आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय का गठन, शक्तियां एवं कार्य, न्यायाधीशों की नियुक्ति, शपथ, योग्यताएं, आयु सीमा, महाभियोग, वेतन व भत्ते एवं अन्य तथ्यों के बारे में जानेंगे.
सर्वोच्च न्यायालय के गठन (Formation of Supreme Court)
भारतीय संविधान के भाग V के अध्याय 4 के तहत सर्वोच्च न्यायालय स्थापित किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 के नियम में सर्वोच्च न्यायालय की संरचना और अधिकार क्षेत्र का वर्णन है. सर्वोच्च न्यायालय का गठन का प्रावधान की शक्ति अनुच्छेद 124 में दिया गया है. सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना, गठन, अधिकारिता शक्तियों के अंतरण से संबंधित नियम और कानून बनाने शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त है.
भारत की न्यायिक व्यवस्था इकहरी और एकीकृत है, जिसके सर्वोच्च पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय है और भारत का अंतिम न्यायालय भी है. इसलिए इसे शीर्ष या शीर्षस्थ अदालत भी कहा जाता हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत भारत में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई है.
सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना
सर्वोच्च न्यायालय स्थापना 28 जनवरी, 1950 ई. को भारत की राजधानी नई दिल्ली में तिलक रोड स्थित 22 एकड़ जमीन में एक वर्गाकार जमीन पर किया गया. जिसका डिजाइन केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के प्रथम भारतीय अध्यक्ष मुख्य वास्तुकार गणेश भीकाजी देवलालीकर द्वारा इंडो ब्रिटिश स्थापत्य शैली किया गया था.
भारत के एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के दो दिन बाद भारत का उच्चतम न्यायालय अस्तित्व में आया. सर्वोच्च न्यायालय के उद्घाटन के बाद संसद भवन के चेंबर ऑफ प्रिंसेस (नरेंद्र मंडल) पहली बैठक की शुरुआत की गई थी. सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन (SCBA) उच्चतम न्यायालय की बार (BAR) है.
न्यायाधीशों की संख्या
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या का वर्णन अनुच्छेद 124 (1) में किया गया है. वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल न्यायाधीशों की संख्या 31 है, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश सहित 30 अन्य न्यायाधीश को मिलाकर सर्वोच्च न्यायालय का गठन किया गया है. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या को निश्चित करने का अधिकार भारतीय संसद को प्राप्त है.
नोट: उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित कुल 8 न्यायाधीशों की व्यवस्था मूल संविधान में की गई थी. बाद में काम के बढ़ते दबाव को देखते हुए भारतीय संसद ने 1956 ई. में सर्वोच्च न्यायालय अधिनियम में संशोधन करने वाले न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 11 की गई. तत्पश्चात 1960 ई. में इसे बढ़कार 14 कर दी गई. 1978 ई. में इसकी संख्या 18 और 1986 ई. में 26 हो गया. केंद्र सरकार ने 1 फरवरी, 2008 को शीर्ष अदालत में मुख्य न्यायाधीशों के अतिरिक्त न्यायाधीशों की संख्या 25 से बढ़ाकर 30 करने का फैसला किया. इस तरह अभी कुल 31 न्यायाधीश शीर्ष अदालत मे है.
योग्यताएँ
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यता का वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (3) में किया गया है. जिसके के लिए निम्नलिखित योग्यताएं आवश्यक हैं:
- वह भारत का नागरिक है.
- वह किसी उच्च न्यायालय या दो या दो से अधिक न्यायाधीशों में लगातार कम से कम 5 साल तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहे हैं. या किसी उच्च न्यायालय में लगातार 10 साल तक अधिवक्ता बने रहे. या राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्च कोटि का ज्ञाता हो.
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अवकाश प्राप्त करने के बाद भारत के किसी भी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नहीं कर सकते हैं.
