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एक राष्ट्र, एक चुनाव की चुनौतियाँ

केंद्र सरकार में 2 सितम्बर 2023 को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव‘ सिद्धांत को अमलीजामा पहनाने के शुरूआती कदम के रूप में, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. रामनाथ कोविंद के अध्यक्षता में एक आठ सदस्यीय समिति का गठन किया है. इसके अन्य सात सदस्यों में केंद्र सरकार में गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, पूर्व राज्यसभा सांसद गुलाम नबी आज़ाद, राजयसभा सदस्य एन. के. सिंह, पद्मभूषण अवार्डी सुभाष कश्यप, संविधान विशेषज्ञ हरीश साल्वे और पूर्व आईएएस अधिकारी संजय कोठारी शामिल है.

‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का परिचय (Introduction to ‘One Nation, One Election’)

चुनाव किसी भी लोकतंत्र का सबसे बुनियादी जरूरत है. भारत में शासन के तीन स्तर है, पहला केंद्र, दूसरा राज्य और तीसरा स्थानीय सरकार. इसलिए भारत में हरेक साल कई राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय का चुनाव होता है. इस वजह से राजनैतिक दलों, खासकर राष्ट्रिय दलों को, कई बार जनता के सामने जाना पड़ता है और उन्हें अपने नीतियों और भावी योजनाओं से अवगत करवाकर मतदान का रुख अपने पक्ष में करना पड़ता है. इस प्रक्रिया में धन का एक बड़ा हिस्सा भी खर्च हो जाता है. नेताओं के लिए लगातार प्रचार थका देने वाला होने के साथ-साथ बहुत महंगा भी होता है.

एक राष्ट्र, एक चुनाव के नई अवधारणा के तहत चुनाव के उपरोक्त खामी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है. इसके लिए लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ करवाने के संभावनाओं को तलाशा जा रहा है.

भारतीय संविधान में सरकार के तीनों स्तर पर हरेक पांच साल में चुनाव का प्रावधान है. संविधान में कोई सीट रिक्त हो जाने पर उपचुनाव के माध्यम से यहां नए प्रतिनिधि का चुनाव का प्रावधान भी किया गया है. लेकिन, ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि चुनाव स्थानीय, राज्य और केंद्र स्तर का चुनाव एक साथ हो. इसलिए, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव‘ के माध्यम से संविधान के दायरे में रहकर एक साथ तीनों स्तर पर चुनाव करवाएं जाने का प्रयास किया जा रहा है.

इस तरह, एक राष्ट्र, एक चुनाव सभी स्तरों पर एकल चुनाव कराने की विधि है, जिसमें मतदाता, सरकार के तीनों स्तरों पर प्रतिनिधियों का चुनाव मतदान के अधिकार का प्रयोग कर एक ही समय में करते है.

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लिए सिफारिशें (Recommendations for ONOE in Hindi)

एक राष्ट्र एक चुनाव का पहली बार विचार 1983 में निर्वाचन आयोग ने दिया था. तब से यह विचार अस्तित्व में है. कई राज्य विधानसभाओं के समय पूर्व विघटन से एक राष्ट्र एक चुनाव का परम्परा समाप्त हो गया.

बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने भी 1999 में पुरे देश में एक साथ चुनाव करवाने का वकालत किया था. जनवरी 2017 में नीति आयोग ने इस विषय पर एक वर्किंग पेपर तैयार किया था. इसके बाद अप्रैल 2018 में विधि आयोग ने भी एक वर्किंग पेपर निकाला. इसमें एक राष्ट्र एक चुनाव को अमलीजामा पहनाने के लिए कम से कम “पांच संवैधानिक सिफारिशों” की आवश्यकता बताई गई.

साल 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ रामनाथ कोविंद ने भी इसका वकालत किया था. वर्तमान में केंद्र सरकार ने इसके लिए समिति का गठन कर वैधानिक रूप से बड़ा कदम उठा लिया है. इसलिए भारतीय मीडिया में इस मुद्दे पर गूंज सुनाई दे रहा है.

