ब्रिटिश शासन के दौर में भारत के शासन के लिए भारत में गवर्नर, गवर्नर जनरल तथा वायसराय शीर्ष अधिकारी होते थे. गवर्नर, गवर्नर-जनरल और वायसराय की भूमिकाएँ आपस में समबंधित थीं. फिर भी समय के साथ उनकी शक्तियों और उपाधियों में महत्वपूर्ण बदलाव हुए.
गवर्नर (Governor)
भारत में ब्रिटिश सत्ता की शुरुआत में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी व्यापारिक बस्तियों, जैसे मद्रास, बम्बई और कलकत्ता, का प्रबंधन करने के लिए गवर्नर नियुक्त किए. इन गवर्नरों की शक्तियां मुख्य रूप से संबंधित प्रेसीडेंसी तक सीमित थीं. ये अपनी-अपनी प्रेसीडेंसी के नागरिक, सैन्य और राजस्व प्रशासन के लिए जिम्मेदार थे. उनका प्राथमिक कार्य कंपनी के व्यापारिक हितों को बढ़ावा देना और अपने क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था बनाए रखना था.
ब्रिटिश दौर में बंगाल के गवर्नर इस प्रकार हैं:
लार्ड क्लाइव (1757 ई. से 1760 ई और .1765 ई. से 1767 ई.)
- लार्ड क्लाइव को भारत मेँ अंग्रेजी शासन का संस्थापक माना जाता है.
- ईस्ट इंडिया कंपनी ने क्लाइव को 1757 में बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया. क्लाइव ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत मेँ नियुक्त होने वाला प्रथम गवर्नर था.
- भारत मेँ अंग्रेजी शासन की स्थापना मेँ निर्णायक माने जाने वाला 1757 का प्लासी का युद्ध क्लाइव के नेतृत्व में लड़ा गया.
- बंगाल के गवर्नर के रुप मेँ अपने दूसरे कार्यकाल मेँ बरार के युद्ध के बाद क्लाइव ने मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय से इलाहाबाद की संधि की.
- 1764 मेँ ऐतिहासिक बक्सर युद्ध के समय वन्सिटार्ट (1760 – 1765) बंगाल का गवर्नर था.
- इलाहाबाद की संधि के बाद क्लाइव ने बंगाल मेँ द्वैध शासन की नींव रखी.
- द्वैध शासन के दौरान क्लाइव ने वेरेल्स्ट (1767 – 1769) और कर्टियर (1769 – 1772) बंगाल के गवर्नर रहे.
- द्वैध शासन के दौरान कंपनी के अधिकारियो मेँ व्याप्त भ्रष्टाचार को कम करने के लिए क्लाइव ने सोसाइटी ऑफ ट्रेड की स्थापना की.
गवर्नर-जनरल (Governor-General)
1773 के रेगुलेटिंग एक्ट ने बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर-जनरल बना दिया. यह भारत में ब्रिटिश शासन के केंद्रीकरण की दिशा में पहला कदम था. 1833 के चार्टर एक्ट के बाद, बंगाल के गवर्नर-जनरल को भारत का गवर्नर-जनरल बना दिया गया. इस पद को भारत में सभी ब्रिटिश क्षेत्रों पर पूर्ण नागरिक और सैन्य अधिकार दिए गए थे, जिससे ब्रिटिश सत्ता का और अधिक केंद्रीकरण हुआ.
गवर्नर-जनरल कंपनी की ओर से प्रमुख कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य करता था और ब्रिटिश सरकार के प्रति जवाबदेह था. वह महत्वपूर्ण नीतियों और सुधारों को लागू करने के लिए जिम्मेदार था. ब्रिटिश दौर में बंगाल के गवर्नर जनरल इस प्रकार हैं:
वारेन हैस्टिंग्स (1772 – 1785 ई.)
- 1772 में कर्टियर के बाद वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का गवर्नर बनाया गया. ये बंगाल के अंतिम गवर्नर और पहले गवर्नर जनरल बने. इसने बंगाल मेँ चल रहै द्वैध शासन को समाप्त कर बंगाल का शासन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के अधीन कर लिया.
- 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्वारा वारेन हैस्टिंग्स बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया.
- वारेन हेस्टिंग्स ने बंगाल की राजधानी को कोलकाता लाकर भारत मेँ अंग्रेजी साम्राज्य की राजधानी घोषित किया.
- वारेन हेस्टिंग्स ने 1776 मेँ कानून संबंधी एक संहिता का निर्माण करवाया जिसे ए कोड ऑफ जेंटू कहा जाता है.
- इसके समय में बंगाल के एक समृद्ध ब्राह्मण, नंद कुमार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर अभियोग चलाया गया.
- प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध वारेन हेस्टिंग्स के शासन काल मेँ हुआ था.
- इसके समय मेँ द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1780 – 1784) हुआ.
- वारेन हैस्टिंग्स के कार्यकाल मेँ पिट्स इंडिया एक्ट पारित हुआ, जिसके द्वारा बोर्ड ऑफ कंट्रोल की स्थापना हुई.
- वारेन हैस्टिंग्स के 1785 ई. मेँ वापस इंग्लैण्ड जाने के बाद मैक्फर्सन फरवरी 1785 से सितंबर 1786 ई. तक बंगाल का गवर्नर रहा.
लार्ड कार्नवालिस (1786 ई. से 1793 ई.)
