यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का चयन यूनेस्को द्वारा स्थापित विश्व विरासत स्थल समिति द्वारा की जाती है. यूनेस्को से दुनिया के 193 देश जुड़े है. इन्हीं देशों के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, प्राकृतिक व सांस्कृतिक स्थलों को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया जाता है. यूनेस्को इन स्थलों के संरक्षण में मदद भी देती है.
क्या है यूनेस्को (Meaning of UNESCO in Hindi)
यूनेस्को का पूरा नाम, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन है. यह संयुक्त राष्ट्र का एक घटक निकाय है; जो शिक्षा, प्रकृति तथा समाज विज्ञान, संस्कृति तथा संचार के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देता है. इसका गठन 16 नवम्बर 1945 को हुआ था. इसके कार्यो का लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में वर्णित न्याय, कानून का राज, मानवाधिकार एवं मौलिक स्वतंत्रता हेतु वैश्विक सहमति बनाना है.
विश्व धरोहर स्थल क्या है? (What is World Heritage Site in Hindi?)
ये स्थल हमारे ग्रह की विविधता और इसके निवासियों का प्रतिनिधित्व करती हैं. ये हजारों सालों के मानव इतिहास के विकास को दिखाते हैं. कला, वास्तुकला, धर्म, उद्योग और बहुत से अन्य माध्यम से ये हमें बताते है कि हम कौन है और हमारा सर्वश्रेष्ठ क्या है?
वास्तव में, विश्व धरोहर स्थल, सार्वभौमिक महत्व वाले स्थल है, जो धरती का प्रतिनिधित्व करते है. इन्हें संजोने का दायित्व हम सभी का है. इनका नष्ट होना, मानवता के लिए अपूरणीय क्षति होगी.
हमारा देश भारत 14 नवंबर 1977 को इस सम्मेलन का हिस्सा बना. संख्या के हिसाब से भारत विश्व धरोहर स्थल के मामले में छठवें स्थान पर है. इटली (60), चीन (59), जर्मनी (54), फ़्रांस (53) व स्पेन (50) में भारत से अधिक संख्या में धरोहर स्थल है.
विश्व धरोहर स्थल दिवस (World Heritage Site Day in Hindi)
18 अप्रैल को पुरे दुनिया में विश्व विरासत या धरोहर दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व प्राकृतिक महत्व के स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता का एहसास करवाना है. ऐसे स्थलों के संरक्षण के लिए सन् 1972 में यूनेस्को के निगरानी में एक संधि लागू की गई. इसमें तीन श्रेणी के स्थलों के संरक्षण का प्रयास किया गया है.
वर्ष 1982 में इकोमार्क नामक संस्था ने ट्यूनिशिया में अंतर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल दिवस का आयोजन किया था. इसी में अगले साल यानी 1983 से विश्व विरासत दिवस मनाने का फैसला यूनेस्को द्वारा किया गया. फिर, 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. इससे पहले यह दिन विश्व स्मारक तथा पुरातत्व स्थल दिवस के रूप में मनाया जाता था.
विश्व धरोहर स्थल का वर्गीकरण (Classification of World Heritage Site in Hindi)
इन्हें तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है-
- सांस्कृतिक धरोहर स्थल: इसमें मुख्यतः मानव-निर्मित ऐतिहासिक पुरातत्व स्थल शामिल किए जाते है. जैसे, स्मारक, मूर्तियां, अद्वितीय पुरातत्व शैलियों वाली इमारतें, भूवैज्ञानिक तथा भौगोलिक संरचनाएं शामिल हैं. पुरे दुनिया में इस तरह के स्थलों की कुल संख्या 897 है.
- प्राकृतिक धरोहर स्थल: जहाँ प्रथम प्रकार के वर्गीकरण में कलात्मक श्रेष्ठता वाले स्थलों को जगह दी जाती है, वहीँ, इसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण व प्राकृतिक सौंदर्य के संरक्षण के लिए जरुरी स्थलों का वर्गीकरण किया जाता है. अब तक 218 स्थलों को इस श्रेणी में मान्यता मिल चुकी है.
- मिश्रित धरोहर स्थल: इस श्रेणी में उपर्युक्त दोनों प्रकार के स्थलों के गुणों वाले स्थानों को शामिल किया जाता है. भारत का कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान, मिश्रित धरोहर स्थल का उदाहरण है. दुनिया में 138 अन्य मिश्रित धरोहर स्थल है.
यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के लिए अर्हता (Eligibility for UNESCO world heritage site)
विश्व धरोहर स्थल यूनेस्को द्वारा प्रशासित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा कानूनी संरक्षण प्राप्त क्षेत्र है. विश्व धरोहर स्थलों को यूनेस्को द्वारा सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक या अन्य प्रकार के महत्व के कारण नामित किया गया है. इन साइटों को “दुनिया भर में सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को मानवता के लिए उत्कृष्ट मूल्य के रूप में माना जाता है” शामिल करने के आंकलन के लिए यह जरुरी है.
साल 2004 तक सिर्फ 6 अर्हता निर्धारित थे. 2005 में इसे बढ़ाकर 10 कर दिया गया. निर्धारित अर्हता के अनुसार, नामांकन की जा रही स्थल “उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य” की होनी चाहिए. साथ ही, दस मानदंडों में से कम से कम एक को पूरा करना चाहिए-
सांस्कृतिक (Cultural)
- मानव रचनात्मक प्रतिभा की उत्कृष्ट कृति का प्रतिनिधित्व
- मूल्यों के महत्वपूर्ण आदान-प्रदान को प्रदर्शित करने वाला
- सांस्कृतिक परंपरा या जीवित सभ्यता का अद्वितीय गवाह
- मानव इतिहास का महत्वपूर्ण चरण को दर्शाता हो.
- असाधारण मानवीय बस्ती, संस्कृति या निपटान
- उत्कृष्ट सार्वभौमिक महत्व के कला, साहित्य या घटना से जुड़ा हो.
प्राकृतिक (Natural)
- मनोरम प्राकृतिक व ऐतिहासिक स्थल
- पृथ्वी के इतिहास, विकास से जुड़ा हुआ होना
- पर्यावरण व जैविक प्रक्रिया से जीवन व इसके लिए जरुरी अवयव के विकास को दर्शाने वाला हो.
- विज्ञान व संरक्षण के दृष्टिकोण से संवेदनशील स्थल.
भारत के 43 विश्व धरोहर स्थल (43 world Heritage Sites of India in Hindi)
साल 2023 तक भारत के 43 स्थलों को वैश्विक विरासत या धरोहर स्थल को यूनेस्को ने अपनी सूचि में शामिल किया है. साल 2022 में चीन में यूनेस्को का विश्व धरोहर समिति का बैठक आयोजित हुआ था. इसमें तेलंगना स्तिथ रामप्पा मंदिर व गुजरात का हड़प्पा स्थल ‘धौलावीरा’ को सूचि में शामिल करने का निर्णय लिया गया. इस तरह भारत के विश्व धरोहर स्थलों की संख्या 38 से बढ़कर 40 हो गई.
