 से अब तब इसरो ने अपनी वाणिज्यिक शाखा (एंट्रिक्स) के ज़रिये ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) द्वारा 34 देशों के 345 विदेशी उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है.

इसरो दुनिया की उन छह सरकारी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है, जिसके पास खुद की पूर्ण प्रक्षेपण क्षमताएं, क्रायोजेनिक इंजन, पृथ्वी के बाहर मिशन लांच करने की क्षमता और कृत्रिम उपग्रहों के बड़े बेड़े का संचालन है.

इसरो को मंगल मिशन व चंद्रयान-1 की सफलता से भी काफी प्रसिद्धि मिली हैं.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान का विकास व इतिहास (History of Indian Space Research and Development in Hindi)

भारत में अंतरिक्ष सम्बन्धी तकनीक का आगमन मध्यकाल व आधुनिकाल के बीच हो चुका था. भारत के दक्षिणी राज्य मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने रॉकेट का इस्तेमाल करते हुए कई युद्ध जीते थे. हालांकि उनके पिता हैदर अली ने भी इसका इस्तेमाल किया था, लेकिन वे उतने सफल नहीं रहे, जितना टीपू.

टीपू सुल्तान ने दूसरे (1780–84), तीसरे (1790–92) व चौथे (1798–99) एंग्लो-मैसूर युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ लोहे के बने रॉकेटों का इस्तेमाल किया. इसी से प्रभावित होकर, विलियम कंग्रीव ने 1804 में कंग्रीव रॉकेट का आविष्कार किया.

रॉकेट मूलतः भारत के पड़ोसी देश चीन का आविष्कार था और आतिशबाजी के रूप में पहली बार प्रयोग किया गया था. फिर प्राचीन रेशम मार्ग से होते हुए मैसूर तक लाया गया. टीपू सुलतान द्वारा इस्तेमाल किए गए राकेट आज भी लंदन के मशहूर साइंस म्यूजियम में टीपू सुल्तान के जमाने के कुछ रॉकेट रखे हैं, जिन्हें अंग्रेज अपने साथ 18वीं सदी के अंत में ले गए थे.

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, 10 सितम्बर 1780 में दूसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान, पोल्लिलूर या पेराम्बकम, कांजीवरम, तमिलनाडु के पास हुए लड़ाई में सबसे उन्नत राकेट का उपयोग किया गया था. वहीं, सर काँग्रीव ने तीसरे आंग्ला-मैसूर युद्ध से राकेट बनाने की प्रेरणा ली थी.

चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में टीपू सुलतान के मौत के साथ ही भारत से राकेट गायब हो गया. उसके बाद इस दिशा में आजादी के बाद ही काम किया गया.

1960-1970 का दशक व अंतरिक्ष कार्यक्रम का शुरुआत (Starting of Indian Space Programme in Hindi)

साल 1957 में रूस द्वारा स्पूतनिक के सफल प्रक्षेपण के बाद कृत्रिम उपग्रहों के महत्ता को पुरे दुनिया ने माना. 1962 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की स्थापना हुई. इसी के साथ अनुसंधित रॉकेट का प्रक्षेपण के लिए कार्य-योजना पर काम शुरू किया गया. इसमें भारत की भूमध्य रेखा की समीपता वरदान साबित हुई.

भारत ने साउंडिंग रॉकेट टेक्नोलॉजी में महारत हासिल करने के बाद उपग्रह प्रक्षेपण यान विकसित करने का शुरू कर दिया. पहला प्रयास पृथ्वी के निचले कक्षा में 35 किलोग्राम वजन के उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित करने के प्रयास शुरू किए गए. सात साल में इसरो ने 400 किलोमीटर की कक्षा में 40 किलोग्राम का उपग्रह प्रक्षेपित करने का तकनीक प्राप्त किया.

1970 से 90 के दो दशक का दौर

इस समय, भारत ने भविष्य में संचार की आवश्यकता एवं दूरसंचार का पूर्वानुमान लगते हुए, उपग्रह के लिए तकनीक का विकास प्रारम्भ कर दिया था. भारत की अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रथम यात्रा 1975 में रूस के सहयोग से इसके कृत्रिम उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण से शुरू हुई.

1979 तक, नव-स्थापित द्वितीय प्रक्षेपण स्थल सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से एस.एल.वी. प्रक्षेपण के लिए, एक एसएलवी लॉन्च पैड, ग्राउंड स्टेशन, ट्रैकिंग नेटवर्क, रडार और अन्य संचार स्थापित किए गए. 1979 में रोहिणी तकनीक का पेलोड SLV के जरिए प्रक्षेपित किया गया. लेकिन द्वितीय स्तरीय असफलता (पेलोड से उपग्रह अलग नहीं हो पाना) के कारण इसे वांछित कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका.

1980 तक इस समस्या का निवारण कर लिया गया. इसके बाद 1980 में ही SLV राकेट द्वारा RS-I उपग्रह के साथ सफल प्रक्षेपण किया गया. इससे भारत भी यूएसएसआर, यूएस, फ्रांस, यूके, चीन और जापान के बाद पृथ्वी की कक्षा कृत्रिम उपग्रह पहुँचाने वाला सातवां देश बन गया.

भारत ने अपने यादगार सफलता के बाद, 1978 में 600 किलोग्राम के वजन के साथ 1000 किलोमीटर तक (सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट) में प्रक्षेपण के कार्य-योजना पर काम शुरू किया. यही कार्य बाद में PSLV के विकास का आधार बना.

1983 में SLV-3 बंद कर दिया गया. इससे पहले इस दो और प्रक्षेपण हुए थे. इसके बाद सन 1985 में इसरो ने तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) स्थापित किया. इस परियोजना में, फ्रेंच वाइकिंग तकनीक पर आधारित एक अधिक शक्तिशाली इंजन “विकास” पर काम शुरू किया गया. दो साल बाद, तरल ईंधन वाले रॉकेट इंजनों के परीक्षण के लिए फैसिलिटी सेंटर्स स्थापित की गईं और विभिन्न रॉकेट इंजन थ्रस्टर्स का विकास और परीक्षण शुरू हुआ.

उसी समय, एसएलवी -3 पर आधारित एक और ठोस ईंधन रॉकेट संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान विकसित कर कृत्रिम उपग्रहों को भूस्थिर कक्षा (जीटीओ) में लॉन्च करने के लिए प्रौद्योगिकियां विकसित की जा रही थीं.

