एशिया का अपने समय का सबसे बड़ा विजेता तैमूर लंग समरकंद तथा बुखारा का शासक था. वह मेसोपोटामिया, फ़ारस और अफ़गानिस्तान पर अधिकार करने के बाद भारत की राजनीतिक अराजकता का लाभ उठाकर वहां की अथाह संपत्ति को लूटने की महत्त्वाकांक्षा भी रखता था. उसका भारत पर अपना राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने का कोई इरादा नहीं था. तैमूर लंग के साथी, भारत में पड़ने वाली भीषण गर्मी से बहुत आतंकित थे. इसलिए उन्हें तैमूर लंग के भारत अभियान में सम्मिलित होने में संकोच था. तैमूर ने उन्हें आश्वस्त किया कि उसका भारत में स्थाई तौर पर रहने का कोई इरादा नहीं है और वह वहां लूटपाट करके गर्मी के मौसम से पहले ही लौट आएगा.
तैमूर लंग ने अपनी आत्मकथा में भारत पर आक्रमण करने का अपना उद्देश्य – भारत में मुस्लिम समाज तथा इस्लाम में आई हुई विकृतियों को दूर कर उसके शुद्ध स्वरूप को पुनर्स्थापित करना तथा विधर्मियों को पराजित कर, वहां उनके पूजा-स्थलों को ध्वस्त कर और विधर्मियों को मुसलमान बनाकर, इस्लाम की पताका फहराना बताया है. वह अपने द्वारा जीते हुए क्षेत्र में विधर्मियों का दमन कर ‘गाज़ी’ की उपाधि धारण करना चाहता था. तैमूर, अपने प्रेरणा-श्रोत चंगेज़ खान के भारत-आक्रमण के अधूरे सपने को साकार करना चाहता था. किन्तु वास्तव में उसका मुख्य उद्देश्य – कम से कम समय में भारत का अधिक से अधिक धन लूटकर अपने साथ ले जाना था.
तैमूर लंग का भारत आक्रमण (Taimur Lang’s Invasion on India in Hindi)
अगस्त, 1398 को तैमूर लंग ने काबुल से अपना भारत-अभियान आरंभ किया. तैमूर के पोते पीर मुहम्मद ने उच्च तथा मुल्तान को जीतकर अपने पितामह के दिल्ली अभियान का मार्ग सुगम कर दिया और फिर वह उसके अभियान में सम्मिलित हो गया. पानीपत तक पहुंचने के रास्ते में तैमूर ने पाटन, दीपलपुर, भटनेर, सिरसा, कैथल आदि क्षेत्रों को लूटा और वहां भयंकर रक्तपात तथा आगज़नी की.
17 दिसंबर, 1398 को पानीपत के निकट तुगलक़ सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद अपनी सेना के साथ उसका सामना करने के लिए खड़ा हो गया. सुल्तान को अपनी विशाल हस्ति-सेना की विनाशकारी शक्ति पर बहुत भरोसा था किन्तु तैमूर ने अपने ऊंटों की पीठ पर लकड़ियों का ढेर बांध कर और फिर उनमें आग लगाकर उन्हें हाथियों के सामने दौड़ा दिया. दौड़ती आग से भयभीत हाथी पलट कर अपनी सेना को ही रौंदते हुए भाग खड़े हुए. कुछ ही समय में तैमूर की सेना की तुगलक़ सेना के विरुद्ध निर्णायक विजय हुई और सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद तथा उसके वज़ीर ने रणभूमि से भागकर अपने प्राण बचाए.
दिल्ली की लूट और क़त्ल-ए-आम (Loot and Massacre of Delhi)
तैमूर लंग ने दिल्ली में प्रवेश किया किन्तु स्थानीय जनता ने तीन दिन तक उसका प्रतिरोध किया अंततः वह जनविरोध को कुचलने में सफल रहा और प्रतिशोध स्वरूप उसने दिल्ली को न केवल लूटा अपितु क़त्ल-ए-आम का हुक्म भी दे दिया. दिल्ली के तीन नगर – सीरी, पुरानी दिल्ली और जहँ-पनाह को उसने खंडहरों के ढेरों में परिवर्तित कर दिया. 15 दिन तक क़त्ल-ए-आम और लूट के बाद उसने लूटे हुए हीरों, लाल, मोती, सोने और चांदी के अंबारों को सैकड़ों ऊंटों, छकड़ों आदि पर लादकर अपने मुल्क की ओर प्रस्थान किया. भारत के इतिहास की यह सबसे बड़ी लूट थी.
