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मोहनजोदड़ो: एशिया का सबसे प्राचीन शहर

    मोहनजोदड़ो दक्षिण एशिया के प्राचीन सभ्यता का एक महत्वपूर्ण शहर है. दक्षिण एशिया प्राचीन काल से ही अपने समृद्धि के लिए प्रसिद्ध रही है. इस वजह से इस इलाके में पश्चिम से कई आक्रमणकारी, व्यापारी, पर्यटक और विद्वान् अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए प्राचीन से लेकर मध्यकाल तक आते रहे है. प्राचीन इतिहास में इनमें सबसे अधिक आकर्षक शहर मोहनजोदड़ो रहा है. 

    यह प्राचीन स्थली पाकिस्तान के लरकाना जिले में स्थित है. यह सुक्कुर शहर से 80 किलोमीटर दूर स्थित है. यह स्थल सिंधु नदी के किनारे स्थित है. मोहनजोदड़ो कराची से 510 किलोमीटर उत्तर पूर्व और सिंध में लरकाना से 28 किलोमीटर दूर स्थित है. यह शहर सिंधु नदी के दाएं तट पर स्थित है. 

    मोहनजोदड़ो को किसने और कब खोजा (Discovery of Mohanjodaro in Hindi)

    मोहनजोदड़ो की खुदाई  भारतीय पुरातत्व विभाग के पुरातत्वविद राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में साल 1920 में शुरू हुई थी. 1922 में उन्होंने इसे प्रागैतिहासिक शहर घोषित किया. इस तरह 1922 में इसकी खोज हुई.

    सबसे पहले उन्हें यहाँ भगवान् बुद्ध का स्तूप मिला था. उन्हें यहाँ इतिहास से जुड़े स्थल दफ़न होने का शक हुआ. फिर उन्होंने सिंधु के किनारे इस स्थल का खुदाई आरम्भ करवाया. 

    उनके बाद 1924 में काशीनाथ नारायण व 1925 में जॉन मार्शल (अंग्रेज अधिकारी) ने खुदाई का काम जारी रखा. इसके बाद भारत सरकार के कई लोगों ने 1965 तक खुदाई का काम जारी रखा. लेकिन, फिर पर्यावरण को हो रहे नुकसान को देखते हुए खुदाई को रोक दिया गया. यह इलाका विशाल टीलों से भरा हुआ है.

    1965 तक मोहनजोदड़ो का एक-तिहाई हिस्सा खोदा जा चुका था. लेकिन, इसके बाद काम कभी आगे नहीं बढ़ा. इस शहर के 125 से 200 हेक्टेयर में फैले होने का अनुमान है. 

    मोहनजोदड़ो का अर्थ (Meaning of Mohanjodaro in Hindi)

    इसका सही उच्चारण होता है- “मुअन-जो-दड़ो”. मुअन मतलब मृतक, जो मतलब का, और दड़ो मतलब टीला होता है. इस तरह मोहनजोदड़ो का अर्थ है- मृतकों का टीला. 

    एशिया का सबसे पुराना शहर (Grand Old City of Asia)

    मोहनजोदड़ो को एशिया का सबसे पुराना शहर माना जाता है. इसे कांसयुगीन सभ्यता, 3300 ईसा पूर्व से 1200 ईसा पूर्व, का शहर माना जाता है. यह शहर 3,300 ईसा पूर् और 1,300 ईसा पूर्व के बीच विकसित हुआ. 2,600 ईसा पूर्व से 1,900 ईसा पूर्व तक यह अपने परिपक्व चरण में था. 

    इस शहर को सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे विकसित शहर माना जाता हैं. आज से चार हजार वर्ष पूर्व, पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में 2600 BC के आस पास इसका निर्माण हुआ था. 

    मोहनजोदड़ो, प्राचीन मिस्र, मेसोपोटामिया और ग्रीस के साथ ही विकसित हुआ था. हड़प्पा को मोहनजोदड़ो का जुड़वाँ शहर भी कहा जाता है. कई बार इसे हड़पा सभ्यता का अंग भी माना जाता हैं. यहाँ की आबादी 35,000 होने का अनुमान है, जो वक्त के हिसाब से एक बड़ी आबादी कही जा सकती है.

    विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site)

    हड़प्पा सभ्यता को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. यह विभाजन मोहनजोदड़ो से मिले साक्ष्यों के आधार पर की गई है. 

    1. पूर्व-हड़प्पा काल 7000 से 3300 ईसा पूर्व; 
    2. प्रारंभिक हड़प्पा काल 3300 से 2600 ईसा पूर्व तक; और 
    3. परिपक्व हड़प्पा काल 2600 से 1900 ईसा पूर्व तक.

    इसे 1980 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल (Unesco World Heritage Site) के रूप में अंकित किया गया.

    प्राचीन काल का सबसे विकसित शहर (Developed City of Ancient Era)

    मोहनजोदड़ो एक सुनियोजित, परिपक्व व उन्नत शहर था. यहाँ की सड़के इतनी चौड़ी थी, जिससे दो बैलगाड़ी गुजर सकते थे. निर्माण के लिए आग में पकी ईंटों का इस्तेमाल किया जाता था. आज भी भारत में इसी अनुपात के या आकार के ईंटें मिलते है. 

    खुदाई में यहाँ कई जानकारियां सामने आई है. यहाँ की इमारते बड़ी बड़ी थी. शहर में  जल कुंड, मजबूत दिवार वाले घर, सुंदर चित्रकारी, मिट्टी व धातु के बर्तन, मुद्राएँ, मूर्तियाँ, ईट, तराशे हुए पत्थर और भी बहुत सी चीजें मिली है. 

    शहर में 700 के करीब कुँए पाए गए है. यह पहला शहर था, जो भूजल का इस्तेमाल करता था. जल-निकासी की व्यवस्था भी उन्नत थी. नाले पके हुए ईंटों से निर्मित होती थी. इनपर ढक्कन भी पाया गया है. मकान परिसर में शौचालय भी पाए गए हैं. 

    इस शहर के पूरबी भाग में अधिक कुँए, अधिक चौड़ी सड़के व विलासिता के सामान मिलते है. इससे पता चलता है कि पूरब में अमीर लोग रहते थे और शहर में अमीरी-गरीबी की खाई थी.

    निचले शहर में आवासीय क्षेत्र और शिल्प कार्यशालाएं थीं. यहाँ कुछ सार्वजनिक भवन भी थे, जैसे एक बड़ा स्नानघर और असेंबली हॉल. ऊपरी शहर में गोदामों सहित कई इमारतें थीं और जो माना जाता है कि वे प्रशासनिक भवन हैं. साथ ही कुछ निजी घर भी हैं.

    शहर के दरवाजें मुख्य सड़कों के तरफ नहीं खुलती थी, बल्कि अंदर के गलियों में खुलती थी. इसे सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेहतर माना जा सकता है. इसे ‘सिंध का बाग़’ उपनाम से सम्बोधित किया गया है.

    मोहनजोदड़ो में जीविका, कृषि व व्यापार (Livelihood of Mohanjodaro in Hindi)

    यह स्थल मुख्यतः एक शहर था. गेंहू, सरसों, कपास, जौ और चने की खेती के पक्के सबूत यहाँ खुदाई में मिले है. यहाँ रबी की खेती मुख्य तौर पर होती थी. गेंहू और जौ यहाँ की मुख्य फसल थी. यहाँ धान की खेती के सबूत भी पाए गए हैं. यहाँ खेती से जुड़े उपकरण भी पाए गए है. ये मुख्यतः पत्थर और राजस्थान से लाए गए ताम्बे से बने होते थे. 

    मोहनजो दड़ो में कपड़े रंगने का कारखाना भी पाया गया हैं. इससे पता चलता है कि कपड़े का उद्योग व व्यापार यहाँ के लोगों का एक पेशा था. लेकिन, यहाँ कपास की खेती का कोई सबूत नहीं मिलता हैं. 