- कार्नवालिस को भारत मेँ एक निर्माता एवं सुधारक के रुप मेँ याद किया जाता है.
- कार्नवालिस को सिविल सेवा का जनक कहा जाता है. इसने कलेक्टर के अधिकारोँ को सुनिश्चित किया और उनके वेतन का निर्धारण किया.
- कार्नवालिस ने भारत मेँ ब्रिटेन से भी पहले पुलिस व्यवस्था की स्थापना की इसलिए इसे पुलिस व्यवस्था का जनक भी कहा जाता है.
- कॉर्नवालिस ने प्रशासनिक व्यवस्था को व्यवस्थित करने के लिए 1793 मेँ एक नियम बनाया जिसे कार्नवालिस कोड के नाम से भी जाना जाता है. इस कोड के अनुसार कार्नवालिस ने कार्यपालिका एवं नयायपालिका की शक्तियोँ का विभाजन किया.
- 1790 – 1792 ई. में तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध कार्नवालिस के कार्यकाल मेँ हुआ.
- 1793 मेँ कार्नवालिस ने बंगाल बिहार और उड़ीसा मेँ स्थाई बंदोबस्त लागू किया.
- 1895 मेँ कॉर्नवालिस की मृत्यु हो गई गाजीपुर मेँ इसका मकबरा बनाया गया है जिसे लाट साहब का मकबरा कहा जाता है.
सर जॉन शोर (1793 ई. से 1798 ई.)
- कार्नवालिस के बाद सर जॉन शोर को बंगाल का गवर्नर जनरल बनाया गया. इसके कार्यकाल मेँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना खारदा का युद्ध था, जो 1795 में मराठों व निजाम के बीच.
- सर जॉन शोर अपनी अहस्तक्षेप की नीति के कारण विख्यात था. इसके कार्यकाल मेँ बंगाल के अंग्रेज अधिकारियोँ के विद्रोह से स्थिति अनियंत्रित हो गई, जिससे 1798 में इसे इंग्लैण्ड वापस बुला लिया गया.
लार्ड वेलेजली (1798 ई. से 1805 ई.)
- लार्ड वेलेजली ने शांति की नीति का परित्याग कर केवल युद्ध की नीति का अवलंबन किया.
- लार्ड वेलेजली ने साम्राज्य विस्तार की नीति को अपनाते हुए भारतीय राज्योँ को शासन ब्रिटिश शासन की परिधि मेँ लाने के लिए सहायक संधि प्रणाली का प्रयोग किया.
- लार्ड वेलेजली, कंपनी को भारत की सबसे बडी शक्ति बनाना चाहता था, उसके प्रदेशो का विस्तार कर भारत के सभी राज्योँ को कंपनी पर निर्भर होने की स्थिति मेँ लाना चाहता था.
- सहायक संधि पर हस्ताक्षर करने वाले राज्यों में हैदराबाद तथा फिर मैसूर, तंजौर, अवध, जोधपुर, जयपुर, बूंदी, भरतपुर और पेशावर शामिल थे.
- वेलेजली के कार्यकाल मेँ चौथा आंग्ल मैसूर युद्ध हुआ. इसने इस युद्ध मेँ टीपू सुल्तान को हराने के पश्चात मैसूर पर अधिकार कर लिया.
- इसने पेशवा के साथ बेसीन की संधि की तथा 1803 – 1805 के दौरान आंग्ल मराठा युद्ध लड़ा.
- अपनी विस्तार नीति के तहत पंजाब सिंधु को छोडकर लगभग संपूर्ण भारत को कंपनी के प्रभाव क्षेत्र मेँ ला दिया.
- लार्ड वेलेजली के कार्यकाल मेँ टीपू सुल्तान ने नेपोलियन से पत्राचार कर भारत से अंग्रेजो को निकालने की योजना बनाई थी.
सर जॉर्ज बार्लो 1805 ई. – 1807 ई.)
वेल्लोर मेँ विद्रोह का दमन
- लार्ड वेलेजली के बाद कार्नवालिस को पुनः 1805 मेँ बंगाल का गवर्नर जनरल बनाकर भेजा गया, किंतु तीन महीने बाद अक्टूबर 1805 मेँ उसकी मृत्यु हो गई.
- कार्नवालिस की मृत्यु के बाद जॉर्ज बार्लो को बंगाल का गवर्नर जनरल बनाया गया.
- जॉर्ज बार्लो ने लार्ड वेलेजली के विपरीत अहस्तक्षेप की नीति का समर्थन किया.
- इसके कार्यकाल मेँ वेल्लोर मेँ 1806 में सिपाहियों ने विद्रोह किया.
- जार्ज बार्लों ने धेलकर के साथ राजपुर घाट की संधि (1805) की.
लॉर्ड मिंटो (1807 ई. से 1807 ई.)
- लॉर्ड मिंटो ने रंजीत सिंह के साथ अमृतसर की संधि की.
- लार्ड मिंटो ने मैल्कम को ईरान तथा एलफिंस्टन को काबुल भेजा.
- इसके कार्यकाल मेँ 1813 का चार्टर अधिनियम पारित हुआ.
- लॉर्ड मिंटो ने फ्रांसीसियों पर आक्रमण करके बोर्बन और मारिशस के द्वीपो पर कब्जा कर लिया.
मार्क्विस हेस्टिंग्स (1813 ई. – 1823 ई.)