परामर्श शब्द की व्याख्या और न्यायिक दृष्टिकोण सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न मामलों में ‘परामर्श’ शब्द की अलग-अलग व्याख्या की है: 1. प्रथम न्यायाधीश मामला (1982) – इस फैसले में न्यायालय ने कहा कि ‘परामर्श’ का अर्थ केवल विचारों के आदान-प्रदान से है, इसे ‘अनिवार्य सहमति’ नहीं माना जा सकता. 2. द्वितीय न्यायाधीश मामला (1993) – इस निर्णय में पहले के फैसले को पलटते हुए न्यायालय ने ‘परामर्श’ का अर्थ ‘अनिवार्य सहमति’ के रूप में व्याख्यायित किया. 3. तृतीय न्यायाधीश मामला (1998) – इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ‘परामर्श’ का अर्थ केवल मुख्य न्यायाधीश की व्यक्तिगत राय नहीं है, बल्कि यह ‘न्यायाधीशों के सम्मिलित परामर्श’ की प्रक्रिया है. इसमें कहा गया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश को चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के साथ मिलकर निर्णय लेना चाहिए. यदि इनमें से दो न्यायाधीश भी किसी नाम पर असहमति जताते हैं, तो सरकार को उस नाम की नियुक्ति की सिफारिश नहीं की जानी चाहिए. न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि इस सामूहिक परामर्श प्रक्रिया का पालन नहीं होता है, तो मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश सरकार पर बाध्यकारी नहीं मानी जाएगी. |
नियुक्ति
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है.
- सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इस संदर्भ में राष्ट्रपति को परामर्श देने के पूर्व अनिवार्य रूप से चार वरिष्ठ न्यायाधीशों के समूह से परामर्श प्राप्त करते हैं और प्राप्त पर वर्ष के आधार पर राष्ट्रपति को परामर्श देते हैं.
- सबसे अधिक समय तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहने वाले न्यायाधीश यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (जिनका कार्यकाल 22 फरवरी, 1978 ई. से 11 जुलाई, 1985 ई. तक, 2696 दिन) थे.
- सबसे कम समय तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहने वाले न्यायाधीश कमल नारायण सिंह (जिनका कार्यकाल 25 नवंबर, 1991 ई. से 12 दिसंबर, 1991 ई. तक, 17 दिन) थे.
शपथ ग्रहण
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद एवं गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति दिलाता है. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भारत के राष्ट्रपति के समक्ष भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा और देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने की शपथ ग्रहण करनी होती है.
आयु सीमा और महाभियोग
आयु सीमा: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई है. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की कार्य अवधि उनके आयु के 65 वर्ष तक की होती है किंतु, इससे पूर्व व राष्ट्रपति को संबोधित कर अपना इस्तीफा दे दिया जाता है.
महाभियोग: महाभियोग के लिए संसद के दोनों सदन अलग-अलग प्रस्ताव पारित कर एक ही सत्र में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों की कुल संख्या का 2/3 बहुमत होना आवश्यक है.
(i) कदाचार
(ii) शारीरिक व मानसिक असमर्थता के आधार पर संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अनुच्छेद 124 (4) के तहत विशेष बहुमत प्रक्रिया द्वारा पारित ‘महाभियोग प्रस्ताव ’के माध्यम से हटाया जा सकता है.
नोट: महाभियोग प्रक्रिया पहली बार 1991-93 ई. में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी. रामास्वामी के खिलाफ और 2011 ई. में कोलकाता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग लाया गया. राज्यसभा में पारित होने के बाद लोकसभा में पारित होने के पहले ही उन्होंने त्यागपत्र दे दिया. सिक्किम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पीडी दिनाकरण ने महाभियोग की कार्रवाई शुरू होने से पहले त्यागपत्र दिया.
वेतन और भत्ते
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन व भत्ते भारत के संचित निधि से दिए जाते हैं. इसका वर्णन अनुच्छेद 125 में किया गया है. वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों को 2,80,000 रूपए प्रतिमाह और अन्य न्यायाधीशों को 2,50,000 रुपए प्रतिमाह को प्राप्त होता है. इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों का वेतन ₹100,000 रुपए प्रतिमाह और अन्य न्यायाधीशों को न्यायालय 90,000 रुपए प्रतिमाह थी.
इसके अलावा सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को निशुल्क आवास, मनोरंजन के लिए कर्मचारी , कार और यात्रा भत्ता मिलता है.