वहीं साल 2023 में सऊदी अरब के रियाद में 15 से 25 सितम्बर तक विरासत समिति का बैठक आयोजित किया गया. इस बैठक में भारत के शांतिनिकेतन को विश्व विरासत स्थल में शामिल करने का निर्णय लिया गया. इसके बाद कर्नाटक के होयसला मंदिर श्रृंखला को भी विश्व धरोहर सूचि में शामिल किया गया.
26 जुलाई 2024 को नई दिल्ली में विश्व धरोहर समिति के चल रहे 46वें सत्र के दौरान असम के असम के चराइदेव मोईदाम को विश्व सांस्कृतिक धरोहर स्थल घोषित किया गया. इस तरह भारत के कुल धरोहर स्थलों की संख्या बढ़कर 43 हो गई है. इनमें 35 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक व एक मिश्रित स्थल शामिल है.
भारत में सांस्कृतिक धरोहर स्थल (35) (Cultural Heritage Sites of India in Hindi)
आगरा का किला (Fort of Agra) (1983)
यह ताजमहल के उत्तरपश्चिम लगभग 2.5 किमी दूर स्थित है. इसका प्रथम विवरण 1080 ई० में आता है, जब महमूद गजनवी ने इस पर कब्ज़ा किया था. इतिहासकार अबुल फजल के अनुसार, ईंट के इस किले को ‘बादलगढ़’ कहा जाता था. यह बर्बाद स्थिति में था. अकबर ने राजस्थान के बरौली क्षेत्र धौलपुर जिले से लाल बलुआ पत्थर मंगवाकर पुनर्निर्मित करवाया.
इसका बाहरी सतह, बलुआ पत्थर और भीतरी कोर, ईंटों से बनाया गया. करीब 4,000 बिल्डरों ने इसे 8 साल में बनाकर 1573 में पूरा किया. इसलिए, इसे मुगल स्मारक कहा जाता है. यहाँ शाहजहां द्वारा निर्मित जहाँगीर महल और खास महल भी मौजूद हैं. इसके अंदर कई अन्य इमारते; जैसे दीवान-ए-आम, दीवान-ए-ख़ास, मच्छी भवन, शीश महल, मुसम्मन बुर्ज, नगीना व मोती मस्जिद इत्यादि; स्थित है. इसे भारत का प्रथम यूनेस्को धरोहर स्थल कहा जाता है.
अजन्ता की गुफाएँ (Caves of Ajanta) (1983)
यह 29 बौद्ध रॉक-कट गुफाओं की एक शृंखला है. इनमें 25 विहार या निवास स्थल व 4 चैत्य या पूजास्थल के रूप में प्रयोग की जाती थी. महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास वाघोरा नदी किनारे सह्याद्रि पर्वतमाला (पश्चिमी घाट) में स्थित हैं. इनका निर्माण 200 ईस्वी पूर्व से 650 ईस्वी के मध्य किया गया था.
गुफा संख्या एक व दो अनोखी बौद्ध चित्रकारी के लिए विख्यात है. इनकी खोज आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ व उनके दल ने सन् 1819 में शिकार करने के दौरान गलती से की थी. शिकार के वक्त उन्हें कतारबद्ध गुफाएं नजर आई. गुफा संख्या 29 साल 1956 में खोजी गई. आज ये गुफाएं विश्व प्रसिद्ध है.
एलोरा की गुफाएं (Ellora Caves) (1983)
यह गुफा समूह महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिला मुख्यालय से 29 किलोमीटर दूर स्तिथ है. इसमें 100 के करीब गुफाएं है, जिनमें 34 जनता के लिए खुला है और यूनेस्को के विश्व धरोहर सूचि में शामिल है. इसे गुप्तोत्तर काल का सबसे बढ़िया कलाकृति माना जात्ता है. एलोरा का संबंध राष्ट्रकूटों की सांस्कृतिक स्थल के रूप में भी है. इन्हें ठोस पर्वत की चट्टानों को काटकर बनाया गया है.
गुफा संख्या 1 से 12 बौद्ध धर्म, 13 से 29 की 17 गुफाएं हिन्दू धर्म व शेष 5 30 से 34 जैन धर्म से संबंधित है. ये गुफाएं अजंता के तुलना में काफी नए है. इनका विकास छठे से दसवीं शताब्दी के मध्य किया गया है. यहाँ मठ व मंदिर स्थापित है. यह प्राचीन दक्कन के व्यापार मार्ग पर स्थित है. विभिन्न धर्मों से सम्बन्धित होने के कारण, इसे सहिष्णुता का प्रतिक माना जाता है.
ताज महल, उत्तर प्रदेश (Taj Mahal, Uttar Pradesh) (1983)
आगरा स्थित संगमरमर के पत्थरों से निर्मित ताजमहल मकबरे का निर्माण सम्राट शाहजहां द्वारा अपनी पत्नी मुमताज महल के याद में करवाया गया. मुमताज महल के नाम से ही इस स्मारक का नाम लिया गया है. इसे अमर प्रेम की निशानी भी माना जाता है. इसे बनाने में 1631 से 1648 तक 17 साल लगे. इसे दुनिया का आठवाँ अजूबा भी कहा जाता है. ताजमहल की बनावट, स्वरुप व सजावट उत्कृष्ट या अद्वितीय है.
इसे अनेक नक्काशी और कीमती पत्थरों से सजाया गया है. कई कीमती पत्थर अंग्रेज अधिकारीयों ने निकलवा लिए, इसलिए इसके कई जगहों पर छोटे-छोटे गड्ढे भी दिखते है. इसके चार कोनो पर 41.1 मीटर ऊँची एक-एक मीनारे स्तिथ है. इसके प्रवेश द्वारा पर सुन्दर पंक्तियों में पवित्र कुरान की आयते लिखी गई है. इसके प्रधान वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी थे.
मथुरा रिफाइनरी से निकले धुंए यहाँ अम्लीय वर्षा का कारण बनती है. यह वर्षा यमुना किनारे स्थित इस स्मारक के लिए खतरा है.
ताजमहल में कहाँ से कितने पत्थर आए
पत्थर | स्थान | संख्या |
अकीक | बगदाद | 540 |
फिरोजा | तिब्बत | 670 |
मूंगा | भारतीय | 143 |
नीलम | नामालूम | 74 |
जवाहरात | नामालूम | 42 |
रूबी | बड़कसान | 142 |
सूर्य मंदिर, कोणार्क (Sun Temple Konark) (1984)
ओड़िशा के पुरी जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी के समुद्र तट पर यह मंदिर स्थित है. इसका निर्माण तेरहवी सदी में 1250 ईस्वी में पूर्वी गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंह देव ने करवाया था. इसे भारत के 10 रूपये के नोट के पीछे भी दर्शाया गया था.
इसे 24 पहियों वाले रथ में 7 घोड़ो द्वारा खींचता हुआ दर्शाया गया है. मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों किनारे हाथियों को कुचलते दो शेरों की मूर्ति इसका आकर्षण बढ़ा देती है.