इसके साथ ही, भारतीय राष्ट्रीय संचार उपग्रह प्रणाली और पृथ्वी अवलोकन (Earth Observation) उपग्रहों के लिए भारतीय सुदूर संवेदन कार्यक्रम (Indian Remote Sensing Programme) के लिए प्रौद्योगिकियों (Technologies) को विकसित किया गया और विदेशों से लॉन्च किया गया. उपग्रहों की संख्या में वृद्धि के साथ ही और भारतीय कृत्रिम उपग्रह सिस्टम दुनिया का सबसे बड़ा कृत्रिम उपग्रहों का तारामंडल बन गया. इसमें मल्टी-बैंड संचार, रडार इमेजिंग, ऑप्टिकल इमेजिंग और मौसम संबंधी उपग्रह शामिल थे.

1990 से 21वीं सदी का स्वर्णिम दौर

1990 के दशक में पीएसएलवी का आगमन भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को स्वर्णिम दौर में ले गया. इस तकनीक के माध्यम से भारत ने देश-विदेश के सबसे अधिक कृत्रिम उपग्रह स्थापित किए हैं.

1994 में दो आंशिक विफलताओं के बाद, पीएसएलवी ने 50 से अधिक सफल उड़ानें भरी. PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) पृथ्वी पृथ्वी की निम्न कक्षा में उपग्रहों को स्थापित करने व जीटीओ के लिए छोटे पेलोड ले जाने में सक्षम है.

PSLV के साथ ही भारत उच्च कक्षा में प्रवेश के लिए क्रायोजेनिक इंजन आधारित GSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle) के विकास के काम पर लगा हुआ था. लेकिन जैसे ही अमेरिका को इसकी भनक लगी, उसने रुसी अंतरिक्ष एजेंसी ग्लावकास्मोस व भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो को चेतावनी दी. दरअसल, इस तकनीक का प्रयोग कर भारत अंतर-महादेशीय प्रक्षेपास्त्र विकसित कर सकता है, ऐसा अमेरिका को संदेह था. फिर अमेरिका ने साल 1992 में इसरो पर प्रतिबन्ध लगा दिया.

इसके बाद भारत का रूस से क्रायोजेनिक इंजिन प्राप्त करने की कोशिश खटाई में पड़ गई. भारत ने इसके बाद विदेश से तकनीक खरीदने के बजाए खुद ही इसे विकसित करने का निर्णय लिया. इससे अमेरिका का रुख नरम हुआ व इसरो से प्रतिबन्ध हटाए लिया गया. इस तरह, इसरो पर 6 मई 1992 से 6 मई 1994 के बीच अमेरिकी सरकार का प्रतिबंध रहा था.

कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिका ने भारत को GPS सेवा देने से मना कर दिया. इसके बाद भारत ने खुद का GPS सिस्टम IRNSS (Indian Regional Satellite Navigation System) विकसित करने का निर्णय लिया.

साल 2000 से आज तक (From 2000 to till date)

इसरो का चंद्रयान-1 मिशन (Chandrayaan-1 Mission of ISRO in Hindi): इसे 22 अक्टूबर 2008 को एसडीएससी शार, श्रीहरिकोटा से इसरो द्वारा 1380 किलोग्राम का चंद्रयान-1 चाँद के लिए छोड़ा गया, जो 14 नवंबर 2008 को चंद्रमा की सतह पर पहुँचा. चाँद पर तिरंगा लहराते ही भारत अपने बलबूते चंद्रमा पर झंडा लगाने वाला विश्व का चौथा देश बन गया.

इस मिशन का अंतरिक्ष यान चंद्रमा के रासायनिक, खनिज और फोटो-भूगर्भिक मानचित्रण के लिए चंद्रमा की सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था. अंतरिक्ष यान में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरण थे.

सभी प्रमुख मिशन उद्देश्यों के सफल समापन के बाद, मई 2009 के दौरान कक्षा को 200 किमी तक बढ़ा दिया गया. उपग्रह ने चंद्रमा के चारों ओर 3400 से अधिक परिक्रमाएं कीं और मिशन तब समाप्त हुआ जब 29 अगस्त 2009 को अंतरिक्ष यान के साथ संचार खो गया.

इस मिशन ने कई नई कामयाबी हासिल की, जिसमें चन्द्रमा पर जल का खोज भी शामिल है. 14 नवंबर 2008 को, चंद्रयान-1 ने शेकलटन क्रेटर पर प्रभाव डालने के लिए मून इम्पैक्ट प्रोब जारी किया था, जिससे पानी में बर्फ की उपस्थिति की पुष्टि करने में मदद मिली. सिलिकेट निकायों में ऐसी विशेषताओं से हाइड्रॉक्सिल- और/या जल-धारण किए हुए निकायों का पुष्टि होता है.

क्रायोजनिक इंजन: रूस से क्रायोजेनिक इंजन प्राप्त करने में विफल रहने के बाद भारत ने खुद ही क्रायोजेनिक इंजिन बनाने के परियोजना पर काम शुरू कर दिया था. देश को इसका परिणाम दो दशक बाद 5 जनवरी 2014 को प्राप्त हुआ, जब ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो का फुल फॉर्म) ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान की D5 उड़ान में किया.

मंगलयान : साल 2014 में इसरो ने मंगलयान को मंगल की धरती पर उतारकर नया कीर्तिमान स्थापित किया. इस तरह ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बना. इसरो के इस मिशन में महज़ 450 करोड़ रूपए खर्च हुए थे. खास बात यह है कि भारत एकमात्र ऐसा देश था जिसे पहली बार में ही मंगलयान को मंगल पर भेजने में सफलता मिल गई थी. इस मिशन को अब Mars Orbit Mission (MOM) भी कहा जाता हैं.