शक्तियां एवं कार्य (क्षेत्राधिकार)
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मुकदमे को सुनने और फैसला करने की शक्ति एवं अधिकार को न्यायिक अधिकार क्षेत्र कहते हैं. सर्वोच्च न्यायालय के तीन प्रकार के क्षेत्र है:
- प्रारंभिक अथवा मूल अधिकार क्षेत्र
- अपील संबंधी अधिकार क्षेत्र
- परामर्शदात्री अधिकार क्षेत्र
प्रारंभिक अथवा मूल क्षेत्राधिकार
कुछ मुकदमे ऐसे हैं जो केवल सर्वोच्च न्यायालय के न्याय क्षेत्र में आते हैं. ऐसे मुकदमे केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही प्रारंभ होते हैं. मतलब, जिन्हें पहली बार केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही दायर किया जाता है. वे किसी अन्य न्यायालय में दायर नहीं किए जा सकते हैं. मूल अधिकार में आने वाले मुकदमे इस प्रकार है:
(i) a.ऐसे मुकदमे जिनमें एक और केंद्रीय सरकार तथा दूसरी ओर एक या एक से अधिक राज्य सरकारें हो.
(i) b.ऐसे मुकदमे जिनमें एक ओर केंद्रीय सरकार के अतिरिक्त एक क्या एक से अधिक अन्य राज्य सरकारें हो और दूसरी ओर एक या एक से अधिक राज्य सरकारें हो.
(i) c.ऐसे मुकदमे जिनमें दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवाद हो.
(ii) मौलिक अधिकार के संरक्षण तथा लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को विशेष अधिकार दिए गए हैं जिनके लिए उसे निर्देश अथवा आदेश देने का अधिकार है.
(iii) जनहित याचिका (PIL) भी सीधे सर्वोच्च न्यायालय में सुनी जा सकती है. यह ऐसा अधिकार है जो संविधान में वर्णित नहीं है.
अपील संबंधित क्षेत्र अधिकार
किसी भी निचली अदालत द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध की गई अपील को किसी उच्च न्यायालय द्वारा सुनने की शक्ति को को अपील संबंधित ने अधिकार कहा जाता है. सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध अपील सुन सकता है अतः सर्वोच्च न्यायालय में की गई अपील अंतिम अपील होती है. यह अपील दीवानी, फौजदारी तथा संवैधानिक मामलों से बन तो सकती हैं.
(i) दीवानी मामले : अनुच्छेद 133
दीवानी मामले के अंतर्गत संपत्ति विवाद, धन समझौते या किसी सेवा संबंधी झगड़ों के मामले आते हैं. ऐसे मामले में उच्च न्यायालय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है. पहले ऐसे दीवानी मामलों की वित्तीय सीमा केवल 20,000 रुपए तक थी. परंतु 1972 ई. में किए गए संविधान के तीसरे संशोधन के अनुसार आप सर्वोच्च न्यायालय में की जाने वाली दीवानी अपील के लिए कोई न्यूनतम राशि निर्धारित नहीं है.
(ii) फौजदारी मामले : अनुच्छेद 134
कई परिस्थितियों में फौजदारी मामले में उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है:
यदि को उच्च न्यायालय निचली अदालत द्वारा दोष मुक्त घोषित किए गए व्यक्ति को मृत्युदंड सुना दे तो ऐसे व्यक्ति को इस निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार है .
यदि उच्च न्यायालय किसी ने इसलिए अदालत में किसी मुकदमे को अपने यहां मंगा ले और उस व्यक्ति को दोषी करार देते हुए मृत्युदंड सुना दे तो ऐसे मामले में भी सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है.
(iii) संवैधानिक मामले : अनुच्छेद 132
संवैधानिक मामले ना तो दीवाने झगड़े होते और ना ही फौजदारी अपराध. ऐसा मुकदमा है जिनके कारण संविधान की भिन्न भिन्न प्रकार से व्याख्या करना होता है. विशेष तौर पर मौलिक अधिकारों से संबंधित व्याख्या अथवा अर्थ निकालना. ऐसे मामलों की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में केवल तभी हो सकती है यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करें कि मामला संवैधानिक सवालों से संबंधित है.
परामर्शदात्री अधिकार क्षेत्र
परामर्शदात्री अधिकार का अर्थ यह है कि सर्वोच्च न्यायालय को प्रमाण देने का अधिकार है यदि उस से परामर्श मांगा जाए . परामर्श संबंधी अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत राष्ट्रपति किसी भी कानून संबंधित अथवा लोक महत्व के परामर्श पर सर्वोच्च न्यायालय से प्रमाण मांग सकता है परंतु सर्वोच्च न्यायालय परामर्श देने के लिए बाध्य नहीं है.
