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ग्रीन हाउस गैसें और पर्यावरण पर उनके प्रभाव

विश्व का औसत तामपान आज के समय में काफी बढ़ चुका है. इसे ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) या वैश्विक तापन के नाम से जाना जाता हैं. औद्योगिकीकरण, घटते पेड़ व बढ़ती आबादी के साथ ही ग्रीन हाउस गैसों के प्रतिशत में वृद्धि इसका मुख्य कारण माना जाता है. तो आइये हम जानते है ग्रीन हाउस गैसों के मानव व पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को, जो प्रतियोगी परीक्षा के दृष्टिकोण के से भी काफी महत्वपूर्ण है.

ग्रीन हाउस गैसें क्या है व परिभाषा? (What are Green House Gases ant its definition in Hindi)

ये गैसें उन गैसों का समूह है जो वायुमंडल का तामपान नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. दरअसल, जो गैस सूर्य से आने वाले लघुतरंगीय विकिरण को पृथ्वी पर आने देती है, लेकिन पृथ्वी से वापस जाने वाले दीर्घतरंगीय विकिरण को अवशोषित कर पृथ्वी के तापमान को बढ़ा देती है, ग्रीन हाउस गैस कहलाती है. यदि ये गैसें न हो तो धरती के ठंडा होने या हिमयुग आने का खतरा होता है. इनकी बढ़ती मात्रा ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रही है.

ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव, फायदे व नुकसान (Effects, Advantages and Disadvantages of Green House Gases in Hindi)

सूर्य के प्रकाश किरणों का 31 फीसदी भाग पृथ्वी की सतह से पुनः परवर्तित होकर अंतरिक्ष में चला जाता है और 20 प्रतिशत भाग वातावरण के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है. सूर्य से आई ऊर्जा का बचा हुआ भाग, पृथ्वी पर मौजूद समुद्र और सतह पर मौजूद वस्तुओं (पेड़, मिटटी, मकान इत्यादि) द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है. फिर यह ऊष्मा (heat) में परिवर्तित हो जाता है जो पृथ्वी कि सतह और उपर मौजूद हवाओ को गर्म बनाये रखती है. इस तरह ये गैसे पृथ्वी की ऊष्मा को पृथ्वी पर बांधे रखती है.

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ग्रीन हाउस गैसों के मात्रा में वृद्धि से पृथ्वी का तामपान बढ़ने लगता है. वहीं, इसकी मात्रा में कमी के साथ ही पृथ्वी का तामपान कम होने लगता है.

यानि इसका अधिक मात्रा गर्मी तो कम मात्रा ठण्ड का जलवायु निर्मित करती है. इसलिए इसका वायुमंडल में मानक प्रतिशत में रहना ही उचित माना जाता है.

ग्रीन हाउस गैसों का नाम, प्रकार व प्रतिशत (Green House Gases, Types and percentage in Hindi)

ग्रीनहाउस गैसें मुख्य दो प्रकार की होती है. एक प्राकृतिक दूसरा मानव निर्मित. कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4), जल वाष्प, नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) व फ्लुओरीनीकृत गैसें प्राकृतिक होती है. जबकि, क्लोरोफ़्लोरोकार्बन (CFCs), हाइड्रो फ़्लोरोकार्बन (HFCs), पर फ़्लोरोकार्बन’ (PFCs), सल्फर हेक्साक्लोराइड (SF6) संश्लेषित या मानव निर्मित ग्रीन हाउस गैसें कहलाती है. कार्बन डाई ऑक्साइड सबसे महत्वपूर्ण ग्रीन हाउस गैस कहलाती है. पौधे भी इसे ग्रहण कर भोजन का निर्माण करती है.