    यहाँ से मातृदेवी की मूर्ति, ताम्बे ले मुहरें, सिक्के, ताम्बे और कांसे के बर्तन, चौपड़ की गोटियां, माप-तौल के पत्थर, दो पात वाली चक्की, खिलौने, मिटटी के बैलगाड़ी, कंघी, दिए, चॉक पर बने विशाल मृद-भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार व पत्थर के कई औजार पाए गए हैं. इससे यहाँ इन वस्तुओं के व्यापार होने का पता भी चलता है. यातायात व व्यापार के लिए भैंसागाड़ी व बैलगाड़ी का इस्तेमाल होता था. 

    नर्तकी की मूर्ति (Dancing girl statue)

    यह कांसे से बनी विश्व की सबसे पुराणी मूर्ति है, जो मोहनजो-दड़ो के खुदाई के दौरान मिली थी. यह 2500 ईसा पूर्व के आसपास की निर्मित है. यद्यपि यह मूर्ति नृत्य मुद्रा में नहीं है; फिर भी ‘नर्तकी’ कहा गया है, क्योंकि इसकी सजावट से लगता है कि इसका व्यवसाय नृत्य होगा.

    इसके बाएं हाथ में चूड़ियां और दाएं हाथ में कंगन और ताबीज हैं.  इसके बाएँ हाथ में संभवत: हड्डी या हाथी दांत से बनी अनेक चूडि़यां हैं. ऐसे चूड़ियां कम मात्रा में दाहिने हाथ में भी हैं. यह अपने कूल्हे पर दाहिने हाथ रखे हुए “त्रिभंग” नृत्य मुद्रा में खड़ी है.

    10 सेंटीमीटर या चार इंच के इस मूर्ति पर बारीकी से कारीगरी की गई है. इससे आज से चार साढ़े चार हजार साल पहले धातु-मूर्तिकला के विकसित होने का भी पता चलता है. ये यह भी बतलाता है कि मोहनजोदड़ो के लोग मनोरंजन के लिए नृत्य का भी सहारा लेते होंगे. यह ‘डांसिंग गर्ल’ (Dancing Girl in Hindi) के नाम से भी विख्यात हैं. 

    बनी-संवरी, कमर पर हाथ रखी लड़की की यह मूर्ति सिर्फ सिंधु सभ्यता घाटी के लोगों का धातुकर्म ही नहीं दर्शाती है, बल्कि उस वक़्त के कला, समाज के साथ ही महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है. यह मूर्ति फिलहाल दिल्ली स्थित राष्ट्रीय कला परिषद के संग्राहलय में रखा हुआ है. 

    मोहनजोदड़ो का स्नानागार (Great Bath of Mohanjodaro in Hindi)

    इसे विशाल कुंड या हौज भी कहा जाता है. यह काफी उन्नतत ढंग से बनाया गया था. इसे प्राचीन स्विमिंग पूल (स्विमिंग पूल) कहा जा सकता हैं. यह 11.88 मीटर लम्बा और 7 मीटर चौड़ा है. अधिकतम गहराई 2.43 मीटर है. इसका निर्माण भट्टी में पके ईंटों से किया गया है. पानी को जमीन में रिसने से रोकने के लिए ईंटों में जिप्सम व चारकोल के प्लास्टर के ऊपर डामर (बिटुमन) की परत भी चढ़ाई गई है.

    मोहनजोदड़ो के इस स्नानागार में एक छेद भी पाया गया है. इससे पता चलता है कि एक निश्चित समय के बाद जल को बाहर निकाल दिया जाता था. इसके उत्तरी व दक्षिणी हिस्से में उतरने व चढ़ने के लिए सीधी बना है. चारों तरफ बरामदा भी बना हुआ है.