आज तक जब भी सर्वोच्च न्यायालय ने कोई प्रमाण दिया है राष्ट्रपति ने उसे सादर स्वीकार किया है. अयोध्या में जिस स्थान पर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी, उस स्थान पर पहले मंदिर था या नहीं,जब इस पर सर्वोच्च न्यायालय की राय मांगी गई तो उसने अपनी राय देने से इनकार कर दिया था.
अन्य कार्य
- मौलिक अधिकारों का संरक्षण
- न्यायिक पुनरावलोकन
- जनहित याचिका (PIL)
कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System)
कॉलेजियम प्रणाली की नींव तृतीय न्यायाधीश मामले (1998) में रखी गई और तब से यह न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की मान्य प्रक्रिया बन गई है. भारतीय संविधान या इसके किसी भी संशोधन में कॉलेजियम प्रणाली का कोई उल्लेख नहीं है.
कॉलेजियम संरचना:
- सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम: इसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं.
उच्च न्यायालय कॉलेजियम: इसका नेतृत्व संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश करते हैं और इसमें चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं.
उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित नामों को सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम और CJI की स्वीकृति के बाद ही केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है. न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका केवल कॉलेजियम की सिफारिशों के बाद शुरू होती है.
कॉलेजियम प्रणाली बनाम राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)
कॉलेजियम प्रणाली के तहत:
- कॉलेजियम केंद्र सरकार को वकीलों या न्यायाधीशों के नाम नियुक्ति के लिये प्रस्तावित करता है.
- केंद्र सरकार भी सुझाव या आपत्ति के रूप में कुछ नाम वापस कॉलेजियम को भेज सकती है.
- यदि कॉलेजियम पुनः उन्हीं नामों को प्रस्तावित करता है, तो सरकार को उन पर सहमति देनी होती है, हालाँकि सरकार के उत्तर के लिये कोई समयसीमा निर्धारित नहीं है. इस कारण न्यायिक नियुक्तियों में अक्सर विलंब होता है.
NJAC का प्रस्ताव और असंवैधानिक ठहराया जाना:
- 2014 में 99वां संवैधानिक संशोधन करके राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का गठन किया गया. इसका उद्देश्य न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता लाना और कार्यपालिका को भागीदार बनाना था.
- परंतु, सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में NJAC को असंवैधानिक घोषित कर दिया.
अदालत ने निर्णय दिया कि न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका की भागीदारी संविधान की “मूल संरचना” – अर्थात न्यायपालिका की स्वतंत्रता – के विरुद्ध है.
निष्कर्षतः, भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया विवादों में है. ‘परामर्श’ की व्याख्या में आए बदलावों ने कॉलेजियम प्रणाली की नींव रखी, जो आज भी उच्च न्यायपालिका की नियुक्ति की आधारशिला बनी हुई है. हालाँकि NJAC जैसे वैकल्पिक प्रयास असफल रहे हैं. फिर भी कॉलेजियम प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर बहस जारी है.
सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीशों की सूची (List of Chief Justice of Supreme Court)
क्रम | नाम | नियुक्ति | पदमुक्ति |
1 | माननीय न्यायाधीश हरिलाल जेकिसुनदास कानिया | 26/01/1950 | 06/11/1951 |
2 | माननीय न्यायमूर्ति एम. पतंजलि शास्त्री | 07/11/1951 | 03/01/1954 |
3 | माननीय न्यायाधीश मेहर चंद महाजन | 04/01/1954 | 22/12/1954 |
4 | माननीय न्यायाधीश बिजन कुमार मुखर्जी | 23/12/1954 | 31/01/1956 |
5 | माननीय न्यायमूर्ति सुधी रंजन दास | 01/02/1956 | 30/09/1959 |
6 | माननीय न्यायाधीश भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा | 01/10/1959 | 31/01/1964 |
