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सम्राट अशोक: भारत के सबसे महान शासक

भारत में सबसे विशाल साम्राज्य के संस्थापक चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य राजवंश के सबसे शक्तिशाली व विश्वप्रसिद्ध महान भारतीय सम्राट थे. आर्दश, धर्म, लोकहित, लोकसेवा तथा धम्म की सम्पूर्ण विशेषताओं के के कारण उन्हें दुनिया के महान शासकों में श्रेष्ठ व भारत का का सबसे महान शासक मना जाता हैं. उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़े साम्राज्य का निर्माण कर अपने शांतिपूर्ण राज्य में व्यापार, उद्योग, कृषि, सुरक्षा व शासन-प्रणाली में उच्चतम आदर्श प्रस्तुत किए.

इस लेख में हम जानेंगे

सम्राट अशोक का जीवन परिचय (Biography of Emperor Ashoka in Hindi)

  • पूरा नाम- देवानांप्रिय अशोक (राजा प्रियदर्शी, देवताओं का प्रिय)
  • राजवंश- मौर्य
  • जन्म और स्थान- 304 ई. पू पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार के निकट)
  • शासन का समय- 269 ई.पू से 232 ई.पू
  • पहचान- भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे महान राजा के रूप में
  • पत्नी का नाम – देवी, कारुवाकी, पद्मावती, तिष्यरक्षिता
  • पिता एवं माता -बिन्दुसार एवं शुभाद्रंगी
  • पुत्र व पुत्रियों के नाम- महेंद्र, संघमित्रा, तीवल, कनाल (पुत्र) एवं चारुमती (पुत्री)
  • प्रसिद्द लड़ाई- कलिंग युद्ध. 261 इसा पूर्व
  • भाई- दिव्यादान में सम्राट अशोक के दो भाइयों सुसीम तथा विगताशोक का नाम का उल्लेख मिलता हैं.
  • मृत्यु- 232 ई पु

सम्राट अशोक की नैतिक उपलब्धि (Moral Achievement of Emperor Ashoka)

चक्रवर्ती सम्राट अशोक न केवल मौर्य राजवंश बल्कि इतिहास के महानतम राजाओं में से एक थे. उनहोंने राज्य की आवश्यकताओं के अनुरूप अपनी नीतियों के स्वरूप को निर्धारित किया, जो उनके भेरीघोष एवं धम्मघोष की नीतियों में परिलक्षित होता है. इसमें उन्हें महत्त्वपूर्ण सफलता भी मिली.

अशोक के एक कुशल शासक होने के साथ-साथ उदार व्यक्ति थे. सम्राट अशोक ने शासक बनने से पूर्व कई साम्राज्यों में उठने वाले विद्रोहों का सफलतापूर्वक दमन कर अपनी कुशलता को सिद्ध भी किया था. कलिंग युद्ध के पश्चात शांतिकालीन परिस्थितियों में व्यावहारिकता के अनुरूप भेरिघोष की बजाय धम्मघोष की नीति अशोक की दूरदर्शिता के साथसाथ कुशल शासक होने का प्रमाण है.

सन 1837 ईस्वी में सबसे पहले अंग्रेज जेम्स प्रिंसेप ने अशोक के लेखों के ब्राह्मी लिपि (धम्म लिपि) को पढ़ा था. इसके बाद ही सम्राट अशोक के महानता का ज्ञान आधुनिक भारत व विश्व को हुआ.

सम्राट अशोक ने श्रीलंका और मध्य एशिया में एक प्रबुद्ध शासक के रूप में प्रचार के द्वारा अपने राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र को विस्तृत किया. अशोक ने पड़ोसी राज्यों को सैनिक विजय के उपयुक्त क्षेत्र समझना अनुचित समझा और उन्हें आदर्श विचारों से जीतने का प्रयास करने लगा.

अशोक ने मध्य एशिया एवं यूनानी राज्यों में अपने शांतिदूत भेजे और पड़ोसी देशों में भी उसने मनुष्यों एवं पशुओं के कल्याण के लिये कार्य किया. सम्राट अशोक ने साम्राज्य की समस्याओं के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए धम्म-महामात्त नाम के अधिकारियों की नियुक्ति की जो जगह-जगह जाकर धम्म की शिक्षा देते थे. अशोक ने सड़कें बनवाईं, पेड़ लगवाएं, कुएँ खुदवाए और विश्रामगृह बनवाए तथा मनुष्यों व जानवरों की चिकित्सा की भी व्यवस्था की.

