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राज्यपाल और उनके अधिकार

    भारत एक राज्यों का संघ है. अर्थात हमारे देश को प्रशासनिक सुविधा के दृष्टि से केंद्र व राज्य सरकारों में विभाजित किया गया है. हमारे देश के केंद्र में राष्ट्रपति को सर्वोच्च दर्जा प्राप्त है, कुछ उसी तरह का दर्जा राज्य में राज्यपाल की है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 से 162 तक राज्यपाल से सीधे संबंधित है. अन्य कई अनुच्छेद, अप्रत्यक्ष रूप से उनसे संबंधित है, जैसे 163 व 164. अनुच्छेद 152 से 237 तक राज्य से संबंधित है. इसलिए ये अप्रत्यक्ष रूप से राज्यपाल से भी जुड़े है.

    राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक होते है, जो देश के एकता और अखंडता के प्रतिक माने जाते है. राज्यपाल भी उसी तरह राज्य का कार्यकारी प्रधान होते है और कई मामलों में उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त होते है. हाल के दिनों में, कई राज्यों में अचानक सत्ता-परिवर्तन देखने को मिला है. इसलिए भी, किसी राज्य में राज्यपाल की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है.

    इस लेख में, हम राज्य सरकार के राज्यपाल के नियुक्ति, शक्तियों और कर्तव्यों पर अनुच्छेद सहित चर्चा करेंगे.

    राज्यपाल की नियुक्ति (Appointment of Governor in Hindi)

    अनुच्छेद 153 में वर्णित है कि प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा; और एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिए राज्यपाल नियुक्त किया जा सकेगा. अनुच्छेद 155 के अनुसार, राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा करेगा.

    राज्यपाल के पद पर नियुक्त होने के लिए अर्हता का वर्णन अनुच्छेद 157 व 158 में किया गया है. इसके अनुसार, 35 साल का आयु का भारतीय नागरिक राज्यपाल के पद पर नियुक्त हो सकेगा. अनुच्छेद 158 के अनुसार, ऐसा व्यक्ति न तो संसद के किसी सदन का सदस्य होना चाहिए और न किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य. साथ ही, वह किसी भी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए.

    अनुच्छेद 156 में राज्यपाल की पदावधि राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त या अधिकतम 5 साल निर्धारित किया गया है. अनुच्छेद 159 में राज्यपाल द्वारा पद ग्रहण से पूर्व लिए जाने वाले शपथ का वर्णन है. राज्यपाल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उस न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष शपथ लेते है.

    राज्यपाल की संवैधानिक स्तिथि (Constitutional Position of the Governor in Hindi)

    राज्य कार्यपालिका में राज्य के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, मंत्री परिषद् और महाधिवक्ता शामिल होते हैं. अनुच्छेद 154 के अनुसार, राज्यपाल, राज्य का कार्यकारी प्रमुख होता है; तथा राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होती है. राज्यपाल केंद्र और राज्य के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है. वे राज्यों के कामकाज की रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजते रहते हैं.

    अनुच्छेद 151(2) के अनुसार, अनुच्छेद 214 के अनुसार, प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय स्थापित है. राज्यपाल की पद खाली होने की स्तिथि में, राज्य का मुख्य न्यायाधीश, राज्यपाल का पद धारण करते है.

    आकस्मिकता के स्तिथि में, राज्यपाल विवेकानुसार निर्णय ले सकता है (अनुच्छेद-160). राज्यपाल को क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण की शक्ति भी प्राप्त है. (अनुच्छेद-161)

    राज्यपाल को परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद का प्रावधान अनुच्छेद 163 में है. इसके लिए, मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों के नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल को अनुच्छेद 164 में दिया गया है. यह विधि के अनुसार किया जाता है.

    मंत्रिपरिषद द्वारा पारित किसी विधेयक या सलाह के सम्बन्ध में निर्णय लेने का अधिकार राज्यपाल को अनुच्छेद 200 में दिया गया है. इसके अनुसार, वे विधेयक को मंजूर कर सकते है, रोक सकते है या राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिए भेज सकते है. अनुच्छेद 213 के अनुसार, राज्यपाल विशेष परिस्तिथियों में अध्यादेश भी जारी कर सकते है.

    Sarojini Naidu Governor
    श्रीमती सरोजिनी नायडू भारत की प्रथम महिला राज्यपाल है.

