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पानी की कहानी: धरती पर जल कैसे आया?

वैसे तो ब्रह्मांड में बहुत सारे ग्रह मौजूद हैं. मगर एक ग्रह सबसे खास है और वह है हमारी धरती, जहां जीवन पाया जाता है. हालांकि कई ग्रहों की कुछ गुण धरती से मिलती जुलती हैं. लेकिन एक चीज है जो इसे सबसे खास बना देती है, जो यहां पर जीवन का कारण भी है. और वह है पानी, जिसके कारण धरती को नीला ग्रह भी कहा जाता है.

वैसे तो जिंदा रहने के लिए कई चीजों की जरूरत होती है. लेकिन अगर सबसे जरूरी चीज की बात की जाए तो हवा के साथ पानी का जिक्र आता है.पानी जो कि किसी भी जिंदगी के साथ-साथ सभ्यताओं का आधार रहा है. तभी तो प्राचीन काल से ही सभ्यताएं वहीं बसी जहां पानी उपलब्ध होता था.

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह पानी धरती पर आया कहां से? जी हां वही पानी जो आज हमें एक मिनट से पहले अवेलेबल हो जाता है. वह धरती पर आया कहां से? क्या आपको नहीं लगता कि धरती पर पानी आने की यह कहानी जाननी चाहिए? तो चलिए आज हम आपको बताएंगे कि धरती पर पानी आया कहां से? मगर उसके लिए आपको लेख को अंत तक पढ़ना होगा. तो चलिए शुरू करते हैं…

पृथ्वी पर जल का आगमन कैसे हुआ?

असल में आज से लगभग 4.5 अरब साल पहले हमारी धरती का जन्म हुआ था. उस वक्त यह एक बड़ा सा आग का गोला थी. तब ना तो यहां पर पानी था और ना ही जीवन. हर तरफ केवल ज्वालामुखी विस्फोट होते रहते थे, जिनसे निकलती थी जहरीली जलती हुई गैस. हर तरफ पिघली हुई चट्टानों का साम्राज्य फैला हुआ था.

इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हो कि किधर भी नजर घुमा लो हर तरफ सिर्फ आग ही आग थी. अब भला ऐसे वातावरण में जीवन की कल्पना कोई कैसे कर सकता था. तब जीवन तो छोड़ो पानी तक यहां मौजूद नहीं था. मगर किसने सोचा था कि धरती एक दिन जीवन से भरपूर और पानी से इस कदर भर जाएगी कि इसे नीला ग्रह कहा जाएगा?

तो फिर सोचने वाली बात है जब धरती आग का गोला थी तो फिर यह इतनी खूबसूरत और ऐसा खूबसूरत प्लेनेट बनी कैसे? आखिर इस पर पानी आया कैसे? बता दें वैज्ञानिकों का मानना है कि असल में धरती पर पानी के आने की कहानी धरती की उत्पत्ति से जुड़ी हुई है. जब धरती का जन्म हुआ तो हमारा पूरा सौरमंडल एक विशाल गैस और धूल के बादल से बना हुआ था.

शुरुआत में धरती बहुत गर्म थी और उसमें पानी महासागर जैसा कुछ भी नहीं था. हालांकि धरती पर पानी के जन्म या आगमन की कई सारी थ्योरी दी जाती हैं जिनमें से कुछ बहुत खास हैं. इनमें सबसे पहली थ्योरी है ज्वालामुखी गतिविधि की थ्योरी (Volcanic Activity Theory).

ज्वालामुखी गतिविधि का सिद्धांत

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अगर इससे थ्योरी की बात की जाए तो ज्वालामुखी गतिविधि के अनुसार धरती के अंदर मौजूद गैसें ज्वालामुखी विस्फोटों के द्वारा वातावरण में छोड़ी गई थी. इन्हीं गैसों से पानी का जन्म हुआ. असल में इन ज्वालामुखी के अंदर बहुत सारी गैसें निकल रही थी. जब धरती ठंडी हुई तो ये जैसे जलवाष्प में बदल गई. फिर जलवाष्प ने बादलों का रूप ले लिया, जिनसे भारी बारिश हुई. पानी के रूप में यह बूंदे वापस धरती पर गिरने लगी.

ऐसा माना जाता है कि यह बारिश लाखों सालों तक चलती रही, जिससे महासागरों का निर्माण हुआ. वैसे हम आपको बताते चलें कि ज्वालामुखी विस्फोट यहां लगातार हो रहे थे, जिससे धुआं और गैस निकल रही थी. अगर इनसे निकलने वाली गैस की बात की जाए तो इनमें मुख्यतः हाइड्रोजन और ऑक्सीजन मौजूद थे.