- इसके कार्यकाल मेँ आंग्ल नेपाल युद्ध (1814-1816 ई.) हुआ. इस युद्ध मेँ नेपाल को पराजित करने के बाद उसके साथ संगौली की संधि की.
- संगौली की संधि के द्वारा काठमांडू मेँ एक ब्रिटिश रेजिडेंट रखना स्वीकार कर लिया गया. इस संधि द्वारा अंग्रेजो को शिमलाम, मसूरी, रानीखेत एवं नैनीताल प्राप्त हुए.
- लॉर्ड हैस्टिंग्स के कार्यकाल मेँ तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध (1817-1818) हुआ. 1818 मेँ इसने पेशवा का पद समाप्त कर दिया.
- इसने 1817-1818 में पिंडारियों का दमन किया. पिंडारियों के नेता चीतू, वासिल मोहम्मद तथा करीम खां थे.
- लॉर्ड हेस्टिंग्स 1799 मेँ लगाए गए प्रेस प्रतिबंधोँ को हटा दिया.
- इसके कार्यकाल मेँ 1822 मेँ बंगाल मेँ रैयत के अधिकारोँ को सुरक्षित करने के लिए बंगाल काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया.
लॉर्ड एमहर्स्ट (1823 ई. से 1828 ई.)
- लॉर्ड एमहर्स्ट के कार्यकाल मेँ आंग्ल बर्मा युद्ध (1824-1826) हुआ.
- बर्मा युद्ध मेँ सफलता के बाद इसने 1826 मेँ यांद्बू की संधि की जिसके द्वारा बर्मा ने हर्जाने के रूप मेँ ब्रिटेन को एक करोड़ रूपया दिया.
- लॉर्ड एमहर्स्ट 1824 मेँ कोलकाता मेँ गवर्नमेंट संस्कृत कालेज की स्थापना की.
- इसने भरतपुर के दुर्ग पर अधिकार किया तथा बैरकपुर मेँ हुए विद्रोह को दबाया.
ब्रिटिश दौर में सम्पूर्ण भारत के लिए नियुक्त गवर्नर जनरल और उनके कार्यकाल के मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
लॉर्ड विलियम बैंटिक (1828 ई. से 1835 ई.)
- लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत मेँ किए गए सामाजिक सुधारोँ के लिए विख्यात है.
- लॉर्ड विलियम बैंटिक ने कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स की इच्छाओं के अनुसार भारतीय रियासतोँ के प्रति तटस्थता की नीति अपनाई.
- इसने ठगों के आतंक से निपटने के लिए कर्नल स्लीमैन को नियुक्त किया.
- लॉर्ड विलियम बैंटिक के कार्यकाल मेँ 1829 मे सती प्रथा का अंत कर दिया गया.
- लॉर्ड विलियम बैंटिक ने भारत मेँ कन्या शिशु वध पर प्रतिबंध लगाया.
- बैंटिक के ही कार्यकाल मेँ देवी देवताओं को नर बलि देने की प्रथा का अंत कर दिया गया.
- शिक्षा के क्षेत्र मेँ इसका महत्वपूर्ण योगदान था. इसके कार्यकाल मेँ अपनाई गई मैकाले की शिक्षा पद्धति ने भारत के बौद्धिक जीवन को उल्लेखनीय ढंग से प्रभावित किया.
सर चार्ल्स मेटकाफ (1835 ई. से 1836 ई.)
- विलियम बेंटिक के पश्चात सर चार्ल्स मेटकाफ को भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया.
- इसने समाचार पत्रोँ पर लगे प्रतिबंधोँ को समाप्त कर दिया. इसलिए इसे प्रेस का मुक्तिदाता भी कहा जाता है.
लॉर्ड ऑकलैंड (1836 ई. से 1842 ई.)
- लॉर्ड ऑकलैंड के कार्यकाल मे प्रथम अफगान युद्ध (1838 ई. – 1842 ई.) हुआ.
- 1838 में लॉर्ड ऑकलैंड ने रणजीत सिंह और अफगान शासक शाहशुजा से मिलकर त्रिपक्षीय संधि की.
- लॉर्ड ऑकलैंड को भारत मेँ शिक्षा एवं पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति के विकास और प्रसार के लिए जाना जाता है.
- लॉर्ड ऑकलैंड के कार्यकाल मेँ बंबई और मद्रास मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की गई. इसके कार्यकाल मेँ शेरशाह द्वारा बनवाए गए ग्रांड-ट्रंक-रोड की मरम्मत कराई गई.
लॉर्ड एलनबरो (1842 ई. -1844 ई.)
- लॉर्ड एलनबरो के कार्यकाल मेँ प्रथम अफगान युद्ध का अंत हो गया.
- इसके कार्यकाल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना 1843 में सिंध का ब्रिटिश राज मेँ विलय करना था.
- इसके कार्यकाल मेँ भारत मेँ दास प्रथा का अंत कर दिया गया.
लॉर्ड हार्डिंग (1844 ई. से 1848 ई.)
- लॉर्ड हार्डिंग के कार्यकाल मेँ आंग्ल-सिख युद्ध (1845) हुआ, जिसकी समाप्ति लाहौर की संधि से हुई.
- लॉर्ड हार्डिंग को प्राचीन स्मारकोँ के संरक्षण के लिए जाना जाता है. इसने स्मारकों की सुरक्षा का प्रबंध किया.