    राज्यपाल की विशेष अभिभाषण (Governor’s Special Address)

    अनुच्छेद 176 में राज्यपाल का विशेष अभिभाषण का वर्णन है. इसके दो उपबंध है-

    (1) राज्यपाल, विधान सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरम्भ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और विधान-मण्डल को उसके आह्वाहन का कारण बताएगा.

    (2) सदन या प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए उपबन्ध किया जाएगा.

    राज्य में राज्यपाल की भूमिका व शक्तियां (Role and Powers of the Governor in the State)

    अनुच्छेद 153 से 162 तक भारत संघ के राज्य में राज्यपाल की भूमिका व शक्तियों का वर्णन है. राज्यपाल के कार्यों व शक्तियों को पांच भागों में विभक्त किया जा सकता है. ये है- कार्यकारी, न्यायिक, आपात, वित्तीय, विश्वविद्यालय का प्रमुख व विधायी.

    1. राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियां (Executive Powers of the Governor in HIndi)

    भारतीय संविधान में राज्यपाल को संबंधित राज्य के कार्यपालिका का प्रधान माना गया है. इसलिए, राज्य का सारा काम राज्यपाल के नाम से किया जाता है.

    राज्यपाल को नियमानुसार मुख्यमंत्री व मुख्यमंत्री के सलाह पर अन्य मंत्रियों को नियुक्त करने का अधिकार है. राज्य के महान्यायवादी, राज्य लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों का नियुक्ति भी राज्यपाल के द्वारा किया जाता है. राज्य का कार्यकारी संचालन राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाले केबिनेट के सलाह पर होता है.

    2. न्यायिक शक्तियां (Judicial Powers)

    किसी सजा को माफ़ करने, कम करने या उसमें किसी अन्य प्रकार का संसोधन करने का अधिकार राज्यपाल को प्राप्त होता है. यह राज्यपाल की न्यायिक शक्ति है.

    अनुच्छेद 213 के तहत उच्च न्यायालय का न्यायाधीश को पद ग्रहण करने से पहले संबंधित राज्य के राज्यपाल या उनके द्वारा इसके लिए नियुक्त व्यक्ति के समक्ष नियमानुसार शपथ लेना होता है. इस शपथ का वर्णन तीसरी अनुसूची में है. शपथ पर हस्ताक्षर करना भी जरुरी होता है.

    राज्य के उच्च न्यायालय के साथ विचार कर ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति; तथा राज्य न्यायिक आयोग से जुड़े लोगों की नियुक्ति करना भी राज्यपाल का काम है.

    3. राज्यपाल की विधायी शक्ति (Legislative Powers of the Governor in Hindi)

    विधान परिषद वाले राज्य में राज्यपाल इस सदन के कुल सदस्यों का 1/6 मनोनीत कर सकते है. ये मनोनयन विज्ञान, कला, साहित्य, समाज सेवा एवं सहकारी आंदोलन से संबंधित क्षेत्र के ख्यातिप्राप्त लोगों से किया जाता है. अनुच्छेद 171 इस मनोनयन से संबंधित है.

    सदन में विशेष अभिभाषण, सदन को बुलाने व स्थगित करने जैसे अधिकार भी राज्यपाल को प्राप्त है. कोई भी विधेयक राज्यपाल के अनुमति के बिना पारित नहीं माना जाता है. राज्यपाल, को आपातकाल व सदन के कार्रवाही में न होने के दौरान अध्यादेश जारी करने का अधिकार भी होता है.

    अनुच्छेद 170 के अलावा भी; यदि किसी राज्य के राज्यपाल की यह राय है कि विधान सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो; वह उस समुदाय का एक सदस्य का नाम निर्देशित कर सकेगा.

    4. राज्यपाल की वित्तीय शक्तियां (Financial Powers of Governor in Hindi)

    अनुच्छेद 202 के तहत राज्य का वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट) सदन के समक्ष पेश करवाना राज्यपाल का दायित्व है. साथ ही, अनुच्छेद 199 में परिभाषित धन विधेयक को सदन के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व, राज्यपाल की स्वीकृति जरुरी है. अनुच्छेद 243झ के तहत प्रत्येक पांच वर्षों में राज्य वित्त आयोग का गठन भी राज्यपाल करते है. इस आयोग द्वारा पंचाटों व नगरनिकायों के वित्तीय स्तिथि की समीक्षा की जाती है.