भारत में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के उदाहरण (Example of ‘One Nation, One Election’ in India)

वर्तमान समय में ग्राम पंचायत में कई प्रतिनिधियों का एक साथ चुनाव किया जाता है. इसे एक राष्ट्र, एक चुनाव का उदाहरण माना जाता सकता है. पांच वर्ष में होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ ही, उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और आंध्र प्रदेश में चुनाव होते है, जिसे मिनी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ कहा जा सकता है.

वास्तव में, आजादी के बाद हुए चार लोकसभा चुनावों तक अधिकाँश राज्यों के विधानसभा चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ ही हुए थे. लेकिन, 1972 से यह ट्रेंड बदल गया, जब इस साल के लोकसभा चुनाव के साथ कोई भी चुनाव नहीं हुआ. इस तरह देश में एक राष्ट्र, एक चुनाव का दौर समाप्त हो गया.

इन चुनावों का नजदीक से अध्ययन करने पर हमें ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से जुड़े कई जानकारियां भी प्राप्त होते है. जैसे, 1952 के लोकसभा चुनाव के साथ सभी राज्यों का विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए थे. इस वक्त स्थानीय सरकार का संकल्पना नहीं था. इसलिए तत्कालीन परिस्थितियों में इस चुनाव को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के अवधारणा पर सम्पन्न माना जा सकता है, जिसे पूरा होने में 100 दिनों का लम्बा वक्त लगाए था.

1957 के अलगे चुनाव में 76% और 1962 तथा 1967 में 67% विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही सम्पन्न हुए. ये चुनाव भी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव, के अवधारणा के करीब थे.

इसी बीच 1959 में केंद्र सरकार ने केरल में ई. एम. एस. नम्बूदरीपाद के नेतृत्व वाले वामपंथी विचारधारा वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया. इस तरह पहली बार संघवाद को आघात पहुंचा, तथा लोकतान्त्रिक व संवैधानिक मूल्य तार-तार हुए.

विश्व में एक राष्ट्र एक चुनाव का स्थिति (Situation of One Nation One Election in the world)

लोकतान्त्रिक देशों में कुछ ऐसे देश भी है, जहां एक राष्ट्र एक चुनाव अवधारणा के अनुरूप एकसाथ चुनाव सम्पन्न कराए जाते है. दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप में स्थित ब्राजील भी एक ऐसा ही देश है. ब्राजील में, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, राष्ट्रीय कांग्रेस, राज्य और संघीय जिला गवर्नर और उपाध्यक्ष, राज्य विधानसभा और संघीय जिला विधान मंडल आदि एक साथ सम्पन्न हुए चुनाव में चुने जाते है.

ब्राज़ील में बहुमत प्रणाली का उपयोग संघीय सीनेट, राष्ट्रपति, राज्यपाल और महापौर का चुनाव करने के लिए किया जाता है. राष्ट्रपति पद के लिए विजेता घोषित होने के लिए 50% से अधिक वैध वोट प्राप्त करना आवश्यकता होता है. कई बार दो से अधिक उम्मीदवार होने से किसी भी उम्मीदार को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है. ऐसे में शीर्ष दो उम्मीदवारों के बीच फिर से चुनाव होते है. समान मतों के स्थिति में उम्र में वरिष्ठ उम्मीदवार को विजेता चुना जाता है.

राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली के समान ही राज्य के राज्यपालों और नागपालिकाओं के मेयर का चुनाव किया जाता है, जहाँ मतदाताओं का संख्या 200,000 से अधिक होता है. इससे कम मतदाता वाले निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य बहुमत प्रणाली से विजेता का चयन होता है.

