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गगनयान मिशन: उद्देश्य, तकनीक और महत्व

    हाल ही में चंद्रयान-3 और आदित्य एल1 सूर्य मिशन से इसरो ने काफी ख्याति अर्जित किया है. अब, इसरो जल्द ही मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान, गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission) को लांच करने के कगार पर है. इसका मकसद भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जाना है. इसरो 2024 में गगनयान मिशन का लक्ष्य पूरा कर लगभग 2 दशकों से चल रहे प्रयासों को स्वर्णिम अक्षरों में अंकित कर सकेगा. इसलिए पूरा देश भारत के पहले अंतरिक्ष मानव मिशन (First Human Spaceflight Programme of India) के सफल प्रक्षेपण का बेसब्री से इन्तजार कर रहा है.

    इस मिशन के सफलता से भारत, पूर्ववर्ती यूएसएसआर, अमेरिका और चीन के बाद अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला चौथा देश बन सकता है. डेनमार्क समेत कई अन्य देश भी इस दिशा में काम कर रहे है. इसलिए इसरो गंगायान मिशन को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है और दिसंबर 2024 तक लॉन्च की सभी संभावनाओं की तलाश कर रहा है.

    गगनयान मिशन क्या है (What is Gaganyaan Mission in Hindi)?

    इसरो का गगनयान मिशन भारत का पहला और संभावित रूप से दुनिया का चौथा अंतरिक्ष मानव मिशन है. गगनयान मिशन का बजट 10 हजार करोड़ रूपये से कम रखने का प्रयास है. इसके रॉकेट को जीएसएलवी मार्क-III में कुछ बदलाव करके बनाया गया है, जिसे एचएलवीएम-III नाम दिया गया है. इसमें मुख्यतः इंसानों को ले जाने वाले कैप्स्यूल और आपात स्थिति में इजेक्शन सिस्टम जोड़ा गया है. इस बदलाव के कारण नाम परिवर्तन किया गया है.

    Gaganyan Mission Human Rated Launch Vehicle with Orbit module

    गगनयान मिशन में 3,735 किलोग्राम वजन का एक स्पेसक्राफ्ट भी है, जो अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भ्रमण करने में मदद करेगा. इसे ऑर्बिटर मॉड्यूल भी कहा जाता है. गगनयान मिशन को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा. फिर यह करीब 3 दिनों तक पृथ्वी का परिक्रमा करेगा. इसके बाद इसके कैप्स्यूल (क्रू मॉड्यूल) को पैराशूट के माध्यम से समुद्र में उतार लिया जाएगा. (गगनयान मिशन को अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में उतारने का योजना है.)

    गगनयान मिशन के उद्देश्य (Objectives of Gaganyaan Mission in Hindi)

    मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के तहत इसरो का गगनयान मिशन के माध्यम से पहला भारतीय चालक दल अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. पहले इसे भारत की आजादी के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में 2022 तक प्रक्षेपित करने का योजना था. लेकिन, कोविड-19 महामारी के कारण इसमें देरी हो गई. अब इस लक्ष्य को 2024 के आखिर तक प्राप्त करने के योजना पर काम किया जा रहा है.

    गगनयान मिशन के तहत में चालक दल के 3 सदस्यों को धरती के निचले कक्षा (LEO) में 400 किमी की ऊंचाई पर लॉन्च ले जाना है. फिर, इन्हें सुरक्षित रूप से अरब सागर में उतारकर सफल मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता का प्रदर्शन करने का योजना है.

    इस परियोजना में आंतरिक विशेषज्ञता, भारतीय उद्योगजगत के अनुभव, भारतीय शिक्षा जगत और अनुसंधान संस्थानों की बौद्धिक क्षमताओं के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के पास उपलब्ध अत्याधुनिक तकनीकों के सर्वोच्च मानकों का इस्तेमाल किया गया है.

    गगनयान मिशन के चालक दल के सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ह्यूमन रेटेड लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल किया जा रहा है. अंतरिक्ष में पृथ्वी जैसा वातारण के लिए जीवन समर्थन प्रणाली, आपातकालीन स्थिति में बचाव और प्रशिक्षण के लिए कई नए तकनीकों का उपयोग से पूर्व परिक्षण किया जा रहा है.