    5. राज्यपाल की आपात व विवेकाधिकार शक्तियां (Emergency and Discretionary powers of the Governor in Hindi)

    राज्य में सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में राज्य का राज्यपाल, अनुच्छेद 356 के अधीन विवेकाधिकार का प्रयोग कर; राज्य में राष्ट्रपति शासन का प्रतिवेदन राष्ट्रपति को भेज सकता है. यदि, राष्ट्रपति इस सिफारिश को मान लेते है तो राज्यपाल की शक्तियां बढ़ जाती है और वह राज्य का वास्तविक प्रधान बन जाता है. वे मंत्रिपरिषद का सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं होते है.

    राज्यपाल के विवेकाधिकार की शक्ति का वर्णन अनुच्छेद 163 में है. इसके तहत लिए गए निर्णय न्यायालय में वादयोग्य नहीं होते है. किसी दल को बहुमत प्राप्त न होने की स्तिथि में राज्यपाल अपने विवेकानुसार मुख्यमंत्री (सीएम) का चयन करते है. यह विवेकाधिकार से संबंधित निर्णय है.

    हालाँकि, सीएम चुने गए व्यक्ति को राज्यपाल द्वारा विधि अनुसार तय की गई अवधि में बहुमत साबित करना होता है. सामान्यतः, सदस्यों के शपथ के तुरंत बाद या इस समारोह के अगले दिन बहुमत परिक्षण किया जाता है.

    6. विश्वविद्यालय का प्रमुख (Head of State Universities)

    किसी राज्य के विश्वविद्यालय में राज्यपाल की भूमिका काफी अहम होती है. राज्यपाल अपने राज्य के सामान्य विश्वविद्यालयों, कृषि विश्वविद्यालयों, प्राविधिक विश्वविद्यालयों, चिकित्सा विश्वविद्यालयों तथा संगीत डीम्ड-टू-बी-विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति होता है.

    इसके साथ ही, कुलपति व कई अन्य प्रकार के नियक्तियों में राज्यपाल का अनुमति जरुरी है. इसके साथ ही, कुलपति व कई अन्य प्रकार के नियक्तियों में राज्यपाल का अनुमति जरुरी है. राज्यपाल की भूमिका कई अन्य मामलों में भी अहम होती है; जैसे- विश्वविद्यालय के शैक्षिक स्तर में सुधार, शिक्षा सत्र को नियमित करना व इनमें पुलिस संबन्धित मुद्दों पर सरकार का ध्यानाकर्षण करना, कुलपतियों व संबन्धित मंत्रालयों की समीक्षा बैठकें आयोजित करने का अधिकार इत्यादि.

    राज्यपाल की समयपूर्व बर्खास्तगी का प्रावधान (Provision for premature dismissal of the Governor in Hindi)

    किसी भी राज्यपाल की बर्खास्तगी प्रधानमंत्री के अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की अनुशंसा पर ही किया जा सकता है. लेकिन, इसके लिए स्पष्ट कारण होना जरुरी है. इसके बाद ही 5 साल के कार्यकाल से पूर्व राज्यपाल का बर्खास्तगी किया जा सकता है. राज्यपाल अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले भी इस्तीफा दे सकते है.

    साथ ही, न्यायालय द्वारा राज्यपाल के किसी कार्य को असंवैधानिक ठहराने को भी कारण मानकर बर्खास्त किया जा सकता है. बिना वैध कारण के बिना राजयपाल की बर्खास्तगी नहीं हो सकती.

    राज्यपाल से सम्बंधित विवाद (Disputes related to Governor in Hindi)

    आप जानते है कि राज्यपाल का नियुक्ति केंद्र सरकार के सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है. इस तरह राज्यपाल, राज्य में केंद्र का प्रतिनिधि होता है. लेकिन, राज्यपाल को विवेकाधिकार समेत विधेयक के वीटो का अधिकार है. इस कारण से केंद्र व राज्य में विवाद के स्थिति में, राज्यपाल अपने राज्य के बदले केंद्र के प्रति अधिक उत्तरदायी दिखता है. राज्यपाल पर केंद्र का कठपुतली होने के आरोप लगते रहे है. अब, राज्यपाल से जुड़ा यह विवाद आम हो चला है.

