राजनीतिक दल की विशेषताएं, उत्पत्ति, कार्य, भूमिका, महत्व और भारत

प्रजातंत्र मे राजनीतिक दलों का होना बहुत आवश्यक और अनिवार्य हैं. अब प्रश्न यह उठता है कि राजनीतिक दल का अर्थ क्या हैं. आमतौर से एक ही राजनीतिक विचारधारा के समर्थन मिलकर राजसत्ता पाने के उद्देश्य से जो संगठन बनाते हैं, उसे राजनीतिक दल कहा जाता हैं. राजनीतिक दल जनमत के निर्माण और अभिव्यक्ति का अति महत्वपूर्ण साधन है. यदि कोई नागरिकों की संस्था किसी सुधार या कानून विशेष में रूचि रखती है तो उसे राजनीतिक दल नही कहा जा सकता.

राजनीतिक दल को परिभाषित करते हुए गिलक्राइस्ट ने लिखा हैं कि,” वह नागरिक का एक एच संगठित समूह होता है जो एक ही राजनीतिक दृष्टिकोण रखते है और एक राजनीतिक इकाई के रूप में सरकार पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं.”

इस लेख में हम जानेंगे

राजनीतिक दल का अर्थ (Meaning of Political Party)

राजनीतिक दल व्यक्तियों का वह संगठित रूप है, जिसके सदस्य राजनीतिक इकाई के रूप मे राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक साथ प्रयत्नशील रहते है. जिस प्रकार सामाजिक या आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए दल संगठित होते है, इसी प्रकार व्यक्ति अपने राजनीतिक उद्देश्यों को भी संगठन के माध्यम से प्राप्त कर सकता है. जब किसी संगठन का उद्देश्य राजनीतिक होता है तो उसे राजनीतिक दल कहा जाता है. 

आधुनिक राजनीति में महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता आज राजनीतिक दल हैं. आधुनिक शासन व्यवस्था के सभी रूपों में राजनीतिक दल अनिवार्य से हो गए है सिवाय तानाशाही को छोड़कर, परन्तु यहाँ भी राजनीतिक दल पाये जा सकते हैं, जिनके बिना शासन-संचालन व अन्य राजनीतिक गतिविधियाँ करना असंभव सा दिखाई पड़ता है.

इसलिए आज भले भारत, संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, नॉर्वे, स्वीडन जैसे लोकतांत्रिक देश हो. चीन उत्तर कोरिया जैसे कम्युनिस्ट देश हो या सिंगापुर जैसे अर्द्ध-लोकतान्त्रिक देश हो. सभी में राजनीतिक दल की उपस्थिति एक अनिवार्य शर्त हो गयी हैं.

इसी कारण हेरोल्ड जे लास्की राजनीतिक दलों की महत्त्वता पर लिखते है कि,” किसी भी आधुनिक राज्य में तानाशाही को छोड़कर, दलीय सरकार के पास कोई विकल्प नहीं है. सरकार को नेता की आवश्यकता होती है नेताओं को उनके पीछे असंगत जनसाधारण को नहीं बल्कि संगठित अनुसरण की आवश्यकता होती है, जो जनसाधारण के लिए मुद्दों का स्वतंत्र चयन करती है.” 

आधुनिक राजनीति के अध्ययन में राजनीतिक दलों इसकी प्रकृति, कार्यों, दलीय व्यवस्था व जुड़े अन्य सम्बंधित मुद्दों का राजनीतिक अध्ययन पिछले कुछ समय से शुरू हो चुका है. इसलिए पश्चिम में यूरोप व उत्तर अमेरिका के लगभग हर राजनीतिक दल पर साहित्य विश्लेषणात्मक टिप्पणियाँ आदि लिखी गयी है.

ऐसा ही विकासशील देशों के महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दलों के साथ हुआ है (भारत भी इसका अपवाद नहीं रहा है). ऐसा विभिन्न देशों की राजनीतिक दलीय व्यवस्था व राजनीतिक दलों के साथ लगातार बढ़ता जा रहा है. इसी कारण अब राजनीतिक दल-विज्ञान नामक शब्द काफी प्रसिद्ध हो रहा है.

राजनीतिक दल की परिभाषा (Definition of Political Party)

एडमंड बर्क के अनुसार ” राजनीतिक दल मनुष्य के उस संगठन को कहते है जो किसी एक सिद्धांत पर सहमत हों, जिसके द्वारा राष्ट्रीय हित सम्पन्न किया जा सके.”

गैटिल के अनुसार ” राजनीतिक दल उन नागरिकों का कम या अधिक संगठित समूह है जो एक राजनीतिक इकाई के रूप मे कार्य करता है और अपनी राजनीतिक शक्तियों के प्रयोग के द्वारा शासन को हस्तगत करने और अपनी नीतियों को कार्यरूप देने का प्रयत्न करता है.

गिलक्राइस्ट के अनुसार ” राजनीतिक दल संगठित नागरिकों को उस समुदाय को कहते है जो एक ही राजनीतिक सिद्धांत को मानते है व एक राजनीतिक इकाई के रूप मे कार्य करते है और सरकार पर अपना अधिकार जमाने का प्रयत्न करते है.

लीकाॅक के शब्दों में ” राजनीतिक दल से हमारा तात्पर्य नागरिकों के उस न्यूनाधिक संगठित समूह से है जो संगठित इकाई मे कार्य करता हो. 

लार्ड ब्राइस ” राजनीतिक दल वह संगठित समूह है, जो ऐच्छिक रूप से अपनी शक्ति को राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति मे लगाते है. 

जे. ए. शुम्पीटर अनुसार ” राजनीतिक दल एक ऐसा गुण या समूह है जिसके सदस्य “सत्ता” प्राप्त करने के लिए संघर्ष व होड़ मे लगे हुए है.” 

मैरिस दुर्वजर के अनुसार ” राजनीतिक दल केवल “सत्ता प्राप्ति” का मंत्र है, “नीति” और सिद्धांत उनके लिए प्रमुख बातें नही है.” 

राजनीतिक दलों की विशेषताएं या लक्षण (Features of Political Party)

उपरोक्त परिभाषाओं के विवेचन से राजनीतिक दलों के निम्नलिखित लक्षण प्रकट होते है-

1. लम्बी अवधि के लिए संगठन.

2. कतिपय सिद्धांतों अथवा नीतियों के बारे मे सहमति.

3. अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शान्तिपूर्ण और संवैधानिक साधनों का प्रयोग.

4. राष्ट्रीय हित की दृष्टि से अपनी नीतियों को कार्यरूप देने की लालसा. 

संक्षेप मे; किसी भी राजनीतिक दल के निर्माण के लिए निम्न तत्वों का होना आवश्यक है-

(अ) संगठन 

दल को मजबूत एवं स्थायी बनाने के लिए उसमे संगठन का होना अत्यंत आवश्यक है. संगठन से तात्पर्य है कि दल के कुछ अपने लिखित एवं अलिखित नियम, उपनियम, कार्यलय, पदाधिकारी होने चाहिए. ये दल के सदस्यों को अनुशासित रखते है. संगठन के अभाव मे दलीय अनुयायी एक बिखरी हुई भीड़ मात्र होंगे और वे अपने उद्देश्यों को पूरा नही कर पाएंगे. वस्तुतः संगठन ही राजनीतिक दल की शक्ति का रहस्य है.