स्वीडन में भी एक राष्ट्र एक चुनाव के अनुरूप प्रत्येक चार साल में सितम्बर महीने में सभी स्तरों पर चुनाव करवाया जाता है. लेकिन स्वीडन में आनुपातिक चुनाव प्रणाली लागू है.

साल 2015 में नेपाल द्वारा नया संविधान अपनाया गया. इसके बाद 2017 के आखिर में केंद्र और राज्यों में मतदान द्वारा नए सरकार के गठन का निर्णय लिया गया. पहले यह चुनाव एक साथ सम्पन्न किया जाना था. लेकिन, इसमें कई तरह के दिक्कतें आने लगी, जिसके बाद 26 नवम्बर 2017 और 7 दिसंबर 2017 को दो चरणों में केंद्र और राज्य का चुनाव क्रमशः सम्पन्न किया गया.

दक्षिण अफ्रीका में भी केंद्र और राज्यों के लिए एक साथ अलग-अलग मतपत्रों पर चुनाव सम्पन्न किए जाते है. लेकिन यहां आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुरूप मतदान होता है.

इसके अलावा फिलीपींस, बोलीविया, कोलंबिया, कोस्टा रिका, ग्वाटेमाला, गुआना, होंडुरस जैसे छोटे आबादी वाले देशों में भी चुनाव एक साथ ही होते है.

उपरोक्त उदाहरण विश्व के कुछ चुनिंदा देशों में एक राष्ट्र एक सिद्धांत के आधार पर करवाए जा रहे मतदान के उदाहरण है. लेकिन इनमें दक्षिण अफ्रीका को छोड़कर कोई भी अन्य देश भारत के विशाल मतदाता संख्या के सामने नहीं टिक पाटा है. ऐसे में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में एकसाथ चुनाव संपन्न करवाया जाना, कई आशंकाओं को जन्म देता है.

एक राष्ट्र एक चुनाव में संवैधानिक अड़चन (Constituitional Barriers in O. N. O. E.)

वर्तमान में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल अलग-अलग समय पर समाप्त होते है. उदाहरण के लिए, वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल 2024 में समाप्त होता है. कुछ विधान सभाओं के कार्यकाल इससे ठीक 6 माह पहले समाप्त हो रहे है, जिनमें मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और राजस्थान शामिल है.

वहीँ, लोकसभा चुनाव के ठीक बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव होने है. वहीं, अन्य कई राज्यों के चुनाव भी संविधैदानिक प्रावधानों के कारण अलग-अलग समय पर समाप्त होते है. इसलिए एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए कई प्रकार के संवैधानिक संसोधन का आवश्यकता होगा.

भारतीय संविधान के संविधान के अनुच्छेद 83(2) और 172 के अनुसार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल क्रमशः पांच साल निर्धारित किया गया है. इसे उसी परिस्तिथि में कम किया जा सकता है, जब मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री इस्तीफा दे दे और नए सिरे से चुनाव करवाया जाएं.

इसके अलावा कई अन्य अनुच्छेद भी एक राष्ट्र एक चुनाव से संबंधित है. अनुच्छेद 85, जो राष्ट्रपति द्वारा लोक सभा को भंग करने से संबंधित है और अनुच्छेद 174, जो राज्य विधानमंडलों के विघटन से संबंधित है. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की प्रक्रिया के नियमों में भी बदलाव की आवश्यकता होगी.

लोकसभा के साथ राज्य विधानसभा का चुनाव करवाने के लिए अनुच्छेद 356 में उपलब्ध आपातकालीन उपबंध का इस्तेमाल कर राज्य सरकारों को बर्खास्त किया जा सकता है, फिर केंद्र और राज्यों में एक साथ चुनाव हो सकते है.

लेकिन एक साथ कई राज्य सरकारों का बर्खास्तगी करने पर न्यायपालिका द्वारा ये समीक्षा किया जा सकता है कि क्या वास्तव में आपातकालीन परिस्थितिया थे? यदि न्यायपालिका ये मान ले कि ऐसा नहीं है और राज्य सरकारों को पुनः बहाल कर दे तो यह उपाय विफल हो सकता है.