IRNSS: इसी दशक में भारत ने अपना खुद का GPS नेविगेशन सिस्टम भी विकसित किया. इस परियोजना के तहत कुल सात कृत्रिम उपग्रह स्थापित करने का योजना था. हालाँकि एक आंशिक सफल (PSLV-XL-C22 – IRNSS के तहत प्रथम प्रक्षेपण) व एक असफल प्रक्षेपण (PSLV-XL-C39) कि वजह से कुल 9 लॉन्चिंग ISRO को करना पड़ा. मूलतः भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित इस सिस्टम के तहत हुए प्रक्षेपण से जुडी महत्वपूर्ण जानकारी निम्नवत हैं-

उपग्रहप्रक्षेपण तारीखप्रक्षेपण याननतीजा
IRNSS-1A1 जुलाई 2013PSLV-XL-C22आंशिक असफलता
IRNSS-1B4 अप्रैल 2014PSLV-XL-C24सफल
IRNSS-1C16 अक्टूबर 2014PSLV-XL-C26सफल
IRNSS-1D28 मार्च 2015PSLV-XL-C27सफल
IRNSS-1E20 जनवरी 2016PSLV-XL-C31सफल
IRNSS-1F10 मार्च 2016PSLV-XL-C32सफल
IRNSS-1G28 अप्रैल 2016PSLV-XL-C33सफल
IRNSS-1H31 अगस्त 2017PSLV-XL-C39असफल
IRNSS-1I12 अप्रैल 2018PSLV-XL-C41सफल
इसरो के IRNSS परियोजना से जुड़े सैटेलाइट

इसरो रॉकेट एलवीएम3-एम2/वनवेब इंडिया-1 और 36 सैटेलाइट मिशन

23 अक्टूबर 2022 को लांच यह मिशन इसरो का पहला वाणिज्यिक मिशन है. साथ ही, प्रक्षेपण यान के साथ एनएसआईएल का भी पहला अभियान है. मिशन में वनवेब के 5,796 किलोग्राम वजन के 36 उपग्रहों के साथ अंतरिक्ष में ले जाया गया. एक साथ इतने सैटेलाइट का प्रक्षेपण इसरो के लिए एक रिकॉर्ड है.

एलवीएम3-एम2/वनवेब इंडिया-1 को आंध्रप्रदेश के श्राहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया. फिर, ब्रिटिश ग्राहक वनवेब के लिए 36 ब्रॉडबैंड संचार उपग्रहों को निचली कक्षा (एलईओ) में स्थापित किया गया. अंतरिक्ष विभाग के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) ने लंदन के वनवेब से इस संबंध में करार किया था.

चंद्रयान 3 (Chandrayaan-3 in Hindi)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा चंद्रयान 3 मिशन का बहुप्रतीक्षित प्रक्षेपण 14 जुलाई, 2023 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से भारतीय समयानुसार दोपहर 2.35 बजे हुआ था. यह चंद्र मिशन चंद्रयान 2 का अनुवर्ती है, जिसे सितंबर 2019 में लॉन्च किया गया था.

Infographical Presentation of ISRO's Chandrayaan-3 Mission.

चंद्रयान 2 ऑनबोर्ड कंप्यूटर और प्रणोदन प्रणाली की समस्याओं के कारण ‘विक्रम’ सॉफ्ट लैंडिंग को पूरा करने में विफल रहा और चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. अब चंद्रयान-3 मिशन में 23 अगस्त 2023 को सफल लेंडिंग के बाद इसरो ने बॉक्स के आकार के रोवर ‘विक्रम’ को तैनात दिया है. यह तैनाती चंद्रयान -2 मिशन में विफल रहा था.

चंद्रयान-3 मिशन के द्वारा भारत ने चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने में सफलता प्राप्त की है. इस हिस्से में सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता है, जिससे यहां हमेशा अँधेरा रहता है. इस वजह से इस हिस्से में दुनिया का कोई भी मिशन अभी तक नहीं उतर पाया है. इसलिए भारत का यह उपलब्धि काफी ख़ास है.

चंद्रयान 3 मिशन की योजना चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने की एंड-टू-एंड क्षमता प्रदर्शित करने की है. मिशन के मुख्य उद्देश्य हैं:

  • चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग का प्रदर्शन करना,
  • चंद्रमा पर घूमते रोवर का प्रदर्शन करना; और
  • यथास्थान वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना.

इसरो ने पहली बार जनवरी 2020 में इसकी घोषणा की. इसरो ने चंद्रयान 3 मिशन के लैंडर को चंद्रयान 2 की तुलना में अधिक मजबूत पैर वाला बनाया है.

इसे 2021 की शुरुआत में लॉन्च किया जाना था. लेकिन COVID-19 महामारी के कारण अंतरिक्ष यान के विकास और संयोजन में देरी हुई. महामारी की दूसरी लहर के कारण और देरी हुई. हालांकि प्रणोदन प्रणालियों का निर्माण और परीक्षण मई 2021 तक लगभग पूरा हो चुका था. अंततः 14 जुलाई, 2023 की तारीख तय होने के साथ, अंतरिक्ष यान को लॉन्च व्हीकल मार्क 3 (एलवीएम 3) रॉकेट पर लॉन्च किया गया.

एक अलग लैंडर और रोवर मॉड्यूल से युक्त, अंतरिक्ष यान के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने और पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर यानी एक चंद्र दिवस तक संचालित होने की संभावना है.

चंद्रयान 3 मिशन ने चंद्रयान 2 के समान प्रक्षेपवक्र का अनुसरण किया है, जहां प्रणोदन मॉड्यूल ने चंद्रमा की ओर उड़ान भरने से पहले कई बार पृथ्वी की परिक्रमा किया. एक बार चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के भीतर, मॉड्यूल खुद को 100 x 100 किमी की गोलाकार कक्षा में ले गया. फिर, लैंडर अलग होकर और सतह पर उतर गया.

लॉन्च के समय से मॉड्यूल को चंद्रमा तक पहुंचने में लगभग एक महीने का समय लगा. इसरो के पूर्व अध्यक्ष के. सिवन ने इस लैंडिंग को “आतंक के 15 मिनट” बताया है.

विक्रम‘ लैंडर (डॉ विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया नाम) ने चंद्रमा की सतह के तापमान और भूमिगत विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए अपने चार वैज्ञानिक पेलोड तैनात किया है. मॉड्यूल में ‘स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ’ (SHAPE)’ नामक एक उपकरण है, जो पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित और परावर्तित प्रकाश के बारे में डेटा एकत्र करेगा.

प्रज्ञान‘ रोवर, चंद्रमा के चारों ओर घूमते हुए रासायनिक और दृश्य परीक्षणों का उपयोग करके चंद्रमा की सतह का अध्ययन करेगा.

वीडियो: इसरो के चंद्रयान-3 मिशन का महत्व

इसरो की कुछ अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धियां (Some other important achievements of ISRO in Hindi)

भले ही भारत सरकार ने साल 1962 में अंतरिक्ष कार्यक्रमों का औपचारिक शुरुआत करने का ऐलान किया हो. लेकिन, इसकी शुरुआत भारतीय वैज्ञानिकों ने वायुमंडल, इसके लेयर्स (स्तर), रेडियो टेक्नोलॉजी व धरती के चुम्बकीय क्षेत्र के अध्ययन के साथ ही हो गई थी.