7 | माननीय न्यायमूर्ति पीबी गजेंद्रगडकर | 01/02/1964 | 15/03/1966 |
8 | माननीय न्यायमूर्ति ए.के. सरकार | 16/03/1966 | 29/06/1966 |
9 | माननीय न्यायमूर्ति के. सुब्बा राव | 30/06/1966 | 11/04/1967 |
10 | माननीय न्यायमूर्ति के.एन. वांचू | 12/04/1967 | 24/02/1968 |
11 | माननीय न्यायमूर्ति एम. हिदायतुल्ला | 25/02/1968 | 16/12/1970 |
12 | माननीय न्यायमूर्ति जे.सी. शाह | 17/12/1970 | 21/01/1971 |
13 | माननीय न्यायमूर्ति एस.एम. सीकरी | 22/01/1971 | 25/04/1973 |
14 | माननीय न्यायमूर्ति ए.एन. रे | 26/04/1973 | 28/01/1977 |
15 | माननीय न्यायमूर्ति एम. हमीदुल्लाह बेग | 29/01/1977 | 21/02/1978 |
16 | माननीय न्यायमूर्ति वाई.वी. चंद्रचूड़ | 22/02/1978 | 11/07/1985 |
17 | माननीय न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती | 12/07/1985 | 20/12/1986 |
18 | माननीय न्यायमूर्ति आर.एस. पाठक | 21/12/1986 | 18/06/1989 |
19 | माननीय न्यायमूर्ति ई.एस. वेंकटरमैया | 19/06/1989 | 17/12/1989 |
20 | माननीय न्यायमूर्ति सब्यसाची मुखर्जी | 18/12/1989 | 25/09/1990 |
21 | माननीय न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा | 25/09/1990 | 24/11/1991 |
22 | माननीय न्यायमूर्ति के.एन. सिंह | 25/11/1991 | 12/12/1991 |
23 | माननीय न्यायमूर्ति एम.एच. कनिया | 13/12/1991 | 17/11/1992 |
24 | माननीय न्यायमूर्ति एल.एम. शर्मा | 18/11/1992 | 11/02/1993 |
25 | माननीय न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया | 12/02/1993 | 24/10/1994 |
26 | माननीय न्यायमूर्ति ए.एम. अहमदी | 25/10/1994 | 24/03/1997 |
27 | माननीय न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा | 25/03/1997 | 17/01/1998 |
28 | माननीय न्यायमूर्ति एम.एम. पुंछी | 18/01/1998 | 09/10/1998 |
29 | माननीय डॉ. न्यायमूर्ति ए.एस. आनंद | 10/10/1998 | 31/10/2001 |
30 | माननीय न्यायमूर्ति एस.पी. भरुचा | 01/11/2001 | 05/05/2002 |
31 | माननीय न्यायमूर्ति बीएन किरपाल | 06/05/2002 | 07/11/2002 |
32 | माननीय न्यायमूर्ति जी बी पटनायक | 08/11/2002 | 18/12/2002 |
33 | माननीय न्यायमूर्ति वी.एन. खरे | 19/12/2002 | 01/05/2004 |
34 | माननीय न्यायमूर्ति एस. राजेंद्र बाबू | 02/05/2004 | 31/05/2004 |
35 | माननीय न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी | 01/06/2004 | 31/10/2005 |
36 | माननीय न्यायमूर्ति वाई.के.सभरवाल | 01/11/2005 | 13/01/2007 |
37 | माननीय न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन | 14/01/2007 | 12/05/2010 |
38 | माननीय न्यायमूर्ति एस.एच. कपाड़िया | 12/05/2010 | 28/09/2012 |
39 | माननीय न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर | 29/09/2012 | 18/07/2013 |
40 | माननीय न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम | 19/07/2013 | 26/04/2014 |
41 | माननीय न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा | 27/04/2014 | 27/09/2014 |
42 | माननीय न्यायमूर्ति एच.एल.दत्तू | 28/09/2014 | 02/12/2015 |
43 | माननीय न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर | 03/12/2015 | 03/01/2017 |
44 | माननीय जगदीश सिंह खेहर | 04/01/2017 | 27/08/2017 |
45 | माननीय न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा | 28/08/2017 | 02/10/2018 |
46 | माननीय रंजन गोगोई | 03/10/2018 | 17/11/2019 |
47 | माननीय शरद अरविंद बोबड़े | 18/11/2019 | 23/04/2021 |
48 | माननीय नथलापति वेंकट रमण | 24/04/2021 | 26/08/2022 |
49 | माननीय न्यायमूर्ति यूयू ललित | 27/08/2022 | 08/11/2022 |
50 | माननीय डी.वाई. चंद्रचूड़ | 09/11/2022 | 10/11/2024 |
51 | माननीय न्यायमूर्ति संजीव खन्ना | 11/11/24 | 13/05/25 |
52 | माननीय न्यायमूर्ति बी.आर. गवई | 14/05/25 | – |