अर्थशास्त्र और उपभोक्ता बाजार में, विभिन्न प्रकार के सामानों को उनके उपयोग, मूल्य संवेदनशीलता और उपभोक्ता व्यवहार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है. आइए इनका संक्षिप्त परिचय देखें:
1. व्हाइट गुड्स (White Goods)
व्हाइट गुड्स वे बड़े घरेलू विद्युत उपकरण होते हैं जो घरों में रोजमर्रा के काम को आसान बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं. इन्हें उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएं (Consumer Durables) भी कहा जाता है.
उदाहरण: रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन, एयर कंडीशनर, डिशवॉशर, माइक्रोवेव ओवन, ड्रायर, आदि.
2. ब्राउन गुड्स (Brown Goods)
ब्राउन गुड्स आमतौर पर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स को संदर्भित करते हैं, जिनका उपयोग मनोरंजन और संचार के लिए किया जाता है.
उदाहरण: टेलीविजन, रेडियो, डीवीडी प्लेयर, होम थिएटर सिस्टम, ऑडियो उपकरण, गेमिंग कंसोल, आदि.
3. वेबलेन गुड्स (Veblen Goods)
वेबलन गुड्स वे विलासिता वस्तुएं हैं जिनकी मांग उनकी कीमत बढ़ने पर बढ़ती है. यह मांग के सामान्य नियम के विपरीत है, जहाँ कीमत बढ़ने पर मांग घटती है. इन वस्तुओं को लोग अपनी सामाजिक स्थिति, प्रतिष्ठा और धन को प्रदर्शित करने के लिए खरीदते हैं. इनका नाम अमेरिकी अर्थशास्त्री थोरस्टीन वेबलेन के नाम पर पड़ा है.
उदाहरण: महंगी डिजाइनर कपड़े, लग्जरी कारें, डिजाइनर घड़ियां, उच्च-स्तरीय गहने, आदि.
4. सिन गुड्स (Sin Goods)
“सिन गुड्स” या "पाप वस्तुएं" वे उत्पाद होते हैं जिन्हें समाज या सरकार द्वारा उपभोग के लिए नैतिक रूप से आपत्तिजनक या हानिकारक माना जाता है. इन पर अक्सर सरकारें अधिक कर लगाती हैं, जिसे सिन टैक्स (Sin Tax) कहते हैं.
उदाहरण: शराब, तंबाकू उत्पाद, जुआ, कभी-कभी सोडा और अत्यधिक मीठे खाद्य पदार्थ.
5. गीफन गुड्स (Giffen Goods)
गीफन गुड्स ऐसी निम्न-स्तरीय वस्तुएं (Inferior Goods) होती हैं जिनकी कीमत बढ़ने पर उनकी मांग भी बढ़ जाती है, और कीमत घटने पर मांग घट जाती है. यह भी मांग के सामान्य नियम का एक अपवाद है. यह प्रभाव अक्सर बहुत गरीब लोगों के मामले में देखा जाता है, जहाँ आय के बहुत कम होने पर, किसी आवश्यक वस्तु की कीमत बढ़ने पर, वे अन्य अधिक महंगी वस्तुओं को छोड़कर उसी सस्ती लेकिन आवश्यक वस्तु का अधिक उपभोग करने लगते हैं. इसका नाम स्कॉटिश अर्थशास्त्री सर रॉबर्ट गिफेन के नाम पर पड़ा है.
उदाहरण: ऐतिहासिक रूप से, आयरलैंड में आलू या चीन में चावल जैसी मुख्य खाद्य वस्तुएं जब लोगों की आय बहुत कम होती थी और उनके पास कोई सस्ता विकल्प नहीं होता था.