- लॉर्ड हार्डिंग ने सरकारी नौकरियोँ मेँ नियुक्ति के लिए अंग्रेजी शिक्षा को प्राथमिकता.
लार्ड डलहौजी (1848 ई. से 1856 ई.)
- ये साम्राज्यवादी था लेकिन इसका कार्यकाल सुधारोँ के लिए भी विख्यात है. इसके कार्यकाल मेँ (1851 ई. – 1852 ई.) मेँ द्वितीय आंग्ल बर्मा युद्ध लड़ा गया. 1852 ई. में बर्मा के पीगू राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया.
- लॉर्ड डलहौजी ने व्यपगत के सिद्धांत को लागू किया.
- व्यपगत के सिद्धांत द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य मेँ मिलाये गए राज्यों मेँ सतारा (1848), जैतपुर व संभलपुर (1849), बघाट (1850), उदयपुर (1852), झाँसी (1853), नागपुर (1854) आदि थे.
- लार्ड डलहौजी के कार्यकाल मेँ भारत मेँ रेलवे और संचार प्रणाली का विकास हुआ.
- इसके कार्यकाल मेँ दार्जिलिंग को भारत मेँ सम्मिलित कर लिया गया.
- लार्ड डलहौजी ने 1856 मेँ अवध के नवाब पर कुशासन का आरोप लगाकर अवध का ब्रिटिश साम्राज्य मेँ विलय कर लिया.
- इसके कार्यकाल मेँ वुड का निर्देश पत्र आया जिसे भारत मेँ शिक्षा सुधारों के लिए मैग्नाकार्टा कहा जाता है.
- इसने 1854 में नया डाकघर अधिनियम (पोस्ट ऑफिस एक्ट) पारित किया, जिसके द्वारा देश मेँ पहली बार डाक टिकटों का प्रचलन प्रारंभ हुआ.
- लार्ड डलहौजी के कार्यकाल मेँ भारतीय बंदरगाहों का विकास करके इन्हेँ अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य के लिए खोल दिया गया.
- इसके कार्यकाल मेँ हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हुआ.
वायसराय (Viceroy)
1857 के सिपाही विद्रोह के बाद, भारत सरकार अधिनियम 1858 ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया और भारत को सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया. इसके बाद, भारत के गवर्नर-जनरल को एक नई उपाधि वायसराय दी गई. वायसराय का अर्थ ‘राज-प्रतिनिधि’ होता है, जिसका मतलब है कि वह ब्रिटिश सम्राट या साम्राज्ञी का सीधा प्रतिनिधि था.
इस परिवर्तन ने ब्रिटिश सरकार के प्रति पद की सीधी जवाबदेही को दर्शाया. वायसराय की भूमिका गवर्नर-जनरल के समान ही थी, लेकिन इसकी उपाधि ने भारत में क्राउन के प्रत्यक्ष और संप्रभु शासन पर जोर दिया. वायसराय ब्रिटिश क्राउन और भारत के बीच सीधे संपर्क का माध्यम था, और उसकी शक्तियाँ बहुत व्यापक थीं. वह अपनी कार्यकारी परिषद की मदद से भारत पर शासन करता था.
ब्रिटिश राज में निम्नलिखित वायसराय हुए:
लॉर्ड कैनिंग (1858 ई. से 1862 ई.)
- यह 1856 ई. से 1858 ई. तक भारत का गवर्नर जनरल रहा. यह भारत का अंतिम गवर्नर जनरल था. तत्पश्चात ब्रिटिश संसद द्वारा 1858 में पारित अधिनियम द्वारा इसे भारत के प्रथम वायरस बनाया गया.
- इसके कार्यकाल मेँ IPC, CPC तथा CrPC जैसी दण्डविधियों को पारित किया गया था. इसके शासन काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना 1857 का विद्रोह था.
- इसके कार्यकाल मेँ लंदन विश्वविद्यालय की तर्ज पर 1857 में कलकत्ता, मद्रास और बम्बई विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई.
- 1857 के विद्रोह के पश्चात पुनः भारत पर अधिकार करके मुग़ल सम्राट बहादुर शाह को रंगून निर्वासित कर दिया गया.
- लार्ड कैनिंग के कार्यकाल मेँ भारतीय इतिहास प्रसिद्ध नील विद्रोह हुआ.
- 1861 का भारतीय परिषद अधिनियम इसी के कार्यकाल मेँ पारित हुआ.
लॉर्ड एल्गिन (1864 ई. से 1869 ई.)
- लॉर्ड एल्गिन एक वर्ष की अल्पावधि के लिए वायसरॉय बना. इसने वहाबी आंदोलन को समाप्त किया तथा पश्चिमोत्तर प्रांत मेँ हो रहे कबायलियोँ के विद्रोहों का दमन किया.
सर जॉन लारेंस (1864 ई. से 1869 ई.)
- इसने अफगानिस्तान मेँ हस्तक्षेप न करने की नीति का पालन किया.
- इसके कार्यकाल मेँ यूरोप के साथ दूरसंचार व्यवस्था (1869 ई. से 1870 ई.) कायम की गई.
- इसके कार्यकाल मेँ कलकत्ता, बंबई और मद्रास मेँ उच्च न्यायालयोँ की स्थापना की गई.
- अपने महान अभियान के लिए भी इसे जाना जाता है.