Support behind One Nation One Election, The infographics tells expences to held loksabha election from 1952 to till 2019.
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के अनुसार लोकसभा चुनाव 2019 में कुल 60 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए हैं, इनमें राजनैतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा किया गया खर्च भी शामिल है.

एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए संसोधन (Constitutional Amendments for ONOE in Hindi)

2015 में निर्वाचन आयोग ने एक राष्ट्र एक चुनाव को अमलीजामा पहनाने के लिए संविधान तथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन का सुझाव दिया गया था. एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए किया गया संवैधानिक संसोधन, संघीय ढांचे में किया गया संसोधन माना जाएगा. इसके लिए राज्य विधानसभाओं सभा के साथ-साथ संसद के दोनों सदनों के 50% बहुमत की आवश्यकता होगी. अनुच्छेद 368 में संविधान के छह भागों की सूची है, जिनमें संशोधन के लिए अतिरिक्त सुरक्षा प्रावधान हैं. ये हैं:

  1. अनुच्छेद 54 और 55 – भारत के राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित.
  2. अनुच्छेद 73 और 162 – संघ और राज्यों की कार्यकारी शक्ति की सीमा से संबंधित.
  3. अनुच्छेद 124-147 और 214-231 – सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की शक्तियों से संबंधित.
  4. अनुच्छेद 245 से 255 – संघ और राज्यों के बीच विधायी, कर और प्रशासनिक शक्तियों के वितरण की योजना से संबंधित.
  5. अनुच्छेद 82-82 – संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व से संबंधित.
  6. स्वयं अनुच्छेद 368 ही.

भारतीय संविधान में संशोधन के तीन तरीके हैं:

  1. साधारण बहुमत से संशोधन: संविधान के कुछ प्रावधानों को संसद के साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है. इनमें नागरिकता, नए राज्यों का गठन, संसद में कोरम, पांचवें और छठे शेड्यूल में शामिल कानून तथा अन्य प्रावधान शामिल हैं.
  2. विशेष बहुमत से संशोधन: संविधान के कुछ अन्य प्रावधानों को संसद के विशेष बहुमत से संशोधित किया जा सकता है. विशेष बहुमत का तात्पर्य सदन में उपस्थित सदस्यों का दो-तिहाई मत प्राप्त करने से है. इसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उच्चतम और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा कुछ अन्य प्रावधान शामिल हैं.
  3. विशेष बहुमत और अनुसमर्थन से संशोधन: संविधान के कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रावधानों को संसद के विशेष बहुमत और कम से कम आधे राज्य विधानसभाओं के अनुसमर्थन से संशोधित किया जा सकता है. इनमें संसद की शक्तियां, राज्यों की शक्तियां, मौलिक अधिकार, मूल कर्तव्य और अन्य प्रावधान शामिल हैं.

विशेष बहुमत उन परिस्तिथियों में किये जाते है, जब संघीय ढांचा प्रभावित हो रहा हो और राज्यों के अधिकार के अतिक्रमण से जुड़ा है. उदाहरण के लिए, जीएसटी लागु करने के लिए संविधान का 122वां संसोधन पर 16 राज्यों के विधानसभाओं का सहमति लिया गया था.