    इसके चारों किनारे बरामदे के बाद कई कमरे भी पाए गए है, जो बतलाते है कि यह कपड़े बदलने के उपयोग में लाया जाता था. पश्चिमी किनारे में अनाज का कोठार भी मिला है. इसमें अन्न भंडार के कई चौकोर खंड पाए गए है. यहाँ एक गोल चबूतरा भी मिला है.; इस हिस्से में गेंहू व जौ का कुटाई होता था. जो यहाँ पाए गए गेंहू व जौ से अलग किए गए छिलके मिलने से ज्ञात होता है.

    लिपि व शिक्षा (Script and Education)

    मोहनजोदड़ों की लिपि चित्रात्मक या भाव-चित्रात्मक कहा जा सकता है. यह  दाएं से बाएं लिखी जाती है. इसे ब्रुस्टोपेन्डम नाम दिया गया है. लुप्त हो चुके भील व मीणा समुदाय के लिपि भी इसी क्रम में लिखे जाते थे. गोंड लिपि भी दाएं से बाएं लिखी जाती है. 

    मोहनजोदड़ो से लिपियों की कई मुहरे पाए गए है. लेकिन अभी तक इसे कोई भी पढ़ने में सफल नहीं हो सका है. यदि इसे पढ़ने में सफलता मिल जाए तो इस समय के इतिहास के बारे में काफी जानकारी मिल सकती है.

    यहाँ पाए गए लिपि से ये स्पष्ट हो गया है कि यहाँ के लोग पढ़ना-लिखना जानते थे. ये सरल गणित, जैसे जोड़, घटाव, गुना, भाग व माप में निपुण थे. इनके शहर नियोजन प्रणाली व ईंटों के निर्माण में माप के उपयोग से भी ये बात साबित होती है. 

    मोहनजोदड़ो का शहर ग्रिड-प्रणाली पर आधारित थी. शहर की सड़के एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी. साथ ही ईंटें भी चौकोर व एक ही माप के पाए गए है. मकान भी तीन मंजिलों तक पाए गए है, जिनमें गणितीय मापन का इस्तेमाल किया गया हैं.

    यहाँ कुछ लिखी हुई कागज के अवशेष भी पाए गए है. साथ ही, बहुत सी चित्रकारी भी मिली है. इससे ज्ञात होता है कि लोगों में कला के प्रति भी रुझान था.

    विशेषताएं (Features)

    • मोहनजोदड़े में अन्न का भंडारण करने के लिए विशाल अन्नागार (Grannery) पाए गए है.
    • यहाँ पाए गए औजारों में एक भी हथियार नहीं है. यह बुद्ध के अहिंसावादी व शांतिपूर्ण जीवन जीने के पद्धति के करीब है. इतिहासकार इस संबंध में अभी शोध कर रहे है.
    • यहाँ ताम्बे और कांसे के सुई पाए गए है, जो कशीदाकारी के संकेत देते है.
    • यहां हाथी-दांत भी पाए गए है. संभवतः इसका व्यापार होता था.
    • लोग कृत्रिम दांत भी लगवाते थे, जो उन्नत चिकित्सा व्यवस्था का परिचय देता है.
    • ढकी हुई नालियों का इतिहास सैंधव सभ्यता से पहले नहीं पाया गया है.
    • यहाँ पाए गए वस्तुओं का संग्रह, भारत, ब्रिटेन व पाकिस्तान के संग्रहालयों में है. इस तरह यहाँ का पुरातात्विक खोज कई देशों में फैला हुआ हैं.
    • यहाँ पत्थर व ताम्बे, दोनों के औजार पाए गए है. इसलिए इसके काल को ताम्र-पाषाणयुगीन (चालकोलिथिक) कहा गया हैं.
    • यहाँ के निवासी काफी मेहनती थे. मकान मंजिलों में बंटी थी. लोग खेलकूद के शौक़ीन थे व शतरंज के खेल का विकास हो चुका था.
    • इस प्राचीन नगर का उस वक्त का नाम अभी तक ज्ञात नहीं है. लेकिन, इसे आधुनिक समय में मृतकों का टीला कहा जाता हैं. 