    वास्तविक मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन को अंजाम देने से पहले इससे जुड़े प्रौद्योगिकी को जांचने-परखने हेतु प्रायोगिक योजनाएं बनाए गए है. इनमें इंटीग्रेटेड एयर ड्रॉप टेस्ट (आईएडीटी), पैड एबॉर्ट टेस्ट (पीएटी) और टेस्ट व्हीकल (टीवी) उड़ानें शामिल हैं. मानवयुक्त मिशन से पहले मानवरहित मिशनों में सभी प्रणालियों की सुरक्षा और विश्वसनीयता सिद्ध की जाएगी. इसके लिए उड़ान के तीन चरण निर्धारित किए गए है.

    गगनयान मिशन के तीन चरण (Three Phases of Gaganyaan Mission in Hindi)

    इस मिशन के तहत तीन चरण निर्धारित किए गए है. इनमें दो लॉन्चिंग प्रायोगिक और तीसरा व अंतिम मानवयुक्त मिशन है. तीनों चरण अलग-अलग खासियत से लैस है.

    1. पहला चरण: गगनयान का यह चरण पूर्णतः प्रायोगिक है. इसमें लॉन्चिंग वाहन और रिकवरी मॉड्यूल का जांच किया जाएगा. इस दौरान तकनीकों का गहन परिक्षण किया जाएगा और किसी भी संभावित त्रुटि को पहचानकर दूर करने की कोशिश होगी.
    2. दूसरा चरण: इस चरण में मुख्यतः मानव यात्रियों के अंतरिक्ष में जाने से जुड़ी कठिनाइयों का अध्ययन करना शामिल है. इस चरण में मानव के बदले एक कृत्रिम रोबोट ‘व्योममित्र’ को अंतरिक्ष में भ्रमण के लिए भेजा जाएगा. व्योममित्र रोबोट में कई खासियत है, जो अंतरिक्ष में इंसानों को आनेवाले संभावित चुनौतियों से इसरो को अवगत करवाएगा. साथ ही, यह क्रू-मॉड्यूल के परीक्षण में भी मदद करेगा.
    3. तीसरा चरण– प्रथम दो चरण के परिणामों के अनुरूप, तीसरा चरण लांच किया जा सकता है. यह भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन होगा, जिसे गगणयान मिशन नाम दिया गया है.

    गगनयान मिशन का व्योममित्र (Vyommitra of Gaganyaan Mission)

    व्योममित्र एक महिला जैसी दिखने वाली अंतरिक्ष यात्रा करने वाली ह्यूमनॉइड रोबोट है. इसरो द्वारा इसे गगनयान मिशन में इंसानों के बदले भेजकर परीक्षण के उद्देश्य से तैयार किया गया है. मतलब यह मानवरहित प्रायोगिक गगनयान मिशन का हिस्सा है. इसका अनावरण 22 जनवरी 2020 को बेंगलुरु में मानव अंतरिक्ष उड़ान पर आयोजित एक सेमीनार में किया गया था.

    व्योममित्र बनाने का उद्देश्य (Objective of Making Vyommitra)

    इसरो का लक्ष्य अन्य देशों के समान प्रायोगिक मिशनों पर जानवरों को नहीं भेजना है. इसलिए विशेष रोबोट ‘व्योममित्र’ बनाया गया. यह रोबोट अंतरिक्ष में लंबी अवधि के दौरान भारहीनता और अंतरिक्ष के विकिरणों का मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को समझाएगा.

    vyom mitra humanoid robot isro transparent background compressed image

    व्योममित्र माइक्रोग्रैविटी प्रयोगों को करने, मॉड्यूल मापदंडों की निगरानी करने और मानव जैसे कार्यों का अनुकरण करके वास्तविक मानव मिशन के लिए इसरो का मदद करेगा. इसे हिंदी और अंग्रेजी बोलने और मिशन से जुड़े कई अन्य कार्य करने के लिए खासतौर से प्रोग्राम किया गया है.