राजकुमार के रूप में उपलब्धि व मगध सम्राट के रूप में राज्यारोहण (Achievements as Prince and Ascension as Magadha Emperor)

अशोक का ज्येष्ठ भाई सुशीम तक्षशिला का प्रान्तपाल था. इलाके में भारतीय-यूनानी मूल के बहुत से लोग रहते थे. इलाके में सुशीम के अकुशल प्रशासन के कारण विद्रोह पनप उठा. तत्पश्चात, राजा बिन्दुसार ने सुशीम के कहने पर राजकुमार अशोक को विद्रोह के दमन के लिए वहाँ भेजा. अशोक के आने की खबर सुनकर ही विद्रोहियों ने उपद्रव खत्म कर दिया. इस तरह विद्रोह बिना किसी युद्ध के समाप्त हो गया. अशोक के सम्राट बनने के बाद एक बार फिर से यहाँ पर विद्रोह हुआ था. दूसरी बार भी विद्रोह को बलपूर्वक कुचल दिया गया था.

कहा जाता हैं कि राजकुमार अशोक की इस प्रसिद्धि से उसके भाई सुशीम को सिंहासन न मिलने का संकट बढ़ गया था. फिर उसने सम्राट बिंदुसार को कहकर अशोक को निर्वास में डाल दिया. अशोक कलिंग चला गया. वहाँ उसे मत्स्यकुमारी कौर्वकी से प्रेम हो गया.

वर्तमान में मिले साक्ष्यों के अनुसार बाद में अशोक ने उसे तीसरी या दूसरी रानी बनाया था. इसी बीच उज्जैन में विद्रोह हो गया. अशोक को सम्राट बिन्दुसार ने निर्वासन से बुला विद्रोह को दबाने के लिए भेज दिया.

हालांकि, उसके सेनापतियों ने विद्रोह को दबा दिया पर उसकी पहचान गुप्त ही रखी गई क्योंकि मौर्यों द्वारा फैलाए गए गुप्तचर जाल से उसके बारे में पता चलने के बाद उसके भाई सुशीम द्वारा उसे मरवाए जाने का भय था.

वह बौद्ध सन्यासियों के साथ रहा था. इसी समय उसे बौद्ध विधि-विधानों तथा शिक्षाओं के विस्तृत ज्ञान का पता चला था. यहाँ पर एक सुन्दरी, जिसका नाम देवी था, उससे अशोक को प्रेम हो गया. स्वस्थ होने के बाद अशोक ने उससे विवाह कर लिया.

नरसंहार और सिंहासन पर कब्जा (Massacre and Access to Throne in Hindi)

कुछ समय बाद सुशीम से तंग आ चुके लोगों ने अशोक को राजसिंहासन हथिया लेने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि सम्राट बिन्दुसार वृद्ध तथा रुग्ण हो चले थे. जब वह आश्रम में थे तब उनको समाचार मिला की उनकी माँ को उनके सौतेले भाईयों ने मार डाला. कहा जाता है कि इसके बाद उन्होने राजभवन में जाकर अपने सारे 99 सौतेले भाईयों की हत्या कर दी और 261 ईसा पूर्व में सम्राट बने.

अशोक ने सिर्फ अपने सहोदर भाई तिस्स को छोड़ा था. ऐसा कहा जाता है. बाद में, कई विरोधियों की हत्या की बात भी कहा जाता है. इसमें 500 मंत्री व संभावित विद्रोही शामिल थे. सुशीम की हत्या भी धोखे से की गई. लेकिन, ये सभी हत्याएं ऐतिहासिक रूप से अभी तक पुष्ट नहीं हो पाए है.