आप तो जानते ही हैं कि पानी बनाने के लिए यह प्रमुख तत्व होते हैं. जब ज्वालामुखी विस्फोट होते थे तो उनके धुएं और गैसों में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन मौजूद थे. इन दोनो ने आपस में मिलकर पानी की बूंदे बना दी. यही पानी धीरे-धीरे वायुमंडल की सतह पर जमा होने लगा और फिर बरस गया. इसी से समुद्र और नदियों की शुरुआत हो गई. धरती की प्रारंभिक जलवायु और महासागरों का उदय इन्हीं से हुआ है. लेकिन इसमें भी करोड़ों साल का समय लगा है.

जैसे-जैसे धरती का तापमान कम होने लगा. वायुमंडल में जो पानी वाष्प के रूप में मौजूद था, वह संगठित होकर बारिश के रूप में धरती पर गिरने लगा. यह बारिश लगातार करोड़ों सालों तक होती रही जिसकी वजह से हमारी धरती पर जल निकायों का निर्माण शुरू हो गया. इन जल निकायों ने धीरे-धीरे महासागरों का रूप ले लिया. वैज्ञानिक मानते हैं कि आज हमें जो पानी दिखाई देता है उसकी उत्पत्ति उसी समय हुई थी जब धरती ठंडी होने लगी थी और बारिश का सिलसिला शुरू हो गया था.

लेकिन इसे सच नहीं माना जा सकता क्योंकि यह सवाल उठता है कि इतनी बड़ी मात्रा में पानी केवल धरती के अंदर की गैस से कैसे आ सकता है? क्या सिर्फ गैसों से ही इतने बादल बन गए कि लाखों साल तक लगातार बारिश चलती रही? यही वजह है कि इसे परफेक्ट नहीं माना जाता और इसी वजह से दूसरे सिद्धांत भी सामने आती हैं जैसे धूमकेतु यानी कोमेट्स की थ्योरी.

धूमकेतु का सिद्धांत

इस थ्योरी के अनुसार कहा जाता है कि धरती पर पानी बाहरी अंतरिक्ष से आया है. असल में वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती के बनने के समय हमारे सौरमंडल में कई कॉमट्स एंड मेटियोरॉइड्स लगातार टकरा रहे थे. क्योंकि यह वही दौर था जब लगातार प्लेनेट का फॉर्मेशन हो रहा था.

अगर बात की जाए धूमकेतु की तो तो ये धुमकेतु मुख्य रूप से बर्फ और गैस के बने होते हैं. जब यह धरती से टकराए तो उन्होंने अपने बर्फ को पानी में बदल दिया. इसी पानी ने धीरे-धीरे धरती पर महासागर और दूसरे जलस्त्रोत बन गए. हालांकि इस सिद्धांत को भी पूरी तरह से सत्य नहीं माना जा सकता. ऐसा इसलिए क्योंकि कोमेट्स का पानी धरती के पानी से मेल नहीं खाता है. हालांकि इसके बावजूद यह कहा जा सकता है कि यह सिद्धांत काफी खास है. इसके अलावा एक और सिद्धांत है जिसे उल्कापिंड या एस्टेरॉइड सिद्धांत कहते हैं.

उल्कापिंड सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार धरती पर पानी उल्का पिंडों की वजह से आया था. वैज्ञानिकों की रिसर्च से पता चला है कि धरती पर पानी कार्बोनाइज्ड मेटियोरॉइड से आया है. असल में कार्बोनिल्स में पानी की मात्रा होती है और हमारी सोलर सिस्टम में यह काफी मात्रा में मौजूद थे. यह भी माना जाता है कि धरती के बनने के शुरुआती दौर में ये धरती से टकराए थे, जिससे बर्फ और पानी के अन्य अवयव धरती पर पहुंचे और धीरे-धीरे हमारी धरती पर जल का आगमन हुआ. इन्हीं से महासागरों और दूसरी जलस्त्रोतों का निर्माण हुआ. इसे काफी हद तक स्वीकार किया जाता है.

वास्तव में इस सिद्धांत को साइंटिस्ट से काफी सपोर्ट मिला है. ऐसा इसलिए क्योंकि उल्का पिंडों में जो हाइड्रेटेड मिनरल्स एंड वाटर पार्टिकल पाए जाते हैं, वे धरती के पानी से मेल खाते हैं. यही वजह कि यह सबसे ज्यादा माने जाने वाला सिद्धांत बना हुआ है. यह बात बिल्कुल सच है कि पानी के उत्पत्ति का सबसे प्रमुख स्रोत अंतरिक्ष से आई धूमकेतु और छुद्रग्रह हो सकते हैं. दरअसल धरती पर जितनी भी चीजें पाई जाती हैं, उनमें से अधिक का स्रोत धुमकेतु और छुद्र ग्रह ही माने जाते हैं. चाहे वह भारी मेटल हो या अन्य चट्टाने.

वैज्ञानिकों का मानना है कि धूमकेतु में भारी मात्रा में बर्फ होती है. जब यह धरती से टकराते हैं तो उनका पानी हमारे वायुमंडल में फैल जाता है. इसके बाद का तापमान लगातार घटने लगा और धीरे-धीरे यह पानी महासागरों और झीलों में बदल गया.