    इसमें आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के वजह से इसमें अंतरिक्ष में मानव जीवन के चुनौतियों से जुड़े लक्षण डाले गए है. यह मानव गतिविधि की नकल कर सकता है. विभिन्न मनुष्यों को पहचान सकता है और उनके प्रश्नों का उत्तर दे सकता है. तकनीकी रूप से, यह पर्यावरण नियंत्रण, जीवन समर्थन प्रणाली के निगरानी, स्विच पैनल संचालन जैसे कार्य कर सकता है. साथ ही, पर्यावरणीय वायु दबाव परिवर्तन का चेतावनी देने में भी यह सक्षम है. इसके इन खासियतों का उपयोग क्रू मॉड्यूल का वातावरण का अध्ययन में किया जाएगा.

    गगनयान मिशन से जुड़े प्रौद्यौगिकी (Technologies of Gaganyaan Mission)

    प्रक्षेपण रॉकेट (Launching Rocket)

    इसरो गगनयान मिशन के लिए प्रक्षेपण यान मार्क-III (LVM-III) रॉकेट सिस्टम का इस्तेमाल करने जा रहा है. इसे पहले जीएसएलवी (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) कहा जाता था. एलवीएम-III तीन चरणों वाला रॉकेट सिस्टम है, जिसमें ठोस, तरल और क्रायोजेनिक चरण शामिल है.

    इस रॉकेट ने 18 अप्रैल 2001 को पहला सफल उड़ान भरने के बाद कई कामयाबी हासिल किए है. लेकिन उपग्रहों को और इंसानों को अंतरिक्ष में ले जाना दो अलग-अलग चुनौती पेश करते है. जहाँ उपग्रह के लिए धरती जैसा पर्यावरण का जरूरत नहीं होता, वहीं इंसानों के लिए यह जरूरी है. साथ ही, जीवन हानि से बचना भी एक चुनौती होता है.

    इसके लिए इसरो ने विशेष तैयारियां किए और कई परीक्षण सफल होने के बाद आगे भी परिक्षीण किए जा रहे है. इसरो ने प्रक्षेपण यान के लिए विश्वसनीयता लक्ष्य 0.99 निर्धारित किया है, जिसका अर्थ है कि सौ प्रक्षेपणों में से केवल एक ही विफल हो सकता है.

    इस सिस्टम में क्रू एस्केप सिस्टम (CES) जोड़ा गया है, जो त्वरित और उच्च ज्वलनशीलता दर वाले ठोस मोटर्स के एक सेट द्वारा संचालित होता है. यह किसी भी आपात स्थित में क्रू मॉड्यूल को सुरक्षित दूरी पर ले जाने में सक्षम है. इंसानों को अंतरिक्ष में पहुँचाने के लिए इस तरह के कई अन्य उपकरण जोड़े गए है, इसी वजह से इसे HLVM-III नाम दिया गया है, जिसमें ‘एच’ का अर्थ ह्यूमन रेटेड होता है.

    लॉन्च पोर्ट (Launch Port)

    जिस मॉडल से रॉकेट यान को प्रक्षेपित किया जाता है, उसे लॉन्च पोर्ट कहा जाता है. इसे ख़ास तरह से बनाया जाता है, ताकि किसी भी दुर्घटना के परिस्थिति में इसे तुरंत नियंत्रित किया जा सके.

    कृत्रिम उपग्रह और इंसानो को एक समान तरीके से प्रक्षेपित नहीं किया जा सकता है. कृत्रिम उपग्रह को यान के नोज कोन के अंदर पैक करने के बाद इसके ऊपर पेलोड रख दिया जाता है. फिर इसे प्रक्षेपण स्थल पर ले जाकर उड़ान के लिए स्थापित किया जाता है.

    लेकिन, इंसानी उड़ान में, उड़ान से कुछ देर पहले ही अंतरिक्ष यात्रियों को क्रू मॉड्यूल में बैठाना होता है. इसलिए लॉन्च पैड में बबल लिफ्ट के साथ एक नाभि टॉवर लगाया जा रहा है, जिसके माध्यम से एस्ट्रोनॉट क्रू मॉड्यूल में उड़ान से कुछ समय पहले चढ़ पाएंगे.

    लॉन्च पोर्ट में यह ख़ास बदलाव सिर्फ गगनयान मिशन को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. भविष्य में गगनयान मिशन जैसे और भी लक्ष्यों के लिए एक तीसरा लॉन्च पोर्ट भी श्रीहरिकोटा में तैयार किया जा रहा है, जिसका उपग्रह प्रक्षेपण में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा.