सत्ता संभालते ही अशोक ने पूर्व तथा पश्चिम, दोनों दिशा में अपना साम्राज्य फैलाना प्रारम्भ कर दिया. उन्होंने आधुनिक असम से ईरान की सीमा तक साम्राज्य केवल आठ वर्षों में विस्तृत कर लिया. सम्राट अशोक को कलिंग युद्ध के लिए भी याद किया जाता हैं, जिसमे 1 लाख से अधिक लोगों की हत्या कर दी गई थी.

साम्राज्य का विस्तार (Expansion of Kingdom in Hindi)

उनका राजकाल ईसा पूर्व 269 से, 232 प्राचीन भारत में था. सम्राट अशोक के नियंत्रम में मौर्य साम्राज्य उत्तर में हिन्दुकुश, तक्षशिला की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी, सुवर्णगिरी पहाड़ी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बांग्लादेश, पाटलीपुत्र से पश्चिम में अफ़गानिस्तान, ईरान, बलूचिस्तान तक पहुँच गया था. वर्तमान परिपेक्ष्य में उनका साम्राज्य सम्पूर्ण भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यान्मार के अधिकांश भूभाग पर था, यह विशाल साम्राज्य उस समय से आजतक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य रहा है.

सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है. इन्हे अभी के समय में कुछ कोइरी जाति के लोग अपने कुल का बताते हैं.

कलिंग की लड़ाई (War of Kalinga 261 B.C. in Hindi)

चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 8वें वर्ष (261 ई. पू.) में कलिंग पर आक्रमण किया था. इस लड़ाई का मूल कारण कलिंग में स्थित बंदरगाह से व्यापार में हो रही कठिनाई थी. दरअसल, कलिंग के राजा ने अपने बंदरगाह के उपयोग के लिए काफी अधिक कर लगा रखे थे. मगध के व्यापारियों ने सम्राट अशोक से इसकी शिकायत की थी.

Samrat Ashoka

पियदस्सी अशोक के तेरहवें शिलालेख के अनुसार कलिंग युद्ध में 1 लाख 50 हजार व्यक्‍ति बन्दी बनाए गये. 1 लाख लोगों की हत्या कर दी गयी और 1.5 लाख लोगो घायल हुए. भारी नरसंहार से विचलित सम्राट अशोक ने उपगुपत नाम के बौद्ध भिक्षुक से शांति का उपाय पूछा. उपगुप्त ने सम्राट अशोक को बौद्ध धम्म की शिक्षा दी. इसके बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म के भिक्षुकों के मार्फत शान्ति, सामाजिक प्रगति तथा धार्मिक प्रचार किया.

कलिंग युद्ध का सम्राट अशोक पर प्रभाव (Impact of Kalinga War on Emperor Ashoka in Hindi)

कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक के हृदय में महान परिवर्तन कर दिया. उनका हृदय मानवता के प्रति दया और करुणा से उद्वेलित हो गया. उन्होंने आक्रामक युद्ध को सदा के लिए बन्द कर देने की प्रतिज्ञा की और प्रतिरक्षा पर ध्यान दिया. यहाँ से आध्यात्मिक और धम्म विजय का युग आरम्भ हुआ. उन्होंने महान बौद्ध धर्म को अपना धर्म स्वीकार किया. कलिंग युद्ध के बाद आमोद-प्रमोद की यात्राओं पर पाबन्दी लगा दी.

सिंहली अनुश्रुतियों दीपवंश एवं महावंश के अनुसार सम्राट अशोक को अपने शासन के चौदहवें वर्ष में निगोथ नामक भिक्षु ने बौद्ध धर्म की दीक्षा दी. तत्पश्‍चात्‌ मोगाली पुत्त तिस्स के प्रभाव से वे पूर्णतः बौद्ध (Buddhist) हो गए.

दिव्यादान के अनुसार सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु को जाता है. सम्राट अशोक अपने शासनकाल के दसवें वर्ष में सर्वप्रथम बोधगया की यात्रा की थी. तदुपरान्त अपने राज्याभिषेक के बीसवें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा की थी तथा लुम्बिनी ग्राम को करमुक्‍त घोषित कर दिया था.