वैज्ञानिक का मत

Experiment for Water Coming on Earth Illustrative Image

अब आप सोच रहे होंगे कि यह सारी बातें आखिर किन आधारों पर की जा रही हैं तो बताते चले कि हम किसी की सुनी बात पर बात नहीं कर रहे. बल्कि साइंटिफिक अनुसंधान एंड खोज ही इनका आधार है. दरअसल धरती पर पानी कहां से आया इस सवाल का जवाब पाने के लिए वैज्ञानिकों ने बहुत सारे प्रयोग किए थे. इसके लिए स्पेसक्राफ्ट और टेलिस्कोप का इस्तेमाल करके उन्होंने धूमकेतु, छुद्रग्रहो और अन्य ग्रहों की स्टडी की.

इसके साथ ही धरती के खनिजों का भी गहन अध्ययन किया गया. यही नहीं आज भी बहुत सारी ऐसी रिसर्च चल रही हैं ताकि वैज्ञानिक पता लगा सके कि धरती के अलावा और किस-किस जगह पर पानी है और वहां का पानी भी क्या धरती के पानी की तरह है या नहीं.

अगर बात की जाए इन साइंटिफिक रिसर्चस की तो तो साइंटिस्ट्स ने आइसोटोप ऑफ वाटर की एक डीप स्टडी की थी. दरअसल विज्ञान में आइसोटोप की स्टडी बहुत महत्वपूर्ण होती है. जब वैज्ञानिकों ने धरती के पानी के आइसोटोप विशेष रूप से हाइड्रोजन और ड्यूटिया की स्टडी की तो उन्हें पता चला कि धरती पर जो पानी पाया जाता है वह उल्कापिंडों में पाइ जाने वाले पानी के काफी समान है. यही वजह है कि इस स्टडी ने वैज्ञानिकों को यह मानने पर मजबूर कर दिया कि धरती पर पानी का आगमन उल्का पिंडों की वजह से हुआ.

वैसे हम आपको बताते चलें कि चंद्रमा जो कि धरती का ही पार्ट है वहां पर भी पानी के संकेत मिले हैं. दरअसल चंद्रमा ही नहीं बल्कि मंगल पर भी पानी के संकेत मिले हैं जो यह दर्शाता है कि पानी पूरे सौरमंडल में मौजूद हो सकता है. इन ग्रहों पर पानी के निशान मिलने से यह संभावना भी बढ़ गई है कि यह पानी कहीं और से अपनी धरती पर आया है. यही वजह है कि अब के समय और भी कई सिद्धांत सामने आती हैं.

हाल ही में एक इंटरेस्टिंग रिसर्च सामने आई थी जिसमें पता चला कि सौर तूफानों का भी धरती के पानी में योगदान हो सकता है. जी हां आपने सही सुना. दरअसल सौर हवा में हाइड्रोजन होते हैं जो विभिन्न ग्रहों और अंतरिक्ष में धूमकेतुओं से टकराते रहते हैं. जब भी हाइड्रोजन कण धरती से टकराते हैं तो यह ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करके पानी बना सकते हैं. यही वजह कि इस स्टडी से भी सोलर विंड को धरती पर पानी आने का एक खास कारण माना जा रहा है.

चलते चलते (Conclusion)

वैसे अभी भी पानी की कहानी पूरी तरह से अधूरी है. फिर भी हमने अब तक जो भी सीखा है वो हमारी पृथ्वी के निर्माण और सौर मंडल के इतिहास को समझने में मदद करता है. पानी केवल पदार्थ नहीं है बल्कि यह हमारे जीवन का आधार है. इसे समझना हमें ना केवल धरती के इतिहास को जानने में मदद करता है बल्कि हमारे भविष्य को सुरक्षित रखने के तरीकों के बारे में सोचने के लिए भी प्रेरित करता है. हालांकि सबको पता है कि जल ही जीवन है. मगर आज जल संकट हमारे लिए सबसे बड़ा बन गया है.

आप देख ही रहे हैं कि अपने चारों ओर जल संकट और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव हैं. इससे यह सवाल और भी जरूरी हो जाता है कि धरती पर पानी की स्थिति भविष्य में कैसी होगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि एक दिन ऐसा भी आ जाएगा जब हमारी धरती का सारा पानी खत्म हो जाएगा? यह सवाल सच में सोचने वाला है. इसलिए कहा जाता है हमें जल संरक्षण की आवश्यकता है. वैसे आपका इसके बारे में क्या ख्याल है. हमें कमेंट करके बताना ना भूलिए. साथ ही अगर आपको हमारी लेख पसंद आई हो तो उसे शेयर करें और हमारे वेबसाइट को सब्सक्राइब करें. जय हिंद दोस्तों!

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