इसका निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट पत्थरों से हुआ है. कोणार्क में अर्क का अर्थ सूर्य व कोण का अर्थ किनारा होता है.
महाबलीपुरम में स्मारक समूह (Group of Monuments at Mahabalipuram) (1984)
तमिलनाडु के प्राचीन मामल्ल्पुरम शहर के आसपास के स्मारकों के समूह की स्थापना पल्लव राजवंश द्वारा 7वीं और 8वीं शताब्दी में की गई है. ये बंगाल के खाड़ी के कोरोमंडल तट पर स्तिथ है. यहाँ कई प्रकार के स्मारक व मंदिरों का निर्माण चट्टानों को तराशकर किया गया है. द्रविड वास्तुकला की दृष्टि से यह शहर अग्रणी स्थान रखता है
यहाँ रथ व रथ आकार के मंदिर, मंडप, गंगा के अवतरण, अर्जुन की तपस्या व शोर मंदिर जैसे नक्काशियां, और अन्य मंदिर जैसे पुरातात्विक अवशेष प्रसिद्ध है. यहाँ के स्मारकों में पाँच रथ, एकाश्म मंदिर, सात मंदिरों के अवशेष शामिल हैं, इसी कारण इस शहर को सप्त पैगोडा के रूप में भी जाना जाता था. साल 1984 में इसे यूनेस्को के द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया.
गोवा के चर्च और मठ (Churches and Monasteries of Goa) (1986)
यह पुर्तगालियों का पूर्व राजधानी (1961) रहा है. यहाँ के 7 चर्च और मठ काफी प्रसिद्ध है. खासकर बेसिलिका ऑफ बॉम जीसस (Basilica of Bom Jesus) एशिया में ईसाई धर्म प्रचार के शुरुआत का पाछाँ है. इसी चर्च में प्रसिद्ध ईसाई धर्मगुरु सेंट फ्राँसिस जेवियर की पवित्र कब्र भी है. एशिया में मैनुअलिन (Manueline), मैननर (Mannerist) और बारोक (Baroque) कला का प्रसार इन्हीं स्मारकों की देन है.
गोवा आरम्भ में एल्ला गांव था. 16वीं से 18वीं शताब्दी में इसे विकसित कर यहां गोवा बसाया गया. आज यह पुराना गोवा के नाम से जाना जाता है. यहाँ कई चर्च और मठ (Convent) बचे हुए है. ये है- सेंट कैथरीन (1510); असीसी में सेंट फ्रांसिस के चर्च और मठ (1517; 1521 और 1661 में पुनर्निर्माण); द चर्च ऑफ़ आवर लेडी ऑफ़ रोज़री (1549); से कैथेड्रल (1652); सेंट ऑगस्टाइन का चर्च (1602); बेसिलिका ऑफ बॉम जीसस (1605); और सेंट कैजेटन का चैपल (1661) इत्यादि.
1986 में इन्हे विश्व धरोहर स्थल के लिस्ट में शामिल किए जाने के बाद, लगातार संरक्षण कार्य किया जा रहा है.
खजुराहो समूह के स्मारक (Khajuraho Group of Monuments) (1986)
इस धरोहर स्थल में 23 हिन्दू और जैन मंदिर है. इनका निर्माण 10वीं और 11वीं शताब्दी में चंदेल राजवंश द्वारा करवाया गया. नागर शैली में बने; ये मंदिर समूह स्थापत्य कला और मूर्ति कला का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं. यहाँ घरेलू जीवन, संगीतकार, नर्तक और कामुक जोड़े जैसे कलाकृतियां उकेरी गई है.
यहाँ तीन भागों में विभाजित लगभग 20 मंदिर ही अब बचे हैं. यहाँ का कंदरिया महादेव का मंदिर अपने मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है. इस धरोहर स्थल का क्षेत्रफल करीब 6 वर्ग किलोमीटर है. कई बार यहाँ के मूर्तिकला को कामुकता से भरा भी कहा जाता है. यहाँ के मूर्तिकला, जीवन के ऊर्जा का संकेत है.
हम्पी में स्मारकों का समूह (Group of Monuments at Hampi) (1986)
भव्य धरोहर स्थल हम्पी, दक्षिण भारत के अंतिम महान हिंदू साम्राज्य विजयनगर की आखिरी राजधानी थी. 1565 में डेक्कन सल्तनत द्वारा यहाँ आक्रमण और 6 माह चली लूटपाट ने इसे बर्बाद कर दिया.
यह शहर लगभग 200 वर्षों तक एक समृद्ध बहु-सांस्कृतिक शहर था. यहाँ द्रविड़ियन के साथ-साथ इंडो-इस्लामिक शैली में बने कई स्मारक है.
यहां आज भी धार्मिक, धर्मनिरपेक्ष और रक्षात्मक निर्माण के अवशेष खड़े है. 2012 में स्थल का सीमा संसोधन किया गया. 1999 और 2006 के बीच, बढ़ते यातायात और नए निर्माणों के कारण इसे लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया था.
यह धरोहर स्थल खुले मैदानों, तुंगभद्रा नदी के किनारे और पहाड़ी इलाकों के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है. यहाँ करीब 1600 संरचनाएं आज भी खड़े है. इनमें किले, नदी किनारे का निर्माण, शाही और पवित्र परिसर, मंदिर, धर्मशाला, स्तंभित हॉल, मंडप, स्मारक संरचनाएं, प्रवेश द्वार, रक्षा चौकियां, अस्तबल, जल संरचनाएं आदि शामिल है.
यहां के मंदिरों को उनकी बड़ी विमाओं, पुष्प अलंकरण, स्पष्ट नक्काशी, विशाल खम्भों, भव्य मंडपों एवं मूर्ति कला तथा पारंपरिक चित्र निरुपण के लिये जाना जाता है. इनमें रामायण और महाभारत महाकाव्य के विषय शामिल किये गए हैं.
फतेहपुर सीकरी (Fatehpur Sikri) (1986)
उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में स्तिथ फतेहपुर सिकरी (City of Victory); साल 1556-1605 के बीच 10 सालों के लिए; मुगल सम्राट अशोक की राजधानी रही थी. इसे 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में निर्मित करवाया गया था. यहाँ जामा मस्जिद समेत कई स्थापत्य ख़ास है.
पट्टदकल समूह के स्मारक (Pattadakal Group of Monuments) (1987)
कर्नाटक के पट्टदकल में एक जैन तथा नौ हिंदू शिव मंदिरों की एक प्रभावशाली श्रृंखला है. इसे 7वीं और 8वीं शताब्दी के दौरान बादामी के चालुक्य राजवंश द्वारा बनवाया गया. ये मंदिर ‘बेसर शैली’ के लिए प्रसिद्ध हैं. इनमें विरुपाक्ष मंदिर सबसे अधिक लोकप्रिय है. इसे रानी लोकमहादेवी द्वारा अपने पति द्वारा काँची के पल्लवों पर विजय के बाद सन 740 में बनवाया गया था.