    मोहनजोदड़ो की सभ्यता (Civilization of Mohanjodaro in Hindi)

    इतिहासकारों में यहाँ के सभ्यता पर विवाद हैं. कई लोग पुरोहित की मूर्ति को बौद्ध भिक्खु का मूर्ति मानते है. ऐसा इसके पहनावें के अनुसार कहा जाता है. इसके चीवर धारण करने का तरीका बिलकुल वहीं है जो बौद्ध भिक्खुओं की है. साथ ही यहाँ बौद्ध स्तूप के दिखने के बाद ही खुदाई की गई. इस आधार पर बौद्ध विद्वान् इसे बौद्ध या श्रमण सभ्यता का आरम्भ बताते है, जो बाद में बौद्ध काल तक पुरे दक्षिण एशिया में फ़ैल गई. ऐसा दावा किया जाता है.

    हालाँकि, हिन्दू धर्म मतावलम्बी इसे हिन्दू स्थल बताते है. ऐसा नंदी जैसा बैल व शिवलिंग जैसा आकृति मिलने के आधार पर किया जाता है. वहीं, बौद्ध शिवलिंग को स्तूप का छोटा रूप मानते है. हालाँकि, मोहनजोदड़ो बौद्धों के अधिक निकट जान पड़ता है, ऐसा यहाँ मिले स्तूप की वजह से है.

    कैसे नष्ट हुआ मोहनजोदड़ो (How Mohenjodaro was destroyed)

    पुरातत्वविद इसके विनाश के कारण प्राकृतिक आपदा और जलवायु परिवर्तन मानते है. सिंधु नदी में आई बाढ़ या  भूकंप जैसा आपदा इसका मुख्य कारण बताया जाता है. हालाँकि, विस्फोट के वजह से लगी आग भी इसके विनाश का एक कारण माना जाता है.

    कुछ खोजों के अनुसार, हमलावरों के आक्रमण से यहां के लोग भाग खड़े हुए और यह नगर एक खंडहर में बदल गई. संभवतः हमलावरों ने शहर में आग लगा दिया था.

    इसके नष्ट होने के कारण  नरसंहार, बाढ़ और बीमारी या महामारी भी माना जाता है. आधुनिक खोजों में सुखाड़ इसके विनाश का एक मुख्य कारण माना जा रहा है. 

    राखालदास बनर्जी का परिचय (Introduction to Rakhaldas Banerjee in Hindi)

    मोहनजोदड़ो के खोजकर्ता प्रसिद्ध इतिहासकार राखालदास बनर्जी एक बंगाली थे. इनका जन्म मुर्शिदाबाद में 12 अप्रैल 1885 को हुआ था. इनका मूल नाम राखलदास वंद्योपाध्याय है. लेकिन वे आर. डी. बैनर्जी के नाम से विख्यात हुए. 

    इनकी उच्च शिक्षा कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में हुई. यहां पढ़ाई के वक्त उनकी मुलाकात हरप्रसाद शास्त्री तथा बंगला लेखक श्री रामेंद्रसुंदर त्रिपाठी से हुई. फिर इनकी मुलाकात तत्कालीन बंगाल सर्किल के पुरातत्व अधीक्षक डॉ. ब्लॉख से हुई. इन मुलाकातों ने इनके जीवन पर गहरा असर डाला. 1907 ई. में BA (आनर्स) करने पर इनकी नियुक्ति प्रांतीय संग्रहालय, लखनऊ के सूचीपत्र बनाने के लिए हुई. इसी बीच उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण इतिहास संबंधी लेख भी लिखे. 

    साल 1910 में MA करने के बाद ये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में उत्खनन सहायक के पद पर नियुक्त हुए. फिर एक साल तक इन्होंने कलकत्ता स्थित भारतीय संग्राहलय में काम किया. 1917 में इन्हें पुरातत्व सर्वेक्षण के पश्चिमी मंडल के क्षेत्रीय कार्यालय पूना में अधीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया. इस पद पर रहते हुए इन्होंने 6 वर्षों तक महाराष्ट्र, गुजरात, सिंध, राजस्थान एवं मध्यप्रदेश की देशी रियासतों में पुरातत्व पर महत्वपूर्ण काम किए. ये विवरण ‘एनुअल रिपोर्ट्स ऑव द आर्क्योलॉजिकल सर्वे ऑव इंडिया’ (पुरातत्व सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट) में उपलब्ध है.