(ब) मूलभूत सिद्धांतों की एकता 

दल व्यक्तियों का एक ऐसा समूह होता है जिसके सदस्य सार्वजनिक प्रश्नों पर एक से विचार रखते है. इन प्रश्नों की बारीकियों पर उनमे मतभेद हो सकता है, लेकिन वे सब मौलिक सिद्धांतों पर एकमत होते है. सिद्धांतों की एकता ही दल को ठोस आधार प्रदान करती है. सैद्धांतिक एकता के अभाव मे दल की जड़ें हिल जाएंगी और उसका विघटन हो जाएगा. 

3. संवैधानिक उपायों का प्रयोग 

राजनीतिक दलों को अपने लक्ष्य (सत्ता प्राप्ति) की प्राप्ति के लिए सदा संवैधानिक उपायों का सहारा लेना चाहिए. जो असंवैधानिक उपायों का अनुसरण करते है अथवा हिंसात्मक साधनों को अपनाते है, उन्हें राजनीतिक दल नही कहा जा सकता.

4. राष्ट्रीय हित की वृद्धि 

राजनीतिक दल एक ऐसा समुदाय है जो उच्च आदर्शों से अनुप्राणित होता है और जिसके कार्यक्रमों और नीतियों का देशव्यापी आधार होता है क्षेत्रीय अथवा साम्प्रदायिक नही. उसे किसी विशेष जाति, धर्म, सम्प्रदाय या वर्ग के हित की अपेक्षा राष्ट्रीय हित की अभिवृद्धि हेतु चेष्टा करनी चाहिए. यदि कोई संगठन वर्ग, जाति या सम्प्रदाय विशेष का हित साधन करते है तो यथार्थ मे उन्हें राजनीतिक दल नही कहा जा सकता.

राजनीतिक दलों की उत्पत्ति एवं विकास 

राजनीतिक दलों का रूप चाहे कैसा ही रहा हो पर प्राचीनकाल में भी राजनीतिक दल थे. प्राचीन रोम मे भी दो परस्पर विरोधी पक्ष राजनीतिक दलों के सामने ही थे– प्लैवियन्स तथा पैट्रीशियन्स. प्रजातंत्र की जननी इंग्लैंड को माना जाता हैं. अतः इतिहास में खोज करने पर पता चलता है कि आधुनिक राजनीतिक दलों की उत्पत्ति का भी स्थान इंग्लैंड ही हैं.

संभव हैं, इस साम्यवादी बात से चिढ़ जाये कि इंग्लैंड को हर बात में इतना महत्व क्यों दिया जाता? पर सत्य बात कहने में किसी के चिढ़ने की परवाह नहीं करनी चाहिए. आधुनिक राजनीतिक दलीय प्रणाली ब्रिटिश राजनीतिक दलीय प्रणाली की ॠणी है. 1455-85 के ‘वार ऑफ रोजेज’य के समय मे हमें इंग्लैंड के इतिहास में राजनीतिक दलों का नाम मिलता हैं.

आगे चलकर स्टुआर्ट काल में जब राजा और संसद के मध्य गृह-युद्ध दा तो राजपक्ष वाले दल का नाम कैविलियर्स (Cavaliers) तथा संसद के पक्षपाती राउण्डहैड्स (Roundheads) कहलाते थे. पर उस समय तक राजनीतिक दलों के तरिके बड़े असभ्य और उग्र थे. एक प्रकार से उन्हें दल का नाम न देकर गुट का नाम दिया जा सकता हैं.

यही दल आगे चलकर टोरी एवं ह्रिग (Whig) कहलाने लगे. इस समय दलों की प्रकृति में परिवर्तन हुआ. 1688 में जेम्स द्वितीय गद्दी छोड़ कर भाग गया. परिवर्तन यह था कि अब राजा को हटाने या बदलने का उद्देश्य इन दलों का न रहा, बल्कि अब वे संसद पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का प्रयत्न करने लगे.

इस प्रकार शस्त्रयुद्ध के स्थान पर वाक्युद्ध का श्रीगणेश हुआ. धीरे-धीरे टोरी और ह्रिग दलों का रूप राजनीतिक होने लगा. टोरी दल, अनुदार (Conservative) बन गया तथा ह्रिग दल उदार (Liberal) बन गया. श्रमिक दल का जन्म कुछ ही शताब्दी में ही हुआ. 

संयुक्त राज्य अमेरिका पहले ब्रिटिश उपनिवेशों का ही एक समूह था अतः वहाँ इन दलों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था. संयुक्त राज्य के स्वतंत्र देश बनने पर संविधान निर्माता अपने देश को दलबन्दी से दूर रखना चाहते थे. पर संविधान निर्माता शायद यह अनुभव न कर सके कि फिलाडेल्फिया सम्मेलन के प्रतिनिधिगण दलबन्दी से प्रभावित हो चुके हैं.

सम्मेलन संघवादी (Federalist) तथा संघ विरोधी (Anti-Federalist) दो गुटों में विभक्त हो चुका था. इस पृष्टभूमि के आधार पर प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वाशिङ्गटन के काल मे ही राजनीतिक दलों का जन्म हो गया.

हैमिल्टन यह चाहता था कि संघीय सरकार शक्तिशाली बने और राष्ट्रीय विकास के लिए आर्थिक रूप से सम्पन्न बने. उसके अनेक पक्षपाती थे अतः यह गुट ‘संघवादी’ था. जैफरसन चाहता था कि शक्ति का केन्द्र केन्द्रीय सरकार न बने, बल्कि उसका वितरण राज्य-सरकारों में हो. जैफरसन के भी समर्थक थे अतः उसे रिपब्लिकन या डेमोक्रेटिक रिपब्लिकन (Republican or Democratic Republic) कहना प्रारंभ किया गया. 

मार्क्स की विचारधारा के प्रभाव से समाजवादी दलों का संगठन प्रारंभ हुआ पर ऐसे दलों का विकास यूरोप के देशो में हुआ. जर्मनी के निर्माण के समय विस्मार्क को समाजवादियों से टक्कर लेनी पड़ी थी. आगे चलकर रूस की क्रांति ने साम्यवादी दल को जन्म दिया. वहाँ केवल एक ही दल है. रूस की प्रेरणा से ही विभिन्न देशों में साम्यवादी दल की शाखाएँ खुलीं.

चीन के लाल बनने पर साम्यवादियों के दो दल हो गये. एक चीन समर्थक और दूसरा रूस समर्थक. फ्रांस यद्यपि इंग्लैंड का पड़ौसी हैं पर वहाँ द्वि-दलीय पद्धित के स्थान पर बहुदलीय पद्धित का विकास हुआ. भारत यद्यपि 150-200 वर्षों तक अंग्रेजों के शासन में रहा पर यहाँ भी द्वि-दलीय पद्धित न पनप सकी, फ्रांस का प्रभाव यहाँ जाने कैसे आ गया और बहुदलीय पद्धित का प्रचलन हुआ.