1950 में, परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) की स्थापना की गई थी.डॉ भाभा इसके सचिव बने. इसने पूरे भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए फंडिंग की. भारत में 1823 में कोलाबा वेधशाला की स्थापना के बाद से ही मौसम विज्ञान और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के पहलुओं पर परीक्षण किया जा रहा था. आजादी के बाद भी विभिन्न स्थानों पर ऐसे ही प्रयोग जारी रहे. ये शुरूआती अनुसंधान बाद में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में मिल का पत्थर साबित हुए. आइये अब जानते है इसरो की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ-

19 अप्रैल 1975 को भारत ने अपना पहला प्रायोगिक उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को रूस के सहयोग से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया. इसे रूस के प्रक्षेपण यान कॉसमॉस-3M, जो कॉसमॉस परिवार का एक राकेट है, के द्वारा कपूस्टिन यार (Kapustin Yar) प्रक्षेपण केंद्र से लांच किया गया था.

आर्यभट्ट का निर्माण इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष प्रोफेसर सतीश धवन के मार्गदर्शन में नौसिखिए युवा टीम ने किया था. इससे पहले इस टीम ने कभी भी अंतरिक्ष हार्डवेयर नहीं बनाया था. इस छोटे उपग्रह (Satellite) का वजन मात्र 360 किलो था, जिसे बनाने में 3 साल का समय लगा व 3 करोड़ रुपये से अधिक का खर्चा आया.

आर्यभट्ट के बाद 07 जून 1979 को 442 किलोग्राम वजनी प्रायोगिक भास्कर-I उपग्रह को रूस के C-1 इंटरकॉस्मॉस प्रक्षेपण यान द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया व धरती के निम्न कक्षा (LEO) में स्थापित किया गया. यह भारत का पहला सुदूर संवेदन उपग्रह (Experimental Remote Sensing) था, जो धरती के विभिन्न हिस्सों चित्र भेजता था. इससे महासागरों, वनों, पर्वतों व धरती के अध्ययन में मदद मिली.

इसके बाद सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा, तिरुपति, आंध्र प्रदेश (SHAR) से 10 अगस्त 1979 को Rohini Technology Payload (RTP) को भारत के स्वदेसी प्रक्षेपण यान SLV-3E1 राकेट द्वारा छोड़ा गया. इस राकेट ने आंशिक सफलता पाई, इस तरह मिशन असफल हो गया.

इसरो ने 18 जुलाई 1980 को स्वदेसी प्रक्षेपण यान एसएलवी-3E2 का सफल परीक्षण किया व 35 किलोग्राम वजनी रोहिणी उपग्रह आरएस-1 को कक्षा में स्थापित किया गया था. इस तरह भारत का नाम उन देशों में शामिल हो गया जो अपने उपग्रहों को खुद प्रक्षेपित कर सकते थे.

इसके बाद भारत ने 31 मई, 1981 को SLV-3D1 राकेट द्वारा रोहिणी उपग्रह, RS-D1, अंतरिक्ष में भेजा गया. फिर, 19 जून 1981 को फ्रेंच गुआना के कौरु अंतरिक्ष केंद्र से प्रायोगिक संचार उपग्रह एप्पल (Ariane Passenger Payload Experiment – APPLE) को Geo-synchronous Orbit (GEO) में एरियन-1 (Ariane -1) (V-3) राकेट द्वारा सफल परिक्षण किया गया.

30 अगस्त 1983 में संचार उपग्रह इनसैट-1बी का सफल प्रक्षेपण किया गया. इसने भारत के दूर संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में क्रांति लाने का काम किया.

इस प्रक्षेपण से पहले 20 नवम्बर 1981 को प्रायोगिक उपग्रह भास्कर-II (सफल) का C-1 इंटरकॉस्मॉस राकेट से LEO कक्षा में व 10 अप्रैल 1982 को संचार उपग्रह इनसेट-1A (INSAT-1A) (असफल) का डेल्टा यान से प्रक्षेपण किया गया था.

इसके बाद DLR जर्मनी द्वारा IRS-1A उपग्रह का उन्नत संस्करण IRS-1E तैयार किया गया. 846 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह को PSLV-D1 यान द्वारा 20 सितम्बर 1993 को LEO में प्रक्षेपित किया गया. हालाँकि, यह प्रक्षेपण असफल रहा. यह PSLV सीरीज का पहला उड़ान था.

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) ने पहला सफल उड़ान 04 मई 1994 को भरी गई. इसके द्वारा प्रायोगिक उपग्रह SROSS-C2 को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया गया. इस सफल प्रक्षेपण से भारत के स्वदेशी प्रक्षेपण क्षमता में वृद्धि हुई. इस यान के ज़रिये अब तक 50 से अधिक सफल मिशन प्रक्षेपित किये जा चुके हैं.

15 फरवरी 2017 को इसरो ने PSLV-C 37 द्वारा एक साथ 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर विश्व रिकॉर्ड कायम किया.

5 जून 2017 को इसरो ने देश का सबसे भारी रॉकेट GSLV MK 3 लॉन्च किया. यह अपने साथ 3,136 किग्रा का उपग्रह जीसैट-19 लेकर गया था. इससे पहले 2,300 किग्रा से भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिये देश को विदेशी प्रक्षेपकों पर निर्भर रहना पड़ता था.

12 अप्रैल 2018 को इसरो ने नेवीगेशन उपग्रह IRNSS सिस्टम के सभी उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित कर दिया गया. इस तरह अब अमेरिका के GPS सिस्टम की तरह भारत के पास भी खुद का नेविगेशन सिस्टम हैं. यह सिस्टम स्वदेशी तकनीक से निर्मित हैं.

27 मार्च 2019 को इसरो ने एंटी सैटेलाइट (A-SAT) से एक लाइव भारतीय सैटेलाइट को नष्ट करने में सफलता पाया. इस तरह अंतरिक्ष में सैटेलाइट को मार गिराने वाला भारत चौथा देश बन गया है.

इतना ही नहीं, 1 अप्रैल 2019 को इसरो ने इलेक्ट्रॉनिक इंटेलीजेंस उपग्रह समेत 29 उपग्रहों को एक साथ प्रक्षेपित किया. इनमें 28 विदेशी उपग्रह शामिल थे. पहली बार इसरो ने एक ही मशीन से तीन अलग-अलग कक्षाओं में उपग्रहों को स्थापित किया.

इसरो का चमत्कारिक सिलसिला आगे भी जारी रहा, 22 जुलाई 2019 को भारत ने दूसरे चंद्रमिशन चंद्रयान-2 को रवाना किया. इसे ‘बाहुबली’ नाम के सबसे ताकतवर और विशाल राकेट जीएसएलवी-मार्क III के ज़रिये प्रक्षेपित किया गया. हालांकि यह मिशन असफल रहा लेकिन देश ने इसे एक उपलब्धि के तौर पर देखा.

भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसरो के वैज्ञानिकों के पिछले सफलताओं को देखते हुए, बेंगलुरु में इसरो के मुख्यालय पर इस मौके का गवाह बनने पहुंचे थे. हालाँकि, रोबोटिक लैंडर विक्रम का चंद्रमा की सतह से मात्र 2.1 किमी की दुरी पर पहुँचने के बाद, धरती पर ग्राउंड स्टेशनों से संपर्क टूट गया था. अंतरिक्ष विज्ञान के जगत में इस मिशन को सफल ही माना जाता है, सिवाय रोबोटिक लैंडर के तकनिकी खामी के.

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम की प्रणालियाँ व प्रेक्षण यान (System of India’s Space Programme and Launch Vehicles in Hindi)

इनसैट प्रणाली – 1980 के दशक में विकसित इनसैट एक बहु उद्देश्यीय उपग्रह प्रणाली है. इसलिए यह कई क्षेत्रों के लिए सेवाएं उपलब्ध करवाता है. इस प्रणाली के 11 उपग्रह; इन्सेट-4सीबी, इनसेट-4 बी, इनसेट-4ए, एडुसेट, इनसेट-3ई, जीसेट-2, इनसेट-3ए, कल्पना-1, इनसेट-3सी, इनसेट-3बी और इनसेट-2ई; वर्तमान में सेवा प्रदान कर रहे हैं. यह 66 सी-बैंड ट्रांसपोंडर्स, 8 वृहद् सी-बैंड ट्रांसपोंडर्स और 3 के यू बैंड ट्रांसपोंडर्स उपलब्ध करवाता है.

भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह प्रणाली(IRS System):- यह प्रणाली मुख्य तौर पर पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों का चित्र खींचने का काम करता है. इन चित्रों से उपज, जल, वन, बंजर व प्रति भूमि जैसे स्थानों की जानकारी प्राप्त की जाती है. इसका रेजोलुशन 360 मी. से 5.8 मीटर के विभेदन तक है. इस समूह में अब 10 उपग्रह प्रचालित हैं- ओसेनसेट-2, रिसेट-2, कार्टोसेट-2ए, आईएमएस-1, कार्टोसेट-2, कार्टोसेट-1, रिसोर्ससेट-1, टीईएस, ओसेनसेट-1 व आईआरएस. मेघा-ट्रापिक्स, सरल एवं इन्सैट-3डी को भी इस प्रणाली में शामिल करने की योजना है.

प्रक्षेपण यान (Launch vehicle या राकेट): – एस एल वी-3 1980 ई. में पहला भारतीय स्वदेशी प्रक्षेपण यान है. इसे बाद संवद्र्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (Advanced Satellite Launch Vehicle -ASLV) का निर्माण किया गया. फिर अक्टूबर 1994 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) द्वारा IRSP 2 यान को छोड़कर इसरो ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की.

इसरो ने 18 अप्रैल, 2001 को सफलतापूर्वक स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान छोड़ा. भारत के पास चार चरणों वाला PSLV है. यह एक टन वजनी पेलोड को भू-स्थिरीय कक्षा में प्रक्षेपित कर सकता है. वहीं, GSLV 2,500 किग्रा श्रेणी के उपग्रहों को भूस्थिर कक्षा में छोड़ सकता है.

1 जुलाई, 2022 तक पीएसएलवी ने 55 प्रक्षेपण किए हैं, जिनमें से 52 सफलतापूर्वक अपनी नियोजित कक्षाओं में पहुंच गए हैं. इसके दो पूर्ण विफलताएं और एक आंशिक विफलता, 94% (या आंशिक विफलता सहित 95%) की सफलता दर प्रदान कर रही है.

इसरो के अन्य सहयोगी व अनुषंगी संगठन (Other associate and subsidiary organizations of ISRO)