एलीफेंटा की गुफाएँ (Elephanta Caves) (1987)
स्थानीय लोग इस जगह को पुराने घारापुरी (द्वीप) के नाम से बुलाते है. स्थल मौर्यो की कोंकणी शाखा की द्वीपीय राजधानी थी. चट्टानों को काटकर बने इन गुफाओं का निर्माण 5वीं से 6वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य हुआ था. यहाँ कई पुरातात्विक महत्व के संरचनाएं विद्यमान है, जो ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के जीवन व सांस्कृतिक इतिहास का गवाही देते है.
एलीफेंटा द्वीप पर स्थित ये गुफाएं मुम्बई में गेटवे ऑफ इंडिया से 10 किमी. की दूरी पर अरब सागर में स्थित है. यह स्थान जवाहरलाल नेहरू पोर्ट के लगभग 2 किलोमीटर पश्चिम में है.
यहाँ के कुल 7 गुफाओं में 5 शैव पंथ व 2 बौद्ध धर्म से जुड़ा है. यहाँ शैव पंथ से जुडी शिल्प कला भी पाए गए है. बौद्ध स्तूप व बौद्ध धर्म से जुड़े कई संरचनाएं भी पाए गए है. अनेक बौद्ध संरचनाएं ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के है. बौद्ध गुफाओं में जल कुंड भी है. पुर्तग़ालिओं ने यहाँ के पत्थरों पर हाथी पाया, फिर इसका नाम एलीफैंटा गुफा रख दिया गया.
ग्रेट लिविंग चोल मंदिर (Great Living Chola Temple) (1987, 2004)
चोल साम्राज्य द्वारा निर्मित तीन मंदिर, तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर, गंगैकोण्डचोलीश्वरम का बृहदेश्वर मंदिर और दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर; विश्व धरोहर स्थल में शामिल है. सबसे पहले 1987 में तंजौर के मंदिर विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला था. फिर, 2004 में दो अन्य मंदिर भी इनमें शामिल किए गए. 11वीं और 12वीं सदी के ये मंदिर वास्तुकला, मूर्ति कला, पेंटिंग और कांस्य ढलाई की कला में सटीकता और पूर्णता की खूबी से लैस है.
राजेंद्र-I द्वारा 1035 में गंगैकोण्डचोलीश्वरम मंदिर बनवाया गया. दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर परिसर राजराजा-II द्वारा निर्मित है. यहाँ भगवान शिव की पत्थर की मूर्ति विराजमान है. चोलो के इन शानदार उपलब्धि वाले मंदिर के विमान दर्शनीय है. दोनों में क्रमशः 53 व 24 मीटर ऊँचे विमान है. तंजौर का मंदिर सन 1010 में राजराज प्रथम द्वारा निर्मित है.
सांची का बौद्ध स्मारक (Buddhist Monument of Sanchi)(1989)
यह सबसे पुराने मौजूद बौद्ध अभयारण्यों में से एक है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में धर्म के प्रसार में सहायक बना. सम्राट अशोक और मौर्यकाल में यह काफी महत्वपूर्ण स्थल था. स्तूप, महलों, मंदिरों और मठों से लैस यह स्थल, दूसरी और पहली शताब्दी ईसा पूर्व के हैं. बारहवीं शताब्दी तक इस बौद्ध केंद्र का महत्व कम हो गया.
भोपाल से लगभग 40 किमी दूर मैदान जैसा दिखने वाले पहाड़ी पर यह धरोहर स्थल स्थित है. इसका जीर्णोद्धार शुंग, कुषाण, क्षत्रप और गुप्त वंश द्वारा करवाया गया था. यहाँ आखिरी कार्य पांचवी शताब्दी में गुप्त वंश द्वारा करवाया गया.
हुमायूँ का मकबरा, दिल्ली (Humayun’s Tomb, Delhi) (1993)
मुगल बादशाह हुमायूं का मकबरा 1570 में बनाया गया था. यह भारतीय उपमहाद्वीप में उद्यान-मकबरे का पहला उदाहरण है, जो फारसी उद्यानों की विशेषता है. स्मारकीय डबल-गुंबददार मकबरा मुगल वास्तुकला में एक छलांग का प्रतिनिधित्व करता है और ताजमहल जैसे कई वास्तु का आधार बना. इस परिसर में उस समय के कई छोटे मकबरे है. 2016 में इसके सीमा में मामूली संशोधन हुआ किया गया.
कुतुब मीनार और इसके अन्य स्मारक, नई दिल्ली (Qutub Minar and its other monuments, New Delhi) (1993)
नई दिल्ली के मेहरौली में स्थित क़ुतुब मीनार परिसर का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 में शुरू करवाया और इल्तुतमिश के समय पूरा हुआ. इस परिसर में कई अन्य संरचनाएं भी है. जिसने भी यहाँ निर्माण की कोशिश की, उसकी कुछ समय बाद ही मृत्यु हो गई. इसलिए, बड़े आकार का दूसरा क़ुतुब मीनार अधूरा पड़ा हुआ है.
पूर्णता को प्राप्त क़ुतुब मीनार का उंचाईं 72.5 मीटर और आधार का व्यास क्रमशः 14.32 मीटर और 2.75 मीटर है. यहाँ अलाई दरवाजा, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (द्वितीय) का लौह स्तंभ, कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद आदि स्थित है. यहाँ के लौह स्तम्भ में जंग नहीं लगती है, इसलिए यह शोध का विषय है. यहाँ कई ऐतिहासिक लोगों के कब्र भी है.
क़ुतुब मीनार भारत का सबसे ऊँचा मीनार भी है. दुर्घटनाओं के बारम्बारता के कारण, मीनार पर चढ़ना वर्जित है. इसमें कुल 379 सीढियाँ है. यह परिसर इतिहास के छात्रों के लिए दर्शनीय व शिक्षापूर्ण है.
भारत के पर्वतीय रेलवे (Mountain Railways of India) (1999, 2005, 2008)
इस वैश्विक धरोहर स्थल की सूचि में भारत के तीन पर्वतीय रेलवे शामिल हैं. इन्हें ब्रिटिश भारत के समय अंग्रेजों द्वारा, 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में बनाया गया था. इसका मकसद ऊँचे पहाड़ी इलाकों तक सुगम यातायात सुनिश्चित करना था. पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित होने के कारण, कई पुलों और सुरंगों का निर्माण करवाया गया.
दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (1999): इसे पश्चिम बंगाल के नई जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग हिल स्टेशन के बीच 1879 और 1881 के दौरान बनाया गया है. इसकी लम्बाई 1978 किलोमीटर है. इस रेलवे का मुख्यालय कुर्सियांग शहर में है, जहाँ से बी श्रेणी की भाप इंजन वाली रेलगाड़ी का परिचालन भी होता है. इसके मार्ग में कई मनोरम प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलती है. इसे टॉय ट्रेन (Toy Train) भी कहा जाता है.