- इसके कार्यकाल मेँ पंजाब का काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया.
लॉर्ड मेयो (1869 ई. से 1872 ई.)
- इसके कार्यकाल मेँ भारतीय सांख्यिकी बोर्ड का गठन किया गया.
- इसके कार्य काल मेँ सर्वप्रथम 1871 मेँ भारत मेँ जनगणना की शुरुआत हुई.
- इसने कृषि और वाणिज्य के लिए एक पृथक विभाग की स्थापना की.
- लॉर्ड मेयो की हत्या के 1872 मेँ अंडमान मेँ एक कैदी द्वारा कर दी गई थी.
- इसने राजस्थान के अजमेर मेँ मेयो कॉलेज की स्थापना की.
लॉर्ड नाथ ब्रुक (1872 ई. से 1876 ई.)
- नार्थब्रुक ने 1875 में बड़ौदा के शासक गायकवाड़ को पदच्युत कर दिया.
- इसके कार्यकाल प्रिंस ऑफ वेल्स एडवर्ड तृतीय की भारत यात्रा 1875 में संपन्न हुई.
- इसके कार्यकाल मेँ पंजाब मेँ कूका आंदोलन हुआ.
लार्ड लिटन (1876 ई. से 1880 ई.)
- इसके कार्यकाल मेँ राज उपाधि-अधिनियम पारित करके 1877 मेँ ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को कैसर-ए-हिंद की उपाधि से विभूषित किया गया.
- 1878 में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पारित किया गया जिसे एस. एन. बनर्जी ने आकाश से गिरे वज्रपात की संज्ञा दी थी.
- लार्ड लिटन एक विख्यात कवि और लेखक था. विद्वानोँ के बीच इसे ओवन मेरेडिथ के नाम से जाना जाता था.
- 1878 मेँ स्ट्रेची महोदय के नेतृत्व मेँ एक अकाल आयोग का गठन किया गया.
- लिटन ने सिविल सेवा मेँ प्रवेश की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दी.
लार्ड रिपन (1880 ई. से 1884 ई.)
- 1881 में प्रथम कारखाना अधिनियम पारित हुआ.
- इसने 1882 मे वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया. इसलिए इसे प्रेस का मुक्तिदाता कहा जाता है.
- रिपन के कार्यकाल मेँ सर विलियम हंटर की अध्यक्षता मेँ एक शिक्षा आयोग, हंटर आयोग का गठन किया गया.
- 1882 मेँ स्थानीय स्व-शासन प्रणाली की शुरुआत की.
- 1883 मेँ इलबर्ट बिल विवाद रिपन के ही कार्यकाल मेँ हुआ था.
लार्ड डफरिन (1884 ई. से 1888 ई.)
- इसके कार्यकाल मेँ तृतीय-बर्मा युद्ध के द्वारा बर्मा को भारत मेँ मिला लिया गया.
- इसके कार्यकाल मेँ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की गई.
- लॉर्ड डफरिन के कार्यकाल मेँ अफगानिस्तान के साथ उत्तरी सीमा का निर्धारण किया गया.
- इसके कार्यकाल मेँ बंगाल (1885), अवध (1886) और पंजाब (1887) किराया अधिनियम पारित किया गया.
लार्ड लेंसडाउन (1888 ई. से 1893 ई.)
- इसके कार्यकाल मेँ भारत का तथा अफगानिस्तान के बीच सीमा रेखा का निर्धारण किया गया जिसे डूरंड रेखा के नाम से जाना जाता है.
- इसके कार्यकाल मेँ 1819 का कारखाना अधिनियम पारित हुआ.
- ‘एज ऑफ़ कमेट’ बिल का पारित होना इसके कार्यकाल की महत्वपूर्ण घटना है.
- इसने मणिपुर के टिकेंद्रजीत के नेतृत्व मेँ विद्रोह का दमन किया.
लार्ड एल्गिन द्वितीय (1894 ई. से 1899 ई.)
- लॉर्ड एल्गिन के कार्यकाल मेँ भारत मेँ क्रांतिकारी आतंकवाद की घटनाएँ शुरु हो गई.
- पूना के चापेकर बंधुओं द्वारा 1897 मेँ ब्रिटिश अधिकारियोँ की हत्या भारत मेँ प्रथम राजनीतिक हत्या थी.
- इसने हिंदूकुश पर्वत के दक्षिण के एक राज्य की त्रिचाल के विद्रोह को दबाया.
- इसके कार्यकाल मेँ भारत मेँ देशव्यापी अकाल पड़ा.
लार्ड कर्जन (1899 ई. से 1905 ई.)
- उसके कार्यकाल मेँ फ्रेजर की अध्यक्षता मेँ पुलिस आयोग का गठन किया गया. इस आयोग की अनुशंसा पर सी.आई.डी की स्थापना की गई.
- इसके कार्यकाल मेँ उत्तरी पश्चिमी सीमावर्ती प्रांत की स्थापना की गई.
- शिक्षा के क्षेत्रत्र मेँ 1904 मेँ विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया.
- 1904 मेँ प्राचीन स्मारक अधिनियम परिरक्षण अधिनियम पारित करके भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान की स्थापना की गई.
- इसके कार्यकाल मेँ बंगाल का विभाजन हुआ, जिससे भारत मे क्रांतिकारियो की गतिविधियो का सूत्रपात हो गया.