  1. विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (Vikram Sarabhai Space Centre – VSSC), कोचुवेली, तिरुवनंतपुरम्, केरल– यह प्रक्षेपण यान के विकास का मुख्य केंद्र है.
  2. इसरो उपग्रह केंद्र (ISRO Satellite Centre-ISAC), अंतरिक्ष भवन, बंगलौर– यहाँ उपग्रहों का डिज़ाइन, निर्माण, परीक्षण एवं प्रबंधन किया जाता हैं.
  3. अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (Space Applications Centre – SAC), अहमदाबाद:- यह अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए यंत्र बनाने, संगठित और निर्माण करने के लिए इसरो का अनुसंधान एवं विकास केंद्र है.
  4. शार केंद्र – SHAR- आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित यह इसरो का मुख्य प्रक्षेपण केंद्र है. पहले इसे Sriharikota Range (Shar) कहा जाता था. अब इस SDSC यानि Satish Dhavan Space Centre कहा जाता है. 9 अक्टूबर 1971 को ‘रोहिणी-125’ का पहला उड़ान परीक्षण, शार केंद्र से पहला रॉकेट लॉन्च था.
  5. तरल नोदन यंत्र (Liquid Propulsion Systems Centre – LPSC):- यह प्रमोचक रॉकेट तथा उपग्रहों के लिए द्रव एवं क्रायोजेनिक इंजन के विकास में अग्रणी केंद्र है. इसके केंद्र तिरुवनंतपुरम, बँगलौर और महेंद्रगिरि (तमिलनाडु) में स्थित है.
  6. विकास, शिक्षा संचार एकक (Development & Education Communication Unit – DECO), अहमदाबाद– यह केंद्र अंतरिक्ष अनुप्रयोग कार्यक्रम की संकल्पना, परिभाषा, योजना और सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन में लगा हुआ है.
  7. इसरो दूरमापी यंत्र, पथ और कमांड नेटवर्क (ISRO Telemetry, Tracking and Command Network – ISTRAC), बंगलौर– इस संस्था का कार्य उपग्रह और प्रक्षेपण यान मिशनों के लिए टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड सपोर्ट का सेवा उपलब्ध करवाना है.इसका मुख्यालय और अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र बंगलौर में एवं इसके भू-स्थल केंद्र का नेटवर्क श्रीहरिकोटा, तिरुवनंतपुरम, बँगलौर, लखनऊ, कार निकोबार और मॉरीशस में स्थित है.
  8. प्रमुख नियंत्रण सुविधा (Master Control Facility)– कर्नाटक के हासन और मध्य प्रदेश के भोपाल में स्थित यह सेंटर इसरो के सभी भूस्थैतिक/ जियोसिंक्रोनस उपग्रहों, अर्थात् इनसैट, जीसैट, कल्पना और IRNSS Series के उपग्रहों की निगरानी और नियंत्रण करती है. एमसीएफ इन उपग्रहों के पूरे जीवन में उपग्रहों की कक्षा में वृद्धि, कक्षा में पेलोड परीक्षण और कक्षा में संचालन के लिए जिम्मेदार है. एमसीएफ के गतिविधियों में चौबीसों घंटे ट्रैकिंग, टेलीमेट्री और कमांडिंग (TT & C) संचालन, और विशेष संचालन जैसे ग्रहण प्रबंधन, स्टेशन-कीपिंग युद्धाभ्यास और आकस्मिकताओं के मामले में रिकवरी कार्रवाई शामिल हैं. एमसीएफ उपग्रह पेलोड्स के प्रभावी उपयोग, विशेष संचालन के दौरान सेवा में गड़बड़ी को रोकने और उपयोगकर्ता एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित करने का काम करता हैं.
  9. इसरो अक्रिय यंत्र एकक(ISRO Inertial Systems Unit -IISU), तिरुवनंतपुरम् – यहाँ पुराने तकनीक से नए तकनीक बनाने का प्रयोग व अनुसंधान किया जाता हैं. यह इसरो के प्रक्षेपण यान और अंतरिक्ष यान कार्यक्रमों के लिए जड़त्वीय प्रणालियों (Inertial Systems) के डिजाइन और विकास के लिए भी जिम्मेदार है.
  10. भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला (Physical Research Laboratory – PRL), अहमदाबाद– यह प्रयोगशाला अंतरिक्ष विभाग के अधीन आती है.
  11. राष्ट्रीय दूरसंवेदी सेंटर (National Remote Sensing Centre – NRSC), हैदराबाद – यह संस्था रिमोट सेंसिंग से जुड़े तकनीक मुहैया करवाता हैं.
  12. नेशनल मीसोस्फीयर, स्ट्रेटोस्फीयर, ट्रोपोस्फियर राडार फैसिलिटी (NMRF)गंदकी, आंध्र प्रदेश – यहाँ वातावरणिक अनुसंधान किया जाता हैं.
  13. Thumba Equatorial Rocket Launching Station (TERLS), थुम्बा, तिरुवनंतपुरम:- 21 नवंबर 1963 को स्थापित यह प्रक्षेपण केंद्र पृथ्वी के चुम्बकीय भूमध्य रेखा के निकट भारत के दक्षिणी हिस्सी में स्थित हैं.
  14. विद्युत प्रकाशिकी प्रणाली प्रयोगशाला (लियोस) (Electro-Optics Systems Laboratory (LEOS), बंगलुरू:- विद्युत प्रकाशिकी तंत्र प्रयोगशाला में उपग्रहों तथा प्रमोचन यानों के लिए विद्युत-प्रकाशिकी संवेदकों (Sensors) तथा कैमरा प्रकाशिकी का डिजाइन, विकास तथा उत्‍पादन किया जाता है. इन संवेदकों में तारा सूचक, भू संवेदक, सौर संवेदक व संसाधक इलैक्ट्रॉनिकी शामिल हैं.

इसरो मिशन : भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम व भारत द्वारा प्रक्षेपित यान व उपग्रह (Satellites and Launch Vehicles of Indian Space Programme)