बौद्ध धर्म और सम्राट अशोक (Buddhism and King Ashok)

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकारने के बाद उन्होंने उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी किया. उन्होंने शिकार, पशु-हत्या तथा हिंसा का पूर्णतः त्याग कर दिया. सभी सम्प्रदायों के सन्यासियों को खुलकर दान देना भी आरंभ किया. बिहार के औरगांबाद में स्थित बराबर के पहाड़ियों में गुफा बनाकर आजीवकों को दी गई दान, सम्राट अशोक के सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु होने का प्रमाण हैं. उन्होंने बौद्ध धर्म को सबसे अधिक दान दिया, ऐसा उनके कार्यों से प्रतीत होता हैं.

कहा जाता है कि बौद्ध सन्यासी बनने से पहले अशोक शिकार में कई जानवरों की हत्याएं कर दिया करते थे. शाही रसोई के दावतों में भी सैकड़ों जानवरों का वध किया जाता था. लेकिन बौद्ध बनने के बाद उन्होंने शाकाहार को बढ़ावा दिया.

उन्होंने हर समय अपनी प्रजा के लिए खुद को उपलब्ध कराया. जन-समस्या का समाधान करने लगे. ऐसे व्यवस्था बनवाएं जो न सिर्फ अमीरों, बल्कि सभी को फायदा पहुंचती थी. जनकल्याण के लिए उन्होंने अनेकों चिकित्सालय, पाठशाला तथा सड़कों आदि का निर्माण करवाया. सड़क के किनारे विश्रामालय व पेड़ों की स्थापना का श्रेय भी उन्हें दिया जाता हैं. माना जाता है कि श्रीनगर (Srinagar) की स्थापना सम्राट अशोक मौर्य ने की थी।

उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धम्म प्रचारकों को नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, मिस्र तथा यूनान भेजा. इसी कार्य के लिए उसने अपने पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा को भी यात्राओं पर भेजा था.

अशोक के धम्म प्रचारकों में सबसे अधिक सफलता उसके पुत्र महेन्द्र को मिली. महेन्द्र ने श्रीलंका के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया. तिस्स ने बौद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना लिया और अशोक से प्रेरित होकर उसने स्वयं को ‘देवनामप्रिय’ की उपाधि दी.

तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन (Organized third meetings of Buddhist Councils)

सम्राट अशोक के शासनकाल में ही पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता मोगाली पुत्त तिस्स ने की. यहीं अभिधम्मपिटक की रचना भी हुई. बौद्ध भिक्षु विभिन्‍न देशों में भेजे गये. इनमें अशोक के पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा भी सम्मिलित थे, जिन्हें श्रीलंका भेजा गया.

बौद्ध धम्म के प्रचार के लिए किए गए कार्य (Work done for the propagation of Buddhism in Hindi)

अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित साधन अपनाये-

  • धम्मयात्राओं का प्रारम्भ,
  • राजकीय पदाधिकारियों की नियुक्‍ति,
  • धम्म महापात्रों की नियुक्‍ति,
  • दिव्य रूपों का प्रदर्शन,
  • धम्म श्रवण एवं धम्मोपदेश की व्यवस्था,
  • लोकाचारिता के कार्य,
  • धम्मलिपियों का खुदवाना,
  • विदेशों में धम्म प्रचार को प्रचारक भेजना आदि.

धम्मयात्रा के रूप में सम्राट अशोक अपने अभिषेक के 10वें वर्ष बोधगया की यात्रा पर गए. अपने अभिषेक 20वें वर्ष में लुम्बिनी ग्राम की यात्रा की. नेपाल तराई में स्थित निगलीवा में उसने बौद्ध कनकमुनि के स्तूप की मरम्मत करवाई. बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने साम्राज्य के उच्च पदाधिकारियों को नियुक्‍त किया. स्तम्भ लेख तीन और सात के अनुसार व्युष्ट, रज्जुक, प्रादेशिक तथा युक्‍त नामक पदाधिकारियों को जनता के बीच जाकर धम्म प्रचार करने और उपदेश देने का आदेश जारी किया गया था.

अभिषेक के 13वें वर्ष के बाद, बौद्ध धर्म प्रचार हेतु पदाधिकारियों का एक नया वर्ग बनाया जिसे ‘धम्म महापात्र’ कहा गया. इसका कार्य विभिन्‍न धार्मिक सम्प्रदायों के बीच द्वेषभाव को मिटाकर धर्म की एकता स्थापित करना था.