लार्ड मिंटो द्वितीय (1905 ई. से 1910 ई.)
- 1906 ई. मेँ मुस्लिम लीग की स्थापना हुई.
- इसके कार्यकाल मेँ कांग्रेस का सूरत अधिवेशन हुआ, जिसमेँ कांग्रेस का विभाजन हो गया.
- मार्ले मिंटो सुधार अधिनियम 1909 मेँ पारित किया गया.
- इसके काल काल मेँ 1908 का समाचार अधिनियम पारित हुआ.
- इसके काल मेँ प्रसिद्ध क्रांतिकारी खुदीराम बोस को फांसी की सजा दे दी गई.
- इसके कार्यकाल मेँ अंग्रेजों ने भारत मेँ ‘बांटो और राज करो’ की नीति औपचारिक रुप से अपना ली.
- वर्ष 1908 मेँ बाल गंगाधर तिलक को 6 वर्ष की सजा सुनाई गई.
लार्ड हार्डिंग द्वितीय (1910 ई. से 1916 ई.)
- 1911 मेँ जॉर्ज पंचम के आगमन के अवसर पर दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया.
- 1911 मेँ ही बंगाल विभाजन को रद्द करके वापस ले लिया गया.
- 1911 मेँ बंगाल से अलग करके बिहार और उड़ीसा नए राज्य बनाए गए.
- 1912 मेँ भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया.
- प्रथम विश्व युद्ध में भारत का समर्थन प्राप्त करने में लार्ड हार्डिंग सफल रहा.
लार्ड चेम्सफोर्ड (1916 ई. से 1921 ई.)
- इसके काल मेँ तिलक और एनी बेसेंट ने होम रुल लीग आंदोलन का सूत्रपात किया.
- 1916 मेँ कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच एक समझौता हुआ, जिसे लखनऊ पैक्ट के नाम से जाना जाता है.
- पंडित मदन मोहन मालवीय ने बनारस मेँ काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना 1916 मेँ की थी.
- खिलाफत और असहयोग आंदोलन का प्रारंभ हुआ.
- अलीगढ विश्वविद्यालय की स्थापना की गई.
- महात्मा गांधी ने रौलेट एक्ट के विरोध मेँ आंदोलन शुरु किया.
- 1919 मेँ जलियाँ वाला बाग हत्याकांड इसी के कार्यकाल मेँ हुआ.
- 1921 मेँ प्रिंस ऑफ वेल्स का भारत आगमन हुआ.
लार्ड रीडिंग (1921 ई. से 1926 ई.)
- इसके कार्यकाल मेँ 1919 का रौलेट एक्ट वापस ले लिया गया.
- इस के कार्यकाल मेँ केरल मेँ मोपला विद्रोह हुआ.
- इसके कार्यकाल मेँ 5 फरवरी, 1922 मेँ चौरी चौरा की घटना हुई, जिससे गांधी जी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया.
- 1923 मेँ इसके कार्यकाल मेँ भारतीय सिविल सेवा की परीक्षाएँ इंग्लैण्ड और भारत दोनोँ स्थानोँ मेँ आयोजित की गई.
- किसके कार्यकाल मेँ सी. आर. दास और मोती लाल नेहरु ने 1922 मेँ स्वराज पार्टी का गठन किया.
- दिल्ली और नागपुर में विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई.
लार्ड इरविन (1926 ई. से 1931 ई.)
- इस के कार्यकाल मेँ हरकोर्ट बहलर समिति का गठन किया गया.
- लॉर्ड इरविन के कार्यकाल मेँ साइमन आयोग भारत आया.
- 1928 मेँ मोतीलाल नेहरु ने नेहरु रिपोर्ट प्रस्तुत की.
- गांधीजी ने 1930 मेँ नमक आंदोलन का आरंभ करते हुए दांडी मार्च किया.
- कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन मेँ संपूर्ण स्वराज्य का संकल्प लिया गया.
- प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 मेँ लंदन मेँ हुआ.
- इसके कार्यकाल मेँ 5 मार्च 1931 को गांधी-इरविन समझौता हुआ.
- लार्ड इरविन के कार्यकाल मेँ पब्लिक सेफ्टी के विरोध मेँ भगत सिंह और उसके साथियों ने एसेंबली मेँ बम फेंका.
लार्ड विलिंगटन (1931 ई. से 1936 ई.)
- लार्ड विलिंगटन के कार्यकाल मेँ द्वितीय और तृतीय गोलमेज सम्मेलन हुए.
- 1932 मेँ देहरादून मेँ भारतीय सेना अकादमी (इंडियन मिलिट्री अकादमी) की स्थापना की गई.
- 1934 मेँ गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु किया.
- 1935 मेँ गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित किया गया.
- 1935 मेँ ही बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया.
- लार्ड विलिंगटन के कार्यकाल मेँ भारतीय किसान सभा की स्थापना की गई.
लार्ड लिनलिथगो (1938 ई. से 1943 ई.)
- 1939 ई. मेँ सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस छोड़कर फॉरवर्ड ब्लॉक नामक एक अलग पार्टी का गठन किया.
- 1939 मेँ द्वितीय विश्व युद्ध मेँ शुरु होने पर प्रांतो की कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने त्याग पत्र दे दिया.
- 1940 के लाहौर अधिवेशन मेँ मुस्लिम लीग के मुसलमानोँ के लिए अलग राज्य की मांग करते हुए पाकिस्तान का प्रस्ताव पारित किया गया.