    गगनयान मिशन का ऑर्बिटर मॉड्यूल (Orbiter Module of Gaganyaan Mission in Hindi)

    यह क्रू मॉड्यूल (Crew Module) और सर्विस मॉड्यूल (Service Module) के सम्मिलित रूप को ऑर्बिटल मॉड्यूल (Orbiter Module) कहा जाता है. यान के सर्विस मॉड्यूल में दो फोटोवोल्टिक सौर अरे (Solar Array) होंगे, जो लिथियम आयन बैटरियों को चार्ज करेंगे. इनका बिजली उत्पादन क्षमता 5-6 किलोवाट होगी, जो मिशन के दौरान आवश्यक बिजली का आपूर्ति करेगा. क्रू मॉड्यूल को दो तरल-प्रणोदक इंजनों द्वारा संचालित सर्विस मॉड्यूल के साथ जुड़ा होगा. गगनयान मिशन का यह हिस्सा सबसे अहम और चुनौतीपूर्ण है.

    orbiter module crew module and service module combined transparent background image
    ऊपरी पीले रंग का हिस्सा क्रू मॉड्यूल और निचला स्लेटी रंग का सिरा सर्विस मॉड्यूल है.

    अंतरिक्ष वायुमंडल और दवाब विहीन होता है. इसलिए, मनुष्यों को ले जाने वाले अंतरिक्ष यान इस तरह से सीलबंद होता है, जिससे बाहरी वातावरण का कोई भी प्रभाव अंदर महसूस न हो. इसमें परिचालन और आपातकाल से जुड़े आवश्यक प्रणाली भी होना चाहिए.

    मानव जीवन के सुरक्षा के लिए क्रू मॉड्यूल काफी अहम होता है. गगनयान मिशन के क्रू मॉड्यूल में वांछित वायु दबाव, आर्द्रता और तापमान होगा. यह आग या अन्य आपात स्थितियों का पता लगाने वाले सेंसर और दमन करने के लिए उपकरणों से सुसज्जित होते है. यहां भोजन तैयार करने और मानव मल के सुरक्षित निपटान की सुविधा भी होती है.

    अंतरिक्ष के निर्वात और कठोर वातावरण से क्रू मॉड्यूल को बचाने के लिए इसरो इसे पर्यावरण नियंत्रण और जीवन समर्थन प्रणाली (ईसीएलएसएस) से सुसज्जित कर रहा है. थर्मल और आर्द्रता नियंत्रण प्रणाली (THCS), CO2 और गंध हटाने की प्रणाली (CORS) और केबिन दबाव नियंत्रण प्रणाली (CPCS) सहित ECLSS की विभिन्न उप-प्रणालियों को केबिन पर्यावरण सिमुलेशन चैंबर में एकीकृत किया गया है. ये प्रणाली क्रू मॉड्यूल में लगभग पृथ्वी के समान पर्यावरण बनाए रखने में सक्षम है.

    अंतरिक्ष सूट (Space Suits)

    इसरो ने गगनयान मिशन के लिए खासतौर पर स्पेस सूट का निर्माण किया है. इसरों ने 6 से 8 सितंबर, 2018 के दौरान आयोजित बेंगलुरु स्पेस एक्सपो (बीएसएक्स-2018) में गगनयान क्रू मॉडल और नारंगी अंतरिक्ष सूट प्रदर्शित किया था. अंतरिक्ष सूट विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम में डिजाइन किए गए है, जिसका निर्माण बेंगलुरु में DEBEL/DRDO द्वारा किया गया है.

    नारंगी रंग सबसे अधिक और आसानी से दिखने वला रंग है. राहत और बचाव को ध्यान में रखकर इसे नारंगी रंग का बनाया गया है.

    हेलमेट को पॉलीकार्बोनेट से बनाया गया है, जो छोटे सूक्ष्म उल्कापिंडों से सुरक्षा प्रदान करने के में सक्षम है. इसमें स्थित प्लास्टिक बुलबुले में दबावयुक्त ऑक्सीजन होती है, जिसे अंतरिक्ष यात्री सांस ले सकते है. हेलमेट में स्थित एक ट्यूब धड़ खंड में बैग में रखे तरल पदार्थ से जुड़ा है, एस्ट्रोनॉट प्यास लगने पर ट्यूब को चूसकर पानी पी सकते है. हेलमेट के अंदर हेडपीस (स्नूपी कैप) में एक माइक्रोफोन और हेडसेट है. इसका इस्तेमाल धरती पर और यात्रियों के बीच सम्पर्क स्थापित करने में किया जाएगा.