सम्राट अशोक के निर्माण कार्य (Construction works of Samrat Ashok)

परोपकारी सम्राट अशोक ने अपने जीवनकाल में कई विश्वविद्यालय, भवन, स्तूप, मठ और स्तंभ का निर्माण करवाया. सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गये मठ और स्तूप राजस्थान के बैराठ में मिलते हैं. इनका साँची का स्तूप विश्वप्रसिद्ध है.

मौर्य सम्राट अशोक के शिलालेख (Inscriptions of Mauryan Emperor Ashoka in Hindi)

सम्राट अशोक ने ईरानी शासक की प्रेरणा से अनेक शिलालेख खुदवाए थे. अभीतक उनके करीब 40 शिलालेख मिले हैं. ये शिलालेख भारत, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, वर्तमान बांग्लादेश व पाकिस्तान इत्यादि देशों में मिले हैं. भारत में मौजूद सम्राट अशोक के शिलालेख एवं उनके नाम निम्नलिखित हैं –

  • शिलालेख- स्थान
  • रूपनाथ- जबलपुर ज़िला, मध्य प्रदेश
  • बैराट- राजस्थान के जयपुर ज़िले में, यह शिला फलक कलकत्ता संग्रहालय में भी है.
  • मस्की- रायचूर ज़िला, कर्नाटक
  • येर्रागुडी- कर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश
  • जौगढ़- गंजाम जिला, उड़ीसा
  • धौली- पुरी जिला, उड़ीसा
  • गुजर्रा- दतिया ज़िला, मध्य प्रदेश
  • राजुलमंडगिरि- बल्लारी ज़िला, कर्नाटक
  • गाधीमठ- रायचूर ज़िला, कर्नाटक
  • ब्रह्मगिरि- चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
  • पल्किगुंडु- गवीमट के पास, रायचूर, कर्नाटक
  • सहसराम- शाहाबाद ज़िला, बिहार
  • सिद्धपुर- चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
  • जटिंगा रामेश्वर- चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
  • येर्रागुडी- कर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश
  • अहरौरा- मिर्ज़ापुर ज़िला, उत्तर प्रदेश
  • दिल्ली- अमर कॉलोनी, दिल्ली

अशोक स्तम्भ (Ashoka’s Pillars in Hindi)

उन्होने कई स्तम्भ खड़े किए. जो आज भी नेपाल में लुम्बिनी – में मायादेवी मन्दिर के पास, सारनाथ, बौद्ध मन्दिर बोधगया, कुशीनगर एवं आदी श्रीलंका, थाईलैण्ड, चीन इमें स्थित है. इसे ही अशोक स्तम्भ कहा जाता है. भारत का राष्ट्रिय चिन्ह भी अशोक स्तम्भ के ऊपरी सिरे से लिया गया है, जिसमे चार राजसी सिंह एक-दूसरे के तरफ पीठ कुए हुए बैठे हैं.

अशोक चक्र (Ashoka Chakra in Hindi)

आज, अशोक चक्र को भारत के राष्ट्रीय ध्वज पर चित्रित किया गया है. अशोक ने अपने कई निर्माणों पर इस छवि का इस्तेमाल किया. यह बौद्ध धर्म के तत्कालीन 24 महत्वपूर्ण धम्म को दर्शाता है. पहिए में 24 तीलियाँ हैं जो दर्शाती हैं:

  1. प्यार
  2. साहस
  3. धैर्य
  4. शांति
  5. दयालुता
  6. भलाई
  7. भक्ति
  8. नम्रता
  9. आत्म – संयम
  10. निस्सवार्थता
  11. आत्मत्याग
  12. सच्चाई
  13. धर्म
  14. न्याय
  15. दया
  16. कृपा
  17. विनम्रता
  18. सहानुभूति
  19. सहानुभूति
  20. धम्म ज्ञान
  21. धम्म बुद्धिमत्ता
  22. धम्म नैतिकता
  23. ईश्वर का श्रद्धालु भय
  24. अच्छाई में आशा/ विश्वास/ विश्वास

मृत्यु एवं महत्वपूर्ण संस्मरण (Death and Important Memoirs in Hindi)

उनकी मृत्यु कब हुई, कहां हुई, बीमारी से हुई, हादसे में हुई, वृद्धावस्था में हुई, यह भी किसी को मालूम नहीं. सिर्फ वर्ष का ही अनुमान ऐतिहासिक स्त्रोतों के सबूतों के आधार पर हो सका हैं. ये भी अनुमान लगाया जाता है कि उनकी मृत्यु राजधानी पाटलिपुत्र में ही हुई. इस तरह हम कह सकते है कि अपने शासन के 40 सालों बाद सम्राट अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में ही हो गई.