राजनीतिक दलों के कार्य (Functions of Political Party)

राजनीतिक दलों के निम्नलिखित कार्य हैं:

1. प्रतिनिधित्व 

प्रतिनिधित्व करना राजनीतिक दलों का प्राथमिक कार्य है. आधुनिक समाज खासकर वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र प्रचलित है. इसमें नागरिक शासन व्यवस्था के प्रत्येक कार्य में सहभागिता न कर अपने प्रतिनिधि चुनते हैं, जो उनके एजेंट में कार्य करते हैं.

सभी नागरिकों के पास सभी शासकीय कार्यों के लिए समय तथा प्रशिक्षण नहीं है इसलिए संसद, विधानसभाओं में भी प्रतिनिधि उन नागरिकों के हितानुरूप कार्य करते हैं, जिन्होंने उन्हें चुनकर भेजा है.

राजनीतिक दल भी एक बड़े प्रतिनिधि (एजेंट) के रूप में कार्य करते है. वह जनता के सामने अपनी विचारधारा, सिद्धांत व नीतियाँ रखते है और उसी आधार पर (अपने सदस्यों को विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों से उम्मीदवार बनाकर) जनता से समर्थन व वैधता जुटाने का प्रयत्न करते हैं.

इस प्रकार राजनीतिक दल जन-शक्ति का प्रतिनिधित्व उन्हीं के प्रतिनिधि बनकर करते हैं. इसी प्रतिनिधित्व को ही प्राप्त करने के लिए राजनीतिक दल बार-बार चुनाव के माध्यम से नागरिकों के बीच जाते है और वोट रुपी सहमति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, जिससे सत्ता प्राप्त की जा सके. 

2. चुनाव लड़ना तथा सत्ता की प्राप्ति  

जनता का प्रतिनिधित्व करने के लिए सामान्यत दल चुनाव लड़ते हैं. अलग-अलग चुनावी पद्धतियों में चुनाव भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं. परन्तु चुनावी अभियान चुनावी घोषणापत्र चुनावी सभाएं आदि, जो हर चुनाव में समान रहता है, से राजनीतिक प्रतिस्पर्धा निर्धारित की जाती है. प्र

त्येक राजनीतिक दल सर्वाधिक विजयी होने वाले उम्मीदवार को चुनाव में प्रत्याशी व दल का उम्मीदवार बनाते है कई राजनीतिक व्यवस्थाओं में दल ही चुनावों के औपचारिक संघर्षकर्त्ता होते हैं. मतदाताओं को दलों में से ही किसी दल को चुनना होता है.

परन्तु कई प्रसिद्ध व्यवस्थाओं में दल अपने सक्षम उम्मीदवार खड़े करते हैं, जिन्हें ही मतदाता चुनता है. अधिक संभावना यह रहती है कि उम्मीदवार राजनीतिक दल के जुड़ाव के कारण मत प्राप्त करता है. जिस राजनीतिक दल को सर्वाधिक संख्या में संसद व विधानमंडल की सीटें मिलती है, वह ही जनता से शासन व प्रतिनिधित्व करने की वैध सत्ता प्राप्त करता है और सरकार (शासन) चलाता है. 

3. हित स्पष्टीकरण एवं हित समूहन  

राजनीतिक दलों का एक प्रमुख कार्य समाज में विद्यमान विभिन्न हितों को इकट्ठा करना तथा उनके पूर्ण होने के लिए विधानमंडल के अन्दर व बाहर प्रयास करना है. इसी प्रक्रिया में वह विभिन्न माँगे (हित), जो नागरिक या नागरिक समूह उठाते है उनकी सभी मांगों में से महत्त्वपूर्ण मांगों को पूर्ण करने का प्रयत्न (प्रदर्शन, सभा आयोजन, संसद में समर्थन व विरोध के माध्यम से) राजनीतिक दल करते है. इससे नागरिक शासन व्यवस्था राजनीतिक दलों से भी जुड़े रहते हैं और शासन व्यवस्था भी अच्छे मार्ग की ओर बढ़ती है. 

4. संचार वाहक 

राजनीतिक दल  शासक  व शासितों  के बीच पुल का कार्य करते हैं. राजनीतिक व्यवस्था में संचार का बड़ा महत्त्व है. राजनीतिक व्यवस्था में कई चरण होते हैं. इन चरणों में दो-तरफा संचार राजनीतिक व्यवस्था को उचित रूप से संचालन के लिए अनिवार्य है और राजनीतिक दल वह मध्यस्थ बनते हैं, जिनके जरिए राजनीतिक दल शासन को जनता तथा जनता को शासन से जोड़ते हैं. इससे शासन तृणमूल से अलग नहीं रहता और पर्याप्त जन संचार के कारण शासन के निरंकुश होने का भय भी नहीं विद्यमान रहता. 

5. नीति निर्माण 

राजनीतिक दलों का एक प्रमुख कार्य नीति निर्माण करना है. सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक दल विभिन्न सभाओं, चुनावी घोषणापत्रों में जनसमर्थन प्राप्त करने के लिए कुछ नीतियों, कार्यक्रमों की घोषणाएं करते हैं और सत्ता प्राप्त करने के पश्चात् वह उन नीतियों कार्यक्रमों का निर्माण करते हैं, उन्हें क्रियान्वित करते हैं .

विभिन्न हित-समूहों, नागरिकों द्वारा उठाई जाने वाली उचित व आवश्यक मांगों पर भी कार्यक्रम व नीतियाँ बनायी जाती है. साथ ही जब राजनीतिक दल सत्ता में न होकर विपक्ष की भूमिका निभाते हैं, तब वह सत्ताधारी पक्ष पर जनहितकारी नीतियों के निर्माण हेतु सत्ताधारी दल पर दबाव डालते है. 

6. जन-जागरूकता तथा समाजीकरण  

जनता को जागरूक तथा उनके राजनीतिक समाजीकरण भी राजनीतिक दल करते हैं. कई दलों के वाद-विवादों विमर्शो तथा चुनावी अभियान व राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के जरिए राजनीतिक दल जनता को शिक्षित जागरूक करते हैं. राजनीतिक शिक्षा लोगों को प्रदान करते हैं, जिससे जनता राजनीतिक समस्याओं से अवगत हो तथा अपने अधिकारों व कर्तव्यों के बारे में जागरूक हो.

राजनीतिक दल समय-समय पर विपक्षी दलों तथा सत्ताधारी दल के पक्ष-विपक्ष में लेख, पर्चे प्रकाशित करते रहते हैं जिससे विभिन्न मुद्दों पर राजनीतिक दलों के विचार, यथार्थ सभी तक पहुँचते रहे और नागरिक स्वयं निर्णय करे कि कौन सही है और कौन गलत इस तरह वह एक व्यापक राजनीतिक संस्कृति का निर्माण करते हैं. लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था में यह संस्कृति व उसके अनुरूप समाजीकरण लोकतांत्रिक रहता है साम्यवादी देशों में साम्यवादी समाजीकरण रहता है. 

इस प्रकार मौलिक मूल्य तथा नियम राजनीतिक दल प्रत्येक व्यवस्था में उत्पन्न करते हैं, जिससे सही-गलत, नैतिक-अनैतिक को जनता पहचान सके. 