    विवेकाधीन व विधेयक पर तकरार के कई मामले सुर्खियां बटोर चुके है. आमतौर पर किसी नौकरशाह या राजनेता को ही राज्यपाल चुना जाता है. ये नियुक्ति के बाद केंद्र के तत्कालीन सत्ताधीन पार्टी के करीब हो जाते है. राज्य में अन्य दल का सरकार होने की स्तिथि में, टकराव की स्तिथि देखने को मिलती है. इसका आखिरी प्रभाव अप्रत्यक्ष तौर पर राज्य के जनता पर होता है.

    साथ ही, केंद्र में सत्ता-परिवर्तन के साथ राज्यपाल को बदलना या स्थानांतरिक करना, आम है.

    इस तरह के विवादों के कारण राज्यपाल की नियुक्ति के संबंध में नए कानूनों को बनाने की मांग उठती रहती है. केंद्र सरकार के कुछ आयोगों ने भी इस संबंध में सिफारिशें की है.

    राज्यपाल पद पर आयोगों और समितियों की सिफारिशें (Recommendations of commissions and committees on the post of Governor)

    साल 1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) का गठन हुआ था. इसने इस पद पर ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करने का सिफारिश की, जो किसी राजनैतिक दल से संबंधित न हो.

    जून 1983 में गठित तीन सदस्यीय सरकारिया आयोग ने 1988 में 1600 पन्नो की अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंपी. सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रणजीत सिंह सरकारिया के अध्यक्षता वाले; इस आयोग का कार्य केन्द्र-राज्य सम्बन्धों से सम्बन्धित शक्ति-संतुलन पर संस्तुति देना था.

    इस आयोग ने कुल 247 अनुसंशाय की. आयोग ने राज्यपाल की पद को एक संवैधानिक पद माना. इसमें ये भी कहा गया कि राज्यपाल का कार्यालय न तो केंद्र के अधीन है, और न ही राज्यपाल केंद्र के तहत आता है. साथ ही, चुनाव पूर्व गठबंधन वाले सबसे बड़े समूह को सरकार बनाने के लिए आमंत्रण की सिफारिश की गई.

    वर्ष 1970 में तमिलनाडु सरकार ने भी केंद्र-राज्य संबंधों पर राजमन्नार समिति गठित की थी. इस समिति ने अनुच्छेद 356 और 357 के विलोपन की सिफारिश की.

    साल 2002 की वी. चलैया आयोग ने अनुच्छेद 356 को अंतिम उपाय के रूप में लागु करने की सिफारिश की. इससे पहले सभी प्रयास कर लेने की सलाह इस रिपोर्ट में दी गई. सरकारिया आयोग ने भी 356 का उपयोग दुर्लभ मामलों में करने को कहा था.

    2010 में गठित पूँछी आयोग ने 2011 में अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंपी. इस आयोग ने राज्यपाल पर राज्य के सदन द्वारा महाभियोग चलाने का अधिकार देने की वकालत की. साथ ही, अनुच्छेद 355 और 356 में संशोधन करने की सिफारिश भी की थी. राज्यपाल को कुलाधिपति बनाने की परंपरा समाप्त करने का सिफारिश भी पूँछी आयोग ने की है.

    राज्यपाल के विवेकाधिकार से संबंधित उल्लेखनीय निर्णय (Judgements related to Discretionary Power of Governor in Hindi)

    एस.आर. बोम्मई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (SR Bommai vs Union of India Case in Hindi)

    यह कर्नाटक राज्य से जुड़ा अतिमहत्वपूर्ण मामला है. राज्य के जनता पार्टी और लोकदल पार्टी ने मिलकर जनता दल नाम से एक नए पार्टी का गठन किया था. इस नए दल को बहुमत प्राप्त था. फिर, एक विधायक कुछ पत्र लेकर राजयपाल के पास पहुंचा. इन पत्रों में 19 विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने का जिक्र था. इसके बाद राज्यपाल के सिफारिश के अनुरूप; राष्ट्रपति द्वारा राज्य में अनुच्छेद 356 के तहत आपातकाल लगा दिया गया.

    मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने फैसला दिया कि सर्वोच्च न्यायालय किसी सरकार को बर्खास्त करने के कारणों की समीक्षा कर सकता है. साथ ही कहा गया कि न्यायालय केंद्र से उस सामग्री को प्रस्तुत करने के लिए कह सकता है, जिसके आधार पर राज्य सरकार को बर्खास्त किया गया है. साथ ही अदालत ने कहा, बहुमत का फैसला सदन में होना चाहिए, कहीं और नहीं.

    इस मामले के कारण केन्द्र-राज्य संबंधों पर व्यापक प्रभाव हुआ है. 11 मार्च, 1994 को दिए गए इस फैसले से राज्य सरकारों को भंग करने के अधिकार पर अंकुश लगा. दरअसल, सीएम एस. आर. बोम्बई भी फोन टैपिंग के एक मामले में फंस गए थे. इसके बाद ही केंद्र ने सरकार को बर्खास्त किया था.

    बोम्मई जजमेंट की ख़ास गाइडलाइंस (Special Guidelines of Bommai Judgment in Hindi)

    इस मामले में निम्न दिशानिर्देशों के माध्यम से राज्यपाल की निरंकुशता पर क़ानूनी पैबंद लगाने का कोशिश किया गया-

    • अनुच्छेद 356(1) के तहत घोषित राष्ट्रपति शासन न्यायिक समीक्षा के योग्य है.
    • अदालत को राष्ट्रपति शासन के कारण और उसकी प्रासंगिकता को परखने का अधिकार है.
    • मामला अदालत में पहुँचने पर केंद्र को इसका प्रासंगिकता साबित करना होगा.
    • अनुच्छेद 74 (2) में राष्ट्रपति के समक्ष सामग्री की जाँच-पड़ताल पर कोई प्रतिबंध नहीं है. राष्ट्रपति इस संदर्भ में तब तक कोई अपरिवर्तनीय निर्णय नहीं ले सकते, जब तक कि राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा को संसद अपनी मंजूरी न प्रदान कर दे.
    • अदालत उचित कारण न पाए जाने पर राष्ट्रपति शासन को अवैध घोषित कर सकती है और कैबिनेट को बहाल कर सकती है. भले ही, संसद ने राष्ट्रपति शासन को पारित कर मंजूरी दे दी हो.
    • अदालत अंतरिम राहत भी दे सकती है; जैसे नए चुनाव पर रोक इत्यादि.
    • पंथनिरपेक्षता संविधान के मूल ढाँचे का एक अंग है.

    इस तरह, राजपाल की शक्तियों को सिमित करते हुए केंद्र के मनमानेपन पर भी रोक लगा दी गई.

    बोम्मई जजमेंट का प्रभाव

    इस जजमेंट ने राजयपाल की शक्तियों को काफी कुंद कर दिया. इसके वजह से 1997 और 1998 में क्रमशः उत्तर प्रदेश और बिहार में राष्ट्रपति शासन नहीं लग पाया. तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. के. आर. नारायण ने सिफारिश को लौटा दिया था.

    हालाँकि, इसके बाद भी केंद्र द्वारा राज्यपाल के माध्यम से राज्य में हस्तक्षेप/ नियंत्रण करने के आरोप लगते रहे है. इसलिए राज्यपाल की पद विवाद का विषय बना हुआ है.

    हाल के दिनों में केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरूपयोग से सरकारों को अस्थिर करने का आरोप विपक्ष द्वारा लगाया जा रहा है. इस तरह केंद्रीय एजेंसियां पुराने राज्यपाल की भूमिका में लौटती दिख रही है.

    रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत सरकार (Rameshwar Prasad Vs. Union of India)

    2006 में पांच सदस्यीय बेंच द्वारा दिए गए इस निर्णय में चुनाव पूर्व या चुनाव बाद बने गठबंधन द्वारा सरकार निर्माण को जायज ठहराया गया था.

    नबाम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष (Nabam Rebia Vs. Vice President)

    सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2016 में दिए गए इस फैसले में अनुच्छेद 163 के अधीन ली जाने वाली राज्यपाल की विवेकाधीन फैसलों की व्याख्या की गई. अदालत ने कहा कि विवेकाधिकार का प्रयोग सिमित है और ये मनमानी या काल्पनिक नहीं होना चाहिए. राज्यपाल को तर्क व सद्भावना के आधार पर ऐसे फैसले लेने को कहा गया.

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