सामान्य बहुमत के लिए संविधान संशोधन की प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए निम्नलिखित चरण उठाए जाते हैं:

  • संसद के किसी भी सदन में संविधान संशोधन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है.
  • प्रस्ताव पर सदन में चर्चा होती है और मतदान किया जाता है.
  • यदि प्रस्ताव को सदन में बहुमत प्राप्त होता है, तो वह संविधान संशोधन विधेयक बन जाता है.
  • संविधान संशोधन विधेयक को दूसरे सदन में प्रस्तुत किया जाता है.
  • दूसरे सदन में भी प्रस्ताव पर चर्चा होती है और मतदान किया जाता है.
  • यदि प्रस्ताव को दोनों सदनों में बहुमत प्राप्त होता है, तो वह संविधान संशोधन अधिनियम बन जाता है.
  • संविधान संशोधन अधिनियम को राष्ट्रपति की अनुमति के बाद ही लागू किया जा सकता है.
  • राज्यों के अनुमति के लिए इसे कई राज्य विधानसभाओं में भी प्रस्तुत किया जाता है, देश के राज्यों के बहुमत से इसके पारित होने पर ही इसे अनुमोदित माना जाता है.

साथ ही, संविधान के मूल ढांचे में बदलाव अनुच्छेद 368 के प्रावधानों द्वारा नहीं किया जा सकता है. एक राष्ट्र एक चुनाव से राज्य विधानसभाओं के अधिकार भी प्रभावित हो रहे है. इसलिए, इसके लिए बहुमत में विधानसभाओं का अनुसमर्थन की जरूरत है.

निर्वाचन आयोग का भूमिका (Role of Election Commission in Hindi)

भारत में चुनाव आयोग एक स्वायत्त निकाय है जो संघ और राज्य चुनावों के प्रशासन के लिए जिम्मेदार है. 25 जनवरी 1950 को भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना हुई. इसलिए 25 जनवरी को हर साल राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है.

चुनाव आयोग से संबंधित संवैधानिक प्रावधान भारतीय संविधान का भाग XV (अनुच्छेद 324-329) चुनाव और चुनाव विषयों से संबंधित आयोग की स्थापना से संबंधित है. भारतीय संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेद चुनाव आयोग से संबंधित हैं:

  • अनुच्छेद 324: चुनाव का पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियंत्रण चुनाव आयोग को सौंपा जाएगा.
  • अनुच्छेद 325: धर्म, लिंग, नस्ल या जाति के आधार पर कोई भी व्यक्ति विशेष मतदाता सूची में न तो अयोग्य होगा और न ही इस आधार पर शामिल किया जाएगा.
  • अनुच्छेद 326: वयस्क मताधिकार के आधार पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव.
  • अनुच्छेद 327: विधायिका के चुनाव के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति.
  • अनुच्छेद 328: किसी राज्य की राज्य विधानमंडल की राज्य विधानमंडल के संबंध में प्रावधान करने की शक्ति.
  • अनुच्छेद 329: चुनावी मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप पर रोक.

चुनाव आयोग के कुछ कर्तव्य

  1. संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर पूरे देश में चुनावी निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करना.
  2. मतदाता सूची तैयार करना और मतदाताओं का पंजीकरण और विलोपन करना.
  3. राजनीतिक दलों एवं उनके प्रतीक चिन्ह को मान्यता प्रदान करना तथा उन्हें राष्ट्रीय अथवा दर्जा प्राप्त दल का दर्जा प्रदान करना.
  4. उम्मीदवार और पार्टी द्वारा अपनाए जाने वाले आचरण की भूमिका निर्धारित करना. इसे आदर्श चुनाव आचार संहिता भी कहा जाता है.
  5. क्रमशः सांसद की अयोग्यता पर राष्ट्रपति और विधायकों की अयोग्यता पर राज्यपाल को सलाह देना.
  6. चुनाव कार्यक्रम उपलब्ध कराने के साथ-साथ प्रति उम्मीदवार द्वारा अधिकतम चुनाव व्यय भी निर्धारित करना.