7. राजनीतिक भर्ती  

राजनीतिक दलों का एक कार्य भर्ती भी है. यह भर्ती प्राथमिक रूप से सदस्यों की भर्ती से सम्बंधित है और दल को सुसंगठित संचालन के लिए, जिन नेताओं की आवश्यकता पड़ती है, उनसे भी सम्बंधित है (अभिजन भर्ती). सार्वजनिक पदों पर भर्ती के लिए दल के सदस्यों को प्रशिक्षित व तैयार किया जाता है, जिससे वह समय पर राज्य अथवा राष्ट्रीय राजनीति का नेतृत्व करने की क्षमता रखे, उनमें से उचित को चुना जा सकें.

व्यवहार में, ऐसा संभव है कि किसी बाहरी व्यक्ति (संभवतः करिश्माई व्यक्तित्व) के हाथों में सीधे राजनीतिक नेतृत्व सौंप दिया जाए. परन्तु ऐसा होने के लिए भी उस व्यक्ति को राजनीतिक दल की प्राथमिक सदस्यता लेनी ही पड़ती है. अतः भर्ती व नेतृत्व निर्माण दलों का अनिवार्य कार्य है. 

8. सरकार का संगठन 

राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त कर सरकार बनाते है. सरकार बनाने के पश्चात् सरकार के संगठन के रूप भी वह दल कार्य करते हैं. वह दल सरकार की सहायता करते है तथा सरकार व दल के बीच स्थायित्व व सुसम्बद्धता बनाए रखते है. सामान्यतः सरकार के महत्त्वपूर्ण पर्दों पर राजनीतिक दल के ही महत्त्वपूर्ण सदस्यों को नियुक्त किया जाता है. इसे विधायिका व कार्यपालिका जो सरकार का महत्त्वपूर्ण अंग है, में देखा जा सकता है.

साथ ही सत्ताधारी दल सरकार की नीतियों, सकारात्मक कार्यों आदि को जनता के बीच भी प्रचारित करता है. इससे सरकार की उपलब्धियां जनता तक पहुँचती है और पुन: उस दल को सत्ता की प्राप्ति की संभावनाएं तैयार होती है.

राजनीतिक दलों की भूमिका (Role of Political Party)

राजनीतिक दलों की भूमिका को आगे दिए गए बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता हैं.

राजनीतिक दल लोकतंत्र के पहिये है और लोकतंत्रीय व्यवस्था के अन्तर्गत जनता की भावनाओं के निर्धारण तथा अभिव्यक्तिकरण की महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं. लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों की भूमिका इस प्रकार है:

1. लोकमत का निर्माण करते है  

समाज के विभिन्न एवं परस्पर विरोधी विचारों को दलों द्वारा व्यवस्थित किया जाता है. वे बिखरे एवं अस्पष्ट एवं व्यवस्थित करते हैं तथा जनमत निर्माझा में योग देते हैं. सामाजिक जीवन की विभिन्न उलझी हुई समस्याओं में से प्रमुख समस्याओं को वे जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हैं. 

2. राजनीतिक शिक्षा प्रदान करते है 

दल जनता को राजनीतिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करते हैं. लॉवेल के अनुसार,” दल  विचारों के दलाल हैं. विभिन्न राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याओं के संबंध में प्रत्येक दल द्वारा पक्ष एवं विपक्ष में विचार प्रस्तुत किये जाते हैं अपने-अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं, निर्वाचनों में जन सभायें आयोजित की जाती हैं. इससे लोगों में राजनीतिक शिक्षा एवं चेतना का प्रसार होता है. जनता सदैव सजग एवं जागरूक रहती है. 

3. चुनावों में सहायता प्रदान करते है  

दलों के कारण मतदाताओं को मतदान में काफी सुविधा रहती है. निर्वाचनों में दलों द्वारा अपने प्रत्याशी खड़े किये जाते हैं. उनके पक्ष में प्रचार करते हैं, आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं. शासन सत्ता पर अपना अधिकार प्राप्त करते हैं. वस्तुतः लोकतांत्रिक राज्यों में राजनीतिक दलों के बिना चुनाव लड़ना एवं विजय प्राप्त करना कठिन कार्य है.

4. शासन के संचालन में सहयोग प्रदान करते है 

राजनीतिक दल चुनाव में बहुमत प्राप्त करके सरकार का निर्माण करते हैं. संसदीय एवं अध्यक्षात्मक दोनों प्रकार की शासन प्रणालियों में सरकार का निर्माण तथा शासन व्यवस्था का संचालन राजनीतिक दलों के आधार पर ही किया जाता है.

5. सरकार पर नियंत्रण रखते है 

विपक्षी दलों का उद्देश्य सरकारी नीतियों की स्वस्थ्य आलोचना करके जनमत को अपने पक्ष में करना होता है. विपक्ष के कार्यकलापों से जनता को यह ज्ञात होता है कि शासन- नीति की रूपरेखा क्या है? जब जनता शासन की वैकल्पिक नीति का समर्थन देने लगती है तब विरोधी दल शासन की बागडोर संभालने में सक्षम हो जाता है. 

6. जनता और सरकार के मध्य सेतु का कार्य करते है  

सत्तारूढ़ दल और विरोधी दलों का सम्पर्क जनता से निरंतर बना रहता है विरोधी दल जनता की कठिनाइयों और मांगों को सरकार के सामने रखते हैं. एक राजनीतिक दल का मुख्य कार्य है कि वह विचारों का आदान-प्रदान एवं सम्पर्क का रास्ता खुला रखे. इस प्रकार सरकार सार्वजनिक कल्याण के लिए एवं लोकमत के अनुसार चलती है. 

7. शासन के विभिन्न अंगों में समन्वय बनाये रखते है 

राजनीतिक दल शासन के विभिन्न अंगों में सामंजस्य स्थापित करते हैं. संसदीय शासन प्रणाली में व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका में दलीय अनुशासन एवं कार्यक्रम के फलस्वरूप अभिन्न संबंध बना रहता है अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में शासन के विभिन्न अंगों में पृथक्करण के कारण राजनीतिक दल ही शासन संचालन के कार्य को सुगम बनाते हैं. दल व्यवस्था के कारण ही सांविधानिक कठोरता वांछित लचीलेपन में बदल जाती है.

राजनीतिक दलों का महत्व (Importance of Political Party)

राजनीतिक दल आधुनिक समय में जीवन की एक आवश्यकता बन गया है. अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र जहाँ जनता के प्रतिनिधि ही शासन की बागडोर सम्भालते हैं, वहाँ राजनीतिक दल के बिना काम चल ही नहीं सकता. निरंकुश एकतन्त्रात्मक शासन में राजनीतिक दल का तो और भी महत्व बढ़ जाता हैं.

साम्यवादी राज्यों में जहाँ दल और शासन मे कोई भेद नहीं, वहाँ राजनीतिक दल ही सर्वेसर्वा हैं. प्रजातंत्र का राज्य कैसा सी हो, राजनीतिक दल जीवन रक्त के समान हैं. राजनीतिक दलों को सरकार का चौथा अंग कहा जा सकता हैं. 

ह्रावूर के शब्दों में,” प्रजातंत्रात्मक यंत्र के चालन में राजनीतिक दल ईधन के समान हैं.” 

मुनरो के अनुसार,” प्रजातंत्रात्मक शासन दलीय शासन का दूसरा रूप हैं. विश्व इतिहास में कभी भी ऐसी स्वतंत्र सरकार नहीं  रही जिसमें राजनीतिक दल का अस्तित्व न हो.” 