सम्राट अशोक प्रेम, सहिष्णूता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थे. इसलिए उनका नाम इतिहास में महान परोपकारी सम्राट के रूप में दर्ज है. सम्राट अशोक के ही समय में 23 विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई. इनमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कन्धार आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे. ये विश्वविद्यालय उस समय के उत्कृष्ट विश्वविद्यालय थे.

विद्वान सम्राट अशोक की तुलना विश्‍व इतिहास की विभूतियाँ कांस्टेटाइन, ऐटोनियस,सेन्टपॉल, नेपोलियन सीजर के साथ करते हैं.

अशोक अहिंसा, शान्ति तथा लोक कल्याणकारी नीतियों के विश्‍वविख्यात तथा अतुलनीय सम्राट हैं. एच. जी. वेल्स के अनुसार अशोक का चरित्र “इतिहास के स्तम्भों को भरने वाले राजाओं, सम्राटों, धर्माधिकारियों, सन्त-महात्माओं आदि के बीच प्रकाशमान है और आकाश में प्रायः एकाकी तारा की तरह चमकता है.”

सम्राट अशोक द्वारा स्थापित विशाल साम्राज्य का पतन (Fall of the great empire founded by Emperor Ashoka in Hindi)

ये कहा जा सकता है कि अशोक का राज्य काफी विस्तारित था. इस वजह से उस पर नियंत्रण रखना मुश्किल था व सेना को सुदूर में हुए विद्रोह को कुचलने में काफी लम्बी यात्रा करना पड़ सकता था. ऐसे में, सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के द्वारा अपने साम्राज्य को वैचारिक रूप से एकजुट रखने का प्रयास किया था. लेकिन शाही षड्यंत्र चलते रहे और यह राज्य अधिक टिक न सका. इतिहासकार रोमिला थापर भी कुछ ऐसा ही मंतव्य व्यक्त करती है.

पुष्यमित्र शुंग नाम के एक सेनापति ने; धोखे से सम्राट अशोक के पोते व तत्कालीन मगध सम्राट बृहद्रथ की ह्त्या 185 ईस्वी पूर्व में कर दी व; नया मगध सम्राट होने का उद्घोष कर दिया. इसने शुंग वंश की स्थापना की. इस तरह अशोक के मृत्यु के 50 वर्षों के बाद ही मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया.

पुष्यमित्र शुंग को ब्राह्मणवंशीय माना जाता है. बौद्ध ग्रंथो में पुष्यमित्र शुंग को धम्म-विरोधी साबित करने की कोशिश की गई है. ये भी कहा जाता है कि उसी ने बौद्धों के 84 हजार स्तूपों को नष्ट कर दिया. हालाँकि, पुरातात्विक साक्ष्य कुछ और कहते है. पुरातत्व के अनुसार, पुष्यमित्र ने भरहुत स्तूप का निर्माण करवाया और साँची स्तूप का मरम्मत करवाया.

सम्राट अशोक फिल्म एवं सीरियल (Movie and Serials on Emperor Ashok in Hindi)

सम्राट अशोक के जीवन पर आधारित ‘सम्राट अशोक’ नाम की एक मूवी साल 1992 में आई थी. इस मूवी को एन.टी रामा राव निर्देशित किया था. इसके अलावा सम्राट अशोक के जीवन पर आधारित एक सीरियल भी कलर्स टीवी चैनल पर आता था. इसका नाम चक्रवर्ती सम्राट अशोक है. इस सीरियल का आखिरी शो 7 अक्टूबर 2016 को प्रसारित किया गया था.

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