चुनाव आयोग के समक्ष चुनौतियाँ

  1. चुनाव में बढ़ती हिंसा
  2. निर्वाचन आयोग के पास राजनीतिक दलों को विनियमित करने के लिए पर्याप्त अधिकार नहीं है, क्योंकि इसके पास आंतरिक पार्टी लोकतंत्र को लागू करने और पार्टी वित्त को विनियमित करने की कोई शक्ति नहीं है.
  3. ईवीएम में खराबी और हैकिंग के आरोप.
  4. अलग-अलग राज्यों में एक ही व्यक्ति के लिए मल्टी वोटर आईडी कार्ड से नागरिकता का डुप्लीकेसी.
  5. चुनाव में हेरफेर करने के लिए फर्जी खबरें और सर्वेक्षण.
  6. बूथ कैप्चरिंग और वोटों का अपहरण, मतदाताओं को धमकी देकर मतदान से रोकना.
  7. चुनाव में अवैध धन का प्रयोग.
  8. वोट के बदले नकद राशि और अन्य वस्तुएं देकर मतदाताओं को भ्र्ष्ट तरीके से प्रभावित करने की रणनीति.
  9. क्रोनी कैपिटलिज्म और झूठे चुनावी वायदे.
  10. महिला मतदान में कमी और पलायित मतदाताओं द्वारा मतदान में भाग न ले पाना.
  11. नामांकन पत्र में उम्मीदवारों द्वारा भरे गए विवरण के वैधता को जांचना. कई बार ये गलत भी होते है.
  12. प्रशिक्षित प्रशासनिक कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों की कमी, जिसके कारण चुनाव की अवधि लंबी और महंगी होती है.

EVM और VVPAT की आवश्यकता

वर्तमान में एक चुनाव में उपयोग के गए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) का दूसरे चुनाव के लिए उपयोग किया जाता है. लेकिन, एक साथ चुनाव सम्पन्न करने के लिए ऐसे 30 लाख इकाई का जरूरत अनुमानित है. निर्वाचन आयोग के अनुसार, ये मशीन 15 साल के बाद बदलने होंगे, जिसमें 9,284.15 करोड़ रुपए का लागत आ सकता है. बड़े संख्या में ईवीएम का भंडारण, रखरखाव और मरम्मत भी लागत में वृद्धि कर देगा.

रिक्ति के समय चुनौतियाँ

आजादी के बाद देश के राज्य सरकारों के बर्खास्ती ने एक राष्ट्र एक चुनाव के चले आ रहे अनुक्रम को समाप्त कर दिया था. वर्तमान में एक साथ चुनाव करवाकर एक राष्ट्र एक चुनाव के अवधारणा को अपनाया जा सकता है. लेकिन किसी लोकसभा या विधानसभा सीट के रिक्त हो जाने पर वहाँ फिर से उपचुनाव करवाना पड़ सकता है.

केंद्र या राज्यों में सरकार गिर जाने से भी असमय चुनाव का जरूरत हो सकता है. साथ ही, राष्ट्रपति शासन लगने और उसके बाद राज्य विधानसभा चुनाव होने से भी एक राष्ट्र एक चुनाव का संकल्पना समाप्त हो सकता है. इसलिए एक राष्ट्र एक चुनाव करवाया जाना हमेशा एक चुनौती के रूप में सामने आएगा.

मतदाता सूची

हम जानते हैं कि मतदाता सूची भारत निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार की जाती है. एक राष्ट्र एक चुनाव के बाद लोकसभा, विधानसभा एवं अन्य चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची का उपयोग किया जा सकता है. फिलहाल, राज्य निर्वाचन आयोग स्थानीय निकाय चुनाव के लिए मतदाता सूचि तैयार करता है.

केंद्रीकृत मतदाता सूचि का स्थानीय निकाय चुनाव में उपयोग के लिए राज्यों को अपने नियमों में संसोधन करना होगा. इससे मतदाता सूचि को बार-बार तैयार नहीं करना होगा और लागत में बचत होगी. केंद्रीय निर्वाचन आयोग को इसके लिए राज्य सरकारों को तैयार करना होगा.