ब्राइस का मत हैं,” राजनीतिक दल अनिवार्य है. कोई भी बड़ा देश उसके बिना नही रह सकता. किसी व्यक्ति ने यह नही दिखाया हैं कि लोकतंत्र उसके बिना कैसे चल सकता हैं.” 

आज के युग में राजनीतिक दल का प्रत्येक देश में चाहे वह छोटा हो या बड़ा, राजतंत्र हो या अधिनायकतंत्र, बड़ा महत्व हैं. प्रत्येक राज्य में सरकार किसी न किसी दल की रहती ही हैं.

राजनीतिक दलों का महत्व या उपयोगिता निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट की जा सकती हैं:

1. राजनीतिक दल जनतांत्रिक सरकार की कार्यकारिता के लिए अपरिहार्य है. 

एडमण्ड बर्क के अनुसार, ” दलीय प्रणाली चाहे पूर्ण रूप से भले के लिए हो अथवा बुरे के लिए, लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के लिए अनिवार्य है.” 

राजनीतिक दल राष्ट्रीय हित को व्यवस्थित एवं तर्कपूर्ण नीति के रूप में प्रस्तुत करते हैं, उसके पक्ष में लोकमत का निर्माण करते हैं, लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली को मूर्तरूप देते हैं और शासन के संचालन के साथ ही उसकी निरंकुशता को नियंत्रित करते हैं और लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं, अधिकारों एवं मूल्यों की रक्षा करते हैं. 

2. दलीय संगठन

मेकाइवर का कथन है कि,” दलीय संगठन के बिना किसी सिद्धान्त का व्यवस्थित एवं एकीभूत प्रकाशन नहीं हो सकता, किसी भी नीति का क्रमबद्ध विकास नहीं हो सकता संसदीय चुनावों की वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं हो सकती और न ऐसी मान्य संस्थाओं की व्यवस्था ही हो सकती है जिनके द्वारा कोई भी दल शांति प्राप्त करता है तथा उसे स्थिर रखता है.” 

3. प्रतिनिधि सरकार की सफलता

शासन व्यवस्था चाहे संसदात्मक हो अथवा अध्यक्षात्मक, राजनीतिक दलों के अभाव में सरकार का कुशल संचालन नहीं हो सकता. विरोधी दलों के रूप में भी दलों का बहुत महत्व है क्योंकि विरोधी दल ही सरकार की नीतियों तथा उसके कार्यों पर नियंत्रण रखता है और उसे निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी बनने से रोकता है. इस प्रकार राजनीतिक दलों द्वारा ही प्रतिनिधि सरकार सफलता के साथ चल सकती है. 

4. जागरूक राजनीति

एक स्वस्थ एवं जागरूक राजनीतिक वातावरण केवल राजनीतिक दल ही कायम कर सकते हैं. राजनीतिक दल जनमत निर्माण में सहायक होते हैं. लावेल का कहना है कि,” राजनीतिक दल किसी प्रश्न पर जनमत तैयार करने के लिए वे कुछ सिद्धान्त या प्रश्न उपस्थित करते हैं.” 

5. लोकमत का निर्माण

लोकतांत्रिक व्यवस्था लोकमत पर आधारित होती है और लोकमत का निर्माण मुख्य रूप से राजनीतिक दलों के द्वारा ही किया जाता है. दलों के अपने निश्चित सिद्धान्त होते हैं. इन सिद्धान्तों के आधार पर ही मतदाता उनके उम्मीदवारों को चुनावों में परास्त या विजयी बनाते हैं. 

राजनीतिक दल बहुमत प्राप्त करके न केवल सरकार का निर्माण करते हैं अपितु राजनीतिक दल विरोधी पक्ष की भुमिका का निर्वाह करके सरकार के अनुचित एवं स्वेच्छाचारी कार्यों पर अंकुश भी लगाते हैं. 

6. शासन प्रणाली का अनिवार्य अंग

लॉड ब्राइस का कथन है कि, ” राजनीतिक दल अनिवार्य है और कोई भी बड़ा स्वतंत्र देश उनके बिना नहीं रह सकता है. किसी व्यक्ति ने यह नहीं बताया है कि प्रजातंत्र उनके बिना कैसे चल सकता है. ये मतदाताओं के समूह की अराजकता में से व्यवस्था उत्पन्न करते हैं. यदि दल कुछ बुराइयां उत्पन्न करते हैं तो वे दूसरी बुराइयों को दूर भी करते हैं. इस प्रकार राजनीतिक दल आधुनिक राज-व्यवस्था एवं शासन प्रणाली का अनिवार्य अंग हैं.

राजनीतिक दलों मे विपक्ष की भूमिका 

प्रजातंत्र या लोकतांत्रिक्र राष्ट्रों मे विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं, बुहमत प्राप्त दल की गलत नीतियों का विपक्षी राजनीतिक दल खुलकर विरोध करते हैं. वह उसकी त्रुटियों से जनता को अवगत करते हैं, उनका विरोध करते हैं.

आम चुनाव के पश्चात राजनीतिक दलों मे से बहुमत प्राप्त दल या दलों का गठबंधन सरकार का निर्माण करता हैं अथवा सत्तारूढ़ होता है बहुमत प्राप्त न करने वाला/वाले दल विपक्ष दल कहलाते है. बहुमत प्राप्त दल से सरकार का गठन होता है.

विपक्षी दल सरकार के कार्यों पर निगाह रखते है. संसदीय लोकतंत्र मे शासक दल के कार्यों पर जनता सीधे नियन्त्रण नही करती है. विपक्षी दल ही इस उद्देश्य को पूरा करते है. संसदीय लोकतंत्र पर आधारित हमारे देश मे सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल दोनों का महत्व है.

संसद और विधान मण्डलों मे विपक्षी दल की सक्रियता से सरकार सजग होकर लोक कल्याणकारी कार्य सजगता से करने को बाध्य रहती है. विपक्षी दल संसद और विधान सभाओं मे सरकार की आलोचना भी करते है और नवीन नीतियों तथा कार्यों के सुझाव भी देते हैं.

विपक्ष की उपस्थिति से सरकार जनता के प्रति अधिक सजगता से अपने दायित्वों का निर्वहन करते करती है. विधायिका मे कोई भी कानून पारित होने से पूर्व उस पर विचार विमर्श और चर्चा होती है. विपक्ष के सहयोग से कानून के दोषों को दूर किया जा सकता है.

विधान मण्डल और संसद की बैठकों के समय विपक्ष की भूमिका और बढ़ जाती है. विपक्ष सदन मे प्रश्न पूछकर या स्थगन प्रस्ताव लाकर सरकार पर दबाव बनाता है. इस प्रकार विपक्ष जनता के सामने अपनी योग्यता को स्थापित करता है, विपक्ष सरकार की त्रुटियों को जनता के सामने लाता है, सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करके सरकार को भूल सुधार के लिए बाध्य किया जाता है. विपक्ष द्वारा अपने दायित्व का पालन करने से प्रभावित होती है.

भारत में राजनीतिक दल

भारत एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य है जहाँ बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था (Multi-party System) प्रचलित है. यहाँ विभिन्न विचारधाराओं, क्षेत्रीय पहचानों, भाषाई समूहों और सामाजिक आधारों के प्रतिनिधित्व के लिए अनेक राजनीतिक दल सक्रिय हैं. भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) इन दलों को वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर मान्यता प्रदान करता है.