उपग्रह प्रक्षेपण तिथि प्रक्षेपण यान   उद्देश्य   
आर्यभट्ट 19 अप्रैल 1975 इंटरकॉसमॉस प्रायोगिक (Experimental)
भास्कर -1 07 जून 1979 इंटरकॉसमॉस पृथ्वी का अवलोकन (Earth Observation), प्रायोगिक
रोहिणी प्रौद्योगिकी पेलोड 10 अगस्त 1979 Satellite Launch Vehicle (SLV-3) असफल
रोहिणी आर एस – 1 18 जुलाई 1981 SLV-3प्रायोगिक
रोहिणी आर एस – डी 1 31 मई 1981 SLV-3 पृथ्वी का अवलोकन
APPLE19 जून 1981 Arianeसंचार प्रायोगिक
भास्कर – 220 नवम्बर 1981 इंटरकॉसमॉस पृथ्वी का अवलोकन, प्रायोगिक
INSAT-1A10 अप्रैल 1982Delta launch vehicleसंचार, असफल
रोहिणी आरएस – डी217 अप्रैल 1983 SLV-3 पृथ्वी का अवलोकन
INSAT-1B 30 अगस्त 1983 Shuttle (PAM-D) संचार
SROSS-1 (एसआरओएसएस-1) 24 मार्च 1987 ASLV-D1 (असफल) प्रायोगिक (Experimental) 
IRS-1A 17 मार्च 1988 Vostok पृथ्वी का अवलोकन (Earth Observation) 
SROSS-1 (एसआरओएसएस-2) 13 जुलाई 1988 ASLV-D2 (असफल) पृथ्वी का अवलोकन, प्रायोगिक  
INSAT-1C 22 जुलाई 1988 Ariane-3 (आंशिक सफलता) संचार (Communication) 
INSAT-1D 12 जून 1990 Delta 4925 संचार 
IRS-1B 29 अगस्त 1991 Vostok पृथ्वी का अवलोकन 
SROSS-C 20 मई 1992 ASLV-D3 प्रायोगिक 
INSAT-2A 10 जुलाई 1992 Ariane-44L H10 संचार 
INSAT-2B 23 जुलाई 1993 Ariane-44L H10+ संचार 
IRS-1E 20 सितम्बर 1993 PSLV-D1 (असफल) पृथ्वी का अवलोकन
SROSS-C2 04 मई 1994 ASLV-D4 प्रायोगिक
IRS-P215 अक्टूबर 1994 PSLV-D2 पृथ्वी का अवलोकन
INSAT-2C 7 दिसम्बर 1995 Ariane-44L H10-3 संचार
IRS-1C 29 दिसम्बर 1995 Molniya पृथ्वी का अवलोकन
IRS-P3 21 मार्च 1996 PSLV-D3 पृथ्वी का अवलोकन
INSAT-2D 4 जून 1997 Ariane-44L H10-3 संचार, असफल
IRS-1D 29 सितंबर 1997 PSLV-C1 पृथ्वी का अवलोकन
INSAT-2E 3 अप्रैल 1999 Ariane-42P H10-3संचार
Oceansat-1 (IRS-P4) 26 मई 1999 PSLV-C2पृथ्वी का अवलोकन
INSAT-3B 22 मार्च 2000 Ariane-5Gसंचार
GSAT-1 18 अप्रैल 2001 GSLV-D1संचार
Technology Experiment Satellite (TES) 22 अक्टूबर 2001 PSLV-C3पृथ्वी का अवलोकन
INSAT-3C 24 जनवरी 2002 Ariane-42L H10-3 जलवायु और पर्यावरण, संचार
Kalpana-1 (METSAT) 12 सितंबर 2002 PSLV-C4 जलवायु और पर्यावरण, संचार
INSAT-3A 10 अप्रैल 2003 Ariane-5G जलवायु और पर्यावरण, संचार
GSAT-2 8 मई 2003 GSLV-D2 संचार
INSAT-3E 28 सितंबर 2003 Ariane-5G संचार
RESOURCESAT-1 (IRS-P6) 17 अक्टूबर 2003 PSLV-C5 पृथ्वी का अवलोकन
EDUSAT 20 अक्टूबर 2004 GSLV-F01 संचार
HAMSAT 5 मई 2005 PSLV-C6 संचार
CARTOSAT-1 5 मई 2005 PSLV-C6 पृथ्वी का अवलोकन
INSAT-4A 22 दिसम्बर 2005 Ariane-5GS संचार
INSAT-4C 10 जुलाई 2006 GSLV-F02 संचार
CARTOSAT-2 10 जनवरी 2007 PSLV-C7 पृथ्वी का अवलोकन
Space Capsule Recovery Experiment (SRE-1) 10 जनवरी 2007 PSLV-C7 प्रायोगिक
INSAT-4B 12 मार्च 2007 Ariane-5ECA संचार
INSAT-4CR2 सितंबर 2007 GSLV-F04 संचार
CARTOSAT-2A28 अप्रैल 2008 PSLV-C9 पृथ्वी का अवलोकन
IMS-1 (Third World Satellite – TWsat)28 अप्रैल 2008 PSLV-C9 पृथ्वी का अवलोकन
चंद्रयान-122 अक्टूबर 2008PSLV-C11ग्रहों का अवलोकन
RISAT-2 20 अप्रैल 2009 PSLV-C12 पृथ्वी का अवलोकन
ANUSAT 20 अप्रैल 2009 PSLV-C12 छात्र उपग्रह (Anna University)
Oceansat-2 (IRS-P4) 23 सितंबर 2009 PSLV-C14 जलवायु और पर्यावरण, पृथ्वी अवलोकन
GSAT-4 15 अप्रैल 2010 GSLV-D3 संचार
CARTOSAT-2B 12 जुलाई 2010 PSLV-C15 पृथ्वी अवलोकन
StudSat 12 जुलाई 2010 PSLV-C15 छात्र उपग्रह
GSAT-5P / INSAT-4D 25 दिसम्बर 2010 GSLV-F06 संचार, असफल
RESOURCESAT-2 20 अप्रैल 2011 PSLV-C16 पृथ्वी अवलोकन
Youthsat 20 अप्रैल 2011 PSLV-C16 छात्र उपग्रह
GSAT-8 / INSAT-4G 21 मई 2011 Ariane-5 VA-202  संचार, पथ प्रदर्शन (GPS)
GSAT-12 15 जुलाई 2011 PSLV-C17संचार
Megha-Tropiques 12 अक्टूबर 2011 PSLV-C18जलवायु और पर्यावरण, पृथ्वी अवलोकन
Jugnu 12 अक्टूबर 2011 PSLV-C18 छात्र उपग्रह
RISAT-1 26 अप्रैल 2012 PSLV-C19 पृथ्वी अवलोकन
SRMSAT 26 अप्रैल 2012 PSLV-C19 छात्र उपग्रह(SRM University)
GSAT-1029 सितंबर 2012 Ariane-5 VA-209 भारत का उन्नत संचार उपग्रह
SARAL 25 फ़रवरी 2013 PSLV-C20 जलवायु और पर्यावरण, पृथ्वी अवलोकन
IRNSS-1A 1 जुलाई 2013 PSLV-C22 मार्ग-दर्शन (Indian GPS System)
INSAT-3D 26 जुलाई 2013 Ariane-5 जलवायु और पर्यावरण, आपदा प्रबंधन प्रणाली
GSAT-7 30 अगस्त 2013 Ariane-5सैन्य संचार
मंगल कक्षित्र मिशन अंतरिक्षयान

नवंबर 05, 2013PSLV-C25मंगल ग्रह का अध्ययन
जीसैट-14जनवरी 05, 2014GSLV-D5/GSAT-14संचार
आईआरएनएसएस-1बीअप्रैल 04, 2014पीएसएलवी-सी24नौवहन
आईआरएनएसएस-1सीनवंबर 10, 2014पीएसएलवी-सी26नौवहन
जीसैट-16दिसम्बर 07, 2014एरियन-5 वी.ए.-221संचार
क्रू माड्यूल वायुमंडलीय पुन:प्रवेश परीक्षण (सी.ए.आर.ई.)दिसम्बर 18, 2014LVM-3/CARE Missionप्रायोगिक
आईआरएनएसएस 1डीमार्च 28, 2015पीएसएलवी-सी27नौवहन
जीसैट -6अगस्त 27, 2015GSLV-D6संचार
एस्ट्रोसैटसितंबर 28, 2015PSLV-C30/AstroSat MISSIONअंतरिक्ष विज्ञान
जीसैट-15नवंबर 11, 2015