नीलगिरि माउंटेन रेलवे: इसे 2005 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला. 48 किलोमीटर लम्बे इस ट्रैक का निर्माण 1891 से 1908 तक हुआ था. तमिलनाडु स्थित यह रेलवे गेज सिंगल-ट्रैक वाला है.
कालका-शिमला रेलवे: ब्रिटिश राज के दौरान बने इस पर्वतीय रेलवे को 2008 में विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया. इसके निर्माण का उद्देश्य भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को शेष भारतीय रेल प्रणाली से जोड़ना था. इसे 1898 और 1903 के बीच हर्बर्ट सेप्टिमस हैरिंगटन के निर्देशन में बनाया गया था. यह 96.6 किलोमीटर लंबा, सिंगल ट्रैक वर्किंग रेलवे लिंक है.
महाबोधि मंदिर परिसर, बोधगया (Mahabodhi Temple Complex, Bodh Gaya) (2002)
यह मंदिर परिसर भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति स्थल पर बनाया गया है. तीसरी सदी ईसा पूर्व में इसे मगध सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था. फिर, पांचवी शताब्दी में गुप्त वंश द्वारा इसका जीर्णोद्धार करवाया गया. मंदिर मुख्यतः ईंटों से बनी है. माना जाता है कि इसका अधिकांश प्राचीन अवशेष नहीं बचा है.
मौर्यों के समय में यह बौद्ध भिक्खुओं का महत्वपूर्ण स्थल था. फिर, बौद्ध धर्म के पतन के साथ ही इसे भुला दिया गया. मंदिर परिसर में स्थित महाबोधि वृक्ष के नीचे ही भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था. यहीं पर सुजाता ने सिद्धार्थ को खीर खिलाई थी. महाबोधि मंदिर में पालकालीन काले रंग की बुद्ध प्रतिमा भी विराजमान है. भगवान बुद्ध के जीवन के चार महत्वपूर्ण स्थलों में, यह भी एक है.
इस प्रकार यह धरोहर स्थल, भारत के प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र स्मारक है.
भीमबेटका के शैल आवास, मध्य प्रदेश (Shell Dwellings of Bhimbetka, Madhya Pradesh) (2003)
यह शैल आश्रय स्थल विंध्याचल श्रृंखला में पांच क्लस्टरों में विभाजित है. यहां पाए गए 700 शैलगृह, मिजोलिथिक, नियोलिथिक व ऐतिहासिक काल के है. इनमें 400 के दीवारों पर चित्र भी उकेरे गए है. ये चित्रकारी शिकारी व संग्राहक आदिमानव का चित्रण है. इसे वर्ष 1975 में ‘विष्णु श्रीधर वाकणकर’ ने खोजै था; जो रायसेन ज़िले में अब्दुलागंज के समीप ‘रातापानी वन्यजीव अभयारण्य’ में स्थित है.
छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (Chhatrapati Shivaji Maharaj Terminus) (2004)
ग्रेटर बॉम्बे के इस महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन का नाम मार्च, 1996 में विटोरिया टर्मिनस से बदलकर छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर रखा गया. इस स्टेशन को ब्रिटिश वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवंस द्वारा डिजाइन किया गया है; जो विक्टोरिया युगीन गोथिक वास्तुकला के इतालवी मॉडल और भारत के पारम्परिक वास्तुकला के मिश्रण से बनाया गया है.
1878 से इसका निर्माण शुरू हुआ और 10 वर्षों बाद काम पूरा कर लिया गया. यह आज के समय में मुंबई की पहचान बन चुकी है. इसके कुछ सौ मीटर की दुरी पर मुंबई का ऐतिसाइक पोर्ट भी स्थित है. आरबीआई, शेयर बाजार, गेटवे ऑफ़ इंडिया व अन्य कई ऐतिहासिक व सरकारी स्थल इसके काफी नजदीक है. 2008 में हुए मुंबई हमले के दौरान आतंकयों ने इस धरोहर स्थल को भी निशाना बनाया था. इसके गुंबद, बुर्ज, नुकीले मेहराब आदि भारतीय वास्तुकला से प्रेरित है.
चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्त्व उद्यान (Champaner-Pavagadh Archaeological Park) (2004)
यहाँ विभिन्न काल के कई ऐतिहासिक व पुरातात्विक संरचनाएं है. इनका विकास प्रागैतिहासिक काल और 16वीं शताब्दी में गुजरात सल्तनत के दौरान हुआ. इस वक्त चम्पानेर गुजरात सल्तनत की राजधानी थी.
इसके अलावा यहाँ 8वीं से 14वीं सदी के बीच के महल, धार्मिक इमारतें, आवासीय परिसर, कृषि आदि भी मौजूद है. यहाँ कालिकामाता का मंदिर, पावागढ़ पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. साथ ही, जैन मंदिर और जामा मस्जिद इस धरोहर स्थल में स्थापित है. संरचनाओं पर कालक्रम का प्रभाव महसूस किया जा सकता है. विविधताओं से भरे इस धरोहर स्थल पर तीर्थयात्री भी आते रहते है.
लाल किला परिसर, दिल्ली (Red Fort Complex, Delhi) (2007)
मुगल सम्राट शाहजहाँ ने वर्ष 1648 में इसे बनवाया था. इसका निर्माण लाल बलुआ पत्थर के ईंटों से किया गया है. इस परिसर में इस्लाम शाह सूरी द्वारा वर्ष 1546 में निर्मित सलीमगढ़ किला भी स्थित है. मुगल वास्तुशिल्प का चरम नमूना इसे माना गया है. मुग़ल इसे महल कहते थे, बाद में इसे लाल किला कहा जाने लगा. आजाद भारत का पहला समारोह भी इसी परिसर में मनाया गया था.
जंतर-मंतर, जयपुर (Jantar Mantar, Jaipur) (2010)
यह मुग़ल काल में निर्मित एक वेधशाला है; जहाँ ग्रहों के अध्ययन के लिए 20 प्रकार के उपकरणों का सेट स्थापित किया गया था. इसे अठारवी सदी के शुरुआत में बनाया गया था.
राजस्थान के पर्वतीय किले (Hill Forts of Rajasthan) (2013)
इस धरोहर स्थल में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, सवाई माधोपुर, जैसलमेर, जयपुर और झालावाड़ में स्थित छह राजसी किले शामिल हैं. 8वीं से 18वीं शताब्दी के राजपुताना शासन से ये किले जुड़े है, जो उनके प्रकृति प्रेम को भी दर्शाते है.
ये सभी किले शहरी किले है, जो सल्तनत, मुगल व फिर मराठा वास्तुशिल्प से प्रभावित है. इनका निर्माण अलग-अलग इलाकों में हुआ है. जैसे रणथम्भौर जंगल तो जैसलमेर रेगिस्तान में स्थित है. राजस्थान के राजपुताना का कला और संस्कृति के दृष्टि से, ये किले शानदार है.