राजनीतिक दलों की श्रेणियाँ

भारतीय चुनाव आयोग दलों को दो प्रमुख श्रेणियों में बाँटता है –

  1. राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दल (National Parties)
  2. राज्य स्तर के राजनीतिक दल (State Parties)

इसके अलावा कुछ पंजीकृत अप्रमाणित दल (Registered Unrecognized Parties) भी होते हैं, जो चुनाव लड़ सकते हैं, परंतु उन्हें चुनाव चिन्ह और प्रसारण जैसे विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होते.

मान्यता प्राप्त दलों को मिलने वाले अधिकार

मान्यता प्राप्त दलों को कई सुविधाएँ मिलती हैं, जैसे:

  • चुनाव चिन्ह (Election Symbol) का स्थायी आरक्षण.
  • दूरदर्शन और आकाशवाणी पर निःशुल्क प्रचार समय.
  • चुनाव आयोग से परामर्श के विशेषाधिकार.
  • चुनाव सुधारों और कानून निर्माण में प्रत्यक्ष योगदान.
  • मतगणना एजेंटों और उम्मीदवारों की नामांकन प्रक्रिया में सरलता.

जो भी नया दल नगरपालिकाओं, विधानसभाओं या लोकसभा चुनावों में भाग लेना चाहता है, उसे भारतीय चुनाव आयोग के साथ पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है. यदि कोई पंजीकृत दल चुनाव परिणामों के बाद आयोग द्वारा निर्धारित मानकों (जैसे – कुल मत प्रतिशत, सीटों की संख्या आदि) को पूरा करता है, तो उसे राज्य स्तरीय या राष्ट्रीय दल का दर्जा दिया जाता है. आयोग समय-समय पर दलों की स्थिति की समीक्षा भी करता है.

भारत में राजनीतिक दलों का इतिहास

भारत में राजनीतिक दलों का इतिहास स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1885) और भारतीय जनसंघ (1951) जैसे संगठनों ने आज़ादी से पहले और बाद में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.

  • 1952 से 1964 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश की सबसे प्रमुख पार्टी रही. इसे उस समय की कांग्रेस व्यवस्था” भी कहा गया क्योंकि केंद्र से लेकर राज्यों तक कांग्रेस का वर्चस्व था.
  • 1967 के आम चुनाव में पहली बार कांग्रेस की शक्ति को चुनौती मिली. कांग्रेस आठ राज्यों में सत्ता से बाहर हो गई और लोकसभा में उसका बहुमत घटकर लगभग 54% रह गया. यही समय था जब विभिन्न क्षेत्रीय दल (जैसे – द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), अकाली दल, तेलुगु देशम पार्टी (TDP)) राजनीति में उभरने लगे.
  • 1977 में इंदिरा गांधी के आपातकाल (Emergency, 1975–77) के बाद कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी ने गठबंधन के आधार पर केंद्र में सरकार बनाई. यह भारत में गठबंधन राजनीति (Coalition Politics) की शुरुआत मानी जाती है.
  • 1989 से आगे बहुदलीय व्यवस्था और गठबंधन सरकारें भारतीय राजनीति का स्थायी हिस्सा बन गईं. इसी दौर में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और अनेक क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा.
  • 1990 के दशक में राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त मोर्चा (United Front) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) जैसी गठबंधन सरकारें बनीं.
  • 2004 से 2014 तक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सत्ता में रहा.
  • 2014 के बाद भारतीय राजनीति में एक बार फिर बड़े बदलाव आए, जब भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत प्राप्त कर गठबंधन पर निर्भरता कम कर दी. लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर गठबंधन सरकार का स्वरूप अस्तित्व में आया. इस प्रकार जनोन्मुखी नीतियों का फिर से आगाज हो गया.

इस प्रकार भारत की राजनीतिक प्रणाली एक गतिशील बहुदलीय लोकतंत्र है, जहाँ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल दोनों ही लोकतांत्रिक ढाँचे को मजबूती प्रदान करते हैं.

भारत में राजनीतिक दल का दर्जा प्राप्त करने की पात्रता

भारत में किसी भी राजनीतिक दल को चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) में पंजीकृत होना आवश्यक है. यह पंजीकरण जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951) में निर्धारित नियमों और शर्तों के अनुसार किया जाता है. केवल पंजीकरण कर लेने से दल को मान्यता प्राप्त (Recognized) दल का दर्जा नहीं मिल जाता; इसके लिए आयोग द्वारा तय किए गए कुछ मत प्रतिशत और सीट संबंधी मानदंडों को पूरा करना ज़रूरी है.

राज्यीय राजनीतिक दल (State Party) के लिए मानदंड

किसी दल को राज्य स्तर पर मान्यता प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित शर्तों में से कोई एक पूरी करनी होती है –

  1. मत प्रतिशत व सीट शर्त: यदि दल को राज्य की लोकसभा या विधानसभा के आम चुनाव में डाले गए कुल वैध मतों का कम से कम 6% प्राप्त हो, और साथ ही उसे कम से कम एक लोकसभा सीट या दो विधानसभा सीटें मिली हों.
  2. उच्च मत प्रतिशत शर्त; यदि दल को राज्य की लोकसभा या विधानसभा चुनाव में डाले गए कुल वैध मतों का कम से कम 8% प्राप्त हो.
  3. विधानसभा सीटों की शर्त: यदि दल को राज्य विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या का कम से कम 3% या न्यूनतम तीन सीटें (जो भी अधिक हो) मिली हों.
  4. लोकसभा सीट की शर्त: यदि दल को लोकसभा में उस राज्य को आवंटित 25 सीटों में से कम से कम एक सीट प्राप्त हो.

वर्तमान में, भारत में लगभग 64 दलों को राज्यीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता प्राप्त है. ये दल मुख्यतः अपने-अपने राज्यों की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

राष्ट्रीय राजनीतिक दल (National Party) के लिए मानदंड

किसी दल को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित शर्तों में से कोई एक पूरी करनी होती है –

  1. चार राज्यों में मत प्रतिशत व सीट शर्त: यदि दल को चार या अधिक राज्यों में लोकसभा या विधानसभा के आम चुनाव में डाले गए वैध मतों का कम से कम 6% प्राप्त हो, और इसके साथ ही वह लोकसभा में कम से कम चार सीटें जीतता हो.
  2. उच्च मत प्रतिशत शर्त: यदि दल को चार या अधिक राज्यों में लोकसभा या विधानसभा चुनावों में डाले गए कुल वैध मतों का कम से कम 8% प्राप्त हो.
  3. लोकसभा सीटों की शर्त: यदि दल को तीन या अधिक राज्यों से मिलाकर लोकसभा की कुल सीटों का कम से कम 2% प्राप्त हो.

वर्तमान में भारत में 8 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दल का दर्जा प्राप्त है. इनमें सबसे नया नाम नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) का है, जिसे भारत के चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय दल घोषित किया. यह उपलब्धि पाने वाला पूर्वोत्तर भारत का पहला क्षेत्रीय दल है, जिसने मणिपुर, मेघालय, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव स्थापित किया है.