    मध्य प्रदेश के भूमरा के प्राचीन गुप्तकालीन मंदिर तथा मध्यकालीन हैहयकलचुरी-स्मारकों संबंधी शोध राखालदास द्वारा इसी कार्यकाल में किए गए महत्वपूर्ण कार्य है. 1922 में एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के सिलसिले में मोहनजोदड़ो की प्राचीन सभ्यता की खोज उनका सबसे बड़ा उपलब्धि माना जाता है. इसके अतिरिक्त उन्होंने पूना में पेशवाओं के राजप्राद का उत्खनन कार्य भी किया.

    फिर, 1924 में उनका स्थानांतरण पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्वी मंडल के कलकत्ता मुख्यालय में हो गया. यहाँ पदस्थापना के दो साल की अवधि में उन्होंने पूर्वी बंगाल के राजशाही जिले में पहाड़पुर के प्राचीन मंदिरों का उत्खनन करवाया. इन सभी खोजों से इतिहास के बारे में कई नए जानकारी सामने आए.

    कलकत्ता के बाद उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास के ‘मनींद्र नंदी प्राध्यापक’ पद पर नियुक्त किया गया. फिर वे अपने जीवन के अंतकाल, 1930 तक इसी पद पर रहे. उन्होंने इस दौरान सबसे अधिक लेखन कार्य किए. ‘हिस्ट्री ऑव ओरिसा’ उनकी अंतिम कृति है. यह सम्पूर्ण रूप से उनके मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ था.

    वैश्विक विरासत मोहनजोदड़ो की वर्तमान स्थिति (Current Status of World Heritage Mohenjodaro)

    साल 2022 में सिंधु नदी में आए बाढ़ ने मोहनजोदड़ो के पुरातात्विक स्थल को काफी नुकसान पहुंचाया है. बाढ़ का गाद का हल्का परत इस स्थल पर जमा हो गया है. हालाँकि, बाढ़ का पानी उतरने पर इसे हटा दिया गया. 

    इस स्थल को साल 1980 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी. पुरातत्वविदों का अनुमान है कि अगले दो दशक में यह ऐतिहासिक स्थल नष्ट हो जाएगा.ऐसे में इस स्थल की वैश्विक विरासत की सूचि से निकाले जाने का खतरा भी उत्पन्न हो गया है. 

    अब इसका बड़ा हिस्सा नष्ट होने के कगार पर हैं. दीवारें अपने आधार से खिसक रही हैं. बाढ़ में इन्हें काफी नुकसान हुआ है. भूमिगत जल में खारापन होने से भी ईंटों को नुकसान हो रहा है और ये कमजोर हो रहे है. 

    मोहनजोदड़ो पर आई मूवी (Movie on Mohenjodaro in Hindi)

    साल 2016 में आशुतोष गवारिकर के निर्देश में बनी फिल्म मोहनजोदड़ो को रिलीज़ किया गया. इसमें ऋतिक रोशन व पूजा हेगड़े लीड रोल में हैं. आशुतोष ऐतिहासिक पृस्ठभूमि पर फिल्म बनाने के लिए जाने जाते है. उन्होंने इससे पहले जोधा-अकबर जैसी फिल्म बनाकर सुर्खियां बटोरी थी. 

    मोहनजोदड़ो फिल्म से जुड़े लोग व कलाकार (Mohenjo Daro Movie Cast Details in Hindi )

    • कलाकार- ऋतिक रोशन, पूजा हेगड़े, कबीर बेदी
    • निर्माता- आशुतोष गवारीकर प्रोडक्शन
    • निर्देशक- आशुतोष गवारीकर
    • लेखक- आशुतोष गवारीकर
    • संगीत- ए आर रहमान
    • रिलीज़ डेट- 12 अगस्त 2016

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