आई.आर.एन.एस.एस.-1ईजनवरी 20, 2016पी.एस.एल.वी.-सी31/आई.आर.एन.एस.एस.-1ईनौवहन
आई.आर.एन.एस.एस.-1एफमार्च 10, 2016पी.एस.एल.वी.-सी32/आई.आर.एन.एस.एस.-1एफनौवहन (GPS Navigation System)
आई.आर.एन.एस.एस.-1जीअप्रैल 28, 2016पी.एस.एल.वी.-सी33/आई.आर.एन.एस.एस.-1जीनौवहन
कार्टोसैट-2 श्रृंखला का उपग्रहजून 22, 2016पीएसएलवी-सी34भू प्रेक्षण
सत्यभामासैटजून 22, 2016PSLV-C34 / CARTOSAT-2 Series Satelliteछात्र उपग्रह
स्वयंजून 22, 2016PSLV-C34 / CARTOSAT-2 Series Satellite
इन्सैट-3DRसितंबर 08, 2016GSLV-F05 / INSAT-3DRजलवायु और पर्यावरण, आपदा प्रबंधन
प्रथमसितंबर 26, 2016PSLV-C35 / SCATSAT-1छात्र उपग्रह
स्कैटसैट -1सितंबर 26, 2016PSLV-C35 / SCATSAT-1जलवायु और पर्यावरण
पीसैटसितंबर 26, 2016PSLV-C35 / SCATSAT-1छात्र उपग्रह
जीसैट -18अक्टूबर 06, 2016एरियन-5 वी.ए.-231संचार
रिसोर्ससैट -2एदिसम्बर 07, 2016PSLV-C36 / RESOURCESAT-2Aभू प्रेक्षण
कार्टोसैट -2 श्रृंखला उपग्रहफ़रवरी 15, 2017पीएसएलवी-C37 / कार्टोसेट -2 श्रृंखला उपग्रहभू प्रेक्षण
आईएनएस-1Bफ़रवरी 15, 2017पीएसएलवी-C37 / कार्टोसेट -2 श्रृंखला उपग्रहप्रायोगिक
आईएनएस-1एफ़रवरी 15, 2017पीएसएलवी-C37 / कार्टोसेट -2 श्रृंखला उपग्रहप्रायोगिक
जीसैट-9मई 05, 2017GSLV-F09 / GSAT-9संचार
जीसैट -19जून 05, 2017जीएसएलवी एमके III-डी 1 / जीसैट -19 मिशनसंचार
निउसैटजून 23, 2017पीएसएलवी-सी 38 / कार्टोसैट -2 श्रृंखला उपग्रहछात्र उपग्रह
कार्टोसैट -2 श्रृंखला उपग्रहजून 23, 2017PSLV-C38 / Cartosat-2 Series Satelliteपृथ्वी अवलोकन
आईआरएनएसएस -1 एचअगस्त 31, 2017पीएसएलवी-सी39/आईआरएनएसएस-1एच मिशननौवहन (GPS), असफल
माइक्रोसैटजनवरी 12, 2018
प्रायोगिक
आईएनएस-1सीजनवरी 12, 2018पीएसएलवी-सी 40 / कार्टोसैट -2 श्रृंखला उपग्रह मिशनप्रायोगिक
कार्टोसैट -2 श्रृंखला उपग्रहजनवरी 12, 2018PSLV-C40/Cartosat-2 Series Satellite Missionपृथ्वी अवलोकन
जीसैट-6ए मिशनमार्च 29, 2018
संचार
आई.आर.एन.एस.एस.-1आईअप्रैल 10, 2018PSLV-XL-C31नौवहन (GPS)
GSAT-29नवंबर 14, 2018GSLV Mk III-D2 / GSAT-29 Missionसंचार
हाइसिसनवंबर 29, 2018PSLV-C43 / HysIS Missionपृथ्वी अवलोकन
जीसैट-11 मिशनदिसम्बर 05, 2018Ariane-5 VA-246संचार
GSAT-7Aदिसम्बर 19, 2018GSLV-F11 / GSAT-7A Missionसंचार
कलामसैट-वी2जनवरी 24, 2019PSLV-C44छात्र उपग्रह
माइक्रोसैट-आरजनवरी 24, 2019PSLV-C44
जीसैट-31फ़रवरी 06, 2019Ariane-5 VA-247संचार
एमिसैटअप्रैल 01, 2019PSLV-C45/EMISAT MISSION
RISAT-2Bमई 22, 2019PSLV-C46 Missionआपदा प्रबंधन, भू प्रेक्षण
चंद्रयान-2जुलाई 22, 2019GSLV-Mk III – M1 / Chandrayaan-2 Missionचंद्रमा का अध्ययन (Lunar)
Cartosat-3नवंबर 27, 2019PSLV-C47 / Cartosat-3 Missionपृथ्वी अवलोकन
रिसैट-2बी.आर.1दिसम्बर 11, 2019PSLV-C48/RISAT-2BR1आपदा प्रबंधन, भू प्रेक्षण
जीसैट-30जनवरी 17, 2020एरियन-5 वी.ए.-251संचार
ई.ओ.एस.-01नवंबर 07, 2020पी.एस.एल.वी.-सी.49/ई.ओ.एस.-01आपदा प्रबंधन, भू प्रेक्षण
CMS-01दिसम्बर 17, 2020PSLV-C50/CMS-01संचार
UNITYsatफ़रवरी 28, 2021PSLV-C51/Amazonia-1छात्र उपग्रह
सतीश धवन उपग्रह (SDSAT)28 फ़रवरी 2021PSLV-C51/Amazonia-1छात्र उपग्रह
EOS-0312 अगस्त 2021GSLV-F10 / EOS-03पृथ्वी अवलोकन,असफल
INSPIRE sat-114 फ़रवरी 2022PSLV-C52/EOS-04 Missionछात्र उपग्रह
EOS-0414 फ़रवरी 2022PSLV-C52/EOS-04 Missionपृथ्वी अवलोकन
INS-2TD14 फ़रवरी 2022PSLV-C52/EOS-04 Missionप्रायोगिक
GSAT-2423 जून 2022Ariane-5 VA-257संचार
इसरो के मिशन

भारतीय अंतरिक्ष प्रक्षेपण व इसरो से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण शब्दावली (Source : www.isro.gov.in ):-

  • SROSS का fullform होता है- Stretched Rohini Satellite Series.
  • IRNSS का मतलब होता है- Indian Regional Navigational Satellite System
  • GSAT :- “Geosynchronous” Satellite
  • GSLV :- Geosynchronous Satellite Launch Vehicle
  • INSAT :- Indian National Satellite
  • APPLE :- Asian Passenger Payload Experiment
  • PSLV :- Polar Satellite Launch Vehicle

इसरो के वर्त्तमान अध्यक्ष कौन है?

12 जनवरी 2022 से ‘एस सोमनाथ’ इसरो प्रमुख हैं. उनसे पहले हुए इसरो के अध्यक्षों की सूचि निनंवत हैं:-

  • डॉ के सिवन (2018 – 2022)
  • श्री ए एस किरण कुमार (2015 – 2018)
  • डॉ के राधाकृष्णन (2009-2014)
  • श्री जी.माधवन नायर (2003-2009)
  • डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन (1994-2003)
  • प्रो. उडुपी रामचंद्र राव (1984-1994)
  • प्रो. सतीश धवन (1972-1984)
  • प्रो. एम जी के मेनन (जनवरी-सितंबर 1972)
  • डॉ विक्रम अंबालाल साराभाई (1963-1971)
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