रानी की वाव, पाटन (Rani Ki Vav, Patan) (2014)
रानी-की-वाव बेहतरीन जल-संरक्षण से जुड़ा बावड़ी के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है. इसमें काफी गहराई के कुँए है. तल में उतरने के लिए कई स्तरों के सीढियाँ बनी है. इसका निर्माण 1050 में चालुक्य वंश के सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम की स्मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने करवाया है. भारत में जलसंरक्षण के लिए ऐसे कुँए 3,000 ई. पू. से बनाया जाता रहा है.
सात स्तरीय यह बावड़ी पत्थर की नक्काशी और मूर्तियों से सजा है. इसमें धार्मिक सहित धर्मनिरपेक्ष विषयों और साहित्यिक कार्यों का चित्रण है. इसमें मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का उपयोग किया गया है. 13वीं शताब्दी में सरस्वती नदी के मार्ग में परिवर्तन के बाद यह परित्यक्त अवस्था में गाद से ढका था. फिर, इसे संरक्षित किया गया और 2014 में यूनेस्कों ने इसे विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया.
नालंदा महाविहार का पुरातात्त्विक स्थल (Archaeological site of Nalanda Mahavihara) (2016)
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मठ और कई स्तूप यहां मिलते है. यह पांचवी ईसा पूर्व तक एक महत्वपूर्ण बौद्धों द्वारा संचालित एक महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र था. 13वीं में इसे नष्ट किए जाने तक यह भारत के पूर्वी हिस्से और बंगाल के लिए एक महत्वपूर्ण शिक्षा स्थली था. यहाँ विदेशों से भी कई छात्र पढने आए थे. इसके नष्ट होने के साथ ही मगध से बौद्ध धर्म का सम्पूर्ण नाश हो गया.
यहाँ अब भी स्तूप, चैत्य, विहार (आवासीय तथा शैक्षिक भवन) और पत्थर व धातु पर मौजूद महत्त्वपूर्ण कलाकृतियाँ शामिल हैं. यह भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक है.
ली कार्बूजियर का वास्तुकला कार्य, चंडीगढ़ (Architectural work of Le Corbusier, Chandigarh) (2016)
यह कई देशों में फैला यूनेस्को का धरोहर स्थल है. 2016 में यूनेस्को ने प्रसिद्ध स्विस-फ्रेंच आर्किटेक्ट ली कार्बूजियर (Le Corbusier) के 7 देशों में फैले 17 स्थापत्य को संरक्षित करने का फैसला किया. नए प्रकार के इस स्थापत्य शैली के निर्माण भारत, अर्जेंटीना, बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड और जापान में फैले है.
इसका मकसद बढ़ती आबादी और शहरों में सबको आवास उपलब्ध करवाना था. इसलिए नए अपार्टमेंट और मॉड्यूलर डिजाइन आधुनिकतावादी ‘ली’ द्वारा बनाया गया. भारत में ली द्वारा चंडीगढ़ में बना कैपिटॉल कॉम्पलेक्स विश्व धरोहर स्थल में शामिल है.
ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद (Historical City Ahmedabad) (2017)
अहमदाबाद शहर को 1411 में सुलतान अहमद शाह ने बसाया था. यह लम्बे वक्त तक गुजरात सल्तनत की राजधानी भी रही. इस वक्त यह स्थल धार्मिक सहिष्णुता का केंद्र भी था; चूँकि यहां हिंदू धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, ईसाई धर्म, पारसी धर्म, यहूदी धर्म के लोग एक साथ रहते थे. साबरमती नदी इस शहर के किनारे से बहती है. यहाँ के स्थापत्य विरासत में भद्र का दुर्ग, पुराने शहरों की दीवारें और द्वार तथा कई मस्जिदों एवं मकबरों के अलावा हिंदू व जैन मंदिर शामिल हैं.
विक्टोरियन गोथिक एवं आर्ट डेको इंसेबल्स, मुंबई (Victorian Gothic and Art Deco Ensembles, Mumbai) (2018)
बम्बई हाई कोर्ट विक्टोरियन गोथिक संरचना का उदाहरण है. वहीं, मरीन ड्राइव पर स्थित आर्ट डेको भवन में सिनेमा घर स्थित है. इन स्थापत्यों में भारतीय मौसम के जरूरत के हिसाब से स्थानीय वास्तु अपनाया गया है. जैसे, बारामदा और बालकनी. इनका निर्माण क्रमशः 19वीं और 20वीं सदी में हुआ है. उत्कृष्ट वास्तुशिल्प के कारण इन्हें विश्व धरोहर स्थल में सम्मिलित किया गया है.
जयपुर शहर, राजस्थान (Jaipur City, Rajasthan) (2019)
राजस्थान की राजधानी जयपुर नगर को चहारदिवारी वाला नगर, गुलाबी शहर या पिंक सिटी (Pink City) भी कहा जाता है. इसकी स्थापना 1727 में सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा की गई थी. अनेक खूबियों से लैस यह शहर वास्तव में भी धरोहर स्थल है; जो आधुनिक नगर-नियोजन के लिए एक नज़ीर है.
इसे प्राचीन भारतीय व आधुनिक पश्चिमी वास्तुकला के आधार पर, ग्रिड पद्धति पर बसाया गया है. ग्रिड प्रणाली मोहनजोदड़ो की भी विशेषता है. यहाँ की सड़के चौड़ी और समकोण पर मिलती है. नगर-नियोजन में मुगल शैली को भी अपनाया गया था.
यहाँ उपनिवेशकाल में भी शिल्पकार और कलाकारों का जमावड़ा देखने को मिला. इससे यहाँ व्यापार में काफी उन्नति हुई. यह धरोहर स्थल राजपुताना और भारतीय स्थापत्य के विकास का गवाही देता है.
रामप्पा मंदिर, तेलंगाना (Ramappa Temple, Telangana) (2021)
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 1213 ईस्वी में काकतीय राजवंश ने करवाया था. यह वारंगल से 66 कि.मी, मुलुगुसे 15 कि.मी, हैदराबाद से 209 कि.मी की दूरी पर स्थित है. यह मंदिर मुलुगु जिले के वेंकटपुर मंडल के छोटे से पालमपेट गांव की घाटी में स्थित है. मंदिर परिसर के शिलापट्ट के अनुसार, काकतीय वंश के सेनापति रेचारला रुद्र देव ने इसका निर्माण करवाया था.
यह ग्रेनाइट और डोलराइट पत्थर की नक्काशी और मूर्तियों से लैस है. इसे पर्यावरण के साथ सामंजस्य का ध्यान रखते हुए बनाया गया है. 6 फुट ऊंचे तारे के आकार के चबूतरे पर मंदिर स्थापित है. यहां भगवान रामलिंगेश्वर की पूजा की जाती है. मंदिर की मुख्य संरचना का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से हुआ है. लेकिन बाहर के स्तंभों को काले बेसाल्ट के पत्थरों से बनाया गया है.