इस पूरी प्रक्रिया से स्पष्ट है कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों की मान्यता (Recognition) केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह दलों की लोकप्रियता, जनाधार और राजनीतिक शक्ति का संस्थागत आकलन भी है.

राजनीतिक दलों की भूमिका

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक दल केवल सत्ता प्राप्ति का साधन ही नहीं हैं, बल्कि ये जनता और शासन के बीच सेतु का काम भी करते हैं. राजनीतिक दल समाज के विभिन्न वर्गों, जातियों, क्षेत्रों और विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनकी आकांक्षाओं को राजनीतिक प्रक्रिया में जगह दिलाते हैं.

राजनीतिक दलों की मुख्य भूमिकाएँ इस प्रकार हैं:

  1. चुनाव में भागीदारी और सरकार गठन – राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं ताकि उन्हें पर्याप्त समर्थन मिले और वे संविधान के अनुसार वैध रूप से सरकार बना सकें. इससे वे अपने घोषणापत्र (Manifesto) और वादों को लागू करने की स्थिति में आते हैं.
  2. नीति-निर्माण और कानून निर्माण – दल अपनी विचारधारा के अनुसार नीतियाँ तैयार करते हैं, संसद एवं विधानसभाओं में बहस करते हैं, विधायी प्रक्रिया में योगदान देते हैं और देश की दिशा तय करते हैं.
  3. प्रचार और जन-जागरण – चुनाव के दौरान दल मतदाताओं को संगठित करते हैं, अपने उम्मीदवारों को मंच देते हैं और जनता तक पहुँचकर उन्हें राजनीतिक एवं सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूक करते हैं.
  4. राजनीतिक शिक्षा – दल जनता को लोकतंत्र, चुनाव प्रणाली और नागरिक भागीदारी के महत्त्व के बारे में शिक्षित करते हैं.
  5. निगरानी और संतुलन – विपक्षी दल सरकार की नीतियों पर सवाल उठाकर लोकतांत्रिक व्यवस्था में जाँच और संतुलन” (Checks and Balances) की भूमिका निभाते हैं.
  6. सामाजिक एकीकरण – विभिन्न समूहों के बीच मतभेद कम करके, संवाद और सहयोग बढ़ाकर दल राष्ट्रीय एकता और समावेशिता को मज़बूत करते हैं.
  7. परिवर्तन के उत्प्रेरक – राजनीतिक दल हाशिये पर खड़े समुदायों की आवाज़ उठाते हैं, सामाजिक-आर्थिक सुधारों के लिए दबाव डालते हैं और पर्यावरणीय व क्षेत्रीय मुद्दों का समाधान प्रस्तुत करते हैं.

भारत में राजनीतिक दलों का महत्व

लोकतांत्रिक व्यवस्था राजनीतिक दलों के बिना अधूरी है. भारत में इनकी महत्ता कई रूपों में देखी जा सकती है:

  • ये प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हैं और लोगों को शासन से जोड़ते हैं.
  • ये विभिन्न वर्गों के लोगों को राजनीति में भागीदारी का अवसर देते हैं ताकि उनके हितों की उपेक्षा न हो.
  • मतदाताओं को नीतिगत विकल्प देकर राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और विकल्प आधारित लोकतंत्र को सशक्त बनाते हैं.
  • यह प्रणाली नेतृत्व परिवर्तन को सहज बनाती है और नीतियों में निरंतरता बनाए रखती है.
  • दलों के माध्यम से ही नागरिक लोकतंत्र में सक्रिय भूमिका निभाते हैं और समाज में राजनीतिक चेतना का स्तर बढ़ता है.
  • ये संस्था निर्माण (Institution Building) में मदद करते हैं और राष्ट्रवाद की भावना को प्रोत्साहित करते हैं.
  • सामाजिक परिवर्तन और सुधार के आंदोलन अक्सर राजनीतिक दलों से ही प्रेरित होकर आगे बढ़ते हैं.

भारत में राजनीतिक दलों के सामने चुनौतियाँ

हालाँकि राजनीतिक दल लोकतंत्र की रीढ़ हैं, फिर भी इन्हें अनेक जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:

  1. आंतरिक लोकतंत्र की कमी – कई दलों में निर्णय लेने का अधिकार कुछ नेताओं या परिवारों तक सीमित रहता है.
  2. वित्त पोषण और पारदर्शिता – चुनावी चंदे और वित्तीय संसाधनों में पारदर्शिता का अभाव भ्रष्टाचार को जन्म देता है.
  3. राजनीति का अपराधीकरण – अपराध से जुड़े व्यक्तियों के राजनीति में आने से जनता का विश्वास कमज़ोर होता है.
  4. गठबंधन की राजनीति – बहुदलीय व्यवस्था में स्थिर बहुमत न बनने से गठबंधन सरकारों का गठन होता है, जिन्हें अक्सर आंतरिक अस्थिरता झेलनी पड़ती है.
  5. वंशवाद और अवसरवादिता – कई दलों में वंशवादी राजनीति योग्य और नए नेताओं के लिए अवसर सीमित कर देती है.
  6. पहचान-आधारित राजनीति – जाति, धर्म और क्षेत्रवाद पर आधारित राजनीति समाज में ध्रुवीकरण को बढ़ा सकती है.
  7. अत्यधिक दलों की उपस्थिति – मतों का बिखराव (Vote Fragmentation) होता है, जिससे स्थिर और मज़बूत सरकार बनाना कठिन हो जाता है.
  8. भ्रष्टाचार और मतदाता विश्वास – लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार और पैसे-बाहुबल के उपयोग से लोकतांत्रिक आदर्श कमजोर होते हैं.
  9. अत्यधिक वैचारिक ध्रुवीकरण – दलों के बीच सहमति की कमी से प्रभावी शासन और नीति-निर्माण में बाधाएँ आती हैं.

इस प्रकार, भारत में राजनीतिक दल केवल चुनाव जीतने के साधन नहीं हैं, बल्कि ये लोकतंत्र के आधार-स्तंभ हैं. वे जनता की आवाज़ को शासन तक पहुँचाते हैं, नीतियाँ बनाते हैं, सामाजिक बदलाव लाते हैं और लोकतांत्रिक संतुलन को बनाए रखते हैं. लेकिन पारदर्शिता की कमी, वंशवाद, अपराधीकरण और पहचान-आधारित राजनीति जैसी चुनौतियों से पार पाना ज़रूरी है ताकि भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली और अधिक मज़बूत और प्रभावी बन सके.

भारत में राष्ट्रीय दल

भारत में राष्ट्रीय दल (National Parties) का प्रभाव व्यापक और बहुआयामी है — ये न सिर्फ केंद्र की राजनीति तय करते हैं, बल्कि राज्यों पर भी इनका प्रभाव दिखता है.

