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द्वितीय विश्व युद्ध के कारण, प्रमुख घटनाएं और परिणाम | Second World War Reasons, main incidents Result and Repercussions on the world
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द्वितीय विश्व युद्ध के कारण, प्रमुख घटनाएं और परिणाम

द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) 1919 के पेरिस शांति सम्मेलन के 20 वर्ष बाद 1939 में शुरू हुआ. 1 सितंबर 1939 को हिटलर के पोलैंड पर आक्रमण करने के बाद 3 सितंबर 1939 को इंग्लैंड ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की. यह द्वितीय विश्वयुद्ध का आधिकारिक आगाज था.युद्ध के दौरान, केन्द्रीय शक्तियाँ—जर्मनी, […]

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जर्मनी का वाइमर संविधान: विशेषता, उत्पत्ति और पतन के कारण | Weimar Republic of Germany | Rise and Fall in Hindi UPSC BPSC State PCS Prelims and Mains Exam
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जर्मनी का वाइमर संविधान: विशेषता, उत्पत्ति और पतन के कारण

जर्मनी का वाइमर संविधान, जिसे जर्मन संविधान के नाम से भी जाना जाता है. यह 1919 से 1933 तक वाइमर गणराज्य युग के दौरान जर्मनी का आधिकारिक संविधान था. इसे 11 अगस्त 1919 को लागू किया गया. इसमें लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की स्थापना की गई, जिसमें राष्ट्रपति राष्ट्रप्रमुख और चांसलर सरकार का प्रमुख होता था.वाइमर

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विजयनगर साम्राज्य का इतिहास, सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक विशेषताएं | Vijaynagar Empire History and System UPSC BPSC State PCS in Hindi
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विजयनगर साम्राज्य का इतिहास, सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक विशेषताएं

1336 ईस्वी में अंतिम यादव शासक संगम के पुत्रों, हरिहर और बुक्का ने तुंगभद्रा नदी के किनारे विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की. दोनों भाई पहले काकतीय राजवंश में सामंत और बाद में कांपिली राज्य के मंत्री थे. जब तुगलकों ने वारंगल पर हमला किया, तो हरिहर और बुक्का कांपिली चले गए. लेकिन मुहम्मद-बिन-तुगलक ने कांपिली

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जैन धर्म का इतिहास, प्रसार, दर्शन, सम्प्रदाय और मान्यताएं
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जैन धर्म का इतिहास, प्रसार, दर्शन, सम्प्रदाय और सिद्धांत

जैन धर्म एक प्राचीन धर्म है. यह अहिंसा और आत्म-संयम के माध्यम से आध्यात्मिक शुद्धता और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सिखाता है. जैन धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भगवान महावीर के के समस्य हुए. भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे. प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ थे. जैन धर्म का

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ऐतिहासिक अनुसंधान विधि | Historical Research Methods
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ऐतिहासिक अनुसंधान विधि

ऐतिहासिक अनुसंधान विधि का सम्बन्ध मुख्यतः अतीत की घटनाओं, परिस्थितियों, और लोगों के अध्ययन से है. इसका मुख्य उद्देश्य भूतकाल के तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर न केवल उस समय की सटीक जानकारी प्रदान करना है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के परिप्रेक्ष्य में उन तथ्यों की व्याख्या भी करना है. यह अनुसंधान विधि वैज्ञानिक

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अफीम युद्ध के कारण और परिणाम
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2 अफीम युद्ध के कारण और परिणाम

यूरोपियन साम्राज्य्वादियों द्वारा चीन में प्रभुत्व स्थापित करने के प्रयासों का परिणाम अफीम युद्ध के रूप में सामने आया. सत्रहवी शताब्दी के दौरान यूरोपीय व्यापारी समस्त विश्व में अपनी शर्तों पर दबाब की राजनीति अपनाकर व्यापार कर रहे थे. लेकिन, यूरोपियों को चीन ने अपनी शर्तों पर व्यापार करने हेतु मजबूर किया. मंचू राजवंश ने

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वायसराय के रूप में लॉर्ड कर्जन के सुधार | Reforms by Lord Curzon
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वायसराय के रूप में लॉर्ड कर्जन के सुधार

लॉर्ड कर्जन ने जनवरी,1899 ई. में भारत के वायसराय का पद ग्रहण किया. लॉर्ड कर्जन एक योग्य शासक था. उसके द्वारा किये गये भारतीय समस्याओं से संबंधित आंतरिक प्रशासनिक सुधार इस प्रकार है :- वायसराय के रूप में लॉर्ड कर्जन के सुधार दुर्भिक्ष एवं महामारी की रोकथाम –  लॉर्ड कर्जन ने बडे धैर्य से इनका

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जार अलेक्जेंडर प्रथम की गृह नीति
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जार अलेक्जेंडर प्रथम की गृह नीति, जिसने नेपोलियन को मात दिया

बोल्शेविक क्रांति से पहले रूस में जारशाही कायम था. इसमें जार रूस का शासक (राजा) होता था और उसी के माध्यम से सत्ता संचालित होती थी. इनमें जार अलेक्जेंडर प्रथम का नीति व्यापक प्रभाव वाला साबित हुआ. उसने अन्य जारों से हटकर स्वतंत्र नीति अपनाई और विश्व इतिहास में अमिट छोड़ा. तो आइए इस पृष्ठभूमि

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यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन के 4 कारण
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यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन के 4 कारण

विज्ञान के विकास के साथ ही पुरातन और धार्मिक मान्यताएं अपना महत्व खोने लगी. इसलिए धर्म की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए धर्म सुधार आवश्यक था. आधुनिक आविष्कार और औद्योगिक क्रांति यूरोप में आकार ले रहा था. यह धार्मिक कर्मकांडों और मान्यताओं पर प्रहार करने को पर्याप्त था. साथ ही कई दार्शनिक और विचारक लोगों

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नवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं: औजार, व्यापार व स्थल
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नवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं: औजार, व्यापार व स्थल

नवपाषाण शब्द उस काल को सूचित करता है जब मनुष्य को धातु के बारे में जानकारी नही थी. परन्तु उसने स्थायी निवास, पशु-पालन, कृषि कर्म, चाक पर निर्मित मृदभांड बनाने शुरू कर दिए थे. इस काल की जलवायु लगभग आज कल के समान थी इसलिए ऐसे पौधे पैदा हुए जो लगभग आज के गेंहू तथा

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