    सूट का ऊपरी धड़ फाइबरग्लास से बना है और लाइफ सपोर्ट सिस्टम बैकपैक की तरह सूट के पिछले हिस्से से जुड़ा हुआ है. लिथियम हाइड्रॉक्साइड के कनस्तर हवा से कार्बन डाइऑक्साइड सोख लेंगे और ऑक्सीज़न का सही मात्रा बनाए रखेंगे. यह स्कूबा गोताखोरों द्वारा उपयोग किए जाने वाले रिब्रीथर्स के समान है.ऑक्सीजन टैंक यात्रियों को ताजा और शुद्ध ऑक्सीज़न मुहैया करवाते रहेंगे. स्पेससूट की आंतरिक परतों में हाथों और पैरों के नीचे की तरफ जाने वाले पाइप लगे है, जो शीतलन और वेंटिलेशन का काम करेगा.

    जीवन समर्थन प्रणाली द्वारा शीतलन के लिए आपूर्ति किया गया पानी, गर्मी को नियंत्रित रखता है. इस प्रणाली द्वारा संघनन को रोकने के लिए पसीने को अवशोषित भी किया जाता है.

    इन खासियतों के कारण गगनयान मिशन के व्योमनॉटस को अतिरिक्त सुरक्षा मिलेगा. केबिन क्रू भी जीवन सुरक्षा प्रणालियों से लैस होंगे.

    आपातकालीन बचाव प्रणाली (Emergency Rescue System)

    एचएलवीएम-III के नाक शंकु के शीर्ष पर एक अतिरिक्त छोटा रॉकेट है, जिसे एस्केप टावर कहा जाता है. कक्षीय (ऑर्बिट) मॉड्यूल इस आपातकालीन निकास प्रणाली से जुड़ा हुआ है. रॉकेट के साथ कुछ भी गलत होने पर, एस्केप टॉवर में सात विशेष रूप से डिजाइन किए गए त्वरित-अभिनय ठोस ईंधन मोटर्स चालू हो जाते हैं और मनुष्यों सहित मॉड्यूल को मुख्य रॉकेट से दूर खींच लेते हैं. एक बार जब यह सुरक्षित दूरी पर पहुंच जाता है, तो पैराशूट खुल जाते है और क्रू मॉड्यूल को सुरक्षित रूप से उतार लिया जाता है. गगनयान मिशन को सुरक्षित बनाने के लिए इस प्रणाली को अलग से एलवीएम-III में जोड़ा गया है.

    5 जुलाई, 2018 को इसरो ने क्रू एस्केप असेंबली परीक्षण आयोजित किया गया था. इसे पैड एबॉर्ट टेस्ट कहा जाता है. 12.6 टन वजन वाले मॉक क्रू मॉड्यूल को एस्केप टॉवर से जोड़ा गया था और बचाव का परिक्षण किया गया था. क्रू मॉड्यूल के साथ क्रू एस्केप सिस्टम लगभग 2.75 किमी तक आसमान की ओर उड़ गया. फिर क्रू मॉड्यूल पैराशूट के जरिए धरती पर उतर गया. इस तरह यह प्रायोगिक परीक्षण सफल रहा.

    गगनयान मिशन का कार्यप्रणाली (Working System of Gaganyaan Mission in Hindi)

    ISRO Gaganyaan Mission Launching and Splashdown at Arabian Sea off Gujarat Infographics explained

    “गगनयान मिशन” को श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी एम-III रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित किया जाएगा. यह ऑर्बिट मॉड्यूल को 16 मिनट में धरती के नीचले कक्षा (Low Earth Orbit) में पहुंचा देगा. इसके बाद ऑर्बिट मॉड्यूल और रॉकेट प्रक्षेपण प्रणाली अलग हो जाएंगे. फिर, ऊर्जा उत्पादन के लिए सर्विस मॉड्यूल में लगा सोलर पैनल खुलकर फ़ैल जाएगा. इस दौरान सर्विस मॉड्यूल का प्रोपलशन सिस्टम, अपने नोदन द्वारा क्रू मॉड्यूल को आगे बढ़ने में मदद करेगा. इसके बाद करीब तीन दिनों तक अंतरिक्ष यात्री ऑर्बिट मॉड्यूल के साथ धरती का चक्कर लगाएंगे.