केंद्रीय निर्वाचन आयोग प्रत्येक वार्ड के लिए मतदाता सूचि बनाकर भी राज्यों के काम को आसान कर सकता है. इनफार्मेशन तकनीक के इस्तेमाल से इसे और भी सरलता से सम्पन्न किया जा सकता है. इस तरह एक राष्ट्र एक चुनाव के उद्देश्यों को और भी लाभदायक बनाया जा सकता है.

एक राष्ट्र एक चुनाव के फायदे

  1. इससे लोकसभा और विधानसभाओं के पांच साल का कार्यकाल एक साथ समाप्त होंगे.
  2. एक साथ चुनाव करवाएं जाने से चुनावी तैयारियों में बर्बाद होने वाले प्रशासनिक समय की बचत होगी.
  3. चुनावी लागत कम होगी और चुनाव में होने वाले पैसे की खर्च में कमी होगी.
  4. अधिकारी और नेता जनसरोकारों से जुड़े काम ध्यान दे सकेंगे. चुनाव प्रचार और तैयारियों में जाय होने वाला वक्त में कमी होगी. इस तरह प्रशासनिक दक्षता भी बढ़ेगी.
  5. शैक्षिण और प्रशासनिक कार्यों में चुनाव में आए व्यवधान में कमी होगी. शिक्षक और अन्य सरकारी अधिकारी ही चुनावी प्रक्रिया में शामिल होते हैं, जो उनके कार्यों में व्यवधान का कारण बनते हैं.
  6. सुरक्षा बलों का एक हिस्सा चुनाव के लिए ही रिज़र्व रहता है. एक राष्ट्र एक चुनाव को लागू करने से इनपर भी दवाब कम होगा.
  7. इस तरह राजनीतिक दलों, भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई), अर्धसैनिक बलों और नागरिकों को सिर्फ एक बार ही मतदान के लिए तैयारी करना होगा.

एक राष्ट्र एक चुनाव के नुकसान

  1. संविधान में संशोधन की जरूरत.
  2. पांच साल में सिर्फ एक बार चुनाव होने से राजनेताओं और जनता के बीच संवाद में कमी हो सकता है. चुनावों के बारंबरता में कमी से, नेताओं के जवाबदेही में कमी भी आ सकती है. निठल्ले नेता चुनाव के आखिरी वक्त कुछ विकास कार्यों को अंजाम देकर जनभावनाओं को अपने पक्ष में भी कर सकते है.
  3. चुनाव के लिए बड़ी संख्या में प्रशासनिक अमले और सुरक्षा की जरूरत. एक राष्ट्र एक चुनाव से लॉजिस्टिक चुनौतियाँ भी सामने आ सकती है.
  4. भारतीय राजनीति में, केंद्र और राज्य स्तर पर चुनाव में मतदाताओं का राजनीतिक व्यवहार अलग-अलग पाया गया है. एक राष्ट्र एक चुनाव लागू होने से उम्मीदवार चयन करना कठिन हो सकता है.
  5. यह राज्य की राजनीतिक स्वायत्तता को प्रभावित करता है.
  6. सभी राजनीतिक दलों को इस विचार पर राजी करना और एक साथ लाना कठिन है.
  7. एक साथ चुनाव कराने के लिए, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल्स (वीवीपीएटी) की आवश्यकताएं दोगुनी हो जाएंगी क्योंकि निर्वाचन आयोग को इसका दो सेट (एक विधान सभा के चुनाव के लिए और दूसरा लोकसभा) प्रदान करना होगा.
  8. राष्ट्रीय पार्टियाँ राज्य स्तर पर छोटी पार्टियों के आवाज़ को दबा सकती हैं, क्योंकि बड़े दलों के पास संसाधन प्रचुर होते है, जो उनके प्रभाव को अधिक कर देता है.
  9. राज्य के लोगों की क्षेत्रीय समस्याओं से निपटने के लिए अस्तित्व में आए छोटे दलों को किनारे कर दिया जा सकता है.
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