प्रतिशत अनुसार मात्रा (As per percentage in Hindi)

  1. जलवाष्प (Water vapour – H2O) – 36-70% –
  2. कार्बनडाई ऑक्साइड (Carbon Dioxide – CO2) -9-26%
  3. मेथेन (मीथेन – CH4)-4-9%
  4. नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrous oxide – N2O) 3-7%
  5. ओज़ोन(Ozone -O3) – 0.00006%
  6. क्लोरोफ्लोरोकार्बन (हाइड्रो CFCs सहित) (CFCs) – 14%

भाप यानि जलवाष्प ग्रीनहाउस प्रभाव में सबसे अधिक योगदान करता है. अलबत्ता वातावरण में लगभग सारा जल भाप प्राकृतिक प्रक्रियाओं से ही आती है. इस तरह भाप विश्व में सबसे ज्यादा पाई जानेवाली ग्रीन हाउस गैस है.

कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2), मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड मुख्य ग्रीनहाउस गैसें हैं जिसकी वयमंडल में मात्रा चिंतनीय हैं. कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) वातावरण में लगभग 1000 वर्षों तक बनी रहती है. जबकि, मीथेन लगभग एक दशक तक, और नाइट्रस ऑक्साइड लगभग 120 वर्षों तक वातावरण में मौजूद रहती है.

कार्बन डाइऑक्साइड वनों की कटाई और जीवाश्म ईंधन के जलने के साथ-साथ जीवों द्वारा सांस छोड़ने और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं के जरिए भी वातावरण में फैलती है. यह जल की अम्लीयता को भी बढ़ाती है, जो जलीय जीवों के लिए नुकसानदायक होता है. इसकी तपन क्षमता एक होती है. यह गैस 0.5 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ रही है.

धरती पर उत्सर्जित होने वाली 40 फीसदी कार्बन को पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण के दौरान सोख लेते हैं, जबकि इसका एक-चौथाई हिस्सा समुद्रों द्वारा भी सोखा जाता है. कार्बन चक्र कार्बन डाई ऑक्साइड के निस्तारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. लेकिन पेड़-पौधों के कमी ने इसकी प्रक्रिया को मुश्किल बना दिया है.

15 फरवरी 2021 के आंकड़ों के अनुसार इसका स्तर 415.88 पार्टस प्रति मिलियन पर पहुंच चुका है, जोकि पिछले 6.5 लाख वर्षों में सबसे ज्यादा है. पिछले 171 वर्षों में मानवीय गतिविधियों के चलते इसके स्तर में 1850 की तुलना में करीब 48 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है.

यह वृद्धि कितनी अधिक है इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इसकी इतनी वृद्धि पिछले 20000 वर्षों में प्राकृतिक रूप से कभी भी नहीं हुई है. आप ये भी जाने कि वीनस यानी शुक्र ग्रह पर 97.5 फीसदी कार्बन डाई आक्साइड है जिस कारण उसकी सतह का तापमान 467 डिग्री सेल्सियस है.

कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) ग्रीनहाउस गैस है या नहीं (Carbon Mono-Oxide)

यह गैस ग्रीन हाउस गैसों की श्रेणी में नहीं आती है. हालाँकि, यह जानवरों के लिए विषाक्त होती है, जो हीमोग्लोबिन से मिलकर ऑक्सीज़न वाहक का काम करती है. इसके साथ ही नाइट्रोजन, ऑक्सीज़न, निऑन, ऑर्गोन जैसे गैस ग्रीन हाउस गैस नहीं है.

वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने के कारण

ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :

1. औद्योगिकीकरण व जीवाश्म ईंधन (Industrialisation and Fossil Fuels)

बढ़ते उद्योगों के साथ ही कोयला, तेल व प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों का उपयोग बढ़ गया है. इन ईंधनों का मुख्य तत्व कार्बन होता है, जो उपयोग किए जाने के बाद कार्बन डाई ऑक्साइड में बदल जाता है.

2. नगरीकरण (Urbanization)

आधुनिक समय में तेजी से नए नगर बन रहे है व पुराने शहरों के इलाके में विस्तार होता है. बढ़ते नगरीकरण से ऊर्जा की मांग में तेजी से बढ़तरी हुई है. इसके साथ हो रही औद्योगिकीकरण में विकास ने भी मामले को गंभीर बना दिया है. मीथेन के उत्पादन में तेल और गैस निकासी, कोयला खुदाई, और कूड़ा घर का योगदान 55 फीसदी होता है. इस तरह शहरें ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का मुख्य कारण बनी हुई है.

3. उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumer Culture)

अधिक सुविधाओं से लैस होने के चाहत में लोग अधिक से अधिक आधुनिक आविष्कारों का इस्तेमाल करने लगे है. इस वजह से भी औद्योगिकीरण व जीवाश्म ईंधन पर दवाब बढ़ा है.

4. वनों का विनाश (Deforestation)

वनों के लगातार कटाव से उनके द्वारा अवशोषित की जाने वाली कार्बनडाई ऑक्साइड का स्तर पर्यावरण में बढ़ रहा है.

5. खेती व पशुपालन (Farming and Animal Husbandary)

मीथेन उत्सर्जन की लगभग 32 प्रतिशत मात्रा के लिये, गायों, भेड़ों और ऐसे अन्य मवेशियों को ज़िम्मेदार माना जाता है, जो अपने पेटों में भोजन की सिरका या ख़मीर प्रक्रिया करते हैं.

खाद को गलाना या उसका अपघटन करना, और धान की खेती भी, मीथेन गैसे उत्सर्जन के अन्य महत्वपूर्ण कारण हैं.

नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन मुख्य रूप से कृषि सम्बन्धी गतिविधियों के कारण होता है. भूमि और जल में मौजूद बैक्टीरिया, नाइट्रोजन को प्राकृतिक रूप से नाइट्रस ऑक्साइड में तब्दील करते हैं. मगर उर्वरकों का प्रयोग करने के कारण इस प्रक्रिया में बढ़ोत्तरी होती है .इसके कारण पर्यावरण में और ज़्यादा नाइट्रोजन एकत्र हो जाती है.

इसके अलावा टेलीविज़न, रेफ्रीजरेटर, एयर-कंडीशनर का उपयोग भी ग्रीनहाउस गैसों के उत्पादन में बढ़ावा देती है.

ग्रीन हाउस गैसों को कम करने के उपाय (Steps to Mitigate Green House Gases in Hindi)

  • जीवाश्म ईंधन के जगह नवीकरणीय व कम प्रदुषण पैदा करने वालों ऊर्जा स्त्रोतों का उपयोग किया जाएं.
  • नए पेड़ व जंगल लगाए जाएं. पुराने पेड़ों व जंगलों का संरक्षण हो.
  • ग्रीनहाउस गैसों को उत्सर्जित करने वाली उपभोक्ता वस्तुओं का कम से कम प्रयोग किया जाए.
  • कोयला जैसे जीवाश्म ईंधनों के प्रयोग को चरणबद्ध तरीक़े से ख़त्म किया जाएं.
  • महासागरों की गहराई में कार्बन डाई ऑक्साइड का निस्तारण (Disposal), जहाँ वे निम्न तापमान व उच्च दबाव में अर्ध-स्थायी यौगिकों में बदल जाते हैं.
  • एक शोध के अनुसार दुनिया हर साल लगभग 70 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन प्रदूषण के उत्सर्जन से बच सकती है, यदि हर व्यक्ति रोजमर्रा की जीवन शैली में आवागमन के लिए साइकिल को अपना ले.
  • यातायात का क्षेत्र ग्रीन हाउस गैसों का एक चौथाई हिस्सा उत्त्पन्न करती है. उनमें से आधा उत्सर्जन यात्री कारों से होता हैं.
  • वर्ष 2010 से 2021 तक, वैशाख स्तर पर ऐसी नीतियाँ बनाई और लागू की गई हैं जिनके ज़रिये वर्ष 2030 तक, वार्षिक उत्सर्जन में 11 गीगाटन की कमी लाने का लक्ष्य है.
  • नाइट्रस ऑक्साइड तीसरी सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है उसमें से भी 50 प्रतिशत पानी की पारिस्थितिकी तंत्रों के सूक्ष्मजीवों से आती है. ताम्बे के प्रकृति में मौजूदगी से इस गैस का डिनाईट्रिफिकेशन होता है. ऐसा शोध से भी साबित हुआ है.
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