मंदिर पर पौराणिक जानवरों और महिला नर्तकियों या संगीतकारों की आकृतियों को उकेरा गया है. शायद यह देवदासी परम्परा से जुड़ा है. यह “काकतीय कला की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं, जो अपनी महीन नक्काशी, कामुक मुद्राओं और लम्बे शरीर और सिर के लिए विख्यात हैं”. इस धरोहर स्थल को हाल ही में मान्यता मिली है. इसलिए प्रतियोगी परीक्षा के लिए जरुरी है.
धौलावीरा, गुजरात (Dholavira, Gujarat) (2021)
कांसयुगीन हड़प्पा (सिंधु घाटी) सभ्यता का यह स्थल गुजरात के कच्छ जिले भचाऊ तालुका में स्थित है. इस धरोहर स्थल को 1968 में खोजा गया था. इसी सभ्यता से जुड़ा मोहनजोदड़ो को भी विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है.
धौलावीरा शहर दीवारों से घिरा था. यहाँ जलप्रबंधन, कब्र व मेसोपोटामिया से व्यापर के साक्ष्य मिले है. अनुमानतः, 2600 ईसा पूर्व में यहां भूकंप आया था.
शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल (Shantiniketan, West Bengal), 2023
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में स्थित शांतिनिकेतन भारत के नोबेल पुरस्कार विजेता, साहित्यकार और कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) से जुड़ा है. 1863 में 7 एकड़ जमीन पर रवीन्द्रनाथ के पिता महर्षि महर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुर ने एक आश्रम का स्थापना किया था. साल 1901 में रवीन्द्रनाथ ने यहाँ शांतिनिकेतन नाम से एक विश्वविद्यालय स्थापना किया और 5 छात्रों के साथ शिक्षण आरम्भ कर दिया.
साल 1921 में शांतिनिकेतन को राष्ट्रिय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. बताते चले कि यहां प्राचीन तरीके से शिक्षण कार्य चलाया जाता है. शांतिनिकेतन को ‘विश्व धरोहर सूचि‘ में शामिल करने का निर्णय सऊदी अरब में चल रहे विश्व धरोहर समिति के 45वें सम्मेलन के दौरान लिया गया है. इसका जानकारी यूनेस्को ने सोशल मीडिया ‘एक्स’ (पहले ‘ट्विटर’) पर 17 सितम्बर की संध्या को दिया है.
कर्नाटक के होयसला मंदिर (The Hoysala Temples Of Karnataka), 2023
यूनेस्कों द्वारा कर्नाटक होयसला मंदिर को विश्व विरासत स्थल सूचि में शामिल किया गया है. इसके साथ ही भारत में विरासत स्थलों की कुल संख्या बढ़कर 42 हो गई. 12वीं और 13वीं शताब्दी के होयसला मंदिर कर्नाटक के बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा में स्थित हैं.18 सितंबर, 2023 को यूनेस्को ने इन्हें विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है. कर्नाटक राज्य में स्थित यह चौथा धरोहर स्थल है.
ये मंदिर होयसला राजवंश की अनोखी मंदिर वास्तुकला और कलात्मकता का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व करते हैं. इन मंदिरों में हिंदू धर्म से संबंधित देवी-देवताओं के चित्र और मूर्तियां उकेरी गई हैं. इनमें तीन मंदिरों की श्रृंखला शामिल है, ये है:
- बेलूर में चेन्नाकेशव मंदिर
- हलेबिदु में होयसलेश्वर मंदिर
- सोमनाथपुर का केशव मंदिर
होयसल के मंदिर समूह’ 15 अप्रैल, 2014 से यूनेस्कों के अस्थायी सूची में था. इनका निर्माण होयसल राजा विष्णुवर्धन ने 1116 ई. में चोलों पर विजय प्राप्ति के उपलक्ष में करवाया था. ये हाइब्रिड या वेसर शैले में निर्मित है. नरम पत्थर सोपस्टोन से निर्मित इन मंदिरों में बारीक कारीगरी की गई है. इन मंदिरों के मंडप, विमान और मूर्ति पहले से ही भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित है.
असम के चराइदेव मोईदाम (Assam’s Charaideo Moidams )
यह स्थल ऊपरी असम के चराइदेव जिले में स्थित है. चराइदेव मोईदाम या मैदाम पूर्वोत्तर में स्थित एकमात्र सांस्कृतिक धरोहर स्थल है, जो ताई अहोम राजवंश के टीलानुमा दफन परंपरा का समाधिस्थल है.
असम में ताई अहोम समुदाय की उत्तर मध्यकालीन (13वीं-19वीं शताब्दी) द्वारा राजवंश के सदस्यों को उनके निजी सामग्री के साथ इन्हीं टीलों में दफनाया जाता था. यह कुछ हद तक मिस्र के पिरामिडीय कब्र और चीनी राजवंश के शाही दफ़न प्रणाली से मिलता-जुलता है.
हालांकि, 18वीं शताब्दी के बाद अहोम शासकों ने दाह संस्कार की हिंदू पद्धति को अपना लिया और यहां दाह संस्कार की हड्डियों एवं राख को दफनाया जाने लगा.
अब तक 386 मोईदाम में से अहोमों के टीले की दफन परंपरा के चराईदेव में 90 शाही समाधि सुव्यवस्थित ढंग से संरक्षित, सबसे अधिक प्रतिनिधित्त्व वाले और पूर्ण उदाहरण हैं. आरम्भ में ये बांस और लकड़ी के इस्तेमाल से बनाए जाते थे. बाद में इन्हें बनाने के लिए पकी हुईं ईंटों का भी इस्तेमाल किया गया.
बताते चले की चराइदेव अहोम साम्राज्य का प्रमुख नगर था, जिसके स्थापना 13वीं सदी में छोलुंग सुकफा (Chaolung Sukapha) ने की थी. इस राजवंश का शासन वर्ष 1826 की यांडाबू की संधि (Treaty of Yandaboo) होने रहा था.
भारत के प्राकृतिक धरोहर स्थल (7) (Natural World Heritage Sites of India)
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (Kaziranga National Park) (1985)
असम राज्य के ब्रह्मपुत्र नदी के मैदान में स्थित इस उद्यान का 42,996 हेक्टेयर इलाका प्राकृतिक धरोहर स्थल के रूप में संरक्षित है. यह मैदान बाढ़ प्रभावित है. लिहाजा एकसिंगी गैंडा के लिए अनुकूल प्राकृतिक आवास उपलब्ध करवाता है. यहाँ दुनिया में सबसे अधिक संख्या में एकसिंगी गैंडा (राइनोसेरस) निवास करते है.
गैंडो के अलावा यहाँ बाघ, हाथी, तेंदुआ, भालू तथा हजारों पक्षियों सहित कई अन्य स्तनधारियों का निवास है. यहाँ विभिन्न प्रकार के स्थानीय वनस्पति भी उगते है.