- 1940 मेँ ही कांग्रेस द्वारा व्यक्तिगत असहयोग आंदोलन का प्रारंभ किया गया.
- 1942 मेँ गांधी जी ने करो या मरो का नारा देकर भारत छोड़ो आंदोलन शुरु किया.
लार्ड वेवेल (1943 ई. से 1947 ई.)
- लार्ड वेवेल ने शिमला मेँ एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसे, वेवेल प्लान के रुप मेँ जाना जाता है.
- 1946 मेँ नौसेना का विद्रोह हुआ.
- 1946 मेँ अंतरिम सरकार का गठन किया गया.
- ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फरवरी 1947 को भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा की.
लार्ड माउंटबेटेन (1947 ई. से 1948 ई.)
- लार्ड माउंटबेटेन भारत के अंतिम वायसरॉय थे.
- लार्ड माउंटबेटेन ने 3 जून 1947 को भारत के विभाजन की घोषणा की.
- 4 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वंत्रता अधिनियम प्रस्तुत किया गया, जिसे 18 जुलाई, 1947 को पारित करके भारत की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी गयी.
- भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा भारत के दो टुकड़े करके इसे भारत और पाकिस्तान दो राज्यों में बांट दिया गया.
- 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया.
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (1948 ई. से 1950 ई.)
भारत की स्वतंत्रता के बाद 1948 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को स्वतंत्र भारत का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया. वे इस पद पर अंतिम व्यक्ति थे. इसके बाद यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई और देश का शासन राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री व कैबिनेट द्वारा संचालित किया जाने लगा.
गवर्नर-जनरल और वायसराय में अंतर (Difference between Governor-General and Viceroy)
गवर्नर-जनरल और वायसराय, दोनों ही ब्रिटिश भारत में सर्वोच्च पद थे, लेकिन उनके अधिकार और भूमिका में कुछ महत्वपूर्ण अंतर थे. इन दोनों पदों का विकास ब्रिटिश शासन के इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ों को दर्शाता है.
गवर्नर-जनरल का पद मुख्य रूप से ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासनिक नियंत्रण को दर्शाता है, जबकि वायसराय का पद 1857 के विद्रोह के बाद भारत पर ब्रिटिश क्राउन के सीधे शासन की शुरुआत को दर्शाता है. वायसराय, क्राउन के सीधे प्रतिनिधि के रूप में, गवर्नर-जनरल की तुलना में अधिक अधिकार और प्रतिष्ठा रखते थे.
विशेषता | गवर्नर-जनरल | वायसराय |
पद का सृजन | 1833 के चार्टर अधिनियम द्वारा, जिसके तहत विलियम बेंटिक पहले गवर्नर-जनरल बने. | 1858 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा, जिसने 1857 के विद्रोह के बाद गवर्नर-जनरल का नाम बदलकर वायसराय कर दिया. |
कार्यकाल | 1833 से 1858 | 1858 से 1948 (जब तक भारत स्वतंत्र नहीं हुआ) |
नियुक्ति | ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक मंडल (कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स) द्वारा नियुक्त. | ब्रिटिश संप्रभु (सम्राट/महारानी) द्वारा ब्रिटिश संसद की सलाह पर नियुक्त. |
रिपोर्टिंग | सीधे ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक मंडल को रिपोर्ट करते थे. | सीधे ब्रिटिश क्राउन (ताज) को रिपोर्ट करते थे. |
भूमिका | मुख्य रूप से एक प्रशासनिक अधिकारी जो भारत में कंपनी के क्षेत्रों का प्रबंधन करता था. | एक प्रशासनिक अधिकारी के साथ-साथ ब्रिटिश क्राउन के व्यक्तिगत प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते थे, जिनके पास राजनयिक और आधिकारिक शक्तियाँ भी थीं. |
पहला और अंतिम पदधारी | पहले: विलियम बेंटिक अंतिम: चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (स्वतंत्र भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल के रूप में) | पहले: लॉर्ड कैनिंग अंतिम: लॉर्ड लुइस माउंटबेटन (स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल के रूप में और ब्रिटिश भारत के अंतिम वायसराय के रूप में). |
राज्य का स्वरूप | उन डोमिनियन और उपनिवेशों का प्रबंधन करते थे जो ग्रेट ब्रिटेन की संसद के अधीन थे. | उन उपनिवेशों का शासन करते थे जो सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन थे. |
गवर्नर, गवर्नर जनरल और वायसराय पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. ब्रिटिश भारत में ‘गवर्नर’, ‘गवर्नर-जनरल’ और ‘वायसराय’ के पदों में क्या अंतर था?
उत्तर: ये तीनों पद ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन के विकास के विभिन्न चरणों को दर्शाते हैं:
(1) गवर्नर: यह ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन एक प्रेसीडेंसी (जैसे बंगाल, मद्रास या बम्बई) का प्रमुख होता था. यह पद 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद स्थापित हुआ. गवर्नर केवल अपनी प्रेसीडेंसी के लिए जिम्मेदार था और अन्य प्रेसीडेंसी से स्वतंत्र था.