नीचे प्रमुख राष्ट्रीय दलों का संक्षिप्त परिचय और उनकी वर्तमान भूमिका:

राष्ट्रीय दलमुख्य क्षेत्र / विचारधारावर्तमान भूमिका एवं प्रभाव
भारतीय जनता पार्टी (BJP)हिन्दुत्व, संरक्षणवाद, केन्द्र व राज्यों पर प्रभावBJP वर्तमान में केंद्र की सत्ताधारी पार्टी है और कई राज्यों में सरकार चला रही है. यह राष्ट्रीय नीतियों, विकास कार्यक्रमों और संघ–राज्य संबंधों में एक निर्णायक पक्ष है.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC / कांग्रेस)धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय, केंद्र-वामकांग्रेस भारत की पुरानी पार्टी है और अनेक राज्यों में अभी भी उसकी मजबूत पकड़ है. विपक्षी दल के रूप में, वह केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाती है और वैकल्पिक नीतिगत मंच प्रदान करती है.
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) – CPI(M)वामपंथ, मजदूर और कृषक अधिकारCPI(M) को राष्ट्रीय दल का दर्जा प्राप्त है. केरल और अन्य राज्यों में इसकी स्थिर उपस्थिति है, और यह वाम गठबंधनों में शामिल होकर संसद व विधानसभाओं में प्रभावी भूमिका निभाती है.
बहुजन समाज पार्टी (BSP)दलित, पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक कल्याणBSP विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में सक्रिय है. राष्ट्रीय स्तर पर वह समाज के निचले वंचित वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है.
आम आदमी पार्टी (AAP)भ्रष्टाचार विरोध, लोककल्याणAAP ने दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में सरकार बनाई है. इसने भ्रष्टाचार-रोधी और जन-सेवा आधारित नीतियों को लोकप्रियता दिलाई है.
नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP)पूर्वोत्तर भारत, क्षेत्रीय विकासNPP पूर्वोत्तर का पहला ऐसा पार्टी है जिसे राष्ट्रीय दल का दर्जा मिला है. यह क्षेत्रीय आवाज़ को राष्ट्रीय मंच तक ले जाने में सक्षम हुई है.

ध्यान दें: विभिन्न स्रोतों में राष्ट्रीय दलों की संख्या और नामों में मामूली अंतर हो सकते हैं, क्योंकि आयोग कभी-कभी दलों की मान्यता पुनर्समीक्षा करता है.

राष्ट्रीय दलों की प्रमुख भूमिका:

  • नीति-निर्माण और केंद्र सरकार नियंत्रण — वे बजट, राष्ट्रीय योजनाएँ, अंतरराष्ट्रीय संबंध, रक्षा एवं आर्थिक नीतियों जैसे विषयों को तय करते हैं.
  • गठबंधन नेतृत्व — वे अक्सर राज्यों के छोटे और मध्यम दलों के साथ गठबंधन बनाते हैं, ताकि केंद्र और राज्यों में सरकार बना सकें (उदा. NDA, UPA आदि).
  • देशव्यापी संगठन और नेटवर्क — राष्ट्रीय दलों की शाखाएँ अधिकांश राज्यों में होती हैं, जिससे वे राष्ट्रीय स्तर पर जनसंवेदनशीलता बनाए रख सकते हैं.
  • विपक्ष और संतुलन — यदि कोई राष्ट्रीय दल सत्ता में न हो, तो वह विपक्षी भूमिका निभाकर सरकार की कार्रवाई पर निगरानी रखता है और जनता की आवाज़ बनता है.
  • ांस्कृतिक एकता और बहुवाद — राष्ट्रीय दल विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में कार्य करके एकता की भावना बनाए रखते हैं, जबकि स्थानीय विविधताओं को ध्यान में रखते हैं.

राज्यीय / क्षेत्रीय दल

राज्यीय और क्षेत्रीय दल (Regional / State Parties) भारत की राजनीति में विशेष महत्व रखते हैं. ये दल उन राज्यों या क्षेत्रों की विशिष्ट समस्याओं, भाषा, सामाजिक मांगों और पहचान पर केंद्रित होते हैं.

कुछ प्रमुख क्षेत्रीय दल और उनकी भूमिका

राज्यीय / क्षेत्रीय दलराज्य या क्षेत्रभूमिका और प्रभाव
त्रिणमूल कांग्रेस (TMC)पश्चिम बंगालTMC राज्य की राजनीति में प्रमुख दल है और केंद्र के मुकाबले अपनी एक अलग राजनीतिक पहचान बनाए हुए है.
तेलुगु देशम पार्टी (TDP)आंध्र प्रदेशराज्य सरकारों में हिस्सेदारी और केंद्र सरकार के साथ गठबंधन के माध्यम से राज्य की मांगों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाती है.
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK)तमिलनाडुतमिल राजनीति की धुरी रही है; क्षेत्रीय अधिकारों, भाषा संस्कृति और केंद्रीय नीतियों में संतुलन की भूमिका निभाती है.
यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (UDP), नेशनल पीपुल्स पार्टी (पूर्वोत्तर में)मेघालय व पूर्वोत्तरपूर्वोत्तर राज्यों की विशेष समस्याओं (सड़क, विकास, आदिवासी कल्याण) को राष्ट्रीय मंच पर उठाने का काम करती हैं.
राष्ट्रीय जनता दल (RJD)बिहार व झारखंडमुख्यतः सामाजिक न्याय के मुद्दों को उठाती हैं. हाल के दिनों में आर्थिक न्याय, रोजगार, विकास व सुशासन के मुद्दों पर भी फोकस हैं.

राज्यीय दलों का महत्व

  • स्थानीय समस्या केंद्रित राजनीति — क्षेत्रीय दल घर, कृषि, जल, शिक्षा, भाषा, सांस्कृतिक मुद्दे जैसे स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित रहते हैं.
  • मूल पहचान और सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व — वे भाषा, जाति, आदिवासी और सांस्कृतिक पहचान की आवाज़ बनते हैं.
  • गठबंधन घटक — राज्यीय दल राष्ट्रीय गठबंधनों में शामिल होकर केंद्र सरकार में भागीदारी पाते हैं, जिससे उनकी मांगें लागू होती हैं.
  • नवाचार और नीति प्रयोग — एक राज्यीय दल राज्य स्तर पर नए सामाजिक एवं आर्थिक प्रयोग कर सकते हैं (उदा. शिक्षा मॉडल, स्वास्थ्य योजना) जो बाद में राष्ट्रीय रूप से अपनाए जा सकते हैं.
  • संघीय संतुलन — राज्यीय दल राज्यों की स्वायत्तता और केंद्र के दबाव के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं.

समकालीन चुनौतियाँ और अवसर

  • राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय संघर्ष: कभी-कभी राष्ट्रीय दल और क्षेत्रीय दलों के बीच टकराव होता है, विशेष रूप से जब राष्ट्रीय नीतियाँ राज्य हितों से टकराती हों.
  • गठबंधन राजनीति की अनिश्चितता: क्षेत्रीय दलों के बदलते रुझान और अस्थिर गठबंधन से शासन में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं.
  • वित्तीय दबाव और संसाधन की कमी: छोटे क्षेत्रीय दलों के पास वित्तीय संसाधन कम होते हैं, जिससे उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने में समस्या आती है.
  • लोकप्रियता बनाये रखना: क्षेत्रीय दलों को निरंतर जनप्रतिसाद और स्थानीय आधार बनाए रखना पड़ता है, अन्यथा वे कमजोर हो सकते हैं.
  • रणनीतिक अवसर: क्षेत्रीय दलों के पास यह मौका है कि वे राष्ट्रीय दलों की उपेक्षित मांगों को प्रतिनिधित्व दें और गठबंधन राजनीति में अपनी स्थिति मज़बूत करें.
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