    वापसी के क्रम में, सर्विस मॉड्यूल में लगा डीबूस्टर ब्लास्ट होगा और क्रू मॉड्यूल को धरती के तरफ धक्का देगा. इसके बाद सर्विस मॉड्यूल और क्रू मॉड्यूल अलग हो जाएंगे. क्रू मॉड्यूल तेजी से धरती के वायुमंडल में प्रवेश करने लगेगा. उचित ऊंचाई पर इसमें लगे दोनों पैराशूट खुल जाएंगे और धीरे-धीरे यह समुद्र में उतर जाएगा. इस प्रक्रिया को स्प्लैशडोन (Splashdown) कहा जाता है. यह सबसे सुरक्षित तरीकों में से एक है. नासा द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र से भी एस्ट्रोनॉट्स को इसी तकनीक से वापस लाया जाता है. समुद्र में नौसेना के मदद से अंतरिक्ष यात्रियों को बरामद कर वापस लाया जाएगा.

    इस तरह गगनयान मिशन सम्प्पन्न करने का योजना है. उपरोक्त तथ्यों को ऊपर दिए गए तस्वीर में भलीभांति समझाया गया है.

    मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र (एचएसएफसी)- Human Space Flight Centre (HSFC)

    इसरो ने 30 जनवरी 2019 को बेंगलुरु में इसरो मुख्यालय परिसर में एक मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र (एचएसएफसी) स्थापित किया है. गगनयान मिशन में प्रशिक्षण और मानव जीवन के महत्वपूर्ण तकनीकी पहलुओं को ध्यान में रखने के लिए इस केंद्र का स्थापना किया गया है.

    इसका काम एंड-टू-एंड मिशन योजना, अंतरिक्ष में चालक दल के अस्तित्व के लिए इंजीनियरिंग सिस्टम का विकास, चालक दल का चयन और प्रशिक्षण और निरंतर मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशनों से जुड़े तकनीकों का विकास शामिल है. अंतरिक्ष में मानव जीवन को बचाए रखने के उद्देश्य से यह इसरो व सम्बद्ध संगठनों के साथ एक नोडल एजेंसी के तौर पर काम कर रहा है.

    अंतरिक्ष यात्री और उनका प्रशिक्षण (Astronauts and their Training in Hindi)

    भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को “व्योमनॉट्स” नाम दिया गया है. इसरो के एचएसएफसी और ग्लेवकोस्मोस ने भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के चयन, समर्थन, चिकित्सा परीक्षण और अंतरिक्ष प्रशिक्षण में सहयोग के लिए 1 जुलाई 2019 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. ग्लेवकोस्मोस रूस सरकार की कम्पनी, रोस्कोस्मोस की सहायक कंपनी है.

    इसरो ने अंतरिक्ष में मानव जीवन को समर्थ बनाने वाले कुछ प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए रूस के मॉस्को में तकनीकी संपर्क इकाई (आईटीएलयू) स्थापित किया है.

    चालक दल का स्क्रीनिंग और चयन, चालक दल के स्वास्थ्य प्रबंधन, यात्रा के बाद पुनर्वास आदि का काम भारतीय वायुसेना को सौंपा गया है. गगनयान मिशन के लिए भारतीय वायुसेना यह काम इसरो के परामर्श से तैयार व्यापक रोडमैप के अनुसार करेगी.

    चालक दल का चयन भारतीय वायुसेना और इसरो द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा. यह चयन प्रक्रिया तीन चरणों में संपन्न किया गया. पहले 100 उम्मीदवारों का चयन उनके गुणों और कौशल के आधार पर किया गया. फिर, कठिन शारीरिक व्यायाम, प्रयोगशाला जांच, रेडियोलॉजिकल परीक्षण, नैदानिक ​​परीक्षण और उनके मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर मूल्यांकन किया गया.

    इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन में कठोर प्रशिक्षण के अंत में 10 शॉर्टलिस्ट किए गए व्योमनॉट्स में से केवल छह को रोस्कोसमोस में अग्रिम प्रशिक्षण के लिए भेजने का गोपनीय योजना है. इसमें सोयुज अंतरिक्ष यान पर प्रशिक्षण का एक छोटा मॉड्यूल शामिल है. अंत में, पहले गगनयान मिशन में भाग लेने के लिए केवल 2-3 व्योमनॉट्स को चुना जाएगा.

    गगनयान मिशन से जुड़े चुनौतियाँ (Challenges of Gaganyaan Mission)

    अंतरिक्ष में मानव जीवन के अनुकूल वातावरण नहीं होता है. साथ ही, यहाँ कृत्रिम रूप से मानव जीवन को समर्थन करने वाले वातावरण का निर्माण भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है. इन्हीं वजहों से गगणयान मिशन को कई तरह के चुनौतियों का सामना करना होगा. इनके सफल समाधान से ही इसरो का पहला मानव मिशन सफलता के झंडे गाड़ सकता है.

    1. पर्यावरणीय खतरे: अंतरिक्ष का पर्यावरण मानव जीवन के प्रतिकूल है. यहां गुरुत्वाकर्षण और वायुमंडल नहीं है और अंतरिक्ष विकिरण का ख़तरा है. अंतरिक्ष यात्रियों को प्रतिकूल अंतरिक्ष वातावरण के कारण चिकित्सीय समस्याएं हो सकती हैं.
    2. सूक्ष्मगुरुत्वाकर्षण (Microgravity): पृथ्वी और अंतरिक्ष का गुरुत्वाकर्षण अलग-अलग है. इसलिए अंतरिक्षयात्रियों द्वारा गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बदलने से उनके हाथ-आंख और सिर-आंख समन्वय प्रभावित होने का संभावना रहता है. अंतरिक्ष के माइक्रोग्रैविटी में अंतरिक्ष यात्री अक्सर अपना अभिविन्यास (Orientation), दृष्टि, मांसपेशियों की ताकत, एरोबिक क्षमता, वजन और हड्डी का घनत्व खो देते हैं. वजन घटना, आपातकालीन वापसी को चुनौतीपूर्ण बना देता है. अंतरिक्ष वायुदाब में कमी से इंसानी खून खौलने लगता है. इसलिए क्रू केबिन के अंदर हमेशा वायुदाब और उचित वातावरण बनाए रखना होता है.
    3. विकिरण (Radiation): अंतरिक्ष में विकिरण का मात्रा धरती से काफी अधिक होता है. यह कैंसर रोग का खतरा बढ़ा देता है. यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकता है. विकिरण से मतली, उल्टी, एनोरेक्सिया और थकान भी हो सकती है. अंतरिक्ष में सूर्य के लपटों से निकलने वाले उच्च ऊर्जा वाले प्रोटोन भी बीमारी या मौत का कारण बन सकते है.
    4. संवेदी तंत्र और मानसिक स्वास्थ्य: अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स के सुनने, सूंघने, समझने देखने, छूने और स्वाद लेने जैसे संवेदनाए प्रभावित हो सकते है. यात्रा के दौरान संवेदी प्रणालियों में परिवर्तन से अंतरिक्ष यात्रियों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है. साथ ही, यात्रा के दौरान दुनिया से कटे रहने और एकांतवास से भी एस्ट्रोनॉट्स के प्रभावित होने का खतरा होता है. इस दौरान केबिन फीवर जैसे लक्षण भी पैदा हो सकते है.
    5. जीवन रक्षा प्रणाली: अंतरिक्ष में सभी वस्तुएं तैरते है. इसलिए इस दौरान धरती के तरह खुले में खाना बनाने से ये भोजन हवा में तैर सकते है. इसलिए, यात्रियों को इसके लिए ख़ास वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा भोजन तैयार करने के लिए प्रशिक्षित होना होता है.
      • क्रू केबिन में ऑक्सीज़न और वायुदवाब बनाए रखना भी चुनौतीपूर्ण होता है. इसलिए भारत ने इस संबंध में रूस से भी कुछ समझौते किए है. इसरो का पर्यावरण नियंत्रण और जीवन समर्थन प्रणाली (Environmental Control and Life Support System (ECLSS) इस चुनौती से निपटने के लिए खासतौर से तैयार किया गया है. इसे ऑर्बिट मॉड्यूल में स्थापित किया गया है.

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