(2) गवर्नर-जनरल: 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट ने कलकत्ता में एक गवर्नर-जनरल का पद बनाया, जो अन्य प्रेसीडेंसी के गवर्नरों पर कुछ नियंत्रण रखता था. यह पद कंपनी के व्यापारिक और प्रशासनिक कार्यों का सर्वोच्च प्रभारी था. 1833 के चार्टर अधिनियम ने इसे भारत का गवर्नर-जनरल बना दिया, जिसे पूरे ब्रिटिश भारत पर विधायी और प्रशासनिक अधिकार प्राप्त थे.
(3) वायसराय: 1857 के विद्रोह के बाद, 1858 के भारत सरकार अधिनियम के तहत यह पद सृजित किया गया. वायसराय, ब्रिटिश सम्राट (क्राउन) का सीधा प्रतिनिधि था. यह पद गवर्नर-जनरल के पद से अधिक औपचारिक और शक्तिशाली था, क्योंकि यह ब्रिटिश ताज के सीधे शासन का प्रतीक था.
2. किस अधिनियम ने गवर्नर-जनरल के पद को वायसराय में बदल दिया और इस परिवर्तन के क्या कारण थे?
उत्तर: 1858 के भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act, 1858) ने गवर्नर-जनरल के पद को वायसराय में बदल दिया.
इस परिवर्तन के मुख्य कारण 1857 का महान विद्रोह था. इस विद्रोह ने ब्रिटिश सरकार को यह एहसास कराया कि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन अप्रभावी हो चुका है. इसलिए, कंपनी के शासन को समाप्त कर भारत का नियंत्रण सीधे ब्रिटिश ताज के हाथों में सौंप दिया गया. वायसराय का पद इसी सीधे शासन का प्रतिनिधित्व करने के लिए बनाया गया था, जो ब्रिटिश सम्राट का व्यक्तिगत प्रतिनिधि होता था. इस बदलाव का उद्देश्य भारतीय जनता को यह विश्वास दिलाना था कि उनका शासन अब एक व्यापारिक कंपनी नहीं, बल्कि सीधे ब्रिटिश महारानी द्वारा किया जाएगा.
3. लॉर्ड कैनिंग की गवर्नर-जनरल और वायसराय दोनों के रूप में क्या भूमिका थी?
उत्तर: लॉर्ड कैनिंग ने ब्रिटिश भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय भूमिका निभाई क्योंकि वे भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल और पहले वायसराय थे.
गवर्नर-जनरल के रूप में (1856-1858): कैनिंग के कार्यकाल में 1857 का विद्रोह हुआ. उन्होंने विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और शांति बहाल करने के लिए कठोर और उदार दोनों तरह की नीतियां अपनाईं.
वायसराय के रूप में (1858-1862): 1858 के अधिनियम के बाद वे भारत के पहले वायसराय बने. उनके वायसराय के रूप में कार्यकाल में भारत सरकार अधिनियम, 1858, भारतीय परिषद अधिनियम, 1861, भारतीय दंड संहिता, 1860 और कलकत्ता, मद्रास और बंबई में विश्वविद्यालयों की स्थापना जैसे महत्वपूर्ण सुधार हुए. उन्होंने ही ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ की नीति को समाप्त किया.
4. स्वतंत्रता के बाद भी ‘गवर्नर-जनरल’ का पद क्यों जारी रहा? इसका भारतीय गणराज्य पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, वायसराय का पद समाप्त कर दिया गया और फिर से गवर्नर-जनरल का पद बहाल किया गया. यह पद भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के डोमिनियन का हिस्सा बनाए रखने के लिए एक संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करता था.
लॉर्ड माउंटबेटन स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल बने.
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी एकमात्र भारतीय थे जिन्होंने यह पद संभाला.
यह पद 26 जनवरी, 1950 को भारत के गणतंत्र बनने तक जारी रहा, जब भारत के राष्ट्रपति का पद सृजित हुआ. गवर्नर-जनरल का पद एक प्रतीकात्मक संक्रमणकालीन व्यवस्था थी, जो औपनिवेशिक शासन से पूर्ण गणराज्य तक के सफर को सुगम बनाती थी.
5. वायसराय की परिषद (Viceroy’s Council) की संरचना और कार्यप्रणाली का क्या महत्व था?
उत्तर: वायसराय की परिषद एक महत्वपूर्ण कार्यकारी निकाय थी जो वायसराय को शासन चलाने में सहायता करती थी.
संरचना: इस परिषद में वायसराय के साथ कई सदस्य होते थे, जिन्हें विभिन्न विभागों (जैसे कानून, वित्त, सैन्य, गृह आदि) का प्रभार दिया जाता था. 1861 के भारतीय परिषद अधिनियम ने वायसराय को इस परिषद में भारतीयों को मनोनीत करने की शक्ति दी, हालांकि उनकी संख्या और अधिकार सीमित थे.
कार्यप्रणाली और महत्व: यह परिषद ब्रिटिश भारत के शासन, कानून बनाने और नीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी. वायसराय को महत्वपूर्ण प्रशासनिक और विधायी निर्णय लेने के लिए इस परिषद की सलाह लेनी होती थी. हालांकि, अंतिम निर्णय वायसराय का ही होता था. भारतीय सदस्यों की क्रमिक भागीदारी ने बाद के वर्षों में भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दिया, क्योंकि इसने भारतीयों को औपनिवेशिक प्रशासन के भीतर से ही राजनीतिक अधिकार और प्रतिनिधित्व की मांग करने का अवसर दिया.