मानस वन्यजीव अभयारण्य (Manas Wildlife Sanctuary) (1985)
यह असम राज्य के हिमालय की तलहटी में हल्की ढलान व मानस नदी के साथ फैला हुआ है. यह धरोहर स्थल, एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है. यह कई प्रकार की लुप्तप्राय प्रजातियों जैसे- बाघ, एक सींग वाला राइनो, स्विप डियर दलदली हिरण (Swamp Deer), पिग्मी हॉग (Pygmy Hog), हाथी (Elephant)और बंगाल फ्लोरिकन (Bengal Florican) को अनुकूल वास्-स्थान उपलब्ध करवाता है. 283,700 हेक्टेयर के मानस टाइगर रिज़र्व के अंदर 39,100 हेक्टेयर इलाके में यह धरोहर स्थल अवस्थित है.
यहाँ के जलोढ़ मैदान के उष्णकटिबंधीय जलवायु में घास के मैदान और सदाबहार वनों की श्रृंखला विकसित है. यही वजह है कि यहाँ कई प्रजातियों के जीव आज भी जीवित है. इस स्थल की सुंदरता और जैव-विविधता के कारण ही इसे यूनेस्को द्वारा धरोहर स्थल घोषित किया गया है.
साल 1992 और 2011 के बीच यहाँ अवैध शिकार और बोडो मिलिशिया की गतिविधि काफी बढ़ गई. इसलिए इस स्थल को लुप्तप्राय जीवों की शरणस्थली के रूप में सूचीबद्ध किया गया. मानस नदी के द्वारा रास्ता बदलने और बाढ़ लाने के कारण यहाँ नए वनस्पति पनपते रहते है.
केवलादेव राष्ट्रिय पार्क, राजस्थान (Keoladeo National Park, Rajasthan) (1985)
इसे केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान (पहले भरतपुर पक्षी अभयारण्य) भी कहा जाता है. यह राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित नमभूमि (wetland) अभ्यारण्य है. यह स्थल पहले बतखों का शिकार-स्थल था. 1971 में यहाँ शिकार को प्रतिबंधित कर इसे अभ्यारण्य व 10 मार्च 1982 को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया. फिर, यूनेस्को ने 1985 में इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्रदान किया.
यहाँ अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, चीन और साइबेरिया से बड़ी संख्या में जलीय पक्षी शीत ऋतू में प्रवास करते है. अब तक यहाँ 375 पक्षी के प्रजाति व अन्य कई प्रकार के जीवों का निवास रिकॉर्ड किया गया है.
यहाँ पलैरेटिक प्रवासी जलपक्षी (Palaearctic Migratory Waterfow), साइबेरियन क्रेन (Siberian Crane), ग्रेटर स्पॉटेड ईगल (Greater Spotted Eagle) और इंपीरियल ईगल (Imperial Eagle) जैसे संकटकालीन पक्षी प्रवास करते है.
सुंदरबन नेशनल पार्क (Sundarban National Park) (1987)
राष्ट्रीय उद्यान सुंदरबन, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टा में स्थित है. यह दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे समृद्ध 78 प्रकार के मैंग्रोव प्रजातियों का जंगल है. यह एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है.
यहां बड़ी संख्या में बंगाल टाइगर बसते है. साथ ही, इरावदी और गंगा डॉल्फ़िन, पक्षियों और समुद्री कछुओं की कई प्रजातियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण निवास स्थान है. बांग्लादेश के हिस्से वाले सुंदरवन को एक अलग विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (Nanda Devi and Valley of Flowers National Park) (1988, 2005)
पश्चिम हिमालय के इस धरोहर स्थल के दो भाग है. एक फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (चित्रित) और दूसरा नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान है. नंदा देवी (7,817 मीटर (25,646 फीट) भारत का दूसरा सबसे ऊंचा पर्वत चोटी है. यहाँ अल्पाइन घास व अधिक ऊंचाई वाले कई पहाड़ी पौधों की प्रजातियों के अलावा, संकटग्रस्त एशियाई काले भालू, हिम तेंदुए, भूरे भालू और भारल का घर है. यहाँ हिमालयन मस्क डियर (Himalayan Musk Deer) भी पाए जाते है.
नंदा देवी नेशनल पार्क को 1988 में विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया. फूलों की घाटी एनपी को 2005 में इसके साथ जोड़ा गया था. फूलो की घाटी में अल्पाइन व कई अन्य प्रकार के फूल खिलते है.
पश्चिमी घाट (Western Ghats in Hindi) (2012)
यह प्राकृतिक धरोहर स्थल भारत के पश्चिमी समुद्र तट के समानांतर, महाराष्ट्र, गोवा, केरल और तमिलनाडु में फैला हुआ है. वनाच्छादित यह धरोहर स्थल 1600 किलोमीटर लम्बी है; जो जैव विविधता हॉटस्पॉट है. यहाँ कई लुप्तप्राय प्रजातियां, जैसे कि बंगाल टाइगर, ढोल शेर-पूंछ मकाक, नीलगिरी तहर और नीलगिरी लंगूर जैसे 325 प्रजातियों का निवास है. गोंडवाना से भारत का टूटने का सबूत भी यहाँ बिखरा पड़ा है.
यह स्थल पालघाट दर्रे के पास 30 किमी. के क्षेत्र में 11 डिग्री उत्तर में केवल एक दो हिस्सों में बनता है. दक्षिण-पश्चिम मॉनसूनी हवा इससे टकराकर इलाके के मौसम में बदलाव लाती है.
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र (Great Himalayan National Park Conservation Area) (2014)
6000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित अल्पाइन व विभिन्न प्रजातियों व 2000 मीटर के नीचे, नदी किनारे के दुर्लभ व संकटापन्न प्रजातियों से जुड़ा यह स्थल; हिमाचल के हिमालय पहाड़ी के पश्चिमी भाग में स्थित है. यहाँ बर्फीली ग्लेशियर और इनसे निकली अनेक नदियां भी है.
भारत के मिश्रित धरोहर स्थल (1) (Mixed Heritage Site of India)
कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान (Kangchenjunga National Park) (2016)
सिक्किम में स्थित माउंट कंचनजंगा दुनिया की तीसरी सबसे ऊँची पर्वत चोटी है. इसी के नाम पर इसके परिवेश में स्थित नेशनल पार्क का नामकरण किया गया है. यह भारत के एकमात्र मिश्रित धरोहर स्थल है, जिसे यूनेस्को का संरक्षण प्राप्त है.
यह पार्क सिक्किम के क्षेत्रफल के 25% हिस्से में फैला है. यह कई स्थानीय संकटग्रस्त पौधों व जीवों के लिए अनुकूल आवास उपलब्ध करवाता है.
तिबत में रहने वाले बौद्ध इस पर्वत चोटी को श्रद्धा के दृष्टि से देखते है. साथ ही, यहाँ का स्थानीय जनजाति सबसे अलग संस्कृति व जीवन-शैली के लिए जानी जाती है.
The World Heritage sites are designated as having “outstanding universal value” under the Convention Concerning the Protection of the World Cultural and Natural Heritage. This document was adopted by UNESCO in 1972 and formally took effect in 1975 after having been ratified by 20 countries. It provides a framework for international cooperation in preserving and protecting cultural treasures and natural areas throughout the world.
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