दिल्ली से लौटते में तैमूर लंग ने मेरठ, फ़िरोज़ाबाद, हरिद्वार, कांगड़ा और जम्मू में भी विनाश-लीला की. तैमूर ने रास्ते में पड़ने वाले खेतों में लगी फसलों को ही नहीं, अपितु अनाज से भरे गोदामों को भी नष्ट किया. भयंकर रक्तपात से जगह-जगह महामारी फैल गयी. नदियों का पानी तक प्रदूषित हो गया. तैमूर अपने साथ लाखों स्त्री-पुरुषों को गुलाम बनाकर ले गया. दिल्ली से वह अपने साथ अनेक कारीगरों को भी साथ ले गया जिन्होंने समरकंद के सौंदर्यकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
तैमूर लंग के आक्रमण से दिल्ली सल्तनत की ही नहीं, अपितु समस्त भारत की सैनिक दुर्बलता दुनिया के सामने आ गयी. तैमूर लंग ने अपने नरसंहार में आम तौर पर गैर-मुस्लिमों पर अधिक अत्याचार किए और उनके पूजा-स्थलों को ध्वस्त किया. इसके कारण हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य और अधिक बढ़ गया. आक्रमणकारियों की कुदृष्टि सबसे अधिक कुमारी बालिकाओं पर पड़ती थी इसलिए अब हिन्दू समाज में बाल-विवाह का प्रचलन अधिक हो गया.
दिल्ली सल्तनत का विघटन (Dissolution of Delhi Sultanate)
तैमूर लंग के आक्रमण ने पहले से लड़खड़ाती दिल्ली सल्तनत पर एक और जबरदस्त प्रहार किया. नाम का तुगलक़ सुल्तान का अब दिल्ली के आसपास के क्षेत्र पर भी अधिकार नहीं रह गया. एक समय तो ऐसा भी आया कि दिल्ली से आठ मील दूर पालम में एक और प्रतिद्वंदी सुल्तान उठ खड़ा हुआ. इस समय एक व्यंग्योक्ति प्रसिद्ध हुई – ‘शहंशाह-ए-आलम की सल्तनत केवल दिल्ली से पालम तक की है.’
दिल्ली सल्तनत से टूटकर अनेक स्वतंत्र प्रांतीय राज्यों का उदय हुआ. तैमूर जाते-जाते खिज़्र खान सैयद को मुल्तान, लाहौर और दीपलपुर का सूबेदार बना गया. इस प्रकार व्यावहारिक दृष्टि से पंजाब दिल्ली सल्तनत का हिस्सा नहीं बल्कि अब तैमूर के साम्राज्य का हिस्सा हो गया. बाद में तैमूर लंग के वंशज बाबर ने इसी आधार पर इब्राहीम लोदी से पंजाब को उसके साम्राज्य को सौंपे जाने की मांग की थी.
दिल्ली सल्तनत की दुर्बलता का लाभ उठाकर अनेक सूबेदारों ने अपने-अपने सूबों में अपनी-अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. जौनपुर के सूबेदार मलिक सरवर ने शर्की राजवंश की स्थापना की. गुजरात के सूबेदार ज़फर शाह ने भी अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. मालवा के सूबेदार दिलावर खान गौर ने भी एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की. फ़िरोज़ शाह तुगलक़ की मृत्यु के बाद खानदेश के सूबेदार मलिक फ़ारूकी ने व्यावहारिक दृष्टि से स्वयं को एक स्वतंत्र शासक के रूप में स्थापित किया था जिसे उसके पुत्र मलिक नसीर ने 1399 में पूर्ण स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया था.